Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 302
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२७५-२८४], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-२३] | उद्देशार्थाधिकाराः चूर्णिः प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-२३] श्रीआचा- परमं सिद्धं पहाणं भवति, जं भणित-जाणेत्ता जह विही विमोक्खतीति विमोक्खं, अण्णावरं णाम तिण्डवि एतेमि अन्नतरं, अणुरांग सूत्र- पालिअंति इन्चेयं विमोहायपयणं एगतियं च अचंतियं च हितं मुहं आवकहितं परहित मेति एवं धु(बु)वामि, तित्थगरोदेसाओ, MINण सेच्छाती इति ।। आचारचूपयों सप्तममध्ययनं विमोक्षायतनं नाम परिसमाप्तं ॥ ॥२९॥ ___अज्झयणामिसंबंधो जहा णिज्जुत्तीए पद मे अज्झयणे बुचो, तंजड़ा-कयरेण इमं सुथर्खधं प्रणीत ? केण वा एते गुणा अणुचरिता जे अडसु अज्झयणेसु उत्ता?, तं पुच्च(बुच)ति-बदमाणसामिणा भगवया, एस द्वितकप्पो व सब्बतित्थगराणं जेण भचेराणं नवमे अज्झपणे तवोकम्म वण्णेति जे अप्पणा अणुचिण्णमिति, जं च साहहिं अणुचरियध्वमिति, तत्थ गाहा-जो जइता तिस्थगरो॥२७५।। कंठणं, चत्तारि अणुयोगदारा वण्णेत्ता दुविहो अस्थाहिगारो, अज्झयणे ताब चउहिवि उद्देसरहिं तवोकम्मेहि अहिगारो बदमाणसामिणा य, उद्देसत्याधिमारो इमो-चरिया १ सेजा २ यं परीसहा य ३ आयकिते तिगिच्छाए ४ ॥२७६।। | तत्थ पढभए उद्देसए चरिया वणिजति जहा सा चरियब्वा, बितिए सेजाओ वणिजंति जारिसियासु सो भगवं वसिताइओ, ततिए | उपसग्गा वण्णिअंति, चउत्थे ओमोदरिया, जं च आहारं भगवं आहारियमो, णामणिष्फण्णे उवहाणसुतं, तस्स णिक खेवो-नाम | ठवणुबहाणं० गाहा ।।२८०।। दध्खुवहाणं वइरिच उवहाणं सयणिजस्स एगतो दुहतो वा, निरुवहाणो उत्तभयंति, आदिग्गहणा | उवविट्ठस्सवि, भावोवहाणं चरित्तस्स सेजाए, चाहिन्भतरो तवो, पंचमहत्वयसिजाए पा, जतो य एवं नाणदसणचरित अभिग| मणं-अभिगच्छणं, जं भणितं-करणं, तवसा को गुणो?, भण्णति-जह खलु महलं वत्थं० गाहा ।।२८२।। कंठधं, तस्स पुण|| " भावोवहाणस्स इमे एगट्ठा नामधेचा भवंति, जं वा तेणं भायोवहाणेण वुचंति एगद्वियाणि, तंजहा -'उवहणण'गाहा ।।२८३॥ दीप अनुक्रम [२६५२८७] २९७॥ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: नवम-अध्ययनं 'उपधानश्रुत' आरब्ध:, [301]

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