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संभोगविही य दोहिं ठाणेहिं । दोसुवि पसंगदोसा सेसे अतिरेग पन्नवए॥८॥ दसविहसत्तविहेहिं पछुत्तेतेहि दोहि ठाणेहिं । दोसुवि पसंगदोसा ण मुंजए अन्नसंभोई ॥९॥ जम्हा उ ण णजनी उम्गममादी उजे भवे दोसा। एएण अपरिभोगो अमणुष्णे होइ चोदशो ॥१९००॥ जं तत्थ ण पत्तं तू तमहं वोच्छामि एतमतिरेगं । जे उ गुणा संभोगे ते वण्णेऽहं समासेणं ॥१॥ अणुकंपा संगहे चेब, लाभालामेऽविदापता । दावहवे य गेटण्णे, कंतारे अंचिए गुरू ॥..१२६॥२॥ बालादणुकंपणवा असहू अतरंतसंगहवाए। केइ सलही अलखी तेसिं साहिल्लयट्ठाए ॥३॥ उप्पण्णे अगिरणे काहिति विओसणं नु अविदाही।ण य गच्छे बहिभावं उप्परओऽहंनि परिभूते ॥४॥ ममं अणेक्कभाणोत्तिकाउ मा एस पे(ग)च्छती पुधि । जत्थ उ कुले महाले लम्भति भिक्खा महल्ली ऊ॥५॥ तम्हा उ दवदवस्सा पुष्विं गच्छामहं तु तं गेहं । एते ऊ परिहरिया दोसा उ भनि संभोगे॥६॥ गेटण्णेण व एतस्स हिंडियं आणियं तु अण्णेहिं । भोक्खत्ति यऽसहुवग्गो कतारे आणित सहहिं ॥७॥ एमेव अंचिएऽत्री गुरूवि मिण्हेउ अन्नमन्नस्स। एको पुण परितम्मति बाहिरभावं व गच्छेजा ॥८॥ एते उ एवमादी संभोगम्मि उ गुणा भवनी उ । नम्हा खलु कायचो संभोगों गुणन्निएण समं ॥९॥ एयाई ठाणाई जो तु सहू होतओ पमादेति। अण्णे आणतेत्ती घेत्तूणं जं वतं केई ॥१९१०॥ सेसाण पालणट्ठा नो नं उम्मंडलिं करेंनी उ। जइ आउद्दति जुजनि नाहे मेलिजाइ पुणोऽवि॥१॥ अह पृण चोइजनो बहुसो गाउडए उतै दोस। सति लाभलबिजुत्तो निजूहंती उतं ताहे ॥२॥ अह मंदलामलदी ण य जोगं जुजती अहत्थाम। सो हि खरंटेऊणं मेलिजड़ मंडलीए उ ॥३॥ किं कारण णिजुहणा? जं साहूणं गृणुनस्थराणं। ण करेई वच्छल तेण उ णिजूहणा तस्स ॥४॥ एवं आयरिएण उ जोगो सबस्स चैव गच्छस्स । वोढबो दिट्टतो गएण इत्थं इमो होइ॥५॥जह गयकुलसंभूओ गिरिकंदरविसमकडगरोस् । परिवहति अपरितंतो णियगसरीमग्गने दंते॥ल०१३८॥६॥ तह पवयणभत्तिगओ साहम्मियवच्छलो असढभावो। परिवहति अपरिततो खित्तविसमकालदुग्गेसु ॥ ल०१३९ ॥७॥ जइ एकभाणजिमिता गिहिणोऽविय दीहमेनिया हॉनि। जिणवयणबहि
भूना धम्मं पुत्रं अयाणता ॥ ल०१४०॥८॥किं पुण जगजीवसुहावहेण संभुंजिऊण समणेणं । सको हु(न)एकमेको नियोविवरक्खिउं देहो ? ॥२०१४१॥९॥ केरिसयं सं जे केरिसय पावि ऊ ण संभुजे? । भण्णइ उम्गमसुदं भुजे असुद्धं ण भुजेजा ॥ १९२०॥ चोदेआहारादी उम्गममादी असुद्ध मा भुजे। जं पुण अपेहणादीकालादीहिं उवयं तु ॥१॥ नं पुण सुद्धोवहिणा मा समयं एकहिं न बंधेजा। संघासेर्ण नम्स उ उवघाओ मा हु सुद्धस्स?॥२॥ भन्नति सुद्धस्स जती संघासेणं तु होइ उपधाती। सुबेण असुदेण(दस्सा)ऽपि पावइ सुद्धी तव मएणं ॥३॥ अह उवघातोनि मतं संफासेण उमता विसोही ने। णणु ने इच्छामेनन य इच्छामिनओ सिदी॥४॥ उवघातों विसोही वा णन्धि य जीवस्सभावओ एसो। उवघातो विसोही वा परिणामबसेण जीवस्स ॥५॥ तस्सेव पसत्यस्स उ परिणामस्स अह रक्खणट्ठाए । कीरइ संभोगविही गच्छपसनीइ मा गच्छे ॥६॥ संभोगकापदारं एवं खलु वणियं मए एवं। आलोयणकप्पविहिं एनो वोच्छं समासेणं ॥ ७॥ दुपिहपडिसेवणाए दोहाण दुयागताण ठाणाणं । जस्सेव उ अभिमुहओ आयोएजा नदबाए..१२जादा दपिया कपिया चेव. दुविहा पडिसेवणा । दप्पियाए उ दोडाणा, मूले तह उत्तरे चेव ॥९॥ कप्पियाएवि एमेव, दो ठाणा उ वियाहिया। जयणा अजयणा चेव, एकेका य वियाहिया ॥१९३०॥ जम्सेव अभिमुहोली जं चेव य काउ पिहरने पुरतो। आयरियउवमाया नस्सेव उ तं तु आलोए ॥१॥ अहवा जं जह सेवित मूलगुणे व उत्तरगुणे या पाणतिवातादीसु य वएसु तं तं तहाऽऽलोए ॥२॥ अहवा मोक्खाभिमुहो मोक्सट्टाए उ अट्ठकम्माणं । अणलोहए ण मुंबनि कम्हा? इणमो निसामेहि ॥३॥ जइविय तवगणजनो होइ मणस्सो अणवरियसाडो। ण करेति दुक्खमोक्खं सादरणे पततियां ॥४॥तं पण केरिसगस्स उ वियडेय तु? जाणतो जो तु। अविजाणते ण कम्पनि अजाणतो जो अगीयस्थो ॥५॥ पायच्छित्तमयाणतो, ठाणे ठाणे अहाविहिं । आलोयणाए उपसंपयाए ण हु होति पाउम्गो ॥६॥ किं कारणं? ण याणति सोहिं साहुस्स सोहिकामस्स। ठाणे ठाणे पुढवादिएमु मूलतरे वापि ॥ ॥ पाणनिवातादीसु य कारण णिकारणे य जयणाए। आलोयणगुणदोसदरिसणेणं हु पाउम्गो ॥८॥ गुण अणिगृहियमादी दोसा पुण गृहणादिया होति। एते ण याणे अगीतो तम्हा उ इमस्स णालोए ॥९॥ पायच्छिनं वियाणतो. ठाणे ठाणे अहाविहिं। आलोयणाए उवसंपयाए सो होइ पाउम्गो ॥१९४०॥ पडिसेवणऽतियारे दुविहे काले पपंधवोच्छेदे । एकेक छकएणं आलोयण मा पडिच्छाहि ॥..१२८॥१॥ पडिसेवणाऽतियारा दुबिहा मूलगुण उत्तरगुणे या परिसेवणकालोऽविय दुविहो उउबद्ध वासे य॥२॥ अशोच्छिन्न पचंध तचिवरीयं तु होइ वोचिट । वयनककायठकाकप्पादी छकमेकेकं ॥३॥ अकप्पादिछक्कमिणं अकप्प गिहिभायणं च पलियंको। ततो य गिहिणिसिजा होइ सिणाणं च सोभा य॥४॥ एतेसि छक्कगाणं एक्केस्कं जं तु होइ आवण्णो । तं तं आलोएं तहा पच्छिते याचि आयरिओ ॥५॥ आलोयणववहारो संवासिपवासिया ऊ अवराहा। संवासिया उ गचड़े पवासिता कारणगतम्स ॥६॥ अहवा जा अणवट्ठो ना संवासी न होंति अवराहा।
पारंची य पचासी पवसति गच्छाओं जेणं तु ॥आ पंचपिहो समाओ दाणम्गहणम्मि भइओं संवासे । पाचासिए ण दिजति ण य गहणं होई काय ॥८॥ आवनगपरिहरिए अणवढे येव दोण्हऽवेनेसि । णवि दिजति णवि घेप्पति न सेसाणं दाण गहणं च ॥९॥ आलोयणाएं कप्पो एसो भणिओ मए समासेणं । उपसंपयाएं कप्पं एत्तो उ समासओ वोच्छं ॥१९५०॥ दुविहम्मि आगमम्मि उ पावणा पेप आयरणया य । पण्णवणगहणअणुपालणाएं उपसंपया भहोइ॥१॥ आगमहे उपसंपदा उस य आगमो भवे दुविहो । सुतं अत्यो य तहा पारगए तत्य उपसंपा ॥२॥ दो आयरिया पारग कत्थ उ उपसंपदा नहि कुजा?। जो णितणनरं भासनि अह निउणं दोवि भासंति ॥३॥ सामा
यारी पडिलेहणादि जो तत्थ आवराचेति । दोसुवि समुजतेसू जो तहियं धम्मकहिओ उ॥४॥ तावि यदु सिक्खियथा समायस्सेव जेण नं अंगं । दोसुवि धम्मकही जो नहियं गाहगो होइ ॥५॥ गाहणसनिजतेसुं दोसु अवी कत्थ होति उपसंपा? । अतरंतअसहुवर्ग विसेसओ जो उ पालेति ॥ ६॥ एतेसु विसिद्भुतरो अण्णाहिंतोऽरिहाइ उपसंपे। इतरो होइ अजोग्गो जइविय सो होइ गीयत्यो ॥ ७॥ जो उ असंचिग पुण पण्णवणाकोक्दिोत्तिकाऊणं। उपसंपनइ बालो तस्स इमे होंति दोसा उ॥८॥सीहमुहं वन्यमुहं उयहिंव पलित्तर्गव जो पविसे। असिवं अवमोयरियं धुर्व सि अप्पा परिचत्तो॥९॥ तह चरणकरणहीणे पास जो उ पक्सिते मिक्स। जयमाणे उपजाहिउँसो ११०१पजकल्पभाष्यं -
मुनि दीपरत्नसागर