Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 47
________________ HEALTAKAMAYAKAIRATHAMALAILAILAIKAHALATKAYAKA श्वेत पद्मासना या वीणा वरदण्ड मंडित करा या शुभ्रवस्त्रावृता। या बह्माच्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवै, सदा वंदिता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाइयापहा॥ कुंदिदु-गाक्खीर-तुसार-वना। सरोज-हत्था कमल निसन्ना। वाईसरी पुत्थय वग्ग हत्था, सुहाय-सा अम्ह सया पसत्था॥ आमूलालोल-धूली-बहुल परिमलाऽलीढ-लोलालिमाला। झंकाराराव-सारामल दल कमलागार-भूमि निवास॥ छाया-संभार-सारे। वरकमल करे। तारहाराभिरामे। वाणी-संदेह देवे। भव-विरह-वरं देहि में देवि। सारं॥ श्री श्रुत देवि। सरस्वति। भगवती। हमको वर देना। जीवन की बाँसुरी में देवि, श्रद्धा के स्वर भर देना। सम्यक् ज्ञान का दीप जलाकर, मन का तिमिर हटाना। ना भूले ना भटकें माता ऐसी राह बता देना। AWALA LAKAKA AKA AKAWAAMAHALAAMLAKAKAAL Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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