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पउणोऽचि । आसेवते उ साहू रसगिद्धो सेलओ चेत्र ॥ २ ॥ तंबोलपत्तनाएण मा हु सेसात्रि तू विणासिजा निल्लूहंती तं तू मा अण्णोऽवी तहा कुजा ॥ ३ ॥ कालप्पाहिगारे पत्थिए होतिमोऽवि तस्सरियो । कालकिप्पी असिवादीओ मुणेयब्वो ||४|| असिवे ओमोयरिए रायद्दृट्टे पत्रादिदुट्टे वा आगाढे अन्नलिंगे कालक्खेवो व गहणं च ॥ .. ११९ ॥ ५॥ असिवे जति जतिपंता लिंगविवेगेण तक्खणं गच्छे। सव्वत्य वाचि असिवे कालक्खेवो विवेगेणं ॥६॥ ओमेऽवेवं कुजा पवादिदुद्वेण बुद्धिणो णातं । तत्यऽविय अण्णलिंग गिहिलिंगं वावि भासेजा ॥ ७ ॥ एयं चिय आगाढं अहवा देहस्स जा उ वावत्ती । णिविसयाणत्तीण व भत्तस्स णिसेहणा चेत्र ॥ ८ ॥ एतेसामन्नतरं अणगाढि लिंग (ढालंच) णो ण सेवेजा । तट्टाणतावराहे संवदियमोऽवराहाणं ॥ ९ ॥ संवड्ढितावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं च आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥ १७८० ॥ एसो उ कालकप्पो एतो वोच्छामि दंसणे कप्पं । सद्दहण लक्खणं तू जिणोवइट्टेसु भावेसु ॥१॥ उवरयछक्कायस्सवि आयरियपरंपरागते अत्थे। आगाढकारणेसुं सदहसु णिसेवणं तत्य ॥ २ ॥ छक्काए सदहिउं इणमन्त्र पुणोवि सदहेय आगाढमणागाडे आयरियां तु जं तत्थ ॥ ३ ॥ दशे | खेत्ते काले भावे पुरिसे तिमिच्छि असहाए। एएहिं कारणेहिं सत्तविहं होइ आगाढं ॥ ल० १२० ॥ ४ ॥ एगादीया बुड्ढी एगुत्तरिया य होइ दशणं। ओमत्थगपरिहाणी दशगाढं वियाणाहि ॥ ल० १२१ ॥ ५ ॥ जंपति पुणो बिज्ञा सचितं दुलभं व दक्षं वा अप्पडिहणतो अच्छइ उद्दिसिउं जाव सो ठाति ॥ ६ ॥ जाहे उदिट्टहाणी ताहे ओमत्यहाणिए भणति । अम्हे करेमो जोग्गं अलंभे एयस्स किं कुणिमो ? ॥ ७ ॥ एवं तु हावयंता खेत्तं कालं व भावमासज्ज । ता जूहंती जाब उ लंभे जेसिं तु दशाणं ॥ ८ ॥ अह पुण भणेज एवं अवस्समेतेहिं कज्ज दवेहिं । एवं दवागाढं तहिं जए पणगहाणीए ॥ ९ ॥ खेत्तागाढं इणमो असती खेत्ताण मासजोग्गाणं। असित्रं वा अन्नत्था नदीय का हो रुद्वा उ ॥ ल० १२२ ॥ १७९० ॥ आयरियादिअगारग अहवा अन्नत्य सावया होज अंतर जहिं च गम्मइ वाला तह तेणखुभियं वा ॥ १ ॥ एएहिं कारणेहिं खेत्तागाढम्मि एरिसे पत्ते अच्छंति असढभावा एगरखेत्तेऽवि जयणाए ॥ ल० १२३ ॥२॥ कालस्स वाचि असई वासावासे वियारणा नत्थि एएहिं कारणेहिं कालागाढं वियाणाहि ॥ ल० १२४ ॥ ३ ॥ वासाजोग्गं खेत्तं पडिलेहेडं तु कालो ण पहुत्तो वचंताण व अंतर वासं तू निवडियं पायं ॥ ४ ॥ डहरं वऽंतरखेत्तं ताहे तं चैव पुवखेत्तं तु। गंतुं वसती वासं समतीते वीतदसरातं ॥ ५ ॥ अतिउकडं व दुक्खं अप्पा वा वेदणा झ आउं एएहिं कारणेहिं भावागाढं वियाणाहि ॥ १२० ॥ ६ ॥ अचुकड सूलादी अहिडकाई उ वेदणा अप्पा । तत्थऽग्गितावणादी देहच्छेदो व गाढादी || ल० १२५ ॥ ७ ॥ जम्मि विणट्टे गच्छस्स विणासो वह य णाणचरणाणं । एएहिं कारणेहिं पुरिसागाढं वियाणाहि ॥ ल० १२६ ॥ ८ ॥ तस्स उ सुद्धालंभे जावज्जीवं तु (वि) होत. | सुदेणं । काय तू नियमा पुरिसागाढं भवे एतं ॥ ल० १२७ ॥ ९ ॥ जेण कुलं आयत्तं तं पुरिसं आयरेण रक्खेजा। ण हु तुंबम्मि त्रिणट्टे अरया साहारगा होंति ॥ १८००॥ संजोगदिट्टपाठी फासुगउवदेसणासु जो कुसलो। एयारि असती णायव्व निगिच्छमागाई | ल० १२८ ॥ १ ॥ मज्जणतूलिविभासा असणे पाउरणए य पाणे य। केवडियाण पदाणे अण्णहचित्तो गिलाणो वा ॥ २ ॥ होज़ व सहायरहिओ अव्वत्ता वावि अहव असमत्था एय सहायागाढं तम्हा उ मुणी ण विहरिज्ञा ॥ लः १२९ ॥ ३ ॥ जावंति पवयणम्मी पडिसेवा मूलउत्तरगुणेसु । ता सत्तसु सुद्धेस सुद्धमसुद्धा यऽसुद्धेसु ॥ ल० १३० ॥४॥ आगाढमणागादे एवं जं जत्थ होइ करणिजं । तं तह सहहमाये दंसणकप्पो हवइ एसो ॥ ५ ॥ एसो दंसणकप्पो अरुणा सुतकप्पमो उ वोच्छामि । जे तत्थ होंति वियो अहिजते जेण वा विहिणा ॥ ६ ॥ दुविहम्मि आगमम्मी सुने अत्थे य जे जहिं भावा । सुत्तमसुत्तकडाणं पवित्रं ताण अत्येणं ॥ ७ ॥ विन्थारो नाम सुत्तम्मि, गहिए अत्थो ऊ दिज्जती। सुत्ते अहिजियब्वे तु, मजादा ऊ इमा भवे ॥ ८ ॥ पडिलेहण काऊणं सज्झायं पट्टवेउवादी आयरियादिणिसेज करेइ पच्छा य सज्झायं ॥ ९ ॥ पोरिसि सा तं झायं (काउं) चरिमाए पढिय पत्त पडिलेहे। ताहे य अत्थपोरुसि इमिणा विहिणा करती ऊ ॥ १८१०॥ काउस्सग्गे वक्खेवणाउ विकहाविमुत्तिया पयतो (त्ता)। अच्भुट्टाणे वा कालणाय अक्खेव साहरणा ॥१॥ अण्णोत्रिय सुयकप्पो सोयध्वं मंडट्रीय राइणिए । अणुओगधम्मयाए किइकम्मं होइ कायां ॥ २ ॥ वक्खाओ सुतकप्पो एत्तो वोच्छामि अज्झयणकप्पं । दायव जेण विहिणा जम्गुणजुनम्स वा तं तु ॥ ३ ॥ जोए परियाए अणरिहे य अरहे ए विणयपडिवण्णे। सुत्तत्थतदुभए जे अज्झयणेसु अणुभागा ॥१२१॥४॥ जस्सागाढो जोगो तं आगाढेण चैव दायचं अणगाडे अणगाढं एतो वोच्छामि परियागं ॥ ५ ॥ संखपरीमाणं भणियं सुप्तम्मि तिवरिसादीयं । तं तेणं माणेणं उद्दिसिय भवे सुतं ॥ ६ ॥ खुड्डियविमाणपविभत्तिमादि दीहेविय तु (चित्त) परियाए । गवि दिजती अणरिहे अणरिह ते तू इमे होंति ॥ ७ ॥ तिंतिणिए चलचिते गाणंगणिए य दुच्चलचरिते । आयरियपारभासी वामावद्वेय पिसुणे य ॥ ८ ॥ आदी अट्टिभावे अकडसमायारिए तरुणधम्मे। गवि (छि)य पइण्ण गेण्हइ छेदसुए वज्जए अत्यं ॥ ९ ॥ डहरो अकुलीणो चि (ति)य दुम्मेहो दमग मंदबुद्धित्ति । अवियऽप्पलाभली सीसो परिभवइ आयरिए ॥१८२० ॥ सोऽवि य सीसो दुविहो पचावियओ य सिक्खिओ चैत्र । सो सिक्खिओऽवि तिविहो सुत्ते अत्थे तदुभए य ॥ १ ॥ एतेसिं अणरिहाणं जे पडिवक्खा उ हाँति सङ्केसिं । परिणामगाय जे तू ते अरिहा होंति णायवा ॥ २ ॥ एतारिसे विणीए सुत्ते अत्ये य जतिया भेदा। अज्झयणुदेसेसु य ते सने असेसिए दिजा ॥ ३ ॥ एसऽज्झयणे कप्पो एतो वोच्छं चरित्तकल्पं तु । जे तु विहाण चरिते वतेसु गुरुलाघवं चेव ॥ ४ ॥ पंचविहम्मि चरित्तम्मि वण्णिया जे जहिं अणुभावा। एसो चरितकप्पो जहकम्मं होइ विष्णेओ ॥ ५ ॥ सामाइयादि पंचह अणुभागा तेसि जत्तिया भेदा । वयपंचगम्मि कतरं भारियरं लहुतरं किं वा ? ॥ ६ ॥ सवगुरुगी यऽहिंसा तीसे सारक्खणट्ट सेसाणि । श्रंभवतं च ततो ततो अदत्तं मुसं तत् ॥ १३१ ॥ | लहुओ परिग्गहो सको बत्थादिरागनिग्गहणं । लोगे पुण गुरुगतरो सबेसि भवे मुसावादो ॥ ल० १३२ ॥ ८ ॥ काऊणवि संवरणं मुसवज्जाणं तु सङ्घभंगेऽवि । ण भवति पष्णलोवो तेण मुसं भारितं लोए ॥ ९ ॥ जह वेणगा उ केती अचयंता मुसितु भिच्छुगविहारं । णियडीय बँति धम्मं सुणेमु अह भिच्छुगे ते य ॥ १८३० ॥ सोउं मिच्छुवतारा चिणयं काऊण मिच्छुए आह। अज्जप्पभिई अम्हं बुद्धो सस्था बते देह ॥ १ ॥ मुसबजा चाएमो धारेमो गेण्हिउं वते तेणा। वीसत्थभिच्छुगाणं मुसिउ विहारं समादत्ता ॥ २ ॥ भिच्छू लवंति तेणे घेत्तुं सिक्खावयाणि मा अज्जो ! भंजह वदंति तेणा न हु पञ्चकवाय मुस अम्हे ॥ ३ ॥ गुरुलाघवचक्खाणं एवं तू सोहिकारणा १०९९ पञ्चकल्पभाप्यं
मुनि दीपरत्नसागर