Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 38
________________ KAMAKAILALIKALLAKLAKLAJIKLARIAKANLAHLAKLAJMLAJMLAJTAK तनुभृतां जडतामपहृत्य या, विबुधतां ददते मुदिताऽचैया। मतिमतां जननीति मत्ताऽत्र सा, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ॥ सकलशास्त्रपयोनिधिनौः परा, विशदकीर्ति धराऽगितं मोहरा। जिनवरानन पद्मनिवासिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती॥ इत्थं श्री श्रुतदेवता भगवती विद्वज्जनानां प्रसूः। सम्यग्ज्ञान वर प्रदा धनतमोनिर्नाशिनी देहिनाम्॥ श्रेयः श्री वरदायिनी सुविधिना संपूजिता संस्तुता। दुष्कर्माण्यपहृदय में विद्धतां सम्यक श्रुतं सर्वदा॥ पूजन: नर्मोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः JALALALALALALALALALWWL एँ ही श्री मन्त्ररूपे विबुध जननुते! देवदेवेन्द्र वन्द्ये! चं चं चं चंद्रावदाते। क्षपितकलिमले। हारनी हारगौरे। भीमे। भीमाट्टहासे। भवभय हरणे। भैरवे। भीमरूपे। हाँ हाँ हूँ कार नादे। मम मनसि सदा, शारदे देवि तिष्ठ।। ॐ हीं घिषणायै, घीर्ये, मत्यै, मेघायै, वाचे, विभावायै, सरस्वत्यै, गिरे वाण्यै, भारत्यै, भाषायै ब्राह्मण्यै, श्री सरस्वत्यै गंध, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फालादि यजमहे स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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