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________________ सेठ चिरंजीलालची बडजाते को मानपत्र ५००१७ की थैलोके साथ अर्पण किया गया। उन्होंने मानपत्र का आभार माना, अपनी कमजोरियों का बिक्र करते हुए । अर्पित थैली में १०००) अपनी ओर से मिलाकर इस तरह ६००१) मंडल के सभापति साहू श्री० भैयाँसप्रसादजी को मंडल के कार्य के लिए सौंप दिये सेठ चिरंजीलालजी का यह त्याग और पूर्ण लगन के साथ मंडल की सेवाएँ सराहनीय है । लाउडस्पीकर का इन्तजाम था, चाँदनी रात थी। ___ इस वर्ष से मंडल के प्रधान मन्त्री का भार श्री सुगनचंद तुणावत को सौंपा गया है। कुछ प्रस्ताव उल्लिखित किये जाते हैं । नं.१-यह अधिवेशन गत १९४२ अगस्त के राष्ट्रीय महाप्रान्दोलन में पांडला निवासी उदयचंद जी, गढ़ाकोटा निवासी मोहनलालपी तथा अनजान जैन वोरों और शहीदों के प्रति श्रद्धांजिल अपित करता है। न.२-जैन समान के आदर्श तपस्वी विद्वान आचार्य श्री १०८ कुंथुसागरजी, प्राचार्य श्री शान्तिसागरजी छानी, सूरजभानजी वकील, विश्वम्भरदासबी गार्गीय झांसी के असामयिक निधन पर महामंडल को अत्यन्त शोक हुआ है । इन विभूतियों के अवसान से समाज शक्ति की बहुत चति हुई है। नं. ३-भारत जैन महामडल की यह सभा केन्द्रिीय, प्रान्तीय सरकार से और देशी रजवाड़ों से प्रार्थना करती है, कि श्री. भगवान महावीर जयन्ती, चैत्र शुक्ल १३, को सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी जाए । न.-अखंड जैन समाज की महत्वाकांक्षा की प्रतीक ध्वजा सिर की बाय। न.५-सामाजिक जीवन की नई आवश्यकताओं, धारणाओं और मान्यताओं के मुताबिक सामूहिक विवाह-प्रथा का प्रचार किया जाये। योग्य युवक युवतियों का सामूहिक विवाह, एक मण्डप में एक साथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034772
Book TitleBharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitprasad
PublisherBharat Jain Mahamandal Karyalay
Publication Year1947
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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