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सम्पादक जैन गजेट अग्रेजो १९०३-१६०६. बैरिस्टरी के वास्ते लंदन प्रस्थान १६०६ । जैन साहित्य परिषद् की स्थापना लंदन में । १६१० में वापस । १९११ से सम्पादन जैन गजेट । १६१३ में फिर लंदन को प्रस्थान | अंग्रेजी भाषा के जैन जाति में अद्वितीय कलाकार पण्डित ।
तत्त्वार्थाधिगम सूत्र, गोम्मटसार जीवकांड, कर्मकांड, पंचास्तिकाय, प्रात्मख्याति समयसार, प्रास्मानुशासन का अनुवाद, टीका, भाष्य, प्राक-कथनसहित अंग्रेजी भाषा में अपने खर्च से छपवा कर प्रकाशित कराया।
Fragments from a Students' Diary उनके रुपये से लंदन में छपकर प्रकाशित हुई।
जैन दिन्यलोक (Bright ones in Jainism), जैन त्रिलोक रचना (Jain Universe), स्वतन्त्र पुस्तकें अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित की।
जैन नीति (Jain Law), रोमन ला (Roman Law), सर हरीसिंह गौड़ के "हिन्दू धर्मशास्त्र" ( Hindu Law ), तथा मिसेज़ स्टीवनसन के "जैन धर्म का हृदय" "Heart of Jainism" पर कड़ी युक्तियुक्त समालोचना उनकी अनुपम साहित्यिक कृत्ति है । ____ इन्दौर हाईकोर्ट के जज, चीफ जस्टिस, और शरीरान्त समय तक इन्दौर राज्य की विधान निर्मात्री समिति Legislative Council के अध्यक्ष President रहे ।
अपनी सारी सम्पत्ति जैन धर्म प्रचारार्थ रजिस्टरी वसीयतनामा लिखकर दान कर दो।
जैन धर्म प्रचार, और जैन जाति उद्धार इनके बीवन का मुख्य उद्देश्य था।
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