Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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LAKAVAKLAKALIKLAMAKLASAJLAKUAIKALLAKAJIKA LAIKA
हा पक्षी बीजगर्भे! सुखररमणी बंदितेऽनेक रूपे। कोपं वं झं विधेयं धरितधरिवरे। योगिनां योगगम्ये। हँ हँ सः स्वर्ग राजैः प्रतिदिन नमिते। प्रस्तुता लापपाये दैत्येन्द्रायमाने। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।।
ॐ हीं मागधिप्रियाय, सर्वेश्वय, महागोर्ये, शांकर्यै,
भक्तवत्सलायै, रौद्रयै चाण्डुलिन्यै, चण्डयै, भैरव्यै, जयायै, गायत्रयै। श्री सरस्वतयै स्वाहा।।
दैत्यैर्दत्यारिनाथै नमित पदयुगे। भक्तिपूर्व त्रिसन्ध्यं, य? सिद्धेश्च नमैः रहमहमिकया देहकात्याऽतिकान्तैः। षाँ ई ॐ प्रस्फुटाभाक्षरवर मृदुना, सुस्वरेणासुरेणाऽव्यन्तं प्रोग्दीयमाने। मम मनसि सदा शारदे। देवि। तिष्ठ।।
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ॐ ह्रीँ चतुर्बाहवे, कोमार्यै, परमेश्वर्यै, देवमात्रे,
अक्षयायै, नित्यायै, त्रिपुरभेरवै, त्रैलोक्यस्वामिन्यै, देव्यै, मांकायै, कारूण्य सूत्रिण्यै, शूलिन्यै। श्री सरस्वत्यै स्वाहा।।
(४) क्षी क्षीहूं ध्येयरूपे। हन विषम विष, स्थावरं
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