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भारत जैन महामण्डल
सन् १८८४ में इंडियन नैशनल कांग्रेस की स्थापना हुई। उसी समय से भारत में राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना की जागृति का प्रारम्भ हुआ। उसी जमाने में सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ कालिज की नींव डाली । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज संयोजित किया ।
दस बरस पीछे १८६५ में मुरादाबाद निवासी पं० चुन्नीलाल और मुन्शी मुकुन्दलाल ने, बाबू सूरजभान वकील देववन्द, श्री बनारसीदास, एम० ए० हेड मास्ट रलश्कर कालिज ग्वालियर, और कुछ अन्य विद्वानों के सहयोग से, स्वर्गीय सेठ लक्ष्मणदास जी सी० आई० ई० के संरक्षण में दिगम्बर जैन महासभा की स्थापना मथुरा में की।
महासभा का वार्षिक अधिवेशन बरसों तक मथुरा में सेठ लक्ष्मणदासजी के सभापतित्व में होता रहा; और उसका दफ्तर भी वहाँ ही रहा । चार पांच बरस बाद, कुछ संकुचित विचार के लोग, स्वार्थ से प्रेरित होकर, श्रावश्यकीय जाति सुधार और धर्मप्रचार के प्रस्तावों में विघ्नबाधा डालने लगे । महासभा के नाम के साथ दिगम्बर शब्द जुड़ा होने से साम्प्रदायिकता तो स्पष्टतः थी ही । अतः महासभा के पाँचवें अधिवेशन में, जो १८६६ में हुश्रा, कुछ उदार-चित्त तथा दूर-दर्शी युवकों ने Jain Youngmen's Association of India नामक संस्था का निर्माण किया । श्वेताम्बर कोफरेन्स की स्थापना उसके पीछे
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