Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan Author(s): Publisher: ZZZ UnknownPage 16
________________ MAKAKAKLAMLAJMLAJMLAJMLAJMAKAMLAKATHAIKALAMARANG शरीर के जिन अंगो को पूजन विधि के अंतर्गत मुख्य रूप से उपयोग में लेना है उन्हें मंत्र स्थापना द्वारा चैतन्य जागृत करने हेतु अंग न्यास क्रिया की जाती है। मंत्र - "हाँ ह्रीं हूँ हौं हः" हाँ - हृदय पर तत्व मुद्रा द्वारा हीँ - कंठ पर तत्व मुद्रा द्वारा हूँ - तालू (मुख के अन्दर उपर का भाग) पर तत्व मुद्रा द्वारा हों - भूमध्य (दोनो भौंवों के बीच नासिकाग्र भाग) पर तत्व मुद्रा द्वारा हः - ब्रह्मम रंध्र (सिर की चोटी के भाग) पर तत्व मुद्रा द्वारा (अंगूठे के अगले भाग पर अनामिका रखने से तत्वमुद्रा बनती है) JWWAAAAAAAAAAWAWNWAAWAAL (ड) कर-न्यास: (पूजा अन्तर्गत दोनों हाथों का उपयोग होता है अतः दोनों हाथों की अंगुलिओं एवं हथेलियों को शुद्ध पवित्र एवं चैतन्य बनाने हेतु की जाने वाली क्रिया) १ ॐ हाँ णमो अरिहंताणं - अंगुष्ठाभ्यां नमः - हाथ की प्रथम अंगुली से अंगूठे के मूल से उपर तक स्पर्श करते हुए श्वेत वर्णीय अरिहंत भगवंत की स्थापना करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90