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થી ચોવિજયજી
જૈન ગ્રંથમાળા FREETसाहेन, Iपनगर.
ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨
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300४८४५
जैन महामंडल
का
१८६६ से १९४७ तक
का
संक्षिप्त इतिहास
- अजित प्रसाद, एमक पक, गलगल वो
रचयिता तथा संग्रह-कर्ता अजित प्रसाद, एम० ए०, एल-एल बी०
अजित अाश्रम, लखनऊ
भारत जैन महामंडल, वर्धा
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भारत जैन महामण्डल
संक्षिप्त इतिहास १८६९-१६४५.
लेखक तथा संग्रह कर्ता अजितप्रसाद, एम. ए., एल-एल. बी.
ऐडवोकेट हाई कोर्ट पूर्व-जज-हाई कोर्ट वीकानेर सम्पादक जैन गजेंट (अंग्रेज़ी ) संयोजक सेंट्रल जैन पबलिशिंग हाउस
अजिताश्रम, लखनऊ
प्रकाशक
भारत जैन महामण्डल कार्यालय वर्धा
वीर सम्वत् २४७४
सन् १९४७
चतुर्थ संस्करण १००० ।
[ मूल्य १)
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मुद्रकबी० एल० वारश्नी, वारश्नी प्रेस, कटरा-इलाहाबाद
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श्री० जैन धर्मभूषण ब्रह्मचारी
शीतल प्रसाद कलकत्ता अधिवेशन १६१७ के सभाध्यक्ष
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जैन धर्म भूषण, जैन धर्म दिवाकर
अदितीय धर्म प्रचारक, समाचोद्धारक ग्रन्थकर्ता, उपदेशक, पत्र-सम्पादक सप्तम प्रतिमाधारी, अथक परिश्रमी शान्त परिणामी, परीसह-जयी ।
कलकत्ता अधिवेशन १६१७ के सभाध्यक्ष स्वर्गीय ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद
चरण कमल
सविनय समर्पित
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भारत जैन महामण्डल
सन् १८८४ में इंडियन नैशनल कांग्रेस की स्थापना हुई। उसी समय से भारत में राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना की जागृति का प्रारम्भ हुआ। उसी जमाने में सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ कालिज की नींव डाली । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज संयोजित किया ।
दस बरस पीछे १८६५ में मुरादाबाद निवासी पं० चुन्नीलाल और मुन्शी मुकुन्दलाल ने, बाबू सूरजभान वकील देववन्द, श्री बनारसीदास, एम० ए० हेड मास्ट रलश्कर कालिज ग्वालियर, और कुछ अन्य विद्वानों के सहयोग से, स्वर्गीय सेठ लक्ष्मणदास जी सी० आई० ई० के संरक्षण में दिगम्बर जैन महासभा की स्थापना मथुरा में की।
महासभा का वार्षिक अधिवेशन बरसों तक मथुरा में सेठ लक्ष्मणदासजी के सभापतित्व में होता रहा; और उसका दफ्तर भी वहाँ ही रहा । चार पांच बरस बाद, कुछ संकुचित विचार के लोग, स्वार्थ से प्रेरित होकर, श्रावश्यकीय जाति सुधार और धर्मप्रचार के प्रस्तावों में विघ्नबाधा डालने लगे । महासभा के नाम के साथ दिगम्बर शब्द जुड़ा होने से साम्प्रदायिकता तो स्पष्टतः थी ही । अतः महासभा के पाँचवें अधिवेशन में, जो १८६६ में हुश्रा, कुछ उदार-चित्त तथा दूर-दर्शी युवकों ने Jain Youngmen's Association of India नामक संस्था का निर्माण किया । श्वेताम्बर कोफरेन्स की स्थापना उसके पीछे
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( २ )
उसके उद्देश्य निम्नलिखित थे
( क ) जैन मात्र में पारस्परिक एकता और सहयोग की वृद्धि
करना ।
( ख ) जैन जाति में सामाजिक सुधार का प्रचार, जैन सिद्धान्त का ज्ञान तथा धर्माचरण की प्रवृत्ति जागृत करना ।
(ग) अंग्रेजी शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन व मनन की उत्तेजना |
[ष] प्रभावशाली सज्जनों की सहायता से जैन युवकों को व्यापार में लगाना ।
प्रथम अधिवेशन
रायबहादुर सुलतानसिंह, रईस दिल्ली, ऐसोसिएशन के प्रथम अध्यक्ष थे श्रीयुत बाबुलाल वकील मुरादाबाद, सुलतानसिंह वकील मेरठ प्रथम मंत्री थे । श्वेताम्बर और दिगम्बर श्राम्नाय के जैन, सदस्य श्रेणी में थे । प्रकाशित वक्तव्य में स्पष्टतः यह घोषित कर दिया गया था कि जाति या श्राम्नाय का मेदभाव गौण करके जैन मात्र में पारस्परिक सम्बन्ध का प्रचार करना ऐसोसिएशन का उद्देश्य है । सदस्य संख्या शीघ्र ही एक सौ के करीब हो गई थी ।
दूसरा अधिवेशन
ऐसोसियेशन का दूसरा अधिवेशन ३ दिसम्बर १८६६ को मेरठ में रायसाहब फूलचन्दराय एक्जेक्युटिव इंजीनियर के सभापतित्व में हुया । जैन अनाथालय की स्थापना का प्रस्ताव स्थिर किया गया । अनाथालय मेरठ में जल्दी ही खोल दिया गया। इसका श्रेय श्रधिकतर श्रीयुत सुलतानसिंहजी वकील को था ।
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राय साहब फूल चन्द राय,
बो० ए०, सी० ई० मेरठ अधिवेशन १८६६ के
सभाध्यक्ष
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तीसरा अधिवेशन अक्टूबर १६०० में तीसरा अधिवेशन मथुरा में सेठ द्वारिकादासजी के सभापतित्व में हुआ। नीचे लिखे कार्य करने का निश्चय किया गया । (१) प्रत्येक जैन को सदस्यता का अधिकार है; चाहे वह अंग्रेजी
भाषा जानता हो या नहीं। (२) ऐसोसियेशन के मुखपत्र रूप, हिन्दी जैनगजट का क्रोडपत्र
अंग्रेजी में प्रकाशित हो। (३) काम करने की इच्छा रखनेवाले शिक्षित जैनियों की सूची
बनाई जावे। (४) जैनधर्म के मुख्य सिद्धान्त और मान्यता स्पष्ट सरल भाषा
में पुस्तकाकार प्रकाशित किये जावें। (५) समस्त जीव दयाप्रचारक और मद्य-निषेधक संस्थाओं से
___ सहयोग और पत्र-व्यवहार किया जावे ।
(६) भारतीय सरकार को लिखा जाय कि समस्त गणना-प्रधान संग्रह-पुस्तकों में जैनियों के लिये अलग स्तंभ बनाया जाय ।
ऊपर लिखे प्रस्तावों पर काम होने लगा। सदस्य संख्या २५० हो गई । कुछ परिजन-देहावसान के कारण श्रीयुत सुलतानसिंहजी को
और वकालत का काम बढ़ जाने से बाबूलाल जी को, अवकाश लेना पड़ा । मास्टर चेतनदासजी ने मंत्रित्व का भार स्वीकार किया। जैन इतिहास सोसाइटो का स्थापना हो गई। उसके मन्त्री श्रीयुत बनारसी दास M. A. हेडमास्टर लश्कर कॉलेज ग्वालियर ने जैन धर्म की प्राचीनता के प्रमाण देकर एक निबन्ध पुस्तकाकार प्रकाशित किया ।
चौथा अधिवेशन अक्टूबर १९०२ में चौथा अधिवेशन फिर मथुरा में सेठ द्वारिकादासनी, सुपुत्र रामा लक्ष्मणदास जी, के सभापतित्व में सम्पन्न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हुा । कलकत्ता निवासी पं० बलदेवदासजी ने मंगलाचरण किया। इस अधिवेशन में पारा से सच्चे दानवीर, समाजसेवक, धर्मप्रचारक बाबू देवकुमारची, कानपुर से बाबू नवलकिशोर वकील, ग्वालियर से श्रीयुत बनारसीदास बी, लखनऊ से श्री सीतलप्रसादबी (ब्रह्मचारी), गोकुलचन्दराय वकील तथा बाबू देवीप्रसाद (मेरे पिताजी) पधारे थे। निम्न प्रान्तीय शाखाओं की स्थापना हुई और उनके मन्त्री नियुक्त हुए।
पंजाब-हरिश्चन्द्र जी टैक्स सुपरिन्टेन्डेन्ट, लाहौर बंगाल- जैनेन्द्र किशोर बी, बारा यू. पी.- चन्दूलाल वकील, सहारनपूर मदरास-ए. दुरहस्वामी राजपूताना-मांगीलालजी, नसीराबाद सी. पी-हुकुमचन्दजी, छपारा बम्बई-श्रीयुत अन्नपा यावप्पा चौगुले, वकील बेलगाँव
बाब देवीप्रसाद बी ने प्रतिवर्ष ऐसे जैन विद्यार्थी को स्वर्णपदक "मनभावती देवी" ( मेरी मातेश्वरी) के नाम से प्रदान करने को कहा जो संस्कृत भाषा के साथ मैट्रीकुलेशन परीक्षा में सर्वोच्च नम्बरों से उचीर्ण हो । यह स्वर्णपदक कई वर्ष तक दिया गया। फिर पदक देने की प्रवृत्ति ही बन्द हो गई।
इसी अधिवेशन में जैननयुवक स्वर्गीय श्रीयुत बन्चूलालची इलाहाबाद निवासी के स्मारक रूप ऐसा ही स्वर्णपदक, ऐसी ही शर्त से . दिये जाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुश्रा, और उसके लिये ५०)का चिट्ठा हो गया । यह पदक भी कुछ वर्ष तक ही दिया गया। "विधवा सहायक कोष" की स्थापना भी इसी अवसर पर हुई।
भीयुत बाबू देवकुमार, किरोडीचन्द, जैनेन्द्र किशोरची के प्रयत्न से प्रारा में नैन सिद्धान्त भवन और बनारस में स्थाबाद महाविद्यालय कायम हुए।
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पाँचवाँ अधिवेशन पाँचवाँ अधिवेशन दिल्ली निवासी सुलतानसिंहबी के सभापतित्व में दिसम्बर १९०३ में बड़े समारोह के साथ हिसार में सम्पन्न हुश्रा । इसकी प्रायोजना स्वर्गीय बाबू नियामतसिंह ने की थी। प्रवेशद्वार पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था
नकारा धर्म का बजता है, आए जिसका बी चाहे । ____ सदाकत जैनमत की श्रावमाए जिसका जो चाहे ॥
आर्य समाजी भाइयों से खुले दिल से सम्मान-पूर्वक प्रश्नोचर होते रहे। चिरंजीलालबी ने अनाथालय की आर्थिक सहायतार्य हृदय-स्पी अपील की। जिसका समुचित प्रभाव सभा पर पड़ा और अनाथालय बो ऐसोसियेशन ने मेरठ में कायम किया था हिसार में आ गया। अब वही अनाथालय दिल्ली में सफलतापूर्वक अपने निजी भवन में काम कर रहा है। श्वेताम्बर कान्फरेन्स ने सहयोग का बचन दिया!
विवाह आदि माविक तथा धार्मिक उत्सवों पर सादगी और मितन्ययता से काम लेने के प्रस्ताव किए गए।
सन १९०४ से "बैनगजट' अंग्रेजी में बगमन्दर लाल जैनी के सम्पादकत्व में स्वतन्त्र रूप से निकलने लगा । अगस्त १९०८ से जनवरी १६.६ तक भी० ए० बी० लड़े ने मदरास से सम्पादन किया । फरवरी सन् १९०६ से १६१० तक श्री सुलतानसिंह वकील मेरठ उसके सम्पादक रहे । जनवरी १६११ से मार्च १६१९ तक फिर भी जे० एल० जैनी सम्पादन करने लगे । उनके लंदन चले पाने पर १९१२ से १९१८ तक मैं सम्पादक रहा । १६१६ में वकालत का व्यवसाय छोड़ कर मैं लखनऊ से बनारस चला गया। बैनगजेट को श्रीयुत मल्लिनाथ मदरास निवासी को सौंप दिया | मैं १९३४ में फिर लखनऊ वापस हुआ,
और वैनगजेट को श्री मल्लिनाथ से वापस ले लिया । १९३४ से चरावर अब तक अपिताश्रम लखनऊ से प्रकाशित हो रहा है।
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छठा अधिवेशन छठा अधिवेशन दिगम्बर महासभा अधिवेशन के साथ-साथ अम्बाला सदर में हुआ। ऐसा महत्वपूर्ण और शानदार जल्सा पिछले कई वर्षों में नहीं हुआ था। कितनी ही भजन मंडली आई थी। उनमें सर्वोचम पार्टी हिसार के बाबू नियामतसिंह की थी। दर्शकों का समूह दिन दिन बढ़ते-बढ़ते २००० हो गया था। २६ दिसम्बर १९०४ से ऐसोसियेशन का काम प्रारम्भ हुश्रा । सभा का कार्य चलाने की सेवा मेरे सुपुर्द की गई । मैंने मौखिक भाषण में यह दिखलाने का प्रयत्न किया, कि ऐसोसियेशन और महासभा के उद्देश्य में विशेष अन्तर नहीं है । किन्तु ऐसोसियेशन का कार्य-क्षेत्र व्यापक है, महासभा का संकुचित । महासभा साम्प्रदायिक गिने चुने लोगों की मंडली है। ऐसोसियेशन का द्वार जैनमात्र के लिये खुला है । उसका अभीष्ट है कि जैन धर्म का प्रचार भारतवर्ष भर में, बल्कि समस्त संसार में किया पावे । समय की आवश्यकता है कि संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी विद्या का भी अभ्यास किया जाय। केवल संस्कृतज्ञ पंडितों में पामिक उदारता, सहिष्णुता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती, और न यह योग्यता होती है कि बैन सिद्धान्त का मर्म स्पष्ट शन्दों में जनता को समझा सकें। प्रोफेसर बियाराम गवर्नमेंट कालिज लाहौर ने प्रभावशाली व्याख्यान में साम्प्रदायिकता की गौणता दर्शाते हुए कहा कि श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी आदि जैनमात्र को वीर भगवान कथित सिद्धान्तों का दिगन्त प्रचार करना चाहिये, और अजैनों के प्रहारों से जिन धर्म की रक्षा करनी चाहिये, जो प्रायें दिन समाचार पत्रों, ऐतिहासिक पुस्तकों, साहित्यिक लेखों द्वारा होते रहते हैं। ऐसे आपातों का मुख्य कारण प्रशानोत्पन्न देष और पक्षपात है। इस प्रस्ताव का समर्थन अम्बाला निवासी श्रीयुत गोपीचंदजी प्रतिनिधि स्वेताम्बरीय सम्प्रदाय ने किया। इस सम्बन्ध में विविध व्याख्यानों से ऊपापोह किया बाकर पुस्तकाकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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साहित्य प्रकाशनार्थ कमेटो की स्थापना कर दी गई । श्री बगतप्रसाद एम० ए०, सी० आई० ई० ने मन्त्री पद स्वीकार किया।
"मनभावती" पदक ऊदेरामजी को दिया गया, जो पंजाब युनिवर्सिटी की एन्ट्रेस परीक्षा में संस्कृत भाषा के साथ प्रथम श्रेणी में उचीर्ण हुए थे। "बच्चूलाल" पदक अजमेर के मोतीलाल सरावगी को प्रदान हुअा। वह अलाहाबाद युनिवर्सिटी की एन्ट्रेस परीक्षा में संस्कृत भाषा के साथ प्रथम श्रेणी में उचीर्ण हुए थे। १०) मथुरा विद्यालय के छात्र मक्खनलाल को पुरस्कार रूप दिये गये। श्री मक्खनलाल जी अब मुरेना सिद्धांत विद्यालय के अध्यक्ष है। नन्दकिशोरजी को बी० ए० परीक्षा में संस्कृत में ऊँचे नम्बरों से उत्तीर्ण होने के उपलक्ष्य में एक विशेष पदक दिये जाने की घोषणा की गई। श्रीयुत् नन्दकिशोर बी डिप्टी कलेक्टरी की उच्च श्रेणी से पेंशन लेकर अब नहटौर जिला विजनौर में रहते हैं।
उल्लेखनीय प्रस्ताओं में न०५. इस प्रकार थादिगम्बर श्वेताम्बर समान में पारस्परिक सामाजिक व्यवहार, राबनैतिक कार्यों में सहयोग होना आवश्यक है। और अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, स्याद्वाद, कर्म सिद्धान्त आदि निर्विवाद सर्वमान्य विषयों पर सिद्धान्त काप्रकाशन होना वांछनीय है।
सातवाँ अधिवेशन
सातवाँ चल्सा भी महासभा के बल्से के साथ-साथ सहारनपुर में दिसम्बर १९०५ में सम्पन हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे दानवीर सेठ माणिकचंद जे० पी० सूरत-बम्बई वाले । अपनी शान और महत्व में यह अधिवेशन अम्बाले वाले गत वर्ष के बल्से से बहुत बढ़ा-चढ़ा
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( 5 )
लाला खूबचन्द रईस सहारनपुर ने महासभा और ऐखोलियेशन को इस अवसर पर निमन्त्रित किया था । और मेहमानों के श्रादरसत्कार, सुविधा, भोजन का समुचित प्रबन्ध किया था। हिसार से जैन अनाथालय, मथुरा से महाविद्यालय भी आया था। इसतकवाल शानदार था, रेलवे प्लैटफार्म पर ही अभिनन्दन पत्र पढ़े गये, और रेशम पर छपे हुए उनको मेट किये गये । प्लैटफार्म पर लाल फर्श बिछा था, हाथियों पर सभापति का जुलूस शहर में से निकला, घोड़े, रथ, फिटन, गाड़ियाँ, और अँग्रेजी बैंड बाजा श्रेणीवद्ध साथ में था । सभापति के निवास के लिये जैन बाग में प्रबन्ध किया गया था ।
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इस अवसर पर जैनभूषण रायसाहेब फूलचंद राय इंजिनियर ने दो बरस तक १००) मासिक छात्रवृत्ति जैन युवक को देने की घोषणा की, जो जापान जाकर श्रौद्योगिक शिक्षा ग्रहण करे । खेद के साथ लिखना पड़ता है कि किसी भी जैन युवक ने इस घोषणा से लाभ नहीं लिया । राय साहेब फूलचंदजी की छात्रवृत्ति घोषणा की सराहना करके जैन समाज ने समुद्र यात्रा का मार्ग खोल दिया ।
स्त्री शिक्षा प्रचारार्थ महिला समाज ने उदारतया दान दिया । पुरुष समाज में व्याख्यान १०००) पाँच गरीब जैनमहाशयों ने पदक और
पुरुषों ने स्त्री सभा में, और महिलाओं ने दिये । नेमीदासची वकील सहारनपुर ने कन्याओं के विवाहार्थ प्रदान किये । ४० छात्रवृत्ति देने की घोषणा की।
बाबू देवकुमारजी ने एक छात्रवृत्ति प्रदान करने की घोषणा की थी जो ऐसे जैन युवक को दी जायगी बो बनारस स्याद्वाद महाविद्यालय में रहकर कालिय में अध्ययन करे। उस समय एक भी ऐसा विद्यार्थी न मिला । अब कितने ही विद्यार्थी स्याद्वाद विद्यालय में रहकर कालिज और हिन्दू युनिवर्सिटी में अध्ययन करना चाहते हैं, किन्तु विद्यालय के प्रबन्धकर्ता उनको विद्यालय में नहीं रखना चाहते ।
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( ६ ) सेठ हीराचन्द नेमचन्द शोलापुर ने बतलाया था कि अन्य धर्मनुयाइयों की अपेक्षा जेल में जैनियों की संख्या सब से कम है प्रतिशत ईसाई ·२५ मुसलमान •१६, हिन्दू १ पारसी •०५, जैन •०१४१
संयुक्त प्रान्त के प्रतिष्ठित अग्रगण्य महाशयों से अतिरिक्त, ए. बी. लडे मन्त्री जैन महाराष्ट्र सभा कोल्हापुर से, सेठ हीराचन्द नेमचन्द श्रानरेरी मजिस्टेट शोलापुर से, चिरंजीलाल की अलवर से, श्रीयुत जैन वैद्य, मालीलाल कालसीलाल और गुलेछाजी जयपुर से, श्रीयुत कीर्तिचन्द, सोहनलाल और कई श्वेताम्बर जैन रावलपिंडी से, श्रीयुत जिनेश्वर दास मायल, सोहनलाल जी देहली से, प्रो० जियाराम लाहौर से, श्री मानिकचन्द ऐडवोकेट खंडवा से, सिंघई नारायणदास जबलपुर से, श्री शिन्बामल अंबाला से, श्री किशोरीमल बी गया से, लाला मुन्शीराम और उनके श्वेताम्बर मित्र होशियारपुर से, इस अधिवेशन में सम्मिलित हुए थे। सभा में प्रतिदिन तीन चार हनार की उपरिथित होती थी।
एक विशेष गौरव की बात जैन महिला समाज के लिये यह थी कि श्रीमती मगनबाई (जैन महिला रल) ने भरी सभा में ५-६ हजार की उपस्थिति में श्री-शिक्षा पर भाषण दिया।
मुरादाबाद निवासी श्रीमती गंगादेवी ने उनके वक्तव्य का समर्थन किया था।
जैन महिला रत्न श्रीमती मगनबाई को महासभा की तरफस से ५०) का स्वर्ण पदक दिये जाने की घोषणा की गई।
इस अधिवेशन के उल्लेखनीय प्रस्ताव दो थे
न०४ भारतीय युनीवसिटियों से आग्रह करके संस्कृत शिक्षा विभाग में जैन साहित्य और जैन दर्शन को उचित स्थान प्रास कराया बाय।
नं०५ भारतीय जेल विभाग की रिपोर्ट में बैन जाति के अपराषियों को भिन्न स्तम्भ में दिखाया जाय ।
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(
आठवाँ अधिवेशन
आठवाँ अधिवेशन दिसम्बर १९०६ में श्रीयुत् रूपचन्द जी रईस सहारनपुर के सभापतित्व में भारत राजधानी कलकत्ता नगर में सम्पन्न हुआ । इस अधिवेशन में सखीचन्दजी डिप्टी सुपरिटेन्डेन्ट पुलीस भागलपुर जीवदया प्रचार मन्त्री निर्वाचित किये गए। तब से बराबर यह जीव दया विभाग के कार्य की निगरानी कर रहे हैं। रायबहादुर की पदवी और कैसर हिन्द पदक प्राप्त करके डिप्टी इस्पेक्टर जेनरल के ओहदे से पेंशल ली । गत अगस्त में इनका स्वर्गवास हुआ । खंडवा निवासी माणिकचन्द वकील ऐसोसियेशन के प्रधान मन्त्री निर्वाचित हुए । इस अधिवेशन में करीब ४०० प्रतिष्ठित सज्जन बम्बई, शोलापुर, कानपुर, लखतूऊ, मुरादाबाद, नजीबाबाद, मेरठ, अम्बाला, बिजनौर, दिल्ली, अमृतसर, सोनीपत, खंडवा, मुशिदाबाद, देवबंद, हिसार, अजमेर, अलाहाबाद, जयपुर, सहारनपुर, धारा, भागलपुर, आदि से पधारे थे ।
१० )
उल्लेखनीय प्रस्ताव यह थे
१. जैन जाति में स्त्री शिक्षा प्रचार के वास्ते निम्न उपाय किये
जावें -
( १ ) स्थानीय कन्या शालाओं की स्थापना, (२) अध्यापिकाओं की तैयारी,
( ३ ) परीक्षा कमेटी'
( ४ ) प्रत्येक सदस्य अपनी पत्नी, बहन, बेटी को पढ़ावे, (५.) पारितोषक और छात्रवृत्ति,
(६) पठनीय पुस्तक निर्माण,
(७) प्रौढ़ महिलाओं को उनके घर पर शिक्षा प्रदान,
(८) महिला शास्त्र-सभा,
( 8 ) महिला कारीगरी की प्रदर्शिनी,
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( ११ ) (१०) असमर्थ जैन विधवाओं की सहायता, (११) उपरोल्लिखित कार्यों के लिये कोष,
इस प्रस्ताव पर श्री माणिकचंद वकील खंडवा ने एक मार्मिक भाषण किया था।
२. प्रत्येक जैन को अपने श्रद्धानुसार देव-दर्शन, पूजन, शानस्वाध्याय, सामायिक आदि आवश्यक धार्मिक कार्य अवश्य करने चाहिये।
नवाँ अधिवेशन नवां अधिवेशन १९०७ में गुर्जर प्रान्त के प्रख्यात ऐतिहासिक स्थान सूरत में बयपूर राज्य राज्य के ख्यातिप्राप्त श्वेताम्बर कान्फरेंस के मन्त्री श्रीयुत गुलाबचन्द दवा एम. ए. के सभापतित्व में किया गया।
स्वागत समिति के सदस्य करीब १५० प्रतिष्ठित बैन थे । स्वागत सभापति सेठ माणिकचद जे० पी० थे। १० उपसभापति और ५ मन्त्री थे। ___मानोनीत सभापति का स्वागत रेलवे स्टेशन पर सूरत की अखिल जैन बनता ने किया। सेठ माणिकचन्द बी जे० पी० ने फूल माला पहनाई । बय-ध्वनि से स्टेशन गूंज उठा। स्वागत समिति के अगुवा सदस्यों से उनका परिचय कराया गया । यह शानदार जुलूस बैंड बाजे के साथ सूरत नगर के मुख्य बाजारों में होकर सेठ लखमीचंद जीवा भाई के निवास स्थान पर पहुँचा । वहाँ पर पुष्पहार से सम्मानित हो सब भाई विदा हुए । बाबारों में दोनों तरफ दूकान और मकान सुसज्जितये । और स्त्री पुरुष बालक जुलूस को देखने के लिये एकत्रित थे ।
श्रीयुत ढढ्ढाजी ने अपने एक भाषण में कहा था कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ने आपस में लड़ झगड़ कर द्रव्य, धर्म, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( १२ ) प्रात्मगौरव में हानि उठाई और जगहंसाई कराई । अतः हमको आपस में मिल कर अपने झगड़े निमटा लेने चाहिये। ऐसा करने से बाह्य आक्रमणों से अपनी रक्षा कर सकेंगे। मकशी जी और शिखरजी के झगड़े हमारी मूर्खतावश स्वार्थी लोगों के बहकाए से चल रहे हैं।
अधिवेशन का बलसा नगीनचंद्र इन्सटीट्युट हाल में हुआ। सेठ मानिकचन्द हीराचन्द जे० पी० अध्यक्ष स्वागत समिति के भाषण के बाद श्रीयुत उदात्री पूरे घंटे भर बोले । उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आज का दिन सौभाग्यपूर्ण है। भिन्न जैन श्राम्नाय के नेता छोटे छोटे मेदभाव का त्याग करके जैन धर्म प्रभावनार्थ एकत्रित और समाज संगठनार्थ प्रस्तुत हुए हैं। प्रत्येक जैन सम्प्रदाय की यद्यपि पृथक पृथक सभा है, और उससे यथेष्ट काम भी हो रहा है, तदपि सामान्य सामाजिक सुधार और सिद्धान्त प्रचार में मिल कर, संगठित होकर, एक साथ बल लगा कर काम करने से सफलता शीघ्र और अधिक मात्रा में प्राप्त होगी। दुष्काल के प्रभाव से वीतराग कथित धर्म में विविध मेद उत्पन्न हो गए; और एक आम्नाय दुसरे को गैर, पर, या विरोधी समझने लगी। एकान्त कदाग्रह बढ़ता गया और अनेकान्त को सामनजस्य भावना पटती गई। महावीर स्वामी की दिव्य ध्वनि से जो धर्म का स्वरूप प्रदर्शित हुश्रा था, वह एक ही था। गौतम गणधर और भ्रत केवलीयों के प्रवचन में भी भिन्नता न थी। पंच परमेष्ठी के गुण लक्षण सर्व सम्प्रदाय एक से ही मानती है । रहन सहन, वस्त्र भोजन, सामाजिक सदाचार, सद्व्यवहार में भी ऐसे भेद नहीं हैं, जो हम सबको मिल कर रहने में बाधित हों। हमारा धर्म हम को पशु-पक्षियों से भी प्रेम सिखलाता है, फिर मनुष्य जाति से, भारतवासी से, सहधर्मी से तो सद्भाव रहना प्राकृतिक ही है। हमें आशा है कि आज का सम्मेलन बैन समाज के जीवन में चिरस्मरणीय रहेगा। सम्मेदशिखरजी
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श्री गुलाबचन्द ढहा, एम० ए० सूरत अधिवेशन १६०७ के सभाध्यक्ष
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पर अंग्रेजों की बस्ती बसाने के सम्बन्ध में ढढापी ने विस्तीर्ण भाषण किया। परिणामतः श्वेताम्बर दिगम्बर समाज के कंधे मिलाकर परिभम करने से उस सम्बन्ध में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। सभापति महोदय ने जैन समाच और जैनधर्म की ऐतिहासिक पुस्तक तैयार करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। खेद है कि ऐसी पुस्तक अब तक भी तैयार न हो पाई । इसका मूल कारण समाज में विद्या की न्यूनता और उपेक्षा है । जो अब भी वैसी ही चली जाती है। समान में शिक्षा प्रचार, बैन बैङ्क की स्थापना धर्मकोष की अव्यवस्था, सहकारी व्यापारिक कार्यालयों की स्थापना का मार्ग भी सभापति महोदय के भाषण में दिखलाया गया था । श्वेताम्बर जैन कांफ्रेंस के पिता रूप, सभापति महोदय के भाषण का अंग्रेजी अनुवाद जैन गजट माच १९०८ में ८ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है। और प्रत्येक श्रावक के लिये पठन और मनन करने योग्य है।
अधिवेशन के प्रारम्भ में श्री मूलचन्द कृष्णदास कापडिया ने गुजराती भाषा में लिखा हुआ अभिनन्दन पत्र पढ़कर मेट किया था, उपस्थिति करीब २०० थी।
इस अधिवेशन में निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रस्ताव निश्चित हुए।
न०४-चैन समाज का ध्यान कलकत्ता अधिवेशन के प्रस्ताव नं० १ पर दिलाते हुए महिला नार्मल स्कूल और कन्या पाठशालाओं को स्थापना, स्वकीय सम्बन्धी स्त्रियों का शिक्षण, शिक्षित महिलाओं को पारितोषिक, प्रादर्श पुस्तक प्रकाशन आदि कार्यों की आवश्यकता बतलाई गई मगनबाईजी और लखनऊ निवासी पारवतीबाईजी को ब्रो शिक्षा प्रचार में अग्रसर होने के लिये धन्यवाददिया गया; इस प्रस्ताव को पण्डित अर्जुन लाल सेठी ने उपस्थित किया; उसका समर्थन श्रीयुत भग्गूभाई फ वेहचन्द कारभारी सम्पादक "जैन" ने किया और विशेष समर्थन में भी ललबूभाई करमचन्द्र दलाल, और यति माहराज
नेमी कुशलबी ने बोरदार भाषण दिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( १४ ) न०६-जाति सुधार के आशय से निश्चित हुआ कि
(i) १३ बरस से कम कन्या और १८ वर्ष से कम पुत्र का विवाह न हो।
(ii ) विवाह और मरणं समय व्यर्थ व्यय रोका जाय और वेश्या नृत्य बन्द किया जाय।
(iii) वृद्ध पुरुष का बालिकाओं से विवाह बन्द हो । (iv) पर्दा प्रथा हटा ली जाय ।
इस प्रस्ताव को श्री अमरचन्द परमार बम्बई निवासी ने उपस्थित किया और श्री० त्रिभुवनदास उघवजी शाह B.A. LL-B. अहमदाबाद निवासी, श्री. रतनचन्द ऊर्मीचन्द सूरत निवासी, श्री धीसाराम निर्भयराम पुरावीयर भावनगर निवासी ने इसका समर्थन किया ।
न०७-सेठ मानिकचन्द हीराचन्द जे० पी० ने इस अधिवेशन का सब से अधिक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया-समाज में अनैस्य फैलानेवाले तीर्थक्षेत्र सम्बन्धित कचहरी में मुकदमेबाजी का अन्त करने के लिये स्वेताम्बर कांफरेन्स और दिगम्बर महासभा के ६-६ सदस्यों को कमेटी बनाई जाये । इसका समर्थन सभापति महोदय ने स्वतः किया । उन्होंने कहा की कचहरी के झगड़े व्यक्तिगत हैं, मूनीम और मैनेजरों ने चलाये हैं, खेद है कि समाज इन स्वार्थी लोगों के बहकाये में श्रा गया है।
दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि प्रस्तावानुसार कमेटी अाज तक न बनी और कचहरियों के झगड़ों में समाज का लाखों रुपया बुरी तरह बरबाद हुश्रा और अब भी हो रहा है।
न०८-साम्प्रदायिक पक्षपात से प्रेरित होकर धर्म की आड़ में वो पारस्परिक श्राघात प्रघात किये जाते हैं वह बन्द होने चाहिये इस प्रस्ताव पर कारभारी जी और प्रोफेसर लट्टे के भाषण हुए।
न०१०-यह देखकर कि समान का लाखों रुपया तीर्थक्षेत्रों के नाम पर विविध प्रकार के खातों में, भिन्न व्यक्तियों के पास पड़ा हुआ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( १५ ) है, उस द्रव्य की सुरक्षा और सदुपयोग के विचार से उचित प्रतीत होता है कि समस्त देवद्रव्य एक सेन्ट्रल जैन बैंक में रक्खा बाये और उस बैंक की स्थानीय शाखा मुख्य स्थानों में स्थापित हो।
यह प्रस्ताव सेठ गुलाबचन्द देवचन्द बम्बई निवासी ने उपस्थित किया और श्रीयुत् मानिकचन्द वकील खंडवा, मुलतानसिंह वकील मेरठ. और श्री. नगीनदास जमनादास ने उसका समर्थन किया।
खेद है कि ऐसे जैन बैंक की स्थापना अब तक नहीं हुई।
नं. १२-जैन समाज के प्रतिनिधि समाज की तरफ से निर्वाचित होकर सेंट्रल और प्राविंशल काउन्सिल में लिये जाये। ___ सभापति महोदय को धन्यवाद का प्रस्ताव अहमदाबाद निवासी सेठ कुंवर बी अानन्दजी, बाड़ीलाल सब जज अहमदाबाद और श्रीयुत् ए० वी० लट्टे कोल्हापुरी के भाषण से उपस्थित हुआ।
सेठ छोटालाल नवलचन्द नगरसेठ संदेर ने दूसरे दिन सभापति महोदय और सब मेहमानों को प्रीतिभोज दिया ।
दसवाँ अधिवेशन
दसवाँ अधिवेशन दिसम्बर १९०८ में हिसार निवासी श्री बांकेराय वकील की अध्यक्षता में मेरठ नगर में सम्पन्न हुश्रा। तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी विवादस्थ विषयों के निर्णयार्थ पंचायत बनाने का प्रस्ताव हुआ । इस विषय में समाचार पत्रों में, और भिन्न अाम्नाय के अधिवेशनों में खूब आन्दोलन होता रहा; किन्तु सफलता न मिली; और जैन समाज का लाखों रुपया अापसी मुकदमों में बरबाद हुआ। मेरठ में जैन छात्रालय स्थापन करने का भी निश्चय हुआ। यह छात्रालय १९१२ में खुल गया और अब ययेष्ठ उन्नति पर अपने निजी विशाल भवन में चल रहा है। अध्यापिका तैयार करने के लिये विधवा बहनों को छात्रवृत्ति प्रदान की गई ।
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( १६ ) ग्यारहवाँ अधिवेशन
ग्यारहवाँ अधिवेशन जयपुर राज्य में जनवरी १९१० में किया गया । इस बल्से के काम चलाने का भार मुझे सौंपा गया था। श्वेताम्बर दिगम्बर स्वागत कार्यकर्ता और प्रतिनिधि सब खुले दिल से मिलकर काम कर रहे थे। राज्य के अधिकारी वर्ग भी सभा में पधारे थे । ऐसोसियेशन का नाम परिवर्तन होकर. भारत जैन महामंडल हो गया । जैन शिक्षा प्रचारक समिति जयपुर में शिक्षा प्रचार का काम अच्छी सफलता से कर रही थी। मगर धर्म, समाज और देश के लिये दत्तचित्त होकर काम करनेवाले युवक तैयार करने के अभिप्राय से एक गुरुकुल जैसी संस्था की स्थापना का निश्चय किया गया। परिणामतः ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम पहली मई १९११, अक्षय तृतीया के दिन, हस्तिनापुर जिला मेरठ में जारी कर दिया गया।
ब्रह्मचर्य श्राश्रम को जारी करने के अभिप्राय से श्रीयुत भगवान दीन जी, अर्जुन लालजी और मैं गुरुकुल कांगड़ी और अन्य शिक्षा मन्दिरों का निरीक्षण करने गये। भगवानदी जी ने रेलवे के असिस्टेंट स्टेशन मास्टर की नौकरी छोड़ दी । यावज्जीव ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। अपनी गृहणी को शिवार्थ भाविकाश्रम बम्बई में भेज दिया
और अपने चार-पाँच वर्ष के बालक को आश्रम में भर्ती कर लिया । स्वतः श्राश्रम के उत्तरदायित्व अधिष्ठाता पद का भार स्वीकार किया । तभी से भगवानदीन जी को हम लोग महात्मा भगवानदीन कहने लगे । लाला मुन्शीराम भी इसी प्रकार गुरुकुल कांगड़ी के अधिष्ठाता होने के पीछे महात्मा श्रद्धानन्द कहलाने लगे थे। लेकिन भगवानदीन जी ने अपना नाम परिवर्तन करना उचित नहीं समझा।
हस्तिनापुर ब्रह्मचर्य आश्रम ने दिन प्रतिदिन सन्तोषजनक उन्नति की। पारस्परिक सामाजिक मतभेद और सरकार अंग्रेजी की कड़ी निगाह के कारण चार-पाँच वर्ष के उत्कर्ष के बाद वह नीचे गिरता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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श्रो० अजितप्रसाद, एम० ए०, एल-एल० बी० अम्बाला अधिवेशन १६०४, जयपुर अधिवेशन १९१० के सभाध्यक्ष CHIMHIR | HITAL VARTHIHIUIIlionli|HI:- UTILI , illiti••l . 1 0 11|110 111 11THIS •llTULIP
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( १७ ) गया । चार वर्ष तक मन्त्री रह कर सेवा करने के पश्चात मैं भी त्यागपत्र देने पर मजबूर हो गया। महात्मा भगवानदीन बी को भी प्रथक होना पड़ा। पंडित अर्जुनलाल सेठी तो सात वर्ष के लिये नजरबन्द कर ही दिये गये थे। ___ भाई मोतीलाल जी भी अलग हो गये थे। बाबू सूरजमान
और जुगलकिशोर को भी प्राभम से लगावट नहीं रही । उसी नाम से अब से वह प्राश्रम मथुरा में अपने नोजी भवन में स्थापित है किन्तु इस ३५-३६ वर्ष में विद्यार्थियों की संख्या साठ से ऊपर से नहीं बढ़ी। सन् १९१५ में ब्रह्मचारियों की संख्या ६० से ऊपर थी। ब्रह्मचारी जीवन का श्रादर्श तो अब नाम और निशान को भी नहीं है। आश्रम का उन चार पाँच वर्षों का सुनहरी इतिहास महात्मा भगवानदीन जी ने दिल्ली के “हितैषी" और "वीर" नामी समाचार पत्रों में वृहदरूप से प्रकाशित कर दिया है।
बारहवाँ अधिवेशन
अप्रैल १९११ में बारहवाँ अधिवेशन मुजफ्फर नगर में श्री जुगमन्धरलाल जैनी बैरिस्टर के सभापतित्व में हुआ। इस हो समय से महासभा में अराजकता, नियम विरुद्ध दलबन्दी करके धीगा. घोगी से हठाग्रह और स्वेच्छाचार का प्रारम्भ हुआ और महासभा एक संकीर्ण स्वार्थी दल का गुट बन गई।
सभापति का शानदार स्वागत रेलवे स्टेशन पर हुआ, वहाँ जैन अनाथालय के विद्यार्थियों ने ब्रह्मचारी चिरंजीलाल बी की अध्यक्षता में झंडे लिये बंगी फोबी सलाम दिया । बैंड बाजे के साथ बलस हाथो
और सवारीयों पर शहर के बाजारों में होकर निवास स्थान पर गया । अधिवेशन के प्रारम्भ में पडित अर्जुनलाल सेठी की अध्यक्षता में सर्व उपस्थित मण्डली ने प्रार्थना पढ़ी, सभापति महोदय ने अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( १८ ) भाषण में शिक्षा की आवश्यकता, अजैनों को जैन धर्म में दीक्षित करने का औचित्य दिखलाया । भारतेतर देशीय जैनों की सम्मिलित सभा की स्थापना का उल्लेख किया ।
इसी अवसर पर दिगम्बर जैन महासभा का वार्षिक अधिवेशन भी इस ही नगर में हुआ। इसके सभापति थे साधुवृत्ति राय साहेब द्वारिकाप्रसाद इंजिनियर कलकत्ता। उनका भाषण सराहनीय था। विषय निर्धारणी सभा में महासभा की अनियमित घांघलीबाजी का भंडाफोड़ हुआ। दूसरे दिन खुली सभा में कुछ अनधिकृत लोगों ने दस्सा पूजाधिकार का झगड़ा खड़ा करके शोर मचा, गाली गलोज, करके महासभा के मंच पर कब्जा कर लिया। सभापति महोदय उठ कर अपने डेरे में चले आए।
तेरहवाँ अधिवेशन तेरहवाँ अधिवेशन ता० २५, २६, २७, २८ और २६ दिसम्बर १९१३ को बनारस में हुआ, जो स्यादाद महोत्सव के नाम से प्रसिद्ध हुधा । इस महोत्सव में मंडल की तरफ से कोई प्रस्ताव नहीं हुए, किन्तु महत्वपूर्ण कार्य हुए । ता० २५ को बनारस टाउन हाल में श्री जुगमन्दिर लाल जी जैनी सभापति स्वागत-समिति ने अपने भाषण में महामण्डल के विविध रचनात्मक कार्यों का उल्लेख किया और मिसेज़ ऐनी बेसेन्ट के अध्यक्ष निर्वाचित किए जाने का प्रस्ताव किया। मिसेज वेसेन्ट ने अपने भाषण में कहा कि महाबीर स्वामो जैन धर्म के २४ तीर्थंकरों में अन्तिम तीर्थकर थे। यूरोप शेष २३. तार्यकरों को ऐतिहासिक वास्तविकता नहीं समझ सकता क्योंकि वह स्वतः कम उमर है, और इतनी गहरी प्राचीनता का विचार उसकी शक्ति के बाहर है, और इस कमजोरी के कारण जैन धर्म की प्राचीनता उसके विचार के बाहर है । जैन धर्म इतिहास और मौखिक तथा पौराणिक कथाओं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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१६ ) से प्राचीनतर है। प्राचीनता के विचार से बाहर है। जैन धर्म के सिद्धान्त का प्रचुर प्रचार होना चाहिये । ऐसोसियेशन ( भारत जैन महामण्डल ) की ओर से श्रीमती मगनबाईजी को "जैन महिलारल" के पद से विभूषित किया गया । ता० २६ का पहला अधिवेशन स्यादाद-वारिधि वाद-गजकेसरी, न्यायवाचस्पति पं० गोपालदासपी बरैया के समापतित्व में हुश्रा । महात्मा भगवानदोन जी ने ब्रह्मचर्य
आश्रम पर, और पंडित अर्जुनलाल सेठी ने कम सिद्धान्त पर व्याख्यान किये । दूसरा जल्मा श्री सूरजभानुषी वकील देवबन्द के सभापतित्व में हुआ। इस जलसे में रावलपिन्डी निवासी प्रभुराम जी ने "अहिंसा धर्म" और पंडित गोपालदास ची ने "ईश्वर कर्तृत्व" की व्याख्या की। ता० २७ का अधिवेशन डा. सतीशचन्द विद्याभूषण एम्. ए०, पी० एच० डी०, एम० आर० ए० एस०, एफ० ए० एस० बी०, एफ० आई० श्रार० एस० के सभापतित्व में हुआ। सभापति महोदय ने अपने भाषण में कहा कि भारत जैन महामण्डल ने समस्त जैन जाति के समस्त उत्कर्षकारी कार्यों में जीवन और शक्ति प्रदान की । महामण्डल साम्प्रदायिक संकीर्णता से रहित है। भारत बैन महामण्डल की ओर से "जैन दर्शन दिवाकर" को उपाधि पार्चमेंट पर छपी हुई डाक्टर हरमन याकोबी (बर्मनी) को भेंट की गई । ता २८ को ग. जेकोबी ने स्याद्वाद महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों को संस्कृत भाषा में सन्देश दिया। संध्या को डा० जेकोबी के सभापतित्व में "सिदान्त महोदषि" की उपाधि स० सतीशचन्द्र को मेंट का गई। और मारत जैन महामण्डल ने "जैन धर्म भूषण" के पद से० शीतलप्रसाद वो का सन्मान पं० गोपालदास जी द्वारा किया । "दानवीर" उपाधि राय बहादुर कल्याणमल इन्दौर को २ लाख रुपये से त्रिलोकचन्द हाई स्कूल खोलने के उपलक्ष में भेंट की गई । ता० २६ को "जैन सिद्धान्त भवन" पारा की प्रदशिनी और गक्टर स्ट्राउस के सभापतित्व में ब्र० शीतलप्रसादबी का व्याख्यान हुा । इस महोत्सव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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(
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में सम्मिलित होने वालों के कुछ नामों का उल्लेख कर देना अनुचित न होगा। जैसे, प्रो० जेम्सप्रैट विलियमस-टाऊन संयुक्त राष्ट्रीयसंघ अमेरिका, लार्ड बिशप बनारस, प्रो० उनवाला, डाक्टर भगवानदास, कुमार सत्यानन्द प्रसाद सिंह, डा० फिसकोन (लीपजिग बर्मनी), माणिकलालजी कोचर नरसिंगपुर, सेठ हुकुमचन्द खुशालचन्द काठियावाड़, रायबहादुर मोतीचन्द्रजी, रानी श्रौसानगंज, श्री सुकतंकर साहित्याश्रम इन्दौर, सर सीतारामजी, ब्र० भागीरथजी, ब्र० ठाकुरदास जी, ब० भगवानदीन जी, ब० गुम्मनजी मूडबिदरी, महाराज कपूरविजयजी, मनिराज श्री क्षमामुनिजी, विनयमुनिजी, प्रताप मुनिधी इत्यादि । इस महोत्सव का पूर्ण विवरण अग्रेजी जैन गजेट अनवरी १६१४ में प्रकाशित है।
ऐसे महत्व का महोत्सव अाज तक जैन समान में नहीं हुआ और इस सबकी आयोजना के श्रेय का बहुभाग श्री कुमार देवेन्द्र प्रसादजी पारा निवासी को है। इस महोत्सव के आयोजन से स्वर्गीय कुमारजी की कीर्ति अजर अमर रहेगी।
चौदहवाँ अधिवेशन
चौदहवाँ अधिवेशन बम्बई ता ३०, ३१ दिसम्बर १९१५ को स्थानकवासी समाज के प्रतिनिधि, उगते सूर्य, अर्थशास्त्र के ख्यातिप्राप्त प्राचार्य खुशाल भाई टी. शाह वैसिस्टर-ऐटला के सभापतित्व में हुआ। इस अधिवेशन में भी अपूर्व उत्साह और शान थी । उनी दिनों बम्बई में नैशनल कांग्रेस की बैठक बगाल-केसरो सर सत्येद्रप्रसन्न सिंह के सभापत्वि में हो रही थी और नगर सारा मुसबित था। महामंडल के इस अधिवेशन में अनेक प्रान्त, अनेक जाति और अनेक सम्प्रदाय के अग्रगण्य जैन सम्मिलित हुए थे। श्रा मकनबी जूठाभाई मेहता बैरिस्टर ऐटला स्वागत-समिति के अध्यक्ष ये । श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( २१ ) अभ्यागतों के सत्कार सुभशा में संलग्न थे और श्री मनीलाल हाकिमचन्द उदानी बलसों के प्रोग्राम बनाते थे। हीराबाग की विशाल धर्मशाला में बाहर से आये हुए प्रतिनिधि आराम से ठहरे हुए थे। अधिवेशन की कार्यवाही एम्पायर थियेटर में प्रारम्भ हुई । मंगरौल जैन सभा की बालिकाओं ने मिलकर एक स्वर से मंगलाचरण किया। मैंने भी कुछ मंगलात्मक श्लोक पढ़े । सोलिसिटर मोतीचन्द जी कापडिया के प्रस्ताव, सेठ ताराचन्द नवलचन्द जवेरी के समर्थन पूर्वक प्रोफेसर खुशालभाई शाह सभापति निर्वाचित हुये । सभापति का मुद्रित व्याख्यान वितरण कर दिया गया था; किन्तु श्रीयुत शाह ने अपना व्याख्यान बिना पढ़े मौखिक रूप से ही कहा । श्रीयुत शाह ने छपा हुआ नहीं पढ़ा बल्कि इटैलियन संस्कृत का अच्छा अभ्यास प्राप्त किया था। ये अब सिडेनहम कॉलेज बाम्बे में अर्थ तथा व्यापारशास्त्र के प्राचार्य हैं। उन्होंने बृहत् ऐतिहासिक ग्रन्थ भारतवर्ष का अतीत गौरव ( The Glory that was Ind ) सम्पादन किया है। व्याख्यान की ध्वनि गहरी स्पष्ट गू बती हुई थी। और खचाखच भरे हुए थियेटर हाल के दूरस्थ कोने तक पहुँचती थी । इनका व्याख्यान दो घन्टे तक चलता रहा । उपस्थित समूह ने उसे जो लगाकर ध्यान से सुना । बीच बीच में करतलध्वनि अवश्य होती थी। सभापति महोदय के ये वाक्य अत्यन्त हृदयस्पर्शी ये "इस समय में जब कि प्रत्येक व्यक्ति इस बात को भूल कर कि वह हिन्दू मुसलमान या पारसी है सिर्फ यह ध्यान रखता है कि वह मारतीय है, हम लोग यह भूल गये कि हम जैन है, मगर यह समझते रहते हैं कि हम दिगम्बर है, श्वेताम्बर है, स्थानकवासी है, डेरावासी हैं।" उन्होंने जोरदार प्रभावक वाक्यों में दिखलाया कि जैन धनवान है, प्रचुर द्रव्य का दान निरन्तर कहते रहते हैं किन्तु, उस दान को सुव्यवस्था और सदुपयोग होने में कुछ मी प्रयत्न नहीं करते । उन्होंने प्राथमिक और उच लौकिक, धार्मिक, व्यापारिक शिक्षा प्रचार के लिये बहुत कुछ कहा । इस बोशोले, गौरव-शालो प्रवचन को भी ३२ बरस गुजर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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२२ )
चके, मगर साम्प्रदायिक भेद-प्रमेद घटने की जगह बढ़ते ही लाते हैं । कचहरियों में लाखों रुपया बरबाद हो चुका, पारस्परिक प्रेम और गो-वत्स वात्सल्य भाव का अभाव होकर ईर्षा-दोष की वृद्धि हो रही है, धर्म की तात्विक वास्तविक क्रियाओं को गौण करके दिखावे के लिये, नामवरी के वास्ते, व्यापार वृद्धि के प्राशय से धर्म का दिखावा करके आपस में मारकाट और मुकदमेबाजी जैनी लोग कर रहे हैं, अहिंसा धर्म का झंडा फहराने वाले, हिंसा का व्यवहार कर रहे हैं। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी भी पधारे थे ।
पन्द्रहवाँ अधिवेशन
पन्द्रहवाँ अधिवेशन अजिताश्रम लखनऊ में श्री माणिकचन्दनी वकील खंडवा के सभापतित्व में २९, ३०, ३१ दिसम्बर १६१६ को हुधा । इस अधिवेशन में रायबहादुर सखीचन्दजी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस पूर्णिया से पधारे थे। २५ दिसम्बर को महामण्डल के प्रारम्भिक अधिवेशन की योजना श्रीयुत दयाचन्दजी गोयलीय मन्त्री जीवदया विभाग ने बम्बई जीवहितकारी सभा के सहयोग में की। यह सम्मिलित सभा अजिताश्रम के विशाल उद्यान में य एटे रोड पर हुई । उनी दिनों में नैशनल कांग्रेस, नैशनल कान्फरेंस आदि सार्वजनिक सभा लखनऊ में हो रही थी। हमारी सभा का शामियाना अनोखी शान का था । मखमल पर जरदोजी बना हुआ “अहिंसा परमोधर्मः यतो धर्मस्ततो बयः" का निशान चमक रहा था। इसी प्रकार मखमल पर सलमे के काम के मेबपोश और झंडे इतने लगे हुए थे कि भारा स्थान सुनहरी मालूम हो रहा था । श्रीयुत बी. जी. होरनिमन बम्बई के प्रसिद्ध पत्र बाम्बे क्रांनिकल के सम्पादक और भारतीय पत्रकार सभा के अध्यक्ष इस जलसे के सभापति निर्वाचित हुए। उपस्थित जैन अजैन बनता का समूह इतना था कि विशाल मण्डप में खड़े होने तक का स्थान नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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RTAL
श्री. माणिक चन्द जी,
बी० ए०, एल-एल० बी० लखनऊ अधिवेशन १६१६ के सभाध्यक्ष
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( २३ ) था। प्रान्तीय धारा सभा के सदस्य, जुडीशल कमिश्नर पंडित कन्हैयालाल, प्रमुख न्यायाधीश, वकील, बैरिस्टर, सेठ, साहूकार, डाक्टर, इन्बीनियर, सभी प्रतिष्ठित लोग पधारे थे। सड़क और रास्ता बन्द हो गया था। मकानों की छत और दरख्तों पर लोग चढ़कर इस दृश्य को देख रहे थे। उपस्थित जनता महात्मा गांजी का प्रवचन सुनने के लिये एकत्रित थी । महारमा बी ने अहिंसा के व्यापक महत्व पर जोर के साथ उपदेश दिया और जैनियों को आदेश दिया कि वह अपने अहिंसा धर्म को पशु पक्षियों को दया प्रदर्शन तक ही सीमित न रक्खें, बल्कि अपने परिबन, मित्र, पड़ौसी, या किसी व्यक्ति को किसी प्रकार शारीरिक, आर्थिक, मानसिक, कष्ट या खेद न पहुँचावें । अहिंसा वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन को बल पहुँचानेवाला वीरों का धर्म है। अहिंसावादी के पास कभी कायरता नहीं फटक सकती । बैरिस्टर विभाकर और सभापति हौरनिमन ने अपने भाषणों में कहा कि यह अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि निरामिष आहार, दया प्रचार और अहिंसा व्यवहार का उपदेश भारतीय जनता को पाश्चात्य शिक्षा प्रास यूरोपियन द्वारा दिया जाये, बो लोग मांसाहारी होने के कारण अछूत और भ्रष्ट समझे जाते थे । सभा विसर्जित होने के बाद महात्मागांधी जी ने अजिताश्रम में पधार कर महिला मण्डल को उपदेश दिया। ___ मनोनीत सभापति श्रीयुत मानिकचन्दजी २५ ता. की रात को पधारे । २६ की रात को अजिताश्रम मण्डप में कुंवर दिग्विजय सिंह का पब्लिक व्याख्यान जैन धर्म पर हुश्रा । २७ की कार्यवाही सिद्धभक्ति, प्रार्थना, शान्तिपाठ,मंगल पढ़कर की गई । रायसाहब फूलचन्द एकजेकेटिक इन्चीनियर लाहौर ने उपस्थित बनों का स्वागत किया । मानिकचन्दजी का छपा हुआ हिन्दीभाषण वितरण हुआ। छोटे टाईप में ४० पृष्ठ पर छपा हुमा व्याख्यान जैन समाज का दिग्दर्शन है, समाज की अवनत दशा का चित्रस, उसके कारण, और समाजोन्नति के उपायों का विषद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( २४ ) विवेचन है, ३० वर्ष पीछे भी वह वैसा ही पठनीय और अध्ययन योग्य है, जैसा १६१६ में था। इस भाषण से कुछ वास्य नमूने के तौर पर उद्धरण करना अनुचित न होगा "समाजोन्नति के लिये हमें पुनरुत्थान भी करना चाहिए और नवीन रचना भी, दूसरे शब्द में सुधार के राज्यमार्ग को ग्रहण करना चाहिए"पश्चिम की सामाजिक रीतियाँ अधिकांश हानिकारक है...समाज सुधार पूर्व पश्चिम के सिद्धान्तों की समुचित योजना से ही हो सकता है... ___ "भारत जैन महामंडल का उद्देश्य पहले से ही साम्प्रदायिक भेद को एक ओर रख, समग्र जैन जाति की उन्नति करना, सारे जैनियों में एकता तथा मैत्रीभाव का प्रचार करना, तथा जैन धर्म का प्रसार करना रहा है. तीनों सम्प्रदायों को सम्मिलित करके कार्य करने की नीति के कारण, यह मंडल सदा से आलोचकों के आक्षेपों का निशाना बना चला आ रहा है"कुछ तो धार्मिक तत्वों में एकता करने का मिथ्या आक्षेप लगाकर, हमको 'कूण्डापन्थी' कहते है."महामंडल का कोई भी ऐसा प्रस्ताव वा कार्य नहीं है जिससे ऐसा उद्देश्य उनके माथे मढ़ा जाय । कुछ यहकहते हैं कि हमारा ध्येय अशक्य अनुष्ठान है। क्या हिन्दू मुसलमानों में जो मेद है उससे अधिक अन्तर श्वेताम्बर दिगम्बर सम्प्रदाय में है. कांग्रेस में हिन्दू मुसलमान मिलकर काम करते है."तीर्थराज सम्मेद शिखरजी के सम्बन्ध में इस समय हम लड़कर लाखों रुपयों का नाश कर चुके हैं, व कर रहे हैं. यह हमारी भूल है कि अधिक या सामूहिक बल, या कूटनीति से एक समान दूसरी समाज पर विजय प्राप्त कर सकता है."हम दोनों को प्रापस में मिलकर विवादस्थ बातों का निर्णय कर लेना चाहिए।
...सिद्धान्तों का अर्थ समय के अनुकूल करना होगा तभी. हमारा धर्म सार्वभौम धर्म हो सकेगा । विस समय धर्म समाज के लिये उपयोगी नहीं रहता, उसी समय उसका अन्त समझना चाहिये... हमें मूढ़ विश्वास तथा कुरीतियों की चट्टानों को तोड़ना है।...हमें इस प्रश्न
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( २५ ) का बबाब देना होगा की भारत में जैन धर्म ने जैन समाज का क्या उपकार किया है।...यदि हम औरों को जैनी बनाना चाहते हैं तो क्या यह आवश्यक नहीं है कि हम उन्हें भी अपने ही समान धार्मिक तथा सामाजिक अधिकार प्रदान करें...हमें संसार की प्रायः खासखास भाषाओं में हमारे शास्त्र तथा जैन सिद्धान्त की पुस्तकें प्रकाशित करनी होंगी...पारा के जैन सिदान्त भवन को हमें एक वास्तविक सेंट्रल जैन लाइब्रेरी या म्युजियम बनाना होगा...हमें कौसिलों में प्रवेश, जैन त्यौहारों पर श्राम छुट्टी कराने का प्रयत्न, उपदेशकों द्वारा समाज सुधार के विचारों का प्रचार, युवकों को अन्य देशों में मेजकर उच्च श्रौद्योगिक तथा साधारण व व्यवसाय शिक्षा दिलाने की योजना, मन्दिरों के कोष में एकत्रित धनराशि का धामिक तथा समाजोदारक शिक्षा तथा कलाकौशल प्रचारार्थ सदुपयोग, सार्वजनिक संस्थाओं का सुप्रबन्ध, हिन्दी साहित्य का प्रचार करना चाहिये।"
अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्ध की उपयोगिता दृढ़ युक्तियों से दिखाई गई थी । शिक्षा तथा शिक्षा पद्धति पर गहरा विवेचन किया गया था।
सभापति के व्याख्यान समाप्ति पर सारी उपस्थित सभा (सम्जेक्ट कमेटी) विषय निर्धारिणी समिति मान ली गई । २६, २७, २८, २९ की शाम को पबलिक व्याख्यान श्री दिगविजयसिंहषी, प्रभुलालजी, भगवानदीनजी के होते थे और प्रात: धार्मिक सम्मेलन। ३० को महामंडल का खुला अधिवेशन हुआ। ३१ को धार्मिक चर्चा २४ से ३१ तक अबिताश्रम में दोनों समय भोजन का प्रबन्ध किया जाता था। इस अधिवेशन का सारा खर्च उठाने का पुण्य मुझे प्रात हुश्रा था। जे. एल. जैनी अस्वस्थता के कारण पधार न सके थे; किन्तु इन्दौर से उन्होंने एक विस्तीर्ण संदेश मेवा था, बो बैन गजट १९१० के १२ पृष्ठों पर प्रकाशित किया गया है। सभापति महोदय के व्याख्यान का अनुवाद ४० पृष्ठों में छपा हुआ है।
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( २६ ) १५६ प्रतिनिधि विविध प्रान्तों से पधारे थे जिनकी सूची जैन गजेट में प्रकाशित है । १५ प्रस्ताव निश्चित हुए थे, जिनमें से निम्न उल्लेख. नीय है:
प्र० न०६-समय था पहुँचा है जब जैन समाज में प्रचलित कुरोतियों का नाश या सुधार ज़ोर के साथ किया बाय; नीचे लिखी दिशात्रों में विशेष ध्यान दिया जाय
(१) २० बरस से कम की उमर में लड़कों का, और १४ से कम लड़कियों का विवाह न होने पाये।
(२) ५५ से ऊपर पुरुष का, और जिसके पुत्र हो उसका ४५ बरस के ऊपर की उमर में पुनर्विवाह न होने पाये।
(३) जैन जातियों में पारस्परिक विवाह तथा भोजन का प्रचार किया जाये।
(४) विवाह और देहान्त सम्बन्धित रिवाज़ों में यथा-सम्भव सादगी बरती जावे और अनावश्यक रीतियाँ बन्द की जायें ।
(५) लड़का या लड़की वाले को किसी प्रकार भी बहुमूल्य नकद या द्रव्य का प्रदेशन करने से रोका जाये।
(६) विवाह या मौत के अवसरों पर अपनी शक्ति से अधिक खर्च का रिवाब, और मरने पर बिरादरी का भोजन, रोका जाय ।
(७) विवाह के अवसर पर रंडी का नाच बन्द कर दिया जाय ।
मंडल का प्रत्येक सदस्य अगर लिखे सुधारों का यथाशक्ति पालन करेगा।
(८) जैन तीर्थो, मन्दिरों और संस्थाओं का हिसाब बाँच किया चाकर जैन समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाय।
इसी अवसर पर श्रीयुत उग्रसैन वकील हिसार ने १०,०००) का दान सेन्ट्रल जैन कालिब स्थापित करने के लिये घोषित किया । खेद है कि ऐसा कालिब अब तक नहीं बन सका, यद्यपि बारे में भी हरप्रसादShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( २७ ) . दास के नाम से एक डिगरी कालिज बडौत, पानीपत, अम्बाला आदि स्थानों में इन्टरमीजियेट का नेज स्थापित हो गये हैं।
सोलहवाँ अधिवेशन सोलवाँ अधिवेशन दिसम्बर १९१७ में, जैनधर्म-भूषण ब्रह्मचारी शोतलप्रसादजी के सभापतित्व में, कलकत्ता नगर में हुआ। लोकमान्य तिलक और माननीय जी. एस. खापर्डे ने पंडित अर्जुनलाल सेठी, B.A. की नजर-बंदी कैद तनहाई से मुक्त किये जाने के लिये प्रस्ताव उपस्थित किया। ____सभापति के व्याख्यान में व्यापक रूप से सामाजिक, राष्ट्रीय, नैतिक, धार्मिक, आर्थिक साहित्यिक उत्कर्ष के उपायों पर विवेचन किया गया या। सेन्ट्रल जैन कालिज, जैन कोआपरेटिव बैंक, विधवाश्रम, श्राविकाश्रम की स्थापना पर जोर दिया गया था।
इस अवसर पर एक जोरदार प्रस्ताव तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी विवादस्थ विषयों का पंचायत द्वारा पारस्परिक निबटारा करने के लिये स्थिर हुआ। महात्मा भगवानदीनबी के साथ मैंने राय बहादुर सेठ बदरीदासजी के द्वार के बहुत फेरे किये। महात्मा गांधी को राजी कर लिया कि वह हमारे आपसी झगड़ों का निर्णय कर दें, किन्तु सफलता न हुई। ११ प्रस्तावों में एक उल्लेखनीय प्रस्ताव यह था कि प्रत्येक जैन गो पालन करे, और चाम लगे हुए बेल्ट, पेटी, टोपी, विस्तरबंद, आदि का प्रयोग न करे। इस अवसर पर भी श्री० जे. एल. जैनी न पधार सके, किन्तु उनका लिखित संदेश जैन गजेट १९१८ में प्रकाशित है।
सत्रहवाँ अधिवेशन सतरहवाँ अधिवेशन वर्धा में दिसम्बर १९१८ में श्री सूरबमलबी हरदा निवासी के सभापतित्व में हुआ।
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(
२८
)
अठारहवाँ अधिवेशन अठारहवाँ अधिवेशन श्री जे. एल. जैनी के सभापतित्व में टाउन हाल नागपुर में दिसम्बर २८, २९, १९२० को हुा । सन् १९११ के बारहवें अधिवेशन के सभापति भी श्री० जे. एल. जैनी ही थे । इन दस बरसों में दुनिया के, और जैन जाति के वातावरण में बड़ा परिवर्तन हो गया था। किन्तु दृष्टिकोण ऋजुकोण नहीं हो पाया था । इनका भाषण इस दृष्टि को लिये हुए निराला ही पथ प्रदर्शक था। और उसने अधिवेशन को विशेष महत्व प्रदान किया था। जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों से लेकर समाजोदारक तत्वों का विशद और स्पष्ट विवेचन प्रारम्भ में किया गया था। फिर सम्मिलित कुटुम्ब विधान, कर्ता का पूज्यस्थान, परिजन सहयोग, शिशु, बालक, युवक, गृहस्थ, आदि अवस्थाओं में शिक्षा की श्रायोजना, सामाजिक जीवन में मन वचन काय से सत्य व्यवहार, अर्थ, यश, वैभव, सुख, सम्पत्ति, धर्म, अध्यात्मोनति की प्राप्ति में पूर्ण अथक परिश्रम, समाबोन्नति के उपाय,
आदि सब ही श्रावश्यक विषयों पर गहन और लाभदायक प्रकाश डाला गया था। वह व्याख्यान जैन गजेट १९२१ के पृष्ठ २ से १४ तक प्रकाशित है। इस अधिवेशन में पंडित अर्जुनलाल सेठी बी. ए. भी ७ बरस के एकान्त कारागार से विमुक्त होकर सम्मिलित हुए थे !
उन्नीसवाँ अधिवेशन उन्नीसवां अधिवेशन बीकानेर में ८ अक्टूबर १९२७ को श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह के सभापतित्व में हुआ। __ स्वागत समिति ने सुन्दर छपे हुए निमंत्रण कार्ड द्वारा जैन तथा अजैन सज्जनों को आमंत्रित किया था। विशाल मंडप स्त्री पुरुषों से खचाखच भरा था। यह अधिवेशन श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांनफ्रेंस के वार्षिक अधिवेशन के साथ उनके ही मंडप में हुआ था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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श्री० जे० एल० जैनी० एम० ए० मुज़फ़्फ़रनगर १६१६, नागपुर अधिवेशन १६२० के सभाध्यक्ष
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श्री० वाडीलाल मोतीलाल शाह बीकानेर अधिवेशन १६२७ के सभाध्यक्ष
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श्री० संठ अचल सिह, एम० एल० ए०
: लखनऊ अधिवेशन १६३६ के सभाध्यक्ष 中中中中中中中中史****中中中中中中中必中中中中中中中中中中中中中中中中中中中学
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(
२६
)
करीव ४०० श्वेताम्बर जैन एकत्रित थे। श्री अजितप्रसाद ने अानाय
और जातिमेद को मिटाकर पारस्परिक जैन मात्र में सह-भोज और विवाह सम्बन्ध होने के औचित्य और सामाजिक दृढ़ता पर प्रभावक व्याख्यान किया। उन्होंने कहा था कि श्रोसवाल, अग्रवाल, खंडेलवाल, पल्लीवाल, आदि Walls (दिवारों) को तोड़कर एक Vast Hall विशाल भवन बनाना अत्यन्त आवश्यक है । यह जैन समाज के बीवन. मरण का प्रश्न है। श्रीयुत शाह ने श्वेताम्बर-दिगम्बर मुकदमे का पारस्परिक मनोनीत पंचायत द्वारा निर्णय कराने में तन, मन, धन से भागीरथ प्रयत्न किया था। उभय पक्ष के नेताओं के हस्ताक्षर पंचायती निर्णय के इकरारनामे पर करा लिये थे । किन्तु “पूजाकेस" का फैसला कचहरी से हो गया; और सब प्रयत्न निष्फल हुआ।
बीसवाँ अधिवेशन
वीसवां अधिवेशन लखनऊ में आगरा निवासी सेठ अचल सिंहबी के सभापतित्व में ११ अप्रैल १६३६ को हुा। उल्लेखनीय प्रस्ताव ये
(२) महामंडल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्तितः प्रयत्न करेगा कि तीर्थ क्षेत्र सम्बन्धी विवाद पारस्परिक समझौते से पंचों द्वारा निर्णय कर दिये जाएँ । कचहरी में न जाएँ। शौरीपुरी अागरा केस के निर्णय के लिये श्रीयुत गुलावचंद श्रीमाल डिस्टिक्ट बन्ज, और अजित प्रसाद नियत किये गये। दोनों ने काफी कोशिश की। और फैसला भी लिख लिया; मगर वह फैसला उभय पक्ष को मजूर न था, इस कारण रद्दी कर दिया गया । आखिर हाईकोर्ट अलाहाबाद से वही फैसला हुश्रा जो यह पंच कर रहे थे। उभय समाज का रुपया व्यर्थ बरबाद हुआ।
(३) प्रत्येक सदस्य पूर्ण प्रयत्न करेगा कि भिन्न-भिन्न जैन बातियों सम्प्रदायों में विवाहादिक सामाजिक सम्बन्ध किये जायें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( ३० ) (४) प्रत्येक सदस्य अन्य सम्प्रदायों के धार्मिक पर्व में सम्मिलित हुश्रा करेगा।
इक्कीसवाँ अधिवेशन
इक्कीसवां अधिवेशन वर्धा में १९-२० मार्च १९३८ को सेठ राजमलजी ललवानी एम. एल. ए. के सभापतित्व में हुआ। अनेक जैन सम्प्रदाय, जाति, उपजाति के सज्जन उपस्थित थे। महिला सभा भी हुई थी। यह अधिवेशन १९ मार्च को श्री हीरासावजी डोमे के यहाँ विवाह-मंडप में सम्पन्न हुा । महामडल का उद्देश्य जैन धर्म प्रचार, तथा जैन जाति उदार है । बहुधा जैन संस्थाओं का अधिवेशन किसी धार्मिक उत्सव के साथ साथ होता है। यह प्रथम अवसर था कि एक विवाहोत्सव पर महा मंडल का अधिवेशन कराया गया। श्री हीरासावजी डोमे विशेष बधाई के पात्र हैं। मगलाचरण
शीतलप्रसादजी ने किया था। स्वागत सभापति श्री पुखराजजी कोचर एम. एल. ए., सी. पी. काउन्सिल हिंगनघाट निवासी ने लिखित भाषण पढ़कर सुनाया। जिसमें मंडल के उद्देश्य पर सुन्दर विवेचन किया गया था। यह बैठक ८ से ११ तक रही। दिन में नागपुर बैंक वर्षा के विशाल आफिस में सब्जेक्ट कमेटी की मीटिंग हह । और रात्रि को फिर विवाह मंडप में प्रस्ताओं पर भाषण हुए। २० मार्च को सुबह से ११ तक श्री गणपतरावजी मेलांडे के यहाँ विवाह मण्डप में प्रस्तवों पर भाषण हुए । सभापति का अन्तिम भाषण मार्मिक था। तीनों फिरकों ने सम्मेलन में भाग लिया, तथा भ्रातृ भोज में सम्मिलित हुए । श्री गणपतरावजी का समाषप्रेम और उत्साह सराहनीय है। तीसरे पहर जैन छात्रालय में सौमाग्यवती वसुन्धरादेवी धुमाले की अध्यक्षता में जैन महिला सम्मेलन हुआ। इन दोनों विवाहों में वर-कन्या भिन्न जाति, और मिन सम्प्रदाय के ये । रात्रि को दिगम्बर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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श्री० सेठ राजमल लालवनी वर्धा अधिवेशन १६३८ के सभाध्यक्ष
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(
३१ )
जैन मन्दिर में डा० चुननकर पी. एच. डो. का व्याख्यान हुआ।ब. शीतलाप्रसाद, प्रोफेसर हीरालाल, डा. जुननकर, श्री जुननकर सबजन, श्री एम. वी. महाजन ऐडवोकेट, टी. पी. महाजन वकील, सुगनचन्द लुनावत एम. एल. ए., दीपचन्द गोठी एम. एल. ए., फूलचन्दनी सेठी, कन्हैयालालजी पाटनी, पानकुंवर बाई धर्मपत्नी सेठ राजमलजी ललवानी, बहन शांताबाई रानीवाला, सो० वसुन्धरादेवी धुमाले, अब्दुल रजाक खाँ एम. एल. ए. बाहर से पधारे थे। श्री अन्दुल रजाक खाँ का भाषण अहिंसापर हुआ। श्रदय श्रीकृष्णदास बाजू, सत्यभक दरबारी लालजी के व्याख्यान भी हुए । वर्षा म्युनिसिपैलिटी के अध्ययक्ष श्री गंगाविशन बजाज, तालुका काँग्रेस कमेटी के अध्यद श्री शिवराज चूड़ीवाले भी पधारे थे। इस अवसर पर किसी प्रकार भी चन्दा नहीं लिया गया। प्रबन्ध का सब खर्च चिरंजीलालजी बडजाते ने किया । यों तो इस अधिवेशन में १३ प्रस्ताव हुए। उल्लेखनीय प्रस्ताव निम्नलिखित थे।
(नं. १)-धार्मिक भंडारों में जो रुपया जमा है, उसका उपयोग जैन साहित्य प्रचार, धर्म प्रचार, प्राचीन ग्रन्थोदार, बैन धर्म सम्बन्धी विद्या प्रचार में किया जाए।
(नं.५)-बब तक जैन समाज के छात्र परस्पर मिलकर विद्याध्ययन नहीं करेंगे, तब तक एकता, प्रेम-वर्धन नहीं हो सकता । अतएव मण्डल को राय में जैन यूनिवर्सिटी, कालेज, हाईस्कूल आदि सम्मिलित संस्थाएं होनी चाहिए जिसमें बैनधर्म के मूल सिद्धान्त पढ़ाए जायें बिन सिद्धान्तों में दिगम्बर श्वेताम्बर साम्प्रदायिक मेद नहीं है । तथा व्यवहार धर्म की रीतियों में जो मतभेद है, उनपर समष्टि रखना सिखलाया बाए । यह मण्डल क्तमान जैन समाज के संचालकों से निवेदन करता है कि वह इस उद्देश्य की पूर्ति संस्थाओं में करें।
(नं. ६.) समाज में विधवाओं की दशा बहुत शोचनीय है । उनके •उदार के लिये उचित है कि विधवा अाश्रम खोलकर उनका
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बोवन सुधार करें; बिससे उन्हें कभी विधर्मी होने का अवसर प्राप्त न हो।
बाईसवाँ अधिवेशन बाईसवाँ अधिवेशन ७ मई १९३८ को वरुड तहसील मोरसी (अमरावती में ) भैय्यालालबो मांडवगडे के सभापतित्व में हुआ, पास-पास के स्थानों के करीब ३०० जैन आ गये थे । अजैनों की सख्या भी इतनी ही थी । कारंजा श्राविकाश्रम की व्यवती बाईजी ने प्रभावशाली व्याख्यान दिया ।
तेईसवाँ अधिवेशन तेईसवाँ अधिवेशन यवतमाल टाउन हाल में साल १६४० में भी ऋषभसावनी काले के सभापतित्व में हुा । सेठ ताराचन्द सुराना प्रेसीडेन्ट म्युनिसिपल कमेटी स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। इस अधिवेशन में महामण्डल ने अपने प्रस्तावों में निम्न घोषणा की
१. प्रत्येक व्यक्ति शुद्ध शरीर, शुद्ध वस्त्र, शुद्ध द्रव्य से, विनयपूर्वक, विधानानुसार, जैन मन्दिर में प्रक्षाल पूना का अधिकारी है । उसके इस धार्मिक अधिकार में विघ्न बाधा लाने से दर्शनावरणीय, शनावरणीय मोहनीय अन्तराय कर्म का बन्धन होता है ।
२. वर्तमान परिस्थिति में वहाँ जैन मन्दिर मौजूद है, वहाँ नयी मन्दिर, या नई वेदी बनवाना बिल्कुल अनावश्यक है ।
३. पाति सुधार के लिये निम्न प्रयत्न महामण्डल करेगा । (१) साम्प्रदायिक विचार गौण करके शाखा मंडलों की स्थापना । (२) समस्त जैन समाज में बेरोकटोक रोटी-बेटी व्यवहार । (३) जैन धर्म, जैन साहित्य, प्राचीन शास्त्र और सामान्य शिक्षा
प्रचागर्थदेव द्रव्य का जो मंदिरों में जमा है सदुपयोग हो । (8) जैन तीर्थ क्षेत्र-सम्बन्धी झगड़ों का पारस्परिक समझौता । .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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श्री० भैय्यालाल बरुड (अमरावती) अधिवेशन १६३८ के सभाध्यक्ष
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( ३३ )
(५) स्त्रीशिक्षा का समुचित प्रबन्ध और विधवा और अनाथ की रक्षा तथा सहायता ।
(६) परदा प्रथा का हटाना ।
(७) बेरोजगार बैनियों को रोजगार से लगाना |
́ (5) जन्म-मरण भोज प्रथा को दूर करना ।
(1) जन्म, विवाह श्रादि घरेलू उत्सवों में व्यर्थ व्यय रोकना । (१०) बाल विवाह, वृद्ध विवाह तथा अनमेल विवाह की प्रथा को बन्द करना ।
(११) जाति बहिष्कार के दस्तूर को हटाना ।
(१२) भारतीय सामाजिक प्रबन्ध में, अर्थात् केन्द्रीय, प्रान्तीय धारा सभा, डिस्ट्रिक्ट बोडं ग्राम पंचायत श्रादि में भाग लेना ।
चौबीसवाँ अधिवेशन
चौबीसवाँ अधिवेशन ५ मई १९४४ को देशभक्त सेठ खुशालचंद बी खबांची एम. एल. ए. ( M. LA.) के सभापतित्व में वर्धा में हुश्रा । सवजेक्ट कमिटी की मीटिंग बजाज-वाडी में हुई और महामण्डल का खुला बलसा तिलक भवन ( टाउन हाल ) में ! उल्लेखनीय प्रस्ताव यह थे ।
(v) दिगम्बर श्वेताम्बर धार्मिक पर्व पर मिलकर साप्ताहिक या मासिक सामूहिक प्रार्थना की जाय ।
(६) महामण्डल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्ति से प्रयत्न करे कि तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी सब मुकदमें पंचायती न्यायालय द्वारा निर्णीत किये जायँ, वह निर्माय प्रत्येक जैन को मान्य हो । कोई मुकदमा सरकारी कचहरी में न जाने पावे ।
(७) बिस किसी जैन मंदिर या अन्य नहीं रक्खा गया हो, या उसमें सन्देह हो, या
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संस्था का हिसाब साफ श्रधिकारीवर्ग के सामने
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( ३४ ) पेश न किया गया हो, उस हिसाब को ठीक कराकर प्रकाशित कराया बाय । जैन मंदिरों में जो रुपया जमा है उसका जैन साहित्य तथा बैन कृति की रक्षा और प्रचार में सदुपयोग किया जाय !
(८) गम्भीरमल पांड्या ने जो विवाह नाबालिग कन्या से जबरन उसको अनुमति विरुद्ध किया है उसको महामण्डल घृणित घोषित करता है। यद्यपि सरकारी अदालत से वह विवाह ठीक माना गया है तथापि मण्डल उसको नीति विरुद्ध, समाजोन्नति में हानिकारक, अनुचित, और धर्म विरुद्ध मानता है । जैन समाज और केन्द्रीय घारा सभा से मण्डल अनुरोध करता है कि प्रचलित कानून में इस प्रकार सुधार किया जाए और ऐसी योजना प्रति शीघ्र की बाय कि आइन्दा ऐसे अत्याचार न होने पावें!
(१) जैन समाज का असंख्य रुपया धर्म प्रभावना के नाम पर पंच कल्याणक, बिम्ब प्रतिष्ठा, रथयात्रा, गजरथ आदि उत्सवों में खर्च होता है । कितने ही स्थानों में मन्दिरों और मूर्तियों की रक्षा और पूजा का उचित प्रबन्ध नहीं है । मण्डल प्रस्ताव करता है कि जैन समाज की विचार धारा में इस प्रकार परिवर्तन किया बाय कि धर्मनिष्ठ लोग अपना धन मौजूदा प्राचीन मूर्तियों और मन्दिरों की खोज, जीर्णोद्धार, रक्षा और सुप्रबन्ध में लगावें ।
(१०) धार्मिक वात्सल्य, सामाजिक प्रेम और सहयोग की वृद्धि के लिये अन्तर्जातीय, और अंतरसाम्प्रदायिक विवाह और सहभोव की आवश्यकता है।
पच्चीसवाँ अधिवेशन पचीसवाँ अधिवेशन ता. २५, २६ अप्रैल १९४५ को डाक्टर हीरा लालजी जैन एम० ए०, एल० एल० बी०, डी. लिट प्रोफेसर मारिस कालिन नागपुर के सभापतित्व में गाडरवादा में महाबीर बयंती के समारोह पर बहुत ही शान और ठाठबाट से हुा । प्रातः प्रभात फेरीत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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श्री० डाक्टर हीरालाल, एम०ए०, एल-एल० बी०, डी० लिट.
गाडरवाडा अधिवेशन १६४५ के सभाध्यक्ष
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३५ )
तत्पाश्चात भगवान की सवारी पालकी में, उपदेशीय भजन मंडली सहित बाजारों में निकली। पालकी के पीछे महिला-मडली भी भजन कहती हुई चलतो यो। शाम को मंडल के अध्यक्ष प्रोफेसर हीरालाल तथा मानिकलालजी कोचर वकील नरसिंहपुर अध्यक्ष, स्वागत समिति की सवारी नव निर्मित, सुसज्जित छतरोदार रथ में निकली, जिसको एक बैल आगे और बारह बोड़ी बैल पीछे, कुल पच्चीस बैल मिलकर खींच रहे थे। सारथी का माननीय पद श्रीयुत सेठ लालजी भाई ने ग्रहण किया था। रथ के साथ-साथ जैन तथा अबैन बनता हजारों की संख्या में और जैन महिला मंडली रथ के पीछे थी। बाजारों, दूकानों और मकानों पर दर्शकों की भीड़ थी । साथ-साथ बैंड बाजा, भजन तथा जयकार शन्द तो होते ही थे।
गल्लामंडी के विशाल मैदान में सभा मंडप बनाया गया था। मडी के सब तरफ मकानों पर दीपावली जगमगाहट कर रही थी। शब्द प्रसारक यंत्र Microphone) भी लगाया गया था।
मङ्गलाचरणपूर्वक बारह कन्याओं ने मिलकर स्वागत गान गाया था ? स्वागताध्यक्ष के भाषण हो जाने पर, हीरालालजी ने डेढ घंटे तक धारा प्रवाह मौलिक प्रवचन किया ! अहिंसा, स्यादवाद, कर्म सिद्धान्त, अपरिग्रह, वात्सल्य, विश्वप्रेम, सामाजिक एकता आदि विषयों पर सरल शब्दों में, स्पष्ट स्वर से, हृदयग्राही, असाधारण ऐसा मौखिक व्याख्यान किया कि बाल-वृद्ध, स्त्री पुरुष सच ही जी लगा कर सुनते रहे। रात को करीब ग्यारह बजे श्रीयुत अजितप्रसाद द्वारा भगवान महावीर जीवन और कुछ सामाजिक विषयों पर भाषण होकर सभा समाप्त हुई।
दूसरे दिन ५६ ता० को राय साहेब सेठ श्रीकृष्णदासजी के दीवानखाने पर विषय-निर्धारिणी समिति की बैठक करीब १२ बजे. तक हुई।
रात्रि को मण्डल का खुला अधिवेशन हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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स्थानीय भाइयों का उत्साह, प्रेम और पारस्परिक भ्रातृ-भाव उल्लेखनीय था। दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तारण पंथी, जैन, अजैन सब इस महोत्सव में सम्मिलित होकर काम कर रहे थे।
छब्बीसवाँ अधिवेशन चैत सुदी १२ व १३, ता० १३, १४ अप्रैल १९४६ को इटारसी में भारत के सुप्रसिद्ध व्यापारी साहू भैयाँसप्रसादजी के सभापतित्व में २६वाँ अधिवेशन सम्पन्न हुआ। सभापति महोदय का स्वागत इटारसी की समस्त जैन समाज व बाहर से आये हुए प्रतिनिधिवर्ग ने रेलवे प्लेटफार्म पर किया। स्वागताध्यक्ष श्री० दीपचंदजी गोठी ने फूलमाला पहनाई। सभापतिजी को श्री० दीपचंदजी गोठी के सुसज्जित निवास स्थान पर ठहराया गया । दोपहर को २ बजे से ६ बजे तक कार्यकर्ताओं की सभा हुई, जिसमें बाहर से आये हुए सज्जनों का परिचय कराया गया। इस सभा में अनेक विषयों पर खुले मन से परामर्श हुआ। रात को ८ बजे अधिवेशन का कार्य शुरू हुआ।
स्वागत गान के पश्चात् स्वगताध्यक्ष का भाषण हुश्रा। सभापति महोदय ने अपने छपे हुए व्याख्यान में जैन समाज के संगठन और भलाई के लिए अनेक मार्ग सुझायें । प्रधान मन्त्री सेठ चिरंजीलालबी चरवाते ने गत वर्ष का विवरण पढ़ा ।
१५ को सुबह ८ बजे सभापतिजी का जुलूस मोटर में निकाला गया। जगह-जगह पर उत्साहपूर्वक विशेष स्वागत हुश्री । ६ बजे से प्रस्तावों पर विचार विनिमय हुश्रा । ३ बजे अधिवेशन का कार्य शुरू हा। रात को ८ बजे से महावीर जयंती का उत्सव हुमा । स्थानीय
और बाहर से आये हुए विद्वानों के भाषण, कविता और गान हुए । हीरालालजी ने अपनी पुत्री की सगाई उत्साही युवक स्वागत मंत्री शिखरचंद से की। सम्मेलन के सुअवसर पर यह सुप्रथा अनुकरणीय
है। पंडित जितप्रसादजीस ने कन्या को प्राशीर्वाद दिया। प्रधान मंत्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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श्री० साहु श्रेयांस प्रसाद इटारसी अधिवेशन १६४६ के सभाध्यक्ष
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सेठ चिरंजीलालची बडजाते को मानपत्र ५००१७ की थैलोके साथ अर्पण किया गया। उन्होंने मानपत्र का आभार माना, अपनी कमजोरियों का बिक्र करते हुए । अर्पित थैली में १०००) अपनी ओर से मिलाकर इस तरह ६००१) मंडल के सभापति साहू श्री० भैयाँसप्रसादजी को मंडल के कार्य के लिए सौंप दिये सेठ चिरंजीलालजी का यह त्याग
और पूर्ण लगन के साथ मंडल की सेवाएँ सराहनीय है । लाउडस्पीकर का इन्तजाम था, चाँदनी रात थी। ___ इस वर्ष से मंडल के प्रधान मन्त्री का भार श्री सुगनचंद तुणावत को सौंपा गया है।
कुछ प्रस्ताव उल्लिखित किये जाते हैं । नं.१-यह अधिवेशन गत १९४२ अगस्त के राष्ट्रीय महाप्रान्दोलन में पांडला निवासी उदयचंद जी, गढ़ाकोटा निवासी मोहनलालपी तथा अनजान जैन वोरों और शहीदों के प्रति श्रद्धांजिल अपित करता है।
न.२-जैन समान के आदर्श तपस्वी विद्वान आचार्य श्री १०८ कुंथुसागरजी, प्राचार्य श्री शान्तिसागरजी छानी, सूरजभानजी वकील, विश्वम्भरदासबी गार्गीय झांसी के असामयिक निधन पर महामंडल को अत्यन्त शोक हुआ है । इन विभूतियों के अवसान से समाज शक्ति की बहुत चति हुई है।
नं. ३-भारत जैन महामडल की यह सभा केन्द्रिीय, प्रान्तीय सरकार से और देशी रजवाड़ों से प्रार्थना करती है, कि श्री. भगवान महावीर जयन्ती, चैत्र शुक्ल १३, को सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी जाए ।
न.-अखंड जैन समाज की महत्वाकांक्षा की प्रतीक ध्वजा सिर की बाय।
न.५-सामाजिक जीवन की नई आवश्यकताओं, धारणाओं और मान्यताओं के मुताबिक सामूहिक विवाह-प्रथा का प्रचार किया जाये। योग्य युवक युवतियों का सामूहिक विवाह, एक मण्डप में एक साथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( ३८ ) कराने की व्यवस्था की जावे । जहाँ तक हो सके मण्डल के अधिवेशन के साथ ही वह कार्य सम्पन्न किया जाय ।
न.६-समस्त जैन समाज में स्नेह, एकता, संगठन तथा अभ्युदय का विशेष ध्यान रखते हुए यह महामण्डल नीचे लिखे बोर्ड, केन्द्रीय, प्रान्तीय, तथा विविध रजवाड़ों में स्थापित करने का प्रस्ताव करता है ।
१. बैन श्रोवर सीज़ बोर्ड, २. एजुकेशन बोर्ड, ३. एकोनोमिक रिलीफ बोर्ड ४. पोलिटिकल बोर्ड, ५. वालन्टियर बोर्ड, ६. मेडिकल बोर्ड ।
महामण्डल के अनुशासन में इनको स्थापित करने तथा उनका कार्य सुचारु रूप से चलाने का अधिकार श्री. एम्० बी० महाजन वकील श्राकोला को दिया जाता है। अखिल भारत जैन समाज की सर्व संस्थाओं से प्राशा है कि, वे इस कार्य में पूर्ण सहयोग देंगी।
नं.७–मण्डल अनुभव करता है कि, समय और परिस्थितियों को देखते हुए हमें अपने बहुत से धार्मिक कर्मकांडों में काफी मितव्ययता की जरूरत है। इस हष्टि से यह आवश्यक है कि, जहाँ तक बने, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, गजरथ, आदि बन्द किये जाएँ, और जहाँ कहीं भी नये मन्दिर बनाये जायें वहाँ पूर्वप्रतिष्ठित मूर्ति किसी अन्य मन्दिर से लेकर विराजमान कर दी जाय । पूर्व स्थापित मन्दिर के पंचों को नये मन्दिर के लिये मूति देने में गर्व का अनभव करना चाहिए ।
नं.८-अप्रेल महीने में भोपाल रियासत के गुंडों द्वारा जैन व अन्य समाज और उनके मन्दिरों पर घोर अत्याचार को सुनकर महामण्डल को बड़ा दुःख हुअा है । वह उम्मीद करता है कि रियासत के अधिकारी इस अत्याचार पर विशेष खयाल रखते हुए जल्द से जल्द प्रभावशाली प्रबन्ध करेंगे। जिससे यह अविवेकशाली परिस्थिति जल्दी दूर हो ।
नं.१-देश में भयानक अन की कमी को यह अधिवेशन चिन्ता की दृष्टिसे देखता हुआ जनता से अनुरोध करता है, कि खेती, व गोपालन के उद्योग को अपनाकर शुद्ध खाद्य और अन्य उपयोगी वस्तुएँ अधिकाधिक उपजावें।
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श्री कुन्दनमल, शोभाचन्द फीरोदिया, स्पीकर बाम्बे लेजिस्लेटिव ऐसेम्बली
हैदराबाद दक्षिण अधिवेशन १६४६ के सभाध्यक्ष
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( ३६ ) नं. १०-मण्डल की राय में अब वह समय आ चुका है जब जैन समाज के सब फिरकों के लोग अपने अपने सामाजिक और धार्मिक उत्सव एकत्रित होकर, एक ही जगह मिलकर एक विशाल जैन संघ के रूप में प्रायोजित करें । मण्डल सब जगह की पंचायतों को ऐसे कार्यों में यया शक्ति सहयोग देता रहेगा। ___न. ११-यह अधिवेशन कांग्रेस को देश की एक मात्र प्रतिनिधि संस्था मानता हुआ जैन बनता से अनुरोध करता है कि, कांग्रेस कार्य में यथाशक्ति पूर्ण सहयोग दे।
न. १२--यह मण्डल माननीय सभापति को अधिकार देता है कि, वे २१ आदमियों की एक प्रबन्धकारिणी कमिटी स्थापित करें।
__सत्ताईसवाँ अधिवेशन ___ महामण्डल का सत्ताईसवाँ अधिवेशन २, ३, ४ अपरैल १९५७ को श्री कुन्दनमल शोभाचन्द फीरोदिया, स्वीकार बम्बई लेजिस्लेटिव ऐसेम्बली के सभापतित्व में हैदराबाद ( दक्षिण ). नगर में होने को है । स्वागत समिति के अध्यक्ष श्रीयुत सेठ रघुनाथ मल बैकर हैं। और श्री विरवी चन्द चौधरी स्वागत मन्त्री हैं ।
उपसंहार १९२१ से १६२६ तक मैं कौटुम्बक संकटों में और श्री सम्मेद शिखर केस में, श्री बैरिस्टर चम्बत राय के साथ लगा रहा, श्रीयुत् युगमन्धरलाल बैनी को इन्दौर हाईकोर्ट की बबी से अवकाश न मिला अन्य कार्यकर्ता भी विविध प्रकार व्यस्त रहे, और ६ बरस तक मण्डल का अधिवेशन न हो सका।
१९२७ में मुझे कुछ अवकाश मिलने पर बीकानेर में अधिवेशन का आयोजन श्री वाडोलाल मोतीलाल शाह के सभापतित्व में हो सकी । श्री युगमन्धरलाल जैनी का शरीरान्त १९२७ में हो गया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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। ४० ) १९२८ से १९३५ तक, ८ बरस, मुझे श्री सम्मेदाचल, पावापुरी, राजगृही तीर्थक्षेत्र सम्बन्धित मुकदमों, बीकानेर हाईकोर्ट की बजी, लाहौर हाईकोर्ट में डाक्टर सर मोतीसागर के दफ्तर के काम, हैदराबाद में मुनि चय सागर के बिहार प्रतिबन्ध के मुकदमें, आदि से अवकाश न पिलने के कारण अधिवेशन न हो सका ।
१६४१. १९४२, १९४३ में भी अधिवेशन न हो सका । १७ बरस अधिवेशन न होना अवश्य खेदजनक है। इसका मुख्य कारण यह था कि तीर्थक्षेत्र-सम्बन्धी मुकदमों के कारण श्वेताम्बरीय भाइयों से जो सहयोग मिलता था, वह कम हो गया था।
विशेष हर्ष का अवसर है कि महामण्डल का ५७वाँ अधिवेशन हैदराबाद ( दक्षिण ) में श्री कुन्दनमल शोत्राचन्द फोरोदिया के सभापतित्व में मार्च २, ३, ४, अपरैल १९४७ को हो रहा है ।
महामण्डल के अधिवेशन सूरत, और बम्बई में तो हो चुके हैं । यह पहला अवसर है कि मण्डल अपने जन्म स्थान से हजारों कोस दूरस्थ दक्षिण देश की एक महान देशीय रियासत में आमन्त्रित किया गया है। यह इस बात का शुभ प्रतीक है कि महामण्डल की प्रियता जैन समाज में फैल रही है। ___ वास्तविक बात यह है कि जैन समान में बितनी भी प्रगति और उन्नति हुई है, उसका श्रेय मण्डल के कार्यकर्ताओं को है, मण्डल के कार्यकर्ताओं ने दिगम्बर जैन महासभा को चलाया, बब महासभा पर एक स्वार्थी संकुचित विचार वाले दल ने अधिकार जमा लिया, तो मण्डल के कार्यकताओं ने ही दि०जैन परिषद की स्थापना को । पारा का जैन सिद्धान्त भवन, हरप्रसाद, बैन डिगरी कालिज, वीर वाला विश्राम, और बम्बई में श्राविकाभम, इलाहाबाद, लाहौर, आगरा में बैन छात्रालय श्रादि के स्थापन करने वाले मण्डल के कार्यकर्ता हो थे । महामंडल के उद्देश्य संचित तथा व्यापक शन्दों में
[१] जैन समाज में एकता और उन्नति,
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।२] जैन धर्म की रक्षा और प्रचार है।
इन दो उद्देश्यों की पूर्ति में महामंडल पिछले ४७ वर्ष से विभिन्न प्रकार प्रयत्न करता आ रहा है जैसा इसके उन प्रस्तावों से विदित होगा वो उल्लिखित किये गए हैं।
प्रस्तावों का युग गया। काय करने का समय आ गया । साहसी युवकों का धर्म है कि जो मार्मिक प्रस्ताव मंडल ने स्वीकृत या घोषित किये हैं, उनको कार्यरूप में परिणनमन करके दिखा दें। _____ रूढ़ियों का युग भी बीत चुका ! युवक-संघ, द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव पर दृष्टि रखते हुए समय की गति, विधि, माँग के अनुसार बढ़ता चले। मंडल की नीति उदार है। उसका कार्यक्षेत्र व्यापक है। उसका मार्ग सीघा, स्पष्ट, उज्ज्वल है। उसका वक्तव्य स्पष्ट है।
छोटी निमूल बातों में मेद बुद्धि को त्यागो । मूल सिद्धान्तों में 'एकता पर जोर दो। मिलकर, एकदिल होकर, एक साथ काम में लग चाओ, विजय तुम्हारे हाथ में है।
जैन जयतु शासनम्
लखनऊ.
3 अजितप्रसाद । अजिताभ्रम
फाल्गुण पूर्णिमा
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परिशिष्ट (१) प्रस्ताव तथा कार्यसूची, समय क्रमानुसार
१८६६ १-जाति व सम्प्रदाय मेद-भाव गौण करके, बैनमात्र में पारस्परिक
सम्बन्ध प्रचार । २-जैन अनाथालय की स्थापना ।
१६०० ३-प्रत्येक जैन, चाहे वह अंग्रेजी भाषा जानता हो या नहीं, इस
संस्था का सदस्य होने का अधिकारी है। ४-हिन्दी जैन गजेट का एक क्रोड़ पर अँग्रेजी भाषा में संस्था के
मुखपत्र रूप, प्रकाशित किया जाय । ५-काम करने के इच्छुक बेरोजगार शिक्षित जैनियों की सूची बनाई
जावे। ६-जैन धर्म के मुख्य सिद्धान्त और मान्यता स्पष्ट सरल भाषा में
पुस्तकाकार प्रकाशित हों। ७-समस्त जीव दया प्रचारक और मद्य-निषेधक संस्थानों से सहयोग और पत्र-व्यवहार किया जाय ।
१६०१ ८-भारतीय सरकार को लिखा जाय कि समस्त गणना प्रधान संग्रह. पुस्तकों में बैनियों के लिये अलग स्तम्भ बनाया जाय ।
१९०२ ६-पंजाब, बंगाल, संयुक्त, मदरास, राजपूताना, मध्य प्रान्त, बम्बई
में सात प्रान्तीय शाखा की स्थापना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( ४३ )
१० -- अग्रेजी संस्कृत शिक्षा प्राप्ति के लिये स्वर्णपदक भेट किये गए ।
११ --- विधवा सहायक कोष की स्थापना । १२ - श्रारा में जैन सिद्धान्त भवन । १३ – बनारस में स्याद्वाद महाविद्यालय |
१६०३
१४ - अनाथालय मेरठ से हिसार श्रा गया ।
१५ - श्वेताम्बर कान्फरेन्स ने सहयोग वचन दिया ।
-
१६ – विवाहादि सामाजिक तथा धार्मिक उत्सवों पर सादगी और मितव्ययता से काम किया जावे ।
१७ – जैन गजेट, अँग्रेजी भाषा में, श्री जे० एल० जैनी के सम्पादकत्व में स्वतन्त्र रूप से निकलने लगा ।
१- - समाचार पत्र, ऐतिहासिक स्कूली पुस्तक, अन्य पुस्तक आदि द्वारा, जो प्रहार जैन धर्म पर होते रहते हैं, उनसे जैन धर्म की रक्षा, और उन प्रहारों का उत्तर देने के लिये श्री जगत प्रसाद एम० सी० के सभापतित्व में एक कमेटी कायम हुई !
१६०४
१६ - दिगम्बर श्वेताम्बर समाज में पारहरिक सामाजिक व्यवहार, और राजनैतिक कार्यों में सहयोग होना श्रावश्यक है । श्रहिंसा अपरिग्रह, स्याद्वाद, कर्म सिद्धान्त आदि निर्विवाद विषयों पर सार्वमान्य सिद्धान्त का प्रकाशन होना बांछनीय है ।
१६०५
२०- राय साहेब फूलचंद राय लखन
निवासी ने दो बरस तक १००) मासिक छात्रवृत्ति जैन युत्रक को जो जापान बाकर श्रौद्योगिक शिक्षा प्राप्त करे, देने की घोषणा की ।
२१- जैनियों के लिये विदेश में समुद्र पार करके जाने का मार्ग
खुल गया ।
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( ४४ )
२२-शिवा प्रचारार्थ उदारतया दान दिया गया । २३-पुरुषों ने महिला सभा में, और महिलाओं ने पुरुष सभा में
व्याख्यान दिये। २४-चालीस पदक की घोषणा । २५-स्यादाद विद्यालय में रह कर हिन्दु कालिज में शिक्षा प्राप्त .
करने के लिये पारा निवासी बाबू देवकुमारची ने छात्रवृत्ति की
घोषणा की। २६-जैन महिलारत्न श्रीमती मगन बाई जी को महासभा की तरफ से
५०) का स्वर्णपदक। २७-स्त्री शिक्षा प्रचार के लिये निम्न उपायों की योजना को बाय ।
(क) स्थानीय कन्याशाला स्थापित की जावें । (ख) अध्यापिका नय्यार की बायें । (ग) परीक्षा कमेटी। (घ) प्रत्येक सदस्य अपनी पत्नी, बहन, बेटी को पढ़ावे । (च) पारितोषक और छात्रवृत्ति । (छ) पठनीय पुस्तक निर्माण । (ज) प्रौढ़ महिलाओं को उनके घरों पर शिक्षा दान । (झ) महिला-शास्त्र सभा । (ट) महिला-कारीगरी की प्रदर्शिनी । (8) असमर्थ विधवाओं की सहायता ।
(ड) उपरोल्लिखित कार्यों के लिये कोष । २८-प्रत्येक जैन को अपनी श्रद्धानुसार देव-दर्शन, पूजन, शास्त्र-स्व ध्याय सामायिक आदि अावश्यक धार्मिक कार्य अवश्य करने चाहिये।
१९०६ २६-श्रीयुत् सखीचन्दबी (दि. इन्सपेक्टर जेनरल. पुलिस विहार )।
बीवदया प्रचारिणी सभा आगरा के सभापति, जीवदया विभाग के मत्री नियत किये गये ।
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प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य
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श्रीमती विद्यावती देवरिया
श्री तख्तमल जी बो० ए०, एल-एल० बी०
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श्री विजयसिंह नाहर एम० एल० ए०
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१९०७ ३०-श्वेताम्बर कांफरेन्स के पन्मदाता, श्रीयुत् गुलाबचन्द दहा
सभापति का व्यास्थान, सामाबिक, व्यवहारिक एकता। ३१-१३ बरस से कम कन्या का, १८ बरस से कम कुमार का विवाह
न हो। ३२-विवाह और मरण समय व्यर्थ व्यय रोका बाय । ३३–वेश्या नृत्य बन्द किया जाय । ३४-वृद्ध पुरुष का बालिका से विवाह बन्द हो । ३५-परदा-प्रथा हटा दी जाय । ३६-समाज में अनैक्य फैलानेवाले तीर्थक्षेत्र सम्बन्धित, कचहरी में
मुकदमेबाजी का अन्त करने के लिये श्वेताम्बर कांफरेन्स और
दिगम्बर महासभा के ६-६ सदस्यों की कमेटी बनाई बाय । ३७-साम्प्रदायिक पक्ष-पात से प्रेरित होकर, धर्म की आड़ में जो
पारस्परिक आषात प्रतिघात किये जाते हैं वह बंद होने चाहिये । ३८-यह देखकर कि समाज का लाखों रुपया तीर्थचेत्रों के नाम पर
विविध प्रकार के खातों में व्यक्तियों के पास पड़ा हुआ है, उस द्रव्य की सुरक्षा और सदुपयोग के विचार से उचित प्रतीत होता है कि समस्त देव द्रव्य एक सेंट्रल जैन बैंक में रखा जाय । और
उस बैंक की स्थानीय शाखा मुख्य स्थानों में स्थापित हो । ३१-बैन समाज के प्रतिनिधि, समाज की तरफ से निर्वाचित होकर सेंट्रल और प्राविंशियल काउन्सिलों में लिये जायें ।
१६०० ४०-तीर्थक्षेत्र-सम्बन्धी विवादस्थ विषयों के निर्णयार्थ पंचायत की
स्थापना । ४१-मेरठ में बैन छात्रालय की स्थापना । ४२-अध्यापिका तय्यार करने के लिये विधवा महिलाओं को छात्रवृत्ति
प्रदान ।
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( ४६ )
१६१० ४३-संस्था का नाम यगमेन्स ऐसोसियेशन की जगह भारत जैन महा
मंडल रखा गया । अंग्रेजी भाषा में All-India Jain
Association कहा जायगा। ४४-हस्तिनापुर ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम को स्थापना का निश्चय ।
१९११ ४५-दस्सा-प्रक्षाल-पूजा-अधिकार का अान्दोलन ।
१९१३ ४६-श्रीमती मगनबाईजी को "जैन महिला रत्न" को पदवी भेंट की
४७-डाक्टर हरमन जैकोबी को "जैन दर्शन दिवाकर" पद से विभूषित
किया गया । ४८-डाक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषण को "सिद्धान्त महोदधि" उपाधि
से सम्मानित किया गया । ४९-राय बहादुर सेठ कल्याण मलजी इन्दौर को "दानवीर" पद
अर्पित किया गया। .५०-ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी का सम्मान उनको "जैन धर्म भूषण"
की उपाधि से बाद जग-केसरी पंडित गोपालदास बरैया द्वारा
किया गया । :५१-सिद्धान्त भवन पारा के जैन पुरातत्व सूचक वस्तुओं की प्रदशिनी।
१६१५ . ५२-श्वेताम्बर-दिगम्बर-स्थानक-वासी सभी सम्प्रदाय के जैनों ने बम्बई
नगर में ख्याति प्राप्त डाक्टर खुशालभाई। शाह के सभापतित्व में, साम्प्रदायिक भेदभाव को गौण करके, मिलजुल कर काम
किया । -५३-महात्मा गांधी बम्बई अधिवेशन में पधारे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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(४७)
१९१६ ५४-बीस बरस से कम उमर के लड़के का, और १४ से कम की लड़की का विवाह न किया जाय ।
१६१६ ५५-पचपन चरस से ऊपर पुरुष का, और जिसके पुत्र हो उसका
४५ बरस से ऊपर की उमर में पुनर्विवाह न हो। ५६-जैन बातियों में पारस्परिक विवाह तथा भोजन प्रचार किया
जाय । ५७-विवाह और देहान्त सम्बन्धित रिवाजों में यथा सम्भव सादगी
बरती बाय; और अनावश्यक रीतियाँ बन्द की जाय । ५८-लड़का या लड़की वाले को, किसी प्रकार भी बहुमूल्य नकद या
द्रव्य का प्रदर्शन करने से रोका जाय । १-विवाह या मौत के अवसरों पर अपनी शक्ति से अधिक खर्च का
रिवाज, और मरने पर बिरादरी का भोजन रोका बाय । ६०-जैन तीर्थो, मन्दिरों, और संस्थाओं का हिसाब जाँच किया बाकर
जैन समाचार-पत्रों में प्रकाशित किया चाय । ६१-हिसार निवासी श्री० उग्रसेन वकील ने सेट्रल जैन कालिब स्थापन करने के लिये १००००) दान की घोषणा की।
१६१७ ६२-लोकमान्य तिलक महाराज और माननीय खापर्डे कलकचा अधिवेशन में पधारे, और भाषण दिये।
१६१८ ६३-महामंडल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्तितः प्रयत्न करेगा कि
तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी विवादों का पारस्परिक समझौते से पंचों द्वारा
निर्णय कर दिया बाय।। ६३-अ-प्रत्येक सदस्य पूर्ण प्रयत्न करेगा कि भिन्न जैन चातियों और
सम्प्रदायों में विवाहादि सामाजिक सम्बन्ध किये जावें।
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( ४८ ) ६४-प्रत्येक सदस्य अन्य सम्प्रदायों के धार्मिक पर्व में सम्मिलित हुमा
करेगा।
१९३८ ६५-विवाहोत्सव में महामंडल अधिवेशन किया गया । १६-धार्मिक भंडारों में पो रुपया जमा है, उसका उपयोग जैन
साहित्य प्रचार, प्राचीन ग्रन्योद्धार, जैन धर्म-सम्बन्धी विद्या प्रचार
में किया जाए। ६७-वर्तमान परिस्थिति में जहाँ जैन मन्दिर मौजूद है, वहाँ नया
मन्दिर या नई बेदी बनवाना बिल्कुल अनावश्यक है। ६८-जाति वहिष्कार के दस्तूर को दूर करना ।
१९४४ ६९-दिगम्बर श्वेताम्बर धार्मिक पर्व पर मिलकर, साताहिक या मासिक
सामूहिक प्रार्थना की पाय। ७०-महाम डल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्ति से प्रयत्न करे कि तीर्थ
क्षेत्र सम्बन्धी सब मुकदमे पंचायती न्यायालय द्वारा निर्णय किये बायं । वह निर्णय प्रत्येक जैन को मान्य हो। कोई मुकदमा सरकारी
कचहरी में न जाने पावे। ७१-जिस किसी जैन मन्दिर या अन्य संस्था का हिसाब साफ
नहीं रखा गया हो, या उसमें सन्देह हो, या अधिकारीवर्ग के सामने पेश न किया गया हो, उस हिसाब को ठीक कराकर
प्रकाशित कराया जाय। ७२- जैन समान का प्रसंख्या रुपया धर्म प्रभावना के नाम पर, पंच
कल्याणक, विम्ब प्रतिष्ठा, रथयात्रा, गजरथ अादि उत्सवों में खर्च होता है। कितने ही स्थानों में मन्दिरों, मूर्तियों की रक्षा और पूजा का उचित प्रबन्ध नहीं है। मंडल प्रस्ताव करता है कि जैन
समाज की विचारधारा में इस प्रकार परिवर्तन किया पाय कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( ४ ) धर्मनिष्ठ लोग अपना धन मौजूदा प्राचीन मूर्तियों और मन्दिरों
की खोच, जीर्णोद्धार, रचा और सुप्रबन्ध में लगावें। ७२-धार्मिक वात्सल्य, सामाजिक प्रेम और सहयोग की द्धि के लिये अन्तर्घातीय, अन्तर साम्प्रदायिक विवाह और सहयोग की आवश्यकता है।
१९४६ ७४-अगस्त १९४२ के राष्ट्रीय आन्दोलन में मंडला निवासी उदय
चन्दबी, गढ़ाकोटा निवासी सोहनलालबी, तथा अनवान बैन
वीरों और शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि । ७५._महावीर जयन्ती को सार्वजनिक छुट्टी के लिये केन्द्रीय, प्रान्तीय
तथा देशीय रजवाड़ों से अनुरोध । ७६-अखण्ड चैन समाज की महत्वाकांक्षा की प्रतीक एक जैन ध्वजा
का निश्चित रूप स्थिर किया पाय । ७७-सामूहिक विवाह का प्रचार-मण्डल अधिवेशन पर ऐसे विवाहों
का आयोजन । ७८-महामण्डल के अनुशासन में, श्री एम० बी० महाजन वकील
अकोला द्वारा बैन ओवरसीज बोर्ड, एजुकेशन बोर्ड, ईकोनोमिक
पोलिटिकल, वालंटियर बोर्ड की स्थापना । ७६-जहाँ तक बने, पच कल्याणक विम्ब प्रतिष्ठा, गबरथ आदि
बन्द किये जायें, जहाँ कहीं नया मन्दिर बनाया जाय, वहाँ पूर्व प्रतिष्ठित मूति किसी अन्य मन्दिर से लेकर विराजमान की पाय, पूर्व स्थापित मन्दिर के पंचों को नये मन्दिर के लिये
मूर्ति देने में गर्व का अनुभव करना चाहिये । ८०-खेती, गोपालन के उद्योग को अपनाकर शुद्ध खाद्य और अन्य
उपयोगी वस्तु अधिकाधिक उपजाई जावे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( ५० )
८१ - सब फिरके अपने सामाजिक और धार्मिक उत्सव पर एकत्रित होकर, एक ही जगह, मिलकर एक विशाल जैन संघ के रूप में आयोजित करें। मण्डल सब जगह की पञ्चायतों को ऐसे कार्यों में यथाशक्ति सहयोग देता रहेगा ।
८२ - कांग्रेस को देश को एक मात्र प्रतिनिधि संस्था मानता हुआ, जैन जनता से यह मण्डल अनुरोध करता है कि कांग्रेस कार्य में यथाशक्ति पूर्ण सहयोग दे ।
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परिशिष्ट (२) समय-क्रमानुसार अधिवेशनाध्यक्ष तथा
स्थान-सूची
संख्या सन्
स्थान
अध्यक्ष
रायबहादुर श्री सुलतान सिंह
आनरेगे मैजिस्टेट, दिल्ली रायसाहेब फूलचन्द राय एक्जेक्यूटिव इन्जीनियर, लखनऊ
१९०० | मथुरा
सेठ द्वारिकदास रईस, मथुरा
१९०२ मथुरा
सेठ द्वारिकादास
१९०३ / हिसार
रायबहादुर सुलतानसिंहवी दिल्ली
१९०४ | अम्बाला
अबितप्रसाद लखनऊ
१९०५ | सहारनपुर
सेठ माणिकचंद जे. पी. बम्बई
१९०६
कलकचा
लाला रूपचद, सहारनपुर
। सूरत
| श्री गुलाबचद दहा बयपुर
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( ५२ )
-
-
स्थान
अध्यक्ष
१९०८ मेरठ
श्री बांकेलाल वकील, हिसार
१६१० | जयपुर
अबितप्रसाद, लखनऊ
१९११ | मुजफ्फरनगर
जे. एल. जैनी बैरिस्टर
सहारनपुर
१९१३ | बनारस
| १९५५ | बम्बई
प्रो० डाक्टर खुशाल भाई शाह
११ । लखनऊ
श्री माणिकचंद वकील, बैन
धर्म भूषण खंडवा बा० शीतलप्रसादबी
कलकचा
१९१८
भी सूरजमलची, हरदा जे. एल. चैनी
१९२०
नागपुर
बीकानेर
वाडीलाल मोतीलाल शाह
लखनऊ सेठ अचलसिहबी, आगरा १९३८ | वर्धा | सेठ राजमल ललवानी,
एम. एल. ए.बामनेर १९३८ | वण्ड; अमरावती | श्री भैयालालबी मांडवगड़े,
बैतुल १९४० यवतमाल श्री ऋषम साव काले,एम.एल.ए. ११४४ | वर्धा
खुशालचद खांची
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(
५३
)
संख्या सन
अध्यक्ष
गाडरवारा
प्रोफेसर हीरालाल
एम. ए. डी. लिट. नागपुर साहु श्रेयांसप्रसाद बम्बई
| इटारसी
१९४७ | हैदराबाद दक्षिण | श्री कुन्दनलाल शोभाचन्द
फीरोदिया स्पीकर बम्बई लेविस्लेटिव काउन्सिल
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चित्रों का परिचय १८EE के मेरठ अधिवेशन के अध्यक्ष स्वर्गीय राय साहब फूलचन्द राय, B. A., C. E. सुपरिटेन्डिंग हचिनियरी के पद से सरकारी पेन्शन प्राप्त की।
हरीचन्द हाई स्कूल का भवन अपने पूज्य पिताजी के नाम से बनवाया । स्कूल का सब खरचा देते रहे ।
अब भी इनकी जायदाद से इनके सुपुत्र श्री तिलोकचन्द जैन हरीचन्द हाई स्कूल का खरचा देते हैं।
१६०६ कलकत्ता अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्रीयुत लाला रूपचंद, रईस व जमींदार सहारनपुर
जन्म १८५५- शरीरान्त १९०६ सरल स्वभावी, उदार हृदय, तीर्यसेवक, दयासागर |
१९०७ सूरत अधिवेशन के सभाध्यक्ष
श्रीयुत् गुलाबचद ढढा, M. A.
बन्म १८६७, एम. ए. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी १८९० चयपुर राज्य में-मुन्सिफ़, नाज़िम, सिविल जज, चीफ मिनिस्टर
सुपरिन्टेंडेंट, इन्टेलीजेन्स, पोस्ट आफिस ( खेत्तरी) विभाग। नेम्बर, बोर्ड, दरबार वकील, बाबूशैल ।
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बीकानेर राज्य में-ऐकाउन्टेंट-जेनरल । गवालियर राज्य में-मेम्बर कोर्ट-अाफ-वाइस । बांसवाडा राज्य में स्पेशल आफिसर । झाबुमा राज्य में-दोवान बाम्बे मरचेंट्स बैंक-एजेंट रंगून ब्रांच पूना बैंक मैनेजर बाम्बे ब्रांच
समाज-सेवा संस्थापक-पाल इंडिया जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स । उसके प्रधान मंत्री
२५ साल तक । सभाध्यक्ष-प्रान्ताय जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स पेठापुर अधिवेशन,
१९०५ । -वाषिक अधिवेशन (All India Jain Youngmens'
Association) आल इंडिया जैन यंगमेन्स ऐसोसियेशन सूरत, १६०७ । -महाराष्ट्र प्रान्तीय जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स अहमदनगर,
१६३३। -वार्षिक अधिवेशन श्री श्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब,
गुजरांवाला, १९३५ । -अखिल भारतीय श्रोसवाल सम्मेलन कलकचा १९३७ । -मानद अधिष्ठाता श्री पार्श्वनाथ उमेद बैन बालाभम उम्मेदपुर मारवाड़।
१६० अम्बाला तथा १६१० जयपुर अधिवेशन के सभाध्यक्ष
अजितप्रसाद, M. A. जन्म १८७४. एम. ए., एल.एल. बी. उपाधि १८६५. वकील हाई कोर्ट इलाहाबाद, १८६५. मुन्सिफ रायबरेली १९०१०
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सरकारी वकील लखनऊ १६०१ से १९१६ तक बन हाईकोर्ट बीकानेर १९२१-१६३० । एडवोकेट चीफ कोर्ट लखनऊ, हाई कोर्ट पटना, हाई कोर्ट लाहौर । मंत्री अषम ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर १९११ से १९१५। सम्मेदाचल क्षेत्र के पूजा केस में कलकत्ते गये, १९१४ । पावापुरी केस में पटना गये १६१७ ।
शिखरजी इंजक्शन केस में, बैरिस्टर चम्पत राय जैन के साथ हजारीबाग, रांची, पटना हाईकोर्ट में वकालत की १६२३, १९२४, १९२८ ।
राबगिरी केस में वकालत पटना में की १६२६ से १९२८ ।
पावापुरी केस में पटना, कलकत्ता में वकालत, तथा कमीशन में काम किया लखनऊ, बम्बई, दिल्ली आदि शहरों में । १९२६-१९२९ ।
एडीटर चैन गजेट १९१२ से अब तक.
डाइरेक्टर सेंट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, अनिताभम लखनऊ, १९२६ से अब तक।
मंत्री अखिल भारतवर्षीय जैन पोलिटिकल कान्फरेन्स १६१७ से १९२१ तक।
रचयिता अंगरेजी भाषा में पुरुषार्य सिद्धयुपाय, गोम्मट गार कर्मकांड भाग २, Pure Thoughts. श्री अमितगति प्राचार्य कृत सामायिक पाठ का अंग्रेबी अनुवाद ।
१९११ तथा १६२० के अधिवेशन के सभाध्यक्ष युगमन्धर लाल जैनी (J. L. Jaini) M. A. (Oxon).
बै रस्टर-एट-ला
जन्म १८-१. शरीरान्त १६२७. सर्वोच्च प्रथम श्रेणी में एम. ए. इलाहाबाद युनिवर्सिटी ११.३.
रेजिडेन्ट सुपरिन्टेन्डेन्ट बोडिंग हाउस म्योर सेन्टल कालिब. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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सम्पादक जैन गजेट अग्रेजो १९०३-१६०६. बैरिस्टरी के वास्ते लंदन प्रस्थान १६०६ । जैन साहित्य परिषद् की स्थापना लंदन में । १६१० में वापस । १९११ से सम्पादन जैन गजेट । १६१३ में फिर लंदन को प्रस्थान | अंग्रेजी भाषा के जैन जाति में अद्वितीय कलाकार पण्डित ।
तत्त्वार्थाधिगम सूत्र, गोम्मटसार जीवकांड, कर्मकांड, पंचास्तिकाय, प्रात्मख्याति समयसार, प्रास्मानुशासन का अनुवाद, टीका, भाष्य, प्राक-कथनसहित अंग्रेजी भाषा में अपने खर्च से छपवा कर प्रकाशित कराया।
Fragments from a Students' Diary उनके रुपये से लंदन में छपकर प्रकाशित हुई।
जैन दिन्यलोक (Bright ones in Jainism), जैन त्रिलोक रचना (Jain Universe), स्वतन्त्र पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित की।
जैन नीति (Jain Law), रोमन ला (Roman Law), सर हरीसिंह गौड़ के "हिन्दू धर्मशास्त्र" ( Hindu Law ), तथा मिसेज़ स्टीवनसन के "जैन धर्म का हृदय" "Heart of Jainism" पर कड़ी युक्तियुक्त समालोचना उनकी अनुपम साहित्यिक कृत्ति है । ____ इन्दौर हाईकोर्ट के जज, चीफ जस्टिस, और शरीरान्त समय तक इन्दौर राज्य की विधान निर्मात्री समिति Legislative Council के अध्यक्ष President रहे ।
अपनी सारी सम्पत्ति जैन धर्म प्रचारार्थ रजिस्टरी वसीयतनामा लिखकर दान कर दो।
जैन धर्म प्रचार, और जैन जाति उद्धार इनके बीवन का मुख्य उद्देश्य था।
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( . )
लखनऊ अधिवेशन १६१६ के सभापति श्री माणिक्यचंद जैन
१८८२ में खंडवा में जन्म लेकर, १९१८ में ३६ बरस की भरी जवानी में, कलकत्ता नगर में स्वर्ग पधारे ।
श्रीमद् रायचंद्र जैन, स्वामी रामतीर्थ, बाबू देवकुमार स्वामी विवेकानन्द कुमार देवेन्द्र प्रसाद जैन सिकन्दर महान, बाइरन श्री शंकराचार्य, जीसस क्राइस्ट, कोट्स, शेली, चैटरटन, की तरह, ३०-३५ बरस में वह काम कर गये, जो लोग ५००-१२५ बरस में नहीं कर सके । स्कूल कालिज में ऊँचे नम्बरों से उत्तीर्ण होकर, छात्रवृत्ति पाते रहे । 'सुखानन्द मनोरमा' नाटक, 'जीव दया, 'हितोपदेशक', 'हिन्दी व्याकरण', 'भारत भूषणावली', पुस्तकें बनाकर प्रकाशित कीं । वकालत में ख्याति प्राप्त की । श्री० चेतनदास, युगमम्वरलाल के सम्पर्क से इलाहाबाद में विद्याध्ययन करते समय ही अंग्रेजी जैन गज़ेट के सहायक सम्पादक रहे ।
महामंडल के कलकत्ता और सूरत नगर के अधिवेशनों की श्रायोजना की । इलाहाबाद के " श्रभ्युदय" पत्र का सम्पादन किया ।
मालवा प्रान्तिक सभा के सिद्धवरकूट अधिवेशन की स्वागत समिति के सभापति के स्थान से ४२ पृष्ठ का छुपा हुत्रा व्याख्यान दिया । म्युनिसिपल कमेटी के मेम्बर, कांग्रेस कमेटी के मन्त्री रहे ।
१६२७ बीकानेर अधिवेशन के अध्यक्ष
श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह
जन्म १८७८, देहान्त १९३९
महान साहित्यिक | २३ बरस तक गुजराती मासिक "जैनहितेच्छु" के, ७ बरस तक गुजराती साप्ताहिक "जैन समाचार" के, ४ बरस तक
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( च )
हिन्दी पाक्षिक जैनहितेच्छु के, कुछ समय तक सम्पादक रहे। पहले तीनों पत्र उनके निजी थे, निर्भीक और गम्भीर विचार प्रकट किये जाते थे ।
करीब १०० पुस्तकें अंग्रेजी, हिन्दी, गुजराती, मराठी भाषा में लिखी और सम्पादित कीं। गुजराती लेखकों के लिये नियत " गलीश्रारा प्राइब" गुजरात साहित्य सभा ने उन्हें मेट किया था ।
" जैन प्रकाश" के इन तीनों पत्रों में
गहन विद्वान | जैन शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे । थियासोंफ्री, न्यु थाट, नित्शे सिद्धान्त, वेदान्त का गहरा अध्ययन था ।
स्वतन्त्र व्यापार करते थे । उम्र से उग्र विचार स्पष्ट शब्दों में प्रकाशित करते थे । अनुभव ज्ञान गहरा था। जेल में भी रहे, और राजमहल में भी । श्रीमानों से गरीबों से निःसंकोच मिले ।
भारत के अनेक प्रान्तों और यूरप के अनेक देशों में फिरे । भारत जैन महामंडल, अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन कान्फरेंस, दि० जैन तारणपन्थ सभा आदि के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया ।
१६३६ लखनऊ अधिवेशन के सभाध्यक्ष
श्रीयुत् सेठ अचल सिंह जा, आगरा देश-सेवा
१६५६ की लखनऊ कांग्रेस में दर्शक रूप सम्मिलित हुए । १६१६ से कांग्रेस के उत्साही सदस्य ।
१९२१ में तिलक स्वराज्य फंड के लिये श्रागरा से २०,००० जमा
किया ।
१६२० के आन्दोलन में सितम्बर में ६ मास का कड़ा कारागार और ५०० रुपया जुरमाना; और १६३२ में १८ मास की कड़ी कैद
और ५०० रुपया जुरमाना सहा ।
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वैयक्तिक सत्याग्रह में १५-१२-४० को एक साल की जेल भुगती। १.८.४२ को फिर गिरफ्तार हो गये और अक्टूबर १९४४ में छूटे।
समाज-सेवा १९२१ में प्रागरा म्युनिसिपल बोर्ड के सीनियर वाइस चैरमैन निर्वाचित हुए।
१९२३ में स्वराज्य पार्टी की तरफ से यू० पा. लेजिस्लेटिक काउन्सिल के सदस्य रहे.
१९३५ में कांग्रेस की तरफ से आगरा म्युनिसिपैलिटी के सदस्य, १९३६ में लेजिस्लेटिव एसेम्बली के निर्वाचित सदस्य । १९३६ में आगरा कन्टून्मेंट बोर्ड के सदस्य निर्वाचित हुए । १९२० से १९३८ तक सिटी कांग्रेस कमेटी श्रागरा के प्रेसीडेन्ट । १९३१ से अब तक यू० पी० कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं। १९३६ में बालइन्डिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य निर्वाचित हुए।
१९२४ की बाढ़ के कष्ट निवारण, १६२६ के विहार भूकम्प पीड़ितों के लिये कोष जमा किया और तन-मन-धन से सहायता की ।
१९२८ में "अचल ट्रस्ट" को नींव डाली; और १६१५ में १००१००) का ग्रामीण सेवा उद्देश्य से ट्रस्ट रजिस्टरो हो गया ।
धार्मिक उत्साह ११२१ के पहले से सेठजी ने चाम की बनी वस्तु का व्यवहार त्याग दिया है।
१६२१ में अखिल भारतीय जीव दया प्रचारिणी सभा के सभापति निर्वाचित हुए।
१९४५ में अखिल भारतीय पशु संरक्षिणी सभा की स्थापना की। विसका प्रथम अधिवेशन महाराजा साहिब भरतपुर की अध्यक्षता में हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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१६२८ के वर्धा अधिवेशन के सभाध्यक्ष श्री० सेठ राजमल ललवानी Ex. M. L. A. (Central) ___ जन्म १८००/१८०६ में जामनेर के सेठ लखमीचन्दजी की गोद आये । तेजस्वी वक्ता । केन्द्रीय एसेम्बली दिल्ली में हिन्दी भाषा में भाषण करने का प्रारम्भ किया । लोकप्रिय कांग्रेसी । तालुका कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष । अापकी पाषाण मूर्ति जलगांव के टाउन हाल में स्थापित है। हजारों का वाषिक गुप्तदान करते हैं। साल में , मास दौरे पर रहते हैं। खेती की उन्नति, नई बस्ती बसाने का उत्साह है। सादा जीवन, विनम्र स्वभाव है।
१६३८ वरुड अमरावती अधिवेशन के सभाध्यक्ष
श्रीयुत् भैय्यालाल जैन, वैतुल निवासी जन्म १८६६, जिला वैतूल । मैट्रीकुलेशन परीक्षा १९१७ । म्युनिसिपल सेक्रेटरी वर्धा, १९२५ । स्थानीय जैन बोडिंग के अवैतनिक सुपरिन्टेंडेंट तथा मन्त्री।
१९४० यवतमाल अधिवेशन के सभाध्यक्ष
श्रीयुत् ऋषभ साव काले ( R. P. Kale ) मध्यप्रान्त में सर्वप्रथम अपना विवाह अन्तरजातीय महिला से किया।
१९४६ के इटारसी अधिवेशन के सभाध्यक्ष
श्रीयुत् साहु श्रेयांस प्रसाद जी बम्बई प्रसिद्ध कार्यकर्ता, । अनेक मिलों के, हवाई बहाज कम्पनी के बड़े हिस्सेदार, तथा प्रबन्धकर्ता। . उदार दानी।
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प्रवन्ध कारिणी समिति के सदस्य श्री०'चेतनदास जी B. A. L. T. सरकारी पेन्शनर
. मल्हीपुर. सहारनपुर बरसों तक महामण्डल के प्रधान मंत्री रहे । महामण्डल के परम भक, अथक कार्यकर्ता, सतत हितेच्छु, कर्मठ वीर ।
प्रबन्धकारिणी के सदस्य
सेठ चिरंजीलाल बडजाते, वर्षा प्रारम्भिक बीवन से देशसेवा, सभा संगठन, तथा धार्मिक कार्यों में विशेष योग देते रहे है। दिगम्बर जैन बोडिंग वर्षा के संस्थापक तथा अध्यक्ष है। १६१८ में जैन पोलिटिकल कान्फरेन्स का अधिवेशन श्री बाडीलाल मोतीलाल शाह को अध्यक्षता में कराया। १९२३ के झण्डा सत्याग्रह में जेल में रहे । १९३० के आन्दोलन में कठिन कारावास सहा । १६१५ से १६२७ तक म्युनिसिपल कमेटी के सदस्य रहे। १५ बरस तक मारवाड़ी शिक्षा मण्डल के मत्री रहे।
नागपुर कांग्रेस के अवसर पर १९२० में अापने जैन पोलिटिकल कान्फरेन्स तथा भारत जैन महामण्डल के बल्से कराये।।
१६१७ से आप भारत जैन महामण्डल के मत्री, और आजकल सह-मंत्री का कार्य कर रहे हैं।
२१००) दि० जैन ब डिंग को, १०००, महामण्डल को, इटारसी अधिवेशन के समय प्रदान किया।
प्रबन्ध कारिणी समिति की सदस्या श्रीमती सौभाग्यवती विद्यावता बाई देवरिया धर्मपत्नी श्री० पन्नालाल जी देवरिया, बो १६३० से नागपुर राष्ट्रीय क्षेत्र के अग्रगण्य कार्यकर्ता है।
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आप खुद नागपुर. वार्ड कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा है, सुयोग्य कवि और प्रख्यात कार्यकर्ता हैं। प्रबन्धकारिणी समितिके सदस्य । श्रीयुत् तख्तमल जैन ऐडवोकेट भेलसा ( ग्वालियर ) जन्म १८९४
पूर्व मिनिस्टर फ़ार रूरल वेलफेयर एण्ड लोकल सेल्फ गवर्नमेंट, मध्य प्रान्त ।
लोकप्रिय राष्ट्रीय कार्यकर्ता, खादी व्रतधारी, रूदि विरोधी ।
म्युनिसिपल मेम्बर, और ८ बरस तक वाइस प्रेसिडेंट म्युनिसिपिल कमेटी।
१९४० में भिंड जिला राजनैतिक कान्फरेन्स के सभाध्यक्ष ।
१९४० में ग्वालियर राज्य में मिनिस्टर । १६४१ में मिनिस्टरी से त्याग पत्र ।
समाज-सेवा मेलमा जैन मन्दिर के निर्माण और मूर्ति स्थापना में सफल प्रयत्न । श्री सिताब राय लखमीचंद जैन हाई स्कूल मेल्सा की स्थापना और सुप्रबन्ध का श्रेय श्राप को है।
मध्य भारत हरिजन सेवक संघ की कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं। पछार में जैन विमान निकलवाने में सहायक हुए । जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं।
प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य
श्री विजयसिंह नाहर M. L.C. प्रख्यात विद्वान् स्वर्गीय भी० पूर्णचन्द्र नाहर, M. A. B. L. के सुपुत्र । देशसेवा में दत्तचित्त ।
१९४४ से बराबर कलकत्ता कारपोरेशन के सदस्य । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
समाज
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( ट ) स्वर्गीय पिता महोदय का अपूर्व चित्र, पाषाण मूर्ति, सिक्के तथा अन्य प्रदर्शनीय वस्तु संग्रह इन्होंने कलकत्ता युनिवर्सिटी के शिल्प सम्बन्धी प्राशुतोष प्रदर्शनालय की भेंट कर दिया।
जैन सिद्धान्त और चित्रकारी श्रादि कला में आविष्कारार्थ "पूर्णचन्द्र नाहर छात्रवृत्ति" स्थापित की है ।
१९३७ से १९३६ तक भारतवर्षीय प्रोसवाल कान्फरेन्स के सेक्रेटरी।
तरुण जैन के सम्पादक । श्री जैन समा कलकत्ता के अध्यक्ष । बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य ।
२.१०.४२ को अगस्त आन्दोलन के सम्बन्ध में जेल में रखे गये । कलकत्ता हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच के हुक्म से रिहा किये गये, परन्तु तुरन्त ही रेग्युलेशन ३, सन् १८१८ में गिरफ्तार कर लिये गये और मार्च १६४५ तक सरकारी कैदी रहे । अस्वस्थ होने के कारण छोड़ दिये गये। फरवरी १९४६ बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल के सदस्य सर्वसम्मति से निर्वाचित हुए ।
बंगाल काउन्सिल कांग्रेस पार्टी के सेक्रेटरी है।
हैदराबाद ( दक्षिण) अधिवेशन १९४७ के सभाध्यक्ष
श्रानरेबिल कुन्दनमल शोभाचन्द फिरोदिया स्पीकर बम्बई लेजिस्लेटिव ऐसम्बली
का
संक्षिप्त परिचय आपका चन्म अहमदनगर में १८६५ में हुआ। फरगुसन कालियः पूना से १६०७ में डिगरी प्राप्त करके, १९१० में ऐडवोकेट हुए । १९४२ तक वकालत का काम किया । ६ अगस्त १९४२ को नबरबन्द
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( 8 ) कैद हो गए। मई ११४४ में नजरबन्दी से मुक्त हुए, वकालत का व्यवसाय त्याग दिया और सार्वजनिक कार्य में संलग्न हो गए।
कालिब के दिनों से ही श्राप लोकमान्य तिलक के अनुयायी रहे हैं । १६१६ नागपुर की बम्बई प्रान्तीय कान्फरेन्स के सेक्रेटरो थे; और उन पाँच व्यक्तियों में थे जिन्होंने कान्फरेन्स का सम्पूर्ण घाटे का मार अपने उपर लिया था।
अहमदनगर पिंजरा पोल के मन्त्री २० बरस तक रहे। - १६१४, १६२० में हुक्काल-निवारक-समिति के मन्त्री रहे ।
अहमदनगर अयुर्वेद महाविद्यालय के संस्थापक है, और १९४२ तक उसके अध्यक्ष रहे हैं।
अहमदनगर शिक्षण समिति की प्रबन्धकारिणी के २० बरस से ऊपर सदस्य, और कई बरस तक समिति के अध्यक्ष रहे हैं।
तिलक स्वराज्य फंड के जुटाने में अग्रगामी रहे हैं।
१९२७ में जब महात्मा गांधी ने अहमदनगर जिले में खादी प्रचार के लिये रुपये एकत्रित करने के वास्ते दौरा किया था, तो उसकी आयोजना श्राप ने की थी।
१९३०, १६३२ के असहयोग आन्दोलन में भरपूर द्रव्य खुद दिया, और चन्दा नमा किया।
अहमदाबाद म्युनिसिपैलिटी के सदस्य १६१६ से रहे हैं, १६४०४१ में उसके प्रेसोडेण्ट निर्वाचित हुए । डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रेसीडेण्ट १९३५ से १९३८ तक रहे। स्थानीय साप्ताहिक "देशबन्धु" के सम्पादक ५ बरस तक रहे । कांग्रेस के मुख-पत्र "संघ-शक्ति" के सम्पादकीय मण्डल के सदस्य रह चुके हैं।
१८३० से १९४२ तक जिला शहरी सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक के चेयरमैन रहे, और उसको आर्थिक संकटों से उमार कर प्रान्त के सफल बैंकों में पहुँचा दिया।
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१९१६-१९१७ में रिस्ट्रिक्ट शेम रूल लीग के सेक्रेटरी रहे, और कांग्रेस कमिटी की प्रायोजना में मुख्य भाग लिया।
उसी समय से जिला और स्थानीय कांग्रेस कमेटी के कार्यकर्ता रहे हैं। १९३७ से प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के महाराष्ट्रीय एलेक्शन ट्रगहन्युनल के सदस्य रहे है। ___ बम्बई लेजिस्लेटिव ऐसेम्बली के सदस्य १६३७ में निर्वाचित
१९४० में वैयक्तिक सत्याग्रह किया और ६ मास का कारागार
आप अोस वाल बैन है; और जैन समाज और धर्म सम्बन्धित सर्व प्रगतिशील आन्दोलनों और कार्यों में मुख्य भाग लेते रहे हैं, करीब २५ बरस से भारत जैन महामण्डल की प्रबन्ध कारिणी कमेटी के सदस्य रहे हैं। ___ हमको आपसे गहरी और महान आशाएँ है आप चिरायु हों; दिन प्रतिदिन वृद्धिगत यश तथा वैभव प्राप्त करें।
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