Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०१)
प्रत
वृत्यंक [२२६
गाथा
१-२३]
दीप
अनुक्रम
[२६५
२८७]
"आचार" - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णिः)
श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [१], निर्युक्ति: [ २७५-२८४], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक २२६ / गाथा: १-२३]
श्रीआचा रांग सूत्रबूर्णिः
॥३०६ ॥
जा इत्थी सा इत्थमेव, ण पडलो, इसरो स इसरो एव, जो मुणी सो मुणी चेव, चउरासीइ य सयसहस्सविक्षणा कम्मे हिं अभिसित्ता सत्ता कंमणा कविता पुढो वाला कष्पिता, यदुक्तं भवति-उपवादिगे, युतं च-छ अनतरंसि कप्पति, पुढो णाम पिहप्पिदं, जं भणितं होति-पत्तेयं पुणो पुणो वा, दोनि आगलिता बाला, ते एवं कम्मेहिं कप्पिते, भगवं च एवमण्णासिं (५६) च पूरणे, एवमवधारणे, एवं अनिसित्ता, जं भणितं भवति- अणुचिंतेचा, गिवासे अवहिनागेण पव्वइए चउहिं नाणेहिं अणिसित्ता, किमिति निक्खमणकालं, जं भणिता होति अह सामिवे दुवे वासे जाव कम्मुणा कप्पियत्ति, इमं च अनं अणिसेचा सोवचिते हु लुप्पती पालो दव्बउवही रबादि भावे कम्ममेव उवही, सह उबहीणा सोबही, इह परत्थ य लुप्पति-छिजति भिजति वही अति मारिज्जति, इदं ताव 'कतिया वच्चति सत्थो ? किं मंड ? कत्थ ? कित्तिया भूमी ? । को कप विकयकालो १ णिन्त्रि| सति को ? कहिं ? केण ? ॥ १ ॥ मणूसा लुप्पति, चोररायअग्गिमादीहिं आलुप्पति परत्थ कम्मोव हीमादाय नरगादिएसु लुप्पति, कम्मग्गाओ लुप्पति, मोक्खसुहायो य लुप्पति, अहवा इमं अणिसित्ता-जे पव्वइयावि संता कथं विणावि कारएहिं जीविकाइएहिं जीविस्मायो ?, मंसादिट्टिभोयणेण वा अचंतेण वा, तेसु उववज्नमाणो, सो य उबवज्जमागो बालो, सोयविधिया माइट्ठाणिउ, तंजा-सयं ण पयामि, अनेहिं पाययामि, एवं सवं ण छिंदानि छिंदामण्णेहिं एवं लोगरंजणणिमित्तं सोवि, जं भणीतं तं मोहकंमोचहिमादाय नरगादिभवेसु लुप्पति पकति य, ते पेहियच्या कारण, जहा णच्या सोबहिय दोसे य णच्चा, इमं च अअं णचा, तंजा-कम्मं च सहसो णचा कम्मं अडविहं तं सचसो पारेहिं पदिसदितिअणुभावतो णचा, जो य जस्त बंधदेऊ कम्मफल विवागं च, पडियाइक्खे पावगं भगवं हितजुयो पञ्चक्खाति पांच हिंसादि, अगवजो तवोकम्मादि, पण तं पच
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[०१], अंग सूत्र [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
[310]
सर्वयोनि कत्वादि
॥ ३०६ ॥
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