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________________ आगंतुयवत्यमा यीपुरिसकुलेसु व विसेसो ॥९॥ वेगो सकोसजोयण मूलनिर्वधे अणुम्मुयंतेण। सचित्ते अचित्ते मीसेऽविय दिग्णकालम्मि ॥२४५०॥ सेसत्ती निस्साहारणमि मूलक्खेत्त अणुमुर्यतर्ण । होइ सकोसं जोयण दिसविदिसासु तु सपत्तो॥१॥ एवं खेत्तओं एसो कालओं उदुबदि होइमासो उ। वासासु चउम्मासो एवतिकालो विदिण्णो उ॥२॥ एवइकाल विदिणं पुण्णे निकारणम्मि तेण परं । ण उवम्गहो विदिण्णो मोत्तूणं कारणमिमेहिं ॥३॥ असिवादिकारणेहिं दुविहऽतिरेगेऽवि उग्गहो होइ । जा कारणं तु छिण्णं तेण परं उरगहोण भवे ॥४॥ जइ होइ खेत्तकप्पो असती खेत्ताण होज बहुगावि। खेतेण य कालेण य सवस्सवि उग्गहोणगरे ॥५॥ सति लंमे खेत्ताणं जोग्गाणं जो उ जत्य संथरति। सो तहियं संचिक्खे खेत्ताण असती पुण पहुंपि ॥ ६॥ एगत्य उ गामादिसु जहियं तू संघरंति तहिं अच्छे। सबेसि तहिं उग्गहों साहारण होति जह णगरे ॥७॥ एसा खेत्तुवसंपद पुरपच्छासंथुए लमति एत्य। तह मित्तवयंसा या जं च लभ सुतोवसंपनो ॥८॥ मग्गोवसंपदाए मगं देसेइ जाव सो तस्स। लभती दिवाभट्ठादि जो य लाभो पुरिलाण ॥९॥ विणओवसंपदा पुण कुवति विणयं तु जो उ रायणिए। स तस्साभवती जो उ उवट्ठायती तस्स ॥२४६०॥ उपसंपद इसा पंचविहा बशिया समासेणं । खेत्तम्मि परे खित्ते णिक्वमिओ जो उ होजाहि ॥१॥ काले उदु वासं वा बसिऊणं निग्गयाण जो अण्णो। पढमबितियदिवसेसू निक्खामे कालओ एसो ॥२॥ इन्चेसो पंचविहो ववहारो आभवंतिओ णामं । पच्छित्ते ववहारो जह दस. (पढ)मुद्देस ववहारे ॥३॥ अहुणा उ खेत्तकाला तेवि उ तत्व भणित ववहारे । जं तत्थ उ तस्सेसं तमहं वोच्छं समासेणं ॥४॥ दुविहे विहारकाले तिविहा सोही उ उवहिभत्ताणं । दिण्णे जतंत सोही अविदिण्णवाएं आवण्णे ॥..१६८॥५॥ उदुबद्धे वासासु य विहारकालो उ होइ दुविहेसो। उग्गम उप्पायण एसणा य एसा तिविह सोही ॥६॥ उदुबद्ध मास वासासु हाँति चउरो विदिन्नकालो उ । एत्य जयंता जइबि हुआवजे तहवि सुदा उ॥७॥ मासा चउमासा पुण संवसमाणा उ तत्थ अतिरित्तं । म(ल)गंति जयंताविहु किमु अजयंता उ? किं. चऽणं ॥८॥ उदुबद्धवासवासं अणुवसमाणो असुद्धभत्तुवही । आयरियप्पमाणा गुणप्पमाणं च समणाणं ॥९॥ उग्गममादी दोसा असेवमाणोवि सो उ आवण्णो । जम्हा दोसायतणं उरम्मि थावेत्तु संवसति ॥२४७०॥ कत्येयं भणियंतिय ? भन्नति आयरिएण किमायारे?। आयारपकप्पे ऊ आयारिभवंतु आयारी ॥१॥ जे मिक्खु णितियवासं वसइत्ती एत्थ भणिय सुत्तम्मि । एवं पमाण उभये अइरित्ते यावि जे दोसा ॥२॥ जदि पुण बहिया हाणी तहिं वढि गुणाण तत्य अच्छति । के पुण गुणादि भणिया? भन्नति नाणादिया होति ॥३॥ कालातीते दोसा दक्खओं होइ अच्छमाणाणं । तम्हा उ ण चिट्ठिजा अतिरित्तं दुविहकालम्मि ॥४॥ निद्दय अणुकंपाए गिहिणं तो णाम ण वसहा तुम्मे । भण्णति ण होति एवं मा साहुणं चरणभेदो॥.:.१६९॥५॥ चोदेताहारादिसु सुजनतेसूऽवि णाम जं वीए। तत्य ण चिट्ठह तण्णाम णिहयत्तेण गहियाण ॥६॥ मा पाविहिंति धर्म गिहिणो साहूण फा. णं । इय णिहयता अहवा इहलोगणकंपया तेसिं॥७॥मा दव्वखओ होही अणुवासे णिचसाहुदाणेणं । इय अणुकंपिहलोए भण्णइ ण उ एवमादीहिं॥८॥मा होज चरणभेदो पुण्णातीतंमि संवसंताणं। अतिचिरसंवासेणं सिणेहमादीहिं दोसेहिं ॥९॥ एसो उ कालकप्पो एवं वक्खाणिओ समासेणं। अहुणा उ उचहिकप्पं गुरूवएसेण वोच्छामि ॥२४८०॥ उवगेहति उवकारं करेइ उवहीयतेण उवही उ। किं कारणं तु उवही उदिसिओ? भण्णती सुणसु ॥१॥जीवाणऽणुग्गहवा एवं खलु वन्निओ इहं तित्थे। काऊणऽणुग्गहपदं पडिणीयपदे | अभावो उ॥२॥ रसयादणुकंपट्टा अगणीमादीण चेव रक्खट्ठा। असहूणऽणुकंपट्ठा य उवहीगहणं जिणा बेंति ॥३॥ आह जहऽणुग्गहट्ठा वत्यादीगहण देसियं समए। तो असहूणं कम्हा यीपरिभोगो णऽणुण्णाओ? ॥४॥ भण्णइ पवित्ति कम्हिऽवि कम्हिऽवि पुण होति अपवित्ती उ।संजमपडिणीयत्ता मेहुणमादीण नाणुण्णा ॥५॥ नाणचरणट्ठियाणं उवम्गहं कु. पति नाणचरणाणं । आहारउवहिसेजा तेण उ उवहित्तणं बेति॥६॥ जस्स पुणोबहि गहिता उवघातकरी उ तस्स उवघातो। कह उवधात करेती? अइरित्तगहो य मुच्छा य ॥७॥ संघरमाणो गेण्हति अतिरित्तं उवहि जो भवे समणो।वण्णादिजुते मुच्छति इट्टाहारे धुवस्सेवं ॥८॥ एतेसु अणिट्टेसु य जो दुस्सति से करेइ उवघातं । नाणादीणं तिष्हं तम्हा ते बज्जिए हेतू ॥९॥जो जत्थ जदा जहियं उवही परिभोगओ अणुण्णाओ। सो तत्थ अणइचारो अणणुण्णाते चरणभेदो॥२४९०॥जह सिंधूओ कप्पो ओराला उणिया अणुषणाता। पि. सियादीण य गहणं खीरादीणं चऽणुण्णातं ॥१॥ अतिहिमदेसे य तहा कारणितगताण सिसिरकालम्मि। परिभुजंताण य को विवाद? चरणे अणुवघातो ॥२॥ लाडविसयादिएसुं एतेसिं चेव भोत्तु पडिसेहो। पडिसिद्धे परिभोगं कुणमाणो भंजती चरणं ॥३॥ नाणंपि उ सो मिंदइ उवदेसं जेण ण कुणती तस्स। जं नाणपुछ देसण दसणभेदोवि तो तेणं ॥४॥ निवदिक्तितमतरतादिएसु कजेसु होइ परिभोगो । समणुनाओ कसिणादियाण इहरा अणुवभोगो ॥५॥ एसो उ उवहिकप्पो अहुणा संभोगकप्प वोच्छामि । तस्स पसाहणहेउं - गाहामुत्तं इमं आह॥६॥णवि राया गवि दोसा संभोगविही उ वण्णिओ सुत्ते । नाणचरणट्ठियाणं मणियं सुयनाणपुरिसेहिं॥१७॥७॥रागेणं संमुंजति सिणेहओ तेहिं सद्धि ११११ पञ्चकल्पभाष्यं - मुनि दीपरत्नसागर *
SR No.003939
Book TitleAagam Manjusha 38B Chheyasuttam 05 B Panchkapp Bhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages53
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_panchakalpa_bhashya
File Size40 MB
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