Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 41
________________ SAXLALALALALALALALALALALALALALALALAK त्रिदशयुवतिभिः प्रत्यहं पूज्यपादे। चंचश्वंद्राकराले। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।। ॐ ह्रीँ कापालिन्यै, कौल्य, विज्ञायै, रात्र्यै, त्रिलोचनायै, पुस्तक व्यग्रहस्तायै, योगिन्यै, अमित-विक्रमायै, सर्वसिद्धिकयै, संध्यायै, खंगिन्यै, कामरूपिण्यै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा। (७) नम्रीभूत क्षितीश प्रवरमणि मुकुटोघृष्ट पादारविन्दे। पद्मास्थे। पद्मनेत्रे। गजपति गमने। हंसयाने। प्रमाणे। कीर्ति श्री वृद्धिचक्र। जय विजयजये। गौरिगांधारियुक्ते। ध्येयाध्येय स्वरूपे।मम मनसि सदा शारदे। देवि। तुष्ठ।। KEYEAREAKEAKEAKIAAKAAAAKEATKEAKEATMLAILAIKLAIKEAIKLAIKLAIKAHAKAALAIMEAKEAK ॐ ह्रीँ सर्वसत्वहितायै, प्रज्ञायै, शिवायै, शुक्लायै, मनोरमायै, मांगल्यरूचिकारायै, धन्याय, काननवासिन्यै, अज्ञाननाशिन्यै, जैन्यै अज्ञाननिशिभास्कर्यै, अज्ञान जनमात्रै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा। विद्युज्जवाला शुशुभ्रां प्रवरमणिमयी मक्षमालां संरूपां हस्ताब्जे धारयति दिनमनु पठतामष्टकं Do HArthana Restions ProANARASTRARMA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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