Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 313
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२७५-२८४], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-२३] प्रत वृत्यंक [२२६गाथा १-२३] श्रीआचागुणाधिकारी अणुयत्तति-जस्सित्पीओ परिषणाता जतो जेसि वा दुविहाए परिणाए जाणणापरिणाए पचक्याणपरिणाएखीपरिरांग सूत्र| य, जाणणाए, 'एता हसति च रुदंति च अर्थहेतु०' बितियाए पडिसेहेति सव्वं अट्ठविहं कम्म आवहंति एवं पेक्खित्ता, एवं सेसेवि | DD ज्ञादि चूर्णिः अस्सवे, परिहरियं वा जहाय, एतं मूलगुणे परिहरितं वा, तं चेव उत्तरगुणेवि, जेण भण्णति--आहाकडं न से सेवे (५९) ॥३०८॥ जति कोति निमंतिम अअ अम्हंतणए मुंजसु गेहे अहं ते साधयामि भोयणं, तं एवं अहाकडं तमाहाय मणसीकृतं, जोवि अपुच्छिXN | पिउवणखंडे हिंडंतस्स दाहामि तंपि अहाकडं, सबसो कम्मुणा य अदक्खु सव्यस्स इति सवभावेण ण लेमुद्देसेण, किमिति, नणु कम्मुणा कम्मबंधो अदक्खुति, अत एव दृष्टं भवति-जं पावं न सेविअति, जेण आहाकम्मेण भुत्तेण, एवं सर्व अविसोधिकोडि बजेतब्ब, जं किंचि पावगं भगवं जमिति अणुदिट्ठस्स, जं च आहारिमं असणपागखाइमसाइमं या, पावगमिति असुद्धं विसोधिकोडीए वा, तहा आहाकम्मं च बजेहि सेस उग्गमदोसेहिं उप्पारणदोसेहिं एसणादोसेहि य, तं अकुवं वियद्धं भुंजित्ता अकुव्वं सतं अन्नेहिं पाययं जोवि सो कोइ आगताए पेहाए उबक्खडेज आगतस्स दाहामि तंपि नाणुमोदेति, यदुक्तं भवति-न | SH गेहाति तेण अणुष्णा ण भवति, अहवा पापगमिति मंसमक्षमादि, तत्थ अकुव्वं ण असति, जं च अण्णं संजोयणादिपमाणइंगा|लधूमणिकारणादि आहारअस्सितं पावं तं अकुब्छ, तहा य चेव सुरुसुरादिपावं अकुच्छ, विगत जीवं विगई, एवं पाणगमवि चाउलउण्डोदगसोवीरगादिपगारो, अतिकंतं चायी, जं भणित-भुक्तं वा, भणितं आहारविधाणं, इदाणि उबहिं युबति, सो य दुविहो-IN वत्थं पतं च, जतो बुबति-णो सेवह य परबत्थं (६०) जंतं दिव्वं देवाइ संपवयंतेण गहितं तं साहियं वरिसं खंवेणं चेव ॥ धरितं, णवि पाउयं, तं मुइचा सेसं परवत्यं पडिहारितमविण धरितंबा, केइ इच्छंति-से बत्यं तस्य तत् , सेसं परवत्थं, जं गाहितं ॥३०८॥ दीप अनुक्रम [२६५२८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [312]

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