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ॐ
事
श्री 24 तीर्थकर महादेवी सरस्वती
प्रमुख तीर्थ देव-देवी महापूजन
सौजन्यः राजश्री-नवीन शाह
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LAHAIL
HAHAH
HAHAHAHAH
HAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAH
श्री नमस्कार महामंत्र
भगवान श्री राम स्तुति भगवान श्री कृष्ण स्तुति भगवान श्री शिव स्तुति पूजन पूर्व भूमि शुद्धि - देह शुद्धि
रक्षाकरण क्रिया
TABLE OF CONTENTS
२४ तीर्थंकर
श्री सरस्वती देवी महापूजन विधि
श्री सरस्वती स्तत
पूजनः नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः
श्री शारदा स्तोत्र
श्री बप्पभट्टि सूरिश्वर विरचित श्री सरस्वती कल्प के महाप्रभावशाली मंत्र
SHREE SARASWATI DEVI
MAHAPOOJAN VIDHI
SHREE SARASWATI STAVA SHREE SHARDA STOTRA NAMASKAR MAHAMANTRA UVASAGGHARAM STOTRA BRUHATCHHANTI STOTRA
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8
8
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" श्री मंगलाचरण"
श्री नमस्कार महामंत्र
णमो अरिहंताण
णमो सिद्धाणं णमो आयरियाण णमो उवश्झायाणं णमो लोए सब्बसाहूणं
ऐसो पंचणमुक्कारो सब्वपावप्पणासणो मंगलाण च सव्वेसिं पढम हवइ मंगल ।।
JAAAAAAAAAAAAAAAAL
ॐ णमो अरिहंताणं ॐ णमो सिद्धाणं ॐ णमो आयरियाणं ॐ णमो उवज्झायाणं ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं
ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं
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NAKAKAKAKILALKAAKAKAKLAMAKAKAKAKAKAKAKO
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ॐ हीं णमो उवज्झायाणं ॐ हीं णमो लोए सव्वसाहूणं ||अर्हतो भगवंत इंद्र महिता, सिद्धाश्च सिद्धि स्थिताः आचार्यो जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायकाः श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवराः, रत्नत्रयाराधिक: पञ्चैः ते परमेष्ठिनः प्रति दिनं कुर्वतो वो मंगलम्॥ ॥ॐकार बिदुं संयुतं नित्यं ध्यायति योगिनः कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः॥
|मंगलं भगवान वीरोः मंगलं गौतम प्रभुः मंगलं स्थूलिभद्राद्याः, जैन धर्मोस्तु मंगलम्॥
॥सर्वारिष्ट प्रणाशिनैः सर्वभिष्टार्थ दायिनेः सर्वलब्धि निधानाय गौतम स्वामिने नमः॥
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ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात॥
|| वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा॥ एकदन्तं शूर्पकर्णं गजवक्र चतुर्भुजम्। पाशमं कुशधरं देवं ध्यायेत् सिद्धि विनायकम्॥
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कर्पूरगौरं करूणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम। सदावसंतं हृदयार्विन्दे भवं भवानी सहितं नमामि॥ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफुल चारू भक्षणम्। उमासुतं शोकविनाश कारकं, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
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A MALALAMLAKATLAMAKAILANMAMLAMAMLAKAMLAJLAKANG
भगवान श्री राम स्तुतिः
लोकाभिरामं रणरंगधीरं, राजीव नेत्रं रघुवंशनाथम्। कारूण्यरूपं करूणाकरं तं, श्री रामचन्द्र शरणं प्रपद्ये॥ मनोजयं मरूततुल्य वैगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं, श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये॥ राजीव नैन धरे धनु सायक, भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक। मंगलभवन अमंगलहारी, द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी॥
भगवान श्री कृष्ण स्तुतिः
Hall TAITANYLAIMEAKIATREATMAKEAKLAIKAKAILATKANHAIKLATKAKANKEATHEATREATMAKAILANMAAYEE
अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ वचनं मधुरं, चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरम्। चलितं मधुरं, भ्रमितं मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः, पाणिमधुरः पादौ मधुरौ। नृत्य मधुरं सख्यं मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।। गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्। रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ करणं मधुरं, तरणं मधुरं, हरणं मधुरं स्मरणं मधुरम्।
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SALALALALALALALALALALA
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मथुराधिपतेर खिलं मधुरम्॥ गुंजामधुरा, माला मधुरा यमुना मधुरा बीची मधुरा। सलिलं मधुरं कमल मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्। दुष्टं मधुरं शिष्ट मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्।। गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा। दलित मधुरं फलित मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
||कृष्णं वंदे जगद्गुरुम।।
भगवान शिव की स्तुतिः
HARAAAAAAAAAAAAAAAAAAAADWAL
ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरं वन्दे जगत कारणम्। वन्दे पन्नगभूषणं मृगधर वंदे पशुनापति॥ वन्दे सूर्य शंशांक वर्हिननयनं, वन्दे मुकुन्द प्रियम्। वन्दे भक्त जनाश्रय च वरदं, वन्दे शिवं शंकरम्॥
ॐनमो नारायणाय श्रीमन्नारायण चरणौशरणं प्रपद्ये। श्रीमते नारायण नमः॥
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुखः भाग भवेत्॥
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MAKAKAKILALAIKAMWAMLAKATLAKALAINAKAKAKAKARA
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात्परब्रह्म तस्मैः श्री गुरवे नमः॥ अज्ञान तिमिरान्धस्य, ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
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॥ ॐ हीं श्रीं क्लीं ऐं नमः ।।
पूजन पूर्व भूमि-शुद्धि-देह-शुद्धि-रक्षाकरण क्रिया
(अ) भूमि शुद्धिकरण: सभी को आश्रय प्रदान करने वाली धरती माता के समान है। पंचतत्वों में पृथ्वीतत्व देव-तुल्य है। ऐसी भूमि पर बैठकर शांति-समृद्धि-ऋद्धि-वृद्धि हेतु मंगल क्रियाओं करनी है। इस भूमि में से कोई उपद्रव न हो इसके लिये भूमि की बहुमान पूर्वक शुद्धीकरण करने की क्रिया निम्न मंत्र से की जाती है :
॥ॐ भूरसि भूतधात्रि! सर्व भूतहिते! भूमि शुद्धिं कुरू-कुरू स्वाहा। यावदहं पूजां करिष्ये तावत् सर्व जनानां विध्नान् विनाशय स्थिरी भव स्वाहा॥
JALA LA LA LALAWA LAMAXAMA LAWAMAKAAWAHAKAAWAL
(स्वर्ण-जल, सुगंधि-जल वासक्षेप युक्त, का पूजन भूमि पर छंटकाव करना)
(आ) सकलीकरण: (शरीर के मुख्य अंगों को जागृत करने की क्रिया) मानव देह पंच तत्व का बना हुआ है- पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु
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एवं आकाश- ये तत्व विषम न बन जाये तथा देह में संतुलन बना रहे - इसके लिये पूर्वाचार्यों-ऋषि-मुनियों ने पाँच तत्वों के पाँच मंत्रबीज निर्धारित किये है। प्रत्येक मंत्रबीज संलग्न तत्व से संबंधित होने से उन पर नियंत्रण स्थापित करता है। मंत्र :
"क्षि पॐ स्वाहा"
प -
क्षि - दोनों जानु (घुटनों) पर - पीले वर्ण की कल्पना सहित
स्थापित करना। नाभि पर - श्वेत वर्ण की कल्पना सहित स्थापित करना। हृदय पर - लाल रंग की कल्पना सहित स्थापित
करना। स्वा - मुँह पर - आसमानी रंग की कल्पना सहित स्थापित
करना। हा - मस्तष्क पर - श्याम वर्ण की कल्पना सहित स्थापित
करना। (दोनो हाथों के पंजों से आरोह-अवरोह क्रम से संबंधितबीजाक्षरों को संबंधित अंग पर स्थापित करना३ बार)
ANIANEAKEATHEATREATMEATHEATKEAKEATREATREALHEATHEATREATHEATHEATREATHEATREATKEATHEATREATKLAIMER
(ड) अंग न्यास : (देह तंत्र को चैतन्य एवं पवित्र बनाने की क्रिया)
भान्सास ािााापार
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MAKAKAKLAMLAJMLAJMLAJMLAJMAKAMLAKATHAIKALAMARANG
शरीर के जिन अंगो को पूजन विधि के अंतर्गत मुख्य रूप से उपयोग में लेना है उन्हें मंत्र स्थापना द्वारा चैतन्य जागृत करने हेतु अंग न्यास क्रिया की जाती है। मंत्र -
"हाँ ह्रीं हूँ हौं हः"
हाँ - हृदय पर तत्व मुद्रा द्वारा हीँ - कंठ पर तत्व मुद्रा द्वारा हूँ - तालू (मुख के अन्दर उपर का भाग) पर तत्व मुद्रा द्वारा हों - भूमध्य (दोनो भौंवों के बीच नासिकाग्र भाग) पर तत्व मुद्रा द्वारा हः - ब्रह्मम रंध्र (सिर की चोटी के भाग) पर तत्व मुद्रा द्वारा
(अंगूठे के अगले भाग पर अनामिका रखने से तत्वमुद्रा बनती है)
JWWAAAAAAAAAAWAWNWAAWAAL
(ड) कर-न्यास: (पूजा अन्तर्गत दोनों हाथों का उपयोग होता है अतः दोनों हाथों की अंगुलिओं एवं हथेलियों को शुद्ध पवित्र एवं चैतन्य बनाने हेतु की जाने वाली क्रिया)
१ ॐ हाँ णमो अरिहंताणं - अंगुष्ठाभ्यां नमः - हाथ की प्रथम अंगुली से अंगूठे के मूल से उपर तक स्पर्श करते हुए श्वेत वर्णीय अरिहंत भगवंत की स्थापना करना।
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SAAWAWALA WALA
२ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं - तर्जनीभ्यां नमः - हाथ के अंगूठे से प्रथम अंगुली के मूल से उपर तक स्पर्श करते हुए रक्तवर्णिय सिद्ध भगवंतो की स्थापना करना।
३ ॐ हूँ णमो आयरियाणं - मध्यमाभ्यां नमः - हाथ के अंगूठे से मध्यमा अंगुली के मूल से उपर तक स्पर्श करते हुए पीतवर्णीय आचार्य भगवंतो की स्थापना।
४ ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं - अनामिकाभ्यां नमः - हाथ के अंगूठे से अनामिका अंगुली के मूल से उपर तक स्पर्श करते हुए नीलवर्णीय उपाध्याय भगवंत की स्थापना।
५ ॐ हूँ: णमो लाए सव्वसाहणं - कनिष्ठिकाभ्यं नमः - हाथ के अंगूठे से कनिष्ठा अंगूली के मूल से उपर तक स्पर्श करते हुए श्यामवर्णीय साधु भगवतो की स्थापना।
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६ ॐ हाँ हाँ हूँ ह्रौं हः सम्यग्ज्ञान - दर्शन-चारित्र तपोभ्यः करतल- करपृष्ठाभ्यां नमः दोनो हाथों के तलियों का एक दूसरे से स्पर्श
(3) हदय शुद्धिः
ॐ विमलाय विमलचित्ताय ज्वी क्ष्वी स्वाहा बायाँ हाथ हृदय पर रखकर पापविचारों को दूर करके हृदय
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KAMALLAKLAKALLAJAK LAMA LAKUAIKALLAKASKLARARAKA
शुद्धि की क्रिया करना-इससे अशुभ विचारों का शमन होकर चित्त की एकाग्रता बढ़ती है।
(ऊ) मंत्र स्नानॐ अमले विमले सर्वतीर्थजले पः प: पां पां वा वां अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा।
दोनों हाथों से मंत्र स्नान की चेष्टा करना।
सु
(ए) कल्मष दहन -
ॐ विद्युत स्फुलिंगे महाविद्ये सर्वकल्मषं दह दह स्वाहा। दोनों हाथों से भुजाओं को स्पर्श करते हुए स्वस्तिक मुद्रा करना। मन में ऐसा चिंतवन करना कि कलुषित विचारों का शमन हो रहा है।
WAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA!
(ऐ) बज्रपंजर-आत्मरक्षा स्तोत्र :
ॐ परमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकम्
आत्मरक्षाकरं वज-पंजराय स्मराम्यहम् ॐ णमो अरिहंताणं, शिरस्क शिरसि स्थितम् (मस्तक पर मजबूत टोपू पहना हुआ है
ऐसी कल्पना हाथों से करना)
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ॐ णमो सव्वसिद्धाणं, मुख मुख पटाबरम् (कल्पना करना कि मुख को मजबूत वस्त्र से
आच्छादित कर रखा है)
JALANA
ॐ णमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी (वक्ष पर बख्तर-कवच धारण करने की कल्पना करना)
ॐ णमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तायोर्हढ (हाथ में शस्त्र लेकर दुष्ट शक्तियों को
भगाने की कल्पना करना)
ॐ णमो लाए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे (पैरो में मजबूत कवच धारण करने की कल्पना करना)
ऐसो पंच णमोकारो, शिलावजमयी तले (वज्र की मजबूत शिला पर बैठने की कल्पना
दोनों हाथ फैला कर करना)
AAAAAAAAAAAAA
सव्वपावपणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः (हाथ के पंजो से वज्रमय मजबूत किले की कल्पना करना)
मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगार-खातिका (तर्जनी अंगुली को गोलाकार घुमाकर किले के चारों ओर
माRANIKAL VSYON
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सिलान्यास XVIXVIIIMa
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KALAKALAKALALALALALALALALALLAKLAKAKLAR G
अग्नि भरी खाई की कल्पना करना)
स्वाहान्तं च पद ज्ञेयं, पढम हवइ मंगलं, वप्रोपरि वज्रमयं, पिधान देह-रक्षणे।
महा प्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव नाशिनी, परमेष्ठि पदोदभूता, कथिता पूर्वसूरिभिः॥
यश्चैनं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि पदैः सदा, तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥
विघ्ननाशनार्थे छोटिकान्यासः
(पूजन विधि के दौरान विभिन्न दिशाओं में आकाश में गुजरती हुई शक्तियों तथा वातावरण में किसी प्रकार का विध्न उपस्थित न हो-इसके लिये छोटिका क्रिया)
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१
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- पूर्व दिशा में
____ or
२ ३
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ई - दक्षिण दिशा में ऊ - पश्चिम दिशा में ऐ - उत्तर दिशा में औ - उर्ध्व दिशा में
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६
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अः
- अधो दिशा में
दाहिने अंगूठे तथ तर्जनी अंगुली के अग्र भाग के बीच में केसर-कुंकुमयुक्त गुलाब के पुष्प को पकड़ कर मत्रोच्चारण के साथ संबंधित दिशा में उछालना।
क्षेत्रपाल पूजनः " ॐ क्षाँ क्षौँ क्षौँ क्षः अत्रस्थक्षेत्रपालाय स्वाहा"
रक्षा पोटली अभिमंत्रित करने का मंत्र
"ॐ हूँ यूँ फुट किरिटि किरिटि घातय घातय, परकृतविध्नान् स्फेटय स्फेटय, सहस्त्रखण्डान कुरू-करू, परमुद्रा छिन्द छिन्द, परमंत्रान् भिन्द भिन्द हु क्षः फट् स्वाहा॥
AWALAEALAAAAALALALALALA
रक्षापोटली बांधने का मंत्र - ॐ नमोऽर्हते रक्ष हु, फुट स्वाहा॥
पीठस्थापन- ॐ अहँ ऐं ह्रीं श्री चतुःविशंति तीर्थंकरा अत्र सहस्त्रपत्र कनक कमल पीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा। (वासक्षेप पूजन)
बिम्ब स्थापन - यंत्रस्थापन
ॐ अहँ ऐं ही चतुःवीशंति तीर्थंकरेभ्यो नमः स्वाहा। (वासक्षेप
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KAKAKAKAKAKILALAKALLAKLAKLAKAJLAJKLALAMANLARLA
पूजन)
वायुकुमार आव्हान- ॐ ही वातकुमाराय विघ्नविनाशनाय महीं पूतां कुरु कुरु स्वाहाः।
मेघकुमार आव्हान- ॐ हीं मेघकुमाराय धरां प्रक्षालय प्रक्षालय हफुट् स्वाहा।
गुरू-स्मरण- गुरूपादुका पूजन
येन ज्ञानप्रदीपेन, निरस्याभ्यंतरं तमः, ममात्मा निर्मली चक्रे, तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ ॐ एँ क्लौँ ह्रीँ श्री हूँ: स्फे सहस्त्रकमल वरयूँ हसौँ रहौं गुरु पादुकाभ्यो नमः। गुरुपादुकां पूजयामि नमः॥
मुद्रापंचक द्वारा आव्हान: आव्हान मुद्रा : ॐ आँ क्रौँ ही चतुःवीशंति तीर्थंकरा:अत्र आगच्छ आगच्छ स्वाहा संवोषट्।
स्थापन मुद्रा : ॐ आँ क्रौँ ही श्री चतु:वीशंति तीर्थंकरा:अत्र तिष्ठः तिष्ठ ठः ठः संन्निधान मुद्रा : ॐ आँ क्रौँ ही श्री चतुःवीशंति तीर्थंकराः मम संन्निहिता भव भव वषट्।
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WAWAWALAWWAWAWA!
संन्निरोध मुद्राः ॐ आँ क्रौँ ही श्री चतु:वीशंति तीर्थंकराः पूजांतं यावत् अत्रैव स्थातव्यम्
अवगुंठन मुद्राः ॐ आँ क्रौँ ही श्री चतुःवीशंति तीर्थंकराः परेषामदृश्यो भव भव स्वाहा॥
अमृतीकरणः ॐ आँ क्रौँ ही श्री चतु:वीशंति तीर्थंकराः साक्षात् संजीविता अमृतीभूता भवंतु स्वाहा। (सुरभि मुद्रा)
संकल्प विधिः ॐ अस्मिन जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते मध्य खण्डे अमेरिका देशे न्यूयोर्क नगरे संवत २०६४ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ल ११ तिथौ रवि वासरे मम शरीरे रोगादि निवारणार्थ, मनः कामना सिद्धयर्थ बोधिबीज प्राप्तयर्थं, लाभार्थ, क्षेमार्थ जयार्थ, विजयार्थ श्री चतुः विशंति तीर्थंकराः जाप, पूजा, आराधना करिष्ये स च अधिष्ठायक देव प्रसन्नार्थ सफली भवतु।
JAWAWALAWWAAAAAAA
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LANAKLADIKLAMLAJLAJMLAJLAJKLAMLAKLAK LAMA LAIKAMAKARGO
૧. શ્રી ઋષભદેવ તીર્થકર
आदिमं पृथिवी नाथ, मादिमं निष्परिग्रहं । आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुम : । આદિમં પૃથિવી નાથ, માદિમ નિષ્પરિગ્રહ | આદિમં તીર્થનાથં ચ, ત્રઋષભસ્વામિને સુમઃ |
ॐ णमो जिणाणं च, णमो ओहि जिणाणं च, णमो परमोहि जिणाणं णमो सव्वेहि जिणाणं! ॐ णमो अणतोहि जिणाणं। ॐ वृषभस्स भगवदो, वृषभ स्वामी धत्त वियराणी अरिहंताणं विज्झाणं महाविज्ज्ञाणं अणमिप्पदेयिक्कम्मियाणि जम्भिर्कशविस के अनाहत
विद्यायै स्वाहा।
JAWAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
૨. શ્રી અજિતનાથ તીર્થકર अर्हन्तमजितं विश्व, कमलाकर भास्करम् । अम्लान - कैवलादर्श, संक्रान्तं जगतं स्तुवे ।।
અહંન્તમજિત વિશ્વ, કમલાકર ભાસ્કરન્ ! અપ્લાન કેવલાદર્શ, સંક્રાન્ત જગત જુવે
ॐ णमो भगवदो अजितस्स सिज्झ धम्मे भगवदो विज्झाणां। ॐ णमो परमोहि जिणाणं, ॐ णमो
सव्वोहि जिणाणं भगवदो अरहंतो अजितस्स सिज्झधम्मे भगवदो विज्झर अजित अपराजिते पाणिपादे महाबले अनाहत विद्यायै स्वाहा ॥
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MAMLAKALIKLAMALLAKLAMLAJMLAJKLAMLARLAKLAMLAKAKAALA
૩. શ્રી સંભવનાથ તીર્થકર विश्वभव्यजनाराम - कुल्यातुल्या जयन्ति ताः ।
देशनासमये वाचः श्री सम्भवजगत्पतेः ।। વિશ્વભવ્યજનારામ - કુલ્યાતુલ્યા જયન્તિ તાઃ | शिनासमय वायः, श्री समभवत्पतेः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहदो शंभवस्स
अनाहत विज्जंई सिज्झि धम्मे भगवदो महाविज्झा शंभवे शंभ वाणं
स्वाहा॥
૪. શ્રી અભિનંદન સ્વામી તીર્થકર
अनेकांतमतांभोधि समुल्लासनचन्द्रमाः । दद्यादमन्दमानन्दं, भगवानभिनंदनः ।। અનેકાંતમતાંબોધિ, સમુલ્લાસનચન્દ્રમાઃ | ६धाभन्मानन्द, मवानभिनंहनः ।।
LAILAALAKEATREATMLAIMEAKEAKIATYEARHEATREATEAMLAILAHAKAMANHAIYEATENTIANE
ॐ णमो भगवदो अरहदो अभिणंदणस्स सिज्झ भगवदो विज्झर महाविज्झर अभिणन्दणे वाहा॥
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MAKLAMLAJALAJLAMLAMALJILJALILAJUMALAJLAJAR
૫. શ્રી સુમતિનાથ તીર્થકર वसत्किरीटशाणाग्रो, त्तेजिताघ्रिनखावलिः | भगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्वभिमतानि वः ।। ઘુસકિરીટશાણાગ્રો, તેજિતાંછિનખાવલિઃ | भगवान सुभतिस्वाभी, तनोत्वमिमतानि यः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहंतो सुमतिस्स सिज्झि-धम्मे भगवदो विज्झर सुमति
सामिणंवानेंगे स्वाहा ॥
૬. શ્રી પડાપ્રભસ્વામી તીર્થકર पद्मप्रभप्रभोदेह, भासः पुष्णन्तु वः श्रियम् । अन्तरग़ारिमथने, कोपाटोपादिवारुणा: ।। પદ્મપ્રભમભોÈહ, ભાસઃ પુણાનુ વઃ શ્રિયમ્ अन्तरास्मिथने, पाठोपाहिवा३॥ः ।।
WwAWAWAAWWWWWWWWWWWAAAL
ॐ णमो भगवदो अरहदो पोमे अरहतस्स सिज्झ भगवदो विज्झर महाविज्झर पोमे
महापोमे महापोमेश्वरी स्वाहा॥
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KAKALIKAIKALLAKLAKAHLAKLAKAMLAMAJKLAMLAMAKLAKLAK
૭. શ્રી સુપાર્શ્વનાથ તીર્થકર श्री सुपार्श्वजिनेन्द्राय, महेन्द्रमहिताधये । नमश्चतुर्वर्णसङघ, गगनाभोगभास्वते ।। શ્રી સુપાર્વજિનેન્દ્રાય, મહેન્દ્રમહિતાવ્રયે ! નમચતુર્વર્ણસડઘ, ગગનાભોગભાસ્વતે ||
ॐ णमो भगवदो अरहदो सुपारिसस्स सिज्म - धम्मे भगवदो विज्झर हंसे सुपासि
सुमतिपासे स्वाहा॥
૮. શ્રી ચન્દ્રપ્રભસ્વામી તીર્થકર
चन्द्रप्रभप्रभोश्चन्द्र, मरीचिनिचयोज्जवला । मूर्तिर्मूर्तसितध्यान, निर्मितेव श्रियेस्तु वः ।। ચન્દ્રપ્રભપ્રમોશ્ચદ્ર, મરીચિનિચયોજ્જવલા ! भूतिभूतसितध्यान, निर्मितेव. श्रियेऽस्तु वः ।।
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ॐ णमो भगवदो अरहदो चन्द्रप्पहस्स सिज्झ - ६ म्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर चंदे चंदप्पहस्सपूर्व
स्वाहा॥
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૯. શ્રી સુવિધિનાથ તીર્થકર
करामलक्वद्विश्वं, कलयन केवलश्रिया । अचिन्त्यमाहात्म्यनिधिः, सुविधिर्योधयेस्तु वः ।।
કરામલકવઢિ, કલયન કેવલશ્રિયા અચિજ્યમાહાસ્યનિધિઃ સુવિધિર્બોધયેસ્તુ વઃ ||
ॐ णमो भगवदो अरहदो पुष्पदंतसस्स सिज्झ - धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर पुप्फे पुप्फेसरि
सुरि स्वाहा॥
૧૦. શ્રી શીતલનાથ તીર્થકર
सत्वानां परमानन्द, कन्दोद्भवनवाम्बुदः । स्याद्वादामृतनिस्यन्दी, शीतलः पातु वो जिनः ।।
સત્તાનાં પરમાનન્દ, કન્દો ભેદનવાબુદઃ स्याहानिस्यन्दी, शीतल पातु वो हिनः ।।
EXEATIALATKEATREATMATLATKEAWEATHEATREATMEAKTATKEATREATKEATHEATREATMLATKEATIATIATIAEXEATHES
ॐ णमो भगवदो अरहदो शीतलस्स अनाहत विज्झाा विज्झारइ सिज्झ-धम्मे भगवदो महाविज्झर महाविज्झ शीयलस्स सिवो सस्सि अणुमहि अमुमाणमो भगवदो नमो नम स्वाहा ॥
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૧૧. શ્રી શ્રેયાંસનાથ તીર્થકર ____ भवरोगार्तजंतूना मगदंकारदर्शनः ।। निःश्रेयसश्रीरमणः श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः ।।
भशेततूना, भग २६र्शनः । नि:श्रेयसश्रीरमः श्रेयांस: श्रेयसेऽस्तु यः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहदो अरहदो श्रेयांश सिज्झिधम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर श्रेयांस करै भयंकरै
स्वाहा॥
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૧૨. શ્રી વાસુપૂજ્ય સ્વામી તીર્થકર
विश्वोपकारकीभूत, तीर्थकुत्कर्मनिर्मितिः । सुरासुरनरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः ।। વિશ્વોપકારકીભૂત, તીર્થકુત્કર્મનિર્મિતિઃ | सुरासुरनरैः पूथ्यो, वासुपूश्यः पुनातु वः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहदो वासुपूज्य सिज्झ धम्मै भगवदो विज्झर महाविज्झर पुज्जे महापुज्जे
पुज्जायै स्वाहा॥
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૧૩. શ્રી વિમલનાથ તીર્થકર विमलस्वामिनो वाचः; कतकक्षोदसोदराः । जयन्ति त्रिजगच्चेतो, जलनैर्मल्यहेतवः ।। विभलस्वामिनो वाय: HIREसोहः । यन्ति निराश्यता, सनस्यतयः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहदो विमलस्स सिज्झ-धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर अमले कमले निम्मले
स्वाहा॥
૧૪. શ્રી અનન્તનાથ તીર્થકર
स्वयंभूरमणस्पर्द्धि, करुणारसवारिणा | अनन्तजिदनन्तां वः, प्रयच्छतु सुखश्रियम् ।।
સ્વયંભૂરમણાસ્પદ્ધિ, કરુણરસવારિણા | અનન્તજિદનત્તાં વઃ પ્રયચ્છતુ સુખશ્રિયમ્ |
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ॐ णमो भगवदो अरहदो अणंत सिज्झ धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर अणते अणंतवाणे
अणंतकेवलणाणे अणंतकेवलदसणे अणु पुज्जवासणे अणंतागम कैवलियै स्वाहा ॥
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૧૫. શ્રી ધર્મનાથ તીર્થંકર कल्पद्रुमसधर्माण, मिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम् ।।
चतुर्दा धर्म देष्टारं, धर्मनाथमुपास्महे ।। કલ્પદ્રુમસધર્માણ, મિષ્ટ પ્રાપ્તી શરીરિણામ્ ! ચતુર્ઘ ધર્મ દેખાર, ધર્મનાથમુપાસ્મહે !
ॐ णमो भगवदो अरहदो धम्मस्स सिज्झ-धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर धम्मे धर्मेण धम्माई वा सुहते भंते धम्मे अंगमे ममेवु अपदि दम्मे स्वाहा।
૧૬. શ્રી શાન્તિનાથ તીર્થકર सुधासोदरवाग्ज्योत्स्ना, निर्मलीकृतदिङ्मुखः । मृगलक्ष्मा तमःशांत्य, शान्तिनाथजिनोऽस्तु वः ।।
સુધાસોદરવાજ્યોના, નિર્મલીકૃતદિમુખઃ | भृगसमा तमाशात्य, तिनाथानोऽस्तुतः ।।
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ॐ णमो भगवदो अरहदो शान्तिस्स सिज्झ धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर शान्तिकुम्पमे स्वाहा ॥
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૧૭. શ્રી કુંથુનાથ તીર્થકર श्री कुन्थुनाथो भगवान् सनाथोडतिशयद्धिभिः । सुरासुरनृनाथाना, मेकनाथोडस्तु वः श्रिये ।। શ્રી કુન્યુનાથ ભગવાન્ સનાથોડતિશયોર્તિભિઃ | सुरासुरन्नथाना, भेनाथोऽस्तु वः श्रिये ।।
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ॐ णमो भगवदो अरहदो कुन्थुस्स सिज्झ धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर कुन्थु कुन्थु कै कुन्थुशे स्वाहा॥
૧૮. શ્રી અરનાથ તીર્થકર अरनाथस्तु भगवां, श्चतुर्थारनभोरविः । चतुर्थ पुरुषार्थश्री, विलासं वितनोतु वः ।।
मरनाथस्तु Ani, श्यतुर्थाश्नमोरविः । यतुर्थ पुरुषार्थ श्री, विमासं वितनोतु वः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहदो अरहस्स सिज्झ धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर अरणे अप जिग्रहति
स्वाहा॥
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ॐ
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૧૯. શ્રી મલ્લિનાથ તીર્થંકર
सुरासुरनराधीश, मयूरनववारिदम् ।
कर्मदून्मूलने हस्ति, मल्लं मल्लिमभिष्टुमः ।।
સુરાસુરનરાધીશ, મયૂરનવવારિદમ્ । अभेदून्भूसने हस्ति, भदसं भक्तिभमिष्टुभः ।।
ॐ नमो भगवदो अरहदो मलिस्स सिज्झ धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर मल्लि मल्लि अरिपायस्स मल्लि स्वाहा ॥
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૨૦. શ્રી મુનિસુવ્રતસ્વામી તીર્થંકર
जगन्महामोहनिद्रा, प्रत्यूषसमयोपमम् ।
मुनिसुव्रतनाथस्य, देशनावचनं स्तुमः ।।
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ॐ णमो भगवदो अरहदो अरहदो मुनिसुवयस्स सिज्झ धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर सुब्बदेवद्रे स्वाहा ॥
જગન્મહામોહનિદ્રા, પ્રત્યૂષસમયોપમમ્ । मुनिसुव्रतनाथस्य, देशनावयनं स्तुभः ।।
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૨૧. શ્રી નમિનાથ તીર્થકર लुठन्तो नमतां मूर्ध्नि, निर्मलीकारकारणम् । वारिप्लवा इव नमः, पान्तु पादनखांशवः ।। સુઠનો નમતાં મૂર્બિ, નિર્મલીકાકારણમ્ पारिसका वनमः, पातु पानिमांशवः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहदो णमिसस सिज्झ-धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर णति णमि स्वाहा॥
૨૨. શ્રી નેમિનાથ તીર્થકર
यदुवंशसमुद्रेन्दुः, कर्मकक्षहुताशनः । अरिष्टनेमिर्भगवान्, भूयादोडरिष्टनाशनः ।।
यदुवंशसमुद्रेन्द्रुः, अर्भक्ष ताशनः । मरिष्टनेमि वान, भूयोऽRष्टनाशनः ।।
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___ॐ णमो भगवदो अरहदो अरिट्ठणेमिस्स सिज्झ-धम्मे भगवदो विज्झर महाविज्झर सम्मति
महारति अरति ददिरसति महति स्वाहा॥
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૨૩. શ્રી પાર્શ્વનાથ તીર્થંકર
कमठे धरणेन्द्रे च, स्वोचित्तं कर्म कुर्वति । प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ।।
કમઠે ધરણેન્દ્રે ચ, સ્વોચિતં કર્મ કુર્વતિ । प्रभु स्तुत्य मनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ।।
ॐ णमो भगवदो अरहदो उरगकुल जासु पासु सिज्झ-धम्मे भगवदो विज्झर वग्गै महावग्गै से पासै समास सनिगितोदि स्वाहा ॥
૨૪. શ્રી મહાવીરસ્વામી તીર્થંકર श्रीमते वीरनाथाय, सनाथायाद्भुतश्रिया महानन्दसरोराज, मरालायार्हते नमः ।। શ્રીમતે વીરનાથાય, સનાથાયાદ્ભુતશ્રિયા મહાનન્દસરોરાજ, મરાલાયાર્હતે નમઃ ।।
ॐ नमो भगवदो अरहदो महति महावीर वढ्ढमाण बुद्धस्स अणाहत विज्झाइ सिज्झ-६
भगवदो महाविज्झ महाविज्झ वीर महावीर सिरिसणमदिवीर जयतां अपराजिते स्वाहा ॥
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ॐ
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|| ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीं ऐं नमः॥
॥श्री सरस्वती देवी महापूजन विधि।
आव्हान- ॐ ह्रीं श्रीं जिनशासन - श्री द्वादशांग्यधिष्ठात्रि। श्री सरस्वती देवि। अत्र अवतर अवतर संवौषट् नमः श्री सरस्वत्यै स्वाहा॥
स्थापनम- ॐ ह्रीँ श्रीँ जिनशासन - श्री द्वादशांग्यधिष्ठात्रि। श्री सरस्वती देवि। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः नमः श्री सरस्वत्यै स्वाहा॥
संन्निधापन-ॐ ह्रीं श्रीं जिनशासन - श्री द्वादशांग्यधिष्ठात्रि। श्री सरस्वती देवि। मम संन्निहिता भव भव वष्ट नमः श्री सरस्वयै स्वाहा॥
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सन्निरोधनम् - ॐ ह्रीं श्रीं जिनशासन - श्री द्वादशांग्यधिष्ठात्रि। श्री सरस्वती देवि। पूजां यावदव स्थातव्यम् नमः श्री सरस्वत्यै स्वाहा॥
अवगुण्ठनम्- ॐ ह्रीँ श्रीँ जिनशासन - श्री द्वादशांग्यधिष्ठात्रि। श्री सरस्वती देवि। परेषामदृश्या भव भव फट् नमः श्री सरस्वत्यै स्वाहा॥
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पूजनम्- ॐ ह्रीं श्रीं जिनशासन - श्री द्वादशांग्यधिष्ठात्रि। श्री सरस्वती देवि। इमां पूजां प्रतीच्छ प्रतीच्छ नमः श्री सरस्वत्यै स्वाहा ॥
श्री सरस्वती स्तव (श्री चिरंतनाचार्य रचित):
सकलमंगल वृद्धि विधायिनी, सकल सद्गुण संतति दायिनी। सकल मञ्जुल सौरव्य विकाशिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥ अमरदानव मानव सेविता, जगति जाड्यहरा श्रुत देवता। विशद पक्ष विहंग विहारिणी, हरतु मे दरितानि सरस्वती॥ प्रवर पंडित पुरूष पूजिता, प्रवरकांति विभूषण राजिता। प्रवरदेह विभाभर मंडिता, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥ सकल शीतमरीचिसमानना, विहित सेवक बुद्धि विकाशना। घृतकमण्डल पुस्तक मालिका, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥ सकलमान संशय हारिणी, भवभवोर्जित पाप निवार्रिर्णी। सकलसदगुण संतति धारिणी, हरतु में दुरितानि सरस्वती॥ प्रबल वैरिसमूह विमर्दिनी, नृपसभादिषु मान विवद्धिनी। नतजनोदित संकट भेदिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥ सकलसद्गुणभूषित विग्रहा, निजतनुद्युतितर्जित विग्रहा। विशदपवस्त्रधरा विशदर्ति, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥ भवदवानल शांति तनूनपा, द्वितकैरकृति मंत्र कृतकृपा। भविकचित्त विशुद्धि विधायिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥
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KAMAKAILALIKALLAKLAKLAJIKLARIAKANLAHLAKLAJMLAJMLAJTAK
तनुभृतां जडतामपहृत्य या, विबुधतां ददते मुदिताऽचैया। मतिमतां जननीति मत्ताऽत्र सा, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ॥ सकलशास्त्रपयोनिधिनौः परा, विशदकीर्ति धराऽगितं मोहरा। जिनवरानन पद्मनिवासिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥ इत्थं श्री श्रुतदेवता भगवती विद्वज्जनानां प्रसूः। सम्यग्ज्ञान वर प्रदा धनतमोनिर्नाशिनी देहिनाम्॥ श्रेयः श्री वरदायिनी सुविधिना संपूजिता संस्तुता। दुष्कर्माण्यपहृदय में विद्धतां सम्यक श्रुतं सर्वदा॥
पूजन: नर्मोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः
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एँ ही श्री मन्त्ररूपे विबुध जननुते! देवदेवेन्द्र वन्द्ये! चं चं चं चंद्रावदाते। क्षपितकलिमले। हारनी हारगौरे। भीमे। भीमाट्टहासे। भवभय हरणे। भैरवे। भीमरूपे। हाँ हाँ हूँ कार नादे। मम मनसि सदा, शारदे देवि तिष्ठ।।
ॐ हीं घिषणायै, घीर्ये, मत्यै, मेघायै, वाचे, विभावायै,
सरस्वत्यै, गिरे वाण्यै, भारत्यै, भाषायै ब्राह्मण्यै, श्री सरस्वत्यै गंध, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फालादि यजमहे स्वाहा।
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LAKAVAKLAKALIKLAMAKLASAJLAKUAIKALLAKAJIKA LAIKA
हा पक्षी बीजगर्भे! सुखररमणी बंदितेऽनेक रूपे। कोपं वं झं विधेयं धरितधरिवरे। योगिनां योगगम्ये। हँ हँ सः स्वर्ग राजैः प्रतिदिन नमिते। प्रस्तुता लापपाये दैत्येन्द्रायमाने। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।।
ॐ हीं मागधिप्रियाय, सर्वेश्वय, महागोर्ये, शांकर्यै,
भक्तवत्सलायै, रौद्रयै चाण्डुलिन्यै, चण्डयै, भैरव्यै, जयायै, गायत्रयै। श्री सरस्वतयै स्वाहा।।
दैत्यैर्दत्यारिनाथै नमित पदयुगे। भक्तिपूर्व त्रिसन्ध्यं, य? सिद्धेश्च नमैः रहमहमिकया देहकात्याऽतिकान्तैः। षाँ ई ॐ प्रस्फुटाभाक्षरवर मृदुना, सुस्वरेणासुरेणाऽव्यन्तं प्रोग्दीयमाने। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।।
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ॐ ह्रीँ चतुर्बाहवे, कोमार्यै, परमेश्वर्यै, देवमात्रे,
अक्षयायै, नित्यायै, त्रिपुरभेरवै, त्रैलोक्यस्वामिन्यै, देव्यै, मांकायै, कारूण्य सूत्रिण्यै, शूलिन्यै। श्री सरस्वत्यै स्वाहा।।
(४) क्षी क्षीहूं ध्येयरूपे। हन विषम विष, स्थावरं
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KARARLAKLAKALLAKLAHALLAKAKAKAKAKAKAIANKARA
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जंगमं च संसारे संसृतानां तव चरणयुगं सर्वकालं नरायणाम्। अव्यक्तव्यक्तरूपे। प्रणतनखरे। ब्रह्मरूपे। स्वरूपे। ऐक्ली . योगिगम्ये। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।।
ॐ ही पद्मिन्यै, लक्ष्म्यै, पंकजवासिन्यै, चामुण्डायै,
खेचर्ये, शांतायै, हुंकारायै, चंद्रशेखर्य, वाराहयै, विजयायै, अंतद्धायै कम्यै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा।।
सम्पूर्णात्यन्तशोभैः शशधरधवलै रासलावण्यभूतैरम्यैर्व्यक्तैश्च कातैर्निजकरनिकरै श्चंन्द्रिकाकारभासैः। अस्माकीनं नितान्तोदित मनुदिवसं कल्भषं क्षालयंति, श्रीँ श्रीँ छू मंत्ररूपे। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।।
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ॐ ह्रीं हत्य, सुरेश्वर्यै चंद्राननायै, जगधात्र्यै,
वीणाम्बुजकर द्वयायै, सुभगायै, सर्वगायै, स्वाहा, जम्भीन्यै, स्तंभिन्यै, ईश्वरायै, काल्यै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा।।
भास्वत्पद्मासनस्थे। जिनमुखनिरते। पद्महस्ते। प्रशस्ते। जाँ जी नँ ज्रः पवित्रे। हर हर दुरितं दुष्टसंजुष्ट चेष्टम्। वाचालाभिः स्वशक्त्या
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त्रिदशयुवतिभिः प्रत्यहं पूज्यपादे। चंचश्वंद्राकराले। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।।
ॐ ह्रीँ कापालिन्यै, कौल्य, विज्ञायै, रात्र्यै, त्रिलोचनायै,
पुस्तक व्यग्रहस्तायै, योगिन्यै, अमित-विक्रमायै, सर्वसिद्धिकयै, संध्यायै, खंगिन्यै, कामरूपिण्यै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा।
(७) नम्रीभूत क्षितीश प्रवरमणि मुकुटोघृष्ट
पादारविन्दे। पद्मास्थे। पद्मनेत्रे। गजपति गमने। हंसयाने। प्रमाणे। कीर्ति श्री वृद्धिचक्र। जय विजयजये। गौरिगांधारियुक्ते। ध्येयाध्येय स्वरूपे।मम मनसि सदा शारदे। देवि। तुष्ठ।।
KEYEAREAKEAKEAKIAAKAAAAKEATKEAKEATMLAILAIKLAIKEAIKLAIKLAIKAHAKAALAIMEAKEAK
ॐ ह्रीँ सर्वसत्वहितायै, प्रज्ञायै, शिवायै, शुक्लायै,
मनोरमायै, मांगल्यरूचिकारायै, धन्याय, काननवासिन्यै, अज्ञाननाशिन्यै, जैन्यै अज्ञाननिशिभास्कर्यै, अज्ञान जनमात्रै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा।
विद्युज्जवाला शुशुभ्रां प्रवरमणिमयी मक्षमालां संरूपां हस्ताब्जे धारयति दिनमनु पठतामष्टकं
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KAMAKAKAKAKAKAKALLAKLAKAILAKLAKAKAKAKAK
शारद च। नागेन्द्रैरिन्द्र चंद्रैर्मनुज मुनिगणैः संस्तुता या च देवी सा कल्याणानि देवी मम मनसि सद शारदे। देवि। तिष्ठ॥
ॐ ह्रीं अज्ञानोदधिशोषिण्यै, ज्ञानदायै, नर्मदायै, गंगायै,
सीतायै, वागीश्वर्यै, धृत्यै, ऍकारमस्तकायै, प्रीत्यै, हाँकारवदनायै, हूँत्यै, क्लींकारहृदयायै || “श्री सरस्वत्यै-स्वाहा
जनतान्धकार-हरणार्क संनिभेगुणसंतति, प्रथनवाक् समुच्चये श्रुतदेवतेऽत्र जिनरा पूजने, कुमतीविनाशाय कुरुष्व वांछितम्।
MMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMM
ॐ ह्रीँ श्क्त्यै, अष्टबीजायै, निरक्षरायै, निरामयाय,
जगत्स्थायै, निःप्रपंचायै, चंचलायै चलाये, निरूत्पन्नायै, समुत्पन्नायै, अनंतायै, गगनोपमायै, . भगवत्यै, वाग्देतायै, वीणापुस्तक मौक्तिकाक्षवलय श्वेतांजमंडितकरायै, शशधरनिकर, गौरिहंसवाहनायै॥ "श्री सरस्वत्यै-स्वाहा"
वस्त्रपूजा- शारदा शारदाभोज, वंदना वंदनाबुजे, सर्वदा सर्वदास्माकं, सन्निधिं संन्निधिं क्रियात्॥
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RER 39 TER
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ॐ
JLAHLAHLAH LAHAHAHAHAHAHAHAH LA LAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAH
BHAJ
ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै केवलज्ञान स्वरूपायै लोकालोक प्रकाशिकायै श्री सरस्वत्यै वस्त्र पूजां यजामहे
स्वाहा ॥
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षोडशभरण पूजा- कांचीसूत्र - विनूतसार निचितैः केयूर-सत्कुण्डलै-मंजीरागद-मुद्रिकादि-मुकुटप्रालम्बिकावासकैः। अंचच्याटिक पट्टिकादि विलगद् ग्रैवेयकैर्भूषणै: सिंदूरांग सुकांति वर्ष सुभगैः सम्पूजयामो वयम् ॥
ॐ ह्रीं श्रीं भगवत्यै केवलज्ञान स्वरूपायै लोकालोकप्रकाशिकायै श्री सरस्वत्यै षोडशाभरणं पूजां यजामहे स्वाहा ॥
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MAHLAT LAHAHAHAHAHAHAHAHAHAH LAILAH LAHLAJE
ॐ
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HAKAMATAAAAAAAAAAAA
सिद्ध सारस्वताचार्य श्री बप्पभट्टि सूरीश्वर विरचित
श्री अनुभूत सिद्ध सारस्वत स्तव ॥
- श्री शारदा स्तोत्र
कलमराल विहंगम वाहना, सितदुकूल विभूषण लेपना। प्रणतभूमिरूहामृतसारिणी, प्रवरदेह विभाभर धारिणी ॥ अमृतपर्णकमण्डलु हारिणी, त्रिदश दानव मानव सेविता। भगवती परमैव सरस्वती, मम पुनातु सदा नयनाम्बुजम॥ जिनपति प्रथिताऽखिल वांगमयी, गणधरानन मंडप नर्तकी। गुरूमुखाम्बुज खेलन हंसिका, विजयते जगति श्रुत देवता॥ अमृतदीधति बिम्ब समानना, त्रिजगति जन निर्मित माननाम्। नवरसामृतवीचि सरस्वती, प्रभुदितः प्रणमामि सरस्वतीम्॥ विततकेतक पत्र विलोचने, विहित संसृति दुष्कृत मोचने। धवल पक्ष विहंगम लांछिते, जय सरस्वति पूरित वांछिते॥ भवदनुग्रहलेश तरंगिता-स्तदुचितं प्रवदंति विपश्चितः। नृपसभासु यतः कमलाबला, कुचकलाललनानि वितन्वते॥ गतधना अपि हि त्वदनुग्रहात्, कलित कोमल वाक्य सुधोर्मयः। चकित बाल कुरंग विलोचना, जनमनासिहरंति तरां नरा॥ कर सरोरूह खेलन चंचला, तव विभाति परा जप मालिका। श्रुतपयोनिधि मध्य विकस्वरो, ज्ज्वलतरंग कलाग्रह-साग्रहा। द्विरद केसरिमारि भुजंगमा-सहनतस्कर राज रूंजा भयम्।
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तव गुणावलि गान तरंगिणां न भविनां भवति श्रुत देवता ॥ ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लीँ ततः श्रीं तदनुहस्कूल ह्रीँ अथो एँ नमोऽन्ते । लक्षं साक्षाज्जपेद्यः करसम विधिना, सत्तपा, ब्रह्मचारी ॥ निर्याती चंद्रबिम्बा - त्कलयंति मनसा त्वां जगच्चन्द्रिकामाः । सोऽत्यर्थ वहिनकुण्डे विहितघृत हुतिः स्याद् दशाशेन विद्वान ॥ रे।रे। लक्षण-काव्यनाटककथा-चम्पूसमालोकने, क्कायांस चित्तनोषि बालिश । मुथा ।
किं नम्रवक्त्राम्बुजः । भक्त्याराधय मंत्रराज महसाऽनेनानिशं भारती,
येन त्वं कवितावितान सविता -ऽद्वैत प्रबुधायसे ॥ चञ्चचंद्रमुखीं प्रसिद्ध महिमा, स्वाच्छन्द्यराज्य प्रदाः नायासैन सुरासुरेश्वरगणै रम्यर्चिता भक्तितः ।
देवी संस्तुत वैभवामलयजा, लेपागरंगद्युतिः सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रेलोक्य संजीवनी । स्तवनमेतदनेक गुणान्वितं पठति यो भविकः प्रमना प्रगे । स सहसा मधुरै वचनामृतैर्नृपगणा, नपीरंजयति स्फुटम् ॥ ॥ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लीं श्रीं ह्स्कूल ह्रीँ एँ नमः ।
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||श्री बप्पभट्टि सूरीश्वर विरचित श्री सरस्वती
कल्प के महाप्रभावशाली मंत्र॥
॥ ॐ ऐं श्रीं सौं क्लीं वद वद वाग्वादिनी ही सरस्वत्यै नमः॥
|| ॐ ऐ श्रीं वद वद वाग्वादिनी। भगवती। सरस्वति ही * नमः॥
॥ ॐ ऐ* अर्ह वग् वग् वाग्वादिनी भगवती सरस्वति मम जिव्हाग्रे वास कुरू कुरू स्वाहा॥ ॥ ॐ अहँन्मुख कमल वासिनि पापात्मक्षयंकरि श्रुत ज्ञान ज्वाला सहस्त्र ज्वलिते सरस्वति मत्पापं हन हन दह दह क्षाँ क्षीं हूं क्षौँ क्षः क्षीखरधवले अमृतसंभवे वँ वँ हूँ हूँ स्वाहा।
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स्तुति
नमस्ते शारदे। देवि। काश्मीर प्रतिवासिनि। त्वामहं प्रार्थयेऽनाथे। विद्यादानं प्रदेहि मे। प्रथम भारती नाम, द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी, चतुर्थ हंसगामिनी, पंचमं विदुषां माता, षष्ठं वागीश्वरी तथा। कुमारी सप्तम प्रोक्त-मष्टमं ब्रह्मचारिणी।नवमं त्रिपुरा देवी, दशमं ब्राह्मणी तथा एकादंश च ब्रह्ममाणी, द्वादश ब्रह्मवादिनी। वाणी त्रयोदंश नाम भाषा चैव सरस्वती। पंचदंश श्रुत देवी, षोडश गौर्निगद्यते। एतानि शुद्धनामनि, प्रातः रूत्थाय यः पठेत। तस्य संतुष्तये देवी शारदा वरदायिनी या कुंदेन्दु तुषारहार धवला या
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श्वेत पद्मासना या वीणा वरदण्ड मंडित करा या शुभ्रवस्त्रावृता। या बह्माच्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवै, सदा वंदिता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाइयापहा॥ कुंदिदु-गाक्खीर-तुसार-वना। सरोज-हत्था कमल निसन्ना। वाईसरी पुत्थय वग्ग हत्था, सुहाय-सा अम्ह सया पसत्था॥ आमूलालोल-धूली-बहुल परिमलाऽलीढ-लोलालिमाला। झंकाराराव-सारामल दल कमलागार-भूमि निवास॥ छाया-संभार-सारे। वरकमल करे। तारहाराभिरामे। वाणी-संदेह देवे। भव-विरह-वरं देहि में देवि। सारं॥
श्री श्रुत देवि। सरस्वति। भगवती। हमको वर देना। जीवन की बाँसुरी में देवि, श्रद्धा के स्वर भर देना। सम्यक् ज्ञान का दीप जलाकर, मन का तिमिर हटाना।
ना भूले ना भटकें माता ऐसी राह बता देना।
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OM HREEM KLEEM BLEEM SHREEM
HSKAL HREEM EIM NAMAH
!! SHREE SARASWATI DEVI MAHAPOOJAN VIDHI !!
Aahwan: Om Hreem Shreem Jinshasan - Shri Dwadashang Adhishthatri! Shree Sarasvati Devi! Atra Avtar Avtar Sanvosht Namah Shree Saraswatye Swahaa.
Sthapanam: Om Hreem Shreem Jinshasan Shrii Dwadashang Adhishthatri! Shree Saraswati Devi! Atra Tishtha-Tishtha Thah Thah Shree Saraswatye Swahaa.
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Samnnidhapan: Om Hreem Shreem Jinshasan Shri Dwadashang Adhishthatri! Shree Saraswati Devi! Mam Samnnihita Bhava Bhava Vavshat Namah Shree Saraswatye Swahaa.
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Samnnirodhanam: Om Hreem Shreem Jinshasan Shri Dwadashang Adhishthatri! Shree Saraswati Devi! Poojan Yavadtraiva Sthatavyam Namah Shree Saraswatye Swahaa.
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HAHAHAHAHAHAHAHAH 30
Avagunthanam: Om Hreem Shreem Jishasan Shri Dwadashang Adhishthatri! Shree Saraswati Devi! Pareshamadrishya Bhav Bhav Phat Namah Shree Saraswatye Swahaa.
Poojanam: Om Hreem Shreem Jisshasan Shri Dwadashang Adhishthatri! Shree Saraswati Devi! Emam Poojam Prateechha Prateechha Namah, Shree Saraswatye Swahaa.
SHREE SARASWATI STAVA
(Shree Chirantanacharya Rachit)
Sakal-Mangal Vridhee Vidhayanee, Sakal Sadguna Santatee Dayinee Sakal Manjul Soukhya Vikashinee, Haratu Me Duritani Saraswati Amar-Danava-Manava Sevita, Jagati Jadyahara Shrut Dewata Vishadpaksha Vihanga Viharinee Haratu Me Duritani Saraswati Pravar-Pandit Purush Poojita,
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HAKE
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SAWWWWWWWWWWWW!
Pravar-Kanti Vibhooshan Rajeeta, Pravardev Vibhabhar Mandita Haratu Me Duritani Saraswati.
Sakalsheet-Marichi Samananam, Vihitsewak Bubhi - Vikashana, Ghreet - Kamandal- Poostaka Malika, Haratu Me Duritani Saraswati.
Sakalman-Sanshaya Harinee, Bhav-Bhavorjit Pap-Niwarinee Sakal-Sadgun- Santati Dharinee, Haratu Me Duritani - Saraswati.
Prabal - Vairi - Samooh - Vimardinee Nrip - Sabhadishu - Man - Vivardhinee Natjanodit - Sankat - Bhedinee, Haratu - Me Duritani - Saraswati.
AAAAAAAAAAAAAAAWAWAWAL
Sakalsadgun Bhushit Vigraha, Nijtanu - Dyootitarijit Vigraha, Vishadvastradhara Vishadardhyuti, Haratu - Me - Duritani- Sraswati.
Bhava - Dawanal- Shanti - Tanunapa, Dwit-Karair - Kriti - Mantra - Krit - Kripa, Bhawikchit - Vishudhi - Vidhayinee,
1998
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MAKAMAIKAKAUKAAAA
AAXLAMALAR
Haratu - Me - Duritani - Saraswati.
Tanubhrutam Jadatam - Pahaty Ya Vibudhatam Dadate Muditarchaya Matimatam - Janneeti Matta-Tra-Sa, Haratu - Me- Duritani - Sraswati.
Sakalshastra - Payonichinouh Para, Vishad Keerti - Dharangit Mohara, Jinvaranan - Padma - Niwasinee, Haratu - Me - Duritani - Saraswati.
Eetham Shree Shrutdewata, Bhagawati Vidwajjananam - Prasoon, Samyag- Gyan - Var - Pradha, Ghantamonir - Nashinee - Dehinam Shreyah Shree Vardhayinee Suvidhina Sampojeeta Sanstuta Dushkarmanya - Pahritya - Me - Viddhatam Samyak Shrutam Sarvada.
JALAXIALAXLAYAKAMA WAKAKAKAHAHAHAHAAHAHAHAHAHAHAHARLA
POOJAN: !!Namorhat Sadhubhyah!!
Siddhacharyopadhyay
Sarva
1.
Eam Hreem Shreem Mantraroope! Vibudh Jannute! Dev-Devendravandye! Chanch -
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LAWAKALA WAWALA
Chandravadate! Kshapit - Kalimale! Har - Nihar - Goure! Bheeme! Bheematt - Hase! Bhava-Bhaya- Harane! Bhairave! Bheemroope! Hram - Hreem- Hrumkar Nade! Mam-Mansi - Sada - Sharde Devi Teeshtha.
Om Hreem, Ghishnayai, Gheeryai, Matye, Meghayee, Watche, Vibhavayai, Saraswatyai, Ghire, Vanyai, Bharatyai, Bhashshayai, Brahmanyai, Shree Saraswatye Gandham, Pushpam, Dhoopam, Deepam, Akshatam, Naivedyam, Phalani Yajamahe Swahaa.
Ha Pakshee Beejgarbhe! Survar-Ramani Vandeeta Nek Rupe! Kopam Vam Jham Vidheyam Dharitdharivare! Yoginam YoGamye! Ham-Ham Sah Swarg-Rajaih, Pratidin - Namite! Prastuta Lap-Paye, Daityendrerdhyaymane! Mam Mansi Sada Sharde! Devi! Tishtha!!
MMMMMMMMMMMMMMMMMMMMM
Om Hreem Margadhipriyaye, Sarveshverye, Mahagourye, Shankeryai, Bhaktavatsalaye, Roudreyai, Chandalinyai, Chandye, Bhairvye, Vaishnaveye, Jayaye, Gayatreye, Shri Saraswatye.............. Swahaa.
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HAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAH
THEAHLAH
Go
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3.
Om
Hreem Chaturbahave, Komaryai, Parameshwaryer, Devmatre, Akshayaye, Nityaye, Tripurbhairavye, Trailokyaswaminye, Daivyai, Mankayaih, Karunyasutrinye, Shulinye, Shri Saraswaty......... .......Swhaa.
Daityaidatyarinathair Namit Padyuge! Bhaktipoorvam Trisandhyam, Yakshaih Siddaisch Namarai, Rahmahmikaya, Deh Kantyati Kantaih! Sham, Eem, Oom, Prasfutabhakshar - Var Mriduna, Suswarena, Surenatyant Prodviyamane Mam Mansi Sada Sharde! Devi! Teeshtha.
4.
Ksham Kshim Kshum Dhyey-Rupe! Han Visham Visham, Sthavaram, Jangamam Cha Sansare Sansrutanam Tav Charan Yoogam, Sarva-Kalam Naranam! Avyakte, Yakt-Rupe! Pranat Narvare! Brahmarupe! Swaroope! Aim, Kleem, Kroom, Yogigamye! Mam Mansi Sada Sharde! Devi Teeshtha!!
Om Breem Padminyai, Lakshmyai, Pankajvasinye, Chamundaye, Khaicharye, Shantaye, Hunkarayai, Chandrashekheryai, Warahye, Vijayayem, Antardwarye, Karmye, Shree Saraswatye...... Swahaa.
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MAKAKALAHAIKALLALLAKLAKLAMATKALLAKLAMLALATAILS
Sampoornatyant Shobhai! Shashdhar - Dhawale, Ras-Lawanya- Bhootai Ramyai-RVyaktaisch, Kantai-R-Nijkarnikardi, Schandrikakar Bhasaih! AsmakinamNitantodit-Manudiwasam, Kalmasham Kshalyanti, Shram, Shreem, Shroom MantraRupe Mam Mansi Sada Sharde! Devi! Tishtha!!
Om Hreem Hatryere, Sureshwarye, Chandrananaye, Jagdhatrey, Vinambj-Kar-Dwayaye, Subhagaye, Savargaye, Swaha, Jambhinye, Stambhinye Ishwaraye, Kalyei, Shri Saraswatye ........ Swahaa.
JAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
6.
Bhaswat Padmasanasthe! Jinmukh Nirte! Padmahaste, Prashaste! Jhram, Jhreem, Jhran, Jhrah, Pavitre! Har Har Duritam Dushta Sanjust Cheshtam! Vachalabhih Swa-Shaktya, Tridash Yuwatibhih Pratyaham Poojya Pade! Cham Cham Chandra – Karale! Mam-Manasi Sada Sharde! Devi ! Teeshtha!!
Om Hreem Kapalinyai, Kaulyai, Vighayai, Ratreyai, Trilochanayai, Pustakvyagrahastaye, Yoginyai, Amit Vikramayai, Sarva-Siddhi-Karyai, Sandhyayai, Khanginyai, Kamaroopinyai, Shree Saraswatye..........Swahaa.
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7.
Kshitish Pravarmani,
Namreebhoot Mukutooddhrishta - Padarvinde! Padmasthe! Padma Netre! Gajpati - Gamane! Hans-Yane! Pramane! Keertee Shree Vridhi-Chakre! Jay Vijay Jaye! Gouri Gandhari Yuktee Dhyeyadhyeya-Swaroope! Mam Mansi Sada Sharde! Devi! Teeshtha!!
Om Hreem Sarva Satva Hitaye, Pragyayai, Shivayai, Shuklayai, Manoramayai, Mangalya Ruchi Karay, Dhanyayai, Kanan Vasinyai, Agyan Nishinyai, Jainyai, Agyan Nishi - Bhaskeryai, Agyan Jan Martray!! Shree Saraswaty............... Swahaa.
8.
Vidyujjwalam Shushubhram Pravar Manimayi Maksha Malam Suroopam Hastabje Dharayanti, Dinmanu Pathatamashtakam, Sharadam Cha! Nagendre Rindra Chandrair Manuj, Muni Ganaih Sanstuta Yaa Cha Devi Sa Kalyanani Devi Mam Mansi Sada. Sharde! Devi! Tishtha!!
Om Hreem Agyanodadhishoshinyai, Gyan Dayai, Narmadayai, Gangayai, Sitayai, Vageeshwaryai, Dhrityai, Ainkar Mastakayai, Preetyai, Hreenkar Vadanaye, Hutyai, Klinkar Hridayaye, Shree
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SAAAAAAAWAWWWW!
Sarawatye........... Swahaa.
9.
Janatandhakar Harnark, Samnibhegunsantati, Prathan Wak, Samuchchye, Shrut Devate Atra, Jinraj Pujane, Kumatirvinashay Kurushva Vanchhitam!!
Om Hreem Shaktye, Ashtabijayai, Niraksharayai, Niramayayai, Jagat Sthayai, Nih Prapanchayai, Chanchalayai, Chalayai, Nirutpannaiye, Samutpannaye, Anataye, Gaganopamaye, Bhgwatyai, Vagdevataye, Veena Pustak, Mouktikakshavalaya, Shwetabja Mandit Karaye, Shashadharnikar, Gouri Hans Vahanayai. Shree Saraswatye.............. Swahaa.
WAAAAAAAAAAAAAAAA
10.
Vastra Pooja Sharada Sharadambhoj Vadana, Vadanamjuje, Sarvada Sarvadasmakam, Sannidhin Sannidhim Kriyat.
Om Hreem Shreem Bhagwatye, Kewal Gyan Swaroopaye, Loka-Lok Prakashikaye Shree Saraswatye Vastram Pooja Yajamaheswahaa.
11.
Shodashabharanam Pooja Kancheesutra Vinutsar Nichitaih Keyur
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Satkundalai-R-Manjeerangada Mudrikadi Mukut Pralambikavasakih, Anch Chyatik Pattikadi Vilagad Graiveyakai-RRbhushaniah, Sindurang Sukanti Varsha Subhagai Sampoojyama Vayam.
Om Hreem Shreem Bhagwatyai Kewalgyan Swaroopayai Loka-Lok Prakashikayai Shree Saraswatye Shodasha Bharanam Pooja Yaja Mahe Swahaa.
JAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
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LAKLAHLAHLAKE
LAHAHAHARLAS
LAHLAHLAHAHAHAHAHAHA!
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!!SIDDH SARASWATACHARYA SHREE BAPPA BHATTI SUREESHWAR VIRCHIT SHRI SIDDH SARASWAT STAV!!
SHREE SHARDA STOTRA
Kalam ral vihangam vahana, sit dukul vibhushana lepahnapranat bhoomi roohamrit sarini, pravar deh vibhabhar dharini amritpoorna kamandalu harini, tri dash danava manava sevita bhagawati peramaiva saraswati, man punatu sada nayanambujam.
Jinpati prathita khil vangmany, ganedharanam mandap nritakee guru mukhambaj khelan hansika, vijayate jagati shrut dewata, Amritdeedhati bimba samananam, Trijagati jan nirmit mananam. Navarasamrit vichee sarasawatim, Pramuditah pranamami Saraswatim.
Witata Ketaka patra vilochane, vihit sansruti dushkrit mochane Dhawal paksha Vihangam lanchhite, Jai saraswati purit vanchhite Bhavadanugrih lesh tarangita Staduchitam Pravadanti vipaschchitah. Nripsabhasu yatah Kamalabala, Kuch- Kala lalanani Vitanvate.
Gata dhana api hi tvadnugrihat, kalit komal Vakya
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Sughormayah. Chakit bal Kurang- Vilochana, Jan Manansi, haranti taram hara. kar Saro rooh Khelan Chanchala, tav Vibhati Pra Jap Malika. Shrit payonidhi madhya vikaswaroh, jjvaltarang Kalagrih sagriha.
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Dwiranda kesarimari bhujangama, Sahan taskar raj roojam bhayam. Tav gunavali gan taranginam, na bhavinam bhavati shrut devata. Om hreem Kleem bleem tatah shreem tadnuhs-k-I hreem atho ain namo nte. Laksham Sakshajjapedyah Kar Sam Vidhina, Sattapa Brahamcharee. Niryantim Chandra-bimbatkalyanti Manasa twam, Jagechchandrikabham So tyartham VahniKunde Vihit ghreet hutih, Syad dashan Shen vidvan. Re-re lakshan kavya natak katha champu samalokane, Kkayasam Chitnoshi balish! Mutha, Kim namra-vaktrambujah! Bhaktya radhay mantra raj mahasa-ne-nanisham bharatim, yen twan kavita vitan savita dweit prabudhayase.
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HAHAHAHAHE
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KAYLAKLAKLAKLAKLAKLAKLAMLAKAKAKAKAIKANAKAKAK
Chanch Chandramukheem Prasiddh Mahima, Swachhandya Rajya Pradah. Nayasen Surasureshwar Ganeh Rabharchita Bhaktitah Devi Sanstut Vaibhava Malayaja Lepangrangdyutih, Sa-Mam Patu Saraswati Bhagawati Trailokya Sanjeevanam, Stavan Met Danek Gunanvitam, Pathati Yo Bhavikah Pramana Prage Sa Sahasa Madhurai-R-Vachana Mritai-R Nrip-Gana, Napeeramjayati Sphootam
JAKA AKAKAAKAAKAKAKAHAHAHAHAHAHAHAAAAAALA
Om Hreem Kleem Bleem Shreem Hasakal
Hreem Aim Namah.
Jain Education.International
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WAAAAALAW
શ્રી નમસ્કાર મહામંત્ર
नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं
पढमं हवइ मंगलं અરિહંત પરમાત્માને મારા નમસ્કાર થાઓ સિદ્ધ પરમાત્માને મારા નમસ્કાર થાઓ આચાર્ય ભગવંતોને મારા નમસ્કાર થાઓ ઉપાધ્યાયજી મહારાજાઓને મારા નમસ્કાર થાઓ લોકવર્તી સર્વ સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોને મારા નમસ્કાર થાઓ પંચ પરમેષ્ઠીને કરાયેલા આ નમસ્કાર સર્વ પાપમલનો ક્ષય કરનાર છે અને સર્વ મંગળોમાં શ્રેષ્ઠ (પ્રથમ) મંગલ સ્વરૂપ છે.
JAAAAAAAAAAALAALALALALALALALALALALAL
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LAKLAKLAKAKAKASAMAKAILANLAMAMLAKAMLAKANAT
Namaskar Mahamantra
Namo Arihantānam
Namo Siddhānam Namo Ayariyānam
Namo Uvajjhāyanam Namo Lõē Savvasāhūnam
Esā pañca namukkāro Savvapāvappaņāsaņā
Mangalānam Ca Savvēsim Padhamam Havai Mangalam
AJWWWWAAAAAAAAAAAAAAAAAA
I bow to Arihanta, the supreme soul. I bow to Sidha, the perfect soul. I bow to Acharya, the leader of the Sangh. I bow to Upadhaya, who icachcs all monks and nuns. I bow to all monks and runs in the world. These live bows to these five revered souls will destroy bad dccds. These are the foremost among all auspicious dccds.
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KAWAWWWWWWWWWWWWWLA
શ્રી ઉવસગહરં સ્તોત્ર उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहरविसनिन्नासं,
मंगलकल्लाणआवासं ||१|| સર્વ લોકોના ઉપગને હરનાર પાર્થ નામનાં યક્ષ સેવક છે જ મને એવા, કમૉના સમૂહથી મુકાયેલા, મિથ્યાત્વરૂપી વિષને Ell?!?Sa-
ti 54641 (R21 24441) Caurul peal s2 4121, અને સર્વ મંગલોના ભંડાર સ્વરૂપ એવા પાર્શ્વનાથ પરમાત્માને હું 775R 5211211
Invocation Two Uvasaggharam Stotra (Invocation) Uvasaggaharam Pāsam,
Pāsam Vandāmi Kammadhanamukkam 11 Visaharavisaninnāsam,
Mangala Kallāņa Aāvāsam ll 111 May my obeisance bc to Lord Pārsvanátha, who removes the trubules of all the people, who has a guard called Pārsvayaksha, who is free from the group of eight Karunas, and who removes the poison of false doctrines and the vcnon of Kamath, the dermon by his special power and who is a rapositiry Ol'ill spiciousness. I| | ||
AAAAAAAAAKAKAKAKAKAKAKAHARAKAKAKAKAAWALA
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विसहर-फुलिंग-मंतं कंठे धारेइ जो सया मणुओ । તરસ નEા -મારી
दुट्ठजरा जंति उवसामं ।।२।। મિથ્યાત્વના અને સર્પના ઝેરને ઉતારવામાં પ્રગટ પ્રભાવક એવા અઢાર અક્ષરના બનેલા “નમિઉ પાસ વિસહર વસહ જણ કુલિંગ” આવા પ્રકારના વિષધર સ્ફલિગ નામના મંત્રને જે મનુષ્યો હંમેશાં કંઠમાં ધારણ કરે છે. (એટલે કે કંહસ્થ કરીને ગાય છે. અથવા તેનું માદળીયું બનાવી કંઠમાં રાખે છે, તેને પીડતા ગ્રહો, રોગો, મરકી અને દુષ્ટ (ભયંકર આકર) તાવ પણ શાન્તિને પામે છે. /ર
GOWEARYLANMAYLALALALALAAAAAAAAAALALALALALALA
CATERER SHARIRASARNATARI SURAT SURESH JANI SURAT SURENRE
Visaharaphulinga mantam Kanthē Dhārēi Jā Sayā Manuö 1 Tassa Gaha Röga Māri
Duttha Jarā Janti Uvasāmam 11 2 11 Those people who wear on their necks/throats (i.e. who recite regularly, or wear it as an armlet) the spell called Visadhara Sfullinga - "Namiuņa Pāsa Visahara Vasahaliņā Phulinga", and which is instantly effective in removing the poison the false doctrines as well as of serpents, and have their evil and tormenting planets, plaguc as well as severe afflictions such as fever etc., pacified and removed. || 2 ||
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KAMAKAILALAIKANAKAKAILANLAMAMLAKAJMAKAKAILA
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्खदोगच्चं ।।३।।
તમારો પ્રભાવશાલી મંત્ર તો દૂર રહો, પરંતુ તમને કરેલો છે પ્રણામ પણ બહુ ફલવાળો થાય છે. જે પ્રણામના પ્રતાપથી જીવો મનુષ્ય અને તિર્યંચોના ભવોમાં દુઃખ અને દીર્ભાગ્ય પામતા નથી 11311
Citthau Durē Manto Tujjha Paņāmo Vi Bahuphalo Hoi Naratiriēsu Vi Jivā, Pāvanti Na Dukkhadogaccam Il 3 ||
JAAAALAALAALAAAAAAAAAAAAAA
Leave aside the powerful mantra dedicated to you, cven an obcissance offered to you yields more fruits. Living beings do not fall prey to misery and poverty when they go through the lives of human beings as well as animals and birds through the power of such an obcissance. Il 3 |||
or?
Stase
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AUWAWA KWA
TE PASTE चिंतामणि- कप्पपायवभहिए । पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ।।४।।
LALALALAHAKAMAKAHABA
ચિંતામણિ રત્ન અને કલ્પવૃક્ષથી પણ અધિક એવું તમારું સમ્યક્ત્વ પ્રાપ્ત થયે છતે જીવો કોઈ પણ પ્રકારના વિપ્ન વિના અજરામર (4144) pul 412 59.11811
MMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMM
Tuha Sammattê Laddhē, Cintāmani Kappapāyavabbhahiaē 1 Pāvanti Avigdhënam, Jivā Ayarāmaram Thāņam 11 4 11
VLAALALALALA
Iluman beings when they attain the right faith whi is superior en Ciumari' jewel and desire-fulfilli Kalpa' tree, will not have any obstacles ill attaini liberalion, il 4 11
XL
450
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SPAIN
Vivi
Vivix Vivi Vivix
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WAALULAWWWWWWWAMA
इअ संथुओ महायस भत्तिब्भरनिब्भरेण हियएण | ता देव दिज्झ बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद ||५||
મહા યશવાળા એવા હે પાનાથ પ્રભુ ! તમે આ પ્રમાણે ભક્તિના સમૂહથી ભરેલા હંયા દ્વારા મારા વડે સ્તવાયા છો (તુતિ કરાયા છો). તેથી હે પાર્શ્વનાથ જિનેશ્વર ! ભવોભવમાં તમારા ચરણોની સેવા કરવા સ્વરૂપ બોધિબીજ મને આપજો. |પા!
JAKAKAKAA LAAKAKAKAKAKAKAKAKAKAKAKAKAKALAKAL
la Santhuo Mahāyasa Bhattibbharanibbharēna Hiyaēna ! Tā Dēva Dijjha Bõhim, Bhavē Bhavē Pāsa Jinacanda || 5 ||
O Lord Pārsvanälla, you who arc possessed or great glory; you are thus praised and invoked by me with a devoted heart. Hence, O glorious Pārsvanātha. Kindly grant me the Spiritual Wisdom (Boddhibija) life after life. Il 5 ||
મ
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ક જે જ ઝ તા. પછી કરવું
કારણ
કાય કે
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GUERAMEANALAXARLAKLAKAKAKAILAKAHLAKALALALALALALALALAKING
બૃહચ્છાતિ સ્તોત્ર भो भो भव्याः ! शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद् । ये यात्रायां त्रिभुवनगुरोराहता भक्तिभाजः || तेषां शान्तिर्भवतु भवतामर्हदादिप्रभावादारोग्यश्रीधृतिमतिकरी क्लेशविध्वंसहेतुः ।।१।।। હે હે ભવ્ય જીવો ! પ્રાસંગિક આ સર્વ વચન તમે સાંભળો, કે ત્રણ ભુવનના ગુરુ એવા શ્રી પરમાત્માની તીર્થયાત્રામાં જે મનુષ્યો અરિહંત ભગવન્તોની ભક્તિ કરનારા છે તેઓને (વરે) અરિહંતાદિ ભગવન્તોના પ્રભાવથી આરોગ્ય, લક્ષ્મી, ધીરજ અને બુદ્ધિને કરનારી અને કલેશકંકાસના વિનાશનું કારણ એવી શાન્તિ થજો, શાન્તિ થજો. ૧||
Invocation Nine Bruhatchhanti Stotra (!nvocation) Bho Bho Bhavyāḥ! Śrnuta Vacanam Prastutam Sarvamētad 1 Yē Yātrāyām Tribhuvanagurõrārhatām Bhaktibhājaḥll Tēsām śāntirbhavatu Bhavatāmarhadādi prabhāvā- | Dārogyasridhrtimatikari Kalēśavidhvamsahētuḥ 111||
you exalted Souls ! May you listen to these teachings, that those men who are devotees of the Lords Arihanta, during their pilgrimage of the Supreme Souls, the lords, who are the lords of the three worlds, may they have peace in their houses through the power of Lord Arihanta, the peace which brings about health, wealth, patience and itelligence and without any quarrel and fight. lllll
JAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
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AMAKAKAKWAMAKATHAIKAKAMAHAKAMAIKAKAKAKAK
भो भो भव्यलोका ! इह हि भरतैरावतविदेहसंभवानां समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्रकम्पानन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः सुघोषाघंटाचालनानन्तरं सकलसुरासुरेन्द्रैः सह समागत्य सविनयमहद्भट्टारकं गृहीत्वा, गत्वा कनकाद्रिशृङ्गे विहितजन्माभिषेकः शान्तिमुद्घोषयति, यथा ततोहम् कृतानुकारमिति कृत्वा महाजनो येन गतः स पन्थाः इति भव्यजनैः सह समेत्य स्नात्रपीठे स्नात्रं विधाय शान्तिमुद्घोषयामि, तत्पूजायात्रास्नात्रादिमहोत्सवानन्तरमिति कृत्वा, कर्ण दत्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा ।।
અરે અરે હે ભવ્ય લોકો ! આ જ મૃત્યુલોકમાં ભરતક્ષેત્ર, ઐરાવત ક્ષેત્ર અને મહાવિદેહક્ષેત્રમાં જન્મેલા સર્વ તીર્થકર ભગવન્તોના જન્મ સમયે આસન કંપાયમાન થયા પછી અવધિજ્ઞાનથી (પ્રભુનો જન્મ) જાણીને સૌધર્મ નામના પ્રથમ દેવલોકનો સ્વામી સુઘોષા નામની ઘંટા વગડાવ્યા પછી સર્વ દેવો, દાનવો અને ઈન્દ્રો સાથે આવીને વિનય પૂર્વક અરિહંત ભગવાનને હાથમાં લઈને મેરૂ પર્વતના શિખર ઉપર જઈને કર્યો છે પરમાત્માનો જન્માભિષેક જેઓએ એવા તે ઈન્દ્ર જેમ શાન્તિ થાઓ, શાન્તિ થાઓ એવી શાન્તિની ઉદ્ઘોષણા કરે છે. તેવી જ રીતે કરેલાનું અનુકરણ કરવું જોઈએ એમ સમજીને તથા મોટા માણસો (ઈન્દ્રાદિ દેવો)
LAILATYEAALAKEATLATKHATIALATKAILASTAKEATKLAIKEATHEATREATKEATHEATERATEAMEANALYAN
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જે માર્ગે ગયા હોય તે જ સાચો માર્ગ છે એમ સમજીને ભવ્ય જીવોની સાથે મળીને સ્નાત્ર ભણાવવાની પીઠિકા ઉપર સ્નાત્ર કરીને હું પણ શાન્તિની ઉદ્ઘોષણા કરું છું. તેથી તે પરમાત્માની પૂજા, યાત્રા, અને સ્નાત્રાદિનો મહોત્સવ કર્યા પછી કાન દઈને તમે સાંભળો, તમે સાંભળો. Bho Bho Bhavyalokā Tha Hi Bharatairāvata Vidēhasambhavānām Samastatirthankrtām Janmanyāsanaprakampānantaramavadhinā Vijñāya Saudharmādhipatih Sughoṣāghantācālanāntaram Sakala Sakkāsurāsurēndraih Sara Samāgatya Savinayamarhadbhattārakam Gphitvā, Gatvā Kanakādriśộngē a Vihita janmābhişēkan śāntamudghõşayati, Yathā Tatõhm "Krtānukāramiti Křtvā" "Mahājano Yēna Gatah Sa Panthā." Iti Bhavyajanaih Saha Samētya Snātrapithe Snātram Vidhāya śāntimudghoṣayāmi, Tatpūjāyātrāsnātrādi- mahotsavānantaramiti Krvā, Karm Dattvā Niśamyatām Niśamyatām Svānā!
JAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
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AHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHA!
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O you Exalted ones! Like the lord of the gods, who, at the time of the birth of all the Tirthankara lords who are born in this world of the mortals, the land of Bharata, the land of Airavata and the land of Mahavideha, upon his seat being shaken, coming to know (of the birth of the lord) through intuition, the first lord of the world of gods named Saudharma, causing the bell called Sughosa to be rung, and accompained by all the gods, demons and the Indras, taking the lord Arihanta into his hands, and climbing up the summit of the mount Meru, and celebrating the birth of the lord, announces the words of peace "Let there be peace! Let there be peace!", I also, realising that "One should imitate what is already done" and "That is the right path which is beaten by the great people", joining hands with the exalted souls to perform the Snatra on the dais meant for reciting the Snatra, proclaim peace. So you are requested again and again to listen patiently, after performing the worship, pilgrimage and the celebration called Snatra etc.
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KAKAKAKAKAKAKILALLAKLAKALAHAKUAIKAKAKAKARI
ॐ पुण्याहं पुण्याहं, प्रीयन्तां प्रीयन्ताम्, भगवन्तोर्हन्तः, सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोकमहितास्त्रिलोकपूज्यास्त्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योतकराः ।। ૐ ઋષમ-નિત-રમવ-મિનંદન-સુમતિ-
પપ્રમसुपार्श्व-चंद्रप्रभ-सुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्य-विमलઅનંત-ધર્મ-શાન્તિ-યુ-આર-મ7િ-મુનિસુવ્રત-ન-મपार्श्व-वर्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु સ્વણિી 11.
આજનો દિવસ ઘણો જ પવિત્ર છે. ઘણો જ પવિત્ર છે. પ્રસન્ન થાઓ, પ્રસન્ન થાઓ, અરિહંત તીર્થકર ભગવન્તો સર્વજ્ઞ છે. સર્વદર્શી છે. ત્રણલોકના નાથ છે. ત્રણે લોક વડે પૂજાયા છે. ત્રણે લોકોને પૂજ્ય છે. ત્રણે લોકના સ્વામી છે અને ત્રણે લોકમાં પ્રકાશ કરનારા
JANAAAAAAAAWWAA LALAKAWAKAKAKAKAL
તથા શ્રી ઋષભદેવ, અજિતનાથ, સંભવનાથ, અભિનંદન સ્વામી, સુમતિનાથ, પદ્મપ્રભસ્વામી, સુપાર્શ્વનાથ, ચંદ્રપ્રભસ્વામી, સુવિધિનાથ, શીતળનાથ, શ્રેયાંસનાથ, વાસુપૂજ્ય સ્વામી, વિમલનાથ, અનંતનાથ, ધર્મનાથ, શાન્તિનાથ, કુંથુનાથ, અરનાથ, મલ્લિનાથ, મુનિસુવ્રતસ્વામી, નમિનાથ, નેમિનાથ પાર્શ્વનાથ અને વર્ધમાન સ્વામી સુધીના શાન્ત સ્વભાવવાળા તીર્થકર ભગવન્તો સર્વત્ર શાન્તિ કરનારા થજો. શાન્તિ કરનારા થજો. ||
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SALAAAAAA
Om Punyāham Punyāham, Priyantām Priyantām, Bhagavantörhantaḥ, Sarvajñāḥ Sarvadarśinastrilokanāthāstrilõkamahitāstrilokapūjyāstrilokēśvarāstriloködyōtakarāḥ | Om Rşabha-Ajita-Sambhava-AbhinandanaSumati-Padmaprabha-Supārsva-CandraprabhaSuvidhi-sitala-Śrēyāmsa-Vāsupujya-VimalaAnanta-Dharma-śānti-Kunthu-Ara-MalliMunisuvrata-Nami-Nēmi-Pārsva-Vadhamānānta Jināḥ śāntān śāntikarā Bhavantu Svāhā ll Today is a great holy day. Be happy, be habbpy. The Lord Arihanta is Omniscient; he perceives everything. He is the lord of three worlds. Every one from three worlds worsbips him. He is worthy of worship from them. He enlightens the three worlds. Let the lords Rushabhdeva, Ajitanatha, Sambhavanatha, Abhinandana Swami, Sumatinatha, Padmaprabha Swami, Suparsvanatha, Candraprabha Swami, Suvidhinatha, Shitalnath, Sreyansanatha, Vasupujya Swami, Vimalnatha, Anantanatha, Dharmanatha, Shantinatha, Kunthunatha, Aranatha, Mullinatha, Muni Suvrata Swami, Naminatha, Neminatha, Parsvanatha and Vardhamana Swami, spreid peace everywhere. Il
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MALAKALIKALKULAKLAMLAKALALALAMAMAKAILAKLAKANG
ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजयदुर्भिक्षकान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा ।।
ૐ શ્રીં શ્રી વૃતિ-મતિ-વર્તિ-પત્તિ-વૃદ્ધિ-ત્ની-મેઘાविद्यासाधन-प्रवेश-निवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः ।। ॐ रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृंखला, वज्रांकुशी-अप्रतिचक्रा-पुरुषदत्ता-काली-महाकाली-गौरीगान्धारी-सर्वास्त्रा-महाज्वाला-मानवी-वैरुट्या-अच्छुप्तामानसी-महामानसी षोडश विद्यादेव्यो रक्षन्तु वो नित्यं વાણા II.
તથા મુનિઓમાં શ્રેષ્ઠ એવા સાધુસંતો શત્રુના વિજય કાળે, દુકાળના અવસરે, જંગલમાં, અને ભયંકર માર્ગોમાં અમારૂં હંમેશાં રક્ષણ કરો, રક્ષણ કરો. તથા ધીરજ, મતિ, કીર્તિ, કાન્તિ, બુદ્ધિ, લક્ષ્મી, તાર્કિક શક્તિ અને વિદ્યાદિની સાધનામાં પ્રવેશ કરતા તથા સાધનામાં બેસતાં સારી રીતે ગ્રહણ કરાયું છે. નામ જેઓનું એવા તે જિનેશ્વર ભગવન્તો જય પામો જય પામો. તથા રોહિણી, પ્રજ્ઞપ્તિ, વજશૃંખલા, વજાંકુશી, અપ્રતિચક્રા, પુરુષદત્તા, કાલી, મહાકાલી, ગૌરી, ગાન્ધારી, સર્વસ્ત્રા, મહાવાલા, માનવી, વિરુટટ્યા, અચ્છુપ્તા, માનસી, મહામાનસી, એમ સોળે વિદ્યાદેવીઓ. હંમેશાં અમારું રક્ષણ કરો, રક્ષણ કરો. | Om Munayo Munipravarā Ripuvijaya - durbhiksakāntārēşu Durgamārgēşu
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ॐ
HAHAHAHAH
HAHAHAHAHA
HAHAHAHAHA
Rakṣantō Võ Nityam Svāhā || Om Hrim Śrim Dhṛtimatik irtikāntibuddhilakṣmimēdhāvidyāsādhanapravēśa- nivēsanēṣu sugṛhitanāmānō Jayantu Tē Jinendrāḥ | Om Rōhini-Prajñapti-Vajra
śṛnkhalā-Vajrānkuśī-Apraticakrā-Purūṣa
datta-Kali-Mahakali-Gauri-Gandhari
Sarvāstrā-Mahājvālā-Mānavi-Vairutyā
Acchupta-Mānasi-Mahāmānasi-Şöḍaśa
Vidyādēvyo Rakṣantu Võ Nityam Svāhā II May the best among the monks and the saints protect us at all times, at the time of enemy victory, at the time of famine, in the forest and in the dangerous roads. Let the lord Jinas, whose name is very well recited, while embarking on the propitiation of patience, intelligence, glory, lustre, wealth, logic also knowledge etc., be victorious, be victorious. (And) May the sixteen goddesses of Learning called Rohini, Prajñapti, Vajraśṛikhalā, Vajrāǹkusi, Apraticakra, Purus adattā, Kāli, Mahākāli, Gauri, Gāndhāri, Sarvāstrā Mahājvālā, Manavi, Vairuță, Acchuptā. Mānasi, and Mahāmānasi protect us hereafter.
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KAKAKAKASAKLAMAIKAKAKAMAMAHAKAKAMAIKAK
( ॐ आचार्योपाध्याय-प्रभृति-चातुर्वर्णस्य श्रीश्रमणसंघस्य । शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु ।। ॐ ग्रहाश्चन्द्रॐ सूर्यांगारक-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनैश्चर-राहुकेतु-सहिताः નોના સોમ-યમ-વરુણ-રુવેર-વારસવાહિત્ય-
રન્ટविनायकोपेता ये चान्येपि ग्राम-नगर-क्षेत्र-देवता-दयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां, अक्षीणकोश-कोष्ठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा ।।
તથા આચાર્ય મહારાજ, અને ઉપાધ્યાયજી મહારાજ વગેરે ચારે પ્રકારના શ્રી શ્રમણસંઘની શાન્તિ થાઓ, તુષ્ટિ થાઓ, અને પુષ્ટિ થાઓ તથા ચંદ્ર, સૂર્ય, અંગારક, બુધ, બૃહસ્પતિ, શુક્ર, શનૈશ્ચર, રાહુ, કેતુથી સહિત જે જે ગ્રહો છે, તે, તથા સોમ, યમ, વરુણ અને કુબેર તથા ઈન્દ્ર, સૂર્ય, સ્કંદ અને વિનાયકાદિ સહિત જે જે લોકપાલ દેવો છે તે, તથા બીજા પણ ગામ, નગર અને ક્ષેત્રના નાયક જે જે દેવો છે તે સર્વે અમારા ઉપર ખુશ થાઓ ખુશ થાઓ. અને અમારા દેશના રાજાઓ પણ હંમેશાં અખુટ ધન ભંડાર અને અખુટ ધાન્યભંડાર વાળા થાઓ. ām Ācāryāpādhyāyaprabhịticāruviņasya Śriśramanasanghasya śāntirbhavatu Tuştirbhavatu Puştirbhavatu ||
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MAKALA WAKAAMALLAKLAMAJAKAKAKAKAKAK
Om Grahāścandrasūryāngārakabudhabrhaspatiśukraśanaiścararāhukētusahita Salokapālā Sõmayamavaruņakubēravāsavādityaskandavināyakāpētā, Yē Cānyēpi GrāmaNagaraksētradēvatādayastē. Sarvē Priyantām Priyantām. Akşinakośaköstāgārā Narapatayaśca Bhavantu Svāhā ||
Let the fourfold Jaina Sangh consisting of the Rev. Acharya, Upadhyaya, etc. attain peace, fulfilment and progress. Let the planets such as the Moon, the Sun, the Mars, the Mercury, the Jupiter, the Venus and the Saturn along with the Rahu and the Ketu as well as the different guardians of the world such as Soma, Yama, Varuna and Kubera along with Indra, Surya, Skanda, Vinayaka etc; and the other deities of village, city and region, be pleased with us; be pleased with 11s. May the kings of our country, always, possess ample treasures of wealth as well as plenty of food grains. Il
ЗАҢАШАТҚАУКАЗАКШАҢАҢАЈКАСКАЈКАКВАҢАҢАҚАҢТАЈНАКАЈКАКВАСКАНАКАЈКЕ,
MMMMMMMMMMMMMMMMM
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HAKAMA KAMAKATHAIKALLAKLAMA ALLAKLAMALAKALA
ॐ पुत्र-मित्र-भ्रातृ-कलत्र-सुहृत्-स्वजन-सम्बन्धि-बन्धुवर्गसहिता नित्यं चामोद-प्रमोदकारिणः अस्मिंश्च भूमंडलायतननिवासि-साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाणां-रोगोपसर्ग-व्याधि-दुःखदुर्भिक्ष-दौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु ।। ॐ तुष्टि-पुष्टि-ऋद्धि-वृद्धि-मांगल्योत्सवाः सदा- प्रादुर्भूतानि पापानि शाम्यन्तु दुरितानि, शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु स्वाहा ।।
તથા પુત્ર, મિત્ર, ભાઈ, પત્ની, સજ્જન અને પોતાના કુટુંબીઓ સંબંધી મિત્ર વર્ગ સહિત સર્વ મનુષ્યો હંમેશાં આનંદ-પ્રમોદ કરનારા થજો. આ પૃથ્વી મંડલ ઉપર નિવાસ કરનારા સાધુ, સાધ્વી, શ્રાવક અને શ્રાવિકાઓના રોગ, ઉપસર્ગ, વ્યાધિ, દુઃખ, દુકાળ અને માનસિક દુષ્ટ વિચારોના ઉપશમન માટે શાન્તિ થાઓ, શાન્તિ થાઓ. તથા તુષ્ટિ, પુષ્ટિ, ઋધ્ધિ, વૃધ્ધિ અને મંગલભૂત એવા ઉત્સવો હંમેશાં થજો. પાપો શાન્ત થજો. દુઃખો અને શત્રુઓ અવળા મુખવાલા થજો. |
Om Putramitrabhrātņkalatrasuhịtsvajanasambandhibandhuvargasahită Nityam cāmõda-pramodakāriņaḥ Asmiśca Bhūmandalā-yatananivāsisādhusādhviśrāvakaśrāvikāņām Rõgõpasarga vyādhi-duḥkha
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MAKAKAKAKILALLAKLAKLAKALALALALALIKLAMAJKAMAKA
durbhiksa - daurmanasyöpaśamanāya śāntirbhavatu 11 Om Tustipuştirdhdhivrdhdhimāngalyotsavāḥ Sadā Prādurbhūtāni Pāpani Śāmyantu Duritāni śatravah Parārmukhā Bhavantu Svāhā ll
Let all the people, with their families and friends experience joy and happiness all the time. Let there be peace for the pacification of evil thoughts of the mind as well as of famine, misery, troubles and diseases of the laymen. Let there be festivals which mark auspiciousness, satisfaction, progress, prosperity and abundance. Let the sins subside. Let miseries and enemies turn their faces away (from us).
JAWARAWAKAKAWAAAAAAAALAAAAL
KVVV Y8VX1XXXX
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KAMAMLAKAKAKAMALAKAKALLAKLAMA KAMAKAKAKO
श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश, - मुकुटाभ्यर्चिताये ।।१।। शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान्, शान्तिं दिशतु मे गुरुः । शान्तिरेव सदा तेषां येषां शान्ति गुहे गृहे ।।२।।
ત્રણે લોકની શાન્તિને કરનારા, તથા ઈન્દ્રોના મુકુટ વડે પૂજાયા છે ચરણો જેના એવા શ્રી શાન્તિનાથ ભગવાનને અમારા નમસ્કાર હો. તથા શાન્તિને કરનારા, લક્ષ્મીવાળા, અને મારા ધર્મગુરૂ એવા શ્રી શાન્તિનાથ ભગવાન મને શાન્તિ દેખાડો, તથા હંમેશાં તેઓને શાન્તિ થજો કે જે ઓનાં ઘરે ઘરે આ શાન્તિપાઠ ભણાય છે. Śrimatē śāntināthāya Namaḥ śāntividhāyinē I Trailökyasyamarādhisa, Mukuțābhyarcitānghrayē 11111 śāntih śāntikaraḥ śrīmān, śānti Diśatu Mē Guruḥ 1 śāntirēva Sadā Tēsām Yēsām śāntir Grhē Grhē 11211 May our obeisance be to Lord Shantinatha, who has been worshipped by the lord Indras and who brings penle the three worlds. May lord Shantinatha, who is a peace maker and welathy by the virtue of the soul and who is my master, show me peace. Let those people have peace at whose houses this peaceful (chart) is recited.
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૩ગૃષ્ટ-રિષ્ટન્દુષ્ટ-પ્રતિ-યુવપ્ન-નિમિત્તાતિઃ | संपादित-हितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ।।३।। श्री संघ-जगज्जनपद-राजाधिप-राजसन्निवेशानाम् । गोष्ठिक-पुरमुख्याणां, व्याहरणैाहरेच्छान्तिम् ।।४।।
અવળાં (દુઃખદાયી) નક્ષત્રો હોય, દુષ્ટ ગ્રહોની ગતિ હોય, દુષ્ટ સ્વપ્નો આવ્યાં હોય તથા ખરાબ નિમિત્તાદિ થયાં હોય ત્યારે પ્રાપ્ત થયું છે હિત અને સંપત્તિ જેનાથી એવું શ્રી શાન્તિનાથ ભગવાનનું નામ ગ્રહણ જ જય પામે છે. શ્રી સંઘ, જગદ્વર્તી દેશો, મહારાજાઓ, રાજાનાં રહેઠાણો, ધર્મસભાના સભ્યો તથા નગરના મુખ્ય મનુષ્યોનાં નામ લેવા પૂર્વક શાન્તિની ઉદ્ઘોષણા કરવી. તે આ પ્રમાણે – Unmrsta-rista-dusta-grahagati-duhsvapnadurnimittadih | Sampadita-hitasampannamagrahanam Jyati śāntēh 11311 Śrisangha - jagajjanapada - rājādhiparājasannivēśānāmi Gostikapuramukhyāņām, vyāharaṇai rvyāharē cchāntim 11 4 ||| When the stars are asdverse (painful), the planets are evil, dreams are bad and things are not good, recite and chant the name of Lord Shantinatha. This will secure welfare and prosperity and will achieve victory. Recite Shanti (peace) stora by taking the names of the Jaina Sangha, all the countries, the emperor, palaces, road, crossings, citizens and the mayor of the city, as follows -
MMMMMMMMMMMM
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NAKAKAWLAWAKAKAKAKAALAMUALAAM
श्रीश्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु, श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु | श्रीराजाधिपानां शान्तिर्भवतु, . श्रीराजसन्निवेशानां शान्तिर्भवतु | श्रीगोष्ठिकानां शान्तिर्भवतु, श्रीपौरमुख्याणां शान्तिर्भवतु | श्रीपौरजनस्य शान्तिर्भवतु, श्रीब्रह्मलोकरय शान्तिर्भवतु || ॐ स्वाहा, ॐ स्वाहा, ॐ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा ।।
MMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMM
શ્રી શ્રમણ સંઘની શાન્તિ થાઓ, શ્રી સકળ દેશોની શાન્તિ થાઓ, શ્રી મહારાજાઓની શાન્તિ થાઓ, શ્રી રાજાના રહેઠાણોનાં શાન્તિ થાઓ, શ્રી ધર્મસભાના સભ્યોને શાન્તિ થાઓ, શ્રી નગરના મુખ્ય માણસોને શાન્તિ થાઓ, શ્રીનગરના સામાન્ય માણસોને શાન્તિ થાઓ. તથા શ્રી સમસ્ત બ્રહ્મલોકને શાન્તિ થાઓ. (बाडीन धा मंत्राक्षरी छ).
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AMAKAILAKLAKLAMALAIKUWA A
WAMUKAA!
Śriśramanasanghasya śāntirbhavatu, Śri- janapadānām śāntirbhavatu 1 Śrirājādhipānām śāntirbhavatu, Śri- rājasannivēśānām śāntirbhavatu 1 Śrigöstikānām śāntirbhavatu, Śri - pauramukhyāņām śāntirbhavatu 1 Śripaurajanasya śāntirbhavatu, Śri-brahmalūkasya śāntirbhavatu 1 Om Svāhā, ām Svāhā, ām Śri-Pārsvanāthāya Svāhā ll
UAAAAAAAAAAAAAAAAA!
Let there be peace for the Jaina Sangha, let there be peace for all the countries, in the world let there be peace for the emperors, let there be peace for the kings' houses, let there be peace at the cross roads and the market places, let there be peace for the leading citizens as well as the common men and let ther be peace for the celestial worlds. (The rest are the words for chanting).
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एषा शान्तिः प्रतिष्ठा - यात्रा - स्नात्राद्यवसानेषु शान्तिकलशं ગૃહીત્યા, મ-ચંદ્રન-પુરા-ધૂપવાસ-સુમાંનતિसमेतः स्नात्रचतुष्किकायां, श्री संघसमेतः, शुचि-शुचिवपुः- पुष्प-वस्त्र- चंदनाभरणालंकृतः पुष्पमालां कंठे कृत्वा, शान्तिमुद्घोषयित्वा शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यमिति ।।
તીર્થંક૨ પ૨માત્માની પ્રતિષ્ઠાના પ્રસંગે, તીર્થયાત્રાદિના પ્રસંગે તથા સ્નાત્રાદિ ભણાવ્યા પછી અંતે શાન્તિકલશ હાથમાં લઈને, કેશર, ચંદન, કપુર અને અગરૂધૂપની સુગંધોથી વાસિત એવી ઉત્તમ કુસુમાંજલિ સહિત થઈને સ્નાત્ર ભણાવવાની પીઠિકા સામે (બેસીને) શ્રી સંઘ સાથે પવિત્રમાં પવિત્ર શરીર વાળા થઈને, ઉત્તમ પુષ્પો, વસ્ત્રો, ચંદન અને અલંકારોથી અલંકૃત થઈને ગળામાં પુષ્પોની માલા નાખીને આ શાન્તિપાઠ બોલવો. તથા શાન્તિની ઉદ્ઘોષણા કરીને માથા ઉપર આ શાન્તિકળશનું પાણી નાખવું.
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KAMAKAILASKIAIKAKAHAKAMAMLANANLATAKAIKALAILA
Ēşā Sāntih Pratisthā Yātrā Snātrādyavasānēșu śāntikalaśam Gļhitvā, Kunkamacandanakarpurāgarudhūpavāsakusumāñjalisamētaḥ Snātracatuskikāyām, Śrisanghasamētaan, Suci Suci Vapuh Puspavastracandanābharaṇālankrtaḥ Puspamālām Kanthē Krtvā, śāntimudghosayitvā, śāntipāniyam Mastakē Dātavyamiti
On the occasion of the consecration ceremony of Lord Tirhankara, the time of religious pilgrimage and after reciting the Snātra, Sutra, taking the pitcher in hands at the end of the ceremony, taking up an excellent offering of fragrant flowers with the scents of kumkum and sandal paste, camphor and incense of Agaru, sitting and reciting the Snātra, with pure mind and with the Jain Sangha, being decorated with exellent flowers, clothes, sandal paste and ornaments, one should recite this text for Shanti or peace. After proclaimation of peace, pour water from pitcher on statue, chanting the stotra for peace.
AAEAAAAALALALALALALALA
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नृत्यन्ति नृत्यं मणिपुष्पवर्षं, सृजन्ति गायन्ति च मंगलानि । स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मंत्रान् कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके ||१|| शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवतु लोकः ||२||
જિનેશ્વર પરમાત્માના જન્માભિષેક વખતે કલ્યાણમાં ભાગ લેનારા મનુષ્યો નાચ નાચે છે. મણિઓ અને પુષ્પોનો વરસાદ વરસાવે છે. મંગલપાઠો ગાય છે. સ્તોત્રો, ગાયનો અને મંત્રોને ભણે છે. ||૧|
સર્વ જગતનું કલ્યાણ થાઓ. પ્રાણીઓનો સમૂહ પરોપકારમાં પરાયણ થાઓ. દોષો નાશ પામો. અને લોક સર્વ ઠેકાણે સુખી 21124ì. 11211
Nṛtyanti Nṛtyam Manipuṣpavarṣam, Srjanti Gāyanti Ca Mangalāni | Stōtrāni Gōtrāni Pathanti Mantran Kalyāṇabhājō Hi Jinābhiṣēkē || 1 || Śivamastu Sarvajagataḥ Parahitaniratā Bhavantu Bhūtaganäḥ I Dōṣāḥ Prayāntu Nāśam, Sarvatra Sukhibhavantu Lōkāḥ || 2 || At the time of the birth bathing celebration of Lord Jina, the participants are dancing. They are showering gems and flowers, reciting auspicious songs, chant hymns, and recite religious texts. ||1|| May the whole world get the blessing. May all beings help each other. Let the bad deeds get destroyed and all human beings become happy. 1|2||
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अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनिवासिनी । अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा 113 11
उपसर्गाः क्षयं यान्ति च्छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ||४||
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सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ||५||
તમારા જ નગરમાં રહેવાવાળી, તીર્થંકર પરમાત્મા પ્રત્યે વાત્સલ્ય ભાવવાળી, હું કલ્યાણ કરનારી દેવી છું. અમારૂં પણ કલ્યાણ થાઓ અને તમારૂં પણ કલ્યાણ થાઓ અને સર્વ ઠેકાણે અશિવ શાન્ત થાઓ તથા કલ્યાણ જ કલ્યાણ થાઓ. ॥૩॥
જિનેશ્વર પરમાત્માને પૂજતે છતે ઉપસર્ગો ક્ષય પામે છે. વિઘ્નોની વેલડીઓ છેદાય છે અને મન પ્રસન્નતાને પામે છે. II૪
સર્વ મંગલોમાં મંગલભૂત, સર્વ કલ્યાણોનું કારણ, અને સર્વ ધર્મોમાં પ્રધાન એવું જૈનશાસન જય પામો, જય પામો. ।।૫।।
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SAMAHAKAMALAKAMALKANAMALAIKAKAHAKAKAK
Aham Titthayaramāyā, Sivādēvi Tumha Nayara Nivāsini 1 Amha Śivam Tumha Śivam, Asivõvasamam Sivambhavatu Svāhā ll 3 11 Upasargāh Ksayam Yānti Cchidyantē Vighnavallayaḥ 1 Manan Prasannatāmeti, Pujyamanējinēśvarē |14|| Sarvamangalamāngalya Sarvakalyāṇakāranam Pradhānam Sarva Dharamāṇām, Jainam Jayati Śāsanam || 5 ||
JAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
I am the goddess that brings about wefare, living in your city and affectionate towards the lord Tirthankara. May good be to us and to you, too. May inauspicious be pacified everywhere and let only auspicious preyali. 11311 When one worships the Lord Jina, troubles and obstacles vanish, the creepers of obstructions are cut asunder and the mind attains bliss. 11411 May the Jaina order, which is the highest expression of goodness, auspiciousness and which is the best faith among faiths, remain victorious. 11511
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________________ संकलनकर्ताः प्रोफेसर यू. आरडागा 'शत्रुझय नन्दनवन नगर, जोधपुर मोबाइल: 94141.28686