Book Title: Aagam Manjusha 38B Chheyasuttam 05 B Panchkapp Bhasya
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः On Line – आगममंजूषा [३८/२] पंचकप्प-भासं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर [M.Com., M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दामि भहबाहुं पाईर्ण चरिमसगलसुयनाणीं। मुत्तत्यकारगमिसिं दसाण कप्पे यववहारे.. व्याख्येयं १॥१॥ कप्पंति णामणिप्फण्णं, महत्थं वत्तुकामतो। माणिज्जूहगस्स भत्तीय, मंगलवाएँ संथुति ॥२॥ तित्थगरणमोकारो सत्थस्स तु आइए समक्खाओ। इह पुण जेणऽज्मयणं णिजूढं तस्स कीरति तु ॥३॥ सत्याणि मंगलपुरस्सराणि सुहसवणगहणधरणाणि । जम्हा भवंति जति य सिस्सपसिस्सेहिं पचयं (खाई)च॥४॥ मत्ती य सत्यकत्तरि तत्तो (तं कय ) उवओगगोरवं सत्थे । एएण कारणेणं कीरह आदी णमोकारो ॥५॥ वदि अभिवादयुतीए सुभसहो गहा तु परिगीतो। वंदण पृयण णमणं युणणं सकारमेगट्ठा ॥६॥ भदन्ति सुंदरन्ति य तुलत्थो जत्थ (स्स) सुंदरा पाहू । सो होति महवाहू गोण्णं जेणं तु बालते ॥७॥ पाएणं लक्खिजइ पेसलभावो तु बाहुजुयलस्स। उवषण्णमतो णामं तस्सेयं भवपाहुत्ति ॥८॥ अण्णेवि भहवाहू विसेसणं गोत्त(ग्ण गहण पाईणं । अण्णेसिं पऽविसिढे (पिय सिद्धे)विसेसणं चरिमसगलसुतं ॥९॥ चरिमो अपच्छिमो खलु चोहस पुषा उ होति सगलसुतं । सेसाण बुदासट्ठा सुत्तकर ऽजायणमे. यस्स ॥१०॥ किं तेण कयं ? सुत्तं, जं भण्णति तस्स कारतो सो उ? । भण्णति गणधारीहिं सवसुर्य चेव पुषकतं ॥११॥ तत्तोचिय णिजूढं अणुग्गहवाय संपयजतीणं। सो(तो) सुत्त. कारओ खलु स भवति दसकप्पयवहारे ॥१२॥ वंदे त भगवंतं बहुभहसुभहसबओभई। पवयणहियसुय(ह)केतुं सुयणाणपभावगं धीरं॥.:.२॥ लघुभाष्य १॥१३॥ बदिसहों पुषमणिओ तदितीत चेव णामगोत्तेहि। इसरियाइ गुण भगो सो से अस्थित्ति तो भगवं ॥४॥ मई कलाणंति य एगट्टं तं च सुबहयं जस्स। सो होति सुषहभहो सोभणभहो सुभहोत्ति ॥५॥ खीरासवमादीणि तु सुभाणि भाणि तस्स तु बहुणि। सबउ इह परलोए भदं तो सवतोभदो॥६॥ आमोसहादि इह तह परलोए होतऽणुत्तरसुरादी। सुकलप्पत्ती य तो ततो य पच्छा यशाणं ॥७॥ भातित्ति भइमहवा भाई णाणादीएहिं सो जम्हा। सो होति भद्दणामो कुणेति भदाणि वा जम्हा ॥८॥ पवयण दुवालसंग तस्स हितो जं करेतऽवोच्छिति। संघो तु परयणं तू हितोषदेसं अतो तस्स ॥९॥ केतसद्दो उसिए उसियं तुंगं तु तस्स तु सुहं तु। इहलोए परलोए सो भगवं होति परमसुही ॥२०॥ वायणय पभावणया सुतणाणगुणा यजे वदति लोए। विउसपरिसाएँ मज्झे सुतणाणपभावणा एसा ॥१॥ किं कारण तस्स कओ महया भत्तीय तू णमोकारो ?। जम्हा तेणं जूढा अम्ह हियट्ठाय सुत्त इमे ॥२॥आयारदसा कप्पो ववहारो णवमपुषणीसंदो। चारित्तरक्खणट्ठा सूयकडस्सुष्परि ठविता ॥३॥ अंगदसा अण्णाविहु उवासगादीण तेण उ बिसेसो। आयारदसा उ इमा जेणेत्थं वणियाऽऽयारा ॥४॥ दसकप्पश्ववहारा एगसुतक्खंध केइ इच्छति । केई व दसा एक कप्पयवहार बीर्य तु ॥५॥ रयणागरथाणीयं णवमं पुर्ण तु तस्स णीसन्दो। परिगाल परिस्साबो एते दसकप्पबवहारा ॥६॥ किं कारण णिजूढा चरित्तसारस्स रक्खणट्टाए । खलियस्स तहिं सोही कीरह तो होति निरुवयं ॥७॥ सूयकडुवरि ठविता जम्हा तू पंचवासपरियाए। सूयकडमहिजति नू तो जोग्गो होति सो तेसिं ॥८॥ अणुकंपाऽवुच्छेदो कुसुमा भेरी तिगिच्छ पारिच्छा। कप्पे परिसा य तहा दिटुंता आदिसुत्तम्मि ॥९॥ ओसप्पिणि समणाणं हाणि णाऊण आउगवलाणं । होहिंतुबग्गहकरा पुरगतम्मी पहीणम्मि ॥:३॥३०॥ खेत्तस्स य कालस्स य परिहाणिं गहणधारणाणं च । बलविरिए संघयणे सदा उच्छाहतो चेव ॥ .:.४॥१॥ किं सेनं कालो वा संकयती जेण तेण परिहाणी। भनाइन संकुयंती परिहाणी तेसि तु गुणेहि॥२॥ भणियंत समाए गामा होहितित मसाणसमा। इय कारण (खेत्ते) गणहाणी कालेचि । उहोतिमा हाणी॥३॥ समए समए णंता परिहार्यते उ वष्णमादीया। दवादीपजाया अहोरत्तं तत्तियं चेव ॥४॥ दूसमअणुभावेणं साहुजोग्गा उदुलभा खेत्ता । कालेबिय दुम्भिक्खा अभिक्खणं हॉति डमरा य ॥ल०२॥५॥ दुसमअणुभावेण य परिहाणी होति ओसहिचलाणं । तेणं मणुयाणंपि तु आउगमेहादिपरिहाणील०३॥६॥ संघयणंपिय हीयह ततो य हाणी य धितिबलस्स भवे। विरियं सारीरवलं तंपिय परिहाति सत्तं च ल०४॥आ हायति य सद्धाओ गहणे परिव(य)हणे य मणुयाणं । उच्छाहो उज्जोगो अणालसत्तं च एगट्ठा ॥ल०५॥८॥ इय णाउं परिहाणि अणुग्गहवाएं एस साहूणं । णिजूढऽणुकंपाए दिटुंतेहिं इमेहिं तु ॥९॥ पगरणचेडऽणुकंपा दढविदड्ढेहि होयगारीणं । जह ओमें बीयभत्तं रण्णा दिण्णं जणवयस्स ॥ .:.५॥४०॥ एवं अप्पत्तश्चिय पुष्वगतं केइ मा हु मरिहंति। तो उद्धरिऊण ततो हेवा उत्तारियं तेहिं ॥१॥ मा य हु वोच्छिजिहिति चरणणुओगोत्ति तेण णिज्जूढं। योच्छिण्णे पहु तम्मी चरणाभावो भवेजाहि ॥२॥ कह पुण तेण गहेतुं दिण्णाई तस्थिमो तु दिह्रतो । जह कोई दुरारोहो सुसुरभिकुसुमो तु कप्पदुमो ॥३॥ पुरिसा केड असत्ता तं आरोदण कुसुमगहणट्ठा। तेसिं अणुकंपट्ठा कोइ ससत्तो समारुझे ॥४॥ घेत्तुं कुसुमा सुहगणहेतुगं गंथिउं दले तेसिं। तह चोइसपुष्तरं आरूढो भइवाहू तु॥५॥ अणुकंपट्ठा गथिउं सूयगडस्सुपरि ठवे धीरो । तं पुण सुतोवएसेण चेव गहितं ण सेच्छाए ॥६॥ अण्णह गहिए दोसो असाहर्ग होति णाणमाईणं । केसवमेरीणातं वक्खातं पुत्रसामइए ॥ ७॥ अहवा तिगिच्छओ तु ऊणहियं वावि ओसहं दिजा। तेहिं तु (तहिं तू )ण कजसिद्धी सिद्धी विवरीयए भवति ॥८॥ पारिच्छ परिच्छित्तू पकप्पमादी दलंति जोग्यास्स । परिणामादीणं तू दारुगमादीहिं जातेहिं ।..६॥४९॥पारिच्छ आदिमुत्ते पूर्व भणिया तुजाउ चिहिसुत्ते। सेलघणादी परिसा परंताई यमणिहिती ॥५०॥ परिसादारं भणितं कप्पहारं कमेण (२६६) २०६४ पञ्चकल्पमाप्यं 40 बाम-३८iseus एचकल्प"6,Age.एलसून भामुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - इदाणिं। किं पुण उक्मकरणं बहुवत्तवति णाऊणं ॥१॥ किं पुण कप्पज्झयणे वन्निजति भण्णती सुणसु ताव। जे अभिहिता उ अत्था तहियं ते ऊ समासेणं ॥२॥ कप्पे पकप्पिए चेव, कप्पणिजेत्तिआवरे। फासुए एसणिजे य, संजमे इत्तियावरे ।..७॥३॥ वालए वागए चेव, चम्मए पट्टए तहा। पम्हए किमिए चेव, धातुए मीसतेति य ।।..८॥४॥ उवसंपया चरित्तस्स, चरित्ते कइविहे इय ?। णियंठा कति पग्णत्ता ?, कहं समोतारणातिय ॥..९॥५॥ ववहारे कस्स पण्णते?, कहं पडिसेवणाविय ?। देसभंगे कहं वुत्ते?, सबभंगेत्तियावरे ॥..१०॥६॥ पच्छित्ते कइविहे वुत्ते, छट्ठाणित्तियावरे।पंचट्ठाणे चतुट्ठाणे, तिट्ठाणे इत्तियावरे॥.:.११॥७॥ छट्ठाणे दंसणे वुत्ते, संजमे इत्तियावरे। गाहणा य चरित्तस्स, एमेता पडि. वत्तिओ॥..१२॥८॥ कप्पो उ होति दुविहो जिणकप्पो चेव येरकप्पो य। दुविहो उ कप्पिओ खलु दवे भावे य णायवो ॥९॥ आगमणोआगमओ दशम्मी कप्पिओ भवे दुविहो। आगमतोऽणुवउत्तो णोआगमतो इमो होति ॥६०॥ जाणगसरीर भविए तपतिरित्ते य होति णायचो। जाणग मयगसरीरं भविओ पुण सिक्खिही जो तु॥१॥ वतिरित्तो एगभवो बदाऊ अभिमुहो य बोद्धबो । भावेवि होति दुविहो आगमणोआगमे चेव ॥२॥ आगमओ उवउत्तो णोआगमओ य पिंडमाईणं । गहणंमि कप्पिओ खल पवावेतुं च सेहाणं ॥३॥ जं जं जोग्ग जतीणं आहारादी तहेव सेहा या एयं तु कप्पणिज अपरिगहणा अकप्पम्मि ॥..१३॥४॥ आहारि पलंबादी सलोममजिणादि होति उवहीए। सेजाए दगसाला अकप्प सेहा य जे अन्ने॥५॥ केरिसय कप्पणिजं? फायगं, फासुयं तु केरिसगं ?। जीवजढं जं दवं तंपि य जं एसणिज तु॥६॥ दसदोसविप्पमुकं गहिय चसहेण उग्गमादीवि। एयं तु साहुजोग्गं गिण्हंतो संजतो होति ॥ ७॥ अहवा सत्तरसविहो संजम जं वावि सुत्तछंदेणं । मुंजति आहाराती विवरीयमसंजमो होइ॥८॥ आहारस्स उ भेदा असणादी उबहिणो उ वालादी। एतेसिं तु परूवण वालयमादीणिमा होति॥..१४॥९॥ वालेहि णिफणं वालयमोण्णोट्टियादिगं होति। वक्केहि तु णिप्फणं वागज सणवकमादीगं ॥ ७॥ चम्मं चम्मपडीए पट्टो उण होतिमो मुणेयवो। पालथोग्गहपट्टा तिरीउपट्टो य एमादी ॥१॥ पम्हज हंसगम्भादि अहवा कप्पासियं मुणेय । कोसेजपट्टमादी जं किमियं तू पवुञ्चति ॥२॥छुब्भति वंसकरिडो कमिवि देसंमि तरुणते घडए। बटुं तो पूरयतीतं घड़यं चिप्पिए तमि ॥३॥ संकोहेऊण कणयं तेहिं तम्हा उ किजए सुत्तं । तेण बुयं जं वत्थं भण्णति तं धातुतं णाम ॥४॥ दुगसंजोगादीहिं एएसिं चेव वालयादीणं । तं मीसयंति भण्णति जह ऊमक्खो(दुहं खो०)म्हियादीयं ॥ ५॥ वत्तव चसहेणं भेयपभेदा उ जेतिया तेसिं । सुदेहेतेहिं तु उवसंपण्णो हु सचरित्ती ॥६॥ अहवा पंचविहातो उवसंपय होतिमा समासेणं । सुय मुहदुक्खे खेत्ते मग्गे विणए य बोदवा ॥ ७ ॥ अहवा तिविहुवसंपय णाणे तह दसणे चरिते य। चरितं च कतिविहं तू पंचविहं तं इमं होति ॥८॥ सामइयं छेदुवट्ठावर्ण च परिहारसुद्धियं चेव । तनो य सुहुमरागं अहखायं चेव बोद्धवं ॥९॥ अहवा वयसमितादी सराग तह वीतरागमहवावि। खाइग खओवसमितं उवसमियं वा भवे तिविहं ॥८॥ भेदा उ चसद्देणं होति इमे णाणदंसणाणं तु। खाइय खओवसमियं दुविहं णाणं मुणेयश्वं ॥१॥ खइयं केवलनाणं खओवसमियाइं सेसणाणाई । खइयं खओवसमियं उपसमियं दसणं तिविहं ॥२॥ कस्सेतं चारित्तं? णियंठ तह संजयाण, ते कतिहा?। पंच णियंठा पंचव संजया हाँतिमे कमसो॥३॥ पुलए बउस कुसीले होति णियंठे तहा सिणाए या एएसि एकेको पंचविहो होति बोदवो ॥४॥णाणपुलाए तह दसणे य चारित्त लिंग अहसुहुमे । एसो पंचविहो खलु पुलयणियंठो मुणे ।। एसो पंचविहो तू बउसणियंठो मुणेयको ॥२॥ दुविहो होति कुसीलो पडिसेवणया तहा कसाए या एक्कको पंचविहो परू. वणा तेसिमा होति ॥७॥णाणपडिसेवणाए दंसण चरणे य लिंग अहसुहुमे। पडिसेवणाकुसीलो पंचविहो एस णायबो॥८॥णाण कसायकुसीले दसण चरणे य लिंग अहमुहुमो। एस कसायकुसीलो पंचविहो तू मुणेयवो ॥९॥ पढमगसमयनियंठे अपढम चरिमे व तह अचरिमे या तत्तो य अहासुहमे पंचमए होति णायचे॥९॥ पंचविहे सिणाए तू अच्छवी तह असवले अकम्मसे। संसुद्धणाणदंसणधरे य होती चउत्थे तु ॥१॥ अरहा जिणे य केवलि अप्परिस्सावी य होति पंचमए। एते पंच विकप्पा सिणायस्स तु होंति णायचा ॥२॥ पंचविह संजतावी सामाइय छेउवट्ठ परिहारे। सुहमे य अहक्खाए एकेके ते पुणो दुविहा । ल०१७०॥३॥ इत्तरिए आवकही सामाइयसंजए भवे दुविहो । दुविहे य छेउबट्ठो सऽतियारे णिरतियारे य॥ल.१७१॥४॥ परिहारविसुदीए णिविसमाणे तहेव निविट्टे । दुविहे य मुहमरागे संकिस्संते विसुझंते ॥ ल०१७२॥५॥ अहखाओविय दुविहो छउमस्थो चेव केवली चेव । एसो तु संजतो खलु पंचविहो होति णायवो ॥ल०१७३॥६॥ सामाइयम्मि उकए चाउजामं अणुत्तरं धम्म । तिविहेण फासयंतो सामाइयसंजनो स खलु ॥ ल०१७४॥७॥ छेतृण तु परियागं पोराणं तो ठवेति अप्पाणं । धम्मम्मि पंचजामे छेओवट्ठावणो स खलु ॥ ल०१७५॥८॥ परिहरति जो विसुद्ध पंचजामं अणुनरं धर्म । तिथिहेण फासयंतो परिहारियसंजतो स खलु ॥ल० १७६॥९॥ लोभमणुं वेदितो जो खलु उवसामओ व खवओ वा। सो सुहुमसंपराओ अहखाया ऊणओ किंचि ॥ ल०१७७॥१०॥ १०६५ पञ्चकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उबसंते खीणम्मि व जो खलु कम्मम्मि मोहणिज्जम्मि छउमत्थो व जिणो वा अहवाओ संजतो स खलु ॥ ल० १७८ ॥ १ ॥ एतेसि समोतारो दुविहो सद्वाण तह परद्वाणे । वोच्छामि आणुपुत्रिं जो जत्थ समोयरति तेसिं ॥ २ ॥ जहणुवसंपजणता सवेसिं चेव पुच्छिया उ। वाकरण जहाकमसो तेसिं इणमो उवोच्छामि ॥ ३ ॥ पुलगो तु पुलागतं जहमाणो जहर सो लागतं। उपजे संजम अहवावि कसायसीलं तु ॥ ४ ॥ बउसो उ बउस्सत्तं जहती पडिसेवणं कसायं वा । संजमऽसंजम अस्संजमं च पडिवज्जती सो तु ॥ ५ ॥ पडिसेवणाकुसीलो विजहति पडिसेवणाकुसीलत्तं । बउस कसायकुसीलं पडिवज असंजमं वावि ॥ ६ ॥ अहवावि संजमासंजमं तु पडिवज्जती ततो सो उ। जोवि कसायकुसीलो विजहति सो तू कसायत्तं ॥ ७ ॥ पुलगं व बाउसेवा अहवा पडिसेवणाकुसीलं तु । पडिवज णियंठं वा अहवावि असंजमं वावि ॥ ८॥ अहवा संजमसंजम उवसंपजे तु सो चुतो तत्तो। णिग्गंठे उ नियंठत्त विजहति तत्तो चुतो संतो ॥ ९ ॥ उवसंपज कसायं सिणाय अहवा असंजमं वावि। विजहति सिणायगत्तं सिणायगो ऊ चुतो तत्तो ॥ ११०॥ उवसंपजति तत्तो सिद्धिगतिं सो पहीकम्मंसो । एसो तु नियंठाणं समुयारो संजयाणेत्तो ॥ १ ॥ सामादिसंजतो तू सामइयत्तं जहन्त किं जहति । किं वा उवसंपजे ? एवं पुच्छा उ सधेसि ॥ २ ॥ सामइयत्तं जहती सामाइयसंजते चुते तत्तो । छेदुवठावणियं वा पडिवज्जति सुहुमरागं वा ॥ ल० १७९ ॥ ३ ॥ अहवावि संजमासंजमं च अस्संजमं च पडिवज्जे छेदुवठवणीए पुण बिजहति से छेदुबट्टवणं ॥ ल० १८०॥ ४॥ परिहारविसुद्धीयं अहवावी सो तु सुहुमरागं तु । अस्संजम संजम संजमं च पडिवचती अहवाल० १८१ ॥ ५ ॥ परिहारविसुद्धीओ विजहति तत्तो चुतोवि तं चेव उवसंपजति छेदं अहह्वावि असंजमं सो तु ॥ ल० १८२ ॥ ६ ॥ विजति मुहुमसरागो ततो चुतो सुहुमसंपरायत्तं । उवसंपजति सामातिसंजमं छेदमहवावि ॥ ल० १८३ ॥ ७ ॥ अहव अहक्खायं तू अस्संजममहव सो तु पडिवजे । अहखातसंजमो पुण अहवायत्तं विजमाणो ॥ ल० १८४ ॥ ८ ॥ जहति अहक्वायत्तं उवसंपजति सो चुतो तत्तो। सुहुमं च संपरागं अस्संजम सिद्धिगतिमहवा || ल० १८५ ॥ ९ ॥ एस समोतारो खलु अहवावि नियंठसंजएसुं तु । संजयनिम्गंथेसु य अवरोप्परतो समोतारो ॥१२०॥ पुलगवउसाण दुष्हवि सामइछेदे तू समोतारो । ओतरति कुसीलो पुण आदिले चऊपि ॥ १ ॥ णिम्गंथसिणाता पुण समोतरंते तु ते अहखाते। एवं तु नियंठा तू ओतरिया संजते तु ॥ २ ॥ पुलबउसकुसीलेसुं सामइछेदा समोतरंती तु । परिहारसुडुमरागा ओतरति कुसीलएसुं तु ॥ ३ ॥ ओतरति अहक्खाओ णिम्गंथसिणातएस दोसुंपि एमेत समोतरिता अण्णोष्णेसुं जहाकमसो ॥ ४ ॥ उत्तारे सक्षमहवयाणि णियमा तु सवदतेसु ण तु सवपज्जवेहिं जम्हा सामादिए उदितं ॥ ५ ॥ पढमम्मि सङ्घजीवा बीते चरिमे य सङ्घदवाई सेसा महवता पुण (खल) तदेकदेसेण दव्वाणं ॥ ६ ॥ एतेसि णियं ठाणं आवण्णाणं तु संजयाणं च ववहारो होति दुहा पच्छित्ते आभवंते य ॥७॥ पच्छिते पंचविहो आगममादी उ होति णायच्यो। कस्साभवति ण वावी ? सच्चित्तादी तु आभव्व ॥ ८ ॥ सावरा हिस्स ववहारो, अवराहो पडिसेवणा पडिसेवणा य कतिहा?, तीसे भेदा इमे भवे ॥ ९ ॥ दप्पिया कप्पिया चेव, दुविहा पडिसेवणा। जयणाऽजयणा कप्पी, जयणा सुद्धो तु सेवतो ॥ १३० ॥ जयणासेवी कप्पो दप्पो जयणाएँ अजयणाए य आवज्जति सद्वाणं वण्णिज्जति वित्थरो कप्पे ॥ १ ॥ पडिसेवगस्स होती देस भंगो य सङ्घभंगो य। अवराहे के रिसए देसे सवेऽवि सो होति ? ॥ २ ॥ पणगादी जा छेदो एसो खलु होति देसभंगो तु। मूलादि उवरिमेसू णायको सहभंगो उ ॥ ३ ॥ तस्स उ विमुद्धिहेतुं पच्छित्तं तस्स केत्तिया भेदा ? । छडाणादीया खलु परूवणा तेसिमा होति ॥४॥ छसु काएसवएस य उहि एगिंदियादि पंचविहं संघट्टण परितावण उदवणे चैव निष्फण्णं ॥ ५ ॥ चउहा तु णाणवंते दंसणवंते चरित्तवंते य । तत्तो चियत्तकिचे अहवा दवाइयं चउहा ॥ ६ ॥ अहवा अतिकमादी चउहा कोहाइयं च चउहा तु । णाणादियारमादी होती तिविहं च पच्छित्तं ॥ ७ ॥ अवा आहारोबहिसिजतियारे य होति तिविहं तु । उग्गम उप्पायण एसणा य तिविहं तु एकेके ॥ ८॥ आलोयण पडिकमणे तदुभयमेवं तु होति तिविहं तु । सच्चित्ताचित्तमीसग तिविहं चेदं मुणेयचं ॥ ९ ॥ अहवा सत्तट्ठविहं नव दसहा वावि होति पच्छित्तं । आप्रेय पडिकमणे मीस विवेगे य बोसग्गे ॥ १४० ॥ उदुग तवे य तत्तो सबै तुवरि सत्तमं छेदो। अट्ठविह छेद दुविहो देसे सर्व्वे य बोद्धवो ॥१॥ णववि सङ्घच्छेदो दुह संजमुवटुविजती मूलं कालंतरमित्तरे पुण खेत्तंतों बहिं च दसभेदं ॥२॥ अहवऽण्णह दुविहेदं एगविहं बाबि होज णाय । रागद्दोसा दोणी एगविहोऽसंजमो होति ॥ ३ ॥ छट्टाणे दंसणेत्ती जो काए छविहे ण सहहती। णत्थिण णिचादी वा उडिहमेयं तु मिच्छतं ॥ ४ ॥ धम्मत्थिकायमादी कालंतादिं तु छत्तु दवातिं। जो ताई ण सद्दहती छष्टिमेयं तु मिच्छत्तं ॥ ५ ॥ संजमो सतरसविहो उ सामाइयमादि अहव पंचविहो। गाहृणता व चरित्तस्स गणं चिय गाहणा होति ॥ ६ ॥ किह पुण चरित्तग्रहणं होजाही? भण्णती इमेहिं तु । वेरम्गेणं अहवा मिच्छत्ता होइ सम्मत्तं ॥ ७॥ सम्मत्ताउ चरितं अहवा होजा इमेहिं गहणं तु । सवणे णाण विणा मादी गाण चरिते ॥८॥ अहवावी उवएसो एगहं होति गाहणाउत्ति तह उवदिस्सति जह ऊ चारितं गेव्हती सो तु ॥ ९ ॥ अविराहणम्मि य गुणा दोसा य विराहणे चरित्तस्स । तह गाहि१०६६ पञ्चकल्पभाष्यं मुनि दीपरत्नसागर - Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जति जह तं (तू) ओगाढो होति चारित्ते ॥१५०॥णाणे तह दंसणे य जातिग्गहणेण संसुया एया। एयातिं गाहिंते गाहणता वण्णिता एसा ॥१॥ एमेता जा भणिता अहवा अवहारणे चसहो तु। पडिबत्ती उवगारो वागरणं वावि पढिवत्ती॥२॥ एतं कप्पे वणिजती उ अन्ने य बहुविहा अत्था। अत्येसु अणेगेसुय कप्पभिधाणं मुणेयम् ॥३॥ सामत्ये वण्णणा काले, छेयणे करणे तहा। ओवंमे अहिवासे य, कप्पसहो वियाहिओ ॥..१५॥ ल०६॥४॥ सामत्थे अट्ठ मासे वत्तीकप्पो तु होति गम्भगतो।वण्णण अज्झयणं तु कप्पिय जहमेगसाहूणं ॥५॥ काले हेमंताणं जह तु दसरायकप्पतिकते। छेदणे जह केसे तू चउरंगुलवज कप्पेहि ॥६॥ करणे वत्तीकप्पिय अहो इमेणं जहा तु पुरिसेणं। आइञ्चचंदकप्पा हवंति जह साहुणा धम्मी ॥७॥ सोहम्मकप्पवासी अहिवासे जह तु हॉति देवा तु। एते सामत्थादी जोएयचा इहं कप्पे ॥८॥ कप्पज्झयणमधीतुं अतियारविसोहणं समत्थे उ। कतिविहपायच्छित्तस्स परूवणा वण्णणा होति ॥९॥ काले उडुबद्धाणं वासावासं च वुड्ढवासं वा। वसती जहाविहं खलु उस्सग्गववायसंजुतं ॥१६०॥ तवसोहिमतिकंतं छिंदति पणगादिएहिं परियागं। कुणइ य तहा पयत्तं जह तं दिण्णं वहइ सम्मं ॥१॥ओवम्मे जिणकप्पो जाणणगहणे य सो हवति गीतो। अहिवासे मासादिसु ऊणतिरित्ते विभासा तु॥२॥ सजेसि कप्पाणं पण्णवण परूवणा उणवमंमि। आसज उ सोयारं पुषगते वा इहं वावि ॥..१६॥३॥ एतेसिं सव्वेसिं छव्विह कप्पाइयाण कप्पाण। पण्णवण परूवणता णवमे पुचम्मि णिदिवा ॥४॥ सातार पुण आसज हाजइह काप्प अहव णवमम्मि। धारणगहणसमस्ये ताहित असमत्थे इहई तु॥५॥ कप्पाणं वक्खाणं पुख्यगते वणितं समत्तं तहयोवगन्तिकाउंणबह-ल माणो ण कायब्बो॥६॥दब्वे खेत्ते काले उम्गहसंघयणधारणगुरूणं । तंपी वह मण्णिअजं एगपदे पदं अस्थि ॥.:.१७॥७॥ दुस्समअणुभावेणं हाणी विरियस्स ओसहीर्ण तु। दुलभाणि य दवाई जाई जोग्गाई तणुभावे॥ ८॥ खेत्ताणि प(य)हायंती विहारजोग्गाइं तदणुभावेण । दुभिक्खपउरकालो तेणणुभावेण मणुयाणं ॥९॥ लदी उम्गहणम्मी संघयण धारणा य परिहाति। ण य सीसायरियाणं सत्ती वत्तुं च सोतुं वा ॥१७०॥ण य संति बहू गुरवो जे वत्तारो य हुंति अत्थस्स। तेवि ण सव्वस्स लहुँ पसादसुहुमा (मुदा) भवंती तु ॥१॥ इय णातुं परिहाणीं जं एगपदेवि एगमत्थपदं । बहु मंतव्वं तंपि हु किं पुण संतेसु णेगेसु ॥२॥ तो ण पमाएयव्वं ण य भत्ती तू तहिं ण कायब्वा । सुठुतरं उज्जोगो कायव्वो तम्मि पित्तव्ये ॥३॥ सो पुण पंचविकप्पो कप्पो इह वण्णिओ समासेणं। वित्थरतो पुव्वगतो तस्स इमे होंति भेदा तु ॥४॥ छविह सत्तविहे य दसविह बीसतिविहे य बायाले । जस्स तु णस्थि विभागो मुबत्त जलंधकारो सो॥.:.१८॥५॥ विभयण विभागु भण्णति जहेरिसो छविहो य सत्तविहो । णामादिविभागो वा जस्सेसो ण विदितो होति ॥ ६॥ सुबत्त सुट्ट वत्तं तस्स निवुडस्स वा जलमगाहे। होती सचक्खुयस्सवि जहंधकारो मणुस्सस्स ॥७॥ अहवा जलंधकारो मेहोत्थइयंमि होति गगणम्मि। अहवा जलंधकारो जत्यादिचो ण दीसति तु॥८॥ एवं तु अंधकारो कप्पषकप्पं पडुच तस्स भवे । अहवा सो चेव जलो भवइ य से अंधकारं तु ॥९॥ छविहकप्पस्सिणमो णिक्खेवो छबिहो मुणेयचो। णामं ठवणा दविए खेत्ते काले य भावे य॥१८०॥ जेण परिम्गहिएणं दवेणं कप्पो होति णाऽकप्पो। तं दब्वमेव कप्पो कारणकजोक्यारातो ॥१॥ सो तिविहो बोद्धब्बो जीवमजीवे य मीसतो चेव । एतेसि तु विभागं वोच्छामि अहाणुपुवीए ॥२॥ तिविहो य जीवकप्पो दुपय चउप्पय तहेव अपदेहिं । अहिगारो दुपदेहिं तत्यदि य मणुस्सदुपदेहिं ॥३॥ तत्थवि य कम्मभूमतुसंखिजगवासआउएहिं तु। पब्बइतुकामएहिं तत्थवि तू होति अहिगारो॥४॥ सो होति छब्बिहो तू बोद्धब्बो मणुयजीवकप्पो तु । बोच्छामि तस्स इणमो भेदविकप्पं समासेणं ॥५॥ पञ्चावण मुंडावण सिक्खावणुवट्ठ मुंज संवसणा। एसो त्थ (तु) जीवकप्पो छम्भेदो होति णायचो॥::.१९ ॥ ल०७॥६॥ अभुवगमों पञ्चावण मुंडावण होति लोयकरणं तु । गहणासेव. णसिक्खं सिक्खाविन्तमि सिक्खवणा ॥ ल०८॥७॥ वयठवणमुवट्ठवणा संभुंजण मंडलीएँ सह भोगो । एगततो सह वासो संवसणा होति णायचा ॥ ल०९॥८॥णाऽ. पवावित मुंडावणा तु ण यऽमुंडिए तु सिक्खवणा । एमादी तु विभासा पत्रावयती तु केरिसगो? ॥९॥ सुत्तत्थतदुभयविसारयस्स संगहउवायकुसलस्स । कप्पति पत्रावेतुं संवेगसुवटितमतिस्स ॥.:.२०॥१९॥ सुत्तत्येण विसारएं चउभंगो एत्य होति कायो। तं चेव तदुभयं खल विसारतो जाणतो तस्स ॥१॥ दवे भावे संगह दो आहारमादिए ॥१॥ दो भावे संगह दो आहारमादिएहिं तु । सिक्ख. वर्ण अगिलाए गेलण्णे यावि करणं तु ॥२॥ भावम्मि संगहो खलु णाणादी तं तु होति बोदश्यो। जाणइ वट्टावेतुं गच्छंतु उवायकुसलो तु ॥ ३ ॥ संसारभउविग्गो संविग्गो सो तु होइ णायव्यो । एतेसिं तु पदाणं चउभंगो होति एकेके ॥४॥ तदुभयविसारदो खलु ण संगहे कुसलों एत्य चउभंगो। तदुभयउवायकुसलो एत्यपि तु होति चउभंगो ॥५॥ तदुभयसंवि. गोहिवि चउभंगो एव होति कायव्यो । एवगुणजातियस्सा पव्वावेतु तु कप्पति तु ॥६॥ पञ्चाविता भणिता अहुणा पत्रावणिज वोच्छामि। पबजाए जोग्गा जे वा होती अजोग्गा तु ॥७॥ पञ्चावणारिहा खलु जातीकुलरूवविणयसंपण्णा। तधिवरीयगुणा खलु हाँति अपञ्चावणाजोग्गा ॥८॥ तेसिं तु जे विवक्खा तधिवरीया हवंतिते णियमा। अहवावि हमे वीस वजित्ता १०६७पञ्चकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 सेसगा जोग्गा ॥९॥ वाले वुड्ढे नपुंसे य, जड्डे कीवे य वाहिए। तेणे रायावगारी य, उम्मत्ते य अदसणे ॥.:२१॥२००॥ दासे दुढे य मूढे य, अणत्ते जुंगितेइ या ओबद्धए य भयए, सेहणिप्फेडितेति य ॥:::२२॥१॥ गुश्विणी चालवच्छा य, पहावेतुंण कप्पए। एसि परूवणा दुविहा, उस्सग्गववायसंजुता॥..२३॥२॥ कारणमकारणे अहव कारण जयणेतरा पुणो व दुविहा । एस परूवण दुविहा एत्तो बालादि वोच्छामि ॥३॥ तिविहो य होति बालो उक्कोसो मज्झिमो जहण्णो य। एतेसिं तिण्हंपी पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥४॥ सत्तटुगमुक्कोसो छप्पण मज्झो य चतुतिय जहण्णो। एयं वयनिफण्णं सभावओ होति णव भेदा ॥५॥ जहणो जहणसभावो मज्झसभावो तहेब उक्कोसो। एवं मज्झिम तिण्णी उक्कोसावी भवे तिण्णि ॥६॥ छिदंतमछिदंता तिमिवि हरितादि वारिता संता। पुणरविय छिंदमाणा जति दिट्ठ गुरूण बऽपणेणं ॥७॥ उक्कोसो दलृणं मज्झिमतो ठाति बारितो संतो। जो पुण जहण्णवालो हत्थे गहिओवि णवि ठाति ॥८॥ दाहिणकरम्मि गहितो वामकरणं स छिंदती ताई। मंडलगमि व धरितो चिट्ठह एवं च भणितो तु॥९॥जह भणितो तह तु ठितो पढमो बीएण फेडियं ठाणं । तइओ न ठाति ठाणे अह रुम्भ(ब्व)ति विस्सरं रुयति ॥२१०॥ एतेसिं बालाणं पव्वाविंतस्सिमं तु पच्छित्तं। तिण्हपि कमेणं तू वोच्छामी आणुपुवीए॥१॥ अउ-- पत्तीसा वीसा उगुवीसा चेव तिविहवालम्मि। तव छेद वीसु पढमे विति मिस्सा ततिय छेदाती ॥२॥ अउणत्तीस दिवसे सिक्खावितस्स मासियं लहुयं ॥ उक्कोसगम्मि बाले सो चेवा असिक्खणे गुरुगो॥३॥ अण्णे अउणत्तीसं गुरुओ सिक्खे असिक्खि चउलहुया। पुणरवि अउणत्तीस लहुगा सिक्खेतरे गुरुगा (गुरुगा सिक्खे य छल्लुहुगा)॥४॥ अण्णे अउणत्तीसंद गुरुगा सिक्खे असिक्खि छलहुगा। (अण्णे उ अउणतीसं सिक्खावितस्स होति पच्छित्तं।) छल्लहुगा सिक्खम्मि य असिक्खि गुरुगा अउणतीसं ॥५॥ अण्णे सिक्खासिक्खे छम्गुरु तवों छेद छम्गुरू चेव । मूलऽणवढे पारंचिगं च एकेकगं तत्तो॥६॥ अहवा सो चेव तवो छेदादी मासमादिया होति। सिक्खावितमसिक्खे मूलेकदुगं तहेक्के कं ॥ ७॥ अह्वा सो चेव तवो छेदो पणगादि जाव छम्मासा। सिक्वाविंतमसिक्खे लहु गुरु एकेक उगुतीसा ॥८॥मूलऽणवटुं च तओ पारंचियमेव होति एकेक । सिक्खासिक्खपगारा उक्कोसे होति बालेते ॥९॥ अहवा सो चेव गमो दिणेहिं सिक्खितरवजिए होति।मासादितवच्छेदा मूलाईया दिक्केक ॥२२०॥ एमेव मजिझमेऽवी णवरं दिवसा तु वीस बीसं तु । एमेव जहण्णेऽवी उगुवीसुगवीस | दिवसा तु ॥१॥ अहवा मज्झे मीसा जहण्णछेदादि अन्नपरिवाडी। तवछेदेगंतरिया मज्झि जहणे तु भयणाए ॥२॥ मज्झिमि वीस लहुओ सिक्खमसिक्खस्स मासिओ छेदो। वीसण्ण छेद लहुओ सिक्खमसिक्खे गुरुग तवो (गो जो) ॥३॥ अड्ढोकंती एवं तबछेदेगंतरा तु णेयब्वा । जा छम्मासा ताव तु परओ मूलादि एकेकं ॥ ४॥ अउणावीस जपणे सिक्खावितस्स मासिओ छेदो। सो चिय असिक्खि गुरुओ जा छग्गुरु तिषिण परओ तु ॥ ५॥ अहवा ण होइ छेदो ठाणे चिय मूल तह य अणवट्ठो। पारंचिए य तत्तो एवं भयणा जहण्णस्स ॥६॥ अह्वा पढमे छेदो तहिवसे चेव हवइ मूलं वा । एमेव होति बीए तइए पुण होति मूलं तु ॥७॥ किं कारण सोधेसा ? दोसा तहियं इमे समक्खाता। पश्चाविएसु तेसु तु उड्डा हाई मुणेयव्वा ॥८॥ भस्स वयस्स फलं अयगोले चेव हॉति छक्काया। णिसिभत्तमंतराए चारग अजसो य पडिबंधो॥..२४॥९॥ लोगो वेती पेच्छह इणमो बंभवईण नु फलं तु। २ अयगोलोविव तत्तो डहती सो जित्तिए मुक्को ॥२३०॥ भत्त णिसि मरगमाणे दिते तु रातिभत्तभंगो तु । हवइ अदितम्मि तऽतराइयं बेइ लोगो य॥१॥ चारगपाला हु इमे तु एव संभंति। लोगे जायति अजसो अहो इमे णिरणुकंपत्ति ॥२॥ तेण य पडिबंधेणं पडिबदा णवि कहिंचि विहरति । जे दोस णीयवासे ते पावते य अमरता ॥३॥ ऊणट्टे णस्थि PI चरणं पव्वाविंतोऽवि भस्सई चरणा । मूलावराहिणी खलु णारभते वाणिओ चेहूँ ॥ ४॥ उग्घायमणुग्घायं णाऊर्ण छव्विहं तवोकर्म । एमेव छेद छविह जिणचोदसपुषिए दिक्खा ॥.:.२५॥५॥ उम्घायमणुग्घातो मासो घाउ छच छविह तयेसो । एमेव छब्बिहोशिय छेदो सेसाण एकेकं ॥६॥ एवं पायपिछत्तं णाउ ण पब्बावए नओ बालं । णवरं पब्वाविंती जिणचोहसपुब्विअतिसेसी ॥ ७॥ ते जाणिउं गुणागुण बहुगुण णाऊण तेण दिक्खंति । के पुण जिणमादीहिं दिक्खिय बाला ? इमे सुणसु ॥८॥ सत्याए अतिमुनो मणओ सिजभवेण पुब्वविदा। अतिसेसिणा य वतिरो छम्मासो सीहगिरिणावि ॥९॥ एते अव्ववहारी जह पब्वावितीह गच्छवासी तु। एयं इच्छं णाउं भषणति इणमो णिसामेहि ॥२४॥ उबसंते व महाकुले णातीवम्गे व सनिसिजतरे। अजाकारणजाते वाले पत्रजऽणुण्णाया॥२६॥१॥ पव्वजाएं परिणए बिउलकुले तत्य बाल होजाहि। मा सब्बे नेसि कते अच्छंतू नेण पब्बावे ॥२॥णातीवरगे यतहा ठेव(धेर)गमादी मयम्मि संतम्मि। जणवादरक्खतो साखेड आसण्णवालाई ॥३॥ एवं समितराणवि अजायवि डिटिबंध पढिणीए। कजं करेमि सथियो जदि मे पव्यावतह वालं ॥४॥ एतेहि कारणेहिं पनाविजाहि गच्छवासी तु। पवावियाण तेसि इमेण विहिणा उ सारवणा ॥५॥ भत्ते पाणे धोवण सारणया वारणा निओजणया। चरण - करणसज्झायं गायत्रो पयत्तेणं ।।...२७॥६॥ निद्धमहुरेहिं आउं पुस्सति देहम्मि पाडवं मेहा। अच्छति जत्थ ण णजति सदादिसु पीहगादीया ॥७॥ठावेनि सालवाडा पडिले - हणमादिसारणमभिक्खं । वारिजए अभिक्खं हरियादी छिंदमाणो य॥८॥ सामायारिं सर्व सज्झायं चेव ऊ पयत्तेणं । गाहिजति सो एवं जयणा एसा तु बालस्स ॥९॥ (२६७) १०६८ पञ्जकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |तिविहो य होइ वुड्ढो उक्कोसो मज्झिमो जहण्णो य । एतेसि तिष्हंपी पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥२५०॥ दस आउविवागदसा दसभागे आउयं विभतिऊणं। दसभागे दसभागे होति दसा ता इमा होति ॥१॥ बाला किड्डा मंदा बला य पण्णा य हायणि पवंचा । पम्भार मुम्महीविय सयणी वसमा य णायब्बा ॥.:.२८॥२॥ तहियं पढमदसाए अट्ठमवरिसादि होति ला दिक्खा तु। सेसासु छमुवि दिक्खा पम्भारादीसु सा ण भवे ॥३॥ बुड्ढऽट्ठदसुक्कोसो मझो णवमि दसमी य तु जहष्णो। जं तुवरिं तं हेहा भयणाऽप्पचलं समासज ॥४॥ केसिंचिन पवंचादी वहढो उकोसगो उ जा सतरि। अट्टदसाए मझो णवमीदसमीसु य जहण्णो ॥५॥ कुरुकुयमादि णिसिद्धो जह मा बीयं करेहि एवंति । पुणरवि पकरेमाणो दिट्ठो साहिं ताहेतू॥६॥ उक्कोसो दठूर्ण मज्झिमओ ठाति वारिओ संतो। जो पुण जहण्णबुड्ढो हत्थे गहिओ णवरि ठाति ॥७॥ठाणे य चिट्ठसुत्ती जह भणियो तह ठिओ भवे पढमो। बी-ध एण फेडियं तं तइओ णवि ठायइ हाणे ॥८॥ एगुणतीसा वीसा अउणावीसा य तिविह वुड्ढम्मि। पत्तेयं तवछेदा पढमे बिति मीस तवछेदा ॥९॥ तह चेव विभागो तू जह वालार्ण | तु होति तिण्हंपि । किं पुण एसाऽऽरुवणा? भण्णति इणमो णिसामेहि ॥२६०॥ आवस्सय छक्काया कुसत्य सोए य भिक्ख पलिमंधो। थंडिल अप्पडिलेहा पमज पाढे करणजड्डो ॥..२९॥१॥ आवस्सयं ण सको गाहेतुं जड्डयाएँ सो वुड्ढो। छकाय ण सद्दहती ण तरति ते यावि परिहरितुं ॥२॥ कुदिडिकुसत्थेहिं तु भावितो निच्छए तगं मोनुं ।लोगस्स अणुग्गहकरा चिरंपुराणत्ति अम्हे मो॥३॥ अतिसोयवादएणं पुढवि गिण्हति बहुं दवं छड्डे। अपरीहत्यो भिक्खायरियं पलिमंथ पातवहो॥४॥ थंडिल्लं णवि पासइ दुन्बलगहणी य गंतु ण चएइ। अण्णस्सवि वक्खेवो चोदण इहरा विराहणता ॥५॥ पडिलेहणं ण गिण्हति पमजणे यावि सो भवति जड्डो। नवि तीरति पाढेतुं दुम्मेहो जड्डबुद्धी य॥६॥ भंजति अभिक्खमालावगं च अण्णेसि वावि पलिमंथो। उवही वीसारेती छड्डेइ व पंथि वच्चंतो॥७॥ उढितणिवेसिंते चंकम्मते अबाउडियदोसा। चरणकरणसज्झाए दुक्खं वुड्ढो ठवेतुं जे ॥८॥ उग्घायमणुग्घायं छविह पच्छित्त कारणे तेणं । तम्हा वुड्ढ ण दिक्खे जिणचोहसपृथिए दिक्खा ॥९॥ पञ्चाविति जिणा खल चोहसपुत्री य जे य अतिसेसी। जिणमादीहिं तेहिं कयरे ते दिक्खिया बुड्ढा ? ॥२७०॥ सत्याए पुष्वपिता चोहसपुत्रीण जंबुणा सपिता । तंममोणं जणतो तु दिक्खितो रक्खियजेणं ॥१॥ एते अव्यवहारी इच्छामी णातु अणतिसेसी य। जह दिक्खते ? भण्णति सुणसू जह तेवि दिक्खंति ॥२॥ उवसंते व महाकुले णातीवम्गे व सण्णिसेजतरे। अज्जाकारणजाते वुड्ढस्सेवं भवे दिक्खा ॥३॥जह चेव य बालस्सा विभास नह चेव होति वुड्ढस्स । णवर इमो विसेसो अजाणं कारणा होति ॥४॥ अजाण णत्यि कोती संचा। कारणेहिं जति णाम होज दिक्खितो बुड्ढो । ताहे य तस्स सारण काया इमीयतु विहीय ॥६॥ भत्ते पाणे सयणासणे व उवही तहेव वंदणए। चरणकरणसज्झार्य अणुयत्तणया य गाहणता॥.:.३०॥७॥ जारिसतभत्तपाणेण समाही दिजते सि तारिसगं । सयणीय महा(समा)भूमी पाउंछणमादि आसणयं ॥८॥ जतियं तरए वोढुं सीयत्ताणं व जत्तिएणं से। तत्तियमेत्तो उवही दिजति सेऽणुम्गहवाए॥९॥वंदणए अणुकंपा कीरति ण य सारियम्मि वंदावे । चरणकरणसजमार्य अणुकूलेउं चरण गाहे ॥२८०॥ उवउंजिउं णिमित्ते दोण्हंपिय कारणा दुवग्गाणं । होहिंति जुगप्पवरा दुण्हवि अट्ठा दुवम्गाणं ॥ ..३१॥१॥ ओहि मणो उवउंजिय परोक्खणाणी णिमित्त चित्तूणं । जदि पारगतो दिक्खा जुगप्पहाणा व होहिंति ॥२॥ दोण्णित्ति बालवुड्ढा पुणरवि दोवग्ग इस्थिपुरिसा य । सुत्तत्यदुगट्ठाए कालियपुवगयअट्ठा वा ॥३॥ पुणरवि दोवग्गा खलु समणा समणी य होति णायचा । तेसि अट्ठा दिती आहारो तेसि होहिंति ॥४॥ एत्तो वुच्छ णपुंसं सो किह णजेज जह णपुंसोत्तिा भण्णतिण चेव कप्पति दिक्खितुं विहि अजाणते ॥५॥ तम्हा दिक्खा गीते दिक्खंते चउगुरु अगीयस्स । गीतेवि अपुच्छित्ता गुरुगा पुच्छा उवाएणं ॥६॥ अम्हं णपुंसगादी ण कप्पते एव भणिते साहेजा। को वा णिशेदो ते? भणिज भगवं! अहं ततिओ ॥७॥ अहवाविय मेना से णिव्वेदं पुच्छिया हु साहेजा। अहवावि लक्खणेहिं इमेहिं गाउं परिहरेजा ॥८॥ महिलासभावो सरवण्णभेदो, मेंद महंत मउया य वाणी। ससहगं मुत्तमफेणगं च, एताई छप्पं. डगलक्खणाई॥९॥ गती भवे पचवलोइयं च, मिदुत्तदा सीतलगत्तया या धुवं भवे दुक्खरणामधेजो, संकारपच्चंतरिओ ढकारो ॥२९॥ गतिहत्थवत्थकडिभुमयभासदिट्ठी य केसलं. कारो।पच्छन्नमजणाणि य पच्छण्णतरं च णीहारो॥...३२॥१॥ मंदा गती विक्खिवें वामहत्थं, लंबं णियंसेति जहेव इत्थी। कतिधभगं वापि करे अभिक्खं, सविन्भमं उक्खिवए भुमाओ ॥२॥ भासंतो यावि करं वस्थि णिवेसेति इस्थिया चेव। हीणस्सरो य जायह दिट्ठी य सविस्भमा तस्स ॥३॥ केसे इत्थीव जहा आमोडति इस्थिमंडणं चेव । हायति एगंते या पच्छ आयरुचारं ॥४॥ पारसेसु भीरु महिलासु संकरो पमयकम्मकरणो या एयं बाहिरलक्खण णपुंसवेदो भवे अंतो॥५॥ सो पुण णपुंसवेदो लिंगे तिविहेचि होति बोडबो। कह लिंग तिए? भण्णति एत्थं एकेक वेदतिगं ॥ ६॥ उस्सग्गलक्खणं खलु थीपरिसणपुंसगाण वेदाणं । फुफुमदवग्गिमहणगरदाहसरिसा जहाकमसो ॥७॥ एकेके तिह भयणा इत्यी थीसरिस १०६९ पञ्चकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरिस अपुमे य इय पुरिसणपुंसे या एकेके होति पेदतिगं ॥ ८ ॥ सो पुण णपुंसगो तू सोलसहा होति तू मुणेयो। पंडग कीवे वातिय कुंभी ईसालु सउणी य ॥ ९ ॥ तकम्मसेवि पक्खियमपक्खिए तह सुगंधि आसित्ते। विद्धित चिप्पिय मंतोसहीहिं वा उवहए जे य ॥ ३०० ॥ इसिसत्त देवसत्ते एतेसि परूवणा इमा होति । तहियं पंडो तिविहो लक्खण दूसी च उवधाओं ॥१॥ पंडगलक्खण जस्सा जायाअवलोयणेण तु गहा (गइ)। सो लक्खणतो पंडो दूसीपंडो इमो होति ॥ २॥ दूसियवेदो दूसी दोसु य वेदेसु सज्जते दूसी। दो सेवइ वा वेदे दोसु च दूसिजदी दूसी ॥ ३ ॥ दूसेति सेसए वा सो दुह आसित्तों तद् य तूसित्तो। सावचो आसित्तो अणवचो होति ऊसित्तो ॥ ४ ॥ उवघाओविय दुविहो वेदे य तब होति उपकरणे । वेदोबघा पंडो इणमो तहियं मुणेयो ॥५॥ पुष्टिं दुश्चिण्णाणं कम्माणं असुहफलविवागाणं उदया हम्मति वेदो जीवाणं पावकम्माणं ॥ ६ ॥ जह हेमकुमारो तू इंदमहे बालियाणिमित्तेनं । मुच्छिय गिद्ध अतिसेवणेण वेदोवघात मतो ॥ ३३ ॥ ७॥ एयस्स विभास इमा जह एगो रायपुत्त वण्णेणं । तबियवरहेमसरितो तो से णामं कर्त हेमो ॥८॥ सो अन्नदा कदाई इंदमहे इंदठाणपत्ताओ । नगरस्स बालियाओ पुप्फादीहत्य दट्ट्णं ॥ ९ ॥ पुच्छति सेवगपुरिसे किं एया आगता उ इहइंति ? ते बिंती सोहम्गं मग्गंतेता वरत्थीओ ॥ ३१०॥ तो बेई एयासिं इंद्रेण वरो हु दिष्ण अहमेव । घेत्तृणं ता तेणं छूढा अंतेउरे सब्वा ॥ १ ॥ तो णागरगा रण्णो उवट्ठिता मोयवेह एताउ । तो बेति मज्झ पुत्तो कि जामाता ण रुच्चे मे ? ॥ २ ॥ तो तासु अतिपसत्तस्स तस्स णिग्गलियसव्वचीयस्स वेदोवघातो जातो सागारीयं ण उट्ठेति ॥ ३ ॥ तो ताहिं रूसियाहिं सो अदागेहिं घातितो ताहे । वेदोवघातपंडो एसोऽभिहितो समासेणं ॥ ४ ॥ उबहुत उबगरणम्मी सेजातरभूणियाणिमित्तेणं । तो कविलगस्स वेदो वतिओ जातो दुरहियासो ॥ ३४ ॥५॥ उवयउवगरणम्मी एवं होज्जा णपुंसवेदो उ। दोसा स बेदुदिण्णं धारेतुं न चयइ णायमिणं ॥ ६ ॥ जह पढमपाउसम्मी गोणो धातो तु हरियगतणस्स । अणुमजति कोडिचं वावण्णं दुब्भिगंधीयं ॥ ७ ॥ एवं तु केइ पुरिसा भोत्तूणं भोयणं पतिविसि । ताव ण भवति तुट्टा जाव ण पडिसेविओ वेदो ॥ ८ ॥ लक्खणदूसियडवधायपंडगं तिविहमेव जो दिक्स्खे। पच्छित्त तिसुवि मूलं दोसा तहियं इमे होंति ॥ ९ ॥ तरुणादीहिं सह गजो चरित्तसंभेदिणी करे विकहा। इत्यिकहाउ कहित्ता तासि अवण्णं पगाइ ॥ ३२० ॥ समलं आविलगंधिं खेदो य ण ताणि आसए होंति । सागारियं णिरिक्खइ मलिनु हत्थेहिं जिग्धइ • ॥ १ ॥ पुच्छति सोऽवि यऽपुच्वो णपुंसगो णविति अतिसुहं एवं आसय पोसे य तहा दुहावि सेवी अहं चेव ॥ २ ॥ एवं पुच्छिन्तु तओ अहवावि अपुच्छिऊण सह सेवे गेण्हेजा ही समणं तेण कहेयव्व तो गुरुणं ॥ ३ ॥ छंदिय कहिय गुरूणं जो ण कहेति कहिएवि य उवेहि परपक्व सपक्वे वा जं काहिति सो तमावज्जे ॥ ४ ॥ सो समणसुविहिएहिं पवियार कत्थती अलभमाणो। तो सेवितुं पवत्तो गिहिणो तह अण्णतित्थी य ॥५॥ अजसो य अकित्ती य तमूलागं तहिं पवयणस्स । तेसिंपि होति संका सव्वे एतारिता मण्णे ॥ ६ ॥ एरिससेबी एतारिसावि एतारिसो चरति सहो । सो एसो गवि अण्णो असंखड घोडमादीहिं ॥ ७ ॥ जम्हा एते दोसा तम्हा गवि दिक्खणिजो पंडो हु । एसो पंडोऽभिहिओ एत्तो किलिवं पक्खामि ॥ ८ ॥ किलिवस्स गोण्णणामं तदभिप्पाओ कलिजए जस्स सागरियं से गलती किलिवोत्ती भण्णती तम्हा ॥ ९ ॥ सो हू णिरुम्भमाणो कम्मुदएणं तु जायए तइओ तम्मिवि सो चेव गमो पच्छित्तं चैव जह पंडो ॥ ३३० ॥ उदएण बातियस्सा सविगारं जा ण होति संपत्ती । तचण्णियअसंबुडित दितो तत्थिमो होति ॥ ३५॥ १ ॥ णावारूढो तच्चण्णितो तु दं असंवुडमगारिं। ओवतिओ पुरिसेहि शडित्ति धारिजमाणोऽवि ॥ २ ॥ एसो तु वातिगो हू अलभतो सेवितुं अणायारं कालंतरेण सोऽवि हु णपुंसगनेण परिणमति ॥ ३ ॥ दुविहो य होति कुंभी जातीकुंभी य वेदकुंभी य जातीकुंभी वायण्हिओ हु सो भइऍ दिक्खाए ॥ ४ ॥ होइ पुण वेदकुंभी असेवओ सुज्झते सि सागरियं । सोऽविय णिरुवन्थी णपुंसगनाएं परिणमति ॥ ५ ॥ वेदुक्कडता ईसालुगो हु सेविजमाण ददूणं ण चएती धारेतुं भिमाणो भवे ततितो ॥ ६ ॥ सउणी उकडवेओ चडओ अभिक्ख सेवए जो तु। सोऽविय णिरुद्धबन्धी पुंसत्ताएँ परिणमति ॥ ७ ॥ तकम्मसेवि जो खलु सेविय तं चैव लिहति साणव्य । सोऽविय अपडियरंतो णपुंसगत्ताएं परिणमति ॥ ८ ॥ एगे पक्वे उदओ एगे पक्खम्मि जस्स अप्पो तु। सो पक्खपक्खिओ हू सोवि णिरुद्धो भवे अपुमं ॥ ९ ॥ सागारियस्स गंधं जिंघति सोगंधिओ भवे स खलु । कालंतरेण सोऽवी अलभतो परिणमे अपमं ॥ ३४० ॥ विग्गह अणुष्पवेसिय अच्छति सागारियंसि आसत्तो ण य से भावोक्समो अलभंतो सोवि अपुम भवे ॥ १ ॥ गालिय दो भाऊगा जस्स हु सो वद्धिओ मुणेयब्बो चिप्पिय बालस्सेव तु चिप्पिन् विराहितो जस्स ॥ २ ॥ तेणुवहतवेदो अहवावी ओसहीहिं जस्स भवे। इसिसत्तदेवसत्ता इसिणा देवेण वा सत्ता ॥ ३ ॥ वद्धियमादि उबरिमा उच्च णपुंसा हवंति भवणिजा । जदि पडिसेवि ण दिक्खे अह गवि पडिसेवि तो दिक्खे ॥ ४ ॥ आदिलेसु दसस्तुवि पब्वाविंतो हु पावए मुलं जो पुण पव्वावेहा वदतेवं तस्स चउगुरुगा ||५|| जे पुण छन्तुवरिमगा पथ्यावितस्स चउगुरु तेसु । वदमाणेऽविय गुरुगा किं वदतेसो इमं सुणसु ॥ ६ ॥ श्रीपुरिसा जह उदयं धरिति झाणोववासणियमेहिं । एवमपुमंपि उदयं घरेज जदि को तहि दोसी ? ॥ ७ ॥ १०७० पञ्चकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहवा ततिए दोसो जायति इयरेसु किं न सो भवति । एवं खु नत्थि दिक्खा सवेदगाणं ण वा तित्थं ॥ ८ ॥ भण्णति थीपुरिसा खलु पत्तेयं दोसरहियठाणेसु । णिवसंती इयरो पुण कहिं छुमति दोसुवी दोसा ॥ ९ ॥ संवासफासदिडीदोसा हू तस्स उभयसंवासे । अप्पत्यंचगदित जह राय मतो अवारंतो ॥ ३५० ॥ एत्थंबगदितो अहवा जह बच्छो मातरं द अभिलसती मायाविय वच्छं दट्ट्ण पण्हुयति ॥ १ ॥ अंब वा खज्वंतं दठ्ठे अहिलासों होति अण्णस्स । सागारियादि दट्ठे एव णपुंसे भवे दोसा ॥ २ ॥ तम्हा हु ण दिक्खिज्जा एवं णाऊणमेत दोसगणं। चितियपदे दिक्खिज्जा इमेहिं अह कारणेहिं तु ॥ ३ ॥ असिवे ओमोदरिए रायद्द्द्द्डे भए व आगाढे गेलन उत्तिमद्वे णाणे तह दंसण चरिते ॥ .. ३६ ॥ ४ ॥ रायदुद्रुभये ताण विस्स चैव गमणट्ठा। वेजो व सयं तस्स व तप्पिस्सति वा गिलाणस्स ॥ ५ ॥ पडिचरगस्सऽसतीए एगागी उत्तिमट्ठपडिवण्णे। अवावी अ(कु) सहाए वैयावचड़ता दिक्खे ॥ ६ ॥ गुरुणो व अप्पणो वा णाणादी गिन्हमाणे तम्पिहिति। अचरणदेसा णिते तप्पे ओमासिवेहिं वा ॥ ७॥ एतेहिं कारणेहिं आगाढेहिं तु जो तु णिक्खामे पंडादी सोलसगं कयकज्जविगिंचणडाए ॥ ८ ॥ तस्स विही होति इमो दिक्खिजंतस्स कारणजाए। सो पुण जाणिमजाणी जाणति जाणी तहा ततिओ ॥ ९ ॥ गवि कप्पति दिक्खेतुं तमुवट्टित पण्णवेति अह एवं तुझ पति दिक्खा नाणादिविराहणा मा ते ॥ ३६० ॥ जो पुण न जाणएवं तस्स विही होतिमा करेयवा । जणपचयट्टताएं जाणंतमजाणए वाचि ॥ १ ॥ कंडिपट्ट भंड छिली कत्तरि खुर लोय परमतं पाढे धम्मक सनि राउल वबहार विगिंचणं कुजा ॥ ३७॥२॥ कडिपट्ट भंड छिहली कीरति ण विधम्म अम्ह चेवासी कन्तरि खुरेणऽणिच्छे हाणी एकेक जा लोओ ॥ ३ ॥ लोएवि कए पच्छा भिक्खुगमादीमताई पाडिंति तंपिय अणिच्छमाणो पाढिती छलियकवाई ॥ ४ ॥ ताणिवि अणिच्छमाणे धम्मका नाऽवि हू अणिच्छते। परतित्थियवत्तयं दिज्जति ताहे ससमएवि ॥ ५ ॥ तंपिय अणिच्छमाणे उक्कमतो तस्स दिजए सुतं अण्णण्णसुत्तपलव पुत्रावरओ असंबद्धं ॥ ६ ॥ वीयारगोयरे थेरसंजुतो रत्ति दूरि तरुणाणं । गाहे मपि ततो घेरा जत्तेण गाहिंति ॥ ७ ॥ बेरग्गकहा विसयाण निंदणा उगुणिसियणे गुत्ता। चुक्कखलितम्मि बहुसो सरोसमिव तजए तरुणा ॥ ८ ॥ कतकज्जा से धम्मं कहिंति मंचाहि लिंगमेयंति। मा हण दुएवि लोए अणुब्वता तुज्झ णो दिक्खा ॥ ९ ॥ इय पण्णविओ संतो जइ मुंचति लिंग तो उ रमणिज्जं । अह गवि मुंचति ताहे भेसिजति सो इमेहिंतो ॥ ३७० ॥ सणि खरकम्मितो वा भेसेइ कओ इहेस किंचियो । तेसासति रायकुले यदि सो वबहार मग्गिजा ॥ १ ॥ एतेहिं दिक्खिओऽहं जतिविय लोगो ण याणते कोति । जह एतेहिं दिक्खितो तो ते बिंती ण दिक्खेमो ॥ २ ॥ अज्झाविओवि एतेहिं चैव पडिसेह किं वऽहीयं ते? छलियकहादी कड्ढति कत्थ जई कत्थ छलिताई ? ॥ ३ ॥ पुवावरसंजुतं वेगकरं सततमविरुद्धं पोराणमद्मागभासाणियतं हवति सुतं ॥ ४ ॥ जे सुत्तगुणाऽभिहिता तत्रिवरीयाई गाहिओ पुष्टिं । तेहिं चैव विवेगो जह एरिसयं भवति सुतं ॥ ५ ॥ णिववइह बहुपक्खम्मि बाबि वुडंचगम्मि पत्रइए। वोसिरणं वोच्छामी बिहीएं जह कीरए तस्स ॥ ६ ॥ भिण्णकहाओ भई विंती ण पढति इहं खु एरिसयं परतित्धिगादि वयम् जदि बेती तुज्झ समयंति ॥ ७॥ इय होतुत्ती वोत्तूण णिग्गतो भिक्खमादिलक्खेणं भिक्खुगमादी छोढुं विपलायंती पुणो तत्तो ॥ ८॥ कावालिए सरक्खे तबण्णियलिंगमादि वसभा तु । तं किंतु देउलादिसु सुतं छड्डित्तु वसन्ति ॥९॥ तिविहो होति य जड्डो भास सरीरे य करणजड्डो य। भासा जड्डो चउहा जल एलग मम्मण दुमेह ॥ ३८ ॥ ३८० ॥ जह जलवुड डो भासति जलमूओ एव भासइ अवतं जह एलगोत्र एवं एलगमूगो बलबलेति ॥ १ ॥ मम्मणमूओ बोब्बड खलेइ वाया हु अविसदा जस्स दुम्मेहस्स ण किंची घोसंतस्सावि ठायइ हु ॥ २ ॥ दंसणणाणचरिते तवे य समितीसु करणजोगे य उवइईपिण गेहति जलमूगो एलमूगो य ॥ ३ ॥ णाणादिऽट्ठा दिक्खा भासाजड्डो अपचलो तस्स सो य बहिरो य नियमा गाण उड्डाह अहिकरणं ॥ ४ ॥ तिविहो सरीरजड्डो पंथे भिक्खे तहेब बंदणए एतेहिं कारणेहिं सरीरजड्ड ण दिक्खेजा ॥ ५ ॥ अदाणे पलिमंधो भिक्खायरियाए अपरिहत्थो • उदुस्सासऽपरकम अहिअग्गीउदगमादीसु ॥ ६ ॥ आगाढगिलाणस्स य असमाही बावि होज मरणं वा जड्डे पासेवि ठिए अण्णे य भवे इमे दोसा ॥ ७ ॥ सेदेण कक्खमादी कुच्छण धुवणुपिलावणे दोसा । णत्थि गलओ य चोरो निंदियमुंडा य जणवादो ॥ ८ ॥ णेगे सरीरजड्डे एमादीया हवंति दोसा तु तम्हा तं गवि दिक्खे गच्छ महले वऽणुष्णाए ॥ ९ ॥ इरियासमिईभासेसणासु आदाणसमिइगुत्तीसु। गवि ठाति चरणकरणे कम्मुदपूर्ण करणजड्डो ॥ ३९० ॥ जलमूग एलमूगो अतिथूरसरीर करणजड्डो य दिक्तस्सेते खलु चउगुरु सेसेसु मासलहू ॥ १ ॥ भासाजइडं मम्मण सरीरजइडं च णातिथूरं च जावजिय परियट्ठे करणे जडं तु छम्मासे ॥ २ ॥ मोतुं गिलाणकजे दुम्मेहं वावि पाढि छम्मासे । ताहे तं दुम्मेहं जोऽविय करणम्मि सो जड्डी ॥३॥ छण्हुवरि तेसि दोन्हवि आयरिओ अण्ण गाहे छम्मासा। पच्छा अण्णो ततिओ सोऽविय छम्मास परियहे ॥ ४॥ जोऽविय तं गाहेती सिस्सो तस्सेव सो हवति ताहे । तहवि ण गिव्हे जदि ह कुलगणसंघे विगिंचणता ॥५॥ दुविहो य होति कीवो अभिभूओ चेव अणभिभूतो य अभिभूतोऽविय दुविहो आलिदनिमंतणाकीवो १०७१ पञ्चकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IN ॥६॥ दुविहो य अणभिभूओ विट्ठीकीवो य सहकीयो य। एतेसि विसेसमिणं वुच्छामि अहाणुपुरीए ॥७॥आलिखो जो णिवडति इत्थीहिं एस पढमओ कीवो। जो पुण पडति णिमं तिउ सो होति णिमंतणाकीवो ॥८॥ दुश्वियडदुण्णिसणं णिगिणमणायारसेविणिं वावि। दळूणं जो खुम्भति दिवीकीर्य तयं विति ॥९॥ अह साहम्मीणं तहऽण्णधम्मिणं अहव बावि FA गिहियाणं । इत्थीओ बठूर्ण खुम्भति दिट्ठीय कीवो सो॥४०॥ भासाभूरण तह गीतसद्द परियारसहमहवावि। सोऊणं जो खुब्मति सो भण्णति सदकीवोत्ति ॥१॥ मोहुकडताए जाते करेज दोसे इमे णिरंभंता। सज इत्थिरगहणं मरणं अहवावि ओहाणं ॥२॥ आलिबाणिमंतणदिहिसदकीवाण होति आरुवणा। चउगुरु उम्गुरु छेदो मूलं च जहकमेणं तु ॥३॥ SI एवं दो आदिले जदि दिक्खे तो हुएव परियझे। जावजीवं णियमियचरित्तसंघातसहिएहिं ॥४॥ दिट्ठी य सदकीयो णवरं दिक्खेज उत्तिमट्ठम्मि । अण्णह ण तेसि दिक्खा एवं कीवो समक्खातो ॥५॥ रोगेण व वाहीण व अभिभूयस्सा ण कप्पती दिक्खा। गंडीकोढादीओ सोलसहा हवति रोगो उ ॥६॥ वाही पुण अट्ठविहो कोट्ठा(ढा)दीओ तु होति णायचो।तं रोगवाहिपत्थं दिक्खते ऊइमे दोसा ॥७॥ छकायसमारंभो णाणचरित्ताण चेव परिहाणी। घंसण पीसण पयर्ण दोसा एवंविहा होति ॥८॥ जाता अणाहसाला समणाविय दुक्खिया तिगिच्छंता । तेविय पउणा संता होज प समणा ण वा होजा॥९॥ अकंतिओ य तेणो पागइओ गामदेसअद्धाणे। तकरखाणगतेणो परूवणा तेसिमा होति ॥४१०॥ अकंतिओ अडाडा पागइओं छिराय अहव पागतिणं । हरती गामाईणं अंतर अहवावि तेसिं तु॥१॥ तेणेव तु कम्मेणं जीवति गऽण्णेण तकरो स खलु। खत्ताई जो खणती खाणगतेणो भवे स | खलु ॥२॥ सो पुण तेणो चउहा दो खित्ते य काल भावे य। एतेसि चउण्हंपी पत्तेय परूवर्ण वोच्छं ॥३॥ सचित्ते अचित्ते मीसेऽविय होति दबतेणो हु । सचित्ते दुपयादी दुपदे दासाइयं होति ॥४॥ गोमादीय चउप्पय अपदं फलधण्णमादियं होति। अचित्त हिरण्णादी दुपयादि सभंड मीसम्मि ॥५॥ एमादि दयतेणो साहम्मियअण्णधम्मियगिहीणं । तेणितो सो तिविहो उकोसो मज्झिम जहण्णो ॥६॥ हयगतमाणिकाणि य तेणितो तेणतो उ उक्कोसो । खत्तखणकण्हवनियगोणीतेणो तु मज्झिमओ॥७॥ गंठीभेदग पहियजणदबहारी जहण्णतेणो तु । एकेकस्स य एत्तो पडिच्छगपडिच्छगो चेव ॥८॥ सगदेसपरविसे अंतर तेणे य होति खित्तम्मि । राइंदियावि काले भावम्मि य णाणतेणादी॥९॥ गोविंदज्जो णाणे दंसण मुत्तट्ट हेतुसहा वा। पारंचिगउवचरगा उदायिवहगादओ चरणे ॥४२०॥ दवादितेण एसो पवावेतु ण कप्पए सभो । समणाण व समणीण व पनाविते इमे दोसा ॥१॥ बंधण रोहण तालण दासत्तं मारणं च पाविजा। णिविसयं च णरिंदो करेज संघपि सो रुट्ठो॥२॥ अजसो य अकित्ती या तंमूलागं तहिं पवयणस्स । ठाति गिहीणवि एवं सब्वे एयारिसा मण्णे ॥३॥ सग्गामपरग्गामे सदेसपरदेस अंतो बाहिं वा। दिट्ठमविठुकोसा मज्झिमजहणे इमा सोही ॥४॥ मूलं छेदो छग्गुरु छलहु चत्तारि लहुगगुरुगा य । गुरुग लहुगो य मासो एएसिं चारणा उ इमा॥५॥ सग्गामंतो दिढे उक्कोसो मूल छेदों अहिडे। बाहिं दिट्टे छेदो अहिढे होंति छग्गुरुगा ॥६॥ परगामंतो दिट्टे उक्कोसो छेदों छग्गुरुमदिट्टे । पाहिं दिढे छग्गुरु अदिढे होंति छलहुगा ॥७॥ सद्देसंतो दिढे छग्गुरु अहिडे होति छलहुगा। बहिदिढे छलहुगा अहिढे होति चउगुरुगा॥८॥ परदेसतो दिढे छहुगा अदिढे होति चतुगुरुगा । यहिदिट्टे चतुगुरुमा अहिढे होंति चउलहुगा ॥९॥ एवं ता उकोसे मज्झे छेदादि ठाति गुरुमासे। छम्गुरुगादि जहष्णे ठायइ अंतम्मि लहुमासे ॥४३०॥ वितियपद मुकमोचिय अहवा बीसजितो गरिंदणं। अदाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमई वा ॥१॥खो उपरोहादिस से सगमवकारे दूतलेह उवकरणं । समणाण व समणीण बन कप्पते तारिसे दिक्खा ॥३॥ आसो हत्यी सरिया वाहीतं कतकतं च कणगादी। अहवा समंडमत्ता खरियादी अवहिता होजा ॥४॥दोचविरुदं च कर्त होनाहि पउत्तकडलेहो वा। पिउपुत्तभाउगादी कोई वहिओ व से होज्जा ॥५॥तंतु अणुदियदंडं जो पञ्चावेति होति मूलं से। एगमणेग पओसा होजा पत्थारदोसा वा ॥६॥ बितियपद मुकमोचिय अहवा वीसजितो णरिंदणं। अद्धाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमढे वा ॥७॥ उम्मादो खलु दुबिहो जक्खादेसो य मोहणिजो य।। दुविहंपिण दिक्खिज्जा दोसा तु भवे इमे तस्स ॥८॥ अगणी आलीवणता आयवयविराहणा य उड्डाहो। छकाय ण सदहती सज्झायज्झाणजोगे य ॥९॥ पडिलेहणादि वितहं करेति समितीसु असमितया वावि। उबविट्ठपि ण गिण्हति तम्हा णवि दिक्खें उम्मत्तं ॥४४०॥ दुविहो अदसणो खलु जातिउ उवघाततो य णायचो। उवघातो पुण तिविहो वाही उवघाउ | अंजणता ॥१॥ एयपसंगणं चिय अवरो थीणदिओ मुणेयधो । एतेसिं सोहि इमा जहकमेणं मुणेयवा ॥२॥ उदियणयणे तह सेसएसु थीणदितो तु कमसो तु। छग्गुरु चउगुरु | चरिमे दोसा तहिं दिक्खिते इणमो ॥३॥ छक्कायबिउरमणता आवडणं खाणुकंटमादीसु। थंडिलअप्पडिलेहा अंधस्स ण कप्पती दिक्खा ॥४॥ आवहति महादोस दसणकम्मोदएण थीणदी। एगमणेगपओसे जे काही तं तु आवजे ॥५॥ गम्भे कीए अणए दुभिक्खे सावराहि रहे य। एमादि होति दोसा ण कप्पती तारिसे दिक्खा ॥६॥राया व रायमचो कितिकम्मं संजताण कुर्वतो। ददठूण तुक्क्खरयं सवे एयारिसा मण्णे ॥७॥ वह गंध उदवणं खिंसण दासत्तमेव पावेजा। णिविसयंपि णरिंदो करेज संघपि सो रुट्ठी ॥८॥ अजसो (२६८ मुनि दीपरत्नसागर १०७२ पाकल्पभाप्यं - Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य अकित्ती या तंमूलागं तहि य पवयणस्स। लोगस्स होति संका सो एयारिसा पूर्ण ॥९॥ मुको व मोइओ बा अहवा बीसजितो णरिदेणं । अद्धाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमढे वा ॥४५०॥ दुविहो य होति दुट्ठो कसायबुट्टो य विसयदुट्ठोय। दुविहो कसायदुट्ठो सपकखपरपकखचउभंगो॥१॥ सासवणाले मुहर्णतए य उलुगच्छि सिहरिणि सपकसे । सासवणाल सुसंमिय एगेण गुरूणमुवणीयं ॥२॥ सर्व गुरुणा खइयं इयरे कोवो य खामणा गुरुणा। अणुवसमते उ गणे गणिं ठवेत्ताऽनहि परिना ॥३॥ पुच्छंतमणक्खाए सोबइ अण्णस्स (सवणातो गंतु) कत्थ से देहं । गुरुणो पुवं कहिते दाई पडियरण दंतवहो ॥४॥ मुहर्णतगस्स गहणे एमेव य गंतु णिसि गलग्गहणं। संमूढेणियरेणवि गलए गहिनो मया दोवि ॥५॥ अर्थ गतेवि सिबसि उलगच्छी उक्खणामि तुह अच्छी। पढमगमो गवरि इहं उलगच्छीउत्ति ढोंकेड ॥६॥ सिहरिणि लद णिवेदे गुरुण सबादितंति उग्गिरणा । भनपरिष्णा अण्णहिं ण गच्छती सो इहं गवरि ॥७॥ परपक्सम्मि सपकसे उदातिणिवमारतो जह व दुट्ठो। सो पवयणरक्खणट्ठा णिच्छुम्मति लिंग हातूर्ण ॥८॥ परपक्खि सपकूखे पुण जणारायव सो तु भयणिजो। तं पुण अतिसयणाणी दिकातऽधिगारिणं णाउं ॥९॥ परपक्खे परपक्खे दंडियमादी पट्ट परदेसे। उवसंते वाऽन्नत्य उ दमगादि पदुट्टभयिनो वा ॥४६०॥ निविहो य विसयदुट्टो सलिंग गिहिलिंग अण्णलिंगे या अहवा सबेवि दुहा सपक्सपरपक्वचउभंगो॥१॥ परपक्सविसयदुट्ठो सपकस पारंचिओ तु आउहो । अठियम्मि लिंगहरणं एमेव सपक्ख परपक्खे ॥२॥ परपक्वं तु सपकखे विसयपदुटुं ण तं तु दिक्वंति।सजि(झियमादिपदुर्दु ण य परपक्वं तु तत्थेव॥३॥दबदिसखेनकाले गणणा सारिक्ख अभिभवे वेदे। - बुग्गाहणमण्णाणे कसायमत्ते व मूढपदा ॥४॥ दवि दुहा बहि अंतो अंतो धत्तूरगादि बहि धूमो। जावदवियं ण याणति घडियावोदय दिलृपि ॥५॥ दिसमूढो पुचमवरं मण्णति खेत्तम्मि खेत्तवचासं। दियरातिविवञ्चासो काले पिंडारदिटुंतो ॥६॥ जह कोई पिंडारो खीर णिसट्टाए पाउ(रत्ति) पासुत्तो। अभच्छण्णे उढिओं मण्णति जह बट्टए रत्ती ॥७॥ महिसीओ पविसंतो दिवो लोएण हसियतो ताहे। किं एयंतिय भणियं एमादी कालमूढेसो ॥ ८॥ ऊणहियं मण्णंतो उद्दारुढो व गणणतो मूढो । सारिकख थाणुसरिसो महतरसंगामदिटुंतो ॥९॥ जह एके गामम्मी चोरा पडिया तु तत्थ जुम्मि। सेणावति तहिं बहिओ सारिक्खो महतरो व णितो ॥४७॥ सो णीय चोरपडि इयरो दड्ढोय तेण गामेणं । बेति य चोरे महनरों णाहं सेणावती तुज्झं ॥१॥ तो ते चोरा बिती गहिओ एसो रणपिसायीते। तो णासिऊण तत्तो गामगतो बेंति तो नियगा ॥२॥ दड्ढोसी अम्हेहिं किं देवेहि जियावितो तं सी?। इय सारिक्खविमूढा दोण्णिवि गामेङ चोरा य॥३॥ अभिभूतो संमुज्झति सत्यग्गीवात(चोर)सावयादीहिं। अन्भुदय अणंगरती वेदमी रायदिट्ठतो॥४॥जह कोति रायपुत्तो बालो अच्छीसु दुक्खमाणासु । मादुगहसारिसारियसंफुसण ठितो तु तुहिको ॥५॥ लदोवाउत्ति तओ एवमभिक्खं तु ताहे सा कुणति। सोऽविय विवद्धमाणो सत्तो तीए तु पासम्मि॥६॥तीयवि अणुप्पियं चिय पितुउवरमणे य तस्स रायत्तं। तहविय तं पडिसेवति सचिवादिणिसिज्झमाणोवि ॥७॥ वुग्गाहितो परेणं कजमकर्ज च ण मुणती जो तु। सो बुम्गाहणमुढो दिटुंता दीवजातादी॥८॥ वणिदारग पियमहिलो तीय समं गमण वारिजाणेणं। गम्भिणि पोतविवत्ती समुहमझे फलगलग्गा ॥९॥ अंतरदीवुत्तिण्णा पसूयदारग विवद्धितो कमसो। तेण सह लम्ग वितिरिच्छपोतरूढा गता सपुरं ॥४८०॥ बुग्गाहिय तीय सुतो ण मुणति लोगेण भण्णमाणोऽवि। जह जणणि तवेसत्ती अगम्मगमणं ण बद्दति उ॥१॥जह वा अणंगसेणो ण मुणति बुम्माहियऽच्छराहिं तु मित्तवयणं हियंपी जह वावि सुवष्णगारीणं ॥२॥ युग्माहितो तु बोडो मा हीरेजा सुवण्णकारेणं । तुज्झं तु मोरगाई छाएमी तंवएण अहं ॥३॥ लोगो य तुम भणिहिति हरियाई मोरगाई गोड ! तुहं । तं मा हु पत्तियाही एवं च भणिजसी लोगं ॥४॥ जो एत्वं भूतत्यो तमहं जाणे कला य मासो य । सोऽविय एवं भणती वुग्गाहिय अहव अंधलगा ॥५॥ अंघलगम्भत्तणिवे सयणासणभत्तवसहिमादीहिं। सुपरिम्नहितंधलगा तेवि य धुत्तेण भणिता य॥६॥ अहयम्मि अंधदासो अम्हं राया य अंधलगभत्तो। इह दक्सिय तहिं वचह जह कयपुण्णोज दियलोयं ॥७॥ इय होतुत्तियणेहिं जेतुं रतिं तु डोंगरंतेणं । वेढेऊण पुरिलो लाविउ मम्गिलपट्ठीए॥८॥आणह मे जं अस्थि एत्य चोराण पतिभयं ठाणे। गेव्ह य पत्थर मा य हु कासति देहित्य अडियितुं ॥९॥ भणिहिंति चोर तुम्भे केणेते अंधला वरागा तु। गिरिडोंगरा बढाविय पहणह ते पत्थरेहिं तु ॥४९०॥ इय बोत्तूण पलाओ चिचूर्ण अत्थजातयं तेसिं। ते य पभाते दिहा गोवादीएहिं भणिता य॥१॥ केणेते एव कता इय वुत्ते पत्थरेहिं ते पहया। गवि दिति अल्लियावं युग्गाहिय एवमादीया ॥२॥ वणिमहिल मूढ दवे वेयम्मि य मूह होति राया ऊ। बुग्गाहणमूढा पुण दीवादी सेस दवेवि ॥३॥ अण्णाणमूढ इणमो दाइजंतं पि कारणसतेहि। जो सप्पहं ण याणति जचंधो चेव जह चंद ॥४॥ कोहादिकसाओदयमूढो णवि जाणती मणूसो तु । इह य परम्मि य लोए हिताहितं कज्जऽकजंवा ॥५॥ दव्येण य भावेण य दुविहो मत्तो तु होति णायवो। मजमदादी दब्वे माणट्ठविहेण भावम्मि ॥६॥ मोत्तूण वेदमूढं आदिहाणं तु णस्थि पडिसेहो। बुग्गाहण अण्णाणे कसायमूढो पडिकुट्ठो॥७॥ सचित्तं च अचित्तं मीसग जो अणं तु धारेति। समणाण १०७३ पञ्जकल्पभायं - मुनि दीपरत्नसागर S Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व समणीण व ण कप्पते तारिसे दिक्खा ॥ ८॥ अयसो य अकित्ती या तमूलार्ग तहिं पवयणस्स। अणचोप्पडझंझडिया सवे एतारिसा मण्णे ॥९॥ वितियपद दाणतोसिय अहवा वीसजितो पभूर्ण तु। अवाण परविदेसे दिखा से उत्तिमद्वे वा ॥५०॥ चउरो य जुगिया खल जाती कम्मे य सिप्प सारीरे। जातीय पाणवरुडाडोंबाणिकारमादीया ॥१॥ पोसगसं. वरणडलंखवाहसोयरियमच्छिगा कम्मे। पडकारा य परीहर(सह) रजगा कोसेजगा सिप्पे ॥२॥ करपादकण्णणासियओट्ठविहूणा य वामणा वडभा। खुजा पंगुलकुंटा काणा एते अ. दिक्खेया ॥३॥ पच्छा यहोति विगला आयरियत्तं ण कप्पए तेसिं। सीसो ठायचो काणगमहिसोच णिष्णम्मि ॥४॥ जे पुण जातीजुंगित कम्मे सिप्पे य तिण्णिविण दिक्खे। बितियपदे दिक्खेजा एएहिं कारणेहिं तु ॥५॥ जाहे यमाहणेहिं परिभुत्तो कम्मसिप्पपडिविरतो। अदाण परविदेसे दिक्खा से अभणुण्णाया ॥६॥कम्मे सिप्पे विजा मंते जोगेण चेव ओषदे। समणाण पसमणीण व ण कप्पए वारिसे दिक्ला ॥७॥ कर्म तु उड्डमादी सिप्पं सिकिखजते गुरुविदेसा। लोहारादीतं पण विजकलालेहमादीओ ॥ ८॥ अहवा विज ससाण मंतो पुण होति पढियसिद्धो तु। पसिकरणपादलेवादि ततो उ जोगा मुणेयवा ॥९॥ गोवालादी कम्मे ओषदा छिण्णऽछिण्ण कालेणं । दिण्णा अदिण्णभतिया दिण्णभतीया ण कप्पंति॥५१०॥ सिप्पादी सिक्खंतो सिक्खातिस्स देति जा सिक्खा। गहितम्मिवि सर्वपी जचिरकालंत ओषद्धा ॥१॥ बंध बहो रोहो वा हचिज परिताच संकिलेसो वा। ओपन. गम्मि दोसा अवन सुत्ते य परिहाणी ॥२॥ मुको व मोइओ या अहवा बीसजितो गरिदेण । अदाण परविदेसे दिक्खा से अम्भणुण्णाया ॥३॥ दिवसभयए व जत्ताभतीय कबाल. भयग उचत्ते । भयओ चतुधिहो खलु ण कप्पते वारिसे दिक्खा ॥४॥ दिवसभयओ उ धिप्पइ छिण्णेण धण्णेण दिवसदेवसियं । जत्ता तु होति गमणं उभयं वा एत्तियधणेणं ॥५॥ कबाल उड्डमादी हत्यमितं कम्ममेत्तियधणेणं। एचिरकाले घ(व)त्ते काय एत्तियधणेणं ॥६॥ कतजत्तगहियमोठं दिक्खे अकयाय होति पडिसेहो। पवाचिंते गुरुगा गहिए उडाहमादीणि ॥७॥ छिण्णमछिण्णे य धणे वावारे काल इस्सरे चेव । सुत्तत्यजाणएणं अप्पाबहुयं तु णायचं ॥८॥वाबारे काल धणे छिण्णमछिपणे य होंति भंगट्ठा साहिय गहिते य कते मोत्तुं सेसेसु दिक्वेति ॥९॥ गहिए व अगहिते वा छिण्णधणे साधिते ण दिक्खंति। अच्छिण्णधणे कप्पति गहिते व अगहिते पावि ॥ ५२० ॥ जत्थ पुण होति छिण्णं थोवो कालो य होति कम्मस्स। तत्थ अणिस्सरदिक्खा इस्सरों बंधपि कारेज्जा ॥१॥ पेत्तुं समय समत्यो रायकुले अत्यहाणि कड्ढते । फेलस्स तंण कप्पति रोहोरसवीरिए भयणा ॥२॥सेहस्सा णिप्फेडिय जो सेहं घेत्तु आसियाडेति। सो पुण यतेण केरिसों ण कप्पती आसियाडेतु ॥३॥ अप्पडुपण्णो बालो सोलसपरिसूणों अहव अणिविट्ठो । अम्मापितुअविदिण्णो ण कप्पती तत्य वऽण्णत्थ ॥४॥ततियवतअतीयारो णिप्फेडण तेणसह भइणिजो। तेणेय तेणतेणे पडिच्छगपडिच्छगे चउहा ॥५॥ ततियवतस्सऽतियारो णिक्खाबिंतस्स सेहमविदिण्णं । भयणा तेणगसहे होती इणमो समासेणं ॥६॥ जो सो अप्पडुपण्णो बिरठ्ठवरिसूण अहव अणिविट्ठो। तं दिक्खितऽविदिण्णं तेणो परतो अतेणो तु॥७॥ अहवा मुंडित ससिहे भइयो होति तेणसदो तु । एकेकस्स य इत्तो चउभंगो होइमो कमसो ॥ ८॥ मुंडपभुपेडए या चउभंगो पढमततिय अणुण्णाया। ते हरमाणों अतेणो सेसेसु तु तेणओ होति ॥९॥ एव पभुस. सिहपिङग चउभंगो णूण एत्यवि तहेव । एतेण कारणेणं तेणगसदो तहिं भजितो ॥५३०॥ अहवऽण्णो चउभंगो ससिहेगं एकों णेति इति एको । असिहम्मि होति वितिओ तेणा चत्तारि तत्थ इमे ॥१॥ जो गन्तु सयं णेती सो तेणो होति लोगउत्तरिओ। भिक्खादिगते तम्मितुहरमाणो तेणतेणोतु ॥२॥ तं पुण पडिच्छमाणो पडिच्छओ तस्स जो पुणो मूला। गिण्हति एर्गतरिओ पडिच्छगपडिच्छगो स खलु ॥३॥ तइयवताइयारो एवं णितस्स होइ सेहं तु। अण्णे य इमे दोसा गहणादीया भवे तस्स ॥४॥ अम्मापितरो कस्सति विपुलं घेत्तृण अत्थसारं तु । रायादीणं कहते कहियम्मि य गिरोहणादीया ॥५॥ विप्परिणमे व सण्णी केई संबंधिणो भवे तस्स । विप्परिणया य धम्म मुएज कुजा व गहणादी ॥६॥ आय. रियउवझाया कुल गण संघो तहेब धम्मो य। सक्षेवि व परिचत्ता सेहं णिप्फेडयंतेणं ॥७॥ तम्हा तु ण हायको वितियपदेणं हरेज व कयादि। होही जुगप्पहाणो ण य दोसा तत्व केति भवे ॥८॥ तो अतिसेसी दिक्से ओहीमादी अमूढहत्यो वा। चिरहत्थो व अमूढो दिक्खेजा सो तहिं चेव ॥९॥ केति पुण मंदधम्मा बितियपदणिसेवियं ववदिसंति। बढपादवोविव जहा मूलविणट्ठा णहविलम्गा ॥५४०॥ णिफेडियमिच्छंता रक्खियमालवणं ववदिसंति। मूलविणट्ठो व बडो जह चिट्ठति लम्गपावेसु ॥१॥ एवं तु मूलसुत्तं छड्डेतुं ते तु लग्ग साहामु । साकारण णि फेडी णिकारणओ य पडिकुट्ठो॥२॥ जे केह सेहदोसा वालादीता मए समक्खाता । ते चेव य सविसेसा गुधिणि तह पालवच्छासु ॥३॥ कह से तु संभवंती गम्मम्मी तम्मि चेव वाले या विद्वा तु पालदोसा होज कदादी णपुंसो वा ॥४॥ एवं अवसेसावी णवरं मोत्तूणिमे तहिं अणले। बुढं जहडसरीर तेणं रायावकारिं च ॥५॥ दासमणतं च तहा ओपवं भतग सेहणिफेडिं । अवसेस अणलदोसा भइयमा गुषिणीए उ ॥६॥ अहवावि गुहिणीए अग्ने दोसा इमे भवती हु । कायभवत्थो विवं चतिकिति बयणम्मि व मरेजा ॥७॥ हा १०७४ पाकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर M Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीवे तेणे रायावकारि दुढे य सेहणि फेडे । गुधिणीए य जहकम बोच्छं आरोवणं इणमो ॥८॥ मूलं चतुगुरु पारंचिया दुवे चउगुरूं तओ मूलं । अहवाऽवकारि मोत्तुं सेहं वा सेस मूलं तु ॥९॥ पारंची मूलं वा अवकारिएं सेहे होति चउगुरुगा । सेसेसु ठाणएसुं चउगुरुगा हु मुणेयचा ॥५५०॥ बाले बुड्ढे कीवे जो मत्ते अदंसणे चेव। करमादिजंगिए वा जदि पच्छा होज णिक्खंतो॥१॥ गच्छे संगहियाणं संवासो तेसि होति णिहिट्ठो। ण विर(उ)त्ताणं णियमा एगट्ठाणे य पाएण ॥२॥ होज्जाहि गुधिणीयवि जह पउमवतित्व खुड्डमाया वा । तं तू उवस्सयम्मी भावियसड्ढेसु वा गोवे ॥३॥ जिणपवयणपडिकुट्ठो जो पवावेति लोभदोसेणं । चरितट्टितो तवस्सी लोवेइ तमेव तु चरितं ॥४॥ पञ्चाविओ सियत्ती सेसं पणगं अणायरणजोग्गं। अदुवा समायरंते पुरिमपदऽणिवारिया दोसा ॥५॥ पञ्चावण मुंडावण सिक्खावणुवट्ठ मुंज संवसणा। पढमपदहीण सेसा पंच पदा तेहिं वज्जेन्ति ॥६॥ पवजा तु अभिहिया | सा पुण होजा कहं तु पञ्चज्जा? तंवत्तुमणाऽऽयरिओ गाहासुत्तं इमं आह ॥७॥ छंदा रोसा परिजुण्णा, सुविणणाणा पडिस्सुता । सारणिया रोगिणिया, अणाढिया देवसण्णत्ती ॥..३९ ॥ ल०१०॥८॥ (ब)च्छाणुवंधिया (१०) अजणियकण्णिया बहुजणस्स सम्मुदिया।अक्खाता संगारा वेयाकरणे सयंबुद्धा ।।..४०॥ ल०११॥९॥ पल्लि सुराऽभय देवी बड तेतलि मूग वासुदेवे य। उद्दायण मण (१०) केसी जंबुपभव मल्लि सोम जिणा॥४१॥ ल०१२॥५६०॥गामेगो चोर पडिया वत्थहिरण्णादि गेण्हितुं ते यासंपट्टिते य पल्लि रूववती महिलिया भणति ॥१॥ किं न हरह महिलाओ? चोरा चितंति इच्छिया महिला। णेतु पाडीवतिणो उवणीया तेण पडिवण्णा ॥२॥तीय धवो सयणेणं भणितो किं बंदिगंण मोएसि?। गंतृण चोरपडि थेरी ओलग्गए पयओ॥३॥ किं ओलग्गसि पुत्ता! चोरेहिं भारिया इहाणीया। विरहे तीएं कहेती इहागतो तुज्झ भत्तत्ति ॥४॥ कहिए तु चोरअविम्मि पउत्थे भणति : अज रत्तीए। पविसतु चोरहिचोकं पविढे (पच्छा)सेणावती आओ ॥५॥ हेट्ठा आसंदि पवेस चोरहिवं भणति धुत्ति इणमो तु । जदि एज मज्झ भत्ता तस्स तुमं किं करिज्जासि?॥६॥ चोराहिवाह सकारइत्त तुम देज तो करे भिउडिं। आह ततो चोरहिवो दारे थंभम्मि उल्लंबे ॥७॥ वदेहिं वेढेजा तुट्ठा सण्णेति हे? संदीए। णीणेतुं चोरहिवो खंभे बढेहिं वेढेड ॥८॥ सुणएण खइय बढे पासुत्ताणं च चोरअहिवस्स। सगअसिणा छेत्तूणं सीसं गहिइथिओ भण(चल)ति ॥९॥णीणीजंती सीसं चोरहिवस्सा तु सा गहेऊणं । गालंती ऊ रुहिरं अह गच्छति मरगतो तस्स ॥५७०॥ जाहे जातभासं ताहे सीसं तयं पमोत्तूर्ण। दसियाचीराइणि य साडिंति य जाति चिंधडा ॥१॥ जाहे य णिहिताई ताहे तणपुलियाओं बंधती। बच्चति अब. यक्खंती पुणो पुणो मग्गतो सा तु ॥२॥ गोसे य पभायम्मी सेणहिवं घाइयं ततो दटुं। लग्गा कुढेण चोरा पासंति य ताणि चिंधाणि ॥३॥ रुहिरदसिगादियाई अणिच्छिया णिजइत्ति मण्णंता । तुरियं धावे कुढिया ताणिविय पभायकालम्मि॥४॥ पंथस्स एगपासे ठियाणि कुढिएण जाव दिट्ठाई। तं खीलेहि वितड्ड्यि महिलं घेत्तूण ते य गता ॥५॥ते चोरा तं णे चोराहिवभाउगस्स उवणिति । सा तेणं पढिवण्णा चोराहिवपट्टधम्मि ॥६॥ इतरोवि खीलएहिं वितडिओ अच्छती तु अडवीए। जूहाहिवणिजूढो अह एति अणीहुतो तहियं ॥७॥ तो कवितो दठूणं कहि मण्णे एस विट्ठपुरोत्ति। चितेऊणं सुचिरं संभरिता णियगजाती तु ॥८अहमेतस्स तिगिच्छी आसि विसाडोसहीय तं मोए। सरोहिणीएँ तत्तो संरोहेत्ता वणे तस्स ॥९॥ लिहतिऽक्खरा अणिहुओ सोऽहं बेजो तवासि पुत्वभवे । संभारिय संभिण्णाणऽतो उ तो वाणरो कहते ॥५८०॥ जह जूहा णिच्छूढो साहिज मज्झ कुणसु वरमित्ता!। आमंति तेण भणितो जूहं गंतूण ते लम्गा ॥१॥ दोण्ह विसेसमणातुं ण किंचि कासीय सो हु साहिज। णट्ठो लुत्तविलुत्तो लिहति ततो अक्खरा पुरतो॥२॥ किं साहिजं ण कतं? पुरिसाह ण जाण दोण्हवि विसेसं । तो तुट्ठो वाणरतो वणमालं अप्पणो बिलए ॥३॥ लग्गे सेग पहारेण मारितुं चोरपल्लिमतिर्गतुं। रतिं मारिय चोराहिवं तु तं गिण्हितुं इत्थिं ॥४॥ सग्गामं आणेत्ता इस्थि उवणेति सयणवग्गस्स, वेरग्गसमाजुत्तो घिरत्थु इत्थीइ जो भोगो ॥५॥ मज्झत्थं अच्छतं सयणो जंपति तु झायसे किण्णु ?। किं वाऽसि कडुयकामो? भणती काहऽप्पणो छंदं ॥६॥ थेराणंतिय धम्मं सोतुं पत्रजमम्भुवेसी य। एसा छंदा भणिता अहुणा रोसा तु पवजा॥७॥ सीसारक्खो रण्णो धम्म सोऊण सापओ जातो। मा मारेही कंची उज्झित्तु असि धरे दारूं ॥८॥ तप्पडिणिरायकहिए पिच्छामि असिंति सावएणुतं । सम्मदिट्ठीदेवयसारक्खिजोत्ति तो कहूँ ॥९॥ दिवप्पभावमायसमयं तु दठूण कुद्धों तो राया। णिजंति पचणीए सड्ढो तेसिं तु रक्खहा ॥५९०॥ वेति णरिद अह सो मा एतेसिं तु रूसहा तुम्भे। जं जंपियमेतेहिं तं सर्व णखर! वहेब ॥१॥ ताहे छोदण पुणो णिकुट्ट असी तु णवरि दारुमओ। दिट्ठो णरवसभेणं विम्हइओ वेति किं एवं?॥२॥ जंपति सड्ढो ताहे णरवर ! देवप्पसाद इथेसो। पाबविवज्जी उ णरा हवंति देवाणऽवी पुजा ॥३॥ तो तुट्ठो भणति णियो सेवसु एमेव दारुअसिणा उ। कड़गादीहि य पूजितों पावितों सुमहंतमिस्सरियं ॥४॥ कालगयम्मि य सड्ढे पुत्तो णामेण चंडकण्होत्ति। पडिवण्णो तं भोगं सामंते पुणऽणमंतम्मि ॥५॥ पेसेति चंडकण्हं गंतूर्ण घेत्तु सजियमाणेति। तुडो य भणति राया किं देमि अहाह सो इणमो॥६॥ जं खजपेजभोजं गेण्हेज पुरिस्मि तं तु सुग्गहियं । इय होतुत्ति य १०७५पञ्चकल्पमाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ akkh स12 भणिए वारुणिपाणप्पमादेणं ॥७॥रति चिरस्स सगिह आगच्छति भजमातरो तस्स । दुहिया जग्गंतीओ उपिणद्दा अण्णदा रत्तिं ॥८॥ चिरकत दारं पिहए अह वदती आगतो तु | सो दारं। उग्घाडतो जणणिं वएंसु जत्थेरिसे वेले ॥९॥ उग्धाडिय दाराई तहियं वचत्नि मातु रुसितो तु। सो हुग्धाडियदारुत्ति गन्तु साहुणमलियओ ॥६०० ॥ पवावेह लवेई तेऽविय | मत्तोत्तिकातु वरखेवं । बिती गोसग्गम्मी पभाते पवावइस्सामो॥१॥ सयमेव कुणति लोयं ताहे लिंगं दलंति जतिणो तु। पवाविंती विहिणा एसा रोसा तु पयजा ॥२॥ दमगं भइयं कम्मं कुणमाणं दठु सावओ पुच्छे । केवतिभतीय कम्मं करेसि ? पाएण पञ्चाह ॥३॥ दाहामी पतिदिवसं तव पादं गंतु साहुणो बूहि। सावेण पेसिओ हं करेज जं आणवे साहू ॥४॥ साहू भणंति दमगं जो पत्रइउं करेति कम्मऽम्हं । तं कारवेमु ण गिहिं पवइओ दवओ ताहे ॥५॥ साहू भणंति दिवसं पढियव्वं जंच देमु उवएसं। एयं कम्म अम्हं सिक्खं दुविहंपि गाहिति ॥६॥ कतिवय दिवस गतेहिं अह सड्ढो भणति तं भतिं गेण्ह । उक्कोसगभत्तेणं सुहितो रत्तो लवे इणमो॥७॥ अच्छतु तुम्भं हत्थे जति ता मग्गे तदा दलेजाहि । कतिवय दिवसेहि ततो अभिगयधम्मो उवट्ठियओ ॥८॥ परिजुण्णेसा भणिता सुविणे देवीएं पुष्फचूलाए। नरगाण दसणेणं पत्रजाऽऽवस्सए वुत्ता ॥९॥ चतुरो तु गोणपाला सत्था हीणं जति तु अडवीए। पडिलाभिति पहट्ठा दोहिं दुगंछाइयं तहियं ॥६१०॥ दियलोगगता तत्तो चइतु दुगंछा दसपिण दासत्तं। तत्तो मिगा यहंसा सोवागा चित्तसंभूता ॥१॥ अदुगुंछी तित्थगर पुच्छति किं सुलभदुलभबोहीऽम्हे । तित्थंकराह विग्यं अम्मापितरो करेहिति ॥२॥ तो ओहिनाण पासितु माहणपुत्तत्त णगरमुसुगारे। सोमाणो अपुत्तो पुच्छति णेमित्तिए वहवे ॥३॥ ते काउ समणरूवं उसुगारपुरम्मि आगता कहए। बहुजण तीतादीणि तो पुच्छे माहणो ते उ॥४॥ होजऽम्ह किं वऽवचं पचाह चुया दिया तु होहिति। दो जमलदारगा तू कुमारगा पवइस्संति ॥५॥ मा तेसि करेजासी विग्यमवस्सं च तेसि पवजा । होही वोत्तूण गता चइउं उवबन्नया तेसिं(सु)॥६॥ बालत्तऽम्मापितरो भणंति समणाण सरिसरुवेणं। रक्खस माणसखागा भमंति दठण ते पत्ता जामा तेसि अल्लिएजह दरंदरेण परिहरिजाह। मा भक्खेजा ते मे तेसि वयर्ण पडिमणेति ॥८॥र तओ पलायंति। अह अन्नया नगर बहिं चेडे पासंति वंदते ॥९॥ विति य अम्मापितरो दिट्ठऽम्हे चेड बंदमाणा तु । णवि समणरूचि रखस भक्खिंति व चेडरूबाई ॥६२०॥ चिंतें. तऽम्मापितरो अतिवीसत्था इमे हु जायत्ति । मा पत्रएज इहति अल्लियमाणा तु समणाणं ॥१॥ सउवझाया एते वइयं णिजंतु तत्थऽहिजंतु। इय संचिंतेऊणं वइयं णीता ततो तेहि ॥२॥ वइयाएं समीवम्मी मणाभिरामो तु अस्थि वडरुक्खो। अह अण्णदा कदाई तेतु रमंता गता तहियं ॥३॥ सत्था हीणा य जती तिसियकिलंता तु आगता तहियं। एत्थ करेमो भिक्खं बडहेडा पट्टिता तत्तो॥४॥ तो ते भयाभिभूता चेड विलम्गा तमेव बडरुक्ख। जतिणोऽविय तस्स हेट्ठा ठातुं पविसंति भिक्खट्ठा ।।५।। णवरि पवत्तिति गुरु तहियं अज्झयण णलिणगुम्मंति। ता ते सरति जाति ओयरितुं वंदितुं विति॥६॥ अम्मापितरो पुच्छितु परज अग्भुवेमो सेसं तु। जह उसुगारज्झयणे वक्खातं सुत्तआलावे ॥७॥ एसा पडिस्सुता खल पञ्चजा सारणी तु णातेसु । चोदसमे अज्झयणे जह तेतलि पोहिला बोहे ॥८॥ पतिठाणे जुबराया राहायरियाण पासि णिक्खंतो। तगराएँ तस्स भगिणी दिण्णा जितसत्तुरायस्स ॥९॥ तगरगताण कदायी उजेणीओ य आगतो साहू। राहगुरुपुच्छऽणाबाह वेति वाहेति रायसुतो ॥६३०॥ पुत्तो पुरोहियस्स य दोऽयेते णिवघरम्मि चाहंति। तं सोतुं जुवणिवमुणी बेती मम नत्तुओ सो तु ॥१॥ सासेमि तं दुरप आपुच्छिय गुरु गतो उ उज्नेणिं । णिरुवसग्गंतु पुट्ठातं चैव कहिति से जतिणो ॥२॥भिक्खट्ट णिग्गयम्मि य भणितो अच्छाहि आणइ. स्सामो। भत्तट्ट अत्तलाभीति वेति दसेह णिवओकं॥३॥ दंसेतृण णियत्तो खुड्डो इयरो व गंतु णिवओकं । सरेण महंतेणं अह कुणती धम्मलाभं तु ॥४॥तो तेहिं सो तु दिट्ठो परितु. हेहिं च णेहिं सो गहिओ। भणितो त णचसुत्ती इय होतू तेण ते भणिता ॥५॥ गायह तुम्भे हि ततो ते तु पगीता पणचिओ साहू। ता ते उबदवित्ता साधुणा खित्तिया दोवि ॥६॥ पुणरवि ती गायमु तुमं तु अम्हे उ णचिमो इण्हि । इय होतुत्ति य भणिते पणचिता ताहे ते दोषि ॥७॥ पुणरविय बिद्दवेत्ता गोवालग! विहवेह किं एयं । भणिता ते साधूर्ण विति य किं सवसि तं अम्हे ? ॥८॥ देहि तु जुद्ध अम्हं लविता साहूण दोषिणबी समर्ग। आगच्छहत्ति सिग्धं तो ते आधाविता तुरितं ॥९॥ आधावेंता य तत्तो घेर्नु बाहासु दोबि साहूणं। तह बिहुताऽणेण दुतं जह संधि विसंचिता सवे ॥६४०॥ उत्ताणए महीए पाडेतुं णिग्गतो तु सो तत्तो । उजाणं गंतृणं झायति झाणं गुणसमग्गो ॥१॥ अह ते बटुं णिहते संभंतो परिजणो कहे रो। रायाविय संभंतो आगंतु णियच्छती ते तु ॥२॥ पुच्छे तेऽवीय जती विति य त्याम्ह पविसते कोई । णवरिको पाहुणओ आगतों ण य तं तु जाणामो॥३॥ ताहे उजाणादिसु रण्णा गविसाविओ य दिट्ठो य। गंतूण सयं राया चलणेसु णिवडिओ जतिणो ॥४॥ बेई य जं इमेहिं अवरदं तं खमाहिसी भंते !। जंपति साधू जदि णिक्खमंति मोक्खामि तो णवरं ॥५॥ सण्णाओ अवरहिं एस कुमारस्स माउलो सो उ। बहुसो निबंध कते पडिवण्णा जाहे ते दोवि॥६॥ ताहे गंतृण तहिं दोषिणवि घेत्तूण तेण वाहासु। तह णं खलंखलीकित जह संधी सिं पुणो लग्गा ॥७॥णिक्खामेतुं दोण्णिवि सूरिसगासं तु णीणिया तेणं । चिंतेइ रायतणओ साधु कतं मातुलेण ममं ॥८॥ मम हियमिच्छतेणं (२६९) 21 १०७६ सासूकं काला- पाध्य मुनि दीपरत्नसागर | PRIYA4% Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 रुद्रमाणे पीहकोब्व बालस्स। तह मज्झे सेयन्ती अतियारविवज्जितो विहरे ॥ ९ ॥ इतरो जातिमदेणं अविणयमादीणि अधिगडेत्ताणं। दुल्लभबोहीयत्तं बंधित्तु गतो तु दियलोयं ॥ ६५० ॥ कोसंबीइ य इणमो सेडी णामेण तावसो णामं मरिऊण सूयरोरग जातो पुत्तरस पुत्तो तु ॥ १ ॥ जातो जाति सरंतो विचिंतती किष्णु सुष्ह अम्मत्ति । पुत्तोऽविय बप्पोती भणामि मूयत्तण वरं मे ॥ २ ॥ मरुदेवो तिरथकरं पुच्छति किह सुलभदुलभबोहीऽहं ? भणितो दुल्लभबोही जं सी गुरुपरिभवकएणं ॥ ३ ॥ कह बुज्झेजामित्ति य? भणितो कोसंविमूगमातूए । उववज्जिहिसी तहियं मूगा अम्भुत्थितो बोहो ॥ ४ ॥ ताहे आगंतूणं साहू समायत्ति (गामंति) भणति सो देवो अहंगं चइऊण इतो तुझं मातूएं उदरम्मि ॥ ५ ॥ उववजीहं अइरा होहिति अंबेहि डोलोइकाले अविणिजते तम्मि य किच्छप्पाणा य होहिति तु ॥ ६ ॥ अहंगं गिरिणीतंबे सहोतुय अंबर्ग करेहामि अंबालंभे वज्जसि दे अंबे देह जदि गमं ॥ ७ ॥ अभुवगते ससक्ने अंबे देजासि बालभावे य साहूणं चलणेसुं पाडेजाही अणिच्छंपि ॥८॥ किं बहुणा ? तह कुज्जा जहऽहं साहुत्तणे दढो होमि संबोहिकारओ खलु लभति अजत्तेण बोहिं तु ॥ ९ ॥ मृगेण अम्भुवगति देवो णमिऊण सालयं पत्तो चइऊण य उववनो कुच्छीए मूगमाऊए ॥ ६६० ॥ अंबगडोहल जाते अविणिजंतम्मि देहहाणीए अद्दण्णपरिजणाणं मूगो लिक्खराणिणमो ॥ १ ॥ जदि देह मेय गन्भं मज्झ तो अंबगाणि आणेमि देमित्ति अन्वगते ससक्खमाणेति अंबाई ॥ २ ॥ तो पुष्णडोहलाए जातो दिण्णो य ताहे से तस्स । उत्ताणसायगं तं जतिणो पादे पाडेति ॥ ३ ॥ अतिविस्तरं परोच्छी जाहेविय पाडिओ उ पादेसु सुहचलणेसु जतीणं मृगेणुत्तो तु च्छीया ॥ ४ ॥ घेत्तुं गीवाऍ तओ मृगेणं पाडिओ वे बहुसो परितंतु ततो मूओ निक्खतो गतो य दियलोयं ॥ ५॥ ओहीए दठूणं सुविणादिसु बोहिओ जति ण बुज्झे। ताहे करेति रोगी देवोऽवि य वेजरूवेणं ॥ ६ ॥ जदि वहति सत्यको भ्रमति मए यावि जदि समं एसो तो णीरोगु करेमी पडिवण्णो कतो य णीरोगो ॥ ७॥ घेत्तृण तं पयाओ गुरुगं से सत्यकोसगं दावे । तं वज्जभारगुरुगं बेती ण तरामि बोजे ॥ ८ ॥ दंसेति साधुरूवं वेति जदि णिक्खमाहितो तेहिं मुंचामि विमुंचेमि य रोगा पडिवण्ण तो मुको ॥ ९ ॥ णिक्खते तो तम्मी देवोवि ततो तु सालयं पत्तो। कालेणुप्पनइतुं सघरं संपड़ितो अह सो ॥ ६७० ॥ देवेण पलायंतो दिट्ठो विगुरुविऊण तो अडविं। काउं मणुस्सरूवं अह अडविं पट्टितो तत्तो ॥ १॥ लवति ततो दुब्बोही किं इच्छसि अप्पगं विणासेतुं ? | जं जासि अडवितो देवोवि ततो णु पञ्चाह ॥ २ ॥ तं पुण विजाणमाणो णरगादीदुक्खसंकिलेसं तु। किं णिग्यांतुं तत्तो पुणरवि दुक्खाडविमतीसि ? ॥ ३ ॥ अगणितो तं वयणं सघरं अह आगतो ततो सो तु। रोगाणं साहरणं भूओ विजागमो दिक्खा ॥ ४ ॥ कालेण केणइ पुणो लिंग मोत्तृण पट्टितो सगिहं देवेण पुणो दिट्ठो गामपलित्तऽंतरा कुणति ॥ ५ ॥ पुणरवि मणुस्सरूवी तणभारेण तु विसति तं गामं द लवे पुराणो किं इच्छसि अप्पणो णासं? ॥ ६ ॥ जं तणभारेण तुमं विससि पलितं ततो लवे देवो एवं तुमं जाणतो जरमरणपलित्त संसारं ॥ ७ ॥ पविसंतिच्छसि णासं मुंचसि जं दुक्खलदियं दिक्खं । अगणितो वञ्चति परं गतस्स रोगं पुणो कुणति ॥ ८ ॥ पुणरवि तहेव दिक्खा उप्पनइए य सघरहुत्तम्मि संपट्टिएँ अडबीए तस्स पहे वंतर'पडिमं ॥ ९ ॥ कातुं अञ्चण देवो अचितमहितो तु पडति हेट्ठमुहो। पुणरवि समुहवेतुं हवियश्चिओ सो पुणो पडितो ॥ ६८० ॥ एवं पुणो पुणोवि य अच्चियमहितोवि बहुसो पड़े जाहे लवति ततो दुब्बोही किं वरठाणे ण ठाएसो १ ॥ १ ॥ देवाह जहासि तुमं वरठाणेवि ठविओऽवि ण रमेसि। पवज्जं मोत्तु णरगादहठाणं पुणवि अभिलससि ॥२॥ लवति पुराणो को तुम? देवो दंसेति मूगरूवं से। देवतं पुत्रभवं संगारं चावि संभारे ॥ ३ ॥ तो संभरितुं जातिं संवेगमुवागतो भणति देवं । इच्छामो अणुसद्धिं जातो थिरो संजमे ताहे ॥ ४ ॥ रोगिणिय एस दिक्खा अणाढिया रामकण्हपुत्रभवो उद्दायणसंबोही पभावती देवसण्णत्ती ॥ ५ ॥ वच्छऽणुबंधी मणको कण्णाएँ अजणिओ तु केणइवि। पुत्तो जायति जो तू सो होती अजणकण्णी उ ॥६॥ णिवतिसुतातिं दोन्निविणिक्खताई तु भातुभंडाई। अण्णद रायमुतो तू णिसाऍ लोयऽप्पणी कुणति ॥ ७ ॥ छडेहामि पभाते चलणाहो काल पडियरं तीए । पोग्गल बेदागमणं अह णिवयति तेसु वालेसु ॥ ८ ॥ वीसरिया ते तस्स य सिरोरुहा तम्मि चेव ठाणम्मि। तत्थ य पवित्तिणी उ अहागता गाम गंतुमणा ॥ ९ ॥ अह तीऍ रायदुहिया तं वंदितु सा पदेसे अह तंसि उबविट्ट णवरि तीए य मोउगं सहसमोगाढं ।। ६९० ।। लजाए सह घेत्तुं तेसिं जे सुकपुग्गलाइण्णे । गुज्झम्मि सन्निवेसिय अह सुकं जोणिमोगाढं ॥ १ ॥ तो गन्भो आहूतो अह पोहं बदिउं पयत्तं च मुणिया य सुविहिचाहिं पुट्ठा बेती तु गवि जाणे ॥ २ ॥ अतिसयणाणी थेरा य पुच्छिता तेहिं सिद्ध जहवते। होही जुगप्पहाणो रक्त्रह णं अप्पमादेणं ॥ ३ ॥ जम्मं सड्ढकुलेस स वढितो गोण्णणाम कत केसी एसा तु अजणकण्णी पवजा होति णायथा ॥ ४ ॥ बहुजणसंमुतियाए णिक्खमणं होति जंबुणामस्स । अक्खायाए जंबू धम्मं अक्खादि पभवस्स ॥ ५ ॥ संगार महिणाते सत्त णिवा कासि जह तु संगारं। वैयाकरणे सोमिल पुच्छा जह वाकरे भगवं ॥ ६ ॥ सयबुद्धा तित्थगरा सोलसहा एस होति पवजा पुच्छापरिसुद्धम्मि तु अग्भुवगते होति पवजा ॥७॥ गोयरमचित्तभोयणसज्झायमण्हाणभूमिसिजाती। अम्भुवगयम्मि दिक्खा दवादीसुं पसत्थेसु ॥ ८॥ लम्गादिसु १०७७पकल्पभाप्यं मुनि दीपरत्नसागर Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तूरंते अणुकूले दिजते अहाजातं । सयमेव तु थिरहत्थो गुरू जहणणेण तिन्हऽट्टा || ९ || अन्नो वा थिरहत्थो सामाइग तिगुण अट्टगहणं च । तिगुणं पादक्खिण्णं णित्थारग गुरुगुणे बुद्धी ।। ७०० ॥ फासूय आहारो से अणहिंडतं च गाहए सिक्खं । ताहे य उबवणं छज्जीवणियं उ पत्तस्स ॥ १ ॥ अप्पत्ते अकत्ता अणभिगयऽपरिच्छऽतिकमे पासे एकेके चउगुरुमा विसेसिया आदिमा चउरो ॥४२॥ २॥ अप्पत्तं तु सुतेणं परियाग उबद्ववित्तु चउगुरुगा आणादिणो य दोसा विराणा उन्ह कायाणं ॥ ३ ॥ सुत्तत्थं अकहेता जीवाजीचे य बंधमोक्खं च। उवठवणे चउगुरुगा विराणा जा भणिय पुत्रं ॥ ४ ॥ अणहिगतपुण्णपार्श्व उवद्वविंतस्स चउगुरू होंति । आणादिणो य दोसा मालाए होति दितो ॥ ५ ॥ ससरक्खदगगणीपतिद्विते हरितबीजमादीसु। होति परिक्खा गोयर किं परिहरती ण वाविति ॥ ४३ ॥ ६ ॥ उच्चारादि अथंडिल वोसिर ठाणादि वावि पुढवीए। णदिमादिदगसमीवे खारादीदाह अगणिम्मि ॥ ७ ॥ विजणऽभिधारण वाते हरिए जह पुढवीते तसेसुं च एमादि परिक्खित्ता वतदाणमिमेण विहिणा सो ॥ ८ ॥ दवादि पसत्थे बता एकेके तिगुण गोवरिं हेडा | दुविहा तिविहाय दिसा आयंबिल निविगतिगो वा ॥ ९ ॥ पितपुत्ताणं जुयला दोणि तु णिक्खंत तत्थ एगस्स पत्तो पिता ण पुत्तो एगस्स उ पुत्तों ण तु थेरो ॥ ७१० ॥ ताहे तु पण्णविजति दंडियणायं तु कातु भण्णइ तु । मा गेव्ह असग्गाहं रातिणिओ होति एसवि ता ॥ १ ॥ एवं सो पण्णवितो जदि इच्छे तो उबट्टवेती तु । च्छते पंचाहं ठंती दो तिष्णि वा गणगा ॥ २ ॥ वत्सभावासज्ज व जाऽधीतं ताव तं पडिच्छंति एवं रायअमचे संजतिमज्झे महादेवी ॥ ३ ॥ राया रायाणो वा दोष्णिवि सम पत्त दो पासेसु। ईसरसेडिअमचे नियमघ डाकुल दुवे खुड्डे ॥ ४ ॥ समयं तु अणेगेसुं पत्तेसुं अणभिओगमावलिया। एगतो दुहतो ठविता समराइणिता जहाऽऽसण्णं ॥ ५ ॥ ईसिं अणोयइत्ता वामे पासम्मि होति आवलिया । अहिसरणम्मिय वड्डी ओसरणे सो व अण्णो वा ॥ ६ ॥ उवठावियस्स एवं संभुंजणता तहेव संवासो वितियपदं संबंधी ओमादिसु मा हु बहिभावं ॥ ७॥ भुंजीसु मए सद्धि इयाणि च्छंतिमा तु बहिभाव अहिखायंति व ओमे पच्छने जेण भुंजंति ॥ ८ ॥ एमादिणा तु भावं ताहे अप्पत्तं अहवऽपत्तं वा उवठावेतुं भुंजति अपरिणते चित्तरखडा ॥ ९॥ उवठाविय संभुत्ते संवासो एत्थ होति कायवो वितियपऍ संवसेज्जा अणुवद्वविर्यपिमेहिं तु ॥ ७२० ॥ अण्णत्थ णत्थि ठाओ अहवा होजाहि सोऽवि एगामी ण य कप्पति एगस्सा संवासो तेण संवासो ॥ १॥ सञ्चित्तदवियकप्पो एमेसो वनिओ महत्थो तु। अञ्चित्तदवियकप्पं एतो वोच्छं समासेणं ||२|| आहारे उबहिम्मि य उवस्साए तह य परसवणए य सेज णिसेजद्वाणे दंडे चम्मे चिलिमिणीय (१०) ॥ ४४ ॥ ल० २२ ॥ ३ ॥ अवलेहणिया दंताण घोषणे कण्हसोहणे चैव पिप्पलग सूति णक्खाण छेदणे चेव सोलसमे ॥ ४५ ॥ ल० २३ ॥ ४ ॥ आहारो खलु दुविहो लोइय लोउत्तरो य णायत्रो तिविहो य लोइओ खलु तत्थ इमो होइ गायवो ॥ ५ ॥ मायणे भोयणे चेच, भुंजियचे तहेव य भायणे तु इमं थेरा, गाहासुत्तमुदाहरे ॥ ६ ॥ सुवण्णरजते भोजं, मणिसेले विलेवणं (अविदाही) घतमायास पयं तंबे, पाणसुहं च मिम्मते ॥ ७॥ सूबोदणं जवण्णं तिनि य मंसाणि गोरसो जूसो भक्खा गुललावणिया मूल फलं हरियगं डागो ॥ ४६ ॥ ८॥ होइ रसालो य तहा पाणं पाणीय पाणगं चैव सागं चऽद्वारसहा णिरुवहतो लोगपिंडो सो ॥ ४७ ॥ ९ ॥ सूत्रगहणेण गहिता वंजणभेदा उ जत्तिया लोए। ओदणगहणेणं पुण सत्तविहो ओदणो होति ॥ ७३० ॥ जातु जवण्णं भण्णति तिनि तु मंसाणि जलयरादीणं गोरसों खीरादी उ मुग्गपडोलादि जूसो तु ॥ १ ॥ भक्खविहि उठसुक्खा गुलकत तह लावणीत बोद्धवा मूलग अलगमादी मूलं अंबादिग फलं तु ॥ २ ॥ हरितंग मूलकुडेरग भूषणगादी य होति णायको डागो य गोरसकओ पजेवणादी बहुविहाणो ॥ ३ ॥ दो घतपला महु पलं दहिस्स अद्धाढगं मरिय वीसा खंड तुलादसभागो एस रसालू णिवतिजोग्गो ॥ ४ ॥ खंड तुलादसभागो दस खंडपला हवंति णायचा ते तम्मि पक्खिवित्ता मज्जियणामं रसालोति ॥ ५ ॥ पाणं मज्जविही उ पाणीयं धारपाणियादीयं । दक्खादिपाणगाई सागेणं वंजणा जे तु ॥ ६ ॥ एवं अट्ठारसहा णिरुवहतो दढगादिपरिहीणो ण य उवहम्मति जेणं रसादि छूढेण दणं ॥ ७ ॥ परिमुक्खं दाहिणतो दवाणि साणि वामतो कुजा णिद्धमहुराणि पुत्रं मज्झे अंचं दवंताणि ॥ ४८॥८॥ परिसुक्खं सालणगादि तं गिव्ह सुहं तु दाहिणकरेण । वामेण पाणगादी तेण तयं वामपासम्मि ॥ ९ ॥ अप्पाइजति देहं पुत्रं तू णिदमहुरददेहिं पेतादीहिं नियमा केवइयं तं तु भोतनं ॥ ७४० ॥ अद्धमसणस्स सर्वजणस्स कुजा दवस्स दो भाए । वातपवियारणट्टा छम्भागं ऊणयं कुजा ॥ १ ॥ तं पुण एयपमाणं आदी मज्झे तहेब अवसाणे केरिसयं भोत्तरं ? तस्स इमं गाहमाहंसु ॥ २ ॥ असतामिव संजोगं पण्णा भोयणविहिं उवदिसंति। लक्खं दवावसाणं मज्झ विचित्तं महुरमादी ॥ ४९ ॥ ३ ॥ असता असजणा दुजणा य एमट्ठिताणि एयाणि । तेहिं समं जा मेत्ती संजोगेसो तु णायची ॥ ल० १३ ॥४॥ गुलमडुरा उडाया तेसिं पुषं कर्रिति य पियाइ। मज्झे य हाँति मज्झा महुरा विगतिं च दाएंति ॥ ल० १४ ॥ ५ ॥ कुषंति य भासति य अवसाणे तारिसाणिं जेहिं तु । जिज्झति सवं सुकतं एवं किर भोयणं भुंजे ॥ ल० १५ ॥ ६ ॥ आदीऍ दिमडुरं मज्झ विचित्तं दवलक्ख अवसाणे। तेणं विपागमेती दुजण सीव अवसाने ॥ ल० १६ ॥ ७ ॥ कुसला - १०७८ पञ्चकल्पभायं 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREMRA | भिहिएणं पुण तं भोत्तव्य इमेण विहिणा तु। असुरसुरं अचवचवं अद्भुतमविलंबियं चेव ॥८॥ अयमण्णोऽवि विही खलु भोयणजायम्मि होति णायब्बो । जारिसयं ण भोत्तव्य दोसा जे याचि भुत्तस्स ॥९॥ अचुण्हं हणइ रस अतिअंबं इंदियाई उवहणति। अतिलोणियं च चक्ष अतिनिदं भंजते गहणिं ॥७५०॥ आहारियम्मि एवं णीहारेणं अवस्स भवियव्वं । तत्व ण धारे वेग दोसा य इमे धरिज्जते ॥१॥ मुत्तणिरोहे चक्खं वचणिरोहे य जीवियं हणति । उड्ढणिरोहे कोढं सुक्कणिरोहे भवे अपुमं ॥..५०॥२॥ तेइच्छियधूताए आहरणं तत्थ होइ कायव्यं । तेइच्छि मते राया पुच्छति पत्तऽपि णस्थित्ति? ॥३॥णस्थिति अस्थि धया राया बेती अहिजऊ सत्यं। पिउसंतिओ य भोगो तह चेवय तीयऽणुण्णातो॥४॥ मच्छ. रिता विजऽण्णे बेंती किं एस णाहिति बराई। भिससत्वं? अहवा से परिच्छिउँ दिज अह भोगे ॥५॥ सदावतुं पुट्ठा किमधीतं तेत्ति ? तेसि सा पुरतो। तो णाए वातकम्मं सहेण कतं हसे विजा॥६॥ तो भणति णिवं सा तू एते वेजा ण चेव तु णरिंदा!। ण य जाणंती सत्थं कहंति? बेती इमं सुणसु ॥ ७॥ तिष्णि साहा महाराय!, अस्सि देहे पइट्ठिता। वाउमुत्तपु. रीसाणं, पत्तवेगं ण धारए॥८॥णिम्मुहिकता तु वेजा तीए साऽविय पतिद्विता तहियं। तम्हान धारऍ वेग वायातीणं तु सोसि ॥९॥ एवं भुत्ते समाणे जति वातादी पकोव गच्छे - जा। जाणेज तेसि वेलं पथसादी इमं तहियं ॥७६०॥ सिंभो वट्टति पचसे, पदोसे पित्तमड्ढरत्तम्मि। मझतिए य वाओ, वड्ढति पुत्रावरण्हे य॥१॥ तत्थ ण वेजो पुच्छिजती तु तेसि तु वेल स चेव। कुवियाण अवेलाए पेच्छे(पत्थे)किरिया इमा तेसि ॥२॥ तित्तकडुएहिं सिंभंजिणाहि पित्तं कसायमहुरेहि। णिचुण्हेहि य वार्य सेसा वाही अणसणाते ॥३॥ केरिसए | कालम्मी आहारो केरिसो तु पुरिसेणं । आहारेयत्रो खलु ? तत्थ इमो वण्णितो सो य ॥४॥ सीते उण्हं पविसेजा, उण्हे सीयं पवेसए, दर्य। णिदे लुक्वं पविसेजा, लुक्से निद्धं पवेसए ॥५॥जो वाही णिदेणं समुट्टितो तस्स लक्खकिरियाए।लुक्खेण मुट्टियस्स तु कायदा णिद्धकिरिया तु॥६॥ एसो तु लोइओ खलु पिंडो तू वण्णिओ समासेणं। लोउत्तरिए पिंडे वणिजति पिंडणिजुत्ती ॥७॥ पिंडे उम्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य। इंगाल धूम कारण अट्टविहा पिंडणिजुत्ती॥.:.५१॥८॥ पुढवाईया भेदा बत्तब जहक्कमेण पिंडस्स। गविसणमादीयाविय एसणभेदा य तह चेव ॥९॥ उम्गममादी दोसा सबे य जहकमेण बत्तवा। जह भणिय पिंडजुत्तीय णवरि इमो पृतिएँ विसेसो॥७७०॥ संचय कोट्ठग दारुय डाए तह गोरसे य लोणे या लंबण णेहे हिंगू दालिम तह वित्तए चेव ॥..५२॥१॥ अगडारामे पुत्ते तुंचे फलही तहेव गाओ या एतारिसमुप्पण्णे गहणं किं कस्स केरिसयं? ॥..५३॥२॥ भत्तस्स उवक्खेवो गोरसमादी तु संचतो होति। सो संघट्ठा ठवितो भावे अवोच्छिणि अग्गिज्झो (अविगिट्ठो)॥३॥ अत्तट्टिय परिभुत्ते कप्पति भावम्मि ताहे वोच्छिण्णे। कह बोच्छिजति भावो ? सोतूण अफासुदोसं तु ॥४॥ कोट्ठग तंदुल तिछडा समणट्ठा सिं कडा ण कप्पंति । अह दुछड संजयट्ठा आयट्ठोवक्खडा कप्पे ॥५॥ आयट्ठाए दुछडा संजयअट्टाए तिछड ण कप्पे। जदिविय आयट्ठाए आरंभो होति तेर्सि तु ॥६॥ एमेव दारुसागाइयाइं जाई अफासुदवाई। अत्तट्ठणिहिताई कप्पे समणट्ठ णवि कप्पे ॥७॥ मोरसहिंगूतेडादि दा. लिमे तित्तकदुयदवाई। लंबण गुलो य भण्णति संचियमेवादि संघट्ठा ॥८॥ फासुगदवा जे तू अबोच्छिण्णम्मि भावेण तु कप्पे। उवखडिया वत्तट्ठा वोच्छिपणे भावें कप्पंति ॥९॥ कोई पाणफलाई चदाहति ॥ल०१७॥७८०॥ तत्थवि संजयजोग्गा संजयअट्ठा कया ण कप्पंति। अत्तवाएं कता । पुण कप्पती तंदुला जह तुल०१८॥१॥ पुतं जणेज कोई आयरिओ मा अपरिवारोत्ति। तेसि सहातो होहिति पवावेतुं तु सो कप्पे ॥ ल०१९॥२॥भायणअट्ठा तुंविओं वावे फलही य वत्थमातट्ठा। संजयठाए जा सुत्त अत्तवियम्मि पण कप्पे ॥ल०२०॥३॥ रूतो संजयठाते आतट्ठा सुत्तमादिकण कप्पे। जम्हा गहणअजोग्गो तु संजतहाए कारिततो ॥४॥ संजतअट्ठा वियितो आतटोवहितो य कत्तो य। कप्पति जम्हा य कतो संजतजोग्गो तु आतट्ठा ॥५॥ एवं गावीओवी कोइ किणिजाहि संजयवाए। आतट्ठ दूढ कप्पेसमणट्ठा दूढ णो कप्पे ॥६॥ एसो पूतिविसेसो भणितो पुर्व तु पिंडजुत्तीए। एत्तो उवहीकप्पं वोच्छामि गुरुवएसेणं ॥७॥ दुविहो य होति उवही पत्ते वत्थे व ओहुबम्गहिए। जिणथेरऽज्जाण तहा वोच्छामि A अहाणुपुत्रीए ॥८॥ पाए उम्गमउप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य। इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पातणिजुत्ती ॥९॥ जहसंभव णेयवा पिंडगमेणं तु पातणिजुत्ती । सवं तु उग्गमादी। जहा जहा जे तु जुजति ॥७९०॥ पातपमाणं तु इमं पमाणदारम्मि होति वत्तवं । मज्झजहण्णुकोसं बोच्छामि अहाणुपुश्चीए ॥१॥ तिण्णि विहत्थी चउरंगुलं च माणस्स मज्झिम पमाणं । एत्तो हीण जहन्नं अतिरेगतरं तु उक्कोसं ॥२॥ उक्कोसतिसामासे दुगाउअदाणमागतो साहू । मुंजति एगट्ठाणे एवं किर मत्तगपमाणं ॥३॥ एवं चैव पमाणं अतिरेगतरं अणुगह पवत्तं । कतारे दुभिक्खे रोहगमादीसु भइयव्यं ॥ ४॥ वह समचउरस होति विरं यावरं च वणं च। हुंडं वाताइदं भिण्णं च अधारणिजाई ॥५॥ संठियम्मि भवे लाभो, पतिवा सुपतिहिए। णिव्यणे कित्तिमारोग्गं, सव्वणे वणमादिसे ॥६॥ वत्थे उग्गमउपायणेसणा जोयणा पमाणे या इंगाल धूम कारण अडविहा पत्थणिजुत्ती ॥७॥ एत्वविय जहासंभव १०७९ पञ्जकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1१८ घोसेयवाई सबदाराई। पडलादिपमाणाणी पमाणदारे समोतारो॥८॥ गिम्हसिसिरवासासु पडला उक्कोसमज्झिमजहन्ना। वणेऊणं कमसो पच्छादा पुरिसे योच्छामि ॥९॥ एमेव य पच्छादा पुरिसं खेत्तं च कालमासज्ज। तिण्णादी जा सत्त तु परिजुण्णा पाउणेजाहि ॥८००॥ पुरिसा असहू कालो सिसिरो खेत्तं च उत्तरपहादी। गिम्हेऽवि पाउणेज्जा तारिसयं देस. मासज ॥१॥ एवं नु उग्गमादिसु सुद्धो सम्बोबि एस उवही उ। धारेयचो णियतं अहाकडो चेव जहविहिणा ॥२॥ असतीते पुण जुत्तो जोगो ओहोवही उबग्गहितो। छेदणभेदणकरणे जा जहिं आरोवणा भणिता ॥३॥ तिविह असतित्ति जा सा दवे काले य होति पुरिसे य। दवम्मि णस्थि पातं ओमोदरिया य कालम्मि ॥४॥ पुरिसो य उम्गमंतो ण विजती एस पुरिसअसती तु। अहवा अणलं अधिरं अधुर्व सन्तासती तिविहा ॥ ५॥ अहवा तिगत्ति असती अहाकडाणं तु अप्पपरिकम्मं । तस्सऽसति सपरिकम्मं तं तु विहीए इमाए तु ॥..५४ ॥६॥ चत्तारि अहागडए दो मासा होंति अप्पपरिकम्मे। तेण पर विमग्गेजा दियड्ढमासं सपरिकम्मं ॥ ७॥ पुणसदो तिक्खुत्तो विमग्गियत्वं तु होति एकेकं । एवं तु जुत्तजोगी अलभंते गिण्हती ततियं ॥८॥ अहवा असिवोमेहिं रायबुट्टे व से गुरूणं बा। सेहे चरित्तसावयभए य तहियपि गिण्हेज्जा ॥.:.५५॥९॥ असिवादी पुब्व भणिता गुरु व मग्गे गुरु भ. णिजाहि । अच्छाहि ताव अजो! तत्थ तु ते कारण विदंति ॥८१०॥ एतेहिं कारणेहिं अहगढवजेण दोण्ह गहिताणं । छेदणमादी कुवं जयणाए ताहे सुद्धा तु ॥१॥णिक्कारणगहणे पुण विराहणा होति संजमायाए। छेदणमादीएK जा जहिं आरोवणा भणिता ॥२॥ तं पुण सपरीकम्मं जयणाए होति लिंपियवं तु। एतेण तु लेसेणं लेवग्गणं तु वण्णेऽहं ॥३॥ हरिते बीजे चले जुत्ते, वच्छे साणे जलट्ठिते। पुढवी संपाइमा सामा, महबाए महिया इमे ॥४॥ एवं लेवग्गहणं जहक्कम वण्णितं समासेणं। ओहोवहुवम्महितं उल्लिंगेऽहं समासेणं ॥५॥ जिणकप्पथेरकप्पअजाणं चेच ओहुवग्गहितं । वोच्छामि समासेणं जपणगं मज्झिमुक्कोर्स ॥ ६॥ पत्तं पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया । पडलाई स्यत्ताणं च गोच्छओ पायणिजोगो ॥७॥ तिण्णेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपोती। एसो दुवालसबिहो उवही जिणकप्पियाणं तु ॥८॥ उक्कोसिओ उ चउहा मज्झिमग जहण्णगोऽवि चउहा उ। पच्छादतिगं उग्गहों जिणाण अह होति उक्कोसो ॥९॥ पडलाणि रयत्ताणं रयहरणं पत्तबंध मज्झिमगो। गोच्छग पत्तट्ठवणं मुहणंतग केसरि जहण्णो ॥८२०॥ जिणकप्पियाण एसो सेसाण विणिग्गयाण एसेव। येराणं अतिरेगो मत्तो तह चोलपट्टो य॥१॥ उक्कोस जहन्नो तू जोचिय जिणकप्पियाण सो चेव । मझिमए अतिरेग मत्तो तह चोलपट्टोय ॥२॥ एसेव Mचोरसविहो चोलद्राणम्मि णवरि कमदत्। अजाण इमो अण्णो ओहोचहि होति णायबो॥३॥ उग्गहऽणतग पट्टो अद्धोरुग चलणिया य बोद्भवा। अभितर वा कंचए चेव ॥४॥ उकच्छिय वेकच्छिय संघाडी चेव खंधकरणी य। ओहोवहिम्मि एत्तो अजाणं पण्णवीसं तु ॥५॥ उक्कोसो अट्टविहो मज्झिमतो होति तेरसविहो तु। चउह जहण्णो सोचिय जो जिणकप्पे समक्खाओ॥६॥ पच्छादतियं उम्गहों मिलणऽभंवरी य बाहिरिया। संघाडि खंधकरणीय अट्टहा होति उक्कोसो ॥ पत्ताबंधो पडला रयहरणं पादपुंछणं सचेव। मत्ते य कमढ उग्गह णते तह पट्टए चेव ॥८॥ अद्धोरुए चलणिया कंचुग उवकच्छि तह विकच्छी य। एसो तु तेरसविहो मज्झिम उवही तु अजाणं ॥९॥ एसोतु ओहिओवहि एनो सेसो तु होतुवग्गहिओ। संथारपट्टमादी तु गहा होति णायचो ॥ ८३०॥ दुविहोवहींवि एसो जहक्कम वणितो समासेणं । एतो उ उवेसणयं योच्छामि अहाणुपवीए॥१॥ भिसिगादि उवेसणयं वासारत्ते उ पाणदयहेतुं। वेहासदा धिप्पइ तं चिय सावेगपस्सवणं ॥२॥ विस्समणट्ठा येराण घेप्पती एत्तों वोच्छ सेज्जं तु । सेजा संधारो या एगई होति णायचं ॥३॥ सबंगिया व सिज्जा होति असम्बंगितो तु संथारो। एगंगि अणेगंगी परिसाडी अपरिसाडी य॥ल०२१॥ ४॥ एतेसिं सबेसि अट्ठहिं दारेहिं मग्गणा होति। पिंडणिजुतिगमेणं टणेयं जहसंभवं सत्रं ॥५॥ णिसियणहेतु णिसेज्जा स्यहरणपमाणओ गहेयवा। किं पुण धिप्पइ सा त भण्णति सुण कारणमिमेहिं ॥६॥ पुरिसे पुढयि सरक्खे पच्छाकमे तहेव अचियत्ते। बाउसपरिहरणाए संथारणिसेजऽणुण्णाता ॥..५६॥७॥ राजादी पञ्चहओ भूमीएँ अणंतरं णिवेसंतो। विप्परिणमेज तेणं संथारणिसेज पण्णत्ता ॥८॥ मीससचित्तधराए अद्धाणादीस मा विराहणता। उम्हाए पुढवीए तेण णिसेजा य संधारो ॥९॥ एमेव य ससरक्खे सचित्ते संतरं भवे जयणा। सागारियं च इहरा धूलीउग्गुंडियसरीरो ॥८४०॥ कोण गिहिणिसे. जागतस्स बाथम्मि मइलिए गिहिणो। उप्फुसणधोवणादी कारेज्जा पच्छकम्मं तु ॥शा अचिततं वा सि भवे धूलीउग्गंडि पुते (र) णिविट्ठम्मि। अहवा बाउसदोसा पफोडिंते धुर्वते वा ॥२॥ ठाणं तिविहं भणितं उड्ढ णिसीयण तुयहठाणं च । उड्ट काउस्सम्गो णिसीयण णिवेठ्ठठाणं च ॥३॥ होति तुयह णिवण्णं पडिलेहपमजियाण काय। सेजणिसेजाणं वा ठाणं अहवावि ठाणं तु ॥४॥ लट्ठी आतपमाणा विलट्ठि चउरंगुलेण परिहीणा। दंडतों बाहुपमाणो विदंडओ कच्छगपमाणो ॥५॥ दुट्टपसुसाणसावदविजलविसमेसु उदयमग्गेसु । लट्ठी सरीररक्खातवसंजमसाहिगा भणिता ॥६॥चम्मे पण्हियखडगवद्धादी होज चम्मगहणं तु । अस्थुरणपादरक्खा फुड़िए तह संघणट्ठादी॥ ७॥ अरिसभगंदलकच्छू छप्पति गिट्टाति अत्धुरणगं तु । दुब्बलपाए चक्खू अद्धाणादीसु तलिया तु ॥ ८॥ फुडियविविञ्चणहंगुलिरक्खट्ठा खल्लकोसगा होति । वज्झा ऊ संधणट्ठा अदाणादीसु छिण्णा य ॥९॥ (२७०) १०८०.पाकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प का रजुमयी पोत्तमयी कंवलमयि तह य दंडकडगमयी। पंचविह चिलिमिणीओ पण्णिता एस पुर्व तु॥८५०॥ उडुबहे स्यहरणं वासावासासु पादलेहणिया। बड उंबरे पिलिंखू तम्स अलंभम्मि चिंचिणिया॥१॥ उभओ णहसंठाणा सचित्ताचित्तकारणा मसिणा। सचित्तेगेण फुसे पासेणेगेण अचित्तं ॥२॥ कण्णाण सोहर्ण पुण कण्णाण मलेण संचिएणं नु। दुक्खेज जस्स कण्णा ण सुणेज व सो तु गिण्हेजा ॥३॥ पविरलदंतो थेरो सिस्थादीणं तु दंतलम्गाणं । लेवाडअरतिसारियरक्खडा गिव्ह सोहणयं ॥४॥ अदाणोमादीमुं पिप्पलतो चिकरणट्ठ कंदाणं । माणाहिगवत्थादी पगासमुह भाण करणवा ॥५॥जुण्णाण संधणट्ठा सई णखखवणं तु कंटा(ठा)णं। उद्धरणट्ठ णहाण य छेदणहेतुं गहेयर ॥६॥ उच्चारमत्तगादी अण्णोविय बहुविहप्पगारो तु। ओवग्गहिओ भणिओ उवम्गहट्ठा महाणस ॥ ७॥ सबोवि एस उबघायदोसपरिवजिलो घरेयत्रो। वीसतिधा उवधातो तस्स इमो होति णायत्रो ॥ ल०२४॥८॥ उम्गम उप्पायण एसणाय परिकम्मणा य परिहरणा। अचियत्त (विहन)वतीयारे तहेव परियट्टणा विदिया.:५आल०२५॥९॥ उमामम्मि यमण्णाति, पामिचे य पवाहणे। तेरिच्छयाहए चेव. तहा तेणाहडेति य॥.:५८॥ल०२६॥८६॥ अण्णाणोवहरे चेब, मालोहड अरक्खिए। कते य कारित चेव, बंधणे य विराहणे ।..५९॥ ल०२॥१॥ विवनकरण चेच, एमेता पडिवत्तिााएत पत्तेय उवधातो, उबहिस्स तु बीसती॥..६०॥ल०२८॥२॥ उम्गमेण तु अस्सुद्ध, तहा उप्पायणेसणा। उवहिं उवहतं जाणे, बोच्छामि परिकमणे ॥.:.६शाल०२९ | ॥३॥ परिकम्मणे चउभंगों कारणे विहि बितिओं कारणे अविही। णिकारणम्मि य विही चउत्थ निकारणे अविही ।ल०३०॥४॥ गम्गरदंडीवेलतिगखीलगमादी य होति अविही उ। णिकारणम्मि तीय तु परिक्रमेयम्मि उवघातो ॥५॥ भाणस्स विपरिकम्मं णिम्मोयणलेवसिवणादी य। णिक्कारणमविहीए कुणमाणो होति उवघातो॥ल०३१॥६॥ अम्भितरं तु बाहिं बाहिं अभितरं करेमाणो। परिभोगविवज्जासे उबधातो होति णायव्यो ।ल०३२॥७॥ णियगोवहिपरिभोग समणुण्णाणं ण देति कजम्मि। जो भंडमच्छरीयत्नणेण उपहिस्स उव. घातो ॥ ल०३३॥८॥ वतियारे परिहारिय वत्थं पादं च जो गहेऊणं । पुण्णेवि तम्मि काले अणपुच्छ धरत उवघातो ॥ल०३४॥९॥ लोइय लोउत्तरिय परियट्टिय जो तु गिण्हती उवही। उग्गमदोसअसुदं च उवहतं तं तु णायव्यं ॥ ल०३५॥८७०॥ अण्णगणमांगतस्स तु जस्स उ उबहिस्स उम्गमो ण णजे। सोऊणं परि जति उप्पायंते व णायम्मि ॥ल ३६॥ १॥ पामिचं उजुयगं उच्छिण्णं चेव होति णायचं । लोइय लोउत्तरियं तु उवहतं तं वियाणाहि ॥ ल०३७॥२॥ अण्ण बहते असंते दिण्णे साहुस्स अण्ण जदि वाहे । तं तु पवाह - णदोसा उवही तू उवहतं जाणे॥ल०३८॥३॥ सुणएण वाणरेण वजह रुवगमादि हरितुमाणीतं । णरतेणाणीतं (दिजंतमदिज) वा गेण्हतं उवयं जाणे ॥ल०३९॥४॥ अण्णाणोबहतो खलु वत्थादि अकप्पिएण जो गहिओ। मालोहडो तु उवही ओलइओ जो तु वेहासे ॥ ल०४०॥५॥ अणरक्खिओत्ति सुण्णं उवही मोत्तूण जो उ गच्छेजा। भिक्खादीणऽ.. हाए सोऽवि य उबहिस्स उवघातो ॥ल०४१॥६॥ सयमेव करे उवही णिसेज्जादी सोऽवि उवहतो होति । कारेइ व अण्णेणं उवघातो सोऽवि वोवो ॥ल०४२॥७॥ बंधति भिण्णं अविही भिण्णं व घरेति सोऽवि उवघातो । सुषण्णं च दुवणं करेज मा तं तु हीरेज । ल०४३॥८॥ दुखणं व सुवणं विभूसहेतुं तु जो करेजाहि । उवहिउवधात एते अहवा अण्णेविमे होति ॥ल०४४॥९॥ पंचऽट्ट य पण्णरसा सोलस दस व होति ठाणाणि । चत्तारि एकगाति वारस वीसं च ठाणाई॥..६२॥ ल०४५॥८८०॥ दो खेत्ते काले भाचे पुरिसे य होति पंचेव। एतेसिं पंचण्हवि परूवणा होति कायद्याल०४६॥१॥ दो अणलं अधिरं अधुवं च तहा अधारणिजं च। एतेसु पाउसुंपी गेण्हते भंग सोलस तु ॥ ल०४७॥२॥ अहवा महदणाई खित्ते काले य अचितं जं तु। भावे जहा गिलाणो मुंजे अगिलाणों तह चेव ।। ल०४८॥३॥ पुरिसे असहू तु जहा सहुवि परिभुंजते तहा उवहीं। रायादी पवइओ अहवा पुरिसो हवेजाही॥ ल०४९॥४॥ अहवा गारवमुच्छा अविइत्तऽतिरित्त बाउसतं च। पंचेते उपहिम्मी समणाणसया ण कायदा ॥ ल०५० ॥५॥ जोगमकातुमहागडे जो गेण्हति अप्प सपरिकम्मं वा। अहवा अमग्गिऊणं अप्पं गिण्हे सपरिकम्मं ॥ ल०५१॥६॥ अप्पडिलेहिय गाख मुच्छ विभासा य होति सत्तमए। अचियत्ते तु मा मे कोई छिवतुत्ती (होति) अट्ठमए ॥ल०५२॥७॥ पण्णरसुग्गमदोसा अज्झोयरमीसजायमेगं तु। उप्पायणसोलसर्ग एसणदोसा य इसगं तु ॥ ल०५३॥८॥ संजोयणा पमाणे इंगाले चेव होति घूमे य । चत्तारि एकगा खलु एते ते होति णायव्वा । ल०५४॥९॥ वारस ठाण इमे खलु वेदणमादी तु १ति छट्ठाणा। आयंकादी छचिय अधरण धरणा य उवघातो ॥ल०५५॥८९०॥ बेयण वेयाबचे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छ8 पुण धम्म (१०००)चिंताए ॥१॥ आर्यके उवसम्गे तितिक्खता बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेतुं सरीरचोच्छेयणढाए ॥२॥ वीसं पुण पुत्रुत्ता ते चेव य उम्गमादिणो होति। एते सबै मिलिया णउतिं खलु हाँति उवघाता॥ल०५६॥३॥ आसीत ठाणसतं जस्स विसोहीए होति उबलदं । सो जाणती विसोहि उवघातं वावि उवहिस्स ॥ल०५९॥४॥णउति उवघाता खलु तत्तियमेत्तावि अणुवघाताचि । एए दोण्णिवि मिलिता आसीत होति ठाणसतं ॥ ल० ५७॥५॥ एयं चिय आसीयं सयं १०८१पत्रकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 जिणथेरअजउवहीहिं। गुणिते होइम संखा जहकमेणं तु ठाणाणं ॥। ४० ५८ ॥ ६ ॥ दो चैव सहस्साई सहसयं चैव जस्स उवलद्धं सो जाणती विसोहि उवघातं वावि जिणकरये ॥ ७ ॥ दो ठाणसहस्साई पंचैव सपाईं हाँति वीसाई सो जाणती विसोहि उपघातं वावि बेराणं ॥ ८ ॥ चत्तारि सहस्साई पंचेव सयाई होंति पण्णाई सो जाणती विसोहि उवघातं चैव अजाणं ॥ ९ ॥ एसो उ सोलसविहो अजीव कप्पो समासतो भणितो एत्तो य मीसकप्पं वोच्छामि अहाणुपुवीए ॥ ९०० ॥ एत्तो छहिं सोलसहि य दोहिवि निष्फज्जती तु जो कप्पो दुगसंजोगादीओ सो सो मीसओ कप्पो ॥ १ ॥ पव्वावण मुंडावण सिक्खोवट्टे य भुंज संवासे । एते छष्णायव्वा आहारुहादि सोलसयं ॥ २ ॥ दुगसंजोगादीया सचित्तअचित्तमीस कप्पाणं । पत्तेय मीसगाविय यव्वा आणुपुब्बीए ॥ ३ ॥ पच्याचे मुंढावे पचावे चैव तहय सिक्खावे। पब्वावे उबठावे पव्वाचे चेव संभुंजे ॥ ४ ॥ पव्वावे संवासे एवं मुंडावणा दुचरिमेहिं । णेया दुगसंजोगा एवं सेसाबि संजोगा ॥ ५ ॥ तिचउपणछकजोगा एते सच्चित्तदवियकप्पम्मि पत्तेयं संजोगा एत्तो अचित्त वोच्छामि ॥६॥ आहारे उबहिम्मि य आहारे तह उवस्सए चेव । एवं जा णक्खछेदण ता आहारेण चारेजा ॥ ७ ॥ एवं अवसेसासुचि उवधादीएस उवरि उवरिं तु । णेया दुगसंजोगा जा पच्छिमो सूयिणहछेदो ॥ ८ ॥ एमेव सेसगावी तिथगाईयावि सङ्घसंजोगा । णेया जा सोलसगो एते पत्तेय अचित्ते ॥ ९ ॥ चित्तेतराण दोहवि एतो संजोगता मुणेयवा। मीसगकप्पे णेया दुगमादी सत्रसंजोगा ॥ ९९० ॥ पव्वावे आहारंपि देइ पव्वाविएऽवि उवहिं च पव्वावे उपस्समणं एवं णखछेयणं जाव ॥ १ ॥ एतेण कमेणेवं दुगतिगमादी तु सव्वसंजोगा । णेयव्वा जा पच्छिमो बावीसमो होइ संजोगो ॥ २ ॥ एतेसिं सव्वेसि संखाणयणम्मि आणणोवाओ। पत्तेयमीसगाण य इमो तु कमसो मुणेयब्वो ॥ ३ ॥ एगादेगुत्तरिया पदसंखपमाणओ ठवेयव्वा गुणगारभागहारा तेसिं हेडा उ विवरीया ॥ ४ ॥ पढमं रूवं गुणए भागं च हरे हवेज जं लद्धं । तम्मिवि पडिरासितगुणितभाइए जं भवे लद्धं ॥ ५ ॥ एवं ठाणं ठाणं पडिरासियगुणितभजियलदाई। एगादीसंजोगाण होंति संखप्पमाणाई ॥ ६ ॥ एकादी संजोगाण होति एवं तु लवखणं दिनं । एते सबै मिलिता तेसट्ठि होंति संजोगा ॥ ७ ॥ एकगसंजोगादिसु उप्पज्जंते उ जत्तिया भंगा। तेसिं संखाणयणे करण तु इमं मुणेय ॥ ८ ॥ एकगसंजोगादिसु जत्तियमित्ता हवंति ठाणा उ तत्तियमेत्ता दुयगा ठावेयशा कमेणं तु ॥ ९ ॥ पडिरासिय पडिरासिय अण्णोष्णेणऽम्भसाहि ते दुयगा। जावंतिडं ठाणं गुण एवं जा भवे संखा ॥ ९२० ॥ एकगसंजोगादिसु एक्केके भंगसंख तावतिया सच्चिय एकादीहिं पुणरवि संजोगसंगुणिता ॥ १ ॥ पत्तेयं पत्तेयं एकगमादीण सहजोगाणं । सा होति भंगसंखा जहकमेणं मुणेयवा ॥२॥ कह भंग भवंतेत्थं ? भण्णति दिक्खेक अब बहुया उ मुंडावणादि एवं दुतिचउभंगादिचारणिया ॥ ३ ॥ पच्चयहेतुं तहियं पत्थारो होति पत्थरेयचो । इमिणा उ लक्खणेणं तमहं वोच्छं समासेणं ॥ ४ ॥ भंगपमाणायामो गुरुओ लहुओ य अक्खणिक्खेवो मत्ता दुगुणा दुगुणो पत्थारे होति णिक्खेवो ॥ ५॥ एवं तू पत्थरिए पिच्छसु एकादिए उ संजोगे जे जत्थ उ णिवति पञ्चक्खं ते तहिं सब्बे ॥ ६ ॥ छकगसोलसगाणं जीवमजीवाण दोण्ह कप्पाणं एकगसंजोगादीण संखपमाणं इमं होति ॥ ७ ॥ छ चेवय पण्णरसा बीसा पण्णरस छक्क एको य एकगसंजोगादी छविहसच्चित्तकप्पम्मि ॥ ८ ॥ सोलस बीसं च सयं पंचेव सयाई होंति सद्वाई। अट्ठारस बीसाई तेयालं अट्ठसट्ठाई ॥ ९ ॥ अद्वेव सहस्साई अहियाई अजीवछटुम्मि एकारस य सहस्सा चत्तारि सया तहा चत्ता ॥ ९३० ॥ बारस चेव सहस्सा अद्वेव सया उ सतरा होंति अद्रुमसंजोगम्मिवि उफ मतो एव जायेको ॥ १ ॥ समितदवियकप्पो तेवट्ठी होंति सङ्घसंजोगा पंच सता पणतीसा पण्णट्ठि सहस्स अश्चित्ते ॥ २ ॥ सचित अचित्ताणं एते भणिया तु सव्वसंजोगा । पत्तेयं पत्तेयं एनोमीसाण वोच्छामि ॥ ३ ॥ अचित्तदव्वकप्पे संजोग पिहप्पि ठवेतूणं जितकष्पेक्कगसंजोग गुणित तेसिं फलमिणं तु ॥ ४ ॥ उण्णउतिं संजोगा दुगसंजोगम्मि मीसए कप्पे । सन्त सता वीसहिगा तियसंजोगाण बोद्धव्या ॥ ५ ॥ तित्तीसं चैव सता सहिगा तू चउक्कसंजोगे दस चेव सहस्साई णव वीसहिया य पंचमए ॥ ६ ॥ छत्ती (डी) स सहरसाईं दो चैव सनाई अटुअहियाई अडयालं च सहस्सा अडताला होंति सत्तमए ॥ ७॥ अट्ठद्विसहस्साइं छचेव सताई होति चत्तारि सतत्तरं सहस्सा दो चेव सया भवे बीसा ॥ ८ ॥ एमेव उक्क मेणविवमा परेण होंति बोद्धवा। छण्हंती जा सोले छच्चैव पदा मुणेया ॥ ९ ॥ एवं पण्णरस य बीस य बीसएण पण्णरस छक एकेण पत्तेयं पत्तेयं गुणिएवं रासिणो मुणसु ॥ ९४० ॥ दोणि सता चत्ताला अट्ठार सया य होंति णायव्वा । अट्ठ सहस्सा चउसय ततिए मीसम्मि संजोगा ॥ १ ॥ सत्तावीस सहस्सा तिष्णि सता चेव होंति णायव्वा पण्णद्विसहस्साई पंच सया वीस अहिया य ॥ २ ॥ एकं च सयसहस्सं बीस सहस्सा सयं च वीसहियं एकत्तरिं सहस्सा लक्खेको छस्सता चेव ॥ ३ ॥ एकं च सतसहस्सं तेणउइ सहस्स तह य पण्णासा उक्कमतो सत्तेव य ठाणाई ततो य पण्णरस ॥ ४ ॥ तिण्णी सता तु बीसा दोणि सहस्साई चउसयजुबाई एकारस य सहस्सा दोणि सता चेव णायवा ॥ ५ ॥ छत्तीस सहस्साई चउरो यसता हवंति णायता सत्तासीति सहस्सा तिष्णि सता चैव सहिता ॥ ६ ॥ एवं च सतसहस्सं सट्ठि सहस्सा सयं च सट्टी य दो लक्खा अडवीसा सहस्स अट्ठेब य सयाई ॥ ७ ॥ दो १०८२ पञ्चकल्पभाप्यं 1 मुनि दीपरत्नसागर - Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेव सयसहस्सा सत्तावणं भये सहस्साई। चउरो सय अट्ठमए ठाणा सतंतिमे वीसा ॥८॥जह पढमे तह पंचमे जह बीए तह चउत्थए रासी । एकगगुणकारे पुण सोलसमादीनु जावेको ॥९॥ अचित्तदवियकप्पे संजोगा सवपिंडिता कातुं। जितकप्पेकादीहिं गुणिते फलरासिणो मुणसु ॥ ९५०॥ तिण्णेव सतसहस्सा ठाणसहस्सा हवंति तेणउती। दो य सया य दसहिता एकगसंजोगसंगुणिता ॥१॥ पर्व चेव सयसहस्सा तेसीति सहस्स तह य पणुवीसा। वियसंजोगचउकेऽवि एत्तिया चेव णायचा ॥२॥ सत्त सय दससहस्सा तेरस लक्खा य नियगसंजोगे। पंच य पढमसरिच्छा अचित्तपिंडो उ अंतिमए ॥३॥ जियपिंडेणं पिंडो अजीवकप्पस्स संगुणा नियमा। सो होति दवपिंडो तस्स उ संखा इमा होति ॥४॥ईयाल सतसहस्सा अट्ठावीसं भवे सहस्साई । सत्त सता पंचहिया ठाणाणं मीसकप्पम्मि ॥५॥ जियअजियमीसगाणं कप्पाणऽण्णेऽवि भंगसंजोगा। पत्तेय मीसगाविय यत्रा आणुपुञ्चीए ॥६॥ पव्वावेको एक एको अणेगा अणेग एकंचा गाणेगेय तहा चउभंगो एव एकेके आ एवं एक्कं एकसि एकमणेगेवि एत्यऽवि तहेव । चउभंगो णेयवो एक्कक्के छह तु पदाणं ॥८॥ एक्कक्कसि पयावे मंडावेक्कं तु एक्कसिं चेव । एत्य तु दुगसंजोगो चउभंगो होति णायब्बो ॥९॥ एवं दुततियचतुर्पचछक्कजोएहिं जत्तिया जे तु। संजोगा भगा यनु ते सव्वे हॉति णायव्वा ॥९६० ॥ पव्वाचे मुंडेगं पब्बावेगं च मुंड गे या गो एक्कं च तहा णेगाऽणेगे य एमेव ॥१॥ एमेव सेसगावी दुगतिगचउपंचछक्कसंजोगा। बुद्धीयऽणुगंनव्या सव्वेवि जहक्कमेणं तु ॥२॥ अचित्तेऽविय एवं एक्को एक्कस्स देति आहार। एवं उवहीमादीसु सब्बेसुवि हॉति चउभंगा ॥३॥ दुगमादी संजोगा एत्वंपि तहेव हुँति विष्णेया एमेवेक्को एकसिं आहारादीणि देजाहि ॥४॥ एवं दुगमादीया णेया एत्यपि सव्वसंजोगा। एवं ता अचित्ते मीसेऽविय बुद्धिए जोए ॥५॥ एक्को पच्वावेक्कं आहारादी य देनि २० एत्थऽवि तहेव । संजोगा णेयव्वा जावतिया संभवे तत्थ ॥६॥ एसो तु दवियकप्पो तिविहोऽवि समासतो समक्खातो। एत्तो समासतोऽहं बोच्छामि उ खेत्तकप्पं तु ॥७॥जं देवलो-3 गसरिसं खितं णिप्पचवातियं जं च। एसो तु खेत्तकप्पो देसा खल अद्धछब्बीसं ॥ल०६०॥८॥रायगिह मगह चंपा अंगा तह तामलित्ति वंगा य । कंचणपुरं कलिंगा याराणसि चेवर कासी य ॥९॥ साएय कोसला गतपुरं च कुरु सोरियं कुसट्टा या कंपिल पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव १०॥९७०॥ बारवती य सुरट्ठा मिहिल विदेहा य वच्छ कोसंबी। णंदिपुरं संदिग्भा भहिलपुरमेय वलया य ॥१॥ बयराड वच्छ वरणा अच्छा तह मत्तियावति दसण्णा।सोत्तियमती य चेती वीतिभयं सिंधुसोवीरा २०॥२॥ महुरा य सूरसेणा पाचा भंगी यमास पुरिवठ्ठा। सावत्थी य कुणाला कोडीवरिसं च लाढा य॥३॥ सेयवियाऽविय णगरी केततिअद्धं च आरियं भणितं । जत्थुप्पत्ति जिणाणं चक्कीणं रामकिण्हाणं ॥४॥ एतेमु विहरियव्वं खेत्तेमुं साहुभाषिएमुं तु। जस्थ य गुणा इमेत खेमाईया मुणेयव्वा ॥५॥ खेमो सियो सुभिक्खो अप्पप्पाणो उवस्सयमणुण्णो । एसो तु खेत्तकप्पो (पाखंडखेदमुको) गामणगरपट्टणाहणी ॥.:.६३॥ ल०६१॥६॥ खेमो डमरविरहितो रोगासिवविरहितो सिवो होति।पउरण्णपाणदेसो होइ सुभिक्खो मुणेयम्बो ॥ल०६२॥७॥ जलुगासंखणगमुइंगपिसुगमसगादिविरहितो जो तु। सो होति अप्पपाणो अप्प अभावम्मि थेवे य ॥ ल०६३॥८॥समभूमिरेणुवज्जियरितुक्खमोवस्सया मणुण्णा उ। गामा णगरावि य बहु पाउम्गा मासकप्पस्स ल०६४ ॥९॥ सज(व्य)णजणो य भदो जहियं च मणुण्णसाहुजोणीओ। तारिसए खेत्तम्मी समणुण्णाओ बिहारो तू ॥ल०६५॥९८०॥ खेमो य सिवो य तहा खेमों सुभिक्खो य एष संजोगा। सु सत्तसु वा आणुपुत्रीए॥१॥ अहवोदयग्गिसाबदतकरवालभयवजिओ रम्मो। णिरवेक्खोऽविय जहियं समणगुणविदू य जत्थ जणोल.६६॥२॥ एताणि चेव - सेमाइयाणि आरीयखेलसहियाणि । पुब्वभणियाणि जाणि तु ताई खल सत्त उ हवंति ॥३॥णाणस्स देसणस्स य चरणस्स य जत्थ णस्थि अणायणा णस्थि ॥७० ६७॥४॥ उदगभयवुज्झणादी जह कोंकणसिंधुतामलित्तादी। णस्थि जहिं अग्गिभयं निरग्गिसाहम्मियगिहा वा ॥५॥ जहियं च सावयभयं सीहादीणं ण विजए देसे। जहियं च णस्थि चोरा देहुवहीपंचमोसादी॥६॥ वाला उ सप्पगोणसमादी बोहिगभयं च णस्थि जहिं । मणसो समाहिकारो सोरम्मो होति णायचो ॥७॥ मूरो अणण्णगम्मो जत्थ णरिंदो तहिं मुहविहारं। साहुगुणे य वियाणति कुणति यसाहुण जो रक्खं ॥८॥ अहिरण्णसुवण्णेते छज्जीवणिकायसंजमे णिरता। जाणति जणो य एवं जत्थ तु साहुण गुणणिहसं ॥ २०६८॥९॥ सज्झाओ जहिं सुज्झति कुदिद्वागिणो ण यावि जो होति। एसण इत्थी सोहीय जत्थ तहियं णिवासे तु ॥९९०॥ जहितं च अणायतणा ण संति के पुण अणातणा भणिता ? । साहम्मि भिण्णचित्ता मूलत्तरदोसपडिसेवी ॥१॥एतेहिं जो देसो आइनो तह य अन्नतित्थीहिं । मच्छंधवाहगामा पुलिंददेसा अणायतणा ॥२॥ एतारिसम्मि खेने अप्पडियदेण विहरियावं तु आलंबणाई केइ तु इमाणि काउंण विहरति ॥३॥ वसही संथारो भत्त पाण वत्थे पडिग्गहे सेहा। सड्ढा य पुवसंथुय असदहते य पडिबंधो॥..६४॥४॥ | फामुया एसणिजा य, णिवाया य रितुक्खमा। एरिसा साहुपाउग्गा, वसही दालमडण्णहिं ॥५॥ एमेव य संथारा कंवलदम्भादिवत्थुनिफना। सयणासणा य जहियं सुलभा जोग्गा य १०८३ पञ्जकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहूर्ण ॥ ६॥ भत्तं सुलभ मणुण्णं च एरिस णस्थि अण्णहिं तत्थ । जंगियभंगियमादी नहु सुलभा अन्नहिं वत्था ॥७॥ पडिगहगाऽविय सुलभा सेहा यऽन्नत्य नस्थि खेत्तम्मि। अण्ण - स्थ दुङमा तू तेण तु एत्थं बहुगुणं तु ॥८॥ सड्ढा आहारादी दिति य जोग्गाणि संथुता चेव । पुरपच्छ दिट्ठभट्ठा य अण्णहिं णस्थि एरिसगा ॥९॥ उडुबदमासकप्पेण विहारो तं ण सद्दहइमेहिं। संजमआतविराहण वचंते गामअणुगामं ॥१०००॥णाणादीण य हाणी जोग्गं खेतं तु मामाणाणं । खेत्ताओऽविय खेत्तं संकमणे धुवमसज्झाओ ॥१॥ जे णीयत्ते दोसा मासंतो परिवसेण ते चेव । एवं मासविहारे मण्णंतो बहुविहे दोसे ॥२॥णो सदहति विहारं तेण तु ण विहरेति तस्स आणादी। मासोवरि च लहुओ णीयावासे य जे दोसा ॥३॥ ते सो पावति स एतेहालंबणेहिं अच्छतो। किं एगतेणेवं ? ण विसेसो भण्णती सुणसु ॥४॥णिकारणम्मि एवं पडिबंधो कारणम्मि णिद्दोसो। ते चेव अजयणाए पुणोऽवि सो पावती दोसे ॥५॥ काणि पुण कारणाई जेहिं चिढेज एगठाणम्मि ?। भण्णति पुश्रुट्ठिा जे खेमसिवादिया दारा ॥ ६॥ तेसिं चिय पडिवक्खा अस्खेमे असिव तह य दुभिक्खे । बहुपाणु वस्सओ वा अमणुण्णो तु दयमादी ॥७॥ एतेहि कारणेहिं एगट्ठाणम्मि अच्छमाणा उ। जदि जयण ण कुवंती ते चिय णीयादिया दोसा ॥८॥ का पुण जयणा तहियं ? भण्णति E तिहि कारणेहि उठितस्स। अण्ण उवस्सयमिक्खादिया त जयणा मणेयथा ॥९॥ अक्खेममादिएसवि अक्खेत्तेसंत कारणवसेणं । चि ताणं तहियं इमा त जयणा मणेयवा॥१.१०॥ अक्खेमेवि सति पुरं संवर्ल्ड वावि आसयंती उ । अक्खेमं चऽपणत्था तहिं खेमं तो ण णिग्गच्छे ॥१॥ जदि असिवं तु बहिद्धा तइया अच्छंति ते तहिं चेव । दुभिक्खेऽवि ण णिति य अहवा सव्वस्थ दुभिक्खं ॥२॥ दुब्भिक्खें ज़यण तहियं अच्छंते वावि जयण तह चेव । बहुपाणे आउत्ता चंकमंते तु जयणाए ॥३॥ उवस्सएँ आउत्ता कुडमुहभूतीत वावि ल. खंता । अण्णाए वसहीए ठंति पमज्जति य अभिक्खं ॥४॥ जा जत्थ जयण जुज्जति अमणुण्णे उबस्सयम्मि तं कुज्जा। कयवरसोहणमादी दुग्गंधे गंध पकिरंती ॥५॥ उदगभए थलगामे थले च बसही तहिं तु गिण्हति । अग्गिभएँ मालबद्धे हम्मिततलगम्मि व वसति ॥६॥ रोगबहुले अपुच्छा णिवेजए चोरकिण्णे ण तु विहरे । सत्थेण वावि गच्छे ठायति व जत्थ णिरवाय ॥ ७॥ जहियं सावयदोसा (चा) तहियं एगाणितो ण गच्छेज्जा । गेण्ह वसहिं च गुत्तं गामस्स तु मज्झयारम्मि॥८॥ विज्जामंतादीहिं वाले जीणेति रातो णवि गच्छे। रायं च पण्णविती साहुगुणमजाणमाणं तु ॥ ९॥ जत्थ जणो णवि जाणति साहुगुणे तहिं कहंति साहुगुणे। परिभोग अकालम्मी रति कुवंति सज्झायं ॥१०२०॥ दूरेण कुतित्थीए वजेती एसणं च पण्णवए । कुल(लगु)डाइत्थीचरियाइया य वज्जति चरणट्ठा॥१॥ बजेज अणायतणा णाणादीणं च जत्थ उवघातो । एवं जहसंभवं तं करेज जयणं णिवसमाणो | ॥२॥ एसो तु खेत्तकप्पो उस्सग्गववायसंजुतो भणितो। एत्तो उ कालकप्पं वोच्छामि जहक्कमेणं तु ॥३॥ मासं पजोसवणा वुद्धावास परियायकप्पो य । उस्सग्ग पडिकमणे किति2 कम्मे व पडिलेहा ॥..६५ ॥४॥ सज्झायझाणभिक्खे भत्तवियारे तहेव सज्झाए। णिक्खमणे य पवेसे एसा खलु कालकप्पविही ॥ .:.६६॥५॥ पुवं तु मासकप्पो परूवितो सो णिसीहणामम्मि। णवरि तु इहारुवणा वणिज्जति मासे अतिरेगे ॥६॥ मासातीतं बसतो वसहीए तीएं चेव मासलहूं। तह भिक्खायरियाएवीयारे तह पियारे य॥७॥परिसाडी संथारे सवेसेतेसु होति मासलहूं। चत्तारि य उवधाता संथारे अपरिसाडिम्मि ॥८॥ पंचेते मासिया खलु चाउम्मासं च मिलिय सोते। णव मास मासऽतीए उदुबद्धे संवसंतस्स ॥९॥ लहुगा | तु वासऽतीते बसहीते सेस होति ते चेव । भिक्खायरियादीसुंजे भणिता मासऽतीतम्मि॥१०३०॥ आरोवणा उ एसा कालदुवे वण्णिता अणिताणं । एत्तो पज्जोसवणासामायारिं पवक्खामि ॥१॥ पजहेत्तु बासजोग्गं पहिया अच्छंति वासुदिक्खंता। जे अंतरातु गिण्हे तं सर्व तेसि खेत्तीणं ॥२॥ अह पुण वचंताणं यासाजोगं तु अंतरा वासं। आरद्ध डहरगामे ण पहुचति एगवसही य॥३॥ अण्णोण्णसुहितार्ण बहवो सागारिया ण तीरति। परिहस्तुि ताहे वज्जे गुरुसागरियं णवरि एकं ॥४॥ अवसेस समायारी पज्जोसवणाए बषिणय णिसीहे । सच्चेव णिव सेसा इमम्मि दारम्मि णायचा ॥५॥ वुड्ढस्स तु जो वासो वढी व गतो तु कारणेणं तु। एसो तु बुड्ढवासो तस्स तु कालो इमो होति ॥ ६॥ अंतोमुहुत्त कालं जहणमुक्कोस पुश्वकोडी तु। मोनुं गिहिपरियागं जं जस्स व आउगं तित्थे ॥७॥ मरणे अंतमुहुत्तो देसूणा पुत्रकोडि कह होजा। जो तरुणो चिय समणो असमत्थो विहरितुं जातो ॥८॥ कदा-विजा चरियं लाघवोए तबस्सी, तत्तो तयो देसितों सिविमग्गो। अहाविहं संजम पालइत्ता, दीहाउणो वुड्ढवासस्स कालो ॥..६७॥९॥ विज्जा तु बारसंग करणं तस्स गहणं मुणेयवं सुनं वार समाओ तत्तियमेत्ता य अत्थेवि ॥१०४०॥ चित्तुं सुत्तत्थाई वार समा देसदसणं च कतं। चरियं भंतेग8 लापविएणं तु तिविहेणं ॥१॥ उवकरणसरीरिदिय एवं तिविहं तु लाघवं होति। उवकरणऽरत्तदुवो घरेति ण य गिण्हए अहियं ल०६९।२।। संघयणधितीजुत्तो अकिसो ण तु धूरदेहसारीरो। वसिदिओ तबस्सी च उत्यमादी तवो चित्तो(चो)।ल०७०॥३॥ कुवतेण अछित्ति णाणादी देसिओ तु मोक्खपहो। सुत्तत्थुपदेसेणं संजमियं संजमेणं च ॥४॥ काऊण अयो(तऽयो)च्छित्ति बारस वासाइं णिचमुजुत्तो। दीहाउतो तु सूरी पडिबजेऽभुजयविहारं ॥ ५॥ अन्भुजयमचयंतो अगीयमीसो च गच्छपडिबदो। अच्छति जुण्णमहलो कारणतो बावि अनोवि ॥ ६॥ जंघाबले व खीणे गेलण्णे सहायतो व दोबल्ले । (२७१) १०८४पञ्चकल्पभायं मुनि दीपरबसागर 84 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहवावि उत्तमढे णिफत्ती चेव तरुणाणं ॥७॥ खेत्ताणं व अलंभे कयसलेहे व तरुणपरिकम्मे। एतेहि कारणेहिं बुड्ढावासं वियाणाहि ॥८॥ केवतियं तु वयंतो खेतं कालेण विहरितुं अरिहो। केवतियं च अणरिहो बलहीणो वुड्ढवासी तु ? ॥९॥दुन्निवि दाऊण दुवे सुत्तं दातूण सुत्तवजं चाएवं दिवइढमेगं अणुकंपादीसुवी जतणा॥.:.६८॥१०५०॥ दोण्णिवि सुत्तत्थाई दुवेत्ति जो जाति गाउए दोषिण । जाव तु भिक्खावेला एस तु सपरकमो थेरो ॥१॥ एमेव अदाऊणं अत्यं अहवा अदातु दोण्णिवि तु । दो गाउयाई दोष्णी पुण्णाए भिक्खवेलाए ॥२॥ एवं दिवडढमेगं च गाउयं तिमि होंति एक्केक्के । गमया तु मणेयवा विहरणअरिहो स थेरो तु॥३॥ एस सपरक्कमो तु जो पुण दाऊण उभय सुतं वा । गच्छेज अद्धगाउय सपरक्कमों होति एसोवि ॥४॥ सोते विहरती एतेसु दुगाउयं दिवढं वा । जे जंति गाउयं चिय तिण्हंपेतेसि वुड्ढाणं ॥५॥ जेऽवि य गाउयमदं उभयं सुत्तं च दातु गच्छति। तेस. णुकंपा तु इमो कायब्वा होति तिबिहा उ॥६॥ विस्सामण उबकरणे भत्ते पाणे अलंबणे चेव । तं च विजाणति कालं गंतु वाएति जो जत्थ ॥ ७॥ जयणा सुद्धालंभे पणगादी सा तु होति णायवा। अपरकम तु ये एत्तो वोच्छ समासेणं ॥८॥ खेतं तु अगाउय कालेणं जाव होति दिवसो उ। खेतेण य कालेण य जाण जायति दोसो देहस्स जाब मजझण्हो। सो विहरति सेसो पुण अच्छति मा दोण्हवि किलेसों ॥१०६०॥ भमो वा पित्तमुच्छा वा, उद्धसासो व खुम्भति। गतिविरिए वसंतम्मि, एवमादी ण रीयति ॥१॥ गच्छपरिमाणतो तु सहायगा तस्स होंति कायबा। सत्तेव जहण्णेणं तेण परं होन्ति गावि ॥२॥ चउभागतिभागऽद्ध सधेसिं गच्छतो परीमाणं। संतासंतअसंती वुइटावासं वियाणाहि ॥३॥ अट्ठावीसं जहण्णेण, उक्कोसेणं सतग्गसो। गच्छं गच्छं समासज्ज, चतुभागी विभायए ॥४॥ जदि हॉति अट्ठवीसं चतुहा गच्छो तु तो विभजति तु। सत्त उचउभागेणं ते दिजंती सहाया तु॥५॥ पुण्णम्मि मासे ते णिति, सत्त अण्णे उति तु। एवं अतिति णिति य, मास मासंमि सत्त तु॥६॥ एवं दोसा ण होती तु, उवट्ठाणादि जे भवे। तेणं तु अट्ठवीसाए, चउभागा विव(भ)जिता ॥७॥ अट्ठावीसं ऊणा दुहासतीए उ ते हवेजाहि। संताअसति अगीया बाला वुड्ढा अजोग्गा वा ॥ ८॥ संतासतीए पुजति तत्तिया तेण तिषिण दुषिणको।भागा उ विभइयत्रा इगवीसाचोडसत्तण्हं ॥९॥दो संघाड अडंती भिक्खएको यगेण्हए उवहिं। थेर दुवेणीणे सत्तसु जयणेसा लित्त(भिक्ख)मादीसु॥१०७०॥ वुड्ढावासे जयणा खेत्ते काले वसहीय संथारे। खित्तम्मि णवगमादी हाणी जावेकभागो तु॥१॥ धीरा कालच्छेदं करेंति अपरक्कमा तहिं थेरा । कालं च अविवरीयं करिति तिविहा तहिं जयणा ॥२॥ कालच्छेदो मासं अण्णा वसही तु भिक्खमादीणि । अट्ठसु उडुबद्धेसुं चउमासे सेक्कवासासु ॥३॥ कालं अश्विवरीयं उडुबद्धे वासवासियं ण करे। वासावासे य तहा उडुबद्धं वादि ण करिति ॥४॥ तिविह जयणेति इणमो तिविहऽणुकंपा तु होति वुड्ढस्स। जह कायव्वा इणमो तमहं वोच्छ समासेणं ॥५॥ आहारे जयणा कुत्ता, तस्स जोगे य पाणए। णियया मउया चेव, छऽवेताऽणेसणादिसु ॥ ६॥ काणिट्ट पक आमे पिंडघरे चेव तह य दारुघरे। कडगे कडगतणघरे वोच्चत्थे होति चउगुरुगा ॥७॥ कोहिमघरे वसंतो आलितमि ण डज्झते तेणं । काणिट्टगादिगहणं रक्खइ य णिचातवसही तु ॥८॥ वसहि णिवेसण साही दूराणयणम्मि जो उ पाउम्गो । असतीय पाडिहारि मंगलकरणम्मि णीणेति ॥९॥ वसही य अहा. संथड चंपगपट्टो व चम्मरुक्खो वा । थिरमउओ संथारो असतीय णिवेसणाठाणे॥१०८०॥ असतीइ साहिबाडग(गड) सग्गामे चेय तह य परगामे। कोसद्धजोयणादी बनीसं जोयणा जाव ॥१॥ थिरमउओं अपडिहारी घेत्तचो तस्स असति पडिहारी। पितिपज्जयादिफलगं मंगलवुद्धी घरे जंतु ॥२॥ केइ गिहत्था तं उस्सवादि अचिंति ण परिभुजंति। तं पणइया तु गिहिणो विति य एअम्ह मंगलं ॥३॥ देजह नवर छणम्मि अच्चियमहितं पुणोषि णेजाह। तं घेतूणं फलग उस्सवदिवसम्मि पेसति ॥४॥ पुण्णम्मि अप्पिणती अण्णस्स व वुइढवा. सिणो देंति । मोनूण वुड्ढवासं आवजति चतुलहू सेसे ॥५॥ पडियरति गिलाणं वा सर्य गिलाणोवि तत्थवि तहेव। भावियकुलेसु अच्छति असहाए रीयओ दोसा ॥६॥ ओमादी तबसा वा अचएंतो दुबलोवि एमेव । पडिवन उत्तिमढे पडियरगा वावि तण्णिस्सा ॥७॥ तरुणाणं णिप्फत्ती आततरे चेव होति णायवा। कालियसुय दिट्ठिवाए तेसिं कालोऽयमुकोसो॥८॥ संवच्छर व झरते वारस वासाई कालियसुतस्स। सोलस य दिविवाते एसो उक्कोसतो कालो ॥९॥ वारस वासे गहियं तु कालियं झरति वरिसमेगं तु । सोलस भूतावाते गहणं झरणं दस दुवे य॥१०९०॥ गहणझरण कालियसुते पुश्वगते य जदि एत्तिओ कालो। आयारकप्पणामे कालच्छेदो तु कतरेसिं? ॥१॥आयारकप्पणामंति णिसीहं तत्थ मासमुद्दबदे। वासासु चउम्मासं एसो कालो तु कतरेसिं? ॥२॥ भणिओ य-थेरेण समाणेणं कारणजातेण एत्तिओ कालो। अजाणं पणगं पुण णबगग्गहणं तु सेसाणं ॥३॥ हिम्मवणट्ठा एतेसिं चेव एयं तु कारणजायं। जेहिं उ गुणेहिं जुत्ता दिजते ते इमे होति ॥४॥ जे गिहिउँ धारयिउंच जोग्या, थेराण ते दिति पिहजए तु। गिण्हंति ते ठाणठिता सुहेणं, किचं च थेरस्स करेंति सच ॥५॥ आसज खेत्तकालं बहु पाउम्गा ण संति खित्ता उ।णिचं च विभत्ताणं सच्छंदादी बहू दोसा ॥६॥ जह चेव उत्तिमढे कतसलेहस्स ठाति एमेव। तरुणपडिकम्म पुण रोगविमुक्के १०८५काफमूव्वारा पंचकowari मुनि दीपरत्नसागर Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलविवड्ढी ॥७॥ बुड्ढावासातीए कालादी तेण उम्गहो तिविहो। आलंबणे विसुद्धे उग्गहाँ तकजि बोच्छेओ ॥८॥ जकारण वुड्ढीगतो वासो तहि कारणे अतीयम्मि। मति पडि. भम्गा जे उ आयरिए उम्गहो णस्थि ॥९॥ दुबिहेवि कालतीते मासे चाउमास उम्महे छिण्णे । सञ्चित्तादी छिण्णो आलंबणे तम्मि छिण्णम्मि ॥११००॥ कारणसमत्ति पुरओ जो अ. च्छति उग्गहे तहिं होति। सचित्तादी तिबिहे ण तस्स तहियं इमं जातं ॥१॥ आगासकुच्छिपूरो उग्गहपडिसेहियम्मि जो कालो। ण हु होति उग्ाहो सो कालदुगे वा अणुण्णाओ॥२॥ जह णाम कोति पुरिसो छाओ आकासकुच्छिपूरिच्छे । ण हु होति सोयि तित्तोऽमुत्तत्ता उवणओ एवं ॥३॥ कालदुवेत्ति अणुण्णा गिम्हाए जत्थ चरममास कतो । अण्णक्खेत. ऽसतीए तत्थ ठियाणोग्गहो होति ॥४॥ एमेव वासतीते दस राया तिणि जाव उकोसो। वासणिमित्तठिताणं उग्गहों छम्मास उक्कोसो ॥५॥ तक्कजसमत्तीएवि रायदुट्ठपरचक्क असिवादी। एतेहिं कारणेहि तु उग्गहो होतऽतीतेऽपि ॥ ६॥ एतेसु उग्गहेसुं आभवऽणभववित्त भणिएसा । अयमण्णो तु पगारो आभवमणाभयंते य ॥ ७॥ सुहसीलऽणुकंपातहिए य संबंधि खवग गेलण्णे। सचित्ते ससिहाए पइद्विए धारण दिसासु०६९।तणुयपि णेच्छए दुक्खं, सुहं चाखती सदा। सुहसीलो एस अक्खाओ, सातागारवणिस्सितो॥९॥सुहसी. लयाए सेहं कोई पेसेज अण्णसाहण। पलिमंथं मण्णंतो दुक्खं खू सारखेउं जे ॥१११०॥ असहायस्स व देजा कोई अणुकंपयाएं सेहं तु। आयट्ठीण व कोई पेसिज्जा धम्मसद्धाए ॥१॥ दिजा सिणेहओ वा संबंधी अस्स कोति सञ्चित्तं। खमगो सयं व होजा खमगरस व पेसवेजाहि ॥२॥ देइ व गिलाणगस्सा वेयावचगुताए असहाए। अहवा सयं गिलाणो अचएंतो सारखेउं जे ॥३॥ पेसिंतस्स उ ससिहो असिहो पुण जस्स पेसिओ तस्स। एवं असंथरेणवि पेसियओजह गिलाणेणं ॥४॥ कह दातु पुणो मग्गति जम्हा सो अप्पभू तु दाणस्स। तम्हा तस्सायरियो मग्गति समंतियादी वा॥५॥अहवा जाहें सयं चिय सो सेहो जाव होति गीयत्थो। तो जाणति आभको अहयं पबियाणं तु॥६॥ उडुवासवडढवासे एसो भणितो तु कालकप्पविही। परियायकालकप्पं एत्तो बोच्छं समासेणं ॥७॥को रातिणितो होती? को वावी होति ओमराइणिओ?। भण्णति सुणसु विसेसं रातिणियओमरातीणं ॥८॥ संजमसेढी अंवो जो उ ठितो सो भवेहुरायणिओ। जो बाहिं सो ओमो एवं अतिसेसितो जाणे ॥ल०७१॥९॥ तम्हा छउमत्थाणं जो पुचं ठावितो वएसुंतु। सो होती राइंणिओ जो पच्छा सो भवे ओमो॥ल०७२॥११२०॥ सामइयसंजयाणवि सामइयं जस्स पुश्वमुच्चरित। सो होती रातिणितो इतरो ओमो मुणेयको॥ल०७३ ॥१॥ अठुस्सास जहन्नो का. उस्सग्गो उ होति बोद्धव्यो। अट्ठसहस्सुक्कोसो अहवा संवच्छरं वाचि ॥ २॥ पडिकमणं देसिराइय पक्खिय चउमासि तय वरिसे य । एतेसिं वक्खाणं पुवं आवस्सए भणितं ॥३॥ कितिकम्मं कायचं काहे कति वाऽवि होतऽहोरते?। एतेसिं णाणत्तं वोच्छामि अहाणुपुबीए॥४ा पडिकमणे सज्झाए काउस्सग्गावराह पाहुणए।आलोयण संवरणे उत्तिमट्टे य वंदणयं ॥५॥ चत्तारि पडिक्कमणे किइकम्मा तिणि होति सज्झाए। पुतण्हे अवरण्हे किइकम्मा चोइस हवंति ॥ ६॥ सूरुम्गते जिणार्ण पडिलेहणियाए आढवणकालो । थेराणऽणुग्गयम्मी उबहिणा सो तुलेयत्रो ॥ ल०७४॥७॥ पढमचरिमामु णियमा सज्झाओ पोस्सीम दियराओ। झाणं तु अत्य(इढ)पोरिसि बितियाए तं तु दिवसस्स ॥ल०७५॥८॥ ततियाए पोरुसीए भिक्खग्गहर्ण तु होति काया। सेसं च पमाणादी होति इमं तू समासे(णा)णं ॥ ल०७६॥९॥ पमाण काले आवस्सए य संघाडए य उबगरणे। मत्तग काउस्सग्गे जस्स य जोगो सपडिवक्सो ॥११३०॥ भत्तट्ठीणंपि ओहे जह भणित तहेव होति एत्थंपि। एक वेलं भत्तं रत्तिं च ण कप्पए भोतुं ॥१॥ कालस्स पडिकमितुं मज्झण्हे ताहे होति गंतवं । वीयार भोलूण व सेस अकालो उ वीयारे ॥ ल०७७॥२॥ चउसंझासु ण कप्पति सज्झाओ तासिमं तु काय । पुवावरासु दोसुवि काउस्सग्गद्विता प्रत्ति । ल०७८॥३॥ दिणमज्झाए भिक्खं झाति अभत्तहितो तु जो साहू। राओ मज्झिाडाओ णिहामोक्खं करिती उ॥ ल०७९॥४॥णिक्खमणं खलु सरए पाउसकाले पवेस पुवुत्तो। एसो तु कालकप्पो भावे कप्पं अतो वोच्छं ॥५॥ दंसणणाणचरिते तवसंजमसमिइपंच(गुत्ति)हिं गुत्तो । हतरागदोस निम्ममखमदमणियमडिओ णिचं ॥.:.७०॥६॥ अणिगृहियबलविरितो परकमति जो जहुत्तमाउत्तो। अत्तट्टकरणजुत्तो गुणभावणभावणिकंपो ॥.:.७१॥७॥ रिद्धीहिं कुलिंगीणं ण य देवातीहिं जस्स तू भावो । दसणविगलो जायति दसणमाराहियं तेणं ॥८॥णाणं दुवालसंगं ते चेव य पवयणं तु संघो वा। गहणम्मी उजुत्तो परतो तह पच्छलो यावि ॥९॥ चरणे णिबुजुत्तो मूलगुणेसुं सउत्तरगुणेसु । ण य अतियारं कुणती पच्छित्तेणं व सोहिकर्त ॥११४०॥ तववारसंगजुत्तो समितीसहितो तिगुत्तिगुत्तो या रागदोसणिहंता णिम्ममों णियते सरीरेऽवि ॥१॥ कोहं जिणति खमाए मदवमादीहिं सेसकलसेऽवि। दमणियमा दोऽवेक इंदियणोईदिया होति ॥२॥णाणादिएहिं अणिगृहितो तु कम्मस्स णिजरद्वाए। उजमति परकमती घडइत्तिय होंति एगट्ठा॥३॥ जह सुत्ते णिदिडो तह कुवति जोतु अप्पमाएंतो। सो हु जहुत्तो साहू नूर्णं मतिमं वियाणिजा ॥४॥ अत्तट्ठा मोक्सट्ठा ण तु इहलोगादिहेतुगं कुणति। करणं जोगतिएणं जयणाजुत्तोत्ति अववादे ॥५॥ मूलगुण उत्तरे या भावण पण१०८६ पञ्जकल्पभाप्यं - मुनि दीपरनसागर Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीस अणिच्चयादीया। मेत्तीपमोयकारुण्णमज्झत्यादीहिं णिकंपो । ल०८०॥६॥ एसो अभावकप्पो अहवा णाणादिओ पुणो तिविहो। दसण पढम भण्णति णाणचरित्ता तदायत्ता ॥ल०८१॥ ७॥ तो दंसणस्स चेव तु जेहिं पदेहिं तु होति उवधातो। ताई इमाई बोच्छं णिक्खमणादीणि तु कमेण ॥८॥णिक्खमण गमण भुंजण सहियवयणे य एकवायणिए। दसणणाणाभिगम रायकुमारे गणहरे य॥..७२॥९॥णिक्खमणे वितऽम्हं अं(अ)धो व(वा)हाएतणाततो भगवं। एरिसरविण दिक्से णिक्खते जेण साहणं ॥११५७॥ पूजासकार II रुयी तेण पवत्तति कीस वावि जाणतो । वारिसए णिक्खंते जेणुदितो होति सक्कारो ॥१॥ण हु एवं वत्तवं सो च्चिय भगवन्नु जाणए एवं । ण हु भाणुपमा तीरइ खजोयपभाहिं अतिसतितुं ॥२॥ गमणे तुरितं साहू गच्छंति अहो सुदिट्ट मिच्छूर्ण । सणियं वयंति णेवं वत्तवेवं तु भाविजा ॥३॥ ते लोगरंजणट्ठा सणियं गच्छे ण धम्मसद्धाए। ण य जुगपेहाए खलु विवरीयं साहुणो भावे॥४॥ जंपि कहिंचि सतुरितं तंपिय गेलण्णमादिकजेसु। गच्छंती तु सुविहिता बहुतरमायं मुणेऊणं ।ल०८२॥५॥ भुंजेंति चित्तकम्मट्टिता व सकादि बोडियादी य। ण तहा साहू एवं भासते दसणविरोही ॥६॥ कुकुडताए मोणं करति जणरंजणट्ठताए उ। भावय एवं साधू पुण णिजरवाए ॥७॥ जंपिय भासंति जती तंपिय कज-3 |म्मि थोव जयणाए। इम मुंच चिट्ठऊ बा गुरुमादीणं च पाउमा ॥८॥ सक्कयपाढो गुरुगो दियाण एसा तु देविका भासा। समणाण पागयं तू थीभासाए उवणिबद्धं । ल०८३॥९॥ तत्थवि सदियबयणं सदिया चेव णवरि जाणंति । सचेसुऽणुग्गहट्ठा इतरं थीवालबुड्ढादी ॥११६०॥ दिटुंतो सिणपल्लीणिवाणकरणेण होति कायद्यो । एकेण कतो अगडो वावि ससोवाण वितिएणं ॥ ल०८४ ॥१॥ ततिएण तलागं तू तत्यऽगडे केयघडियमादीहिं। तीरति उपभोत्तुं जे वितियं दुपदाण अभिगमं ॥ ल.८५॥२॥ दुपदचउप्पदमादी सवेसि तलाग होति अभिगम्मं । इय सव्यऽणुग्गहत्थं सुतं गहितं गणहरेहिं ॥ ल०८६॥३॥सव्वत्थ वेदसत्थं चरणे करणे य पढम (एग)वादणियं । विवरीयं समणाणं भावितो दंसणविराही ॥४॥ तत्थवि भावेयव्वं सो चिय अत्थो तु होति सब्वा()सिं। सामुद्दसिंधवादी जह लवणसहाव सव्वेचि ॥५॥ दंसणपभावगाइं अहबा णाणे अहिजमाणं तु। अत्तट्ट परट्ठा वा जहर Mलंभ गेण्ह पणहाणी॥६॥भिक्सुत्तिर्ज पदम्मी भणितं जं वावि तंणिमित्तेणं । गच्छतो कि सेवे? असदहंतो अणाराही॥७॥ पध्वज अप्पपंचम रायसुतस्स तु दाइ उ समणुजाणति अंते पडिणीतो सो तेण ॥८॥ तत्थविय फासुभोती सुत्तत्थाई करेंत अच्छंति । जणइत्तु सुतेक्कक्के अमूढलक्खासु इत्थीसु ॥९॥ ते रजेसुं ठाविय पुणरवि गच्छंति गुरुसमीवं तु। आलोइय णिस्सल्ला कयपच्छित्ताण तो तेसि ॥११७॥ संकप्पियाणि पुष्विं आयरियादी पदाणि गुरुणा तु। पच्छागताण ताण य तदिवस चेव दिण्णाई॥१॥ परियाय|म्मिणिद्वे जं दिण्ण तगं तु जो न सहहति। सुहसमुदितस्स जं वा कीरति तू रायपुत्तस्स ॥२॥ तत्थवि भावेजेवं पत्तिकडाई तु तेहिं थेराणं। रायसुतदिक्खितेण य उम्भावण पवयणे | होति ॥३॥ असहुस्स जं च कीरति अज्जसमुहस्स चेव गुरुणो तु। एयं असहहंते विराहणा दंसणे होति ॥४॥ तत्थवि भावेयचं जेणायत्तं कुलं तु तं रक्खे। अन्नस्सवि कायई गिलाणगस्सेस उवदेसो ॥५॥ इति एस समासेणं दंसणकप्पो तु आहितो एवं । एतो तुणाणकप्पं वोच्छामि अहाणुपुवीए ॥६॥ सुत्तुद्देसे वायण पडिच्छ पुच्छ परियट्ट अणुपेहा। आयरियउबज्झाया अह होति तु सुत्तकप्पविही॥..७३॥७॥ आयारमादि कातुंसुयं तु जा होति दिढिवादो तु।अंगाणंगपविटुं कालियमुक्कालियं चेय॥८॥ तं पुण सबंपि भवे संवादसमुट्टियं वणिजूढं। पत्तेयबुद्धभासित अहव समत्तीय होजाहि ॥ ९॥ ससमयवादं संवादमाह जह केसिगोयमिजाती । पण्णवणादसकालियजीवाभिगमादि णिजूढं ॥ ११८० ॥ पत्तेयबुद्धभासिय इसिभासियमादिगं मुणेयवं। केवलणाणसमत्तीय भासिता चोइस उपुवा ॥१॥ एतं सुतं तुजं जत्थ सिक्खितं जेण जह तु जोगेणं । तं तह चिय दायर्च एसो खलु एयं पुण सुतणाणं बायणजोगं तु जारिस होति । तं वोच्छामी अहुणा सुत्तस्स य लक्खणं जं तु ॥३॥ जित परिजितं अमिलितं अविचामेलियं अवाविद्धं । घोस णिकाइय ई. हिय मुविमग्गिय हेतुसम्भावं ॥..७४॥४॥ फुडविसदसुदर्वजणपदमक्खरसंधिकारणमणूर्ण । पादप्पयाणुलोमं णिउत्तसुत्तेत्ति सुयकप्पो ॥.:.७५॥५॥ णिपुणं विपुलं सुद्धं णिकाइयं अस्थतो सुपरिसुद्धं । हितणिस्सेसकर बुद्धिवड्ढणं फलमुदारजुतं ॥..७६॥६॥ सगणामं व जितं खलु परिजिय हेढुवरि उवरितो हेवा। मिलिते उ धण्णणातं विचामेलो उ अण्णोणं॥७॥ अज्झयणुहेसाणं मुत्ते मीसेति कोलिपयसं वा। तं चेव य हेठुवरि वाविढे आवलीणातं ॥८॥ घोस उदत्तादीया णिकाइयऽक्खेवसिदि(ह)परिसुद। ईहित सयं मतीए विचारित एव णेयत्ती ? ॥९॥ साहम्मियवेहम्मियहेऊहिं मग्गिओ उ सम्भावो। जस्स तु मुत्तस्स भवे तं होति सुदिट्ठसम्भावं ॥११९०॥ णिस्संदिर फुड खलु संजुलं यावि पुत्वमबरे(चरमेणं ।। विसदं अणिगूढत्थं वंजणसुदं सउवयारं ॥१॥ अत्थुवलद्धी जत्थ तु तं होति पदं तु अक्खरा वना। संधी संबंधो खलु सुत्ता सुत्तस्स जो कोति ॥२॥ एतेहिं गुणमहितं पादातु सिलोगमादिणं होति। गजम्मि य पदसंखा अणुलोमं जण पडिलोमं ॥३॥ पुब्बिल परिलेणं जंण विरुज्झति तु तं तहा तहियं । अत्थेण जोइयं तू णि उत्तमेतारिसं होति ॥ ४ ॥णयहे. १०८७पञ्जकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर * Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुवादभंगियगणितादी अस्थओ य णिउणं तु। विस्थिण्णत्थं विउलं मूगादीवायणाहिं च ॥५॥ सुद्धं तु सुग्गिहीतं अलियादीदोसवजियं वाचि। अत्थे णि(ण)काइयं खलु णिकाइय अहव, बंधेणं ॥६॥ अविरुद्धों अक्सरेहिं जस्सऽत्थो तह य समयमविरुद्धे । तं अस्थतो विसुद्धं हितं तु इहलोयपरलोए॥७॥ अहियं सेयकर तू णिस्सेसकर तयं मुणेयई। उप्पत्तीमादीण य बुद्धीण विवद्धणं जं तु ॥८॥ तस्स फलं तु उदारं अबाबाहं अणोवमं सोक्खं । एसो तु सुत्तकप्पो एत्तो वोच्छामि उहेसं ॥९॥ उदिसियव उबट्ठिएं अणुवट्ठिते उदिसते चतुलहुगा। अणलोइएऽवि लहुगा तम्हा आलोइउहिसणा ॥१२००॥ आलोयणा य विणए खेत्त दिसामिगहे य काले य । रिक्खगुणसंपदाऽविय अभिवाहारे य अट्ठमए ॥.::७॥१॥ अण्णगणागत पुच्छे केवइय सहायगा गुरूणं तु? । एवं पुट्टो सोऽविय वदेज एगादिय इमे उ ॥२॥ एगे अपरिणते या, अप्पाहारे य थेरए। गिलाणे बहुरोगे य, मंदधम्मे य पाहुडे ॥३॥ एतारिस विउसजे आगतते सोहि होति पुशुत्ता। आयारकप्पणामे सीस पडिच्छे य आयरिए ॥४॥एयदोसविमुक्कं तु आगतालोइए पडिच्छति तु। आलोयणा तु एसा सेसा दारा जहाऽऽवासे ॥५॥णवरिं कालदारं गुणदारं चैव ईसि भासिस्सं। अंगसुयक्खंधाणं उद्देसा सुक्खपक्खम्मि ॥६॥ पण्णत्तिमहाकप्पे सुतादि सरदे सुभिक्खकालम्मि। णेमित्तियादि पुच्छिय उदि. सणा होति कायवा॥७॥ सेसं कालविहाणं पुषत्तं तं तु होति णायचं । केहिंगुणेहिं जुतस्स तु उदिसिय? इमे सुणसु ॥८॥ अघोच्छित्ती संवेगविणयउववेयवजभीरुस्स। पुवण्हे जोगसमुट्टितस्स उद्देसणाकप्पो ॥९॥ वायगवाइजते गुणा तु बायणविहिं च बोच्छामि। चायगवादिजंते गुणाण दारा इमे होति ॥१२१०॥ अप्पणो य दढा रक्खा, विपुलो य तहाऽऽगमो। सुयणाणस्स य पूजा, जिणाण छिद्देय(णापंत)दुच्छल्डो॥.:.७८॥१॥ उम्मग्गं वच्चंतो अप्पा रक्खिजते तु णियमेणं। सुण्हादिद्वैतेणं सुतवावारोवओगेणं ॥..७९॥२॥ उवउत्तस्स तदढे णिजरलाभो तयो य विउलो उ। इंदियपणिही य तहा पसस्थझाणोवओगो य॥३॥ जं अचाणी कम्मं खबेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं। नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उस्सासमेतेणं ॥४॥ बारसविहम्मिवि तवे सम्भितरबाहिरे कुसलदिढे । णवि अस्थि णवि य होही सज्झायसमं तयोकम्मं ॥५॥ सुयणाणुवदेसेणं वाइंतेणं च गिण्हगेणं च। सुतपूजा होति कया तंच जितं होति वायंते ॥ल०८७॥६॥ सुयपूजाए य पुणो सुतोवएसेण वट्टमाणेण । वाएंतम(ग)हिजते आणा तु कता जिणिंदाणं ॥७॥ सुयणाणुवदेसेणं वायंता गिण्हतो य पंतेहिं। ण चइजति छल्ले बंतरमादीहिं देवेहिं ॥८॥ वायणगुणा तु एते समासओ वषिणता मए कमसो। वायणविहिं तु एत्तो वोच्छामि अहाणुपुटीए ॥९॥ अत्ताण परिस पुरिसं हितऽणिस्सिय परिजित जियं काले। विद्वत्थं फुडवंजण णिचावण णिवहणसुद्धं ॥..८०॥१२२०॥ तवुसी गंधियपुत्तो रनो रयणघरिए दोभासे। देवीआभरणविही दिटुंता हॉति आयरिए ॥.:.८१॥१॥ अत्ताणं तु तुलेती सत्तो मिण वत्ति वायणं दातुं। जाणेजा पुरिसेऽविय जो घेत्तुं जत्तियं तरति ॥२॥ बहुयं घेत्तु समत्ये बहु देती अप्प गिण्हते अप्पं । विचामेलणदोसो अतिबहुते तस्स दिजते ॥३॥ परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा य तिविह पुरिसा तुणाऊण छेदसुतं परिणामगें होति दायव्यं ॥४॥ इह परलोगे य हितं अणिस्सियं जंतु णिजरहाए। न उ वाइ गारवेणं आहारादी तदवाए ॥५॥ उक्कइतोवइयं परिजियं तु जिय एव अगुणयंतेवि। कालित्ति कालियादी कालो जो जस्स तं तहियं ॥ ६॥ जस्सवि जाणति अत्थं दिट्ठत्थं तं तु भण्णती सुत्तं । फुडवियडवंजणं तू वयणविसुद्धं मुणेयर्व ॥ ७॥ तं होती णिववणं जो वाएंतो तु ल्हादि उप्पाए। णिवणसुत्तमेयं जो अक्खित्तो उ णिवहति ॥८॥ तउसारामे तउसे पुरण पलोएं आगते कइए। जाव पलोए ताव तु कई विपरिणत अन्नहिं गिण्हे ॥९॥ एवं जो आयरिओ पुट्टो संतो विचिंतयति अत्यं। विप्परिणमितुं तस्स तु सीसा बच्चंति अन्नत्य ॥१२३०॥जह मुलअणाभागी आरामी सो तहिं तु संवुत्तो। तह णिज्जरअणभागी आयरिओ होति एवं तु ॥१॥जेण पुण पुवदिट्ठा तउसा आरामिएण होति तहिं। सो देति लहुं तउसे मुखस्स य होति आभागी ॥२॥ एवं आयरिएणं जेणऽत्थो पुष्वि चितिओ होति। सो वाएति लहु लहुं णिजरभागी य होएवं ॥३॥ एमेव गंधिपुत्ते जाणमजाणे य गंधभाणे तु। आभागी अणभागी उवसंधारोऽविय तहेव ॥४॥ सेणियणिवस्स हत्थी तंतुयमच्छेण गहिओं जलमझे। सिरिघरिओं दओभासं मग्गिओं णवि जाणि कत्थं कओ?॥५॥ जा मम्गति ता हत्थी पडितो रण्णा विणासिओ घरिओ। बितिओ मरिगतों दिनंमि तक्खणा मोइते पूया ॥६॥ एमेवायरियम्मिवि उवसंधारो तहेब कायो। चिंतणसमवाकरणे णि. जरलाभे अलाभे य॥७॥रण्णो दो देवीओ पेसाडी बालभी य व्हायंति। पेसाली हारावे आभरणे वाडभीए तु॥८॥ जह वेडी आभरणं आवासे तह इमंपि णायाम्। उवसंधारो तह चिय आयरिए होति कायबो॥९॥ एवं ता वाएंतो भणितो अहुणा पडिच्छगं वोच्छ। जारिसगुणेहिं जुत्तो वाएयचो तु सो होति ॥१२४०॥ अणुरत्तो भत्तिगतो अतिंतिणो अचवलो अलदो या अवक्खित्ताउत्तो कालण्णू पंजलिउडो य॥.:.८॥१॥ संविग्गो महविओ अमुती अणुवत्ततो विसेसण्णू । उजुत्तमपरितंतो इच्छितमत्थं लभति साह॥...८३॥२॥ जो तु अवाइजतो ण रुज्झ(रूस)ती जह ममं ण वाएति। सो होई अणुरत्तो भत्ती पुण होइ सेवा उ ॥३॥ मज्झ न देइत्ति न जो तिंबुरुकढ व तडतडे दिवसं । न य आहारादीसुं तदभावोऽ. तितिणो एसो ॥४॥ गइठाणभावभासादिएहिं नवि कुणइ चंचलत्तं तु । गाणंगणिओ न भवे अचंचलो सो मुणेयचो ॥५॥ आहारादुकोसे जो लचूर्ण तयं न अत्तटे । एस (२७२) १०८८पञ्चकल्पभायं मुनि दीपरत्नसागर Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न लुदो वक्खेवणा तु सदादिविसएसु ॥६॥ लीहालेठुगमादी जो य पढंतो ण करति वक्खेवं । अव्वक्खित्तो एसो आउत्तों अणण्णमणसो तु ॥ ७॥ आहारादी काले कालण्णू होति उवणयंतो उ। सुत्तत्थं गिव्हंतो कुण अंजलि पंजलिकडो तु ॥८॥ संविग्गो दो मिगो भावे मूलत्तरेसु तु जयंतो। मदविओ जोऽमाणी अमुयी विसमत्तणेऽवि जो ण मुए ॥९॥ आगारइंगितेहिं णातुं हियइच्छितं उबविहेति। गुरुवयणं पडणुलोमे एसो अणुवत्तओ णामं ॥१२५० ॥ जाणति तु जो विसेसं हिताहितादीण सो विसेसण्णू । णवि होति णिविसेसो समचंदणलेठुचिक्खाहो ॥१॥ उजुत्तो उ अणलसो अप्परितंतो तु थूलभद इव । सुत्तत्य णिजराओ मोक्खो वा इच्छियत्यो तू ॥२॥ पुच्छणकप्पो अहुणा जाति पुच्छिज संकियादि तु । ताति भण्णति इणमो अहकर्म आणपत्रीए ॥३॥ पदमक्खरमद्देसं संधी सुत्तत्य तभयं चेव । घोस णिकाइत इंहित विमग्गित हेतुसम्भावं ।।.:.८४॥४॥ पदमादी जा घोसो बुत्तत्था होति एते सधेवि। हिययम्मि णिकाएउं पुच्छति तु णिकाइयं एयं ॥५॥ पुछावरेण इंहित एय मए एव होति ण व होति? हेतूहिं कारणेहि त सुविमग्गिय एव तु मएत्ति ॥६॥ सम्भावो अत्यो खलु संविधाई तु पुच्छते ताई। एयाई चिय कमसो परियट्टे चेव अणुपेहे ॥ ७॥ अहुणा तु अहीयत्वं केरिसयाणं समी। समणेणं । आयरिउवझायाणं तमहं वुच्छ समासेणं ॥८॥ उम्गमउप्पायणएसणाएं हिरवेक्खों णीयपडिसेवी। सुत्ते अविट्ठसारो आयरिओ ण कप्पती सो उ॥९॥ उग्गमउप्पायणएसणाइ साविक्खों णितियपरिवज्जी । सुत्तम्मि दिट्ठसारो आयरिओ कप्पई सो उ॥.:.८५॥१२६०॥ सुत्तस्स सारों अत्यो सो दिट्टो होति जेण बुद्धीए । सो होति दिट्ठसारो आयरिओ तू मुणेयब्बो ॥ल०८८॥१॥ एमेव उवज्झाओ गुणेहिं जुत्तो तु होति णायव्यो । एतेसिं तु सकासे सुत्तत्था होति घेत्तव्वा ॥२॥ आयरिय उवज्झाया णाणुण्णाया जिणेहिं सिप्पट्ठा। णाणे चरणे जोयावगति तो ने अणुण्णाता ॥३॥ एसो दुणाणकप्पो जहकमं वणितो समासेणं। एत्तो चरित्तकप्पं बोच्छामि अहाणुपुत्रीए॥४॥ जम्हा चरिजते तू चरियं वा तेण तो चरिनं तु । त पुण अप्पडिसेवे सुद्धमसुद्धं तु पडिसेवे ॥५॥ पडिसेवणा तु दुविहा कप्पे दप्पे य होंति णाया। एतेसिं तु विभासा जह भणिय णिसीहणामम्मि ॥६॥ एसो चरित्तकप्पो छबिहकप्पो य एस अक्खा. ओ। सत्तविहकप्पमेत्तो योच्छामि अहकमेणं तु ॥७॥ ठितमट्टितजिणथेरे लिंगे उवही तहेव संभोगे। एसो तु सत्तकप्पो णेयव्यो आणुपुवीए ॥..८६॥८॥ ठियमद्वितकप्पाणं होति विसेसो इमो मुणेयव्यो। पुरपच्छिमाण व ठिओ अठिओ पुण मज्झिमजिणाणं ॥९॥ कतिठाणेहिं ठितो खलु ठितकप्पो होति तू मुणेयव्यो ? । कहहि व अद्वितकप्पो ? ठिताठितो होति चोडछो? ॥१२७०॥ दसठाणठितो कप्पो पुरिमस्सय पच्छिमस्स य जिणस्स। कतरे दस ठाणातू? भण्णति आचेलगाइ इमे॥१॥ आचेल(ल)कोहेसिय सेज्जातररायपिंडकितिकम्मे । जेट्टपडिकमणे मासं पज्जोसणाकप्पे॥..८७॥२॥ एतेहिं दसहि ठितो ठितकप्पो होति तू मुणेयो । चउहिं ठितो छहिं अठितो अद्वितकप्पो पुण इमेहिं ॥३॥ सिज्जातरपिंडे या कितिकम्मे चेव चाउजामे य। राइणियपुरिसजेट्ठो चउसुवि एतेसु होति ठितो ॥४॥ आचेलुक्कुदेसिय णिवपिंडे चेव तह पडिकमणे। मासं पज्जोसवणा उप्पेतःणवहिता कप्पा ॥५॥ दुविहो होति अचेलो संताचेलो यऽसंतचेलो या तित्थकरऽसंतचेला असंतचेला भवे सेसा ॥६॥ दुविहो होइ अचेलो पडिमाचेलो तहा परिजुण्णो। पडिमाचेलो दुविहो सावेक्खो चेव णिरवेक्खो॥आणिगणो अचोलपट्टो हिरवेक्खो सो भवे अचेलो उ।णिगणो सचोलपट्टो सावेक्खो सो पुण अचेलो॥८॥णिगिणो णिवसणो अवसणो अचेलो य अकडिपट्टो य । पडिमाचेलस्सेए नामा एगडिया होति ॥९॥ उम्गमउपाधणएसणाए जदि हुँति अपरिसुदाई। मोलुगरुयाणि ताणि तु अपरिजण्णाई चेलाई ॥१२८० ॥ उम्गमउपायणएसणाए जदि हुँति सुपरिसुदाई। मोडलहुयाणि ताणि तु परिजुण्णाई तु चेलाई ॥१॥ एत्तो सावज्जाई चेलाई संजमोवघातीणि। बजित्ता विहरतो होइ अचेलो अपरिजुण्णो ॥२॥णिग्गहितरागदोसो अणवजेहिं अहापरित्तेहि। अपेहिवि विहरंतो होति अचेलो उपरिजुण्णो ॥३॥ णिस्वहतलिंगभेदे गुरुगा कप्पइय कारणज्जाते। गेलण्णरोगलोए सरिरविवेगे य कितिकम्मे ॥४॥ असिवे ओमोदरिए रायढे पवादिदुढे वा। आगाढ़े अण्णलिंग कालक्खेवो व गमणं वा ॥५॥ सालीघतगुलगोरस णवेसु बढीफलेसु जातेसु । दाणट्ठ करणसड्ढा आहाकम्मे णिमंतणता ॥६॥ आहा अहे य कम्मे आयाहम्मे य अत्तकम्मे या तं पुण आहाकम्मं णायचं कप्पती कस्स? ॥७॥ संघस्स पुरिमपच्छिमसमणाणं तह य चेष समणीणं । चउरो उवासगाणं पच्छा सण्णायगागमणं ॥८॥ संघस्स मज्झिमे पच्छिमे य समणाण तह य समणीर्ण। चउरो पडिस्सताणं पच्छा सण्णायगागमणं ॥९॥ उजुयजड्डा सवे पुरिमा चरिमा य बकजड्डा उ। तम्हा तेसि संरक्षण सर्व पडिकुटुं ॥१२९०॥ अवगतजड्डा मज्झिमसाहू वह चेव तं परिणमंति। कप्पाकप्पं दंसिय तेसिं बरंच पडिकुटुं ॥ १॥ पुरिमाण दुब्धिसोझो चरिमाणं(मो पुण)वरणुपालओ कप्पो । मझो विसुद्धचरणो एवं कप्पोऽणुगंतव्यो ॥२॥ आयरिए अभिसेगे भिक्सुम्मि गिलाणगम्मि भयणा तु । तिफ्सुत्तो अडविपवेस चउपरियट्टे तओ गहणं ॥३॥ असिवे ओमोदरिए रायबुढे पवादिदुढे वा। अद्धाणे गेलण्णे आहाकम्मं तु जयणाए॥४॥ जदि सब्वे गीयत्था ताहे आलोयणोग्गहे भणिता। १०८९ पाकस्पभाष्यं - मुनि दीपरनसागर | Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अह होति मीसगजणो पायच्छित्तं तवोकम्मं ॥५॥ चतुरो चउत्थभत्ते आयामेगासणे य पुरिमड्ढे । णिग्विइयं दायव्वं सतं च पुवोग्गहं कुजा ॥६॥ संपस्सोहविभागो समणा समणी च कुलगणस्सेव । कडमिह ठिते ण कप्पइ अहितकप्पे जमुदिस्स ॥ ७॥ आयरिए अभिसेगे भिक्खुम्मि गिलाणगम्मि भयणा तु । अडविपवेसे असती तियपरियट्टे ततो गहणं ॥८॥ तित्थगरपडिकुट्टो आणा अनायउग्गमोऽषिय न सुज्झे । अविमुत्ति अलाघवता दुलभसेज्जा विउच्छेदो ॥९॥ दुविहे गेलण्णम्मी णिमंतणे दब्बलभे असिवे । अवमोदरिय पदोसे भए य गहणं अणुण्णायं ॥१३००॥ तिक्त्तो य सखित्ते चउहिसि जोयणम्मि कडजोगी। दब्वस्स य दुलभता सागारियसेवणा दवे ॥१॥ मुदिते मुदमिसित्ते मुदितो जो होति जोणि. सिद्धोतु। अभिसित्तो य परेहि सयं पभरहो जहा राया ॥२॥ ईसरतलवरमाईपिएहिं सेट्ठीहिं सत्यवाहेहिं । णितेहिं अतितेहि य याघातो होति साधुस्स ॥३॥ लोमे एसणघाते संका तेणे चरितभेदे य । इच्छंतमणिच्छते चाउम्मासा भवे गुरुगा ॥४॥ अण्णेवि हुँति दोसा आइण्णे गुम्म स्यण इत्थीए । तषिणस्साएं पवेसो तिरिक्रसमणुया भवे दुट्टा ॥५॥ दुविहे गेलण्णम्मिवि णिमंतणा दा दुडभे असि। ओमोदरिय पओसे भए य गहणं अणुण्णायं ॥६॥ पढमं अभुट्टाणं कितिकम्मं अज्जसेवियमुदार। काय कस्स व केण वाचि काहे व कइ. सुत्तो? ॥७॥ विणओ सासणे मूलं० (आव० १२२८)॥८॥ जम्हा विणयति कम्म० (आव०१२२९) ॥९॥ पुचामेव य विणओ०(१) गाहा ॥१३१०॥ आयार विणय कप्प गुणदीवणा अत्तसोही उजुभायो। अजव महव लाघव तुट्टी पल्हायकरणं च ॥१॥ लहुओ गुरुओ मासो लहुगा गुरुगा भवे चउम्मासा। खुड्डग भिक्खू वसभे आयरिए अदुव विवरीय ॥२॥ जदिखुत्तो जदिवेलं णिक्खमए णिक्खमित्तु वा एति। तदिसुत्तो तवेलं सवे गुरुणो समुट्ठति ॥३॥वसहीय भिन्नमासो काइयभूमीय मासियं लहुयं । चत्तारि य सुकिलया ओगाहंतस्स बहियाए॥४॥ भिक्खू वसभायरिया अजा ओवासगा य इत्थीओ। वादी राया संघो राया संघो उभयओवि (संधारओ य संघाड विभय लहु)॥५॥ लडुओ गुरुओ मासो लहुगा गुरुगा भवे चतुम्मासा । उम्मासा लहगुरुगा छेदो मूलं तह दुर्ग च ॥६॥ बंदण चिति कितिकम्मं पूयाकम्मं च विणयकम्मं च। काय करसव केण बावि काहे व कतिखुत्तो? ॥७॥ कतिओणयं० (आव० १११५)॥८॥ सेढीसमतीताणं कितिकम्मं जे य होंति सेढिगता। सेढीयबाहिराणं कितिकम्मं होति भइयचं ॥९॥ आयरियउज्झाए पवित्ति पत्ते. जयबुद्ध पुत्रधरे। केवलणाणधरम्मि य काय णिजरहाए ॥१३२०॥ सेढीठाणे सीमाकने चत्तारि बाहिरा होति । सेढीटाणे दुगभेद पाय चत्तारिवी भइया ॥१॥ पत्तेयबुद्ध जिणकBI प्पिया य सुद्धपरिहारिया अहालंदा । एते चतुरो दुगदुग भेया कजेसु बाहिरगा ॥२॥ अंतोवि होति भयणा ओमे आवषण संजती सेहे। बाहिपि होति भयणा अतिवा(वा)लग वायए सीसो ॥३॥ हेदृट्ठाणठितोऽवि हु पावयणि गणट्टिताए अवरम्मि। करजोगि सपिसेवति आदिणियंठोव सो पुज्जो ॥४॥ संकिण्णवराहपदे अणाणुतावी य होति अवराहे। उनरगुणपडिसेबी आलंचणवजिओ वजो ॥५॥ गच्छपरिरक्खणट्ठा अणागतं आउवायकुसलस्स। एसा गणाहिपतिणो सुहसीलगवेसणा भणिता॥६॥ दुविहे कितिकम्मम्मी बाउलिया मो णिसदृवृद्धीया। आदिपडिसेधियम्मी उवरिं आलोवणा बहुला ॥७॥ मुकधुराए(सं). (आव०११३८) ॥८॥ वायाए णमुक्कारो०(आव०११३९)॥९॥ एतातिं अकुर्वतो. (आव०११४०) ॥१३३०॥ परियाव महादुक्खे मुच्छामुच्छे य किच्छपाणे य। किच्छुस्सासे य तहा समोहने चेव कालगते ॥१॥ चत्तारि छच्च लहु गुरु छेदो मूलं च होति बोद्ध। अणवट्टप्पे य नहा पावति पारंचियट्ठाणं ॥२॥ परियाद परिस पुरिसं खेतं कालागमं च णाऊणं । कारणजाए जाए किइकम्मं होइ कायव्वं ॥३॥ दंसणनाणचरितं तबविणयं जत्थ जित्तियं जाणे । जिणपन्न भत्तीएं पूयए तं तहा पाय ॥४॥ सावजजोगविरइत्ति संजमो तेण होइ एगविहो। रागहोसनिरोहोत्ति तेण दुविहो मुणेयधो ॥५॥ मणवयणकायजोगाण गिरोहो तेण होति तिविहो त। कोहमयमायलोभुक्रतोति चउहा सणेयो॥६॥पंच वय इंदियाणि य पंचह सराई चिरति छकाया। वतकायअकप्पकप्पादी अट्ठारसहा मुणेयत्रो ॥७॥ जोगे करणे सण्णा इंदिय भोमादि समणधम्मे य। अट्ठारससीलंगसहस्स संजमो होइ णातव्यो । ल०८९॥८॥ कितिकम्मपि य दुविहं अम्भुट्ठाणं तहेव पंदणयं। समणेहि य समणीहि य जहक्कम होति कायचं ॥९॥ सव्याहिं संजतीहि कितिकम्मं संजताण कायव्वं । पुरुसुत्तरिओ धम्मो सव्वजिणाणपि तिथम्मि ॥ ल० ९० ॥१३४०॥ पंचजामो य धम्मो पुरिमम्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं चातुजामो भये धम्मो ॥१॥ पुरिमाण दुब्बिसोझो चरिमाणं दुरणुपालओ कप्पो। मज्झिमगाण जिणाणं सुविसोझो सुरणपालो य ॥२॥ पुर्व तु उवट्ठविओ जस्सप सामाइतं कर्त पुर्व । सो होती जेट्ठो खलु जो पच्छा सो कणिट्ठो तु॥३॥ पुत्रोबट्ठो जेट्ठो होइत्ती इत्थ होति पुच्छा उ । उवठावणा तु कतिहिं ठाणेहिं? इमा भवे दसहा ।ल०९१॥४॥ ततो पारंचिता वुत्ता, अणवट्ठप्पा तु तिणि तु। दसणम्मि य बंतम्मि, चरित्तम्मि य केवले ॥ल०९२॥५॥ अदुवा चियत्तकिच्चे, जीवकार्य समारभे। सेहे य दसमे वुत्ते, जस्सुवट्ठावणा भणिता ॥ ल० ९३ ॥ ६॥ अहवा पारंचेको अणवटुप्पो य होति एको य। दसणवंतो ततिओ चरिते य चतुस्थओल०९४॥ ७॥ पंचमो १०९०पत्रकल्पभाप्पं - मुनि दीपरनसागर Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -चियत्तकियो सेहो उट्टो य होति पोदयो। एसो य छविहो खल चउविहो वा इमो अण्णो ॥ल०९५॥८॥दसणम्मि य यंतम्मि, चरिनम्मि य केयन्ले । चियत्तकिचे सेहे य. उबट्टप्पा तु आहिया ॥९॥ दंसणचरिनयंते पारंचऽणवट्टओवि परिसंति। ने जेण भवंती उ एवंएसा भवे चउरो ॥१३५०॥ सणवते य नहा जीवणिकाया य जो समारभए। उट्टावणाएँ भयणा एतेसि होनि दोण्हपि ॥१॥ अणाभोएण मिच्छतं, सम्मत्तं पुणरागने । तमेव तस्स पच्छित्तं, सम्म (संजम) पडिवजए ॥२॥ आभोगेण उ मिच्छतं. संमनं पुणरागते। जिणथेराण आणाए, मूलच्छेनं तुकारए॥३॥ उण्हं जीवणिकायाणं, अप्पज्झो तु विराहतो। तिबिहेण पडिकते, मूलच्छेनं तु कारए ॥४॥ उण्हं जीवणिकायाणं, अणपज्झो तु चिराहतो। आलोइयपडिकतो. सुद्धो हबति संजतो ॥५॥ जीवणिकायारंभे दंसणवते य भणिय पच्छित्तं । तं देय सुत्तविहिणा अण्णह देते इमे दोसा ॥ ६॥ अपच्छिने य पच्छिनं. पच्छित्ते अतिमत्तया। धम्मस्सासायणा तिवा, मग्गस्स य चिराहणा ॥ ७॥ उस्सुतं ववहरंतो, कम्मं बंधति चिकणं। संसारं च परदेति, मोहणिजं च कुवति ॥८॥ उम्मग्गदेसणाए, मग विष्पडिवायए। पर मोहेण रंजंतो, महामोहं पकुवति॥९॥सपडिकमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिमयाण जिणाणं कारणजाए पडिकमणं ॥१३६०॥ दुविहो य मासकप्पो जिणकप्पो चेव थपिरकप्पो या एकेकोऽविय दविहो अहितकप्पो य ठियकप्पो॥१॥ पजोसवणाकप्पो होति ठितो अहिओ य थेराणं। एमेव जिणाणपी कप्पो ठितम. ट्टितो होति ॥२॥चातुम्मासुकोसो सत्तरि राईतिया जहण्णेणं । ठितमट्टितमेगतरे कारणवञ्चा(ना)सितऽण्णतरे ॥३॥ ठियमट्टितो य कप्पो एसो मे (मे) वणिओ समासेणं । अह एत्तो जिणकप्पं वोच्छामि अहाणपवीए ॥४॥ गच्छम्मि य णिम्माया थेरा जे मुणितसवपरमत्या। अग्गह अभिग्गहे या उति जिणकप्पियविहारं ॥.:.८८॥५॥णवपुचि जहन्नेणं उक्कोसेणं तु दस असंपुषणा। चोहसपुती तित्थं तेण तु जिणकप्प ण पबजे ॥६॥ वयरोसभसंघयणा सुत्तस्सऽत्थो तु होति परमत्थो। संसारसभावो वा णाओ तो मुणितपरमत्यो॥७॥ दोहा । पडिमाऽभिग्गहण भत्तपाणस्स। दाहिनु उवारमाहि गिण्हत वत्थपाताइ॥८॥ दवादभिरगहा पुण रयणावलिमादिगाववाद्धया। एतसु विदितभावा उवाति जिणकपियविहारं ॥५॥ परिणाम जोगसोही उबहिविवेगो य गणविवेगो य (यणिक्खेवो)। सेजासंधारविसोहणं च विगतीविवेग च॥. । य गणविवेगो य (यणिक्खेवो)। सेज्जासंथारविसोहणं च विगतीविवेगं च ॥..८९॥१३७०॥ गणहरठवणं च तहा अणुसट्टी चेच हय सांसाण। सामायारी यतहा वत्तवा होति जिणकप्पे ॥..९० ॥१॥ अणपालिओ यदीहो परियाओ वायणावि मे दिजा। अग्भजयाण दोण्हं उबेमि कतरंण परिणामो सोहिणिमिन जोगाण भावणा सा इमा तु पंचविहा । तव सत्न सुतेगत्ते वले य तह पंचमा होति ॥३॥ एतेसिं तु विभासा उवरि भणिहिति मासकप्पम्मि। सेसाई दाराई वोच्छामि समासतो इणमो ॥४॥ पुबुबहिस्स विवेगं कातुं गेण्हति अहागई उवहिं । अभिगहियमेसणाहिं उप्पादेउं सयं चेव ॥५॥ गणसण्णास करेती जो जहिं ठाणहितो तु पुवम्मि। तं तत्थेव ठवेनी गणणिक्खेवं च इत्तरियं ॥ ६॥ सेजाएं अपरिभुत्ने ठायति तहियं तु एगदेसम्मि। संथारं उप्पादे अहाकई एसणविसुद्धं ॥ ७॥ विगतीओ य ण गेण्हति गेण्हति भत्तं च सो अन्वाई। इय भाविओं हु जाहे ताहे ठवती गणहरं तु ॥८॥ गणहर गुणसंपन वामे पासम्मि ठावइनाण। चुनातिं छुहति सीसे सचित्तादी य अणुजाणे ॥९॥ठावेऊण गणहरं आमं. नेऊण नो गणं सत्रं । निविहेण खमावेती सचालपुढ उलं गच्छं ॥१३८०॥ संवेगजणियहासा सुत्तत्यविसारता पवणुकम्मा चितेति गणं धीरा णिताविहु ने जिणाणाए॥१॥ णिद्धमहरानि सेसं परन्लोगहितं गुरूण अणुरूवं। अणुसहि देति नहिं गणाहिबनिणो गणस्सेवं ॥२॥ नवणियमसंपउत्ता आवस्सगझाणजोगमाहीणा। संजोगविप्पजोगे अभिग्गहा जे समन्थाणं ॥३॥ मुप्पने णिसिरंतेहिं गणोची चिंतिओ हवति सो उ । णिदाए दिट्ठीए आन्दोए नं गणं सर्व ॥४॥ वायाए महुराए आसासे अपरिसेस णिस्सेसं । गुरु अणुरूव जहरिहं सचालवुढानि रानिणिए ॥५॥तयों होनि पारसविहो दुह णियमो इंदिओ य णोइंदी। आवाससमायारी चोदवा चकवाला तु ॥६॥ सुनत्थझाणजोगे आडीणा नेमु होइ जुत्ता उ। सोविय संजोगा णियमा ऊ विपओगता ॥ ७॥ तह उवहीउपायण दवादीया अभिग्गहा जे तु। सनि सामन्ये नेमुवि मा हुपमायं करेजाऽणु ॥८॥ अथवा अभिम्गहा ऊ कुवंति जिणा यजे समस्या य। एवं सासिनु गणं नाहे गणहारि अप्पाहे ॥ ९॥ गणसंगद्वग्गहरक्खणे तुमं मा हु काहिसि पमादं। ठितकप्पो हु जिगाणं गणघरपरिवारिया गच्छे ॥१३९०॥ मज्ञाररसियसरिसोचमं नुम मा काहिसि विहारं। मा णासेहिसि दोष्णिवि अप्पाणं चैव गच्छं च ॥१॥ बढ़तओ विहारो जिणपण्णनो दुवालसंगम्मि । जह जिगकप्पियपरिहा. रियाण सेसाणवि नहेव ॥२॥ परिबमाणसइढो जह जिणकप्पो नहा करिनासी। अकरितमप्पणा ऊण ठवे अण्णं इमं गाउं ॥३॥ जो सगिहनु पन्टिनं अलसो तु ण विज्झवे पमाएणं । सो णवि सदहियच्चो परपस्दाहप्पसमणम्मि ॥४॥णाणं अहिजिऊणं जिणवयणं दंसंणेण रोएना। ण चएति जो घरेनुं अप्पाण गणं ण गणहारी ॥५॥णार्ण अहिजिऊर्ण जिणवयणं दंसणेण रोएना। चाएति जो धरेतुं अप्पाण गणं स गणहारी॥६॥णाणं अभिज्झिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएना। न चएनि जो ठवेडं अप्पाण गणं न गणहारी॥3॥ १०९१पञ्जकल्पमाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याणाणं अभिझिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता।थाएति जो ठबेर्ड अप्पाण गणं सो गणहारी॥८॥णाणम्मि दसणम्मि य तवे चरिने य समणसारम्मि। ण चएइ जो ठयेउं अप्पाण || गणं न गणहारी ॥५॥णाणम्मि दंसणम्मि य तये चरिने य समणसारम्मि। चाएति जो ठवेउं अप्पाण गणं स गणहारी ॥१४०० ।। एसा गणहरमेरा आयारत्याण पपिणना सुने। लोगमुहाणुगताण अपच्छंदा जहिच्छाए ॥१॥ लाहसुयसहनिहादि विसय तेसि तु जे भये रत्ना। अप्पच्छंदाने ऊ विहारों ण तु नेसणुण्णाओ॥२॥ उगम उपायणएसणा उचस्तिम्स रक्खणट्ठाए। पिडं उवहि सेज सोहितो होति सचरिती ॥३॥ सीताचेति विहारं सुहसीलत्तेण जो अचुडीओ। सो नवरि लिंगसारो संजमसारम्मि णिम्सारो॥४॥ तिन्थगरो चतुणाणी सरमहिनो सिज्झियत्रयधुवम्मि। अणिगृहियबलविरिओ नयोवहाणम्मि उजमति ॥५॥ किं पुण अबसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिएहिं । होनि ण उज्जमियर सपनवायम्मि माणुस्से ? ॥ ६ ॥ संखित्ताविव पबहे जह बड्दति वित्थरेण पवहंती। उदधितेणं च णदी तह सीलगुणेहि वड्दाहि ॥ ७॥ कुणमप्पमाय आवस्सएहिं संजमतयोवहाणेहि। णिस्सारं माणुस्सं दाइभलाभं वियाणिना ।। ल० ९६॥८॥ तिवकसायपरिणता परपरिवादं च मा करेजाह। अचासायणविरता होह सदा संजमरता य॥ल.९७॥९॥ सुस्सूसगा गुरुणं चेइ यभत्ता य विणयजुत्ता य। सज्झाए आउत्ता साहूण य वच्छन्न णिचं ॥ल०९८॥१४१०॥ एस अखंडियसीलो बहुस्सुतो य अपरोक्तावी य। चरणगुणमुट्टियत्ति य घण्णो (ग्ण) Aणयरीते(ति)घोसणगं ॥१॥ चादति भाणिऊणं एयं णे मंगलंति जंपता। आर्णदअंसुपाद मुचंति गुणे सरता से॥२॥ कतरे गुणा उनम्सा जे सुमरंता नु तस्स ने सीसा?। भण्णनि इणमो मुणसू ते भण्णं ते समासेणं ॥३॥ सवस्सदायगाणं समसुहदुक्खाण णिप्पकंपाणं। दुक्खं खु चिसहिडं जे चिरपवासो गुरुणं च ॥र. ९९॥४॥ सीलइडगुणड्डेहि य बहुम्सुएहि य अपरोक्ताबीहिं । पवसंतेहिं मएहि देसा ते खंडिया होति।ल०१००॥५॥ अणुसद्धिं दाऊणं तहिं पसम्मि तिहिमुहूत्तम्मि । अह सण्णिहिनं संघ असति गणं तं समाहृय॥६॥ जिणवरपादसमी पडिबजे गणधराण व समीचे। चोइसपुष्पी तह चेइए य असतीय बड़मादी ॥७॥ धामाव(वासावि)हारविजढा काउं गहणं च गाहणं चेव । सुत्नत्थझरियसारा गेहंनि अभिग्गहे धीरा ॥८॥ जिणकप्पियपाउम्गा अभिग्गहा गिण्हती ण अन्ना उ। जिणकप्पो केरिसस्सा कप्पति पडिवजिउं? सुणसु ॥ ९॥ कप्पे सुत्नत्यविसारयस्स संघयणविरियजुनस्स। एतारिसस्स कप्पति पडिवजिउ होति जिणकप्पो ॥१४२०॥ जिणकप्पे संघयणं भणितं पढमं तु होति णियमेण। विरियं तु भण्णति धिनी तीएं जुतो वजकुइडसमो॥१॥ कोनि पुण ण पडिबजे सो पुण णियमाउ कारणेहिं तु । काणि पुण कारणाणि य? इमाई ताई णिसामेह ॥२॥ देहस्स दुचलतं आयरियाणं च दुभपसादा। रोग पडिबंध न सहति सीउण्हादी चपडिभागी॥..९१॥३॥ मुत्तस्थाणिवि घेत्तुं दुबलदेहो तुने ण चाएति। गुरुर्ण च अणणुकूलत्तणेण णाराहिओ सूरी ॥४॥ आयरिया अपसण्णा मुत्तपसायं नु ने ण कुवंति। णाहीनं तेण सुतं जावइएण तु पजत्तो ॥५॥ सोलसविहरोगाणं अहवा गाई अभिदुएणं तु। णाधीतं होज सुतं ते य इमे पण्णिता रोगा॥ ६॥ कासे सासे जरे दाहे. जोणीसले भगंदले। अ. रिसा अजीरए दिट्ठी, मुद्धसूले अकारए॥७॥ अच्छिवेयण तह कण्णवेयणा कंडु कोढ दगऊरं(सरए)। एते ते सोलसवी समासनो वषिणता रोगा॥८॥ अण्णो पडिबंधेर्ण गुरुकुलयासं ण चेव आवसई। तेणं णाहिजति ऊ के पुण पडिचंधिमे सुणसु ॥९॥ सो गामो सा वइया तं भत्तं भदओ जणो जत्था एनाई संभरंतो गुरुकुलवासं ण रोएनि॥१४३०॥ सकारो संमाणो पूजा मे भोइओ नहिं गामे। आयरिओ महतरओ एरिसता से(मे)तहिं सड्ढा ॥१॥ सच्छंदुट्टाणणिवजणस्स सम्छंदगहितभिफ्सस्सा सच्छंदजंपियस्स य मा मे सविएगागील ११॥२॥ एएहि उ. अभागी सीताईणं ण देति उ उरंतु। तो णाहिजति सो ऊ गुरुकुलवासं असेवंतो॥३॥ एनेहि ण पडिबजे अणुसट्ठी दारिच परिसमनं। का पुण सामायारी जिणयप्पे होतिमा सातु ॥४॥ खेते काल चरिते तिस्थे परियाग आगमे वेदे । कप्पे लिंगे लेस्सा गणणा झाणे यऽभिम्गाहे॥५॥ पथ्यावण मुंडावण मणसाऽऽवष्णेऽवि से अणुग्घाना। कारण णिप्पडिकम्मे भत्तं पंथो य ततियाए॥६॥ एसो जिणकप्पो खलु समासतो पण्णितो सविभवेणं । एनो उ थेरकप्पं समासओ मे णिसामेहि ॥ ७॥ विविहम्मि संजमम्मि उ बांदो होति धेरकप्पो तु। सामइयछेदपरिहारिए य तिविहम्मि एयम्मिाठिय अहिए व कप्पे सामाइयसंजमो(ओ)मुणेयो। छेदपरिहारिया पुण णियमाओ होति ठितकप्पे ॥५॥ एतेमु धेरकप्पो जह जिणकप्पीण अग्गहो दोसु । गहणं चऽभिग्गहाणं पंचहि दोहिं च ण तह इहं ॥१४४० ॥ चाले बुझ्ढे सेहे अगीतत्थेणाणदंसणप्पेही। दुबलसंधयणम्मि य गच्छं प्राइसणाभणिता ॥१॥ जहसंभवं तु सेसा खेत्तादि विभासियव दारा उ । उवरिं तु मासकप्पो वित्थरता विभासते तेसिं ॥२॥ इति एस थेरकप्पो एनो योच्छामि लिंगकप्पं तु। नहित्य तु लिंगकप्पो इणमो जिणकप्पे भवती तु ॥३॥ रुढनहकक्खण(णि)यणो मुंडो दुविहोवही जहण्णो सिं। एसो तु लिंगकप्पो णिवाचातेण णायव्यो हास्यहरणं मुहपोनी संखेवेण तु विह उपही उ। पापातो चिकितलिंगे अरिस पमेहे उ कडिपट्टो ।।५।। दुविहा अतिसेसाविय तेसि इमे पण्णिता समासेणं । बाहिरऽभंतरगा नेसि विसेस पपक्खामि ॥ ६॥ वाहिस्गो सरीरस्सा अतिसेसो तेसिमो उ बोदडो। अच्छिद्दपाणिपातो वइरोसभसंघयणधारी॥७॥ अभंतरमतिसेसो इमो उ नेसिं समासतो भणिओ। उयहीविच अक्खोभो (२७३) मुनि दीपरत्नसागर १०९२ पत्रकल्पभाप्यं - Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TALKS24489 सूरो इव तेयसा जुत्तो।।८।अवावणसरीरो वइगंधो ण भवते सरीरस्स । खतमवि ण कुच्छ(कच्छ)तेसिं परिकम्मं णवि य कुवंति ॥९॥पाणिपडिग्गहधारी एरिसया णियमसो मुणेयवा। अतिसेसे बुच्छामि अण्णेऽवि समासतो तेसि ॥१४५०॥ दुविह अतिसेस तेसि णाणातिसयो तहेव सारीरो। णाणातिसतो ओही मणपज्जव तदुभयं चेव ॥१॥ आभिणिचोहियणाणं सुतणाणं चेव णाणमतिसेसो। निवली अभिण्णवच्चा एसो सारीरमइसेसो ॥२॥स्यहरणं मुहपोत्नी जहणोवहि पाणिपत्तयस्सेसो । उक्कोस तिन्नि कप्पा रयहर मुहपोनि पणगेतं ॥३॥ णवहा पडिग्गहीणं जहष्णमुक्कोस होति चारसहा। नेसिऽवेयाणि चिय अइरेगो पायनिजोगो॥४॥ उबट्टणघंसणमजणा य नहनयणदंतसोभा य। एते उवघाया खलु हवनि जिणकप्पलिंगस्स ॥५॥ उबट्टणाइयाई उवगरणं चेव धेरकप्पीणं । भइयत्वों लिंगकप्पो गेलबाईहिं कजेहिं ॥६॥ कजम्मि गिलाणाइसु उबट्टणमाइया अणुनाया। दुगुणो चउम्गुणो या कारणओ होइ उवही उ ॥ल०१०२॥७॥ रूढणहकक्खणि(ण)यणो मुंडो दुबिहोवही समासेणं । एसो तु लिंगकप्पो कारणवच्चासि तऽण्णयरो।टालोय खुर कत्तरीय मुंडं तिविहं तु होइ थेराणं। असिवादिकारणेहिं कज विवजास लिंगस्स ॥९॥ निरुवहयलिंगभेदे गुरुगा कप्पइ य कारणजाते। गेलनरोगलोए सरीखेयावडियमादी ॥१४६०॥ वासनाणेणावि ह भेदो लिंगस्स नं अणुण्णानं। चाउम्मासुकोसं सनरि राईदिय जहन्नं ॥१॥ एयं तु दवलिंग भावे समणत्नणं तु णाय । को उगुणो दवलिंगे? भण्णति इणमो सुणसु बोच्छं ॥२॥ सकार वंदण णमंस पूजा कणा य लिंगकप्पम्मि। पनेयबुद्धमादी लिंगे छउमत्थ तो गहणं ॥.:.९२२॥३॥ वत्थासण सकारो वंदण अब्भुट्टणं तु णायचं । पणिवादो तु णमंसण संतगुणकिनणा पूया ॥४॥ लंग कुवतेताणि इंदमादीवि। लिंगंमि अविजते णो णज्जति एस विरतोनिल १०३॥५॥ सहितो समणलिंगेणं, धम्मन्न संम(ज)तो भये । अलिंगं वेति न कीस, जाणतो ण | करे तुमं? ॥६॥ पत्तेयबुद्दो जाव उ गिहिलिंगी अहव अण्णलिंगी उ । देवावि ताण पूनि मा पुजं होहिति कुलिंगं॥७॥ण य णं पुच्छति कोती केरिसओ होइ तुम्भ धम्मोति?। ण य सडिंगविहूर्ण उउमत्थो जाणे विरोति ॥८॥ एसो तु लिंगकप्पो अहुणा वोरछामि उबहिकप्पं तु । जो जस्स भवे उवही जिणथेराणं जहाकमसो॥९॥ ओहे उवग्गहे या दुविहोश उबही नु होति णायत्रो । ओहोवही तु तिण्हं ओवग्गहिओ भवे दोण्हं ॥१४७०॥ जिणकप्पे थेरकप्पे कप्पातीते य तिण्हमोघो तु। राणमुबग्गहिओ साहूर्ण संजतीणं च ॥१॥ वारस चोइस पणुवीस णव य एको य णिरुवही चेय। जिणधेरअजपत्तेयचुदतित्थकरतित्थकरे ॥२॥ पाणीपडिग्गहीता पडिगहधारी य होति जिणकप्पे । थेरा पडिग्गधरा कप्पादीया उ भजियवा ॥३॥ चियनियचउकपणए णव दस एकारसेव वारसगं । एते अट्ट विकप्पा उवहिम्मिवि होति जिणकप्पे॥४॥ अहवा दुगं च पणगं उबहिम्स उ होंनि दोनिवि बिकप्पा। पाणिपडिग्गहियार्ण अपाउयसपाउयाणं च ॥५॥रयहरणं मुहपोत्ती एवं दुयर्ग अपाउयंगाणं । स्यहरणं मुहपोती तिन्नि य पच्छाद इतरेसिं ॥ ६॥ उग्गहधारीणंपिय दुविहो उवही समासओ होति। णवविह दुवालसविहो अपाउयसपाउयाणं च ॥७॥ पत्तं पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया। पहलाई रयत्नाणं च गोच्छओ पायणिजोगो ॥८॥रयहरणं मुहपोती अपाउयगाण। इयरांस एसव य अतिरगा तिमि पच्छागा॥९॥ एतं चंय दुवालस मत्तउ अतिरेग चोलपट्टोय। एसो य चोहसविहो उबही खर धेरकप्पम्मि ॥१४८०।। अजाणं एसेव य चोलत्याणम्मि णवरि कमढं तु । अतिरेग अंगलम्गा इमे उ अन्ने मुणेयवा ॥१॥ उग्गह गंतग पट्टो अड्ढोरुग चलणिया य बोद्धधा। अभिंतर वाहिनियंसणी य तह कंचुए चेव ॥२। उक्कचिठय वेकच्छिय संघाडी चेव खंधकरणी य। ओहोवहिम्मि एते अजाणं पण्णवीसं तु ॥३॥ सत्त य पडिग्गहम्मी रयहरणं चेव होति मुहपोनी। एसो तु णवविकप्पो उबही पत्तेयबुद्धाणं ॥४॥ एगो तित्थगराणं णिक्खममाणाण होइ उवही उ। तेण परं णिरुवहि ऊ जावजीवाए तित्थगरा ॥ल०१०४॥५॥ जिणा वारसरुवाई. थेरा चोइसरुविणो। अजाणं पण्णवीसं तु, अतो उड्ढं उवग्गहो ॥६॥ एसो उवहीकप्पो समासओ बनिओ जहाकमसो। संभोगकप्पमहणा समासतो मे णिसामेह ॥ ७॥ संभोगपरुवणया सिरिघर सिव(न)पाहुडे य संभुत्ते। दंसणनाणचरित्ते तबहेडं उत्तरगुणेसु ॥..९३॥८॥ ओह अभिग्गहदाणग्गहणे अणुपालणा य उववाए। संवासम्मि य छट्टो संभोगविही मुणेयवो ॥५॥ उवही मुय भनपाणे, अंजलीपरगहे इय। दावणा य निकाए य, अब्भुट्टाणेत्तियावरे ॥.:.९४॥१४९०॥किड़कम्मरस य करणे. वेयावच्चकरणे इय । समोसरण सण्णिसेजा, कहाए य पबंधणा ॥.:.९५॥१॥ उम्गम उप्पाएसण निवेय परिकम्मणा य परिहरणा । संजोगबिहिविभत्ता उबहिम्मिवि होति उट्ठाणा ॥२॥ वायण पुच्छण पडिपुच्छ चिन परियट्टणा य कहणा य। संजोगविहिविभत्ता सुयठाणे होति छट्ठाणा ॥३॥ उग्गमउप्पाएसण लोयण संभुंजणा णिसिरणा य । संजोगविहिविभत्ता य भनदाणे य छट्ठाणा ॥४॥ बंदिय पणमिय अंजलि गुरुआलोवे अभिग्गहि णिसेजा। संजोगविहिविभत्ता अंजलिकम्मेवि छट्ठाणा ॥५॥ सेजोवहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए । संजोगविहिविभत्ता दावणाएवि छट्ठाणा ॥६॥ सेजोवहि आहारे सीसगणाणुप्पयाण सज्झाए । संजोगविहिविभत्ता निमंतणाएवि छट्ठाणा ॥ ७॥ अन्भुट्ठासण अंजलि किंकर अभासकरणमविभनी । संजोगविहि। १०९३पञ्चकम्पभार्ग्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभत्ता अच्भुट्टावि छट्टाणा ॥ ८ ॥ सुत्तायाम सिरो णय मुद्धाणं सुत्तवज्जियं चैव। संजोगविहिविभत्ता कितिकम्मे होंति छट्टाणा ॥ ९ ॥ आहारउवहिमत्तग अहिगरणविओसणा य सु(य) सहाए। संजोगविहिविभत्ता बेयावच्चेऽवि छट्टाणा ॥ १५००॥ वास उडु अहालंदे पुहुत्तसाहारणोग्गहित्तिरिए। वुड्ढावासोसरणे छट्टाणा होति पविभत्ता ॥ १ ॥ परियहणाऽणुओगे चागरणे परिच्छणा य आ (पुच्छ परिच्छणा) लोए। संजोगविहिविभत्ता सन्निसेजाए छट्टाणा ॥ २ ॥ वादो जप्प वितंडा पइष्णियाऽणिच्छिया कहा होति । संजोगविहिविभत्ता कहापबंधेऽवि छट्टाणा ॥ ३ ॥ रागेणं दोसेणं अन्नाणाविरईय मिच्छत्ते । कोमामालोआसवदारेहिं तु राइउडेहिं ॥ ४ ॥ अविरयस्स बावत्तरिविहो. एसा वावत्तरी दोहिं गुणिया रागदोसेहिं चोयालं सयं अण्णाणातीहिं २१६ कोहादीहि २८८ आसवदारेहिं ३६० राइमोयणउडेहिं ४३२ । 'बारस य चउडीसा छत्तीसा अडयालमेव सट्टी य बाबत्तरी उ एसो संजोगविही मुणेयव्वो ॥ ५॥ बारस य चउडीसा छत्तीसऽडयालमेव सट्टी य बावन्तरी त्रिगुणिया चोयालसयं तु संजोगा ॥ ६ ॥ चारसय चउडीसा छत्तीसऽडयाल चेव सट्टी य बावन्तरि उग्गुणिया चनारि सया उ बन्नीसा ॥ ७ ॥ जस्सेने संजोगा उबलदा अस्थतो य विष्णाया। सो जाणती विसोहिं उवघायं चैव संभोगे ॥ ८ ॥ जस्सेते संजोगा उवलद्वा अत्थतो य विनाता। णिजूहिउं समन्यो णिज्जूढे यात्रि परिहरिउं ॥ ९ ॥ सरिकप्पे सरिछंदे तुछचरिने विसितरए वा आयत्ति भत्तप्पाणं सएण लाभेण वा तुस्से ॥ १५१०॥ सरिकप्पे सरिच्छंदे तु चरिते विसितरए वा । साहहिं संभव कुज णाणीहिं चरित्तगुत्तेहिं ॥ १ ॥ ठितकप्पम्मि दसविहे ठेवणाकप्पे य दुविहह्मण्णयरे। उत्तरगुणकप्पम्मिय जो सरिकप्पो स संभोगो ॥ २ ॥ सत्नविहकप्प एसो समासओ वण्णिओ सविभवेणं एतो दस बिहकप्पं समासओ मे निसामेह ॥ ३ ॥ कप्प पकप्प विकप्पे संकप्पवकप्प तह य अणुकप्पे उकप्पे य अकप्पे तहा दुकप्पे कप्पे य ॥ ९६ ॥ ४ ॥ गच्छाओं निम्गयाणं जिणकप्पियमादियाण कप्पो उ। तं च समासेण अहं उलिंगेहामि इणमो उ ॥५॥ पिंडेसण पाणेसण उग्गह उद्दिट्ट भावणा चैव। बारस य भिक्खुपडिमा एवमादी भवे कप्पो ॥ ९७६ ॥ पिंडेसण पाणेसण पंचुवरिमया सभिग्गहेगा य। सेसासु य अग्गहणं सेज्जोग्गह उवरिमा दोसु ॥ ७ ॥ उद्दिट्टित्ती हेडा जिणकप्पविही उ जो समक्खाओ। खेत्ते कालचरिते इच्चाइ तहेव इहइंपि ॥ ८ ॥ पणुवीस भावणाओ महवयाणं तु हाँति पंचन्हं बारस अणिच्चयादी तवसुत्तादी य पंचेव ॥ ९ ॥ एयाहिं भावणाहिं भावंती ते उ निश्चमपाणं । सोऽवि गच्छनिग्गय वेरग्गपरायणा धीरा ॥ १५२०॥ बारस भिक्खुपडिमा आदिग्गहणेण लंदिया चैव तह सुद्धपारिहारी सवोऽवेसो भवे कप्पो ॥ १ ॥ निच्छय निरास निम्मम निरहंकार परमट्ट दढजोगी । चत्तसरीरकसायो इंदियगामा य निग्गहिया ॥ ९९८ ॥ २ ॥ जं चण्ण एवमादी सव्वणयविहाणमागमविसुद्धं । कप्पोत्ति नाणदंसणचरित्तगुणमावहं जाणे ॥ ९९ ॥३॥ निच्छ्रयमतिणो णिच्छयणयडिया उडिता तु वबहारे। अहह्वावि णिच्छओ तू णाणादीयं भवे तितयं ॥ ४ ॥ णासंसद इहलोयं परलोयं वावि एस उ निरासो। निम्ममता तु ममत्तं ण करती अविय देहेऽवि ॥ ५ ॥ ण करेइ अहंकारं एरिसओ अहंति उत्तमगुणोघो। णिवाणं परमट्टो तस्साहणता उ दढजोगी ॥ ६ ॥ णिप्पडिकम्मसरीरो चतसरीरो उ होइ णायो। णऽचणेतऽच्छिमलादिवि खंतिखमो उज्झियकसातो ॥ ७ ॥ सोइंदियमादीसु य विसयपयारेसु सद्दमादीसु। ण उवेइ रागदोसे इंदियगामा य निग्गहिया ॥ ८ ॥ सङ्घणयावी दुविहा नाणे करणे य हाँति चोदवा । सवणयाणंऽपेयं मतं तु जं (जो ) सुट्टितो चरणे ॥ ९ ॥ कप्पो णामं भण्णति जो आवहती उ नाणमादीणि वुढि बावि करती सवो सो होइ कप्पो उ ।। १५३०॥ कप्पो उ एस मणिओ अडणा एत्तो पकप्ण वोच्छामि। उस्सारकप्पमादी जहकमं आणुपुत्रीए ॥ १ ॥ उस्सारकप्प लोगाणुओग पढमाणुओग संगहणी संभोग सिंगणाइय एवमादी पकप्पो उ ॥ १०० ॥ २ ॥ आयारदिट्टिवादन्थजाणए पुरिसकारणविहष्णू । संविग्गम परितंते अरिहति उस्सारणं काउं॥ ३ ॥ कारणे- अभिग्गते पडिबद्धे, संविग्गे य सलद्धिए। अवट्टिए य पडिबुज्झी, गुरुअमुई जोगकारए ॥ ४ ॥ गच्छो य अलद्धीओ ओमाणं चेव अणहियासो य। गिहिणो य मंदधम्मा सुद्धं च गवेसए उवहिं ॥ ५ ॥ एएहिं कारणेहिं उस्सारायारिहो उ बोद्धवो । उस्सारो दिट्टिवादे धम्मका गंडियनिमित्तं ॥ ६ ॥ उस्सारकप्प एसो समासओ वण्णिओ मए एवं लोगाणुओगमित्तो वोच्छामि अहं समासेणं ॥ ७ ॥ मेहावी सीसम्मी ओहमिए कालगज थेराणं । सज्झतिएण अह सो खिसंतेणं इमं भणिओ ॥ ८ ॥ अनिवहुतं तेऽधीतं ण य णातो तारिंसो मुहत्तो उ। जन्थ थिरो" होइ सेहो निक्खतो अहो हु बोदव (नं)॥ ९ ॥ तो एव समच्छं भणिओ अह गंतु सो पतिद्वाणं आजीवितगासम्मी सिक्खति ताहे निमित्तत्थं ॥। १५४० ॥ अह तम्मि अहीयम्मी बडहेड निविट्ट अन्नय कया (कण्णया का ) ति । सालाहणो गरिदो पुच्छतिमा तिष्णि पुच्छाओ ॥ १ ॥ पसलिंडि पढमयाए बितिय समुद्दे व केत्तियं उदयं ? ततियाए पृच्छाए महुरा य पंडिज व ण वत्ति १ ॥ २ ॥ पढमाए बामकडगं देइ तहिं सयसहस्समुद्धं तु। चितियाए कुंडलं तू ततियाएँवि कुंडलं चितियं ॥ ३ ॥ आजीविता उवट्टित गुरुदक्खिण्णं तु एय अम्हंति । तेहिं तयं तु गहिनं इयरोचित कालक तु ॥ ४ ॥ णट्टम्मि उ सुत्तम्मी अत्थम्मि अणट्टे ताहे सो कुणइ । लोगणुजोगं च तहा पढमणुओगं च दोऽवेए ॥ ५ ॥ बहुहा निमित्त तहियं पढमणुओगे य होंति चरियाई । जिणच - १०९४ पञ्चकल्पभाष्यं 1 I मुनि दीपरत्नसागर Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसाराणं पुचभवाई निबद्धाई ॥ ६ ॥ ते काऊणं तो सो पाडलिपुत्ते उबट्टितो संघ बेइ कतं मे किंची अणुग्गहद्वाय तं सुणह ॥ ७ ॥ तो संघेण निसंतं सोऊण य से पडिच्छितं तं तु । तो तं पतितं तू णगरम्मी कुसुमणामम्मि ॥ ८ ॥ एमादीणं करणं ग्रहणं णिज्जूहणा पकप्पो ऊ। संगहणीण य करणं अप्पाहाराण तु पकप्पो ॥१९॥ संभोगो संगहुबग्गहडता य वच्छ पीड़ बहुमाणो । साहारण कुलगणसंघठवण अणतिकमणमेव ॥ १०१ ॥ १५५० ॥ सुत्तत्थतदुमयादीहिं संगहोवग्गहो उ भत्तादी। बच्छ गुरुगिलाणे एवमादीसु जहकमसो ॥ १ ॥ एत्थ भोयणेणं पीती भवतिक्कभाणजिमितत्ति । बहुमाणंपिय कुपति सहायगतं च तेणेव ॥ २ ॥ केई अलद्धिमंता ण लभंति सलद्धिया चिय लभति । जं लद्धं सामनं संभोगमितो तु इच्छंति ॥ ३ ॥ कुलगणसंपत्थेरा मजायाओ ठवेंति हिंडता जह सकुले परिताणो (कुसलेऽय परिण्णा) णत्थी उपसंपया चैव ॥ ४ ॥ कुलगणसंघडवणा जाओ य कताओं तहिं तु येरेहिं । कुलबहुमज्जायाविव ताओ य इकमिज्जति ॥ ५ ॥ कजेसु सिंगभूतं कजं तू सिंगणाइयं होइ । तं चेतिसाहुसंजइ होजाहि सगच्छपरगच्छे ॥ ६ ॥ तं पुण होज्जाहि कतं कोइ भा संजइ जई वा मज्झेस दुवक्खरओ कहति सो पुच्छिओ आह ॥ ७॥ कीतो मे व पट्टो हार्ड वा आणिओ घरेलू वा । दारे वा से जातो अहवा सजाइ व पलावी ॥ ८ ॥ अकमिऊगं धेनुं दासाणि करेउ अहव लोभेउं वत्यासणमादीहि" तु तत्थ पमादो ण कायवो ॥ ९ ॥ गच्छस्स रक्खणट्टा चारितठिते अवस्स काय इहरा तू मज्जाता गच्छस्स उ फेडिया होइ ॥ १५६० ॥ आणाएँ जिनिंदाणं अणुकंपाए य चरणजुत्ताणं । परगच्छे य सगच्छे सङ्घपयतेण कायां ॥१॥ अणवत्थवारणट्टा उच्छ्रदितओ कुसीलेऽचि । लिंग अणुम्मुयंते जीवति बुद्धधम्मो य ॥ २ ॥ अणुसट्ठी धम्मकहापञ्चविओ जइ न मुंचती पावो। ताहे अतिसत्तीए इमाई कुज्जा उ करणाणि ॥ ३ ॥ अंतद्वाणी ओसोत्रणी य पासायकंप वेयालं । अभिओग भ संकम आवेसण वेयणकरी य ॥१०२॥४॥ अंताणं काउं हरेति ओसोवणं च काऊणं वेयालमुडबेउं भेसेति तगं अमुचतं ॥५॥ अभिओग वसीकरणं चिज्जा संकामणं च अन्नत्थ । मस्स कंपणं वा आवेसेट व भेसेति ॥ ६ ॥ साहम्मियवच्छलं कुणमाणेणं तु एव कत होइ अण्णे य गुणा उ इमे हवंति ते मे निसामेह ॥ ७ ॥ मिच्छत्ता संमत्तं सम्मदिट्ठी चरितओलंभं । चरितद्विते चिरतं मलणा य पभावणा तित्ये ॥ ८ ॥ तम्हा साहुनिमित्तं सङ्घपयत्तेण एव कायहं। अहुणा चेतिनिमित्तं जंकायचं तगं वोच्छं ॥ ९ ॥ चोदेइ चेइयाणं खेतहिरण्णे व गामगावादी । लम्ांतस्स व जइणो तिकरणसोही कहं णु भवे ? ॥। १५७० ॥ मन्नइ एत्थ विभासा जो एयाई सयं विमग्गेजा। तस्स ण होती सोही अह कोइ हरेज एयाई ॥ १ ॥ तत्य करेंत उवेहं जा सा भणिया उ तिगरणविसोही सा य ण होइ अमत्ती य तस्स तम्हा निवारेजा ॥ २ ॥ सवत्थामेण तहिं संघेणं होइ लग्गियहं तु । सचरितऽचरित्ताण तु सचेसि एय कर्ज तु ॥ ३ ॥ तत्व पुण कयादि णिवो अन्नत्थ हविज तत्थ उ वयंतो लिंगत्येहिं समयं का मज्जाता भवे तहियं ? ॥ ४ ॥ भत्ते पाणे सयणासणे य सेज्जोवहीऍ सज्झाए। वायणप डिच्छणासु य सुहसीले अत्तसंहारो ॥ ५ ॥ जहियं तु सावयादी कोइ करेनाहि संघभत्तं तु । तहियं तु न गेण्हेजा ण य बस उद्दिसेनासु ॥ ६ ॥ पाणगभत्तादीसुं ण य संघाडो ण यावि ते सुत्ते। वाहिति आसणेवि य ण जयंती एत्य उ उवेसो ॥ ७ ॥ सेनं वेदं उवहिं ण देति गेव्हंति वा ण संघाडं सज्झायंपि ण गेव्हे ण पडिच्छे चोयए वाचि ॥ ८ ॥ मोतुं राउलकजं उवएस वा मुएजऽहब एवं अन्नत्थ उदासीणो एसो खलु भ ( अ ) त्तसंथारो ॥९॥ परिवारं दिति तहिं रायकुले विन्नविंति ते चेव । जदि वा होज समत्थो मंतेजा तो सयं चैव ॥१५८० ॥ जो पुण बंधवहादिसु उद्दवणचरित्तभंसरोहे वा णिरतंत्रणो समत्थो ण करेइ तहिं विसंभोगो ॥ १ ॥ कोई वहबंधादी साहूण करेज अहव देवकुलं । पाडिज पडिमभंगं च करेजा कोइ पडणीओ ॥ २ ॥ अहवावि निमित्तं तू अकहेमाणी तु कोइ रंभिजा णिरलंबणमगिलाणो ओरसविज्जादिसु समत्यो ॥ ३ ॥ जइ नेच्छति मोदेउं तमसंभोयं करेति तो (बो) समणं । परितावणादिजं ते पावेंती तं च पावइ य ॥ ४ ॥ केवइयं पुण कालं बंधादिगताण तेसि समणाणं कायचं तु मइमता ? भन्नइ इणमो निसामेह ॥५॥ मज्जायसंपत्ते चिरमवि कायश्मप रितंतेण । मज्जायचिप्पहूणे सउवालंभं सतिं करणं ॥ ६ ॥ जदि अवराहे गहिओ भण्णति मोएम जदि पुणो ण करे। एरिसयमम्भुवगते मोदेउं पचुवालंभे ॥ ७॥ इहपरलोगं चइउं कुत्रंतेतारिसाणि जे इहई । ते पावेंतेताई परे य लोए दुहसयाई ॥ ८ ॥ एवं उबालमेत्ता मोदेउं जइ पुणो करेमाणो पेप्पेज उदासीणं हवेज ते वाहि (रि) या समणा ॥ ९ ॥ एवं तु समासेणं एस पकप्पो मए समक्खाओ। एतो उ समासेणं वोच्छामि विकप्पमडुणा उ ॥ १५९० ॥ अतिरेगं परिकम्मण तह भंदुष्पायणा य बोद्धवा । एमादि विकप्पो ऊ तस्थऽइरेगे इमं होइ ॥ १ ॥ एगेण अलेवकडं कप्पो संघाडऽलेवग पकप्पो तिप्पभिदं तु विकप्पो मत्तगभोगो यऽणट्टाए॥ १०३ ॥ २ ॥ पादेगेण अलेवं गेहे जिणकप्पिया उसो कप्पो थेराण दोषि पादा संघाडेणं च हिंडंति ॥ ३ ॥ तत्येगपडिम्गहए भत्तं लेवाडगंपि गेव्हंति । एगत्थ दवं मत्तग दोन्हंपी रित्तम पकप्पो ॥ ४ ॥ तिप्पभिति हिंडंती णिकारण मसएस वा गिव्हे। सो होइ विकप्पो ऊ तत्थ य सोही इमा होइ ॥ ५ ॥ जदि मायणमावहती तति मासा जदि दिना उ आगेती। तावइया चउमासा बितियाए रोवणा भणिया ॥ ६ ॥ समणीण तिन्ह कप्पो चउपंचन्ह भ १०९५ पञ्चकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर भक Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णिो पकप्पो उ।तेण परेण विकप्पो एत्तो उवहिं तवोच्छामि ॥७॥तिन्नि उभणिया कप्पो अतस्ता विपइणा पकप्पविही। उप्पायगकजाणं तिहाणारोवणा भणिया॥..१०४॥८॥गण. नाय पमाणेण य उवहिपमाणं दुहा मुणेयत्रं । गणणाएं जिणाणं तू एको दो तिषिण चा कप्पा ॥ ल०१०५॥९॥ दो रयणी संडासो सोत्थीओ बावि होति आयामो। रंदा दिवड्ढहत्य एय पमाणपमाणं तु ॥ ल०१०६॥१६००॥ दो खोमिओन्निएको थेराणं तिणि होति गणणाए। आयामायपमाणा दुहत्य अदं च विच्छिन्ना ल०१०७॥१॥ एसो उ भवे कापो पकप्पो 3 गिलाणए गरुणं वा। चरसन्न वाचि पाउण माणऽतिरिनं च धारेजा।ल०१०८॥२॥ कारणे पकप्पों होती विकप्पोंणिकारणे मणेयो। उपायगो पनि बतिरेगं धरेजाहि ॥३॥ गणणाएं पमाणेण व गचट्ठाए उतं पमोतृणं । जो अण्णो अतिरेगं घरेइ सोही उ तस्स इमा॥४॥ चाउम्मासुकोसो मासिय मज्झे य पंच य जहण्णे । तिवि. हम्मिवि उवहिम्मि अतिरेगारोवणा भणिया ॥५॥ अतिरेगउबहिदारं संखेवणोदितं अह इयाणिं। परिकम्मदार बोच्छं अप्परिकम्मो जिणाणुवधी॥६॥ कारणविही पकप्पो थेराणं अविहीए विकप्पो उ । परिकम्मणा उएसा भंडपाय अतो वोच्छं । आगाहग गहण गेज्मं च जहासंखेणिमे नुणाया। पुरिसे पडिमा उपही तिमि तिगा भावसुदाई।..१०५॥८॥गाहगों गीयन्थो खल परिसो णियमेण होद गायत्रो। उदिवमादियाहिं गहणं पडिमाहि भणिनं तु ॥९॥ घेत्तवो उवही खलु तिण्णित्ताऽऽहारउवहिसिजत्ति। तिषिणवि निविमुदाई उम्गममादीहिं नियमेणं ॥१६१०॥ एगेण चेव गहणं कप्पो दोहिं भवे पकप्पो उ। निप्पभितिं नु विकप्पो भने पाणे नहा उवही ॥१॥आदितिएण उ गहणं वितियट्ठाणम्मि अन्भणुण्णातं । हंदि परिरक्खणिजो सुहारको(हाकरो सबसाहूर्ण ॥..१०६॥२॥ आदिनि होनि कप्पो तिगतिगआहारउवहिसेजाओ। गहणं तु होनि तिविहं उम्गममादी तिगविमुदं ॥३॥ वितियट्ठाण पकप्पो तत्थवि तिगसुद्धमेव घेत्त। असतीय अणुण्णातं पणहाणीए असुद्धपि ॥ ल०१०९॥४॥ केण पुण कारणेणं गच्छे असुदंपि उम्गमादीहि । घेपनि? भण्णनि सुणम् कारणमिणमो समासेणं ॥९०११०॥५॥ रयणाकरोत्र जम्हा उ आगरो होइ सबसुक्खाणं । नाणादीण य पभवो ततो य मोक्खो य तो रक्खे ॥ ल०१११॥६॥ आइमता महाणो कालो विसमो सपक्खओ दो दुभिक्खमादी)सो। आदिनिगभंगगेणं गहणं भणितं पकप्पम्मि॥..१०७॥ ल०११२॥ ७॥ नियनि(छ)कंतपमाणे अणुवासो पेव कारणनिमितं । परिकम्मण परिहरणे उवही अतिरिनगपमाणो ॥८॥ गच्छो सचालवुड्ढो गिलाणसेहादिएहिं आनिण्णो। एसो व महाणो तु नस्स तु दुलभं निगविसुद्धं ॥९॥ कालो विसमो दुरिभक्खमादि दोसा सपक्खओ उ इमे। पासस्थादी बहवे ओमाणतो तओ होति ॥१६२०॥ अहव असंविम्गावी जह महुराकोट्टइल्डगा केई। मायाए उग्गमती सदढा अविकोवि नवि जाणे ॥१॥ एएहिं कारणेहिं II अलभते आइतिगभंगगहणं तु। आदितिगमम्ममादी भंगा तु भंसणा होनि ॥२॥ कारणता तिविहपी माणं तु अतिकमज उ कदादि। कि पुण तिवह माण? म ॥३॥ हवति पमाणपमाणं खेत्तपमाणं च कालमाणं च । एतं तिविह पमाणं अतिक्कमो नेसिमो होति ॥ ४॥ अनिरेग पमाणेणं निण्ह परे(य के)णंपिणाम गिण्हेजा। खेतओं अतिK- कमोतु परतोवि दुगाउया मग्गे ॥५॥ कालपमाणातिकमे कुजा पाउरणगं अकालेऽपि । वसती कालातीतं असिवादणुवासणं एवं ॥६॥ परिकम्मणमविहीए बलियडजदुचलम्मि कुजाहि । दातभरंभे सीतेण अदिओ उभियं पंतो ॥७॥ अतिरित्तपमाणं वा धारिजइ कारणेहिं एएहिं। सो सो पकप्पो न निकारणओ विकप्पो उ॥८॥ संकप्पो उइदाणिं सोय पसन्थो य अपसन्थो या एतेसि दोण्डपी परूवणा होनिमा कमसो॥९॥दसणनाणचरिने अणुपारण पत्थणा पसस्थो उ। इंदियविसयकसाएस अप्पसस्थो उ संकापोश..१०८॥१६३०॥ दंसणपभावगाई सस्थाई कहमहं अहिजेजा। जो चितेय(ई)एसो संकप्पो दसणे होनि ॥१॥ नाणइयारं ण करे कहं च नाणं अहं अहिजेजा? । इति नाणे चारिते मुद्धचरित्नो कह होजा? ॥२॥ उनर उत्तरिएहि चारिनगुणेहि कह णु विहरेजा। एसोनु चरित्नम्मी संकप्पो सत्यगो भणितो ॥३॥ सदादिइंदियन्याण पन्थणा नह य रागगमणं नु। कोहादिकसायाण य अज्झप्प होति अपसत्यं ॥४॥ एसो खलु संकप्पो एनो वोच्छामऽहं नु उवकप्पं । उनकप्पती करेनि उवणेइ व होति एगट्ठा ॥ ५॥ भत्तेण व पाणेण व उपकरणेण व उचग्गहं कणति। उक्कप्पड़ गणधारी उवकप्पं तं वियाणाहि ॥ ६॥ खुहिओ पिवासिओ वा सीतभिभूतो व ण नरनी पदिनु । तस्स करेइ उवम्गह पडतकुदडस्स वा थूणा ॥ ७॥ जो उप्पाएं समाहि पक्षिह नाणदसणे चरणे । तत्तो य तवसमाहि नस्स समे निजरा होति ॥८॥ भत्तेण व पाणेणं उवकरणेणं व उग्गहितदेहो। जो कुणइ सि समाहि नस्सावरणं हणति दाना ॥९॥ भत्तस्स व पाणस्स व उवकरणस्स व उक्ग्गहकरस्स। जो कुणइ अंतरायं नस्सावरणं पवड्ढेनि ॥ ल० ११३ ॥१६४०॥ एसुवकप्पो भणिओ एनो बोच्छं अहं तु अणुकप्पं । अणुसहो तू नहियं पच्छाभावे मुणेयो ॥१॥ नाणचरण इढयाणं पुवायरियाण अणुकिति कुणइ। अणुगच्छद गणधारी अणुकप्पं न वियाणाहि ॥२॥ गुणसयसहस्सकलियाण गुणुनरतरं व अभिलसंताणं । जे सेत्तकालभावा आसजा जोगहाणि भवे ॥.:.१०९॥३॥ गुणसयकलिओ जम्मो मोक्खो य गुणुनरो मुणेयो। सामायारीहाणी तु जोगहाणी मुणेयब्वा ॥४॥ सेनाणऽसती अदाण उच्चखिनम्मि काल दुभिक्खे । भावे गेलण्णादिसु सुद्धाभावे तु जदसुदं ॥५॥ गेण्हेजाऽहारादी नाणादीसू व उजमण कुजा। अणसणमादी व तवं (२७४) १०९६पत्रकम्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकरेमाणम्स साहुस्स ॥६॥णेगंतणिज्जरा से जह भणिया सासणे जिणवराणं । जोगनियत्तमईणं सुहसीलाणं तवो छेदो ॥७॥ सुहसीलदुट्ठसीला तेसिं अप्फासु गेण्हमाणाणं। जं आवजे तहियं तवं च छेदं च तं पावे ॥८॥ उक्कप्पो AT य इयाणि उहद कप्पोऽवि होड उक्कप्पो । अहवावि छिन्नकप्पो उकप्पो अहवण अबेतो॥९॥ उम्गमउप्पायणएसणासु निक्खों कंदमूलफले । गिहिवेयावडियासु य उकप्पं तं वियाणाहि ॥ १६५० ॥णामणि थंभणि लेसणि वेयाली चेव अवेयाली। आदाणपाडणेसु य अण्णेसु य एवमादीसु ॥..११०॥१॥ तसएगिंदियमुच्छणसंसेइममच्छमरणमभिओगे।रोद्दाहरण तह भदंड भेय अगणिस्स।..१११॥२॥णामणि रुक्खफलाणं पडिमाणं देउलाण यूभादी। थंभणि पदमविण चलति लेसणि लेसेति अंगाई ॥३॥ विहिहाण य आणणि अहब णिमुक्कावणम्मि वेयाली। उहविऊण णिवाओ तक्खण एसऽद्धवेयाली ॥४॥ गम्भाणं आदाणं करेति तह सारणं च गम्भाणं। अभिजोग बसीकरणे विजाजोगादिहिं कुणइ ॥५॥ विच्छिगमच्छिगभमरे मंडुके मच्छए तहा पक्खी। संमुच्छावेमादी जो जोणीपाहुटेणं च॥६॥ पसुउद्दवियं जागं आहरण मंत रोहकम्मे य। कोहादि भदंडो थंभणि अगणिस्स मंतेणं ॥७॥ एमादि अकरणिजं निकारणे जो करे तू भिक्खू । सञ्चो सो उक्कप्पो एत्तों अकयं तु बोच्छामि ॥८॥ निक्विवणिरणुकंपो पुष्फफलाणं च साडणं कुणइ। जं चऽन्न एवमादी सचं तं जाणसु अकप्पं ॥..११२॥५॥ जो उ किवं ण करेई दुक्खत्तेसुं तु सबसत्तेसु । निरवेक्खो रीयादिसु पवत्तई निकियो सो उ॥१६६०॥ सहसा य पमाएण व परितावणमादि बिंदियाईणं । काऊण णाणुतप्पड गिरणुकंपो हवइ एसो॥ल०११४ ॥१॥ सत्तट्ठमठाणेस सट्टाणा सेवणाएँ सट्टाणं । गच्छागादम्मि उ कारणम्मि बितियं भवे ठाणं ॥२॥ सत्तट्ठमठाणाई उक्कप्पो चेव तह अकप्पो य। ते निक्कारणसेवी पावइ सट्टाणपच्छित्तं ॥३॥ पत्तम्मि कारणे पुण रायबुट्ठादियम्मि आगाढे । जयणाएं करे। माणो होति पकप्पो ठि(चि)तिहाणं ॥४॥ दसणनाणचरिते तवविणए निचकाल पासत्थो। णिचं चणिदिओ पवयणम्मितं जाणसु दुकप्पं ॥५॥ दुकप्पविहारीणं एगतासायणा य बंधो य। आसायणाय बंधेण चेव दीहो तु संसारो ॥६॥ दंसणनाणचरिते तबविणए णिचकालमजत्तो। निचं पसंसिओ पवयणम्मित जाणसु सुकप्प ॥७॥ सुकापावहाराण एगता वीसतिविहं तु वोच्छामि।तस्स उ दारा इणमो संगहिया तीहिं गाहाहि ॥९॥ कप्पेसु णामकप्पो ठवणाकप्पो य दवियकप्पो याखिने काले कप्पो दंसणकप्पो य सुयकप्पो..११३॥१६७०॥ अज्झयण चरिनम्मि य कप्पो उवही नहेव संभोगो।आलोयण उवसंपद तहेव उद्देसऽणुण्णाए।..११४॥१॥ अडाणम्मि य कप्पो अणुवासे तह य होइ ठितकप्पो। अहितकप्पो यतहा जिणधेरऽणुवालणाकप्पो ।..११५॥२॥ जो चेव दवियकप्पो उधिहकप्पंमि होति बक्खाओ। सो चव निरवसेसो जो य विसेसोऽत्थ तं वोच्छं ॥३॥ एस पुण तिविहकप्पो अहव इमं भावकप्पमज्झयण। सर्व वा सुयनाणं दायचं केरिसे होइ ? ॥४॥ सुपरिच्छियगुणदोसे सेलघणादीहिं तू परिच्छाहिं । मुविसोहियमिच्छमले उंडि. तभोम्मादिणाएहिं ॥५॥ सवंपिय सुयनाणं सुत्तत्थो सढिए ण उ असड्ढी। अह पुण को परमस्थो विसेसओ पवयणरहस्सं? ॥६॥ पवयणरहस्समेयाणि चेव भन्नति छेदसुत्ताणि । ताणिण दायव्याणि भन्नति मुत्तम्मि को दोसो? ॥७॥ अप्पंपिय तं बहुगं अरहस्समपारधारए पुरिसे। दुग्गतगमाहणेविव जह वइरगहीरगादीया ॥८॥जह फेलमाहणेणं रत्थाए वइरहीरतो लदो। सो अण्णस्स दरिसिओ तेणवि अण्णस्स सो सिहो॥९॥ एवं परंपरेणं रन्नो कन्न गओ तुसो ताहे। ताहे दंडिओं न्ना हडो य सो वारहीरो से॥१६८०॥ एवं अपरिणयस्सा किंची अववादकारणं सिटुं। सो कहयति अन्नेसिं परंपरेणं चरणणासो ॥१॥ तम्हा परिच्छिऊणं देयं विहिसुत्तबद्धपेढस्स। परिणामगस्स जइणो ण उ देयं अपरिणामस्स ॥२॥ दचियकप्पों समभिगओं ण भणिय जं हेट्टनं भणामित्ति । सो भन्नती विसेसो इणमो वोच्छं समासेणं ॥३॥दर्श तु गेण्हिया सुद्धं गविसिय गवसणा दुविहा। अविहीय विहीए या अविहीय | इम मुणेयचं ॥४॥ दद्याणि जाणि काणिवि गहणं लोए उति साहूणं। तेसिं तु संभवं ममामाणे ण उसाहते अत्यं ॥५॥अविहीय दोस पिंटुबहिसेजसज्झायनिस्वमपवेसे । णवकगहदुयचउके एते सव्वे ण पार्वति।.:.११६॥६॥ सालीतुंबीमादी आहारे फलिहमादि उवहिम्मि । रुक्खा पुण सेजट्ठा एमाधिगमो हुसाहूर्ण ॥७॥ एयाइं पुच्छिऊणं कत्थ पइण्णाणि? तहिं तहिं गच्छे। अविहिगवेसण एसा जह भणिया पिंडजुनीए ॥८॥ आहारोबहिसेजाण नाण. दव्येहि होइ निप्फत्ती। वेसणमिरिएपिप्पलिआबगघयतालगुलमादी ॥९॥ हिमवंते पिप्पलीओ मलए मरिचाण होइ निष्फनी। हिंगुस्स रमढविसए जीरगमादी य जो जत्थ ॥१६९० ॥मा अम्हं अट्टाए गावो कीना हढा व दूढा वा। फरमादी मा सक्खो बरोक्तिो अम्ह अट्टाए॥१॥ एमादि विमम्गंतो पभवं नाणादियाण परिहाणी। तह वत्थपायसेजाण मरति सो अंतरा चेव ॥२॥ एवं सो हिंडतो भनं पाणं च ठाणमुवहि च। कह उम्गमे उ कह वा सज्झायं कुण उ हिंडतो? ॥३॥ जो निक्खमणपवेसे कालो भणिओ उ वासउडुबद्धो। दुचउकं उडुबद्ध विहारों हेमंतगिम्हासु ॥ ल०११५॥४॥णवमो वासावासे एसो कप्पो जिणेहिं पन्नत्तो। एयस्स संखमाणं वोच्छामि अहं समासेणं ॥ ल० ११६॥५॥ दोनि सया चत्ताला उबद्ध एत्तिओ विहारो उ। वासासू पण्णासा पणगं पणगं हसति एर्ग॥६॥ पुरपच्छिमममाणं सधेसि एस कालवोच्छेओ। णिचं हिंडतेणं विराहितो होति सो नियमा ॥ ७॥ नम्हा खलु उप्पत्ती न एसियवा उ तेसि दवाणं । जस्सऽहा निष्फर्म तं गंतुं एसए मइमं ॥८॥ अइबहुय दुस्खभ वा गाउं दचकुलदेसभावे या पुच्छति सुद्धमसुद्धं ताहे गहणं अगहणं वा ॥९॥ अहवा पुट्ठो भणेजा समणादिकयं व अहव निक्खिनं। परिवर्त वावि भवे तत्थ उ दारा इमे होति ॥१७००॥ समणे समणी सावय साविगसंबंधि इढि मामाए। राया तेणे पक्खेवे या निक्खेवयं कुज्जा ॥१॥ दमए दुभगे भट्टे, समणे उभे य नेणए। ण य णाम ण वत्नई, बुट्टे रुट्टे जहा बयणं ॥२॥ एनसि दाराणं विभास भणिया जहा य कप्पम्मि। स चेव निरवसेसा णायचा सबदधेसु ॥३॥जं पुण जत्थाइणं दो खित्ते य होज काले या तहियं का पुच्छा ऊ जह उजेणीएं मंडेसु?॥४॥एमेव माहमासे किसराए संखडीए का पुच्छा ?। विच्छिन्ने वकुलम्मी पहुए दम्मि का पुच्छा? ॥५॥ तम्हा उ गहणकाले मूलगुणे चेव उत्तरगुणे या सोहेजा दधस्स उण मूलओ तस्स उप्पत्ती॥ ६॥ किचे पामिचे छिजए य निष्फत्तिओ य निष्फण्णे। कर्ज निष्फत्तिमयं समाणिते होति निष्फलं ॥ ७॥ कंडितकीतादीया तंदुलमादी तु होज समणट्ठा। निष्फत्ती सा उ भवे आयट्ठा कासु निष्फण्णं ॥८॥त होइ कप्पणिजं जं पुण समणट्ट होज निष्फण्णं । तं तु ण कप्पति एत्थं च चोदए १०९७ पञ्चकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोदओ इणमो॥९॥ निफलिओ य निष्फण्णओ य गहणं तु होज समणस्स। निष्फत्तिओ असुदे कहण्णु निष्फण्णते सोही? ॥१७१०॥ एवं गवेसियो कि एगट्टाणगं परिवर्त?। भण्णति अफासुदब्वेण चेव गहणं तु साहूणं ॥१॥ तो तेणं साहणं किं कर्ज होइती विगप्पे(तु गविट्टे )णं । अपणंपिय एगकुले ण हुआगरों सब्बदव्याणं ॥२॥ तिकडयमादीयाणं सबदवाण संभवेगकुले। ताणि य गवेसमाणे हाणी सचेव नाणादी ॥ ३॥ तम्हऽपप्पं परिहर अप्पप्पविवजओ विवजति हु। अप्पप्पं साहेनो विवजति ण च साहेति ॥४॥ निष्फत्ती समणट्ठा समणट्ठा जं च होति निष्फणं । गहियं होज जयंतेण तत्थ सोही कहं होइ ? ॥५॥ सुयणाणपमाणेण ऊ उपउत्तो उजुयं गवसंतो। सुदो जइ वावण्णो खमओ इव सो असढभावो ॥६॥ जो पुण मुकधुराओ निरुजमो जइपि सो उणावण्णो। तहविय आवष्णो चिय आहाकम्मं परिणओच ॥ ७॥ एयस्स साहणटुं अहवा अन्नपि भन्नए एत्था कारगसुत्नं इणमो तमहं वोच्छ समासेणं ॥८॥ अंगम्मिवि चितिए तनियगम्मि जे अस्थ कुसल! जिण दिट्ठा। एतेसु जुत्तजोगी विहरतों अहाउयं बु(जुज्झे ।।..११७१९॥ अंगरगणा पढमं आयारो तस्स बितियसुयखंधे। तस्सवि बीयज्झयणे उद्देसे तस्स ततियम्मि ॥१७२०॥ जन्येयं सुनं खल से य अवस्संण होज सुलभो उ। अहवावितईएनी अज्झयणम्मी तइजम्मि॥१॥ तस्सवि ततिउसे आदीसुत्तमि अज्झयणम्मी तइज्जम्मि ॥१॥ तस्सवि ततिउद्देसे आदींसुत्तम्मि जं समक्खायं । जदि संकमो असतो ताहे जयणाएं जनो उ॥२॥ देसणंपि हु कोडि अच्छंनो सो विसुज्झती णियमा। नम्हा विसुद्धभावो सुज्झति नियमा जिणमयम्मि ॥३॥ बाहिरकरणे जुत्तो उवओगमहिडिओ सुतघराणं । जं दोस समावष्णोवि णाम जिणवयणओ सुद्धो॥४॥ दव्येण य भावेण य सुदमसुदे य होइ चउभंगो । तइओ दोसु विसुद्धो चउत्थाओ उभयह असुद्धो ॥५॥ चितिओ भावविसुद्धो दब्वविसुद्धोय पढमओ होइ । अहवावि दोसकरणं दोभाषे य दुविहं तु॥६॥ भावविसुद्धाराह(हार)को दवओं मुद्धो व होतऽसुद्धो य । जे जिणदिट्ठा दोसा रागादी तेहिं ण उ लिप्पे ॥७॥ एतेसामण्णतरं कीयादी अणुवउत्तों जो गिण्हे । तट्ठाणगावराहे संवढियमोऽवराहाणं ॥ ८॥ आवणे सट्ठाणं दिजइ अह पुण पहुं तु आवष्णे। तहियं कि दाय? भण्णइ इणमो सुणह वोच्छं ॥९॥ तहियं कि दायचं? तबो व छेदो तहेव मूलं वा । कत्येयं भणियंती? भण्णति तु णिसीणामम्मि ॥१७३०॥ वीसइमे उद्देसे मास चउम्मास तह य छम्मासे। उग्घातमणुग्घायं भणियं सवं जहाकमसो॥१॥ एसो उदवियकप्पो जहकर्म पण्णिओ समासेणं । एत्तो य खेत्तकप्पं वोच्छामि गुरूवएसेणं ॥२॥ आदी छकनियत्ती उपणिया जम्मि जम्मि खेत्तम्मि। एतेसि सनिकासे सालंचो मुणी बसे खेत्ते॥..११८॥३॥ छविहकप्पो आदी तह जारिसगा णिसेविया खेत्ता। अखेमअसिवमादी ण कप्पती तारिसे वासो॥४॥ खेमादि अलभंतो पडिकुडेहिपि वसति जयणाए। दुयगादी संजोगा यक्खाणं सनिकासस्स ॥५॥ अक्खेमे असिबम्मि य असिव वने वसिज अक्खेमे। तहियं उबहिविणासो असिवे पुण जीवणासो उ॥६॥ एवं ओमादीसुं संजोगा तिगचउकगादीया । वसिय जेसु जहा तमहं वोच्छं समासेणं ॥ ७॥ कडजोगि सनिकासे बहुतरगं जत्थुवम्गहं जाणे। थोवतरियं च हाणि तत्वाऽनयरे दुविहकाले ॥ ८॥ एतेसामन्नयरे आलंबणविरहिओ वसे खेत्ते । कालद्द्यावराहे संबढियमोऽवराहाणं ॥९॥ संवड्ढियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा । आयारपकप्पे जं पमाण णेमाण चरिमम्मि ॥१७४०॥ एसो उ खेत्तकप्पो अहुणा योच्छामि कालकप्पं तु । जावातुतं तुझीणं अणुपाले ताव सामनं ॥१॥ गीयसहाओ विहरे संविग्गेहि व जयणजुत्तो उ। असतीवि मग्गमाणे खेत्ते काले इमं माणं ॥२॥ पंच व छ सत्त सने अनिरग वावि जोयणाणं तु । गीयस्थपादमूलं परिमग्गिजा अपरितंतो ॥ल०११७॥३॥ एकं व दो व तिषिण व उकोसं बारसेव वासाई। गीयत्वपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो ॥ ल०११८॥४॥ पंच व छ सन सत्ने अनिरगं वावि जोयणाणं तु । संविग्गपादमूलं परिमम्गिजा अपरितंतो ॥५॥ एक व दो व तिषिण व उक्कोसं चारसेव वासाई । संविग्गपादमूलं परिमम्गिजा अपरितंतो ॥६॥ संविग्गो गीयत्यो भंगचाउके उ पढममुवसंपा। असतीइ ननिय चितिए चउत्थर्गचाणो उ उपसंपे ॥ ७॥ उकमओ खल लहुगा चतुरो लहुगा चउत्थभंगम्मि । जस्सऽट्टा उपसंपदतं नस्थि चउत्थभंगम्मि ॥८॥ एतेसिं तु अलंभे एगो थामावहारमकरतो। विहरेज गुणसमिद्धो अणिदाणो आगमसहातो॥९॥ कालम्मि संकिलिडे छकायदयावरोवि संविग्गो। जयजोगीण अलंभे पणगऽण्णतरेण संवासो ॥१७५०॥ पणगऽणतरं पासत्यमादिभंगे चउत्थए जयणा । जस्थ वसंती ते ऊ ठाति तहिं वीसु वसहीए॥१॥ तेसि णिवेदेऊणं अह नत्थ ण होज | अन्नवसही उ। ण वहेज वा उदंत वसेज तो एकवसहीए ॥२॥ अपरीभोगोगासे तत्थ ठितो तू पुणोविय जएजा। आहारमादिएहिं इमेण विहिणा जहाकमसो ॥३॥ आहारे उवहिम्मि य गेलपणागाढकारणे वावि । थामावहारविजढो असती जत्तो ततो गहणं ॥४॥ आहारउबहिमादी उप्पादे अप्पणा विसुद्ध तु। असती सतलाभस्सा जो तेसि साहुपक्खीओ॥५॥ सो उ कलाई पुच्छिजते उदाएति यावि सो तेसि । तहवी अलभंतो नु जयती पणहाणिक जालहुगा ॥६॥ संविम्गपक्ससहिता साह उप्पादएज सुदं तु। असती पणहाणीए जइत्तु अप्पे पडिग्गहणं ॥७॥ तह असती तब्भायणमाणीयं गिण्हती तहिं चेव। नियगेऽवि पडियाहगे गेण्हति पासस्थपाया ऊ॥८॥ उहिल पुराणगहिन अप्परिभुनं तु गिण्हनी सिं। असती तएयरंपिय जदि य गिलाणो भवे तस्थ ॥९॥ तस्थवि जइज एवं असती सव्वंपि से करेजितरे। अह्वा तेवि गिलाणा हवेज ताहे करे सोऽपि ॥१७६० ॥ एतत्थं अच्छिज्जति गच्छे अपणोष्णजंतुसाहिज। कीरनिणपमाओ खलु नम्हा गेलणे कायवो ॥१॥ दीहो चमडहतो वा कम्मोदयओ हवेज आतंको। मडहो अदिग्घरोगो तविवरीओ भवे इतरो ॥२॥ कालचउकं वा खलु काय होइ अप्पमत्तेणं । उडुबद्धे | बासासु अ दिय राउ चउक्कमेतं तु ॥ ३॥ जिणवयणभासियम्मी निजर गेलण्णकारणे विउला। आतंकपउरताए कतपडिकइया जहनेणं ॥४॥ जह भमरमहुयरिंगणा णिवयंती कुसुमियम्मि वणसंडे । इय होइ निवइयव्य गेटण्णे कद्दयस्जदेणं । ल. १२५॥५॥ सयमेव दिटुपाढी करेंति पुर छतऽजाणगा वेज। विजाण अटुंगं पुण णायवमिणं समासेणं ॥६॥ संविम्गमसंविग्गे दिट्ठत्थे लिंगि सावए सण्णी। अस्सण्णि सणिण इतरे परतिस्थिय कुसल तेइचछं ॥७॥ पइदिणमलम्भमाणे वत्थु ठवियवगं भवे किचि । तत्थ उ भणेज कोई सुक्कं तु ठवे दवे दोसा ॥ ८॥ संसतंपि य सुक्खं तू, अणिहूँ च सुसाहर्ग । सुसारत्थं तग होइ, इतरे दोसा बहू इमे ॥९॥ निबे दवे (निदोदए)पणीए अपमजण पाण तक्कणाऽऽयरणा । एए दोसा जम्हा तम्हा उ दवं न ठाविजा ॥१७७०॥ भण्णइ जेणं कजं तं ठावेजा तहिं तु जयणाए। आतंकविक्जासे चउरो लहुगा य गुरुगा य॥१॥ ज सेवियं तु किंची गेलन्ने तं तु जो उ १०९८ पत्रकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर 24TATE Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 पउणोऽचि । आसेवते उ साहू रसगिद्धो सेलओ चेत्र ॥ २ ॥ तंबोलपत्तनाएण मा हु सेसात्रि तू विणासिजा निल्लूहंती तं तू मा अण्णोऽवी तहा कुजा ॥ ३ ॥ कालप्पाहिगारे पत्थिए होतिमोऽवि तस्सरियो । कालकिप्पी असिवादीओ मुणेयब्वो ||४|| असिवे ओमोयरिए रायद्दृट्टे पत्रादिदुट्टे वा आगाढे अन्नलिंगे कालक्खेवो व गहणं च ॥ .. ११९ ॥ ५॥ असिवे जति जतिपंता लिंगविवेगेण तक्खणं गच्छे। सव्वत्य वाचि असिवे कालक्खेवो विवेगेणं ॥६॥ ओमेऽवेवं कुजा पवादिदुद्वेण बुद्धिणो णातं । तत्यऽविय अण्णलिंग गिहिलिंगं वावि भासेजा ॥ ७ ॥ एयं चिय आगाढं अहवा देहस्स जा उ वावत्ती । णिविसयाणत्तीण व भत्तस्स णिसेहणा चेत्र ॥ ८ ॥ एतेसामन्नतरं अणगाढि लिंग (ढालंच) णो ण सेवेजा । तट्टाणतावराहे संवदियमोऽवराहाणं ॥ ९ ॥ संवड्ढितावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं च आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥ १७८० ॥ एसो उ कालकप्पो एतो वोच्छामि दंसणे कप्पं । सद्दहण लक्खणं तू जिणोवइट्टेसु भावेसु ॥१॥ उवरयछक्कायस्सवि आयरियपरंपरागते अत्थे। आगाढकारणेसुं सदहसु णिसेवणं तत्य ॥ २ ॥ छक्काए सदहिउं इणमन्त्र पुणोवि सदहेय आगाढमणागाडे आयरियां तु जं तत्थ ॥ ३ ॥ दशे | खेत्ते काले भावे पुरिसे तिमिच्छि असहाए। एएहिं कारणेहिं सत्तविहं होइ आगाढं ॥ ल० १२० ॥ ४ ॥ एगादीया बुड्ढी एगुत्तरिया य होइ दशणं। ओमत्थगपरिहाणी दशगाढं वियाणाहि ॥ ल० १२१ ॥ ५ ॥ जंपति पुणो बिज्ञा सचितं दुलभं व दक्षं वा अप्पडिहणतो अच्छइ उद्दिसिउं जाव सो ठाति ॥ ६ ॥ जाहे उदिट्टहाणी ताहे ओमत्यहाणिए भणति । अम्हे करेमो जोग्गं अलंभे एयस्स किं कुणिमो ? ॥ ७ ॥ एवं तु हावयंता खेत्तं कालं व भावमासज्ज । ता जूहंती जाब उ लंभे जेसिं तु दशाणं ॥ ८ ॥ अह पुण भणेज एवं अवस्समेतेहिं कज्ज दवेहिं । एवं दवागाढं तहिं जए पणगहाणीए ॥ ९ ॥ खेत्तागाढं इणमो असती खेत्ताण मासजोग्गाणं। असित्रं वा अन्नत्था नदीय का हो रुद्वा उ ॥ ल० १२२ ॥ १७९० ॥ आयरियादिअगारग अहवा अन्नत्य सावया होज अंतर जहिं च गम्मइ वाला तह तेणखुभियं वा ॥ १ ॥ एएहिं कारणेहिं खेत्तागाढम्मि एरिसे पत्ते अच्छंति असढभावा एगरखेत्तेऽवि जयणाए ॥ ल० १२३ ॥२॥ कालस्स वाचि असई वासावासे वियारणा नत्थि एएहिं कारणेहिं कालागाढं वियाणाहि ॥ ल० १२४ ॥ ३ ॥ वासाजोग्गं खेत्तं पडिलेहेडं तु कालो ण पहुत्तो वचंताण व अंतर वासं तू निवडियं पायं ॥ ४ ॥ डहरं वऽंतरखेत्तं ताहे तं चैव पुवखेत्तं तु। गंतुं वसती वासं समतीते वीतदसरातं ॥ ५ ॥ अतिउकडं व दुक्खं अप्पा वा वेदणा झ आउं एएहिं कारणेहिं भावागाढं वियाणाहि ॥ १२० ॥ ६ ॥ अचुकड सूलादी अहिडकाई उ वेदणा अप्पा । तत्थऽग्गितावणादी देहच्छेदो व गाढादी || ल० १२५ ॥ ७ ॥ जम्मि विणट्टे गच्छस्स विणासो वह य णाणचरणाणं । एएहिं कारणेहिं पुरिसागाढं वियाणाहि ॥ ल० १२६ ॥ ८ ॥ तस्स उ सुद्धालंभे जावज्जीवं तु (वि) होत. | सुदेणं । काय तू नियमा पुरिसागाढं भवे एतं ॥ ल० १२७ ॥ ९ ॥ जेण कुलं आयत्तं तं पुरिसं आयरेण रक्खेजा। ण हु तुंबम्मि त्रिणट्टे अरया साहारगा होंति ॥ १८००॥ संजोगदिट्टपाठी फासुगउवदेसणासु जो कुसलो। एयारि असती णायव्व निगिच्छमागाई | ल० १२८ ॥ १ ॥ मज्जणतूलिविभासा असणे पाउरणए य पाणे य। केवडियाण पदाणे अण्णहचित्तो गिलाणो वा ॥ २ ॥ होज़ व सहायरहिओ अव्वत्ता वावि अहव असमत्था एय सहायागाढं तम्हा उ मुणी ण विहरिज्ञा ॥ लः १२९ ॥ ३ ॥ जावंति पवयणम्मी पडिसेवा मूलउत्तरगुणेसु । ता सत्तसु सुद्धेस सुद्धमसुद्धा यऽसुद्धेसु ॥ ल० १३० ॥४॥ आगाढमणागादे एवं जं जत्थ होइ करणिजं । तं तह सहहमाये दंसणकप्पो हवइ एसो ॥ ५ ॥ एसो दंसणकप्पो अरुणा सुतकप्पमो उ वोच्छामि । जे तत्थ होंति वियो अहिजते जेण वा विहिणा ॥ ६ ॥ दुविहम्मि आगमम्मी सुने अत्थे य जे जहिं भावा । सुत्तमसुत्तकडाणं पवित्रं ताण अत्येणं ॥ ७ ॥ विन्थारो नाम सुत्तम्मि, गहिए अत्थो ऊ दिज्जती। सुत्ते अहिजियब्वे तु, मजादा ऊ इमा भवे ॥ ८ ॥ पडिलेहण काऊणं सज्झायं पट्टवेउवादी आयरियादिणिसेज करेइ पच्छा य सज्झायं ॥ ९ ॥ पोरिसि सा तं झायं (काउं) चरिमाए पढिय पत्त पडिलेहे। ताहे य अत्थपोरुसि इमिणा विहिणा करती ऊ ॥ १८१०॥ काउस्सग्गे वक्खेवणाउ विकहाविमुत्तिया पयतो (त्ता)। अच्भुट्टाणे वा कालणाय अक्खेव साहरणा ॥१॥ अण्णोत्रिय सुयकप्पो सोयध्वं मंडट्रीय राइणिए । अणुओगधम्मयाए किइकम्मं होइ कायां ॥ २ ॥ वक्खाओ सुतकप्पो एत्तो वोच्छामि अज्झयणकप्पं । दायव जेण विहिणा जम्गुणजुनम्स वा तं तु ॥ ३ ॥ जोए परियाए अणरिहे य अरहे ए विणयपडिवण्णे। सुत्तत्थतदुभए जे अज्झयणेसु अणुभागा ॥१२१॥४॥ जस्सागाढो जोगो तं आगाढेण चैव दायचं अणगाडे अणगाढं एतो वोच्छामि परियागं ॥ ५ ॥ संखपरीमाणं भणियं सुप्तम्मि तिवरिसादीयं । तं तेणं माणेणं उद्दिसिय भवे सुतं ॥ ६ ॥ खुड्डियविमाणपविभत्तिमादि दीहेविय तु (चित्त) परियाए । गवि दिजती अणरिहे अणरिह ते तू इमे होंति ॥ ७ ॥ तिंतिणिए चलचिते गाणंगणिए य दुच्चलचरिते । आयरियपारभासी वामावद्वेय पिसुणे य ॥ ८ ॥ आदी अट्टिभावे अकडसमायारिए तरुणधम्मे। गवि (छि)य पइण्ण गेण्हइ छेदसुए वज्जए अत्यं ॥ ९ ॥ डहरो अकुलीणो चि (ति)य दुम्मेहो दमग मंदबुद्धित्ति । अवियऽप्पलाभली सीसो परिभवइ आयरिए ॥१८२० ॥ सोऽवि य सीसो दुविहो पचावियओ य सिक्खिओ चैत्र । सो सिक्खिओऽवि तिविहो सुत्ते अत्थे तदुभए य ॥ १ ॥ एतेसिं अणरिहाणं जे पडिवक्खा उ हाँति सङ्केसिं । परिणामगाय जे तू ते अरिहा होंति णायवा ॥ २ ॥ एतारिसे विणीए सुत्ते अत्ये य जतिया भेदा। अज्झयणुदेसेसु य ते सने असेसिए दिजा ॥ ३ ॥ एसऽज्झयणे कप्पो एतो वोच्छं चरित्तकल्पं तु । जे तु विहाण चरिते वतेसु गुरुलाघवं चेव ॥ ४ ॥ पंचविहम्मि चरित्तम्मि वण्णिया जे जहिं अणुभावा। एसो चरितकप्पो जहकम्मं होइ विष्णेओ ॥ ५ ॥ सामाइयादि पंचह अणुभागा तेसि जत्तिया भेदा । वयपंचगम्मि कतरं भारियरं लहुतरं किं वा ? ॥ ६ ॥ सवगुरुगी यऽहिंसा तीसे सारक्खणट्ट सेसाणि । श्रंभवतं च ततो ततो अदत्तं मुसं तत् ॥ १३१ ॥ | लहुओ परिग्गहो सको बत्थादिरागनिग्गहणं । लोगे पुण गुरुगतरो सबेसि भवे मुसावादो ॥ ल० १३२ ॥ ८ ॥ काऊणवि संवरणं मुसवज्जाणं तु सङ्घभंगेऽवि । ण भवति पष्णलोवो तेण मुसं भारितं लोए ॥ ९ ॥ जह वेणगा उ केती अचयंता मुसितु भिच्छुगविहारं । णियडीय बँति धम्मं सुणेमु अह भिच्छुगे ते य ॥ १८३० ॥ सोउं मिच्छुवतारा चिणयं काऊण मिच्छुए आह। अज्जप्पभिई अम्हं बुद्धो सस्था बते देह ॥ १ ॥ मुसबजा चाएमो धारेमो गेण्हिउं वते तेणा। वीसत्थभिच्छुगाणं मुसिउ विहारं समादत्ता ॥ २ ॥ भिच्छू लवंति तेणे घेत्तुं सिक्खावयाणि मा अज्जो ! भंजह वदंति तेणा न हु पञ्चकवाय मुस अम्हे ॥ ३ ॥ गुरुलाघवचक्खाणं एवं तू सोहिकारणा १०९९ पञ्चकल्पभाप्यं मुनि दीपरत्नसागर Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANAptic भिहितं । पत्तम्मि कारणम्मि उलयतरं पुत्र सेविजा ॥ल०१३३॥४॥ काणि पुण कारणाणिं जेसु उ पत्तेसु जयणपडिसेवा । भन्नइ ताणि इमाई कित्तेऽहं मे समासेणं ॥५॥ गच्छाणुकंपयाए आयरिय गिलाण आवतीए या पिडिसेवा खल भणिया एते खल कारणा ते उ॥६॥ वोहियतेणादीसं गच्छस्सट्ठा णि(दाण)सेवणा होई। आयरियाण व अट्ठा विभास वित्थारओ एत्यं ॥७॥णाउं तुंबविणासं अरगा साहारगाण एवं तु। आयरियस्स विणासे गच्छविणासो धुर्व एवं ॥८॥ आगाढे गेलण्णे कंदाति विभास आवती चउहा। दवावति खित्तावह काले तह भावओ चेव ॥९॥ एएहिं कारणेहिं अप्पत्तेहिं तु जो उ सेविजा।सुहसीलयाए जो (सो) उ आवजतिणविय सुज्झति हु १८४०॥ जो पुण पत्ते कारण जयणा आसेवणं करेजाहि । तस्स चरित्सविसुद्धीजह भणति जिणो हितं इणमो॥१॥ गच्छाणुकंपयाए आयरियगिलाणआवदि विदिण्णे। जत्थेव य पडिसेहो सचरित्तासेवणा तत्था ॥२॥ पुरिमस्स पच्छिमस्स य मज्झिमगाणं तु जिणवरिंदाणं । आसेवणा य सचरित्तया य अत्षेण अणुगम्मे ॥३॥ वयभंगपि करेंतो जह सचरित्ती कहं तु अत्येणं । अणुगंतवं एयं ? भन्नइ आगाढकारणओ ॥४॥ जे केअवराहपदा किण्हा सुक्का भवे पवयणम्मि। णिपरिसपरिच्छणाए दुगठाणेणं मुणेयबा ॥५॥ पडिसेहोऽणुण्णा वा पायच्छित्तेय ओह निच्छाइए। ओहेण उ सट्टाणं अत्थविरेगेण वोगडियं ।।..१२२॥६॥ हिंसादवराहपदा किण्हे अणुघाति सुकिला लहुगा। |णिपरिसपरिच्छणा खलु जह कणगं तावणिहसेसु ॥७॥ एवं परिच्छिऊणं आयवयं गच्छमावती जंतु।नित्थारयम्मि पत्ते जयणाएं निसेव सचरित्ती॥८॥दुहाणा मूलत्तर दप्पे अजए य होइ पडिसेहो। कप्पे जयणा णु(बु)त्ता जो पुण |निकारणासेवे ॥९॥ पायच्छित्तं पावति तं दुविहं ओहियं व णेच्छइयं । ओहं तु जमावणं तं दिजति तम्मि सट्ठाणं ॥१८५०॥ णिच्छइयं अत्थेणं वीमंसित्ता उ दिजती जंतु। एयं अस्थविरेगं बोकडियं छविहं इणमो॥१॥ कस्स | कहं कहिं तं वा कदिया णु कम्मि केचिर होइ? । छहाणपदविभत्तं अस्थपदं होइ वोगडियं ॥..१२३॥२॥ कस्सति गीतागीतस्स वावि कह जयण अजयणाए वा। कहिं अद्धाण वसंते कतिया णु सुभिक्खदुभिक्खे॥३॥ अहवा दित राओ वा कम्हिन्ती कारणे व इतरे वा। कम्हि व पुरिसजाते आयरियादीण अण्णतरे ॥४॥ केचिर कतिबारे खलु केवइकालं व सेवियं होजा । एवं छट्ठाण एवं सुद्धासुद्धे असुद्रियरे ॥५॥ संघयणधितिजुयाणं सहूण अरहं तु दिजए - तत्य । असहअथिरादीणं दिजति चाएति जं वोढुं ॥ ६॥ सोऊण कप्पियपदं करेति आलंबणं मइविहूणा। रहसं च अणरहस्सं करेइ मइसूयओ पुरिसो॥७॥ माइट्ठाणविमुको अकप्पियं जो उ सेवते भिक्खू। तं तस्स कप्पियपद Mमायासहिते चरणभेदो॥८॥ एसो चरित्तकप्पो एत्तो वोच्छामि उबहिकप्पं तु । सो पुण पुष्वाभिहितो ओहुग्गह(जु)त्तओ चेव ॥९॥ जो उ विसेसो एत्थं तं नवरं यह अहं तु वक्खामि । सुदुग्गमादिएहिं धारेयधो जहाकमसो M॥१८६०॥ फासुयमफासुए यावि, जाणए या अजाणए । ओहोवहुवग्गहिते, धारणा कस्स केचिरं? ॥१॥ जइ फासुवही कारणे गहिओ तू जाणएण तो धारे। जो जुण्णोऽजुनोवि हु अट्ट पकुवे तु छुम्भति हु॥२॥ फासुगें अजाअगएणं कारणगहिओ धरेजते ताव । जावऽण्णो उप्पण्णो ताहे उ विगिंचए तं तु ॥३॥ अह पुण अफासुओ ऊ जाणगगहिओ उ कारणे होजा। जइ गीयत्था सन्चे तो धारेती उ जा जिण्णो॥४॥ अम्गीतविमिस्सेहिं अणुप्पमम्मि नं विगिचंति। अह पुण अफासुओ ऊ कारणे गहिओ अगीतेणं ॥५॥ उप्पण्णे उप्पण्णे अण्णम्मि विगिंचती ऊ सो ताहे । एवं चउभंगणं धारणता वा परिट्टवणा ॥६॥ सो पुण दुविहो उपही वयं पातं च होइ बोदछ । वत्थं तु बहु-5 चिहाणं पाता पुण दो अणुण्णाता ॥७॥ चोदेती पंचण्हं किण्णवि एगो पडिग्गहो होइ। ता दो एकेक्कस्स ऊ? भण्णइ ण पहुचए एवं ॥८॥ तो चउ तिण्ह दुवण्हं अहवा एफेकतस्स एकेक ? । भण्णइ पाहुणगादिसु ताहे किं काहि तेकेणं? ॥९॥ अप्पा परो पवयणं जीवनिकाया य चत्त होंतेवं । वारत्तगदिटुंतो तम्हा दो दो उ घेत्तवा ॥१८७०॥ भणति जदेवं तेणं जिणकप्पी एगपातओ कम्हा ?। भण्णइ कारणमिणमो सुणसू जेणेगपादो उ॥१॥ संगहियकु. च्छि जस पगहिय अप्पाहारे चियत्तदेहे य। णासण्णेऽणावाते णातिणिरुद्धे ठविय भाणं ॥:१२४॥२॥ तिवली अभिनवच्चो कंकग्गहणी य संगहियकुच्छी। जोयणमवि गच्छिजा सन्नाडो डिलस्सऽसती ॥३॥ जसकारि पवयणस्सा ण यावि सुलभो से आहारो॥४॥ जदिविय हु कुच्छिपुरं लभति कदाती बहुस्स कालस्सा तंपिय से विद्धंसद तत्तकडिछे वजह बिंदं ॥५॥ तेणऽर्य वचं से तो गच्छति जाव मारियं नत्थिान य बाहा उप्पजति चत्तं च सरीरगं तेणं ॥६॥णासन्नं जाइयंडिलं. गावात नियमेण उ। विच्छिन्न दरमोगाद. सादोसविवज्जियं ॥७॥ निक्खिप्पि पडिग्गहगं वोसिरि यसो उ णिलेवे। एण्ण कारणेणं जिणक. पिउ एगपातो उ ।।दा पातदुगस्स उ गहणे कारणमेतं समासओऽभिहित । अहुणा तु चोदयंती किं घेप्पइ वत्थमतिरेग? ॥९॥ किं तिहिण पहुप्पेजा एकेणाच्छादणा पकप्पम्मिा गच्छे सकारणेनिय वोच्छेदकरो पसंगस्स॥१२५ ॥१८८० ॥ चोदेती किं तिण्हं गहणं ? ऊणेहिं जंण संयरति। भणति एकेणावि हु संथरति ? पुणाह तो सूरी ॥१॥ छादणतो णासणओ ऊणेण कता भवे पकप्पस्स। मा हु पसंगविवढी ऊणऽहितं तेण धारेति ॥२॥ गच्छो सकारणोनी गिलाणवुड्ढे य बालमसहादी। तेसऽट्ठा अतिरेगं घेप्पड़ मा होज दुलभंति ॥३॥ सीतादिभावियाणं मा हुणाणादियाण परिहाणी। होजाहि तेण गेण्हति संथरती जावतीएणं ॥४॥ जदि एयविष्पहूणा नवनियमगुणा भवे निरवसेसा। आहारमादियाणं को णाम परिम्गहं कुज्जा ? ॥५॥ पंचमवओवघातो चोदेती वत्यमादिगहणम्मि। एगओवघाए घातो पंचण्हवि वयाणं ॥ ल०१३४॥६॥ एवं तु चोदितम्मी बेंति गुरू ण उ परिग्गहो सो उ। संजमगुणोवकारा उवघाति परिग्गहो होइ॥ ७॥ जम्मि परिग्गहियम्मी तसथावरघातणा पवत्तंति। गहणे गहिए धरणे सो नाम परिम्गहो होइ ।ल०१३५॥८॥ गहणे पुस्कम्मादी गहिए पुण होति पच्छकम्मादी। धरणे अप्प9 डिलेहा कीरति मुच्छात जा नत्थ ॥९॥ जम्मि परिम्गहियम्मी तसथावरसंजमा पवत्तंति । गहणे गहिते धरणे सो तू(गुणकारओ)ण परिग्गहो होइ॥१८९०॥रागादिविरहिओ ऊ आहारादीण जं कुणइ भोग। ण हु सो परिग्गहो ऊनो कि Aगुरुमादिणं पूया ॥ ल०१३६॥१॥ कीरति आहारादिहिं ? भन्नति भणिता उ नियमसो सा उ। तिथंकरहिं चेव उ तेण उ सा कीरए तेसि ॥२॥ तो किं पुयाहेउं पवत्तयंतीह नित्थगर नित्यं ?। अह कम्मक्खयहे ? पुट्ठो एवं इम आह ॥३॥ आहारउवहिपूजादिकारणा ण उ परुवितं तित्थं। णाणचरणाण अट्ठा तित्थं देसिंति तित्थकरा ॥४॥ तित्थं चउहा संघो तस्स य देसंति नाणमादीणि । नित्थगरणामगोत्नस्स खयट्टा अविय साभधा ॥५॥ नाणे चरणे गुणकारगाणि आहारउबहिमादीणि। एतेण अणुण्णाता तहिं ठिताणं तु तो पूजा ॥ ल०१३७॥६॥ एसो उवहीकप्पो वनियओ वित्थरं पमोनूणं । संभोगकप्पमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं ॥ ७॥ पुवमणिओ विभागो (२७५) ११०० पञ्जकल्पभाक्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभोगविही य दोहिं ठाणेहिं । दोसुवि पसंगदोसा सेसे अतिरेग पन्नवए॥८॥ दसविहसत्तविहेहिं पछुत्तेतेहि दोहि ठाणेहिं । दोसुवि पसंगदोसा ण मुंजए अन्नसंभोई ॥९॥ जम्हा उ ण णजनी उम्गममादी उजे भवे दोसा। एएण अपरिभोगो अमणुष्णे होइ चोदशो ॥१९००॥ जं तत्थ ण पत्तं तू तमहं वोच्छामि एतमतिरेगं । जे उ गुणा संभोगे ते वण्णेऽहं समासेणं ॥१॥ अणुकंपा संगहे चेब, लाभालामेऽविदापता । दावहवे य गेटण्णे, कंतारे अंचिए गुरू ॥..१२६॥२॥ बालादणुकंपणवा असहू अतरंतसंगहवाए। केइ सलही अलखी तेसिं साहिल्लयट्ठाए ॥३॥ उप्पण्णे अगिरणे काहिति विओसणं नु अविदाही।ण य गच्छे बहिभावं उप्परओऽहंनि परिभूते ॥४॥ ममं अणेक्कभाणोत्तिकाउ मा एस पे(ग)च्छती पुधि । जत्थ उ कुले महाले लम्भति भिक्खा महल्ली ऊ॥५॥ तम्हा उ दवदवस्सा पुष्विं गच्छामहं तु तं गेहं । एते ऊ परिहरिया दोसा उ भनि संभोगे॥६॥ गेटण्णेण व एतस्स हिंडियं आणियं तु अण्णेहिं । भोक्खत्ति यऽसहुवग्गो कतारे आणित सहहिं ॥७॥ एमेव अंचिएऽत्री गुरूवि मिण्हेउ अन्नमन्नस्स। एको पुण परितम्मति बाहिरभावं व गच्छेजा ॥८॥ एते उ एवमादी संभोगम्मि उ गुणा भवनी उ । नम्हा खलु कायचो संभोगों गुणन्निएण समं ॥९॥ एयाई ठाणाई जो तु सहू होतओ पमादेति। अण्णे आणतेत्ती घेत्तूणं जं वतं केई ॥१९१०॥ सेसाण पालणट्ठा नो नं उम्मंडलिं करेंनी उ। जइ आउद्दति जुजनि नाहे मेलिजाइ पुणोऽवि॥१॥ अह पृण चोइजनो बहुसो गाउडए उतै दोस। सति लाभलबिजुत्तो निजूहंती उतं ताहे ॥२॥ अह मंदलामलदी ण य जोगं जुजती अहत्थाम। सो हि खरंटेऊणं मेलिजड़ मंडलीए उ ॥३॥ किं कारण णिजुहणा? जं साहूणं गृणुनस्थराणं। ण करेई वच्छल तेण उ णिजूहणा तस्स ॥४॥ एवं आयरिएण उ जोगो सबस्स चैव गच्छस्स । वोढबो दिट्टतो गएण इत्थं इमो होइ॥५॥जह गयकुलसंभूओ गिरिकंदरविसमकडगरोस् । परिवहति अपरितंतो णियगसरीमग्गने दंते॥ल०१३८॥६॥ तह पवयणभत्तिगओ साहम्मियवच्छलो असढभावो। परिवहति अपरिततो खित्तविसमकालदुग्गेसु ॥ ल०१३९ ॥७॥ जइ एकभाणजिमिता गिहिणोऽविय दीहमेनिया हॉनि। जिणवयणबहि भूना धम्मं पुत्रं अयाणता ॥ ल०१४०॥८॥किं पुण जगजीवसुहावहेण संभुंजिऊण समणेणं । सको हु(न)एकमेको नियोविवरक्खिउं देहो ? ॥२०१४१॥९॥ केरिसयं सं जे केरिसय पावि ऊ ण संभुजे? । भण्णइ उम्गमसुदं भुजे असुद्धं ण भुजेजा ॥ १९२०॥ चोदेआहारादी उम्गममादी असुद्ध मा भुजे। जं पुण अपेहणादीकालादीहिं उवयं तु ॥१॥ नं पुण सुद्धोवहिणा मा समयं एकहिं न बंधेजा। संघासेर्ण नम्स उ उवघाओ मा हु सुद्धस्स?॥२॥ भन्नति सुद्धस्स जती संघासेणं तु होइ उपधाती। सुबेण असुदेण(दस्सा)ऽपि पावइ सुद्धी तव मएणं ॥३॥ अह उवघातोनि मतं संफासेण उमता विसोही ने। णणु ने इच्छामेनन य इच्छामिनओ सिदी॥४॥ उवघातों विसोही वा णन्धि य जीवस्सभावओ एसो। उवघातो विसोही वा परिणामबसेण जीवस्स ॥५॥ तस्सेव पसत्यस्स उ परिणामस्स अह रक्खणट्ठाए । कीरइ संभोगविही गच्छपसनीइ मा गच्छे ॥६॥ संभोगकापदारं एवं खलु वणियं मए एवं। आलोयणकप्पविहिं एनो वोच्छं समासेणं ॥ ७॥ दुपिहपडिसेवणाए दोहाण दुयागताण ठाणाणं । जस्सेव उ अभिमुहओ आयोएजा नदबाए..१२जादा दपिया कपिया चेव. दुविहा पडिसेवणा । दप्पियाए उ दोडाणा, मूले तह उत्तरे चेव ॥९॥ कप्पियाएवि एमेव, दो ठाणा उ वियाहिया। जयणा अजयणा चेव, एकेका य वियाहिया ॥१९३०॥ जम्सेव अभिमुहोली जं चेव य काउ पिहरने पुरतो। आयरियउवमाया नस्सेव उ तं तु आलोए ॥१॥ अहवा जं जह सेवित मूलगुणे व उत्तरगुणे या पाणतिवातादीसु य वएसु तं तं तहाऽऽलोए ॥२॥ अहवा मोक्खाभिमुहो मोक्सट्टाए उ अट्ठकम्माणं । अणलोहए ण मुंबनि कम्हा? इणमो निसामेहि ॥३॥ जइविय तवगणजनो होइ मणस्सो अणवरियसाडो। ण करेति दुक्खमोक्खं सादरणे पततियां ॥४॥तं पण केरिसगस्स उ वियडेय तु? जाणतो जो तु। अविजाणते ण कम्पनि अजाणतो जो अगीयस्थो ॥५॥ पायच्छित्तमयाणतो, ठाणे ठाणे अहाविहिं । आलोयणाए उपसंपयाए ण हु होति पाउम्गो ॥६॥ किं कारणं? ण याणति सोहिं साहुस्स सोहिकामस्स। ठाणे ठाणे पुढवादिएमु मूलतरे वापि ॥ ॥ पाणनिवातादीसु य कारण णिकारणे य जयणाए। आलोयणगुणदोसदरिसणेणं हु पाउम्गो ॥८॥ गुण अणिगृहियमादी दोसा पुण गृहणादिया होति। एते ण याणे अगीतो तम्हा उ इमस्स णालोए ॥९॥ पायच्छिनं वियाणतो. ठाणे ठाणे अहाविहिं। आलोयणाए उवसंपयाए सो होइ पाउम्गो ॥१९४०॥ पडिसेवणऽतियारे दुविहे काले पपंधवोच्छेदे । एकेक छकएणं आलोयण मा पडिच्छाहि ॥..१२८॥१॥ पडिसेवणाऽतियारा दुबिहा मूलगुण उत्तरगुणे या परिसेवणकालोऽविय दुविहो उउबद्ध वासे य॥२॥ अशोच्छिन्न पचंध तचिवरीयं तु होइ वोचिट । वयनककायठकाकप्पादी छकमेकेकं ॥३॥ अकप्पादिछक्कमिणं अकप्प गिहिभायणं च पलियंको। ततो य गिहिणिसिजा होइ सिणाणं च सोभा य॥४॥ एतेसि छक्कगाणं एक्केस्कं जं तु होइ आवण्णो । तं तं आलोएं तहा पच्छिते याचि आयरिओ ॥५॥ आलोयणववहारो संवासिपवासिया ऊ अवराहा। संवासिया उ गचड़े पवासिता कारणगतम्स ॥६॥ अहवा जा अणवट्ठो ना संवासी न होंति अवराहा। पारंची य पचासी पवसति गच्छाओं जेणं तु ॥आ पंचपिहो समाओ दाणम्गहणम्मि भइओं संवासे । पाचासिए ण दिजति ण य गहणं होई काय ॥८॥ आवनगपरिहरिए अणवढे येव दोण्हऽवेनेसि । णवि दिजति णवि घेप्पति न सेसाणं दाण गहणं च ॥९॥ आलोयणाएं कप्पो एसो भणिओ मए समासेणं । उपसंपयाएं कप्पं एत्तो उ समासओ वोच्छं ॥१९५०॥ दुविहम्मि आगमम्मि उ पावणा पेप आयरणया य । पण्णवणगहणअणुपालणाएं उपसंपया भहोइ॥१॥ आगमहे उपसंपदा उस य आगमो भवे दुविहो । सुतं अत्यो य तहा पारगए तत्य उपसंपा ॥२॥ दो आयरिया पारग कत्थ उ उपसंपदा नहि कुजा?। जो णितणनरं भासनि अह निउणं दोवि भासंति ॥३॥ सामा यारी पडिलेहणादि जो तत्थ आवराचेति । दोसुवि समुजतेसू जो तहियं धम्मकहिओ उ॥४॥ तावि यदु सिक्खियथा समायस्सेव जेण नं अंगं । दोसुवि धम्मकही जो नहियं गाहगो होइ ॥५॥ गाहणसनिजतेसुं दोसु अवी कत्थ होति उपसंपा? । अतरंतअसहुवर्ग विसेसओ जो उ पालेति ॥ ६॥ एतेसु विसिद्भुतरो अण्णाहिंतोऽरिहाइ उपसंपे। इतरो होइ अजोग्गो जइविय सो होइ गीयत्यो ॥ ७॥ जो उ असंचिग पुण पण्णवणाकोक्दिोत्तिकाऊणं। उपसंपनइ बालो तस्स इमे होंति दोसा उ॥८॥सीहमुहं वन्यमुहं उयहिंव पलित्तर्गव जो पविसे। असिवं अवमोयरियं धुर्व सि अप्पा परिचत्तो॥९॥ तह चरणकरणहीणे पास जो उ पक्सिते मिक्स। जयमाणे उपजाहिउँसो ११०१पजकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाणे परिचयनि निषिण ॥१९६०॥ एमेव अहाउंदे कुसील ओसन्नमेव संसने। जं निचि परिचयंती नाणं नह दंसण चरित्नं ॥१॥ कं पुण उपसंपजे ? तत्य इमे गच्छ हाँति चत्तारि। एगो देह लएइ य वितियो देई न गेव्हा उ॥२॥ ननिओ न देनि गिहरण य देव ण गेण्हती चटन्थो उ। पढमे उपसंपजइ लेसा उनओ णऽणुण्णाया ॥३॥ बितिए णिजरलाभ न लभति गेलनमादिकजेसु । ततिए गिलाणकारण अहवसले मरणदोसा ॥४॥ दोणिऽवि चउत्थे दोसा होइ अवस्थू य तेण सो नम्हा। पढमम्मि जे गुणा खलु हति ने मे निसामेह ॥५॥ भत्तोपहिसयणासण दाणम्गहणे(लो) य एकमेकस्स। हट्टगिलाणे कयकारिते य अणइकमो ज(जोऽ)स्थ ॥६॥ जो पुण ते तूसंतो करेल उवसंपदं असुदेसु। निट्ठाणगाभिलासी हवइनु बोसट्टतिट्ठाणो ॥७॥ किंण ठिओ सि तहिं चिय? पुट्टो जंपेइ तस्सिमे दोसा । अप्पियसज्झायादी णस्थि य ते यावि जतितस्स ॥८॥ जं दोसं आभासति तं दोसं अप्पणा समावज्जे। जोबि पडिच्छइ नं न सोऽविय नं चेव आवजे ॥९॥ गच्छस्स जोवसंपे असुद्धमावजती तगं सोउं । जो पुण पडिच्छमाणो अविणीयादीहिं दोसेहिं ॥१९७०॥ दुसेउ ण पडिच्छति न संति ते यावि तस्स जदि दोसा। ताहे जं सो वदती तं दोसं अप्पणाऽऽवने ॥१॥ जं च असुद पटियति रागेणं नस्स जे भवे दोसा। वोसट्ठतिगट्ठाणादि ने उ सो अप्पणा पावे ॥२॥ अव्हा अणरुह उपसंपदा य भणिया उ होंति दोऽबेते । अयमण्णो उ अणरिहो मुरी उपसंपदाते उ॥३॥ आहारे उबहिम्मि य पगासणा होइ अणरिहमसड्ढे। एगंतणिजस्टा संविग्गजणम्मि उहेसो ॥..१२९॥४॥ आहारउवहिसेजालभिहामी तेण संगहं कुणति। होहामि वा पगासो लोए ण ऊ निजरहाए ॥५॥ एए होति अरिहा निनिणिचलचिनमादिणो जे य । अहवावि मंदसड्ढे आकट्टिविकहिए वावि ॥६॥ जो पुण इमेहि पंचहि ठाणेहिं वादे सो भवे अहो। संगहुवग्गहणिज्जरसुतपजवजातऽवोच्छिनी ॥ ७॥ तस्स पुण णिज्जरट्टा बाइंतस्स नियमेण मूरिम्स । आहारोवहिपूजापगासणा चेव भवती तु॥८॥ विणएगाहारादी उक्कोसा तस्स होति दायवा। काले कालणुरूवा जे वावि सभावअणुरुवा ॥९॥ उच्छूढसरीरो उ जइविय सो मंडलीय भुंजति ऊ। तहविय मत्त. मना ऊजह गानमसामि सामिणा गण्ह । हिडतस्स पुण इम तस्स उदासा भवती उ॥१॥ बाए पित्ते गणालोए, कायकिलेसे अचिंतता। मेढी अकारए वाले, गणचिंताब-13 ट्टि वादिणो ॥२॥ एतेसिं दाराणं वक्खाणुवार चिनिज उद्देसे । ववहारे भणिहिती वित्थरओ इह समासेणं ॥३॥ भत्तीए तु गुणाणं पगासणा तस्स तेहिं कायवा। एयारिसो महापा उजुत्तों अणज्जकालीओ॥४॥ थामावहारविजढो तवसं जमसुट्टिओ जियकसाओ। बहुसुय बहुआगमिओ भत्तीएं पगासए एवं ॥५॥ एसुवसंपदकप्पो वोच्छं उद्देसकप्पमहुणा उ। उदिसण वायणति य पाढणया चेव एगट्ठा ॥ ६॥ सुनस्थनदुभयाई पवायते नाव जाव संधा(सट्टा). णं । बहुपचवाययाए विजढे भजियं तु संधा(सट्ठा)णं॥..१३०॥ ७॥संधाणमंतगमणं असिवाई पञ्चवादऽणेगविहा। विजढेती निक्खिने जोगे भइओ पुणुक्खेवो ॥८॥जइ कारणेण केणई निक्खिनो नो सि उक्खिव पुणोवि। अह दप्पा णिक्खिनो तो ण उ उक्खिप्पती भुजो ॥९॥ उदिम्मि य अंगे सुयखंधम्मि य तहेव अज्झयणे । आसज पुरिस कारण तिट्टाणे होइ पडिसेहों।..१३१॥१५५०॥ अंगादी उद्दिढे पुरिसं दठूण अपरिणामादी। अच्छति वसट्टरा(या दिहि अविणीयादी व णाऊणं ॥१॥ ताहे निक्खिप्पनि ऊ तिट्ठाणे जंतु भणिय पडिसेहो । तं सुत्तमत्थतदुभय एतेसिं तिण्ह पडिसेहो ॥२॥ एसुहेसणकप्पो अहुणा बोच्छं अणुण्णकप्पं तु। कम्ही काले गहणं वत्थादीणं अणण्णानं? ॥३॥ वन्यपादग्गहणे वासावासेसु निगमो सरदे। तिगपणगसत्तयदुगाउयम्मि अप्पोदगं जाणे ॥.:१३२॥४॥ वत्थादीणं गहणं णाणुण्णातं तु होइ वासामु। वासादीएं परेणं दुमासे अण्णे उ गेण्हति ॥५॥ तेसिं पुण णेनाणं सरदे जड़ दोण्ह गाउयाणंनो। दगसंघट्ट जहण्णेण तिण्णि पंचेव मज्झिमगा ॥६॥ सत्तेव उ उक्कोसा गिम्हम्मी तिषिण पंच हेमते । वासासु य सत्त भवे परेण खित्तं णऽणुण्णानं ॥ ७॥ अप्पोदगति मग्गा जंतं रीयासु वणिर्य पवितं अड़े जोयण दगघट्टा जाव सनेव ॥८॥ वत्थंपायरगहणे णवसंथरणम्मि पढमठाणम्मि। एत्तो वहक्कमम्मि उ सट्टाणासेवणा सुही ।।..१३३॥९॥ पढम ठाणुस्सग्गी तेणं तू नवसु होइ खिनेसु। वत्थादीणं गहणं तत्व य होइ उ विहारो॥२०००॥णवठाणाइकमे पुण हवती सट्टाणओ विसुदो उ। कि पुण ने सट्टाणं अववादे असति तो होइ ? ॥१॥ अवबादेणं गहणं उस्सग्गो चेव होइ सो नाहे । गेण्हनस्स उ कारणे सुदी तह चेव बोदवा॥२॥ जह गिरोहतुस्सगे सुदी उवहिस्स एवं चिनिएणं । गेण्हंतस्स विसुद्धी सट्टाणं एवमक्खानं ॥३॥ अहवावि इमे अण्णे, णव उट्ठाणा वियाहिया। दवाईया उइणमो, वोच्छामि अणुपुषसो ॥४॥ दो खेने य काले य, वसही भिक्खमंतरे। सज्झाइए गुरू जोगी, एने ठाणा वियाहिया ॥ ५॥ दवाणाहारादिणि जादि तु सुलभाई तम्मि खेत्तम्मि। खितं विच्छिन्नं खलु वनंतसुणंतगगणस्स ॥६॥ वत्तण परियटुंती सुर्णति अत्थं गणो उबालादी। तस्स पहुबति खेत आहारादीहि सथरणं ॥ ७॥ काले तनियाएं वेला वसही जोम्गाओं भिक्ख सुलभंति। ण विगिट्टमंतराविय सज्झाओ सुज्झति जहिं च ॥ ८॥ सुलभं आयरियाणं जोगं जोगीण सुलभ पाउगं । एते ते नव ठाणा जहिं उस्समोण गहण तु॥९॥ उस्सग्गेण विहारो संथरमाणाण णवमु खिनेमु। तो सब्बुग्यावही नवि पाड़े यावि दगघट्टे ॥२०१०॥णवि दूरे गच्छंती णवगस्स असंभवे वितियठाणं । दगघट्टे बहुएवी पेढे दुरपि गच्छेजा ॥१॥ दुलमम्मि वत्थ| पाए ऊहिएरॉपि नवसु गच्छिना। एमेव विहारोपिहुखेत्ताणऽसती मुणेयधो ॥२॥ आलंचणे विमुद दुगुण तिगुण चउम्गुण वावि । खेनं कालातीत समणुण्णात पकप्पम्मि ॥३॥ एस अणुण्णाकप्पो अहुणा अद्धाणकप्प वो-24 बछामि। जेहिं च कारणेहि अद्धाणं गम्मए इणमो ॥४॥ असिवे ओमोयरिए रायबुट्टे भए व आगाढे। देसुटाणे अपरक्कमे य अद्धाणओ पणगं ॥ ५॥ उहहरे सुभिक्खे अद्धाणपक्जणं तु दप्पेणं । दिवसादी चठलहुगा चउगुरुगा कालगा होनि ॥६॥ उग्गम उप्पायणएसणाएं जे खलु विराहते ठाणे । नंनिप्फन्नं तस्स ऊ पायच्छित्तं तु दायच्वं ॥ ७॥ पुढवी आऊ तेऊ चेव वाऊ वणस्सति तसा य । णतेमु परित्तेसु य जं जहिं आरोवणा भणिया ॥८॥ लहुजो गुरुओ लहुगा गुरुगा चनारि उच्च लहुया या छगुरुय छेदो मुलं अणबटुप्पो य पारंची ॥९॥ असिवे ओमोदरिए रायबुट्टे भए व आगाढे। गीयत्था मज्झत्था सत्थस्स गवेसर्ण कुज्जा ॥२०२०॥ कालमकाले भोती णाऊण य अहिवर्ति अणण्णवणा। भिच्छयमिच्छादिट्टी धम्मकहाए निमित्ते य॥१॥ सत्त्यसमए संखडि पत्थय(रिच्छ)णे खलु तहव पांगलिए। धम्मकहनिमित्तणं वसहा पुण दालिंगेण ॥२॥ सरथे पंथे तेण पंचविहो उग्गहोयवाण।। ११०२ पत्रकल्पभायं मुनि दीपरनसागर ५ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुन्नग्गामे दबग्गहणं जयणाए गीयत्था ॥ ३ ॥ तुवरे फले य पत्ते गोमहिसे सूयरा य हत्थी य आतवमणायवे चिय जयणाए जाणगे गहणं ॥ ४ ॥ पिप्पलगसूतियारिगणक्खचणतलियपुडगबज्झे य कतियकत्तरिसिक्कग संवग लाउए चैव ॥ ५ ॥ वाइयपेत्तियसिंभियगुलिगाणं अगदसत्यकोसे य। जं चऽण्णुवगहकरगं गिन्हह अद्धाणकप्पम्मि ॥ ६ ॥ सीहाणुगा य पुरतो वसभाणू मग्गतो समणिति पंथे तंपिय जंता घरैति जा अद्धपजनी ॥ ७ ॥ इंडियमि चद्दिट्टी समुदाणनिवारणं च निश्सिए। सारुचिसन्निभद्दग वसभा पुण दवलिंगेणं ॥ ८॥ उवकरणचरित्ताणं विलोवणा सरीरलोयऽणागाडे । धम्मकहनिमित्तेणं पुलागकण आगाढे ॥ ९ ॥ असिवादिकारणेहिं अद्वाणपवणं अणुष्णातं । उवकरणपुङ्गपडिलेहिएण सत्थेण गंतवं ॥ २०३ ॥ वचंताणं असहू कोई ण तरिज गंतु पादेहिं। अपरक्कमो हु ताहे तवियं तु इमे विमग्गेजा ॥१॥ एगपुरे य दुखरे दुपए अणुबंधे तह य अणुरंगा। अह भहएऽभिजायनि असती अणुसट्टिमादीहिं ॥ १३४॥ २ ॥ एगखुरा आसाती दुखुरा उट्टादि दुपय जड्डादी। अणुबंधी सकडादी अणुरंग पिसी उ (सिविय) बोद्धव्या ॥ ३ ॥ एतेसिं पुषुवट्ट खुरादि जाइत सिद्धपुत्तादी असतीय खुडतो वा लिंगविवेगेण कइति तु ॥ ४ ॥ आवासियम्मि सत्ये तस्सेव वर्गपि अपिणंति पुणो अह भणइ गता संता अप्पेजाहत्ति मम एयं ॥ ५ ॥ ताहे पच्छकडादी चारेती तेसि असइ उ खुड्डो लिंगविवेगं काउं चारेति जा गतद्वाणं ॥ ६ ॥ एवं दुम्बुरादी मुवि जयणा जा जत्थ सा उ कायया । सुत्तत्थजाणएणं अप्पात्रहुयं तु णायां ॥ ७ ॥ एतेसामन्नतरं अणगाढालंचणे णिसेविजा। तट्ठाणगावराहे संवट्टियमोऽवराहाणं ॥ ८॥ संवट्टियात्रराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा। आयारपकप्पे जं पमाण निम्माण चरिमम्मि ॥ ९ ॥ अदाणकप्पो एसो अहुणा अणुवासणाए कप्पं तु । वोच्छामि गुरुवएसा अणुग्गट्टा सुविहियाणं ॥ २०४६॥ अणुवासम्म उ कप्पे पण्णवग पडुच्च बहुविहा अत्था। अणुवासियाएं पगयं सुद्धा य नहा असुद्धा य ॥ १ ॥ अणुवासत्यो बहुहा उडुवासे वसण अहह्व असिवादी वुढादीवासो वा अहवा अणुवसणमणुवासो ॥ २ ॥ वसिउं पुणोवि वसती अणुवासिग वसहि सामइगी सभा। तीयहिगारो एत्थं सा हुजा सुद्धऽसुद्धा वा ॥ ३ ॥ पट्टीवंसादीहि वंसगकडणादिएहि तह चेव होइ असुद्धा वसही मूलगुणे उत्तरगुणे य ॥ ४ ॥ कालदुयातिरितं अविसुद्धासुं च तासु वसमाणो । पावति पायच्छितं मोत्तूर्ण कारणमिमेहिं ॥ ५ ॥ असिवे ओमोयरिए रायददुट्टे ए व आगा। गेलले उत्तिमट्टे चरित्त सज्जातिते असती ॥ ६ ॥ चाहिं सवत्थऽसिवं तत्थ सिवं तेण कालदुयगम्मि। पुण्णेवि ण णिमाच्छे अणु पच्छाभाव अणुवासी ॥ ७॥ आलंबणे विसुद्धे सुत्तदुयं परिहरे पयत्तेणं । आसज्ज उ परिभोगं भयणा पडिसेवसंकमणे ॥ १३५॥८॥ असिवादीहि बसंते सुद्धाए बसहीऍ बसे साहू सुद्धासतीए जतती विसोहिकोडीऍ पुर्व तु ॥ ९ ॥ भयणत्तिय जं भणितं पुत्रऽप्पतराऽत्थ जे उ जे दोसा । ते ते पृवं सेवे संकमणेऽवी इमा भयणा ॥। २०५० ॥ अप्पाबहुं तुलेतुं जत्थ गुणा तू भविज्ज बहुतरगा गच्छे गच्छंताण व तं चेव तहिं करेजा उ ॥ १ ॥ असिवादिणिट्टिए पुण अव ( पुत्र ) क्वेवेण संकमे तत्तो। सत्थं तु पडिच्छंतो जइ अच्छे तत्थ मुद्धो उ ॥ २ ॥ रविणं अणुवासिय जे उ अणुवसे कप्पं कालद्द्यावराहे संघट्टयमोक्राहाणं ॥ ३ ॥ संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेब मूलं वा आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥ ४ ॥ अणुवासियाए कप्पो एमेसो वणिओ समासेणं । ठिकप्पमो उ तत्तो वोच्च्छामि गुरूवएसेणं ॥ ५ ॥ गच्छाणुकंपयाए सुत्तत्थविसारए य आयरिए आगाढे पढमसंजत ओवग्गहिए पकप्पदुए ॥ ६ ॥ गच्छो जदि हीरेजा आयरियं वावि वायते कोई एरिसए आगाढे जस्स उ जा होइ लदी उ ॥ ७ ॥ सो तं न पमाएई पढमनियंठो पुलागलडीओ। गच्छोवग्गहहे कारण पकप्पद्विअऽणुण्णा ॥ ८ ॥ दुपएत्ति साहुसाडुणि तदट्टहेतुं तु एव मूलगुणे। भणिया सेवा एसा सीसो पुच्छइ उ अह इणमो ॥ ९५ ॥ जह कारणम्मि भणिया मूलगुणेसुं तु एव पडिसेवा। तह होज कारणम्मी पडिसेवा उत्तरगुणेचि १ ॥ २०६० ॥ गुरुयतरएस एवं मूलगुणेसुं तु जइ भवेऽणुण्णा । उत्तरगुणेसु तत्तो लहुयतरेसुं ततोऽणुष्णा ॥ १ ॥ ठितकप्पेसो भणिओ अडणा वोच्छामि अट्टितं कप्पं संखेवपिंडितत्थं जह भणियमणंतनाणीहिं ॥ २ ॥ वत्थे पादग्गणे उक्कोसजहण्णगम्मि अठिओ उ ठितमट्टिते विसेसो परुवितो संपकप्पम्मि ॥ ३ ॥ वत्थाणि य पायाणि य मज्झिमतित्थंकराण कप्प म्मि । बहुमोल्लाणिवि गिष्हइ अद्वियकप्पो समक्खाओ ॥ ४ ॥ मोगरुयपि वत्थं अट्टारसपणितरूवग जहणणं । एत्तो य सयसहस्सं उक्कसमोहं तु णायनं ॥ ५ ॥ ऊणगअट्ठारसगं वत्थं पुण साहूणो अणुष्णातं । एत्तो वइरित्तं पुण णाणुष्णातं भवे वत्थं ॥ ल०१४२ ॥ ६ ॥ जिणराणं कप्पं अहुणा बोच्छामि आणुपुडीए। जं जन्थ जहा निवयति समासतो तं तहा सुणसु ॥ ७ ॥ जिणथेराणं कप्पो जम्हा उ ठितम्मि अट्टिए चेव । ठितअट्टितकप्पाणं जम्हा अंतरगता एते ॥ ८॥ जो उ विसेसो एत्यं तं तु समासेण णवरि वक्खामि। जिणथेराणं कप्पे जिणकप्पे ता इमं वोच्छं ॥९॥ दुयसत्तए तियचउक्कगस्स अद्धद्धएगछेदेणं। अवि होऊन कालकरणं पुणरावत्ती णविय तेसिं ॥ १३६। २०७० ॥ पिंडेसणा उ सन उ हवंति पाणेसणा दुसत्तेए चड सेजवत्थपाए तिष्णेते चउकगा हाँति ॥ १ ॥ दोष्णादिमा उ सत्तसु अवणेउं सेस उवरिमा पंच अद्धद्ध हाँति छेदे दो दो अवणे चउक्केसु ॥ २ ॥ गेव्हंति उवरिमासु तत्थ अवि धेनु अण्णतरियाए । हेडला गेहति जवि करे कालकिरियं तु ॥ ३ ॥ अणभिग्गहेण णवि ता गेण्हेति विही उ एस जिणकप्पे अहुणा उ थेरकप्पे वोच्छामि विहिं समासेणं ॥ ४ ॥ गहणे चउब्विहम्मि बितिए गहणं तु परमजनेणं । जं पाणवीयरहितं हविज तरमाणए सोही ॥ . . १३७ ॥ ५ ॥ गहणं चउब्जिहंती वत्थं पायं च सेज्ज आहारो। एतेसिं असतीए गहणं पढमं तु बीयस्स ॥ ६ ॥ त्रितियं पातं भन्नति किं कारण तस्स गहण पढमं तु? । तेण विण बोडिपि गिहिभायण भोगो हाणी य ॥ ७॥ अहवा चउविहं तू असणादी तत्थ होज गहणं तु तत्थ उ चितियं पाणे तस्स उ गहणं पढमताए । ल० १४३ ॥ ८ ॥ असतीय फामुयस्ता तससहिए कंदवीयसहिए वा किं कारण? तेण विणा आसुं पाणक्खओ होजा ॥ ल० १४४ ॥ ९ ॥ तरमाणों गेण्हती सुद्धं, अतरो पेले तह संथ संथरंतो उ गेव्हंती, पावति सद्वाणपच्छितं ॥ २०८० ॥ सत्तदुए दसए वा अणेगठाणेण वा भवे गहणं एतो तिगातिरितं गच्छे गहणं तु भइयवं ॥ १ ॥ पिंडेसण पाणेसण सत्तदुगे तं तु होइ णायां दसगं एसणदोसा गट्ठा (हा ) णुग्गमे दोसा ॥ २ ॥ एतो तिगातिरितं उग्गम उप्पायणेसणाऽसुखं भजियंति कप्पतित्ती तस्सऽसतीए असुपि ॥ ३ ॥ एसो उ थेरकप्पो वोच्छं अणुपालणाए कप्पं तु । अणुपालेति सुविहिया गच्छं विहिणा उ जेणं तु ॥ ४ ॥ परियही परिवहंतओ य दुविहो पुणोवि एकेको उवसग्गखे तकालायसेण अजाण परिवही ॥ १३८॥ ५ ॥ परियहियश्यं खलु परियही चेव -११०३ पञ्चकल्पभाप्यं 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 1 होइ एगई। समणा समणीओ वा दुविहं परियहियवं तु ॥ ६ ॥ समणपरियह दुविहो आयरिओ बीयओ उवज्झाओ। संजइपरियो पुण तिविहो तु पत्रत्तणी तइया ॥ ७॥ समणिपरियट्टि दुविहा विहिपरियट्टी य अविहिए चेव । जनिणिय परिपट्टिया नियमेण कारणेणिमिणा ॥ ८ ॥ ताओ बहूवसग्गा तेणादिदुसंचराणि खेत्ताणि कालवण य संपत्ति जायति लोगस्स पंवत्त ॥ ९॥ तम्हा सङ्घपयत्तेण रक्खियथा उ ताओ नियमेणं । गवि सतिरा मोत्ता मा होजा तासि उ विणासो ॥ २९० ॥ संविग्गगीयपरिणओ तासिं परियओ अणुष्णाओ । होइ पुण अणरिहो खलु परियही ऊ इमो तासि ॥ १ ॥ अबहुमुए अगीयत्थे तरुणे मंदधम्मिए। कंदप्पी सीलगडाए, अविही दाणे य गहणे य॥१३९॥२॥ बहुमुयगीय जहन्नो आवासगमादि जाव आयारों ने अग्गीतबहुस्सुत तिन्ह समाणारतो तरुणो ॥ ३ ॥ जो उज्जोगं ण कुणति चरणे सो होइ मंदधम्मो उ। अणिहुयउलाबादी सरीरकुवि (रुङ ) ओ य कंदापी ॥ ४ ॥ निकारणे अण्डा जनिवसही उवच्चए जो उ। निकारणमविहीए जो देती गिव्हती बावि ॥ ५ ॥ एयारिलो उ अजाणं, परियही उण कप्पति कारणेहिं इमेहिं तु, गम्मइ अज्जाणुवस्सयं ॥ ६ ॥ उवस्सए य गेलण्णे उवहीं संघ पाहुणे । सेहवण उसे, अण्णा मंडणे गणे ॥ ७ ॥ अगप्पज्झ अगणी आऊ, बी (ती) यारे पुत्तसंगमे संलेहगे वोसिरणे, बोसट्टाणे ठिते तहिं ॥ ८॥ अरिहो अणरिहो यात्रि, परियही एवमाहिओ अरुणा पचित्तिणी तासिं, अजोगा उ इमा भवे ॥ ९ ॥ वासग्गामविहारेसु. वीयारादेक दीहिया अजुनोवहि अणाउत्ता, अपच्चदाय काहिता ॥ १४०॥२१००॥ पडिणीयथमुहसीला, गिहिवेयावच्चकारिता संसत्तठवियभत्ता य. बाउसी अप्पणहिता ॥ १॥ अणायतणगबेसा ये छष्णं गाणं पल्लोइया जा यऽण्ण एवमादी य. अज्जा सा णाणुक हिता ॥ १४१ ॥२॥ आहारे उबहिंमि य गतएँ सयणासणे सरीरे य भासाएं चा उसाणं जा जहि आरोवणा भणिया ॥ ३॥ वासावासं वसति तु एक्किया तह यामण्गामं । दुइज्जती वियारं विहार भिक्लादि एका य ॥ ४ ॥ दीहं करेइ गोयर दोचमुकस्सगाणि मग्गंती चित्तलियादिनियंत्रण अजुत्तउवही भवति एसा ॥ ५ ॥ इरियभासेसणादाणनिक्खेवे निसिरणे अणाउत्ता । अणपृच्छाए गच्छद्र जन्थिच्छाए य सदा ॥ ६ ॥ गेहे गिहस्थाण गंतॄण कहा कहेति काहीया तरुणादी अहिवडते अणुजाणति जा उसा पडिणी ॥ ७ ॥ थदा जच्चाइमयाइएहिं सुहसील दुहसीलति । सिक्षणगंधणमादिसु वेयावचं गिहीण करें ॥ ८ ॥ उक्करसवत्थपत्तादिएहि समभाव संसना । अवावि मित्थेसुं पाउरणादीसु अविभत्ती ॥ ९॥ भतं वा पाणं वा निक्खिवती बाउसा उ जा धुवति। अभिक्खं तु हत्थपादे क+खतरगुज्झमादीणि ॥ २११० ॥ सण्णिहिसनिचए चैत्र कृणइ जा अप्पणी अणट्टाए । अयं वाचि अण्डा संचयं जा य करणं तु ॥ १ ॥ जंतादिसाल तह वट्टको एमेव सोल ठाणाणि जा गच्छड एते अणायतणगचेसिता सा उ ॥ २ ॥ गुज्झंगाणि पलोए अप्पणी अवाचि जा उ पुरिसाणं । उक्कांसगमाहारं एसनि उहि च उक्कोसं ॥ ३ ॥ गच्छति सविलासगती सयणिज्ज सतूलियं सविच्वोर्य उच्चड सरीरं सिणाणमादी व जा कुणति ॥ ४ ॥ भमुहुक्खेवादीहिं सविकारं भासती य सविलासं । एमादि अरिहा तू पच्छन्तं वादि सट्टा ॥ ५ ॥ तन्थ पुर्ण नाव इणमो पच्छितं भण्णई समासेणं दंतगधरेंवगाणं अगीतमादीण दोपि ॥ ६ ॥ अबहुसुते अगीयत्थे णिसिरेज गणं तु अहब धारेजा । तद्देवसितं तस्स उ मासा चन्नारि भारियया ॥ ७ ॥ सत्तरनं तयो हाइ, ततो छेदी पधावती छेदेण छिन्नपरिनाए ततो मूलं ततो दुगं ॥ ८॥ एकैकं सत्त दिने दाउ तयेऽतिच्छिए ततो छेदो जत्तो तो आरद्धो पणगादिकडो व जहि केइ ॥९॥ तुडाचे य ठाणा तवलेदाणं वर्ह(वं)ति दोपि। पणगादिपणगवढी दोहवि छम्मास निट्टणा ॥ २१२० ॥ किं कारणं न कप्पति गणहरो" अबस्ता अगीयत्थो । भण्णइ सो पच्छित्तं जयणं च ण जाणए काउं ॥ १ ॥ दितो णट्टेणं अजाणमाणेण जाणएणं च । कायवो इत्थ इणमो परूवणा तस्सिमा होइ ॥ २ ॥ गेयम्मि अहिणवम्मि य सरसंचाराण कुहरणासुं च कुणइ विवचासं खलु जह णट्टमसिक्खितो णट्टो ॥ ३ ॥ तह कुणति विवचासं अग्गीनो सबकरणजोगेसु । सुत्तत्थमजाणंतो नाणे नह दंसण चरिते ॥ ४॥ जह नद्गीयवाइयवजाणओ जुजए समं तालं । सुत्तं तु विजाणतो नह कुणती सम्मकरणं तु ॥ ५ ॥ किं पुण सो नवि जाणइ जं कुणती सबहिं विवचासं ? । भण्णइ सुणसू इणमो जं कुणती सो विवश्वासं ॥ ६ ॥ ठाणणितीय तुटण पेणपष्फोडणे नहा सयणे । भासा मुहग्गहणे जे अण्णे परूचिया ठाणा ॥ ७॥ उवदिसिउं णचि जाणइ सामायारिं तु ठाणमादीयं । अजावि जा अगीता ण जाणए साचि तह चैव ॥ ८॥ अप्पच्छंदिओ लुद्धों, परिभूओ य पत्थिओ । हलोहमोहसण्णो अज्ञावग्गो दुरणको ॥ १४२ ॥ ९॥ पाएणमप्पलंदा महस्वदाणेण लोभित अकिच्चं । कुति छगलियाविव परिभूताओ य सङ्घस्स ॥ २१३० ॥ मंसादिपेसियाविव संजतिवग्गों हु पत्थणिजो उ भिजाइदिट्टी बहु बहुमोहसणाओ ॥ १ ॥ मज्जायविष्पहूणे मजायाए य संपउनम्मि पडिसेहोऽणुष्णा ऊ मगधर विलोमता चउरो ॥ २ ॥ जम्हा उ दुपरियटो अजाबग्गी उ तेण पडिसेहो। परियटणे अजाणं मजायाविष्पहृणस्स ॥ ३॥ मज्जायसंपत्ती अज्जापरियहओ अणुष्णाओ। परियदृए अजोगे उबट्टिए चउगुरु सोही ॥ ४ ॥ मग्गधरो आयरिओ सो पुण सिढिलेइ जो उ मज्जायं । तस्सुवदे कीरइ मज्जायाए दढो होइ ॥ ५ ॥ उवदेससार पडिसारणा य तेण पर निष्णि मास लहू छंदे अट्टमा अप्पच्छेदं विवजए ॥ ६ ॥ दिता य इमेसि पढमा मासलहूगाव दिजति । गणपट्टण अवराहे सूरि कमेणं ॥ ७ ॥ आयरणे उवदेसो अकम्पपडिसेवणे य उवदेसो विकहादिपमाएस य मा वह एस उवदेसो ॥ ८ ॥ णिहाइपमादाइसु सई तु खलियरस सारणा होइ। गण कहिय ते पमाया मा सीदसु नेसु जाणतो ॥ ९ ॥ तदिवस बीए या सीदंतो बुच्चए पुणो तइयं । अण्णं वेल ण सज्क्षं भिक्खण्णादीहिं संसनं ॥ २१४०॥ फुडरले अचियन्तं गोणी उदितो व मा हु पेडिज सज्झ अओ ण भन्नइ पसन्नचित्ते ननो सारे ॥ १ ॥ भणति दिष्णु देसी तुच्भं वितियं च सारितऽम्हेहिं । एगवराहो ते सढो त्रितियं पुण ते गवि सहामो ॥ २ ॥ ताहे पुणोऽवराहे कयम्मि पच्छित्त देति मासलई भण्णइ य सुणेहेत्थं दितो तेणएणं तु ॥ ३ ॥ गोणादिहरणगहिओ मुकी य पुणो सोढ संगहिओ । उडोहडछगणहा न मुञ्चती जायमाणोऽवि ॥ ४ ॥ पुणरवि कताबराहे मासलहं चेव देति से सोही । भन्नति घट्टितं च(त)कथं दुइ तह तुमपि ॥ ५ ॥ पुणरवि अवरद्धम्मि मासो चिय तेसि दिजते दंडा । पाणो सो संपत्तो अइरुचियकुंकुमं तयं ॥ ६ ॥ तेण पर भिवणं कुलगणधेरादि तस्स कुवंति । अयमण्णोऽवी नियमो भण्णइ तू जस्सिमे दोसा || || अस्पण्लंदियई, गिलाणं दुपडिजग्गगं वामं गतिं गया. संवासोऽविण कम्पति ॥ १४३॥ ८॥ उम्मदेसणाए संतस्सय छायणाएँ मग्गस्स मग्गधरडवालंभे मासा चत्तारि भारियया ॥ ९॥ आयरियाणं छंदे ण वट्टती अप्पनंदिओ सो उ आहारादुकोस ल अत्तट्टि लुडो उ ॥ २१५० ॥ जो उ गिलाणी अपत्यं मग्गइ सो होइ (२७६) ११०४ पञ्चकल्पभाष्यं 1 मुनि दीपरत्नसागर कलय Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 दुपडिजग्गो उठाइसु भणिओ वचइ वच्चत्ति य ठाइ वामो सो ॥ १ ॥ जबादिमादिएहिं करेति गवं तु परिभवति अन्नं । नाणादीया मग्गो परूवणा अन्नहा तेसिं ॥ २ ॥ नाणादिसु सीदंतो न सुद्धमग्गं तु जो परूवेति। एसो मग्मच्छादो वढयती दीहसंसारं ॥ ३ ॥ एतेसिं तु विवेगो मग्गधरा खलु कुलादिया थेरा। तेहिं उबलद्वाणं उचट्ठियाणं गुरू चउरो (मासा) ॥ ४ ॥ बालाणं बुड्ढाणं भिक्खुमाईण चैव सीसिं। संखेवेण महत्यो उवएसो कीरई इणमो ॥ ५ ॥ कप्पे मुत्तत्थविसारएण थामावहारविजद्वेण । भत्तादिलंभऽलंभे सकारजद्वेण होयचं ॥ १४४॥६॥ कप्पैति थेरकप्पे सुत्तत्थविसारएण साहूण । सङ्घत्येसू सबलंण गृहियज्ञं समत्येण ॥ ७॥ आहारमादिएहिं दतुं धीयारमादि पुर्ज्जते। साहू अपुजमाणे ण एवं मणसा विचितेज्जा ॥ ८ ॥ पूइजंती अजया वयं तु सहष्णुमग्गमोइण्णा हा कह णुन पुजामो ? न करे मणदुक्कडं एवं ॥ ९ ॥ सकारपुरकारे परीसहे उ अहियासऊ एवं जूरंते णऽहियासिओ तम्हा सुमणेण होयचं ॥ २१६० ॥ वीसइविहकप्पो ऊ एसो खलु वष्णिओ समासेणं । बायलकप्पमहुणा गुरुवएसेण वोच्छामि ॥ १ ॥ दवे भावे तदुभय करणे वेरमणमेव साहारी । निवेस अंतर णयंतरे य ठिय अडिए १० चेव ॥ १४५ ॥ २ ॥ ठाण जिण र पजुसणमेव सुत्ते चरित्तमज्झयणे उद्देस वायण परिच्छणा य २० परियहऽणुप्पेहा ॥ १४६ ॥ ३ ॥ जायजा चिण्णमचिणे संधा (ठा)णमेव चयणे य उववाय णिसीहे या ३० ववहारे खेत्तकाले य ॥ १४७॥ ४ ॥ उवही संभोगे लिंगकप्प पडिसेवणा य अणुवासे । अणुपालणा अणुष्णा ४० ठवणा कप्पे ४२ य बोदते ॥ १४८॥५॥ एतेसिं तु पयाणं पत्तेय परूवणं पवक्खामि। तहियं तु दवकप्पो इणमो उ समासओ होति ॥ ६ ॥ पंचन्हं असणादीण पणुवीसति हि भवे विसोहीओ | अहवावि उ चउदसया एनो तिगवदिया सोही ||७|| असणं पाणं वत्थं पायं सिला य पंच एतेसिं सुद्धी पणवीसइया उग्गम तह एसणाए य ॥ ८ ॥ सुयणाणपमाणेण उ गहिय असुदेऽवि होइ खुदो उ। अहह्वावि उ छदसया सोलस उप्पायणादोसा ॥ ९ ॥ एएसि सङ्केसि हणपयणकिणादिणवहिं कोडीहिं । कयकारियाणुमोदित एसा तिगवढिया सोही ॥ २१७० ॥ दंसणनाणचरिने नवपवयणसञ्च (च) समिति तिहिं गुत्तो । हतरागदोसनिम्ममखमदमनियम डिओ निचं ॥ १॥ तदुभयकप्पो अहुणा एते चिय दवभावकप्पा उ । दोणिवि मिलिया एते तदुभयकप्पो इमो सो य ॥ २॥ आहारे अद्भुविहे से जोवहि पंच पंचग विसोही दंसणचरितगुत्तो तवसमितिगुणेहिं सोहे (हो) नि ॥३॥ असणादीओ चउहा उवकारि विहोय तस्सेव । एसऽविहाहारो परूवणा तस्सिमा होइ ॥ लः १४५ ॥ ४ ॥ असणं तु ओदणादी तदुबकारी उ खीरकुसणादी पाणं तु पाणमेव उ कप्पूरादी उ उवकारी ॥ २० १४६ ॥ ५ ॥ खाइम फलाइयं तू सुत्ता (ण्ठा) दी होति तदुबकारी उ साइम तंबोलादी चुण्णादी तदुवकारी उ । ल० १४७ ॥ ६ ॥ एवं आहारादी उग्गम उप्पायणेसणासुद्धे । उप्पाए दंसणादीहिं जुत्तो अहवा तदट्टाए ॥ ७॥ विरती य अविरती या विरयाविरती य तिविह करणं तु एकेक होइ दुहा आहे य अभिग्गहे चैव ॥ १४९ ॥ ८ ॥ विरनीकरणं आहे पंचेव महश्या भवती उ। होति अभिग्गहकरणं पिंडविसुद्वादि णेगविहं ॥ ९ ॥ अहवा आहे संजमों विभागओ होइ सत्तरसभेदो। अविरति असंजमोहे अट्ठारस अभिग्राहे इणमी ॥२१८॥ पाणइवाए मोसे अदन मेहुण परिग्गहे चैव। कोहमाण (मय) मायलोभे पेज्जे दोसे तहा कलहे ॥ १ ॥ अब्भक्रखाणे पेयुन्न अरति रई चेव मायमोसे य मिच्छादंसणस अद्धारस अभि हे एस ॥ २ ॥ विस्तारितीए पुण आहेण अणुवया भवे पंच उत्तरगुणा अभिग्गह हवंति सिक्खायता सत्त ॥ ३ ॥ एत्यं पुण अहियारो विश्तीकरणेण होइ दुविहेणं । जह तेसु अतीयारो न होति तह ऊ पयतियत्रं ॥ ४ ॥ उज्जामरक्खियाणं महवयाणं कओ हवति पीला ? भन्नति आहारादिहिं तिहिं पीडा होतऽसुदेहिं ॥ १५० ॥ ल० १४८ ॥ ५॥ उज्जम उजोओ खलु एतेणं रक्खियाण उ वयाणं पीला उवधाओं खलु भवति कहं पृच्छती सीसो ॥ ६ ॥ भणति आहारोबहिसेजा एतेहिं तिहि जसुद्धेहिं । उग्गमदोसादीहि उपीला संजय वया ॥ ७॥ तम्हा उ उग्गमादीहिं विमुद्धाऽऽहारमादिया कला वेरमणकप्प एसो एतो साहारणं वोच्छं ॥ ८॥ सेज्जुबहिज्झाय आहारमेव साहार तह य अणुकंपा आदिपणगं तु तु भइयं अणुसासणाए उ ॥ १५१ ॥ ९ ॥ सेज्जुबहिझायआहार पसिद्धा एते होंति चत्तारि साहारणकप्पो पुण मूलगुणा उत्तरगुणा य ॥ २१९० ॥ साहारणति किं पुण से जादुष्पादगाण ससि । सामण्णगुणा ते ऊ तम्हा साहारणं जाण ॥ १॥ आदिपणगं तु तुर्हति जान सेजाति जाब साहारे ठियमट्ठियाण दोन्हवि एए खलु होंति तुला उ ॥ २ ॥ अहवा तिपणग मूलगुण पंचेते होंति दोह तुहा उ समणाण व समणीण व तम्हा साहारणं जाणे ॥ ३ ॥ भइयमणुसासणंती अणुकंपऽणुसासणन्ति एगट्ठा। कोइ कदाइ अणिउणो ण तरति अणुसासणं काउं ॥ ४ ॥ सुभारियत्तणेणं होति विसुद्धो य अंतरप्पा से तस्सवि होंति बताई पंचवि साहारणाई तु ॥ ५ ॥ आणा तित्थगराणं सामण्णा संजयाण सङ्केसि सुहुमेवि तप्पमाए अणुसासणयं कुणइ जो उ ॥ ६ ॥ तेण अणुकंपिया णिच्छएण जम्हाणुस ( उ उ )ट्ठिता होंति । तेणऽणुकंपऽणुसडी (सऽणुसहऽणुकंपा ) एगट्ठा होंति नायवा ॥ ७ ॥ साहारकप्प एसो अहुणा वोच्छामि णिविसणरूपं जह निधिसंति समणा सम्मं तु गुरूवएसेणं ॥ ८ ॥ नाणं च दंसणं वा तहा चरितं च समितिगुसीओ एकासीतिपदेहिं निविस निवेसणाकप्पो ११०५ पञ्चकल्पभाष्यं मुनि दीपरत्नसागर Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥९॥ छबिहकप्पादीया बायालंता उ पंचवी एते। मेलीणा उ भवंती एकासीयं भवे मेदा ॥२२००॥ नवरं छबिहकप्पे वीसतिकप्पे य णामठवणाओ। मोनू सेसा सवे एकासीई तु मेलीणा ॥१॥ एए सो सम्म निशिसमाणस्स निविसणकप्पो। एतेसिं पुण कतरो महिढिओ होइ सबेसि ? ॥२॥ सबेऽवि हु चरणविसोहिकारगा तहवि अस्थि हु विसेसो। सदहणा. चरणाए भइतं पुण पालणाए उ॥३॥ सहहणाकप्पो या आचरणा व दो पहाणतरा। अहवा सरहण बिय सहहिउं जो ण आयरति ॥४॥ भइयमणुपालणत्ति य सहहिऊर्णपि ण तई कोई । अणुपालेडं अजा तम्हा खलु सोण पहावे ॥५॥ णिविसणकप्पों एसो एत्तो वोच्छामि अंतराकप्पं । संखेवपिंडियत्थं गुरूवएसं जहाकमसो ॥६॥ पंचवाणमसंखा बारसगं बेव तिषिणवि तियाणं । अत्यनाणकरणद्याएँ सो अंतराकप्पो .:.१५२॥७॥सामादिसंजतादी पंचह चरणं तु तेसि एकेका संजमठाणमसंखा एकेके तत्थ ठाणम्मिा होति अणंता चारित्तपज्जवा ताणऽसंखगुणियाणि। एक संजमकंडग कंडगसंखा य उट्ठाणा ॥९॥छट्ठाणाऽसंखेजा संजमसेदी उ होइ पोदया। सामादिछेदसंजमठाणा गंतुं असंखेजा ॥२२१०॥ परिहरिसंजमठाणा ताहे लग्गति तेऽपि उ असंखा। गंतृण होति छिचा ताहे तत्तो पुणो परओ॥१॥ वड्दति जा असंखा सामाइयछेदसंजमट्ठाणा। सामादिछेदठाणा ताहे छिमा भर्वती उ॥२॥ तो सुहमरागठाणा तेऽवि असंखेज गंतु वोच्छिषा । तस्स अपच्छिमठाणं अणंतगुणवड्ढियं नियमा ॥३॥ एक परमविसुद्ध होइ अहक्खायसंजमट्ठाणं। पंचमसंखत्ति गतं न बारसगं बार पडिमाओ॥४॥ सुद्धपरिहार चउरो अणुपरिहारीवि गरम कप्पठितो । एते तिमि तिया खलु एतेसिं एकमेकस्स ॥५॥ अंतरसंजमठाणा होति असंखा उ तेसि सबेसि। 17 होइ दुविहा उ सोही करणे अज्झत्यो चेव ॥६॥ता दोवि य कायचा नाणवाए सुतोवउत्तेण । एसो अंतरकप्पो गयकप्पमियाणि बोच्छामि ॥७॥ सरेसिपि गयाणं आदेसणयंतरंपि सट्टाणे । एस नयंतरकप्पो पुगतविसालमादीसु ॥..१५३॥८॥ सवेवि भेगमादी आदिस्सति जो णयो उ साऽऽदेसो। णयतो अग्नोषि णो णयंतरं होइ नायचं ॥९॥ सट्टाणे सटाणे सजे बलिया हवंति सचिसते। एसो गयकप्पो ऊ पुत्रगतम्मी समक्खाओ॥२२२० ॥ उप्पदपुज्य विसालं तं आदि काउ सव्वपुब्बेसु । भणिओ य णयविभागो एत्यं चोदेति अह सीसो॥१॥ कम्हा कालियसुते न नयावि समोयरंति उ? कहं वा । णयविगल होति साहण मोक्खस्स उ? भण्णति सुणाहि ॥२॥ णयवजिओपि हु अलं दुक्खक्खयकारओ जइ. जणस्स । चरणकरणाणुओगो तेण उ पढर्म कर्य दारं ॥३॥ आयारपकप्पधरो कप्पञ्चवहारधारओ अज्जो ।। णयसुत्तवजिओऽवि हु गणपरियट्टी अणुण्णाओ॥..१५४॥४॥ पच्छित्तक रण अणुपालणा य भणिया उ कप्पववहारे। एएण अत्थधारी गणधारी जो चरणधारी ॥५॥ अजोत्ती आमंतण निहेसे वा णयस्स सुत्ताई। जाई तु दिट्टिवाते पच्छित्तं विजए तह उ॥६॥ तेहिं विणावि जाणइ आयारपकप्पधारओ जम्हा। तम्हा उ अणुचाओ गणपरियट्टी उ सो नियमा ॥७॥ करणाणुपालगाणं तु पजवकसिणं समासओ णाणं। करणाणुपालणदुतं पज्जवकसिर्ण भये तिविहं ।।..१५५॥८॥दुतिपणछककणयंतरेसु सोलस हवंति ठाणाई।करणट्ठाण पसत्या करणट्ठाणा उअपसस्था॥.:.१५६॥९॥एयाईठाणाई दोहिंविगाहाहिं जाइंभणियाई। तेर्सि परूवणमिणमोसमासओहोइबोदवं॥२२३०॥करर्ण तकिया होई पडिलेहणमादिसामयारी उपालिनइनाणेणतंचविहं मणेया॥१॥ पन्जवकसिणसमासो पजवकसिणं तु चोइस उ पुथा। सामाइयं पकप्पो होइ समासो मुणेयचो ॥२॥ पजवकसिणं तिविहं सुत्ते अत्ये व तदुभए वेव। एमेव समासोऽवि हु तेहिं उ पालिजए चरणं ॥३॥ तस्स णएहिं मग्गण ते उ समासेण हॉति दुविहा उ। दवडिपजवहित गया तु अविसे सितविसिट्ठा ॥४॥ वण्णादिसमुदियं तू दवट्ठी दरमिच्छए णियमा।तं चेय पजवणओ दवाइवि. सेसियं इच्छे ॥५॥ अहवावि तित्रिवि णया दञ्चद्वित पजवट्टित गुणट्ठी। पजायविसेसञ्चिय सुहुमतरागा गुणा हॉति ॥६॥ एगगुणकालगादिसु परिसंख गुणडिओ उ णायचो। दवाओ गुणाऽणण्णे गुणा विसेसत्ति एगट्ठा ॥७॥ आदिला तिषिण णया एको चितिओ य होइ उजुसुओ। सदादि तिण्णि वेको तिण्णि णया होति एवं वा ॥८॥ अहवावि णिगमसंगहवबहारुजमएँ होति चउरेते। सरणय तिणि एको पंच गया होंति एवं तु ॥९॥ अहवावि होज छकं णिगमो संगाहिओ असंगाही। संगाहितों संगहंत पवहार पविट्ठऽसंगाही ॥२२४०॥ तम्हा उ संगहणओ ववहारो घेच होइ उजुसुओ। सहो य समभिरुढो एवंभूओ य छक्क णया ॥१॥ एते पुण सोऽवी दुग तिग पण उक मेलिया संता। सोलस जयंतराई समासओ हॉति एयाई ॥२॥ जइ कुणइ दवियकप्पं एतेहिं णयंतरेहिं तु विसुदं। करणवाण पसत्था ते खल होती मुणेयथा ॥३॥अकरेंते अपसत्या कप्पे सणयंतरे समक्खाओ। कप्पे ठितमठिते पुण बोच्छामऽहुणा समासेणं ॥४॥ संघयणवजिओवि हुदुक्खक्खयकारओ पणग जाओ।संघयणसमग्गस्सवि अजाय चउरो अमोक्खाए॥५॥ पंच उमहण्याई पणगं तेसिं तु जो करे पयर्त। जाओ जो निष्कमो अजाओ णियमा अनिष्फण्णो ॥६॥ठितमद्विते व कप्पे संघयणेणावि जो विहीणो उ। सो कुणा दुक्खमोक्खं जो पुणण करे पयत्तं तु ॥७॥ पंचम महबएसुं संघयणेणं तु जहवि संपनो। सो चउगइसंसारे भमई ण व पावई मोक्खं ॥८॥ अहुणा उठाणकप्पो उहाणाइओ मुणेयत्रो । ठियकप्पसंजयस्सविऽणुण्णाओ अद्वितस्सावि ११०६ पाकल्पभाष्य - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 ॥९॥ एवं जिणकप्पोवि उ ठितकप्पे अहिए यऽणुण्णाओ । एमेव थेरकप्पो ठितमठिते होतिऽणुणाओ ॥ २१५० ॥ पजूवासणकप्पो सुत्ते कप्पो तहा चरित्ते य । अज्मयणुडेसम्मि य कप्पो तह वायणाए य ॥१॥ कप्पो पहिच्छणाए परियऽणुपेहणाएँ कप्पो य । ठियमद्विएसु दोसुवि एते सत्वे भवे कप्पे ॥२॥ जातमजाओ अहुणा दोण्णिवि एते समं तु वच्चंति। जार्य निष्फनंतिय एगई होइनाय॥३॥ जातमजातं करणं जाते करणे गती तिहा छिण्णा। अजाते करणम्मि उ अन्नतरीतं गतीं जाइ॥४॥ जायं खल निष्फन सुत्तेणऽत्थेण तदु. 9 भएणं च। चरणेण य संजुतं वइरित्तं होइ अज्जातं ॥५॥ जातकरणेण छिन्ना नरगतिरिक्खा गती उ दोन्नि भवे । अहवा तिहा उ छिन्ना णरगतिरिक्खा मणुस्सगती ॥६॥ देवेसुवि छिन्ना बेमाणिएसु उववत्ती। चउसुवि गतीसु गच्छति अन्नतरि अजातकरणेणं ॥७॥ एसो जातमजाए कप्पोऽभिहितो इदाणि वक्खामि। आइण्णमणाइन्ने कप्पं तु गुरुवएसेणं ॥८॥ आहारचउके करण फासणे खेत्तकालउवगरणे। आइण्णे आइन्नं तविवरीए अणाइण्णं ॥.:.१५७॥९॥आहारचउर आयरणं तू तस्स उ जं जत्थ आइण्णं ॥२२६०॥ पिसितं सिंधूविसए डाई(यं) पुण उत्तरावहाइण्णं । तंबोलं दमिलेसु एमादी खेतमाइण्णं ॥ ल०१४९॥१॥ काले दुभिक्खादिसु पलंषमादी तु सव्वमाइण्णं । उवगरणे आइण्णं वोच्छामि अओ समासेणं ॥ ल०१५०॥२॥ सिंधू आउलियाई काला कप्पा सुरइविसयंमि। दुगुडादि पुंडवद्धणि महरहेसुं च जलपूरा ॥ल०१५१॥३॥ एवं जत्थाइण्णं तहियं तू कप्पती उ आयरिउं। इतरत्य कारणम्मी फासण गहणं च परिभोगो ॥ल०१५२॥४॥ आइण्णे चउवग्गे ण य पीलाकारओ पवयणे य। ण य मइलणा पवयणे णाइण्णं आयरे कप्प..॥५॥ आहार उवहि सेजा सेहा चउवग्गों होइ णायो । पवयणपीलुवघाओ पिसियाई मजपाइति ॥६॥ चोदेइ का मइलणा? भण्णइ पडि. सेहियाणि जं सेवे। सा होइ मइलणा ऊ जो पुण सुपरिडिओ चरणे ॥७॥ तण्णाउ सलाहेइ वण्णेइ गुणेहिं एस जुत्तोत्ति। सुलु करे अप्पहितं जो पुण करणे अजुत्तो उ॥८॥ तं दट्टुं संदेहो उप्पजइ किण्णु एस सच्छंदो। आओ णं उवएसो एरिसओ देसिओ समए ? ॥९॥ आह जिणकप्पियाणऽवि आइण्णं किंचि अस्थि अह नस्थि?। भण्णइ न अस्थि किं पुण आयरें जिणकप्पियाइण्णं ॥२२७०॥ आहारउवहिदेहे निरवेक्खो नवरि निजरापेही। संघयणविरियजुत्तो आइण्णं आयरइ कप्पं ॥१॥ दसणनाणचरित्ते तवे य तह भावणासु समितीसु। छण्हपि तिप्पगारं सहह संधाण साहणता ॥२॥सदहति सम्मदसण आयरति परुवर्ण च कुणमाणो। संधाणकप्प एसो एवं सेसाणवी णेयं ॥३॥ संधाणकप्प एसो भणिओ उ समासओ जिणक्खाओ।संखेवसमुदि8 एत्तोवोच्छं चरणकप्पं ॥४ा आहार उबहि सेजा तिकरणसोहीएँ जाहिं परितंतो।परिगहितविहाराओ तो चवती विसयपडिबदो॥..१५८॥५॥ कोई विसेसं बुज्झति पसस्थठाणा अहं परिभट्ठो। अंधत्तेणं कोई ण बुज्झए मंदधम्मत्ता ॥६॥ दवे भावे अंधो दब्वे चक्खूहिं भावे ओसण्णो। संविग्गत्तं ण रोयति णितियाण पहाणमिच्छंतो॥७॥ जुत्तो जुत्तविहारी तं व पसंसए सुलहबोही। ओसमविहारं पुण पसंसए दीहसंसारी॥८॥आहार उवहि सेजा नीयावासेऽवि तिकरणऽविसोही। तह भावंधा केई इमं पहाणंति घोसंति ॥९॥नीयाइविहारम्मिवि जइ कुणती निग्गहं कसायाणं। तस्स हुभवते सिद्धी अवितहसुत्ते भणियमेयं ॥२२८०॥ बहुमोहेवि हु पुष्धि विहरेत्ता संबुडे करे कालं। S सो सिझइ अविय इमे पुरिसज्जाया भवे चउरो॥१॥ नाणेणं संपण्णो णो उ चरित्तेण एत्थ चउभंगो। तेणेसेव पहाणो एवं भासंति निम्मा ॥२॥ तम्हा उण एयाई कुज्जा आलंबणाई 5 मइमं तु। कुजाहि पसत्याति इमाई आलंबणाई तु ॥३॥ तित्थगराणं चरियं चरियं कसिणंगपारगाणं च। जो जाणइ सहहती ओसनं सो न रोएइ ।।..१५९॥ ४॥ धुवसिज्झियश्वग| म्मिवि तित्थगरो जइ तवम्मि उजमति । किं पुण तबउज्जोगो अवसेसेहिं ण कायद्यो? ॥५॥ चोदसपुत्री कसिणंगपारगा तेसि जो उ उज्जोगो । तं जो जाणइ सो खलु संविग्गविहारसहहतो॥६॥ एमादी आलंपण काउं संविग्गतं न रोएति। को पुण ओसन्नत्तं रोएती? भन्नइ इमो तु ॥७॥ सुत्तत्थतदुभए अकडजोगि ओसन्नरोयओ होजा। अहवा दुग्गहियत्थो अहवावी मंदधम्मत्ता ॥..१६०॥८॥ अन्नाणियऽकडजोगी दुग्गहियत्यो उ जेण अववादो। गहिओ णवि उस्सम्मो गहिते वा मंदधम्मोउ ॥९॥ सो रोए ओसण्णे इति एसो वनिओ चयणकप्पो । उववादकप्पमहुणा वोच्छामि जहकमेणं तु ॥२२९० ॥ पंचहि ठाणेहिं बियट्टिऊण संविग्गसड्ढयाजुत्तो। अम्भुजतं विहारं उबेद उववायकप्पो सो॥..१६१॥१॥ उववयणं उबवातो पासस्थादी य पंच ठाणाओ। तेसु विविहं तु पट्टितों वियट्टितो होइ णायचो ॥२॥ संवेगसमावण्णो पच्छा उ उबेइ उज्जयविहार। एस उबवायकप्पो णिसीहकप्प | अओ वोच्छं ॥३॥ चउहा निसीहकप्पो सद्दह अगुपालणा गहण सोही । सद्दहणाविय दुविहा ओहे निसीहे विभागे य ।।..१६२॥४॥ ओहेति हत्थकम्मं कुणमाणे रागमूलिया दोसा। गिण्हणमादि विभागे अहवोहो होइ उस्सग्गो॥५॥ अववादोहु विभागो सवंऽपेयं तु सदहंतस्स । सद्दहणाए कप्पो होइ अकप्पो पुण इमो हु॥६॥ मिच्छत्तस्सुदएणं ओसन्नविहा| रताएँ सदहणा। गणहरमेरं ओहं ण सदहती जो णिसीहं तु॥७॥ ओसन्नाण विहारं सदहति सुविहियाण गणमेरं । न उ सदहती जो खलु एस अकप्पो उ सदहणे ॥८॥ जाणि ११०७ पञ्जकल्पभाष्य - मुनि दीपरत्नसागर Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणियाणि सुत्ते पुधावरवाहियाणि वीसाए। तांणि अणुपालयतो सबाणि णिसीहकप्पो उ ॥९॥ सुत्तस्थतदुभयाणं गहर्ण बहुमाणविणयमच्छेरै । चोहसपश्चिनिबद्ध कप्पे गहियम्मि गणहारी ॥२३००॥ तिविहो य पकप्पधरो सुत्ते अत्ये य तदुभए वेव । सुत्तधर मोतु तइओ बितिओ वा होइ गणहारी ॥१॥ तिग पणा पणग छकं अट्ठगणवर्ग च जस्स उवलदं । ठवणाकरण दाणं च सोहु सोही बियाणाहि ।।..१६३॥२॥ नाणाईणं तियर्ग पणगं ववहारों होइपंचविहो। वितिय पणग पंच बता उकं पुण होंति छकाया॥३॥ आलोयणारिहगुणे अट्ठ । आलोयणतादीयं मुलंतं जाणती जोत॥४॥ आलोयणमादीयं अणवर्दृतं तुणवविहं होति । पारंचितंतमहवा दसविहें होती चसहेणं॥५॥ठवणारोवणकरण सफला मासा करेत्तु जो जाणे । सो होति दाणअरिहो तबिवरीओ अणरिहो उ ॥६॥ किह पुण तं दायवं पायच्छित्तं तु? पुच्छए सीसो। भण्णइ इमेण विहिणा दायत जहाकमसो॥७॥ ओहेण उ सवाणं सवाणविभागता पवित्यारो। पच्छित्तपुरिसहेऊ किंति?ण संती चरणमादी॥८॥ओहे सट्ठाणंति यजह बउगुरु होह रायपिंडम्मि। सट्ठाणविभागे पुण ईसरमादी मुणेयत्रो ॥९॥जह या करकम्मम्मि य ओहेर्ण होइ मासगुरुयं तु। होइ विभागपसंगो दिवादीओ मुणेयवो ॥२३१०॥ पुरिसज्जातं जाउं च दिजए जं च जारिस बत्यु। गुरुमादिवलियम्बलडगिलाणादि जं जोगं ॥१॥ हेऊ कारण निकारणे य जयणादिसेवियं जह उ। चोदेति किंनिमित्तं पच्छित्तं विजए? सुणम् ॥२॥ पायच्छिते असं - सम्मि, चरितं तु न चिट्ठए। चरित्तम्मि असंतम्मि, तित्ये णो सचरित्तया॥३॥ तित्यम्मिय असंतम्मि, शार्ण तु न गच्छती। णेशाणम्मि असंतम्मि, सच्चा दिक्खा निरस्थिया ॥४॥ एवं निसीहकप्पो चउहा तू वणिओ समासेणं। ववहारकप्पमहुणा गुरूवएसेण वोच्छामि ॥५॥ ववहारे कोइ भिक्स् सचित्तनिवातनिधमहुरेहिं । ववहरती ववहारं वितहं सो संघमजा - स्मि ॥६॥ कोइ पहुस्सुय भिक्खू अपुषनगरम्मि कंचि ववहारं। णाएणं छिंदित्ता वत्थव्वेहि पमाणकतो ॥ ७॥ अह पच्छा सचित्तं खुड्डाई तस्स केणई दिण्णं । वसही पाउरणं वा | करऽम्ह पर्व ववहरेउ ॥८॥धयतिल्लादी णिवं खंडगुलादीहिं वावि संगहितो । सबाहि(अच्चालि)एहिं ताहे ववहरए पक्खवाएणं ॥९॥ दुहववहारिएणं को उ णिसेहिज? तो वदे। संघो। एय? संघमेलो कीरइ इणमो सयं (यसं) पत्तो॥२३२०॥ अण्णो तहिं तु गीतो संघसमत्तीए तिणि वारा उ । उचारे सिद्धपुत्तो तत्थ य मेरा इमा होइ॥१॥ घुट्टम्मि संघसदे । घृलीजंघोऽवि जो ण एनाहि । कुलगणसंघसमाए लम्गइ गुरुए व चउमासे ॥२॥ जं काहिंति अकर्ज तं पापति सति बले अगच्छंतो। अण्णा(आणा)ड्या व ओहावणादि तेसिं च जं कुजा ॥३॥ सोऊण संघसई धूलीजंधेवि होति आगमण । धूलीजंघनिमित्तं ववहारों उवहितो होइ ॥४॥ सोऊण संघसदं धूलीजंघो उ आगओ संतो। वितह ववहारमाणे साहू समएण बारेइ ॥५॥ निदं महुर निवात कितिकम्म विजाणएमु जपतो। सञ्चित्त खेत मीसे अत्यधर णिहोड दिसहरणं ॥६॥ भिक्खू य मुसाबादी ववहारे तइयगम्मि उडेसे। मुत्तं उबारेती अहबहु पक्खा इमं होइ ।। ७ रागेण व दोसेण व पक्वग्गणम्मि एक्कमिकस्स । कजम्मि कीरमाणे किं अच्छा संघ मज्झत्यो ? || रागेण व दोसेण व पक्वग्गहणेण एकमेकस्स। कजम्मि कीरमाणे अण्णोऽवि भणेउता कोई? ॥९॥ कुलगणसंघट्ठवर्ण इहण याणामि देसिओ मि अहं । अण्णेणवि ता केणइ कप्पड़ इह जंपिउं किंचि? ॥२३३०॥ संपेण अणुण्णाते अह जंपति सो ताहें गुणसमिदो। ववहारनीइकुसलो अणुमाणतो तयं संघ ॥१॥ संघो महाणुभावो अहं च वेदेसिओ इहं भंते!। संघसमिति ण जाणे तं मे सच (थे) खमावेमि ॥२॥ देसे देसे ठवणा अमा अशा य होइ समिती य। गीयत्येऽभिणातं विदेसिओऽहं ण जाणामि ॥ ३॥ अणुमाणेत्ता एवं ताहेऽणुण्णाए जंपए इणमो। परिसावत्रहारीण य इमे गुणे ऊ समासेणं ॥४॥ परिसा वबहारी वा मज्झत्था रागदोसणिहुयादि । जति होति दोचि पक्खा ववहरिउं तो सुहं होति ॥५॥ बुत्तेवऽत्यधरेणं जति उ ववहारिणो उ जपेजा। नूर्ण तुम्हे | मण्णह मजा सविकवयणंति ॥६॥ सेसा उ मुसाबादी सञ्चपरिभट्ठगा उ किं सवे? । मण्णइ सुणेह एवं भूतत्थमिणं समासेणं ॥ ७॥ ओसन्नचरणकरणे सवववहारता दुसरहिया। चरणकरणं जहंतो समयवहारयपि जहे ॥८॥ जइया अणेण चत्तं अप्पणयं नाणदसणचरितं । तइया तस्स परेसुं अणुकंपा नस्थि जीवेसुं॥९॥ भवसयसहस्सदुलहं जिणवयणं भावओ जहंतस्स । जस्स ण जातं दुक्खं न तस्स दुवं परे दुहिए ॥२३४०॥ आयारे पट्टतो आयारपरुवणे असंकियओ। आयारपरिभट्ठी सुद्धचरणदेसणे भइओ।ल०१५४॥१॥ तित्थगरे मगवते जगजीववियाणए तिलोगगुरू । जो न करेति पमाणे मोन पमाणं सुपधराणं ॥२॥ तित्थयरे भगवते जगजीववियाणए तिलोगगुरू। जो उ करेति पमाणं सो उ पमाणं सुयधराण ॥ ल०१५५॥३॥ संघो गुणसंघातो संघो य विमोयओ पम्माण। रागहोस विमुको होइ समो सव्वसाहूणं ॥ल०१५६ ॥४॥ परिणामियबुद्धीए उववेओ होइ समणसंघो उ। कले णिच्छितकारी सुपरिच्छियकारओ संघो ॥५॥ एकसि दुवेव तिष्णि व पेसविते ण एइ परिभवेणं तु । आणाइकमणिजहणाउ आउद्यवहारो॥६॥ आसासो वीसासो सीतपरसमो य होति मा भाती(हि)। अम्मापीतिसमाणो संघो सरणं तु सवेसि ॥ ७॥ सीसो पडिच्चओ वा आयरिओ वा न सोग्गई णेति। जे समकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥८॥ सीसो पडिच्छओवा आयरिओ वावि ते इह लोगं । जे सञ्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥९॥ सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघा ण सोग्गई णेति । जे सचकरणजोगा ते संसारा (२७७) ११०८ पञ्चकल्पमाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमोएंति ॥२३५०॥ सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघो व एनि इहलोए। जे सचकरणजोगा ने संसारा विमोएंति ॥ ल. १५७॥१॥ सीसे कुलिबाएँ गणिचए वसंघिचए य समद. रिसी। ववहारसंथवेमु य सो सीतघरोपमो संघो ॥२॥ गिहिसंघानं जहिडं संजमसंघाततं समुक्गम्म । नाणचरणसंघातं संघाएन्तो हवइ संघो॥३॥णाणचरणसंघात रागहोसेहिं जो विसंघाते। सो संघाए अचुहो गिहिसंघातम्मि अप्पाणं ॥४॥ नाणचरणसंघातं रागहोसेहिं जो विसंघाए। सो भमिही संसारं चाउरतं तं अणवयम्गं ॥५॥ दुक्खेण लभति वोहिं बुदोवि य न लभते चरितंतु। उम्मरगदेसणाए तित्थगरासायणाए य॥६॥ उम्मग्गदेसणाए संतस्स य छादणाए मम्गस्सा पंधइ कम्मरयमलं जरमरणमणंतगं घोर ॥ल०१५८।। AIविहं उवसंपद नाऊणं खेत्तकालपञ्चज। तो संघमझयारे ववहरियाई अणिस्साणं ॥८॥निदरिसणं तत्थ इमे तगराणगरीय सोलसायरिया। अण्णायणायकारी तत्यऽयवहारि अट्ट इमे 2॥९॥मा किने कंकडुयं कुणिमं पक्कुत्तरं च चच्चा(वच्चा)ई। बहिरं च गुंठसमणं अंबिलसमणं च निम्मं ॥२३६०॥ कंकडुओविव मासो सिदि ण उवेति तस्स ववहारो। कुणिमणिहो वण सुज्झइ दुच्छिजो एव बितियस्स ॥१॥ पक्कुलाब भयाओ कजंपि ण सेसतं उदीरेति। पादेणं आउत्तिय उत्तरसोवाहणेणंति॥२॥ रोमंथयते कजं चब्बा(वच्चा)दी नीरसंविवऽ सणेत्ति। कहिए कजे संते बहिरो व भणाति ण सुतं मे ॥३॥ मरहठ्ठलाडपुच्छा केरिसया लाड? गुंठ ! साहिस्सं। पावारभडिभणं दसियागणणं पुणो दाणं ॥४॥ गुंठादि एवमादीहिं हरति मोहिनु नं तु ववहारं। अंबफरसेहि अप्पो ण णेति सिद्धिं च ववहारो॥५॥ एते अकजकारी तगराए आसि तम्मि उजुगम्मि। जेहि कना ववहारा खोडिजनऽण्णरजेसु ॥६॥ उहयोगम्मि अकित्ती परलोए दुग्गई धुवा तेसिं । अणणाएं जिणिंदाणं जे ववहारं ववहरंति ॥ल०१५९॥ ७॥ बत्तीस तु सहस्सा गच्छो उक्कोसओ य उसभंमि । बहुगच्छुबग्गहकरा इनियमित्ताण जत्थ संथरणं ॥७०१६०॥ कित्तेऽहं पुसमित्तं धीरं सिवकोट्ठति च अजा(ज्झा)सं। अहरण्णग धम्मण्णग खंदिल गोविंददनं चटाएते उ कजकारी नगराए आसि तम्मि उ जुगम्मि । जेहिं कता ववहारा अक्खोभा अन्नरजेसु ॥९॥ इहलोगम्मिवि कित्ती परलोगे सुग्गई धुवा तेसिं। आणाएं जिणिदाणं जे ववहारं बवहरंनि ।।२३७०॥ तहियं पुण केरिसएण जंपियनं तु होइ समणेण ?। भण्णइ सुणसू इणमो जारिसएणं तु वोत्तवं ॥१॥ पारायणे समत्ते घिरपरिवाडी पुणोवि संविग्गो। जो निग्गओ विदिण्णे गुरु हिं सो होति ववहारी॥..१६४ ॥२॥ मूल पारायणं पढम, वितियं च दु(बहु)मेतिमं । ततियं च निरवसेसं, जइ सुज्झेति गाहगो ॥३॥ सुत्नत्थो खलु पढमो बितिओ निनुनिमीसओ भणिओ। ननिओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे॥४॥पडिणीय मंदधम्मो जो निग्गओं अप्पणो सकम्मेहिं । ण हु होइ सो पमाणं असमनो देसनिग्गमणे ॥ ५॥ आयरियादेसाऽवारिएण सत्येण गुणितझ(स)रिएण । तो संघमझयारे ववहरियवं अणिस्साए ॥ ६॥ आयरियअणादेसा वारिएण सच्छंद बुद्धिरतिएणं । सञ्चित्तखित्तमीसे जो ववहरनी ण सो घण्णो ॥७॥ सो अभिमुहेह लदो संसारकडिल्लगम्मि अप्पाणं। उम्मग्गदेसणाए तित्थगरासायणाए य॥८॥ उम्मग्गदेस भारियया ॥९॥ परिवार इढ धम्मकह वादि खमए तहेब नेमित्ती। विजा राइणिया इढिगारवो अट्टहा होइ॥२३८०॥ एमादिगाखेहि अकोविया जे उतत्थ भासिजा ने वनव इणमो न तुज्झ भागो इहं वोत्तुं ॥१॥ बहुपरिवारो भन्नति जय परिवारेण होज कजं तु। तह (य)परिवारं दिजसु वुड्ढो पुण भण्णई इणमो॥२॥ लोगेण जन्य समयं वबहारगयं तु नत्थ हुजाहि । तन्थ तुम जंपिजसु धम्मकही भण्णइ इमं तु ॥३॥ जहियं धम्मकहाए कजं तहियं तुम भणिजासि। वादी जत्थ उ वादिपओयणं नत्थ भासिजा ॥ ४॥ समगो भन्नई इणमो देवयकजं जहिं भविजाहि । अप्तिवादिकारणेहिं तत्थ तुमं तं करिजासि ॥५॥ विज्जासिद्धो भण्णइ विजाए जत्य संघकजम्मि । कर्ज होज करेजसु रायणिओ भण्णइ इमं तु ॥६॥ वेले किनिकम्मस्स उ अणुवटुंताण वंदर्ण अहं । कु(लि)जाहि तुम गंतुं इह पुण गीयस्स विसओ उ ॥७॥ण हु गारवेण सक्का बवहरिठं संघमज्झयारम्मि । णासेई अगीयन्यो अप्पाणं चेव गच्छंच॥८॥णासेई अगीयत्यो चउरंग सबलोगसारंग। णडम्मि य चउरंगे ण हु सुलभ होइ चाउरंग ॥९॥ थिरपरिवारीहिं बहुमुएहिं संविम्मणिम्सियकरेहि। कजम्मि भासिय अणुओगे गंधहस्थीहिं ॥२३९०॥ मादी य मुसाबादी बितियं ततियं वयं च लोवेति। मायी य पावजीवी असुतीलिने कणगदंडे ॥१॥ आभवते पबिछने ववहारों समासनो भवे दुविहो। दोसु य पणगं पणगं आभयंते अहीकारो॥२॥ सचिनो अचित्तो य मीसओ खेत्तकालनिष्फण्णो। पंचविहो यवहारो आभतो उणायब्बो॥..१६५॥३॥ सेहम्मि उ सचिनो अचिनो हबनि वत्थमादीओ। मीसो सभडगाणं खेत्तम्मि उ गाममादीहिं ॥४॥ नगरादसखित्ते पुण वसहीए तत्य मम्गणा होइ। काले उदु वासासु य आभवणा होइ णायव्वा ॥५॥ अहवाऽऽभवनमण्णो उक्संपयखेत्तकालपवजा। नाऊण संघमझे ववहरियव्वं अणिस्साणं ॥ ६॥ सुन सुहदुक्खे खिने मग्गे विणए य पंचहा होइ। सवावि य एयाओ सुयणाणमणुप्पवत्तीओ ॥७॥ जत्थ 3 सुओवसंपद तत्थ उसचा हवंति (वि होन्ति) एयाओ। अहवा सुओचदिट्ठा ण तु सेच्छाए हवंतेया ॥८॥ गुम्सीसपडिच्छाणं निण्हवि को कस्स ११०९ पञ्चकल्पभाप्यं - मुनि दीपरत्नसागर 44444 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किंचुपकरेइ ? वेयावचगमागम काले चिंतादि दोय ॥९॥ सीसो आयरियस्स उ वेयावच्चं तु कुणइ जाजीयं । जहिं गच्छइ तहिं पचति पेसेड व जत्थ तहिं जाइ॥२४००॥ कर्ज समाणइत्ता एलईच सबमप्पेति। कायनुवरगहो ऊनाणादीएहिं गुरुणाऽवि॥१॥ दवे सचित्तादीलाभो सीसम्स जो नहिं होति। सोविय जावजीवं सो गुरुणो उ आभवति ॥२॥ कुणती पाठिच्छोपि उबेयावर्ष तु असणमादीहिं। वचाइ य पमाणे] कालेणं रोयती जाय ॥३॥ गेव्हा या जाच सुतं ता कुणई सबमेव पाडिच्छो। एत्तो दो बोच्छ जं आभवती उ पादिच्छे ॥४॥ज होइ नालबवं अभिसंधारेंतर्गतर्ग एति। संदेसदिग्णगं वा गामे चिंधेयकाले य॥५॥ बडीऽणंतर संतर अर्णतरा छजणा इमे होति। माता पिता त भाता भगिणी पुत्तो य घूया य॥६॥ मातुं माया य पिया माता भगिणी य एवं पिउणोऽवि। भाउभगिणीणऽवचा धूतापुत्ताणवि तहेव ॥ ७॥ पारंपरवति एसा जइ तं धारे पहिच्छगस्सेव । अह णो अमिधारेती सुवगुरुणो तो उ आभशा ॥८॥ संगारो पुत्रको पच्छा पाडिच्छओ उ सो जाओ। तेण णिवेदेया उपट्टिता पुषसेहा मे ॥५॥ एवइएहि दिणेहि उम्भ सगास अवस्स एहामो । संगारो एवं कतो चिंधाणि य तेसि चिंधेड़ ॥२४१०॥ कालेण य चिंधेहि य अविसंवादीहिं तस्स गुरुणिहा। कालम्मि विसंवदिए पुच्छिजति किं न आओ सि? ॥१॥ संगारिवदिवसेहिं जड गेलण्णादि दीपयति तो उतरसेव अहत भावो विपरिणओ पच्छ पण जाओ॥२॥ता होइ गुरुस्सेव तु एवं सुयसंपदाए भणितं तु । मुहदुस्सुसंपने एत्तो लाभ पक्क्खामि ॥३॥ बहसु मम सुहदुक्खे अहमपि उम्भे तु एवमुक्सपे। पुरपच्छसंयुया ऊसो लभतीजे या पानीसं ॥४॥ मुहदुक्खसंपएसा एत्तो खेत्तोवर्सपदं वोच्छं। खेत्तोरगहो सकोस वाघाए वा अकोर्स तु ॥५॥ पत्ते उग्गह साहारणे य बासे तहेव उदुबदे। सबदिसासु सकोसं निवाघाएण पत्ते उ॥६॥ अडविजलतेणसावतवाचाते एगदुत्तिचाउमुंबा होज अकोसो उग्गहों अहुणा साहारणं वोच्छ ॥ ७॥साहारण होजाही पडिलेडणपुषपच्छनिम्ममणे । पुर्व पच्छा पत्ते आयरिए वसभअजासु ॥..१६६॥८॥ दुगमादीगच्छाणं पडिलेहगणिगयाण समगं तु। पत्ता खेतं एसो पढ़मगभंगो मुणेयव्यो ॥९॥ समगं निगम एके पच्छा पत्ता य चितियओ भंगो। पच्छा निग्गय पुच्वं पविट्ठ पच्छा य दुहतोचि ॥२४२०॥ पढमगभंगे जो खलु पुखि तु अणुमति ते खेत्ती । समगं पुणऽणुनविए सामर्न होइ दोण्हंपि ॥१॥ वितियगभंगे दप्पेण पुच्चि पत्ता उ जइ णऽणुणवंति । इयरेसिं असदाण य अणु. न्नताण खेतं तु ॥२॥ पुरनिमाता कहं पुण पच्छा पत्ता उ ते हविजाहि ?। गेलण्णखमगपारणवाघातो अंतर हविज्जा ॥३॥ गेलण्णवाउलाणं तु, खेत्तमण्णस्स णो दए। निसिद्धो स्वमओ घेव, तेण तस्स न लब्भती ॥४॥ अंतरवाघाएणं पच्छा पत्ताण पुचि जे पत्ता। असदेहिं अणुन्नवितं पुचि पत्ताण तं खित्तं ॥५॥ अह समगमणुचविए काउ पमादपि तो उ साहारं। एवं तु वितियभंगो अहुणा ततियम्मि वोच्छामि ॥६॥ पच्छावि पत्थियाणं सभावसिग्धगतिणो भवे खेत्तं। एमेव य आसने दूरद्धाणा व पत्ताणं ॥ ७॥ भंगे चउत्थगम्मी पुषाणुण्णाएँ असढभावाणं। पढमगभंगसरिच्छा आभवणा तत्थ नायचा ॥८॥ पुतगहिओवि उग्गहों होति गिलाणहुताए जहियो। अह होजा संथरणं कालक्खेवो दुपक्सेचि॥९॥ पुवट्ठितखेत्तीर्ण जइ आगच्छे गिलाणइत्तपणे। जइ दोण्ह असंथरणं तो निम्गमों खेत्तियाणं तु ॥२४३० ॥ अह दोहवि संथरणं दोव्हिवि इच्छंति जा गिलाणो उ। एते य दुनि पक्खा अहवा समणा य समणीओ ॥१॥ गिलाण उवहीकिच्चा भत्तोवहिलुद्धताऽविहिग्गहितं । पेठती परखेत्तं साहम्मियतेणिया तिविहा ॥२॥ उवही णियडी माया गिलाणणिस्साएँ विजमाणेवि । छड्डेत्तु एंति खित्ते भत्तोवहिलुद्धताए उ॥३॥ लम्भंति सुंदराई गिलाणणियडीएँ एंति तो तत्थ। इतरेवि गिलाणोत्तीकाउं तओं णेति खेत्ताउ ॥४॥ तेसुं तु निम्गएमुं सचित्तादी उ तिविह जं गेण्हे । तं तेसि होति तेणं पच्छित्तं चेव तिविहं तु ॥५॥ जे पुण असंथरता एंति तर्हि तेसिमा भवे मेरा । आयरियसभअजाण चेव वोच्छं समासेणं ॥६॥ अच्छंति संथरे सव्वे, वसभो नीई असंथरे । जत्थ तुला भवे दोवि, तत्थिमा होति मग्गणा ॥७॥ निष्फण्ण तरण सेहे जुंगियपातच्छिणासकरकण्णा । एमेव संजईणं णवरं वुड्ढीसु णा. णत्तं ।।..१६७॥८॥ परिवार अणिप्फनो अच्छति निष्फण्णतो उ निग्गच्छे। अच्छति वुड्ढ तरुणा य णिति सेहे असेहिडे ॥९॥(निति) अच्छति जुंगिता तु णितियरे अहव जुंगिता दोवि। ग तरुणीओ ॥२४४०॥ समणाण य समणीण य अच्छंती संजईउ नियमेणं । जेण बहुपञ्चवाता अणुकंपा तेण समणीणं ॥१॥ संथारे भत्तसंतुट्ठा, तस्स लाभम्मि अप्पभू। जुंगितमादीएम, व्यंति खित्ती ण ते जेसिं ॥२॥ दुषमादीगच्छाणं खित्ते साहारणम्मि बसियो । अप्पत्तियपडिसेहत्थया(इता)ए मेरा इमा तत्थ॥३॥ अस्थि बहु वसभगामा कुदेसनगरोवमा सुहविहारा । बहुगच्छुचम्गकरा सीमच्छेदेण वसियव्वं ॥४॥ आयरियउवझाया दुहिं तिहिं सहिया उ पंचओ गच्छो। एव तु गच्छा तिनि उ उदुबद्ध संघरे जत्थ ॥५॥ वासामु तिचउजुया आयरियउवा सत्तओ गच्छो। एव तु गच्छा तिनि उ वासासु संथरे जत्थ ॥ ६॥ कालदुयम्मिवि एवं जहण्णय होइ बासखेत्तं तु। बत्तीसं तु सहस्सा गच्छो उकोस उसमम्मि ॥७॥बहुगावग्गहकरा एत्तियमेत्ताण जत्य संथरणं। ऊणा अणुक्रमहिता सीमच्छेदं अओ योच्छं ॥८॥ तुम्भऽतो मह चाहिं तुम्भ सचित्तं ममेतरं वावि। १११० पत्रकल्पभायं - Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगंतुयवत्यमा यीपुरिसकुलेसु व विसेसो ॥९॥ वेगो सकोसजोयण मूलनिर्वधे अणुम्मुयंतेण। सचित्ते अचित्ते मीसेऽविय दिग्णकालम्मि ॥२४५०॥ सेसत्ती निस्साहारणमि मूलक्खेत्त अणुमुर्यतर्ण । होइ सकोसं जोयण दिसविदिसासु तु सपत्तो॥१॥ एवं खेत्तओं एसो कालओं उदुबदि होइमासो उ। वासासु चउम्मासो एवतिकालो विदिण्णो उ॥२॥ एवइकाल विदिणं पुण्णे निकारणम्मि तेण परं । ण उवम्गहो विदिण्णो मोत्तूणं कारणमिमेहिं ॥३॥ असिवादिकारणेहिं दुविहऽतिरेगेऽवि उग्गहो होइ । जा कारणं तु छिण्णं तेण परं उरगहोण भवे ॥४॥ जइ होइ खेत्तकप्पो असती खेत्ताण होज बहुगावि। खेतेण य कालेण य सवस्सवि उग्गहोणगरे ॥५॥ सति लंमे खेत्ताणं जोग्गाणं जो उ जत्य संथरति। सो तहियं संचिक्खे खेत्ताण असती पुण पहुंपि ॥ ६॥ एगत्य उ गामादिसु जहियं तू संघरंति तहिं अच्छे। सबेसि तहिं उग्गहों साहारण होति जह णगरे ॥७॥ एसा खेत्तुवसंपद पुरपच्छासंथुए लमति एत्य। तह मित्तवयंसा या जं च लभ सुतोवसंपनो ॥८॥ मग्गोवसंपदाए मगं देसेइ जाव सो तस्स। लभती दिवाभट्ठादि जो य लाभो पुरिलाण ॥९॥ विणओवसंपदा पुण कुवति विणयं तु जो उ रायणिए। स तस्साभवती जो उ उवट्ठायती तस्स ॥२४६०॥ उपसंपद इसा पंचविहा बशिया समासेणं । खेत्तम्मि परे खित्ते णिक्वमिओ जो उ होजाहि ॥१॥ काले उदु वासं वा बसिऊणं निग्गयाण जो अण्णो। पढमबितियदिवसेसू निक्खामे कालओ एसो ॥२॥ इन्चेसो पंचविहो ववहारो आभवंतिओ णामं । पच्छित्ते ववहारो जह दस. (पढ)मुद्देस ववहारे ॥३॥ अहुणा उ खेत्तकाला तेवि उ तत्व भणित ववहारे । जं तत्थ उ तस्सेसं तमहं वोच्छं समासेणं ॥४॥ दुविहे विहारकाले तिविहा सोही उ उवहिभत्ताणं । दिण्णे जतंत सोही अविदिण्णवाएं आवण्णे ॥..१६८॥५॥ उदुबद्धे वासासु य विहारकालो उ होइ दुविहेसो। उग्गम उप्पायण एसणा य एसा तिविह सोही ॥६॥ उदुबद्ध मास वासासु हाँति चउरो विदिन्नकालो उ । एत्य जयंता जइबि हुआवजे तहवि सुदा उ॥७॥ मासा चउमासा पुण संवसमाणा उ तत्थ अतिरित्तं । म(ल)गंति जयंताविहु किमु अजयंता उ? किं. चऽणं ॥८॥ उदुबद्धवासवासं अणुवसमाणो असुद्धभत्तुवही । आयरियप्पमाणा गुणप्पमाणं च समणाणं ॥९॥ उग्गममादी दोसा असेवमाणोवि सो उ आवण्णो । जम्हा दोसायतणं उरम्मि थावेत्तु संवसति ॥२४७०॥ कत्येयं भणियंतिय ? भन्नति आयरिएण किमायारे?। आयारपकप्पे ऊ आयारिभवंतु आयारी ॥१॥ जे मिक्खु णितियवासं वसइत्ती एत्थ भणिय सुत्तम्मि । एवं पमाण उभये अइरित्ते यावि जे दोसा ॥२॥ जदि पुण बहिया हाणी तहिं वढि गुणाण तत्य अच्छति । के पुण गुणादि भणिया? भन्नति नाणादिया होति ॥३॥ कालातीते दोसा दक्खओं होइ अच्छमाणाणं । तम्हा उ ण चिट्ठिजा अतिरित्तं दुविहकालम्मि ॥४॥ निद्दय अणुकंपाए गिहिणं तो णाम ण वसहा तुम्मे । भण्णति ण होति एवं मा साहुणं चरणभेदो॥.:.१६९॥५॥ चोदेताहारादिसु सुजनतेसूऽवि णाम जं वीए। तत्य ण चिट्ठह तण्णाम णिहयत्तेण गहियाण ॥६॥ मा पाविहिंति धर्म गिहिणो साहूण फा. णं । इय णिहयता अहवा इहलोगणकंपया तेसिं॥७॥मा दव्वखओ होही अणुवासे णिचसाहुदाणेणं । इय अणुकंपिहलोए भण्णइ ण उ एवमादीहिं॥८॥मा होज चरणभेदो पुण्णातीतंमि संवसंताणं। अतिचिरसंवासेणं सिणेहमादीहिं दोसेहिं ॥९॥ एसो उ कालकप्पो एवं वक्खाणिओ समासेणं। अहुणा उ उचहिकप्पं गुरूवएसेण वोच्छामि ॥२४८०॥ उवगेहति उवकारं करेइ उवहीयतेण उवही उ। किं कारणं तु उवही उदिसिओ? भण्णती सुणसु ॥१॥जीवाणऽणुग्गहवा एवं खलु वन्निओ इहं तित्थे। काऊणऽणुग्गहपदं पडिणीयपदे | अभावो उ॥२॥ रसयादणुकंपट्टा अगणीमादीण चेव रक्खट्ठा। असहूणऽणुकंपट्ठा य उवहीगहणं जिणा बेंति ॥३॥ आह जहऽणुग्गहट्ठा वत्यादीगहण देसियं समए। तो असहूणं कम्हा यीपरिभोगो णऽणुण्णाओ? ॥४॥ भण्णइ पवित्ति कम्हिऽवि कम्हिऽवि पुण होति अपवित्ती उ।संजमपडिणीयत्ता मेहुणमादीण नाणुण्णा ॥५॥ नाणचरणट्ठियाणं उवम्गहं कु. पति नाणचरणाणं । आहारउवहिसेजा तेण उ उवहित्तणं बेति॥६॥ जस्स पुणोबहि गहिता उवघातकरी उ तस्स उवघातो। कह उवधात करेती? अइरित्तगहो य मुच्छा य ॥७॥ संघरमाणो गेण्हति अतिरित्तं उवहि जो भवे समणो।वण्णादिजुते मुच्छति इट्टाहारे धुवस्सेवं ॥८॥ एतेसु अणिट्टेसु य जो दुस्सति से करेइ उवघातं । नाणादीणं तिष्हं तम्हा ते बज्जिए हेतू ॥९॥जो जत्थ जदा जहियं उवही परिभोगओ अणुण्णाओ। सो तत्थ अणइचारो अणणुण्णाते चरणभेदो॥२४९०॥जह सिंधूओ कप्पो ओराला उणिया अणुषणाता। पि. सियादीण य गहणं खीरादीणं चऽणुण्णातं ॥१॥ अतिहिमदेसे य तहा कारणितगताण सिसिरकालम्मि। परिभुजंताण य को विवाद? चरणे अणुवघातो ॥२॥ लाडविसयादिएसुं एतेसिं चेव भोत्तु पडिसेहो। पडिसिद्धे परिभोगं कुणमाणो भंजती चरणं ॥३॥ नाणंपि उ सो मिंदइ उवदेसं जेण ण कुणती तस्स। जं नाणपुछ देसण दसणभेदोवि तो तेणं ॥४॥ निवदिक्तितमतरतादिएसु कजेसु होइ परिभोगो । समणुनाओ कसिणादियाण इहरा अणुवभोगो ॥५॥ एसो उ उवहिकप्पो अहुणा संभोगकप्प वोच्छामि । तस्स पसाहणहेउं - गाहामुत्तं इमं आह॥६॥णवि राया गवि दोसा संभोगविही उ वण्णिओ सुत्ते । नाणचरणट्ठियाणं मणियं सुयनाणपुरिसेहिं॥१७॥७॥रागेणं संमुंजति सिणेहओ तेहिं सद्धि ११११ पञ्चकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर * Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मम पीती । जच्चादणुवसमे (गे)ण व दोसेणेवं ण संमुंजे ॥ ८ ॥ नाणचरणे रयाणं एसुवदेसो उ वण्णिओ सत्या तं गणहरेहिं गहियं तो ते सुतनाणपुरिसा उ ॥ ९ ॥ किं कारणं अणुण्णा ? संभो विही उ एस साहूणं । भण्णइ नाणादीर्ण परिवड्डी एवं होहिति तु ॥ २५०० ॥ अण्णोऽण्णस्स सगासे नाणमहीहिंति जं च तं गहिता। होहिंति थिरा चरणे काहिंति गिलाण किचं च ॥ १ ॥ जति संभोगगुणा ते ता सडे कीस ण परिभुजंति ? । भण्णति सरिसऽहिगेहिं व संभोगो ण पुण हीणेहिं ॥ २ ॥ अस्थि पुण केइ पुरिसा तिगंतिगेणं पमाय कुब्वंति। आहारउवहि। सेजा जुत्तो संभुंजणाबंधो ॥ .. १७१ ॥ ३ ॥ आहारादीतियगं उग्गममादी असुद्ध गहणेणं । जे कुब्वंति पमादं तेसिं संवासदोसेणं ॥ ४ ॥ अणुमोदणपचतिओ मा बंधो होहितित्ति तेणं तु । णवि कीर संभोगो तेवि य चाग (विगता वरं होता ॥ ५॥ णणु रागदोसियत्तं संभुंजण एग एगऽसंभोगे ? भण्णति ण रागदोसा मुणसू जं कारणं एत्थं ॥ ६ ॥ संभुंजणा विसुद्धा उवग्गहं कुणइ नाणचरणाणं। संभुंजणा असुद्धा चरितभेदं वियाणाहि ॥ ७ ॥ भोगेण पमाएणं तदोसाणं तु होइ समगुण्णा एवं चरित्तभेदो किं पुण सो कुवति पमादं ? ॥ ८ ॥ प्यारसपडिबद्धो सुद्ध असुद्ध करेइ संभोगं अहवावि अजाणतो संभोगविहीए गुणदोसे ॥ १७२ ॥ ९ ॥ पूजाहेतु पमादी सेवति रसहेउगं च तस्सेवी नाणादिसुद्धकप्पं कुण्ड असुद्धं तु सो एवं ॥ २५१० ॥ बारस मूलपदा खलु संभोगविहीय वष्णिया सुत्ते जत्तो पावादाणं भणितं दुट्ठाण उक्खेवो ॥ १ ॥ उवहिसुतभत्तपाणे, अंजलीपग्गहे इय वायणाय णिकाए य. अम्भुट्टा णेत्तियावरे ॥ ल० १६१ ॥ २ ॥ किइकम्मस्स य करणे, वैयावचकरणेइय। समोसरण सनिसेज्जा, कहाए य पबंधणे ॥ ल० १६२ ॥ ३ ॥ एते वारस भेदा संभोगविहीय तु समक्खाया। पावादाण तेसु य इमेहिं ठाणेहिं णायां ॥ ल० १६३ ॥ ४ ॥ रागदोसाणुगओ जो संभोगं तु पालए पत्तं सो दुट्ठो णायचो तस्सुक्खेवो विसंभोगो ॥ ५॥ अहव इमेहिं तु कारणेहिं नियमा भवे विसंभोगो। संभोगविहिं जो तू विवरीयं आयरिजाहि ॥ ६ ॥ उवरिम मज्झिम हेडिम संभोगद्वाणगं तिहा विभए पडिसेहे पडिसेहो समणुण्णे होइ समणुण्णो ॥ १७३ ॥ ७ ॥ उवरिमएत्ति अहागढ मज्झिमगा होंति अप्पपरिकम्मा सपरिकम्मा हिडिम संभोगविही तिहा एसो ॥ ८ ॥ अहाकडा मिलति अहाकडेसु, भत्तं च पाणं तह घोषणं वा अहाकडा गच्छति हिडिमेसुं, ण हिडिया छुम्भ अहाकडेसुं ॥ ९ ॥ मझिमिता हिडिमते छुम्भइ न तु हिडिमा उवरिमेसुं। एसो तिविहो उ भवे संभोगविही समासेणं ॥ २५२०॥ पडिसेहे पडिसेहो सपरिकम्मं तु होइ पडिवद्धं तस्स पुणो पडिसेहो उवरिले मेलणा जाउ ॥ १ ॥ पडिसेहो हेतुवरिं उदरिलो हिट्टिमे अणुष्णाओ। अह पडिसेहि अणुष्णा होंति इमा तू मुणेयश्वा ॥ २ ॥ जो पडिसिद्धं एवं आयरती तस्स होइ पडिसेहो। पडिसेहो विवेगुत्ती अवितहकरणे अणुष्णा उ ॥ ३ ॥ केरिसएणं तु समं संभोगो तेसि होइ कायो ? अहवावि ण कायव्वो ! भण्णइ इणमो निसामेहि ॥ ४ ॥ णवि एस मंदधम्मे ण गित्येसुं न चैव अजासु वावत्तरीविभत्तोऽवितरे पडिसेणं जाणे ॥ १७४॥ ५॥ दिजइ घेप्पड़ व तहा केसिवीण दिजए ण घेप्पर उ। णवि दिजति घेप्पति तू णवि दिज्जति गवि उ घेप्पर तू ॥ ६ ॥ संविग्गसंजयाणं दिजइ घेप्पइ य पढमभंगो उ संजतिवग्गे दिज्जति गवि घेप्पड़ कारणे वितिओ ॥ ल० १६४ ॥ ७ ॥ गिहिन्नतित्थियाणं गवि दिज्जइ घेप्पई उ नवरं च नवि दिजति नवि घेप्पड़ पासत्थादीण सव्वेसिं ॥ ल० १६५ ॥ ८ ॥ बावतरीविभत्तत्ति एस वारसविहो उ संभोगो। छहिं गुणिओ बावतारं संभोगाणं मुणेयव्वा ॥ ९॥ बावन्तरी उ एसा दुगतिगच उपंचकसंगुणिया जावइय होंति भेदा तेसु विसुद्धेसु संभोगो ॥। २५३० ॥ पडिसेहो असुद्धेस कप्पो संभोग एस वक्खाओ। अहुणा उ लिंगकम्पं वोच्छामि अहाणुपुवीए ॥ १ ॥ जो पुषिं वक्खाओ जिणथेराणं तु दोन्हवी कप्पो रूढणह कक्खमादी सो चेव इहंपि णायशो ॥ २ ॥ इति एस लिंगकप्पो वोच्छे पडिलेवणाएँ कप्पं तु। जारिसयं सेविजति सुदमसुद्धं समासेणं ॥ ३ ॥ गणपरिभुंजणाए निवाघाए तहेब वाघाए। वाघाए दुयगणं निशापाए य तियगणं ॥ १७५॥ ४ ॥ पडिलेवणा उदुविहा गहणे परिभुंजणे य नायचा एकेकावि य दुविहा निवाघाते य वाघाते ॥ ५ ॥ वाघातम्मी सुद्धं गेव्ह असुद्धं च एतदुयग्रहणं परिभुजंतीवि एवं निव्वाघातम्मि वोच्छामि ॥ ६ ॥ उग्गममादीसुद्धं गेण्हति परिभुंजती य तियमेयं । अह पुण को वाघातो ? परूवणा तस्सिमा होइ ॥ ७॥ असिवे ओमोदरिए रायद्दुद्वे भए व आगाढे। उक्कायदुगमु वादाय वाघाते निव्वधाते य ॥८॥ सुद्धमसुद्धं च जहिं अहवा सचित्तमीसगं वावि। एतेसिं दोन्हं तू वाघाते गहण भोगे य ॥ ९ ॥ णिवाघाए छण्हवि अचित्ताणं तु गहण कायाणं गहियस्स य परिभोगो तस्सेव य होइ कायो । २५४० ॥ परिभोगे वाघाते गहिए पच्छा तु होज तं नातं जह आहाकम्मंती ताहे य तयं ण परिभुंजे ॥ १ ॥ वाघाते सेवंती अकिचमेयं तु चितए साहू । होइ तहा निजस्तो जो पुण इणमो समायरति ॥ २ ॥ पूजारसपडिबदो ओसण्णाणं च आणुयत्तीय चरण करणं निगूहति तं जाणऽणुयत्तियं समणं ॥ १७६ ॥ ३ ॥ पूजारसहेडं वा बेई जह किश्चमेव एवं तु मा मे ण देहिति पुणो जह एसोऽकिच्चकारिति ॥ ४ ॥ अहवा ओसन्नाणं तु अणुयत्तीय बेति को दोसो आहाकम्मादीसुं ? णवरं मा कीरउ सयं तु ॥ ५ ॥ सो गृहति चरणादी एवं तुच्छं खु तस्स सामनं । तम्हा उ परुवेजा सुद्धं मग्गं तु किंचऽण्णं ॥ ६ ॥ णिस्साणपदं पीहर अणिस्सविहरंतयं ण रोएति । तं जाण मंदधम्मं इहलोगगवेसगं समणं ॥ ७॥ अहवा उम्मग्गो खलु निस्साणं तं तु पीहए जो उ तस्स उ छेदसुतत्थं ण कहे दोसा इमे तहियं ॥ ८ ॥ पंचमहवयभेदो छकायवहो य तेणऽणुण्णाओ। (२७८) १११२ पञ्चकल्पभाष्यं - 1 मुनि दीपरत्नसागर Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ********* 1 1 हसचिव) या कइ जो पवयणरहस्सं ॥ ९ ॥ पडिसेवकप्प एसो अरुणा वोच्छमणुवासणाकप्पं । अणुवास मासकप्पो वासावासो इमेसिं तु ॥ २५५०॥ जिण थेर अहालंदे परिहरिते अज मासकप्पो उ। खेने कालमुवस्सयपिंडाणे यमाणत्तं ॥ १ ॥ एएसिं पंचण्डवि अण्णोष्णस्स उ चउपदेहिं तु । खेत्तादीहिं विसेसो जह तह बोच्छं समासेणं ॥ २ ॥ णत्थि उ खित्तं जिणकप्पियाण उद्बद्ध मासकालो उ। वासासुं चउमासा वसही अममन अपरिकम्मा ॥ ३ ॥ पिंडो तु अलेवकडो गहणं तू एसणाहुवरिमाहिं । तत्थवि काउमभिग्गह पंचण्डं अण्णतरियाए ॥ ४ ॥ थेराण अस्थि खेत्तं तु उग्गहो जाब जोयण सकोसं । नगरे पुण बसहीए विकाले उदबुद्धि मासो उ ॥ ५ ॥ उस्सग्गेणं भ raat अववाणं तु हो अहिओषि। एमेव य वासासुवि चउमासो होज अहिओवि ॥ ६ ॥ अममत्त अपरिकम्मो उवस्सओ एत्थ भंग चउरो उ उस्सग्गेणं पढमो तिष्णि उ सेसाऽववादेणं ॥ ७॥ भत्तं लेवकडं वाऽलेवकडं वावि ते उ मेव्ईति। सतहिवि एसणाहिं साविक्खो गच्छवासोत्ति ॥ ८ ॥ अहलंदियाण गच्छे अप्पडिवद्वाण जह जिणाणं तु । वरं कालविसेसो उदुवासे पणगच उमासो ॥ ९ ॥ गच्छे पडिवद्वाणं अहलंदीणं तु अह पुण विसेसो । उग्गहो जो सिं तू सो आयरियाण आमवति ॥ २५६०॥ एगवसहीऍ पणगं छडीहीओ व गाम कुवंति। दिवसे दिवसे अण्णं अडंति वीहीइ नियमेणं ॥ १ ॥ परिहारविसुद्वीणं जहेब जिणकप्पियाण णवरं तु । आयंबिलं तु भतं गिव्हती बासकप्पं ॥ २ ॥ अजाण परिगहियाण उग्गहो जो उ सो तु आयरिए काले दो दो मासा उदुबद्धे तासि कप्पो उ ॥ छ० १६६ ॥ ३ ॥ सेसं जह थेराणं पिंडो व उवस्सओ य तह तासि । सो सोविय दुविहो जिणकप्पो थेरकप्पो य ॥ ४ ॥ जिणकप्पियऽहालंदियपरिहारविसुद्धियाण जिणकप्पो थेराणं अजाण य बोद्धवो थेरकप्पो उ ॥ ५ ॥ दुविहो य मासकप्पो जिणकप्पो चेव थेरकप्पो य निरणुग्गहो जिणाणं घेराण अणुग्गहपवत्तो ॥ ६ ॥ उदुवासकालतीते जिणकपण तु गुरुग गुरुगा य होति दिणम्मि दिनम्मी बेराणं ते चिय लहुओ (थिराण ते चिय लहुगडुगा) ॥ ७॥ तीसं पदावराहे पुट्ठो अणुवासियं अणुवसंतो जे जत्थ पदे दोसा ते तत्ययगो समावण्णे ॥ ८ ॥ पण्णरसुग्गमदोसा दस एस दोस एते पणुवीसं संजोयणादि पंच य एते तीसं तु अवराहा ॥ ९॥ एएहिं दोसेहिं जइ असंपत्ति लगती तहवि दिवसे दिवसे सो खलु कालातीते वसंतो उ ॥ २५७० ॥ वासावासपमाणं आयारे उप्पमाणितं कप्पं एवं अणम्यंनो जाण अणुवासकणं तु ॥ १ ॥ आयारपकप्पम्मी जह भणितं तीति संवसतोवि होइ अणुवासकप्पो तह संवसमाणऽदोसा उ ॥ २ ॥ दुविहे विहारकाले वासावासे तहेब उदुबद्धे मासानीने अणुवहि वासातीने भवे उवही ॥ ३ ॥ उदुनदिए अतीते तत्थ वास ण उ कप्पे घेत्तृणं उवही खलु वासातीतेसु कप्पति तु ॥ ४॥ वासउदु अहालंदे इत्तरि साहारणे पुहुत्ते य उग्गहसंकमणं वा अण्णोण्णसकास हिज्जते ॥ १७७॥५॥ वासासु चउम्मासो उदुबद्धे मासो लंद पंच दिणा । इतरिउ रुक्खमूले बीसमणट्ठा ठिताणं तु ॥ ६॥ साहारणा उ एते समट्टि (मगठि) याणं बहूण गच्छाणं एकेणं परिगहिया सने बोहित्तिया होंति ॥ ॥ संक्रमणमण्णमण्णस्स सकासे जइ उ ते अधीयते। सुत्तन्धतदुभयाई सबै अहवावि पडिपुच्छे ॥ ८ ॥ ते पुण मंडलियाए आवलियाए व तं तु गिव्हेजा मंडलियमहिजंते सचित्तादी उ जो लाभो ॥ ९ ॥ सो उ परंपरएणं संकामति ताव जाव सट्टाणं जहियं पुण आवलिया तहियं पुण अंतरे ठानि ॥ २५८० ॥ ते पुण ठित एकाए वसहीए अहव पुप्फकिष्णा । अहह्वावि उ संक्रमणे दक्षस्सिमो विही अण्णो ॥ १ ॥ सुतत्थनदुभयविसारयाण थोवे अ संतईभेदे संकमणदश्मंडलिआवलियाकप्पअणुवासा ॥ २ ॥ पुछट्टिताण खित्ते जदि आगच्छेज अण्ण आयरिओ। बहुसुय बहुआगमिओ तस्स सगासम्म जड़ खेती ॥ ३ ॥ किंचि अहिजेजाही थोवं खेत्तं च तं जदि हविज्जा ताहे असंथरता दोण्णिऽवि साहू विसज्जैति ॥ ४ ॥ अण्णोष्णस्स सगासे तेसिंपिय तन्थ विजमाणा । आभवणा तह चेव य जह भणियमणंतरे सुत्ते ॥ ५ ॥ एवं निवाघाते मास चउम्मासिओ उ घेराणं कप्पो कारणओ पुण अणुवासो कारणं जाव ॥ ६ ॥ एसऽणुपासणकप्पो अहुणा अणुपालणाएं कप्पं तु संखेवसमृद्दि वोच्च्छामि अहं समासेणं ॥ ७॥ मोहतिमिच्छाएं गते गट्टे खेत्तादि अहव कालगते आयरिए तम्मि गणे पीन्ादिरक्खणट्टाए ॥१७८॥ ल० १६७७८॥ को उगणी लवणिजो ? भण्णइ जइ तस्स कोति सीसो उ सुत्तत्थतदु भएहिं जिम्माओ सो ठवेयो ॥ ल० १६८ ॥ ९ ॥ असतीय तस्स ताहे ठावेया कमेणिमेणं तु पञ्चज्ज कुले नाणे खेत्ते सुहदुक्खि सुत सीसे । ल० १६९ ।। २५९० ॥ गुरुगुरु गुरुणं तू वा गुरुसज्झिलओ व तस्स सीसो या पत्र गपक्खी एमादी होइ णायवो ॥ १ ॥ असतीऍ कुलिचो वा तस्सऽसतीए सुएगपक्खीओ खेते उवसंपण्णे तस्सऽसतीए ठवेयवो ॥ २ ॥ सुहदुक्खियस्स असती तस्सऽसतीए ओवसंपण्णो। एवं तु वियाण नहिं सीसम्मि उ मग्गणा नत्थि ॥ ३ ॥ पाडिच्छगणधरे पुण ठविए तहियं तु मग्गणा इणमो सुत्तत्थमहिज्जेते अणहिज्जते इमे विभागा ॥ ४ ॥ साहारणं तु पढमे चितिए खेत्तम्मि ततिएँ सुहदुक्खे। अणहिज्जते सीसे सेसे एकारस विभागा ॥ ५ ॥ द्विगणस् उ पच्छुद्धिं पवाययंतस्स । संवच्छरम्मि पढमे पडिच्छए जं तु सच्चित्तं ॥ ६ ॥ पूर्वपच्छुदिट्टे पढिच्छए जं तु होइ सच्चित्तं संवच्छरम्मि चितिए तं सत्र पवाययंतस्स ॥ ७ ॥ पुत्रं पच्छुहिडे सीसम्मि उ जं तु होइ सचित्तं संवच्छरम्मि पढमे तं स गणस्स आभवति ॥ ८ ॥ बुद्दिगणस्सवि पच्छुदिई पवाययंतस्स संच्छरम्मि वितिए सीसम्मि तु जं तु सचितं ॥ ९ ॥ पच्छुट्टेि सीसम्मि तु जं तु होति सच्चित्तं संवच्छरम्मि ततिए ने सब पवाययंतस्स 1 ॥ २६०० ॥ पुडुहिडे गच्छे पच्छुद्दि पवाययंतस्स संच्छरम्मि पढमे सिस्सिणीए जं तु सचित्तं ॥ १ ॥ पुर्वपच्छुदिडे सिस्सिणीए जं तु होइ सचित्तं संवच्छरम्मि चितिए तं सत्र पवाययंतस्स ॥ २ ॥ पच्छुद्दि पडिच्छियाए उ जं तु सचित्तं संवरम्मि पढमे तं सब पवाययंतस्स ॥ ३ ॥ खेत्तुवसंपायरिओ सुहदुक्खी चेव जति तु संठविओ कुलगणसंघियो वा तस्स इमो होति उ विवेगो ॥ ४ ॥ संवराणि ति (दु) नि उ सीसम्मि पडिन्छयम्मि तद्दिवसं एवं कुलिश्चगणिचे संवच्छर संघ छम्मासा ॥ ५ ॥ तत्थेव य जिम्माए अनिग्गए निम्गए इमा मेरा सकुले तिमि तियाई गणदुग संवच्छरं संघे ॥ ६ ॥ ओमादिकारणेहिं दुम्मेहतेण वाण निम्माए काऊण कुलसमायं कुलधेरे वा उबहेति ॥ ७ ॥ णव हायणाई ताहे कुलं तु सिक्खाबए पयत्तेण श य किंचि तेसि गिन्हइ गणो दुगं एग संघो उ ॥ ८ ॥ एवं तु दुवालसहिं समाहि जति तत्थ कोइ निम्माओ ता ति अणिम्माए पुणो कुलादी उबडाणा ॥ ९ ॥ तेणेव कमेण तू पुणी समाओ हवंति बारस उ निम्माए विहरंती इहर कुलादी पुणोवद्वा ॥ २६१०॥ तद्द्विय बार समाओ निम्माओ सो सि गणहरो होइ। तेण परमनिम्माए इमा विही होइ तेसि तु ॥ १ ॥ छत्तीसाइकंते पंचविहुवसंपदाएं १११३ पञ्चकल्पभाष्ये मुनि दीपरत्नसागर 1 - PELAAJAR. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 RA fel तो पच्छा। पत्तं तवसंपादे पाज तु एगपक्खम्मि // 2 // परजाएँ सुतेण य चतुभंगो होति एगपक्खम्मि। पुवाहितवीसरिए पढमासति ततियभंगणं // 3 // सहस्सवि काय निच्छयओ किं कुलं व अकुलं वा ? / कालसभावममत्ते गारवलज्जाएँ काहिति // 4 // एसऽणुपालणकप्पो अहुणाऽणुण्णातों गंदिसुत्तेहिं। सिद्धो अणुनकप्पो णवरेगट्ठाणि वोच्छामि // 5 // किमणुन ? कस्सऽणुचा? केवतिकालं पवत्तियाऽणुला ?आयरियत्त सुतं वा अणुण्णवह जंतुसाणुला // ..179 // 6 // कस्सत्ती सीसस्स उ गुरुगुणजुत्तस्स होयऽणुष्णा उ। केवइकालपवित्ती आदिकरेणुसभसेणस्स // 7 // एगट्ठियाणि तीय उ गोशाइं हवंति नामधिज्जाई। वीसं तु समासेणं वोच्छामी ताणिमाई तु॥८॥ अणुण्णा उण्णामणा णमण णामणि ठवणा पभावणाँ विदा(ता)रे। तदुभयहिय मज्जाता कप्पे मम्गे य णाए य॥..१८०॥९॥ संगह संवर निजर थिरकरणमच्छेद जीव(त) बुड्ढिपयं। एपवरं चेव तहा वीस अणुण्णाइ णामाई॥..१८१ // 2620 // अणुणवत्तऽणुण्णा उण्णामिय ऊसियंति उष्णमणी। गिहिसाहूहिं णमिजइ तम्हा ऊ होइ नमणित्ति // 1 // सुतधम्मचरणधम्मे णामयती जेण णामणी तम्हा। ठविओ आयरियत्ते जम्हा उ तेण ठवणत्ति ॥२॥ठविओ गणाहिवत्ते होइ पभू तेण पभवों सोसिं। नाणादोणं होती पभयो पभुइत्ति एगट्ठा // 3 // आयरियत्ते पमविए तेण वियारो उ दिजइ गणो से। तदुभयहियति भन्नइ इहपरलोगे य जेण हियं // 4 // गणधरमेर धरेती जम्हा ऊ तेण होति मज्जादा। करणिज्जो कप्पोत्ति य कप्पो गणकप्प समणे(करणा)णं // 5 // नाणादि मोक्खमग्गो सुत्त(सो त)म्मि ठितोत्ति तो भवति मग्गो। जम्हा उ णायकारी णाओ वा एस तो णातो // 6 // दशे भावे संगहों दो आहारवस्थमादीहिं। भावे नाणादीहिंउ संगेहति संगहो तेण // 7 // दुविहेण संवरेणं इंदियनोईदिएहिं जम्हा उ। अप्याण गणं च तहा संवरयति संवरो तम्हा // 8 // गणधारणमगिलाए कुणमाणो निजरेइ कम्माई। अन्य निजरावे तम्हा ऊ निजरा होइ ॥९॥वाएरिता लता इव पकंपमाणाण तरुणमादीणं / होइ थिरावटुंभो तरुल थिरकरण तेणं तु // 2630 // जम्हा उ अवोच्छित्ती सो कुणई नाणचरणमाईणं। तम्हा खलु अच्छेदं गुणप्पसिद्ध हवति णामं // 1 // तित्यकरहिं कयमिणं गणधारीणं तु तेहिं सीसाणं / तत्तो परंपरेणं आयमिणं तेण जीयं तु // 2 // वड्डइ य नाणचरणे गणं तु जम्हा उ तेण वुढिपदं। पवरं पहाणमेयं सोसि रायदेवाणं // 3 // इति एसऽणुनकप्पो जहाविही वनिओ समासेण। ठवणाकप्पं एत्तो वोच्छामि अहाणुपुषीए॥४॥तिविहो ठवणाकप्पो कुले गणे वेव तह य संघे या एतेसि परूवणयं वोच्छामि अहाणुपुषीए // 5 // कुलथेरोहिंगणेण व जा मेरा ठाविता भवे नियमा। सो कुलठवणाकप्पो एवं गणे होइ संघे य॥..१८२॥६॥ केरिसया पुण थेरा कुलगणसंघाण होंति उ पमाणं? मण्णइसुणसू इणमो जेहिंगुणेहिं तु ते जुत्ता // 7 // कप्पाकप्पविहिष्णू सुत्तत्यविसारया सुतरहस्सा। जे चरणकरणजुत्ता ते सुद्धनयाण उपमाणं // 8 // कप्पाकप्पविहिष्णू सुत्तत्थविसारया सुयरहस्सा। जे चरणकरणहीणा ते सुदणयाण भइयथा ॥९॥नेयवा खलु क(अ)जा असती चरणटियाण थेराणं / हीणोवि सुयसमिद्धो मज्झत्यो होइ उ पमाणं॥२६४०॥ कह पुण ठाविनंते ते उ पमाणं तु तेसु ठाणेसु। कुलगणसंघा येरा ? भण्णइ इणमो निसामेहि // 1 // इच्छंकारनिउत्तो पियधम्मो तिण्ह कोइ एकतरो / सो होति तिगत्थेरो तिगचरित्तवियाणओ वी(धी)॥२॥ नाऊण गुणसमिदं जोगं तु कुलादिये रठाणस्स। काऊणिच्छाकारं कुलादिणो ति तो इणमो॥३॥ उम्भे होह पमाणं कुलचेरा धेरठाणजोगंतु। एवं तु कुलादीहिं तिगरा ऊ ठक्जिति // 4 // तिगचरितं जाणइत्ति चरित्त मज्जायमेव एगट्ठा / तं तु तहाविहि जाणा विण्हपि कुलादिठाणाणं // 5 // पासत्थोसन्नकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपक्खेवि। सो होति तिगत्थेरो तिगोरगुणेहिं उक्उत्तो ॥६॥पासत्यादीठाणे ण वट्टती एस रक्खओ होइ / अहवा सति सद्धा(यसत्ती)ए पासत्थादीवि पालेइ // 7 // परिहजते रागादिरक्खिते साहुसाहुणिदुपक्खे। अहवा अप्पाण परे तिगथेरो संघरो उ॥८॥ एसो ऊ तिगयेरो तिगधेरगुणेहिं होति संपनो। अहुणा वीसुं वीसुं कुलादिथेरे पवक्खामि // 9 // चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा कुलप्पहाणो उ। सो होइ कुलत्थेरो कुलचरियवियारओ धीरो॥२६५०॥ पांसत्योसन्नकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपक्खेवि / सो होइ कुलत्थेरो कुलधेरगुणेहिं उबउत्तो // 1 // चरणकरणे समग्गो जो जस्थ जदा गणप्पहाणो उ। सो होइ गणत्यरो गणचरियबियाणओ वी(धी)रो // 2 // पासत्थोसन्नकुसीलठाणपरिरक्खओ तुपक्खेवि। सो होइ गणत्थेरो गणथेरगुणेहि उवउत्तो॥३॥ चरणकरणे समयमो जो जत्य जदा जुगप्पहाणो उ। सो होइ संघयेरो सीतघरसमो परिससीहो // 4 // एसो उ मूलसंघो आपुच्छणगमणकरणकजेसु। हितसुहनिस्सेसकडो कुलगणसंघऽपणो चेव // 5 // सणनाणचरिते जा पुछ परुवणाऽऽयरण कलगणसंघऽपणो चेव // 5 // ईसणनाणचरिते जा पृच्छ परुवणाऽऽयरणया य। एसो उ मलसंघो तिविहा बेरा करणजत्ता॥६॥ परिपि पर विज्जा आयारादीसु बन्मियचरिते। तं सम्ममायरंतो हवति तु संघो तहा थेरो॥७॥ जो सो हीणचरित्तो अण्णस्स असतीत पुवमणितो उ। कुलथेराति ठविज्जति तस्सुवदेसो इमो होइ // 8 // होज वसणसंपत्तो सरीरमार्यकता असहुओ वा / चरणकरणे असत्तो सुद्धं मग्गं परूविज्जा // .. 183 // 9 // वसणं वाजीमादी सूलजरादी तु होइ आतंको। धितिसारीरबलेणं हीणो असहू मुणेयत्रो // 2660 // एएहिं कारणेहिं अकप्पपडिसेवणं करेंतो उ / सुदं मग्ग परूवे अप्पाहणिया अओ एत्तो॥१॥ कप्पपणयस्स भेदा सोच्चा णचा तहेव घेत्तूणं / चरणकरणे विसुद्धे आयरणपरूवणं कुणह // 2 // आयरियसगासाओ सोचा णचा य घेत्तुमत्येणं। हियए क्वत्थयेउं आयरण परूवणा कुज्जा // 3 // कप्पपणगस्स भेदो परुविओ मोक्खसाहणवाए। जं चरिऊण सुविहिया करेंति दुक्खक्वयं धीरा // 4 // पंचविहसुत्तकप्पाण विभासा वित्वरं पमोत्तूणं / गहिया सीसहियट्ठा बोच्छित्तट्टया चेव // 2665 // (सव्वसुयसमूहमयी बामकरम्गहियपोत्थया देवी। जक्खकुहंडीसहिया देंतु अविग्धं भर्णताणं // 10 // ) जैनसाहित्यसुधापानपीनश्रीपुण्यविजयजीविहितादर्शादुत्कीर्णमिदं पंचकल्पच्छेदभाष्यं सिदावितलहहिकागतश्रीआगममंदिरे वीरविभोः 2469 मुनि दीपरत्नसागर 1114 पञ्चकल्पभाष्यं