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अहवा ततिए दोसो जायति इयरेसु किं न सो भवति । एवं खु नत्थि दिक्खा सवेदगाणं ण वा तित्थं ॥ ८ ॥ भण्णति थीपुरिसा खलु पत्तेयं दोसरहियठाणेसु । णिवसंती इयरो पुण कहिं छुमति दोसुवी दोसा ॥ ९ ॥ संवासफासदिडीदोसा हू तस्स उभयसंवासे । अप्पत्यंचगदित जह राय मतो अवारंतो ॥ ३५० ॥ एत्थंबगदितो अहवा जह बच्छो मातरं द अभिलसती मायाविय वच्छं दट्ट्ण पण्हुयति ॥ १ ॥ अंब वा खज्वंतं दठ्ठे अहिलासों होति अण्णस्स । सागारियादि दट्ठे एव णपुंसे भवे दोसा ॥ २ ॥ तम्हा हु ण दिक्खिज्जा एवं णाऊणमेत दोसगणं। चितियपदे दिक्खिज्जा इमेहिं अह कारणेहिं तु ॥ ३ ॥ असिवे ओमोदरिए रायद्द्द्द्डे भए व आगाढे गेलन उत्तिमद्वे णाणे तह दंसण चरिते ॥ .. ३६ ॥ ४ ॥ रायदुद्रुभये ताण विस्स चैव गमणट्ठा। वेजो व सयं तस्स व तप्पिस्सति वा गिलाणस्स ॥ ५ ॥ पडिचरगस्सऽसतीए एगागी उत्तिमट्ठपडिवण्णे। अवावी अ(कु) सहाए वैयावचड़ता दिक्खे ॥ ६ ॥ गुरुणो व अप्पणो वा णाणादी गिन्हमाणे तम्पिहिति। अचरणदेसा णिते तप्पे ओमासिवेहिं वा ॥ ७॥ एतेहिं कारणेहिं आगाढेहिं तु जो तु णिक्खामे पंडादी सोलसगं कयकज्जविगिंचणडाए ॥ ८ ॥ तस्स विही होति इमो दिक्खिजंतस्स कारणजाए। सो पुण जाणिमजाणी जाणति जाणी तहा ततिओ ॥ ९ ॥ गवि कप्पति दिक्खेतुं तमुवट्टित पण्णवेति अह एवं तुझ पति दिक्खा नाणादिविराहणा मा ते ॥ ३६० ॥ जो पुण न जाणएवं तस्स विही होतिमा करेयवा । जणपचयट्टताएं जाणंतमजाणए वाचि ॥ १ ॥ कंडिपट्ट भंड छिली कत्तरि खुर लोय परमतं पाढे धम्मक सनि राउल वबहार विगिंचणं कुजा ॥ ३७॥२॥ कडिपट्ट भंड छिहली कीरति ण विधम्म अम्ह चेवासी कन्तरि खुरेणऽणिच्छे हाणी एकेक जा लोओ ॥ ३ ॥ लोएवि कए पच्छा भिक्खुगमादीमताई पाडिंति तंपिय अणिच्छमाणो पाढिती छलियकवाई ॥ ४ ॥ ताणिवि अणिच्छमाणे धम्मका नाऽवि हू अणिच्छते। परतित्थियवत्तयं दिज्जति ताहे ससमएवि ॥ ५ ॥ तंपिय अणिच्छमाणे उक्कमतो तस्स दिजए सुतं अण्णण्णसुत्तपलव पुत्रावरओ असंबद्धं ॥ ६ ॥ वीयारगोयरे थेरसंजुतो रत्ति दूरि तरुणाणं । गाहे मपि ततो घेरा जत्तेण गाहिंति ॥ ७ ॥ बेरग्गकहा विसयाण निंदणा उगुणिसियणे गुत्ता। चुक्कखलितम्मि बहुसो सरोसमिव तजए तरुणा ॥ ८ ॥ कतकज्जा से धम्मं कहिंति मंचाहि लिंगमेयंति। मा हण दुएवि लोए अणुब्वता तुज्झ णो दिक्खा ॥ ९ ॥ इय पण्णविओ संतो जइ मुंचति लिंग तो उ रमणिज्जं । अह गवि मुंचति ताहे भेसिजति सो इमेहिंतो ॥ ३७० ॥ सणि खरकम्मितो वा भेसेइ कओ इहेस किंचियो । तेसासति रायकुले यदि सो वबहार मग्गिजा ॥ १ ॥ एतेहिं दिक्खिओऽहं जतिविय लोगो ण याणते कोति । जह एतेहिं दिक्खितो तो ते बिंती ण दिक्खेमो ॥ २ ॥ अज्झाविओवि एतेहिं चैव पडिसेह किं वऽहीयं ते? छलियकहादी कड्ढति कत्थ जई कत्थ छलिताई ? ॥ ३ ॥ पुवावरसंजुतं वेगकरं सततमविरुद्धं पोराणमद्मागभासाणियतं हवति सुतं ॥ ४ ॥ जे सुत्तगुणाऽभिहिता तत्रिवरीयाई गाहिओ पुष्टिं । तेहिं चैव विवेगो जह एरिसयं भवति सुतं ॥ ५ ॥ णिववइह बहुपक्खम्मि बाबि वुडंचगम्मि पत्रइए। वोसिरणं वोच्छामी बिहीएं जह कीरए तस्स ॥ ६ ॥ भिण्णकहाओ भई विंती ण पढति इहं खु एरिसयं परतित्धिगादि वयम् जदि बेती तुज्झ समयंति ॥ ७॥ इय होतुत्ती वोत्तूण णिग्गतो भिक्खमादिलक्खेणं भिक्खुगमादी छोढुं विपलायंती पुणो तत्तो ॥ ८॥ कावालिए सरक्खे तबण्णियलिंगमादि वसभा तु । तं किंतु देउलादिसु सुतं छड्डित्तु वसन्ति ॥९॥ तिविहो होति य जड्डो भास सरीरे य करणजड्डो य। भासा जड्डो चउहा जल एलग मम्मण दुमेह ॥ ३८ ॥ ३८० ॥ जह जलवुड डो भासति जलमूओ एव भासइ अवतं जह एलगोत्र एवं एलगमूगो बलबलेति ॥ १ ॥ मम्मणमूओ बोब्बड खलेइ वाया हु अविसदा जस्स दुम्मेहस्स ण किंची घोसंतस्सावि ठायइ हु ॥ २ ॥ दंसणणाणचरिते तवे य समितीसु करणजोगे य उवइईपिण गेहति जलमूगो एलमूगो य ॥ ३ ॥ णाणादिऽट्ठा दिक्खा भासाजड्डो अपचलो तस्स सो य बहिरो य नियमा गाण उड्डाह अहिकरणं ॥ ४ ॥ तिविहो सरीरजड्डो पंथे भिक्खे तहेब बंदणए एतेहिं कारणेहिं सरीरजड्ड ण दिक्खेजा ॥ ५ ॥ अदाणे पलिमंधो भिक्खायरियाए अपरिहत्थो • उदुस्सासऽपरकम अहिअग्गीउदगमादीसु ॥ ६ ॥ आगाढगिलाणस्स य असमाही बावि होज मरणं वा जड्डे पासेवि ठिए अण्णे य भवे इमे दोसा ॥ ७ ॥ सेदेण कक्खमादी कुच्छण धुवणुपिलावणे दोसा । णत्थि गलओ य चोरो निंदियमुंडा य जणवादो ॥ ८ ॥ णेगे सरीरजड्डे एमादीया हवंति दोसा तु तम्हा तं गवि दिक्खे गच्छ महले वऽणुष्णाए ॥ ९ ॥ इरियासमिईभासेसणासु आदाणसमिइगुत्तीसु। गवि ठाति चरणकरणे कम्मुदपूर्ण करणजड्डो ॥ ३९० ॥ जलमूग एलमूगो अतिथूरसरीर करणजड्डो य दिक्तस्सेते खलु चउगुरु सेसेसु मासलहू ॥ १ ॥ भासाजइडं मम्मण सरीरजइडं च णातिथूरं च जावजिय परियट्ठे करणे जडं तु छम्मासे ॥ २ ॥ मोतुं गिलाणकजे दुम्मेहं वावि पाढि छम्मासे । ताहे तं दुम्मेहं जोऽविय करणम्मि सो जड्डी ॥३॥ छण्हुवरि तेसि दोन्हवि आयरिओ अण्ण गाहे छम्मासा। पच्छा अण्णो ततिओ सोऽविय छम्मास परियहे ॥ ४॥ जोऽविय तं गाहेती सिस्सो तस्सेव सो हवति ताहे । तहवि ण गिव्हे जदि ह कुलगणसंघे विगिंचणता ॥५॥ दुविहो य होति कीवो अभिभूओ चेव अणभिभूतो य अभिभूतोऽविय दुविहो आलिदनिमंतणाकीवो १०७१ पञ्चकल्पभाष्यं
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मुनि दीपरत्नसागर