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किंचुपकरेइ ? वेयावचगमागम काले चिंतादि दोय ॥९॥ सीसो आयरियस्स उ वेयावच्चं तु कुणइ जाजीयं । जहिं गच्छइ तहिं पचति पेसेड व जत्थ तहिं जाइ॥२४००॥ कर्ज समाणइत्ता एलईच सबमप्पेति। कायनुवरगहो ऊनाणादीएहिं गुरुणाऽवि॥१॥ दवे सचित्तादीलाभो सीसम्स जो नहिं होति। सोविय जावजीवं सो गुरुणो उ आभवति ॥२॥ कुणती पाठिच्छोपि उबेयावर्ष तु असणमादीहिं। वचाइ य पमाणे] कालेणं रोयती जाय ॥३॥ गेव्हा या जाच सुतं ता कुणई सबमेव पाडिच्छो। एत्तो दो बोच्छ जं आभवती उ पादिच्छे ॥४॥ज होइ नालबवं अभिसंधारेंतर्गतर्ग एति। संदेसदिग्णगं वा गामे चिंधेयकाले य॥५॥ बडीऽणंतर संतर अर्णतरा छजणा इमे होति। माता पिता त भाता भगिणी पुत्तो य घूया य॥६॥ मातुं माया य पिया माता भगिणी य एवं पिउणोऽवि। भाउभगिणीणऽवचा धूतापुत्ताणवि तहेव ॥ ७॥ पारंपरवति एसा जइ तं धारे पहिच्छगस्सेव । अह णो अमिधारेती सुवगुरुणो तो उ आभशा ॥८॥ संगारो पुत्रको पच्छा पाडिच्छओ उ सो जाओ। तेण णिवेदेया उपट्टिता पुषसेहा मे ॥५॥ एवइएहि दिणेहि उम्भ सगास अवस्स एहामो । संगारो एवं कतो चिंधाणि य तेसि चिंधेड़ ॥२४१०॥ कालेण य चिंधेहि य अविसंवादीहिं तस्स गुरुणिहा। कालम्मि विसंवदिए पुच्छिजति किं न आओ सि? ॥१॥ संगारिवदिवसेहिं जड गेलण्णादि दीपयति तो उतरसेव अहत भावो विपरिणओ पच्छ पण जाओ॥२॥ता होइ गुरुस्सेव तु एवं सुयसंपदाए भणितं तु । मुहदुस्सुसंपने एत्तो लाभ पक्क्खामि ॥३॥ बहसु मम सुहदुक्खे अहमपि उम्भे तु एवमुक्सपे। पुरपच्छसंयुया ऊसो लभतीजे या पानीसं ॥४॥ मुहदुक्खसंपएसा एत्तो खेत्तोवर्सपदं वोच्छं। खेत्तोरगहो सकोस वाघाए वा अकोर्स तु ॥५॥ पत्ते उग्गह साहारणे य बासे तहेव उदुबदे। सबदिसासु सकोसं निवाघाएण पत्ते उ॥६॥ अडविजलतेणसावतवाचाते एगदुत्तिचाउमुंबा होज अकोसो उग्गहों अहुणा साहारणं वोच्छ ॥ ७॥साहारण होजाही पडिलेडणपुषपच्छनिम्ममणे । पुर्व पच्छा पत्ते आयरिए वसभअजासु ॥..१६६॥८॥ दुगमादीगच्छाणं पडिलेहगणिगयाण समगं तु। पत्ता खेतं एसो पढ़मगभंगो मुणेयव्यो ॥९॥ समगं निगम एके पच्छा पत्ता य चितियओ भंगो। पच्छा निग्गय पुच्वं पविट्ठ पच्छा य दुहतोचि ॥२४२०॥ पढमगभंगे जो खलु पुखि तु अणुमति ते खेत्ती । समगं पुणऽणुनविए सामर्न होइ दोण्हंपि ॥१॥ वितियगभंगे दप्पेण पुच्चि पत्ता उ जइ णऽणुणवंति । इयरेसिं असदाण य अणु. न्नताण खेतं तु ॥२॥ पुरनिमाता कहं पुण पच्छा पत्ता उ ते हविजाहि ?। गेलण्णखमगपारणवाघातो अंतर हविज्जा ॥३॥ गेलण्णवाउलाणं तु, खेत्तमण्णस्स णो दए। निसिद्धो स्वमओ घेव, तेण तस्स न लब्भती ॥४॥ अंतरवाघाएणं पच्छा पत्ताण पुचि जे पत्ता। असदेहिं अणुन्नवितं पुचि पत्ताण तं खित्तं ॥५॥ अह समगमणुचविए काउ पमादपि तो उ साहारं। एवं तु वितियभंगो अहुणा ततियम्मि वोच्छामि ॥६॥ पच्छावि पत्थियाणं सभावसिग्धगतिणो भवे खेत्तं। एमेव य आसने दूरद्धाणा व पत्ताणं ॥ ७॥ भंगे चउत्थगम्मी पुषाणुण्णाएँ असढभावाणं। पढमगभंगसरिच्छा आभवणा तत्थ नायचा ॥८॥ पुतगहिओवि उग्गहों होति गिलाणहुताए जहियो। अह होजा संथरणं कालक्खेवो दुपक्सेचि॥९॥ पुवट्ठितखेत्तीर्ण जइ आगच्छे गिलाणइत्तपणे। जइ दोण्ह असंथरणं तो निम्गमों खेत्तियाणं तु ॥२४३० ॥ अह दोहवि संथरणं दोव्हिवि इच्छंति जा गिलाणो उ। एते य दुनि पक्खा अहवा समणा य समणीओ ॥१॥ गिलाण उवहीकिच्चा भत्तोवहिलुद्धताऽविहिग्गहितं । पेठती परखेत्तं साहम्मियतेणिया तिविहा ॥२॥ उवही णियडी माया गिलाणणिस्साएँ विजमाणेवि । छड्डेत्तु एंति खित्ते भत्तोवहिलुद्धताए उ॥३॥ लम्भंति सुंदराई गिलाणणियडीएँ एंति तो तत्थ। इतरेवि गिलाणोत्तीकाउं तओं णेति खेत्ताउ ॥४॥ तेसुं तु निम्गएमुं सचित्तादी उ तिविह जं गेण्हे । तं तेसि होति तेणं पच्छित्तं चेव तिविहं तु ॥५॥ जे पुण असंथरता एंति तर्हि तेसिमा भवे मेरा । आयरियसभअजाण चेव वोच्छं समासेणं ॥६॥ अच्छंति संथरे सव्वे, वसभो नीई असंथरे । जत्थ तुला भवे दोवि, तत्थिमा होति मग्गणा ॥७॥ निष्फण्ण तरण सेहे जुंगियपातच्छिणासकरकण्णा । एमेव संजईणं णवरं वुड्ढीसु णा. णत्तं ।।..१६७॥८॥ परिवार अणिप्फनो अच्छति निष्फण्णतो उ निग्गच्छे। अच्छति वुड्ढ तरुणा य णिति सेहे असेहिडे ॥९॥(निति) अच्छति जुंगिता तु णितियरे अहव जुंगिता दोवि।
ग तरुणीओ ॥२४४०॥ समणाण य समणीण य अच्छंती संजईउ नियमेणं । जेण बहुपञ्चवाता अणुकंपा तेण समणीणं ॥१॥ संथारे भत्तसंतुट्ठा, तस्स लाभम्मि अप्पभू। जुंगितमादीएम, व्यंति खित्ती ण ते जेसिं ॥२॥ दुषमादीगच्छाणं खित्ते साहारणम्मि बसियो । अप्पत्तियपडिसेहत्थया(इता)ए मेरा इमा तत्थ॥३॥ अस्थि बहु वसभगामा कुदेसनगरोवमा सुहविहारा । बहुगच्छुचम्गकरा सीमच्छेदेण वसियव्वं ॥४॥ आयरियउवझाया दुहिं तिहिं सहिया उ पंचओ गच्छो। एव तु गच्छा तिनि उ उदुबद्ध संघरे जत्थ ॥५॥ वासामु तिचउजुया आयरियउवा सत्तओ गच्छो। एव तु गच्छा तिनि उ वासासु संथरे जत्थ ॥ ६॥ कालदुयम्मिवि एवं जहण्णय होइ बासखेत्तं तु। बत्तीसं तु सहस्सा गच्छो उकोस उसमम्मि ॥७॥बहुगावग्गहकरा एत्तियमेत्ताण जत्य संथरणं। ऊणा अणुक्रमहिता सीमच्छेदं अओ योच्छं ॥८॥ तुम्भऽतो मह चाहिं तुम्भ सचित्तं ममेतरं वावि। १११० पत्रकल्पभायं -