Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 317
________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [२२६ गाथा १-१६] दीप अनुक्रम [ २८८ ३०३] श्रीआचा रांग सूत्र चूर्णिः ॥३१२|| “ आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [२], निर्युक्ति: [ २८४...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक २२६/ गाथा: १-१६] सभा भवंति जन्थ रुदादिपडिमाओ ठविजेति, पिविस्संति पेहियादि सा पवा, तंजहा-उदगयना गुलउदगप्पा खंडण्या सक रप्प वा एवमादि पणियगिदं आपणो पणियसालति, पति सालघराणं विसेसो, सकुडं घरं कुडरहिता साला, जं वा लोगसिद्धं णाम, जहा सकुडावि हत्थिसाला बुच्चति, एगता णाम कताई, वास इति राईगहिता उडुबद्धे, वासासु अदुवा पलियट्ठाणेसु | पलालपंजेसु एगया वासो अदुवेति अण्णतरे पलियं नाम कम्मं, यदुक्तं भवति-कम्मतट्ठाणेसु, दम्भकम्मंतादिसु, अहबा पलिगाति ठाणं, तंजहा- गोसाला, गोवद्धो वा करीसरहितो, ण अज्झावगासं, पलियं तु पलालं, पुंजो संघातो, पलालमंडबस्स हेडामु | सिरचाणे पलालपुंजेसु पविसति, एगता कयाइ, आगंतारे आरामागारे (६७) गामरण्णेऽवि एगता वासे गामस्स अंतो बहिं वा, आगंतु जत्थ आगारा चिति तं आगंतारं, आरामे आगारं आरामागारं गामेति कताई गामे कथाइ नगरे, अयं तु विसेसो| गामे एगरचं नगरे पंचरतं, एवं उदुबद्धे, वासासु नियमां चत्तारि मासे वासो, गामादीणं पुण कयाई अंतो कयाइ बाहिं अन्भासे |सुसाणे सुन्नागारे वा रुक्स्वमूलेवि एगया वासो सबसयणं सुमाणं सुमान्भासे, सुन्नं अगारं सुन्नागारं रुक्खे वा मूले वा | खंधस्स अणम्भासे, जत्थ पुप्फफलाई ण पडंति, एगतत्ति उडुबद्धे, न तु वस्सासु सुनारुकखस्स तले वा वसति, सुन्नागारं वा जं न गलति, एतेसु मुणि सयणेसु (६८) एतेमुत्ति जाणि एताणि उद्दिद्वाणि, अन्नाणि य एवंविहाई सेलगिहादीणि, मुणेतीति सुणी, सुप्पति जत्थ णं सवणं, समणेत्तिस एव वद्धमागासामी, अहवा तेसु पत्रात निवासमसिमे सोगनिरुवसग्गे वसतिसु समण एव आसी अतो समणे, जहा दुक्खसिखा आसी तहा तहा भिमतरं समण आसी, वरिसं पगतं पत्थियं वा, तेरसभं वरिसं | जेसिं वरिसाणं ताणिमाणि पतेरसवरिसाणि छउमत्यकाले, राईदियंपि जयमाणे जहा रचि वहा दिवा, उभयग्गहणमवि सामत्थं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र -[०१], अंग सूत्र [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [316] सभादि स्थानादि ||३१२॥

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