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( १७ ) गया । चार वर्ष तक मन्त्री रह कर सेवा करने के पश्चात मैं भी त्यागपत्र देने पर मजबूर हो गया। महात्मा भगवानदीन बी को भी प्रथक होना पड़ा। पंडित अर्जुनलाल सेठी तो सात वर्ष के लिये नजरबन्द कर ही दिये गये थे। ___ भाई मोतीलाल जी भी अलग हो गये थे। बाबू सूरजमान
और जुगलकिशोर को भी प्राभम से लगावट नहीं रही । उसी नाम से अब से वह प्राश्रम मथुरा में अपने नोजी भवन में स्थापित है किन्तु इस ३५-३६ वर्ष में विद्यार्थियों की संख्या साठ से ऊपर से नहीं बढ़ी। सन् १९१५ में ब्रह्मचारियों की संख्या ६० से ऊपर थी। ब्रह्मचारी जीवन का श्रादर्श तो अब नाम और निशान को भी नहीं है। आश्रम का उन चार पाँच वर्षों का सुनहरी इतिहास महात्मा भगवानदीन जी ने दिल्ली के “हितैषी" और "वीर" नामी समाचार पत्रों में वृहदरूप से प्रकाशित कर दिया है।
बारहवाँ अधिवेशन
अप्रैल १९११ में बारहवाँ अधिवेशन मुजफ्फर नगर में श्री जुगमन्धरलाल जैनी बैरिस्टर के सभापतित्व में हुआ। इस हो समय से महासभा में अराजकता, नियम विरुद्ध दलबन्दी करके धीगा. घोगी से हठाग्रह और स्वेच्छाचार का प्रारम्भ हुआ और महासभा एक संकीर्ण स्वार्थी दल का गुट बन गई।
सभापति का शानदार स्वागत रेलवे स्टेशन पर हुआ, वहाँ जैन अनाथालय के विद्यार्थियों ने ब्रह्मचारी चिरंजीलाल बी की अध्यक्षता में झंडे लिये बंगी फोबी सलाम दिया । बैंड बाजे के साथ बलस हाथो
और सवारीयों पर शहर के बाजारों में होकर निवास स्थान पर गया । अधिवेशन के प्रारम्भ में पडित अर्जुनलाल सेठी की अध्यक्षता में सर्व उपस्थित मण्डली ने प्रार्थना पढ़ी, सभापति महोदय ने अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com