Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan Author(s): Publisher: ZZZ UnknownPage 18
________________ KAMALLAKLAKALLAJAK LAMA LAKUAIKALLAKASKLARARAKA शुद्धि की क्रिया करना-इससे अशुभ विचारों का शमन होकर चित्त की एकाग्रता बढ़ती है। (ऊ) मंत्र स्नानॐ अमले विमले सर्वतीर्थजले पः प: पां पां वा वां अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा। दोनों हाथों से मंत्र स्नान की चेष्टा करना। सु (ए) कल्मष दहन - ॐ विद्युत स्फुलिंगे महाविद्ये सर्वकल्मषं दह दह स्वाहा। दोनों हाथों से भुजाओं को स्पर्श करते हुए स्वस्तिक मुद्रा करना। मन में ऐसा चिंतवन करना कि कलुषित विचारों का शमन हो रहा है। WAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA! (ऐ) बज्रपंजर-आत्मरक्षा स्तोत्र : ॐ परमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकम् आत्मरक्षाकरं वज-पंजराय स्मराम्यहम् ॐ णमो अरिहंताणं, शिरस्क शिरसि स्थितम् (मस्तक पर मजबूत टोपू पहना हुआ है ऐसी कल्पना हाथों से करना) MMMMMMMMMMMMMMMMM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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