Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [८], उद्देशक [६], नियुक्ति: [२७५...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २१८-२२२]
श्रीआचा. गंग सूत्र
चूर्णिः ॥२८॥
प्रत वृत्यक [२१८२२२१
एचिरकालं आउयं पहुप्पिहिति, इमो पृण गिलाणो अणुपुष्वीए छद्रुट्ठमदममदुवालसहि आयंबिलपरिग्गई दब्बसलेहणाए आहारं 0 संलेखनादि
सम संवट्टेति, यदुक्तं भवति-संखिबति, अणुपुयीने वट्टित्ता भावसंलहणाए कमाए य पयणुए किचा, अन्नोवि ततो साहू कसाए । पपयणुए करेति, संलेहणाकाले विसेसेणं, कोइ सब्वे कमाए खवेति, अप्पाहारो वा अहाहारो वा अणाहारो वा गाहियन्यो, अञ्चा णाम | सरीरं, सा अच्चा जस्स सम्मं आहिना स भवति समाहियचो, यदुक्तं भवति-कायगुत्तो, अहवा अच्चा लेसा, यदुक्तं भवति-भावो, | सो जस्स भावो समाहितो स भवति समाहियचो, यदुक्तं भवति-विसुद्धलेसो, अहबा अचा जाला, ता जेण रागदोसजालारहितो | स भवति समाहियचो, फलगावयही फलगमिव वासीमातीहिं उभयतो अवगरिसियं बाहिरतो अम्भितरओ य स भवति फल| गावपट्टो, बाहिरतो वहेणं सरीरं अवकरिसितं अंतो कसायकम्मं वा, जहा फलगतं छिअंत ण रुस्सति, चंदणेण वा लिप्पंतं ण | तुस्सति, रुक्खो वा, एवं सोवि वासीचंदणकप्पो, सो एवं रोगाभिभूतो दिणे दिणे सागारं मतं पथक्वायमाणो सब महारोगे आयके चा अट्ठार्यते उहाय मिक्ख उवट्ठाण ताव पूवं ताव संजमउट्ठाणं पच्छा अन्भुञ्जयविहारं उड्डाणं ततो य अन्भु-10 जयमरणउट्ठाणं मिक्खू पुखमणितो द्रव्याचिवलनशिखावपुश्च भावे तु भावाचि लेश्या अन्योऽप्यचिः प्रोक्तो रागद्वेपानलज्जाला, अभिमता निव्वुता अर्था जस्म भवति अभिणिन्वुडच्चो अमिणिबुडप्पा चा, सो संलिहप्पा सप्पति सामत्थे अणुपविसित्ता गामं वा नगरं वा खेडं वा कम्बई वा जाव रायहाणि वा अट्ठारसहं करभराण गंमो गमणिो वा गामी, गमति बुद्धिमा | दिगुणे वा गामो, ण एत्थ करो विजतीति नगरं, खेडं पंसुपागारवेढें, कब्बडं पाम धुल्लो जस पागारो, मडवं जस्स अट्टाइजेहिं गाउएहिं णस्थि गामो, पट्टणं जलपट्टणं थलपट्टणं च, जलपट्टणं जहा काल गदीबो, थलपट्टणं जहा महुरा, आगरो हिर- २८१॥.
दीप अनुक्रम [२३१२३५]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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