________________
KAMAKAKAKAKAKAKALLAKLAKAILAKLAKAKAKAKAK
शारद च। नागेन्द्रैरिन्द्र चंद्रैर्मनुज मुनिगणैः संस्तुता या च देवी सा कल्याणानि देवी मम मनसि सद शारदे। देवि। तिष्ठ॥
ॐ ह्रीं अज्ञानोदधिशोषिण्यै, ज्ञानदायै, नर्मदायै, गंगायै,
सीतायै, वागीश्वर्यै, धृत्यै, ऍकारमस्तकायै, प्रीत्यै, हाँकारवदनायै, हूँत्यै, क्लींकारहृदयायै || “श्री सरस्वत्यै-स्वाहा
जनतान्धकार-हरणार्क संनिभेगुणसंतति, प्रथनवाक् समुच्चये श्रुतदेवतेऽत्र जिनरा पूजने, कुमतीविनाशाय कुरुष्व वांछितम्।
MMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMM
ॐ ह्रीँ श्क्त्यै, अष्टबीजायै, निरक्षरायै, निरामयाय,
जगत्स्थायै, निःप्रपंचायै, चंचलायै चलाये, निरूत्पन्नायै, समुत्पन्नायै, अनंतायै, गगनोपमायै, . भगवत्यै, वाग्देतायै, वीणापुस्तक मौक्तिकाक्षवलय श्वेतांजमंडितकरायै, शशधरनिकर, गौरिहंसवाहनायै॥ "श्री सरस्वत्यै-स्वाहा"
वस्त्रपूजा- शारदा शारदाभोज, वंदना वंदनाबुजे, सर्वदा सर्वदास्माकं, सन्निधिं संन्निधिं क्रियात्॥
R
RER 39 TER
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org