Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 309
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२७५-२८४], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-२३] श्रीआचारांग सूत्रचूर्णिः ॥३०४॥ प्रत वृत्यंक [२२६गाथा १-२३] तं?, जं भगवं अपरिमितबलबीरियपरकमो पन्धइयो स इंदियदर्म कृतवान् , सो भगवं आघवति जो फासुयाहार एवासी, कह ?, | तस्स हि अट्ठावीसतिबरिसस्स अम्मापियरो कालगयाई, तेसि मरणे सो समत्तपइन्नो भूतो, जणो ण देइ, तेहिं णातखइ(ति)एहिD | विचचितु-भगवं! खये खारावसेगं मा कुरु, पच्छा भगवं उबउत्तो, जह अहं संपयं चेव णिक्खमामि तो एत्थ बहवे सोगेण खित-14 | यथादि भविस्संति, पाणा चइस्संति, एवं ओहिनाणेण णचा भणइ-केचिरं अच्छामि भणह, तेहि भण्णति-अम् परं विहिं संव|चरहिं रायदेविसोगा णासिजति, तेण पडिस्सुतं, ताहे भणइ-तता नवरं अच्छामि जति अप्पच्छंदेण भोयणातिकिरिय करेमि, तेहि सामस्थिय, अतिसयरूबंपिता से किंचिकालं पेच्छामो, तं तेसिं भगवया वयणं अब्भुवगर्य, सयं च णिक्रमणकालं णचा, | अवि समहिते दुवे वासे (५२) अच्छइत्ति, अनतरे जम्हा ते तिब्बसोगे संतत्ता मा भ, मच्चुवसं गता भविस्संति, अह तेसिं |तं अवन्थं गचा साधिते दुवे चासे बसतीति, दुवे वरिसे सीतोदगं भावओ परिचतं न पुण पिबीहामि, जहा सीतोदगंतहा सन्चाहारं सचिन अमोबा-अपीचा, अपिइत्ता इति बत्तब्वे जाणावेति अन्नपि सचेषणं अभोगा, ण य फासुतेणविण्हातो, हस्थपादसोदणं | | त, फासुएणं आयमणं, सबसचेतणाहारपरिचागे सति दुपरिहरं उदगमितिकाउं तेण तस गहणं, इतरहा हि सो पंचवि सवेतणे || | कार्य परिहितवां तिबिहकरणेणवि, परं णिक्खमणमहामिसेगे अफामुएण हाणितो, जहा पाणाइवाय परिहरियवं तहा मुसावायपि अदत्तादाण मेहुणं परिग्गहं राईभनाणिवि, ण य बंधवेहिदि अतिणेहं नृतवा, ततो बुबंति एगत्तिगते पिहितचा एगतिगतो। णाम ण मे कोति णाहमवि कस्सइ, पिहिता अचाओ जस्म स भवति पिहितार्च, अचा पुनभगिता, सरीरं वा, तं पंचेंदियसमुदितो, मो रागदोसोदयं प्रति पिहितो, कायवायमणगुत्तो वा, भावनाओवि अपमत्थाओ पिही नाओ, रामदोसऽणलाला पिहिता, दीप अनुक्रम [२६५२८७] ॥३०४॥ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [308]

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