Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan Author(s): Publisher: ZZZ UnknownPage 45
________________ HAHAHAHAHA HAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAL, तव गुणावलि गान तरंगिणां न भविनां भवति श्रुत देवता ॥ ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लीँ ततः श्रीं तदनुहस्कूल ह्रीँ अथो एँ नमोऽन्ते । लक्षं साक्षाज्जपेद्यः करसम विधिना, सत्तपा, ब्रह्मचारी ॥ निर्याती चंद्रबिम्बा - त्कलयंति मनसा त्वां जगच्चन्द्रिकामाः । सोऽत्यर्थ वहिनकुण्डे विहितघृत हुतिः स्याद् दशाशेन विद्वान ॥ रे।रे। लक्षण-काव्यनाटककथा-चम्पूसमालोकने, क्कायांस चित्तनोषि बालिश । मुथा । किं नम्रवक्त्राम्बुजः । भक्त्याराधय मंत्रराज महसाऽनेनानिशं भारती, येन त्वं कवितावितान सविता -ऽद्वैत प्रबुधायसे ॥ चञ्चचंद्रमुखीं प्रसिद्ध महिमा, स्वाच्छन्द्यराज्य प्रदाः नायासैन सुरासुरेश्वरगणै रम्यर्चिता भक्तितः । देवी संस्तुत वैभवामलयजा, लेपागरंगद्युतिः सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रेलोक्य संजीवनी । स्तवनमेतदनेक गुणान्वितं पठति यो भविकः प्रमना प्रगे । स सहसा मधुरै वचनामृतैर्नृपगणा, नपीरंजयति स्फुटम् ॥ ॥ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लीं श्रीं ह्स्कूल ह्रीँ एँ नमः । Jain Education International MMMMMMM For Private & Personal Use Only HAHAHE www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90