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तूरंते अणुकूले दिजते अहाजातं । सयमेव तु थिरहत्थो गुरू जहणणेण तिन्हऽट्टा || ९ || अन्नो वा थिरहत्थो सामाइग तिगुण अट्टगहणं च । तिगुणं पादक्खिण्णं णित्थारग गुरुगुणे बुद्धी ।। ७०० ॥ फासूय आहारो से अणहिंडतं च गाहए सिक्खं । ताहे य उबवणं छज्जीवणियं उ पत्तस्स ॥ १ ॥ अप्पत्ते अकत्ता अणभिगयऽपरिच्छऽतिकमे पासे एकेके चउगुरुमा विसेसिया आदिमा चउरो ॥४२॥ २॥ अप्पत्तं तु सुतेणं परियाग उबद्ववित्तु चउगुरुगा आणादिणो य दोसा विराणा उन्ह कायाणं ॥ ३ ॥ सुत्तत्थं अकहेता जीवाजीचे य बंधमोक्खं च। उवठवणे चउगुरुगा विराणा जा भणिय पुत्रं ॥ ४ ॥ अणहिगतपुण्णपार्श्व उवद्वविंतस्स चउगुरू होंति । आणादिणो य दोसा मालाए होति दितो ॥ ५ ॥ ससरक्खदगगणीपतिद्विते हरितबीजमादीसु। होति परिक्खा गोयर किं परिहरती ण वाविति ॥ ४३ ॥ ६ ॥ उच्चारादि अथंडिल वोसिर ठाणादि वावि पुढवीए। णदिमादिदगसमीवे खारादीदाह अगणिम्मि ॥ ७ ॥ विजणऽभिधारण वाते हरिए जह पुढवीते तसेसुं च एमादि परिक्खित्ता वतदाणमिमेण विहिणा सो ॥ ८ ॥ दवादि पसत्थे बता एकेके तिगुण गोवरिं हेडा | दुविहा तिविहाय दिसा आयंबिल निविगतिगो वा ॥ ९ ॥ पितपुत्ताणं जुयला दोणि तु णिक्खंत तत्थ एगस्स पत्तो पिता ण पुत्तो एगस्स उ पुत्तों ण तु थेरो ॥ ७१० ॥ ताहे तु पण्णविजति दंडियणायं तु कातु भण्णइ तु । मा गेव्ह असग्गाहं रातिणिओ होति एसवि ता ॥ १ ॥ एवं सो पण्णवितो जदि इच्छे तो उबट्टवेती तु । च्छते पंचाहं ठंती दो तिष्णि वा गणगा ॥ २ ॥ वत्सभावासज्ज व जाऽधीतं ताव तं पडिच्छंति एवं रायअमचे संजतिमज्झे महादेवी ॥ ३ ॥ राया रायाणो वा दोष्णिवि सम पत्त दो पासेसु। ईसरसेडिअमचे नियमघ डाकुल दुवे खुड्डे ॥ ४ ॥ समयं तु अणेगेसुं पत्तेसुं अणभिओगमावलिया। एगतो दुहतो ठविता समराइणिता जहाऽऽसण्णं ॥ ५ ॥ ईसिं अणोयइत्ता वामे पासम्मि होति आवलिया । अहिसरणम्मिय वड्डी ओसरणे सो व अण्णो वा ॥ ६ ॥ उवठावियस्स एवं संभुंजणता तहेव संवासो वितियपदं संबंधी ओमादिसु मा हु बहिभावं ॥ ७॥ भुंजीसु मए सद्धि इयाणि च्छंतिमा तु बहिभाव अहिखायंति व ओमे पच्छने जेण भुंजंति ॥ ८ ॥ एमादिणा तु भावं ताहे अप्पत्तं अहवऽपत्तं वा उवठावेतुं भुंजति अपरिणते चित्तरखडा ॥ ९॥ उवठाविय संभुत्ते संवासो एत्थ होति कायवो वितियपऍ संवसेज्जा अणुवद्वविर्यपिमेहिं तु ॥ ७२० ॥ अण्णत्थ णत्थि ठाओ अहवा होजाहि सोऽवि एगामी ण य कप्पति एगस्सा संवासो तेण संवासो ॥ १॥ सञ्चित्तदवियकप्पो एमेसो वनिओ महत्थो तु। अञ्चित्तदवियकप्पं एतो वोच्छं समासेणं ||२|| आहारे उबहिम्मि य उवस्साए तह य परसवणए य सेज णिसेजद्वाणे दंडे चम्मे चिलिमिणीय (१०) ॥ ४४ ॥ ल० २२ ॥ ३ ॥ अवलेहणिया दंताण घोषणे कण्हसोहणे चैव पिप्पलग सूति णक्खाण छेदणे चेव सोलसमे ॥ ४५ ॥ ल० २३ ॥ ४ ॥ आहारो खलु दुविहो लोइय लोउत्तरो य णायत्रो तिविहो य लोइओ खलु तत्थ इमो होइ गायवो ॥ ५ ॥ मायणे भोयणे चेच, भुंजियचे तहेव य भायणे तु इमं थेरा, गाहासुत्तमुदाहरे ॥ ६ ॥ सुवण्णरजते भोजं, मणिसेले विलेवणं (अविदाही) घतमायास पयं तंबे, पाणसुहं च मिम्मते ॥ ७॥ सूबोदणं जवण्णं तिनि य मंसाणि गोरसो जूसो भक्खा गुललावणिया मूल फलं हरियगं डागो ॥ ४६ ॥ ८॥ होइ रसालो य तहा पाणं पाणीय पाणगं चैव सागं चऽद्वारसहा णिरुवहतो लोगपिंडो सो ॥ ४७ ॥ ९ ॥ सूत्रगहणेण गहिता वंजणभेदा उ जत्तिया लोए। ओदणगहणेणं पुण सत्तविहो ओदणो होति ॥ ७३० ॥ जातु जवण्णं भण्णति तिनि तु मंसाणि जलयरादीणं गोरसों खीरादी उ मुग्गपडोलादि जूसो तु ॥ १ ॥ भक्खविहि उठसुक्खा गुलकत तह लावणीत बोद्धवा मूलग अलगमादी मूलं अंबादिग फलं तु ॥ २ ॥ हरितंग मूलकुडेरग भूषणगादी य होति णायको डागो य गोरसकओ पजेवणादी बहुविहाणो ॥ ३ ॥ दो घतपला महु पलं दहिस्स अद्धाढगं मरिय वीसा खंड तुलादसभागो एस रसालू णिवतिजोग्गो ॥ ४ ॥ खंड तुलादसभागो दस खंडपला हवंति णायचा ते तम्मि पक्खिवित्ता मज्जियणामं रसालोति ॥ ५ ॥ पाणं मज्जविही उ पाणीयं धारपाणियादीयं । दक्खादिपाणगाई सागेणं वंजणा जे तु ॥ ६ ॥ एवं अट्ठारसहा णिरुवहतो दढगादिपरिहीणो ण य उवहम्मति जेणं रसादि छूढेण दणं ॥ ७ ॥ परिमुक्खं दाहिणतो दवाणि साणि वामतो कुजा णिद्धमहुराणि पुत्रं मज्झे अंचं दवंताणि ॥ ४८॥८॥ परिसुक्खं सालणगादि तं गिव्ह सुहं तु दाहिणकरेण । वामेण पाणगादी तेण तयं वामपासम्मि ॥ ९ ॥ अप्पाइजति देहं पुत्रं तू णिदमहुरददेहिं पेतादीहिं नियमा केवइयं तं तु भोतनं ॥ ७४० ॥ अद्धमसणस्स सर्वजणस्स कुजा दवस्स दो भाए । वातपवियारणट्टा छम्भागं ऊणयं कुजा ॥ १ ॥ तं पुण एयपमाणं आदी मज्झे तहेब अवसाणे केरिसयं भोत्तरं ? तस्स इमं गाहमाहंसु ॥ २ ॥ असतामिव संजोगं पण्णा भोयणविहिं उवदिसंति। लक्खं दवावसाणं मज्झ विचित्तं महुरमादी ॥ ४९ ॥ ३ ॥ असता असजणा दुजणा य एमट्ठिताणि एयाणि । तेहिं समं जा मेत्ती संजोगेसो तु णायची ॥ ल० १३ ॥४॥ गुलमडुरा उडाया तेसिं पुषं कर्रिति य पियाइ। मज्झे य हाँति मज्झा महुरा विगतिं च दाएंति ॥ ल० १४ ॥ ५ ॥ कुषंति य भासति य अवसाणे तारिसाणिं जेहिं तु । जिज्झति सवं सुकतं एवं किर भोयणं भुंजे ॥ ल० १५ ॥ ६ ॥ आदीऍ दिमडुरं मज्झ विचित्तं दवलक्ख अवसाणे। तेणं विपागमेती दुजण सीव अवसाने ॥ ल० १६ ॥ ७ ॥ कुसला - १०७८ पञ्चकल्पभायं
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मुनि दीपरत्नसागर