Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [८], उद्देशक [७], नियुक्ति: [२७५...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२३-२२६]
RIMAR
प्रत वृत्यक [२२३२२६]
यावृश्यश्रीआचा- भवति ततो ने उ दंसममगा, इतरे अण्णतरे, एवमेतं एग कडिपंधणं मुइना से एगल्लविहारकप्पं अणुपालेति लापवितं आगमे-10 रांग सूत्र
कल्पः | माणे, अचेलगत्तं लापवितं जाव संमत्तमेव सममिजाणिता, अभिग्गहअहिग रो वति, तंजहा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भ. चूर्णिः
वति जस्स जतो जेमि वा, पटिवण्णगस्म कप्पो दसासु भणिजिहि ति, तंजहा-परिजितकालामंतणं, अहवा तत्थ पर-IN ॥२८५॥
कमति अह इति अर्णतरे, नत्थेति तर्हि काले, एगल्लविहारे एगकडिबंधणधारि अचेलतेण परिकमंत, भुञ्जो विसेसेणं अचेलं अपा-2 | उरणं हेमंतसातफामा फुसंति एवं भवति-अहं च खलु अप.सिं भिक्खूणं अहमिति अत्तणिदेसे, च पूरणे, खलु त्रिसेमणे, किं । HAIविसे सेति ? पडिमापटियमओ चेव सो, अनि आयवतिरिलार्ण सरिकप्पियाणं घेव पडिमापटियाग चेव असणं पा ४, विभासाए। Mवत्यमादि कटिबंधणं तणं वा आहह (टु)परिणं आहष्ह(टु निक्सिविस्सामि पाहण्ड(दृटुपदण्ण-अणिम्गहं गहिना दाहामि |
तेहि य आहेडं माइजिस्सामि पढमो, अण्णस्म पूण अभिग्गही-आटु परिणं दाहामि पूण गिलायमाणो विसरिकप्पियस्मवि गिहिस्सामो असणादि पितियो, तइयम्स कम्मद करेमि जइवि से लद्दी पत्थि अण्णं वा किंचि कारणं, आहट पुण सालिजिस्सामि,100 | चउत्थे उभयपडिसेहो, लाघवितं आगमेमाणे आहारउक्गरणलाघवितं, चत्तारि पडिमा अभिग्गहक्सेिसा बुत्ता । इदाणि पंचमोसो पूण तेसि चेव अतिण्डं आदिल्लाणं पहिमाविसेसाणं अभिग्गहं दरिसेति जस्म णं भिक्खुस्स० अहं च खलु, अहमिति आतणिद्देसे, चः ममुचये, खलु पूरणे, अमिति अप्पाणं वञ्जिचा, समाणा सरिमा बाधम्मिया साहम्मिया, जति ते एगदान भंजंति 10 तिहावि ते अभिम्गहसाहम्मिया एगल्लविहारसाहम्मिया य संभोइया गणिअंति, तेण समणुण्यस्म, यदुक्तं भवति-मरिसामिग्गहस्स, परिहारकवन् पडिवण्णाणं, एतं व तेसि परिहास्तव जस्म कस्स देति, ण पडिम्महेंति, अहेसणिा , जहा तम्म एमणा बुना,
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दीप अनुक्रम [२३६२३९]
HAMARA
२८५।।
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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