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________________ परिशिष्ट (१) प्रस्ताव तथा कार्यसूची, समय क्रमानुसार १८६६ १-जाति व सम्प्रदाय मेद-भाव गौण करके, बैनमात्र में पारस्परिक सम्बन्ध प्रचार । २-जैन अनाथालय की स्थापना । १६०० ३-प्रत्येक जैन, चाहे वह अंग्रेजी भाषा जानता हो या नहीं, इस संस्था का सदस्य होने का अधिकारी है। ४-हिन्दी जैन गजेट का एक क्रोड़ पर अँग्रेजी भाषा में संस्था के मुखपत्र रूप, प्रकाशित किया जाय । ५-काम करने के इच्छुक बेरोजगार शिक्षित जैनियों की सूची बनाई जावे। ६-जैन धर्म के मुख्य सिद्धान्त और मान्यता स्पष्ट सरल भाषा में पुस्तकाकार प्रकाशित हों। ७-समस्त जीव दया प्रचारक और मद्य-निषेधक संस्थानों से सहयोग और पत्र-व्यवहार किया जाय । १६०१ ८-भारतीय सरकार को लिखा जाय कि समस्त गणना प्रधान संग्रह. पुस्तकों में बैनियों के लिये अलग स्तम्भ बनाया जाय । १९०२ ६-पंजाब, बंगाल, संयुक्त, मदरास, राजपूताना, मध्य प्रान्त, बम्बई में सात प्रान्तीय शाखा की स्थापना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034772
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitprasad
PublisherBharat Jain Mahamandal Karyalay
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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