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मम पीती । जच्चादणुवसमे (गे)ण व दोसेणेवं ण संमुंजे ॥ ८ ॥ नाणचरणे रयाणं एसुवदेसो उ वण्णिओ सत्या तं गणहरेहिं गहियं तो ते सुतनाणपुरिसा उ ॥ ९ ॥ किं कारणं अणुण्णा ? संभो विही उ एस साहूणं । भण्णइ नाणादीर्ण परिवड्डी एवं होहिति तु ॥ २५०० ॥ अण्णोऽण्णस्स सगासे नाणमहीहिंति जं च तं गहिता। होहिंति थिरा चरणे काहिंति गिलाण किचं च ॥ १ ॥ जति संभोगगुणा ते ता सडे कीस ण परिभुजंति ? । भण्णति सरिसऽहिगेहिं व संभोगो ण पुण हीणेहिं ॥ २ ॥ अस्थि पुण केइ पुरिसा तिगंतिगेणं पमाय कुब्वंति। आहारउवहि। सेजा जुत्तो संभुंजणाबंधो ॥ .. १७१ ॥ ३ ॥ आहारादीतियगं उग्गममादी असुद्ध गहणेणं । जे कुब्वंति पमादं तेसिं संवासदोसेणं ॥ ४ ॥ अणुमोदणपचतिओ मा बंधो होहितित्ति तेणं तु । णवि कीर संभोगो तेवि य चाग (विगता वरं होता ॥ ५॥ णणु रागदोसियत्तं संभुंजण एग एगऽसंभोगे ? भण्णति ण रागदोसा मुणसू जं कारणं एत्थं ॥ ६ ॥ संभुंजणा विसुद्धा उवग्गहं कुणइ नाणचरणाणं। संभुंजणा असुद्धा चरितभेदं वियाणाहि ॥ ७ ॥ भोगेण पमाएणं तदोसाणं तु होइ समगुण्णा एवं चरित्तभेदो किं पुण सो कुवति पमादं ? ॥ ८ ॥ प्यारसपडिबद्धो सुद्ध असुद्ध करेइ संभोगं अहवावि अजाणतो संभोगविहीए गुणदोसे ॥ १७२ ॥ ९ ॥ पूजाहेतु पमादी सेवति रसहेउगं च तस्सेवी नाणादिसुद्धकप्पं कुण्ड असुद्धं तु सो एवं ॥ २५१० ॥ बारस मूलपदा खलु संभोगविहीय वष्णिया सुत्ते जत्तो पावादाणं भणितं दुट्ठाण उक्खेवो ॥ १ ॥ उवहिसुतभत्तपाणे, अंजलीपग्गहे इय वायणाय णिकाए य. अम्भुट्टा णेत्तियावरे ॥ ल० १६१ ॥ २ ॥ किइकम्मस्स य करणे, वैयावचकरणेइय। समोसरण सनिसेज्जा, कहाए य पबंधणे ॥ ल० १६२ ॥ ३ ॥ एते वारस भेदा संभोगविहीय तु समक्खाया। पावादाण तेसु य इमेहिं ठाणेहिं णायां ॥ ल० १६३ ॥ ४ ॥ रागदोसाणुगओ जो संभोगं तु पालए पत्तं सो दुट्ठो णायचो तस्सुक्खेवो विसंभोगो ॥ ५॥ अहव इमेहिं तु कारणेहिं नियमा भवे विसंभोगो। संभोगविहिं जो तू विवरीयं आयरिजाहि ॥ ६ ॥ उवरिम मज्झिम हेडिम संभोगद्वाणगं तिहा विभए पडिसेहे पडिसेहो समणुण्णे होइ समणुण्णो ॥ १७३ ॥ ७ ॥ उवरिमएत्ति अहागढ मज्झिमगा होंति अप्पपरिकम्मा सपरिकम्मा हिडिम संभोगविही तिहा एसो ॥ ८ ॥ अहाकडा मिलति अहाकडेसु, भत्तं च पाणं तह घोषणं वा अहाकडा गच्छति हिडिमेसुं, ण हिडिया छुम्भ अहाकडेसुं ॥ ९ ॥ मझिमिता हिडिमते छुम्भइ न तु हिडिमा उवरिमेसुं। एसो तिविहो उ भवे संभोगविही समासेणं ॥ २५२०॥ पडिसेहे पडिसेहो सपरिकम्मं तु होइ पडिवद्धं तस्स पुणो पडिसेहो उवरिले मेलणा जाउ ॥ १ ॥ पडिसेहो हेतुवरिं उदरिलो हिट्टिमे अणुष्णाओ। अह पडिसेहि अणुष्णा होंति इमा तू मुणेयश्वा ॥ २ ॥ जो पडिसिद्धं एवं आयरती तस्स होइ पडिसेहो। पडिसेहो विवेगुत्ती अवितहकरणे अणुष्णा उ ॥ ३ ॥ केरिसएणं तु समं संभोगो तेसि होइ कायो ? अहवावि ण कायव्वो ! भण्णइ इणमो निसामेहि ॥ ४ ॥ णवि एस मंदधम्मे ण गित्येसुं न चैव अजासु वावत्तरीविभत्तोऽवितरे पडिसेणं जाणे ॥ १७४॥ ५॥ दिजइ घेप्पड़ व तहा केसिवीण दिजए ण घेप्पर उ। णवि दिजति घेप्पति तू णवि दिज्जति गवि उ घेप्पर तू ॥ ६ ॥ संविग्गसंजयाणं दिजइ घेप्पइ य पढमभंगो उ संजतिवग्गे दिज्जति गवि घेप्पड़ कारणे वितिओ ॥ ल० १६४ ॥ ७ ॥ गिहिन्नतित्थियाणं गवि दिज्जइ घेप्पई उ नवरं च नवि दिजति नवि घेप्पड़ पासत्थादीण सव्वेसिं ॥ ल० १६५ ॥ ८ ॥ बावतरीविभत्तत्ति एस वारसविहो उ संभोगो। छहिं गुणिओ बावतारं संभोगाणं मुणेयव्वा ॥ ९॥ बावन्तरी उ एसा दुगतिगच उपंचकसंगुणिया जावइय होंति भेदा तेसु विसुद्धेसु संभोगो ॥। २५३० ॥ पडिसेहो असुद्धेस कप्पो संभोग एस वक्खाओ। अहुणा उ लिंगकम्पं वोच्छामि अहाणुपुवीए ॥ १ ॥ जो पुषिं वक्खाओ जिणथेराणं तु दोन्हवी कप्पो रूढणह कक्खमादी सो चेव इहंपि णायशो ॥ २ ॥ इति एस लिंगकप्पो वोच्छे पडिलेवणाएँ कप्पं तु। जारिसयं सेविजति सुदमसुद्धं समासेणं ॥ ३ ॥ गणपरिभुंजणाए निवाघाए तहेब वाघाए। वाघाए दुयगणं निशापाए य तियगणं ॥ १७५॥ ४ ॥ पडिलेवणा उदुविहा गहणे परिभुंजणे य नायचा एकेकावि य दुविहा निवाघाते य वाघाते ॥ ५ ॥ वाघातम्मी सुद्धं गेव्ह असुद्धं च एतदुयग्रहणं परिभुजंतीवि एवं निव्वाघातम्मि वोच्छामि ॥ ६ ॥ उग्गममादीसुद्धं गेण्हति परिभुंजती य तियमेयं । अह पुण को वाघातो ? परूवणा तस्सिमा होइ ॥ ७॥ असिवे ओमोदरिए रायद्दुद्वे भए व आगाढे। उक्कायदुगमु वादाय वाघाते निव्वधाते य ॥८॥ सुद्धमसुद्धं च जहिं अहवा सचित्तमीसगं वावि। एतेसिं दोन्हं तू वाघाते गहण भोगे य ॥ ९ ॥ णिवाघाए छण्हवि अचित्ताणं तु गहण कायाणं गहियस्स य परिभोगो तस्सेव य होइ कायो । २५४० ॥ परिभोगे वाघाते गहिए पच्छा तु होज तं नातं जह आहाकम्मंती ताहे य तयं ण परिभुंजे ॥ १ ॥ वाघाते सेवंती अकिचमेयं तु चितए साहू । होइ तहा निजस्तो जो पुण इणमो समायरति ॥ २ ॥ पूजारसपडिबदो ओसण्णाणं च आणुयत्तीय चरण करणं निगूहति तं जाणऽणुयत्तियं समणं ॥ १७६ ॥ ३ ॥ पूजारसहेडं वा बेई जह किश्चमेव एवं तु मा मे ण देहिति पुणो जह एसोऽकिच्चकारिति ॥ ४ ॥ अहवा ओसन्नाणं तु अणुयत्तीय बेति को दोसो आहाकम्मादीसुं ? णवरं मा कीरउ सयं तु ॥ ५ ॥ सो गृहति चरणादी एवं तुच्छं खु तस्स सामनं । तम्हा उ परुवेजा सुद्धं मग्गं तु किंचऽण्णं ॥ ६ ॥ णिस्साणपदं पीहर अणिस्सविहरंतयं ण रोएति । तं जाण मंदधम्मं इहलोगगवेसगं समणं ॥ ७॥ अहवा उम्मग्गो खलु निस्साणं तं तु पीहए जो उ तस्स उ छेदसुतत्थं ण कहे दोसा इमे तहियं ॥ ८ ॥ पंचमहवयभेदो छकायवहो य तेणऽणुण्णाओ। (२७८) १११२ पञ्चकल्पभाष्यं -
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मुनि दीपरत्नसागर