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________________ ( २६ ) करीव ४०० श्वेताम्बर जैन एकत्रित थे। श्री अजितप्रसाद ने अानाय और जातिमेद को मिटाकर पारस्परिक जैन मात्र में सह-भोज और विवाह सम्बन्ध होने के औचित्य और सामाजिक दृढ़ता पर प्रभावक व्याख्यान किया। उन्होंने कहा था कि श्रोसवाल, अग्रवाल, खंडेलवाल, पल्लीवाल, आदि Walls (दिवारों) को तोड़कर एक Vast Hall विशाल भवन बनाना अत्यन्त आवश्यक है । यह जैन समाज के बीवन. मरण का प्रश्न है। श्रीयुत शाह ने श्वेताम्बर-दिगम्बर मुकदमे का पारस्परिक मनोनीत पंचायत द्वारा निर्णय कराने में तन, मन, धन से भागीरथ प्रयत्न किया था। उभय पक्ष के नेताओं के हस्ताक्षर पंचायती निर्णय के इकरारनामे पर करा लिये थे । किन्तु “पूजाकेस" का फैसला कचहरी से हो गया; और सब प्रयत्न निष्फल हुआ। बीसवाँ अधिवेशन वीसवां अधिवेशन लखनऊ में आगरा निवासी सेठ अचल सिंहबी के सभापतित्व में ११ अप्रैल १६३६ को हुा। उल्लेखनीय प्रस्ताव ये (२) महामंडल का प्रत्येक सदस्य पूर्ण शक्तितः प्रयत्न करेगा कि तीर्थ क्षेत्र सम्बन्धी विवाद पारस्परिक समझौते से पंचों द्वारा निर्णय कर दिये जाएँ । कचहरी में न जाएँ। शौरीपुरी अागरा केस के निर्णय के लिये श्रीयुत गुलावचंद श्रीमाल डिस्टिक्ट बन्ज, और अजित प्रसाद नियत किये गये। दोनों ने काफी कोशिश की। और फैसला भी लिख लिया; मगर वह फैसला उभय पक्ष को मजूर न था, इस कारण रद्दी कर दिया गया । आखिर हाईकोर्ट अलाहाबाद से वही फैसला हुश्रा जो यह पंच कर रहे थे। उभय समाज का रुपया व्यर्थ बरबाद हुआ। (३) प्रत्येक सदस्य पूर्ण प्रयत्न करेगा कि भिन्न-भिन्न जैन बातियों सम्प्रदायों में विवाहादिक सामाजिक सम्बन्ध किये जायें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034772
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitprasad
PublisherBharat Jain Mahamandal Karyalay
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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