Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२७५-२८४], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-२३]
प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-२३]
से अभिषणायदसणे संते स इति सो भगवं छउमत्थकाले खातिते सम्प्रदरिसणे. दरिमणे य सति णियमा नाणं ।। दर्शनादि रांग मूत्र-I अस्थि, तं च पुब्बगइयस्स भगवतो चउब्धिई, मणपञ्जवनाणे य सति णियमा चरिन, अतो दरिसणे गहणं तज्जातीयाणं, संतेति ।।
चूर्णिः IN विज्जमाणे, केह ति खोरसमियं सम्मईसणं तस्स आसी, तं च संत, जो एवं भगवं गिहवासे व सीतोदगादि छपि काए १॥३०५ दोनि साधिए वासे अभोचा णिक्खंतो मो कह निक्खंतो ते आरभिस्सति ?, अत एव वित्धरा बुचति-'पुढवि आउंच(५३)
कंठयं, पणतो णाम उल्ली अणंतकायो, सो जीवन प्रति धिभावो अतो तन्गहणं, तेण जो पणगमवि परिहरिदिद सो कई बत्तजातिबुद्धि आहारमरणधम्माणं वणस्यति न परिहरिस्मति?, अतो पणगग्गहणं बीयग्गहणं च, हरियाणि तु वलिंगाणि, वणस्सइ-in भेददरिसणस्थं च पणगादिगहणं, एवं पुद विकायियादि, पुढची मेदो भाणियबो, तसा बेइंदियादि, सनसो पगारेहिं सुहमवादरप-IYA
ज्जतगादी व मेदे णचा उज्झिना 'एयाणि संति पडिलेहे'(५४) एयाइति मागहामिहाणाण एताई कायाई, संतीति विज्जति, । 1| यदुक्तं भवति-ण कयाइ विजजंति, कयाइ न विज्जंति, आह-'इमा णं मंते ! रयणप्पभा पुढवी सम्बनीदेहि जहपूज्या सम्बनीवेडिं
जढा ?, गोयमा ! इमा ग रयणप्पट्टा पुढवी सयपुग्वे (जीवे)हिं जहपुब्बा, नो चेव णं सधजीवेहिं जहा, एवं सेमामु वे', अतो संतिग्गहणं, चित्तमंताणि से अभिण्णाय चित्तमिति जीवस्स अक्खा, चित्तं तेसिं अत्थीति चित्तमंता, पुढ चिकाइयादीणिवि कायाई,स इति तित्थगरो छउमथकाले, अभिमुहं णचा अभिष्णात, यदुक्तं भवति-ण विवरीत, परिवजियाण विहरित्ता इति संखाय |से महावीरे एतं कंठथ, अह थावरा तसत्ताप (५५) तसजीवाचि थावरचाए, यदुकं भवति-उववर्जति, अदुवा सबजोणिया सत्ता अवत्ति अवसद्दा अबज्ज, सो मुहृदृहउच्चारणत्ता मधासु जोणिसु उत्रवज्जति सबजोणिया, ण तु जहा लोइता ॥३०५।।
दीप
अनुक्रम [२६५२८७]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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