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________________ ( २८ ) अठारहवाँ अधिवेशन अठारहवाँ अधिवेशन श्री जे. एल. जैनी के सभापतित्व में टाउन हाल नागपुर में दिसम्बर २८, २९, १९२० को हुा । सन् १९११ के बारहवें अधिवेशन के सभापति भी श्री० जे. एल. जैनी ही थे । इन दस बरसों में दुनिया के, और जैन जाति के वातावरण में बड़ा परिवर्तन हो गया था। किन्तु दृष्टिकोण ऋजुकोण नहीं हो पाया था । इनका भाषण इस दृष्टि को लिये हुए निराला ही पथ प्रदर्शक था। और उसने अधिवेशन को विशेष महत्व प्रदान किया था। जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों से लेकर समाजोदारक तत्वों का विशद और स्पष्ट विवेचन प्रारम्भ में किया गया था। फिर सम्मिलित कुटुम्ब विधान, कर्ता का पूज्यस्थान, परिजन सहयोग, शिशु, बालक, युवक, गृहस्थ, आदि अवस्थाओं में शिक्षा की श्रायोजना, सामाजिक जीवन में मन वचन काय से सत्य व्यवहार, अर्थ, यश, वैभव, सुख, सम्पत्ति, धर्म, अध्यात्मोनति की प्राप्ति में पूर्ण अथक परिश्रम, समाबोन्नति के उपाय, आदि सब ही श्रावश्यक विषयों पर गहन और लाभदायक प्रकाश डाला गया था। वह व्याख्यान जैन गजेट १९२१ के पृष्ठ २ से १४ तक प्रकाशित है। इस अधिवेशन में पंडित अर्जुनलाल सेठी बी. ए. भी ७ बरस के एकान्त कारागार से विमुक्त होकर सम्मिलित हुए थे ! उन्नीसवाँ अधिवेशन उन्नीसवां अधिवेशन बीकानेर में ८ अक्टूबर १९२७ को श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह के सभापतित्व में हुआ। __ स्वागत समिति ने सुन्दर छपे हुए निमंत्रण कार्ड द्वारा जैन तथा अजैन सज्जनों को आमंत्रित किया था। विशाल मंडप स्त्री पुरुषों से खचाखच भरा था। यह अधिवेशन श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांनफ्रेंस के वार्षिक अधिवेशन के साथ उनके ही मंडप में हुआ था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034772
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitprasad
PublisherBharat Jain Mahamandal Karyalay
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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