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भिहितं । पत्तम्मि कारणम्मि उलयतरं पुत्र सेविजा ॥ल०१३३॥४॥ काणि पुण कारणाणिं जेसु उ पत्तेसु जयणपडिसेवा । भन्नइ ताणि इमाई कित्तेऽहं मे समासेणं ॥५॥ गच्छाणुकंपयाए आयरिय गिलाण आवतीए या पिडिसेवा खल भणिया एते खल कारणा ते उ॥६॥ वोहियतेणादीसं गच्छस्सट्ठा णि(दाण)सेवणा होई। आयरियाण व अट्ठा विभास वित्थारओ एत्यं ॥७॥णाउं तुंबविणासं अरगा साहारगाण एवं तु। आयरियस्स विणासे
गच्छविणासो धुर्व एवं ॥८॥ आगाढे गेलण्णे कंदाति विभास आवती चउहा। दवावति खित्तावह काले तह भावओ चेव ॥९॥ एएहिं कारणेहिं अप्पत्तेहिं तु जो उ सेविजा।सुहसीलयाए जो (सो) उ आवजतिणविय सुज्झति हु १८४०॥ जो पुण पत्ते कारण जयणा आसेवणं करेजाहि । तस्स चरित्सविसुद्धीजह भणति जिणो हितं इणमो॥१॥ गच्छाणुकंपयाए आयरियगिलाणआवदि विदिण्णे। जत्थेव य पडिसेहो सचरित्तासेवणा तत्था ॥२॥ पुरिमस्स पच्छिमस्स य मज्झिमगाणं तु जिणवरिंदाणं । आसेवणा य सचरित्तया य अत्षेण अणुगम्मे ॥३॥ वयभंगपि करेंतो जह सचरित्ती कहं तु अत्येणं । अणुगंतवं एयं ? भन्नइ आगाढकारणओ ॥४॥ जे केअवराहपदा किण्हा सुक्का भवे पवयणम्मि। णिपरिसपरिच्छणाए दुगठाणेणं मुणेयबा ॥५॥ पडिसेहोऽणुण्णा वा पायच्छित्तेय ओह निच्छाइए। ओहेण उ सट्टाणं अत्थविरेगेण वोगडियं ।।..१२२॥६॥ हिंसादवराहपदा किण्हे अणुघाति सुकिला लहुगा। |णिपरिसपरिच्छणा खलु जह कणगं तावणिहसेसु ॥७॥ एवं परिच्छिऊणं आयवयं गच्छमावती जंतु।नित्थारयम्मि पत्ते जयणाएं निसेव सचरित्ती॥८॥दुहाणा मूलत्तर दप्पे अजए य होइ पडिसेहो। कप्पे जयणा णु(बु)त्ता जो पुण |निकारणासेवे ॥९॥ पायच्छित्तं पावति तं दुविहं ओहियं व णेच्छइयं । ओहं तु जमावणं तं दिजति तम्मि सट्ठाणं ॥१८५०॥ णिच्छइयं अत्थेणं वीमंसित्ता उ दिजती जंतु। एयं अस्थविरेगं बोकडियं छविहं इणमो॥१॥ कस्स | कहं कहिं तं वा कदिया णु कम्मि केचिर होइ? । छहाणपदविभत्तं अस्थपदं होइ वोगडियं ॥..१२३॥२॥ कस्सति गीतागीतस्स वावि कह जयण अजयणाए वा। कहिं अद्धाण वसंते कतिया णु सुभिक्खदुभिक्खे॥३॥ अहवा दित राओ वा कम्हिन्ती कारणे व इतरे वा। कम्हि व पुरिसजाते आयरियादीण अण्णतरे ॥४॥ केचिर कतिबारे खलु केवइकालं व सेवियं होजा । एवं छट्ठाण एवं सुद्धासुद्धे असुद्रियरे ॥५॥ संघयणधितिजुयाणं सहूण अरहं तु दिजए -
तत्य । असहअथिरादीणं दिजति चाएति जं वोढुं ॥ ६॥ सोऊण कप्पियपदं करेति आलंबणं मइविहूणा। रहसं च अणरहस्सं करेइ मइसूयओ पुरिसो॥७॥ माइट्ठाणविमुको अकप्पियं जो उ सेवते भिक्खू। तं तस्स कप्पियपद Mमायासहिते चरणभेदो॥८॥ एसो चरित्तकप्पो एत्तो वोच्छामि उबहिकप्पं तु । सो पुण पुष्वाभिहितो ओहुग्गह(जु)त्तओ चेव ॥९॥ जो उ विसेसो एत्थं तं नवरं यह अहं तु वक्खामि । सुदुग्गमादिएहिं धारेयधो जहाकमसो M॥१८६०॥ फासुयमफासुए यावि, जाणए या अजाणए । ओहोवहुवग्गहिते, धारणा कस्स केचिरं? ॥१॥ जइ फासुवही कारणे गहिओ तू जाणएण तो धारे। जो जुण्णोऽजुनोवि हु अट्ट पकुवे तु छुम्भति हु॥२॥ फासुगें अजाअगएणं कारणगहिओ धरेजते ताव । जावऽण्णो उप्पण्णो ताहे उ विगिंचए तं तु ॥३॥ अह पुण अफासुओ ऊ जाणगगहिओ उ कारणे होजा। जइ गीयत्था सन्चे तो धारेती उ जा जिण्णो॥४॥ अम्गीतविमिस्सेहिं अणुप्पमम्मि
नं विगिचंति। अह पुण अफासुओ ऊ कारणे गहिओ अगीतेणं ॥५॥ उप्पण्णे उप्पण्णे अण्णम्मि विगिंचती ऊ सो ताहे । एवं चउभंगणं धारणता वा परिट्टवणा ॥६॥ सो पुण दुविहो उपही वयं पातं च होइ बोदछ । वत्थं तु बहु-5 चिहाणं पाता पुण दो अणुण्णाता ॥७॥ चोदेती पंचण्हं किण्णवि एगो पडिग्गहो होइ। ता दो एकेक्कस्स ऊ? भण्णइ ण पहुचए एवं ॥८॥ तो चउ तिण्ह दुवण्हं अहवा एफेकतस्स एकेक ? । भण्णइ पाहुणगादिसु ताहे किं काहि तेकेणं? ॥९॥ अप्पा परो पवयणं जीवनिकाया य चत्त होंतेवं । वारत्तगदिटुंतो तम्हा दो दो उ घेत्तवा ॥१८७०॥ भणति जदेवं तेणं जिणकप्पी एगपातओ कम्हा ?। भण्णइ कारणमिणमो सुणसू जेणेगपादो उ॥१॥ संगहियकु. च्छि जस पगहिय अप्पाहारे चियत्तदेहे य। णासण्णेऽणावाते णातिणिरुद्धे ठविय भाणं ॥:१२४॥२॥ तिवली अभिनवच्चो कंकग्गहणी य संगहियकुच्छी। जोयणमवि गच्छिजा सन्नाडो डिलस्सऽसती ॥३॥ जसकारि पवयणस्सा
ण यावि सुलभो से आहारो॥४॥ जदिविय हु कुच्छिपुरं लभति कदाती बहुस्स कालस्सा तंपिय से विद्धंसद तत्तकडिछे वजह बिंदं ॥५॥ तेणऽर्य वचं से तो गच्छति जाव मारियं नत्थिान य बाहा उप्पजति चत्तं च सरीरगं तेणं ॥६॥णासन्नं जाइयंडिलं. गावात नियमेण उ। विच्छिन्न दरमोगाद. सादोसविवज्जियं ॥७॥ निक्खिप्पि पडिग्गहगं वोसिरि यसो उ णिलेवे। एण्ण कारणेणं जिणक. पिउ एगपातो उ ।।दा पातदुगस्स उ गहणे कारणमेतं समासओऽभिहित । अहुणा तु चोदयंती किं घेप्पइ वत्थमतिरेग? ॥९॥ किं तिहिण पहुप्पेजा एकेणाच्छादणा पकप्पम्मिा गच्छे सकारणेनिय वोच्छेदकरो पसंगस्स॥१२५ ॥१८८० ॥ चोदेती किं तिण्हं गहणं ? ऊणेहिं जंण संयरति। भणति एकेणावि हु संथरति ? पुणाह तो सूरी ॥१॥ छादणतो णासणओ ऊणेण कता भवे पकप्पस्स। मा हु पसंगविवढी ऊणऽहितं तेण धारेति ॥२॥ गच्छो सकारणोनी गिलाणवुड्ढे य बालमसहादी। तेसऽट्ठा अतिरेगं घेप्पड़ मा होज दुलभंति ॥३॥ सीतादिभावियाणं मा हुणाणादियाण परिहाणी। होजाहि तेण गेण्हति संथरती जावतीएणं ॥४॥ जदि एयविष्पहूणा नवनियमगुणा भवे निरवसेसा। आहारमादियाणं को णाम परिम्गहं कुज्जा ? ॥५॥ पंचमवओवघातो चोदेती वत्यमादिगहणम्मि। एगओवघाए घातो पंचण्हवि वयाणं ॥ ल०१३४॥६॥ एवं तु चोदितम्मी बेंति गुरू ण उ परिग्गहो सो उ।
संजमगुणोवकारा उवघाति परिग्गहो होइ॥ ७॥ जम्मि परिग्गहियम्मी तसथावरघातणा पवत्तंति। गहणे गहिए धरणे सो नाम परिम्गहो होइ ।ल०१३५॥८॥ गहणे पुस्कम्मादी गहिए पुण होति पच्छकम्मादी। धरणे अप्प9 डिलेहा कीरति मुच्छात जा नत्थ ॥९॥ जम्मि परिम्गहियम्मी तसथावरसंजमा पवत्तंति । गहणे गहिते धरणे सो तू(गुणकारओ)ण परिग्गहो होइ॥१८९०॥रागादिविरहिओ ऊ आहारादीण जं कुणइ भोग। ण हु सो परिग्गहो ऊनो कि Aगुरुमादिणं पूया ॥ ल०१३६॥१॥ कीरति आहारादिहिं ? भन्नति भणिता उ नियमसो सा उ। तिथंकरहिं चेव उ तेण उ सा कीरए तेसि ॥२॥ तो किं पुयाहेउं पवत्तयंतीह नित्थगर नित्यं ?। अह कम्मक्खयहे ? पुट्ठो एवं इम
आह ॥३॥ आहारउवहिपूजादिकारणा ण उ परुवितं तित्थं। णाणचरणाण अट्ठा तित्थं देसिंति तित्थकरा ॥४॥ तित्थं चउहा संघो तस्स य देसंति नाणमादीणि । नित्थगरणामगोत्नस्स खयट्टा अविय साभधा ॥५॥ नाणे चरणे गुणकारगाणि आहारउबहिमादीणि। एतेण अणुण्णाता तहिं ठिताणं तु तो पूजा ॥ ल०१३७॥६॥ एसो उवहीकप्पो वनियओ वित्थरं पमोनूणं । संभोगकप्पमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं ॥ ७॥ पुवमणिओ विभागो (२७५) ११०० पञ्जकल्पभाक्यं -
मुनि दीपरत्नसागर