Book Title: 24 Tirthankar Saraswatidevi Pramukh Tirth Dev Devi Mahapoojan Author(s): Publisher: ZZZ UnknownPage 20
________________ KALAKALAKALALALALALALALALALLAKLAKAKLAR G अग्नि भरी खाई की कल्पना करना) स्वाहान्तं च पद ज्ञेयं, पढम हवइ मंगलं, वप्रोपरि वज्रमयं, पिधान देह-रक्षणे। महा प्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव नाशिनी, परमेष्ठि पदोदभूता, कथिता पूर्वसूरिभिः॥ यश्चैनं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि पदैः सदा, तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥ विघ्ननाशनार्थे छोटिकान्यासः (पूजन विधि के दौरान विभिन्न दिशाओं में आकाश में गुजरती हुई शक्तियों तथा वातावरण में किसी प्रकार का विध्न उपस्थित न हो-इसके लिये छोटिका क्रिया) JAWAAWWAAAAAAAAAAAAAAAAAAL १ अ आ - पूर्व दिशा में ____ or २ ३ ४ इ ५ इ उ ए ओ ई - दक्षिण दिशा में ऊ - पश्चिम दिशा में ऐ - उत्तर दिशा में औ - उर्ध्व दिशा में 8381 ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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