Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan Author(s): Publisher: ZZZ UnknownPage 40
________________ KARARLAKLAKALLAKLAHALLAKAKAKAKAKAKAIANKARA Minm जंगमं च संसारे संसृतानां तव चरणयुगं सर्वकालं नरायणाम्। अव्यक्तव्यक्तरूपे। प्रणतनखरे। ब्रह्मरूपे। स्वरूपे। ऐक्ली . योगिगम्ये। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।। ॐ ही पद्मिन्यै, लक्ष्म्यै, पंकजवासिन्यै, चामुण्डायै, खेचर्ये, शांतायै, हुंकारायै, चंद्रशेखर्य, वाराहयै, विजयायै, अंतद्धायै कम्यै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा।। सम्पूर्णात्यन्तशोभैः शशधरधवलै रासलावण्यभूतैरम्यैर्व्यक्तैश्च कातैर्निजकरनिकरै श्चंन्द्रिकाकारभासैः। अस्माकीनं नितान्तोदित मनुदिवसं कल्भषं क्षालयंति, श्रीँ श्रीँ छू मंत्ररूपे। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।। REVIRVAIVARAVINATAVANILIVARIKAAMVALNIVARVIHVARMANAVARTA ॐ ह्रीं हत्य, सुरेश्वर्यै चंद्राननायै, जगधात्र्यै, वीणाम्बुजकर द्वयायै, सुभगायै, सर्वगायै, स्वाहा, जम्भीन्यै, स्तंभिन्यै, ईश्वरायै, काल्यै। श्री सरस्वत्यै। स्वाहा।। भास्वत्पद्मासनस्थे। जिनमुखनिरते। पद्महस्ते। प्रशस्ते। जाँ जी नँ ज्रः पवित्रे। हर हर दुरितं दुष्टसंजुष्ट चेष्टम्। वाचालाभिः स्वशक्त्या R Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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