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होइ एगई। समणा समणीओ वा दुविहं परियहियवं तु ॥ ६ ॥ समणपरियह दुविहो आयरिओ बीयओ उवज्झाओ। संजइपरियो पुण तिविहो तु पत्रत्तणी तइया ॥ ७॥ समणिपरियट्टि दुविहा विहिपरियट्टी य अविहिए चेव । जनिणिय परिपट्टिया नियमेण कारणेणिमिणा ॥ ८ ॥ ताओ बहूवसग्गा तेणादिदुसंचराणि खेत्ताणि कालवण य संपत्ति जायति लोगस्स पंवत्त ॥ ९॥ तम्हा सङ्घपयत्तेण रक्खियथा उ ताओ नियमेणं । गवि सतिरा मोत्ता मा होजा तासि उ विणासो ॥ २९० ॥ संविग्गगीयपरिणओ तासिं परियओ अणुष्णाओ । होइ पुण अणरिहो खलु परियही ऊ इमो तासि ॥ १ ॥ अबहुमुए अगीयत्थे तरुणे मंदधम्मिए। कंदप्पी सीलगडाए, अविही दाणे य गहणे य॥१३९॥२॥ बहुमुयगीय जहन्नो आवासगमादि जाव आयारों ने अग्गीतबहुस्सुत तिन्ह समाणारतो तरुणो ॥ ३ ॥ जो उज्जोगं ण कुणति चरणे सो होइ मंदधम्मो उ। अणिहुयउलाबादी सरीरकुवि (रुङ ) ओ य कंदापी ॥ ४ ॥ निकारणे अण्डा जनिवसही उवच्चए जो उ। निकारणमविहीए जो देती गिव्हती बावि ॥ ५ ॥ एयारिलो उ अजाणं, परियही उण कप्पति कारणेहिं इमेहिं तु, गम्मइ अज्जाणुवस्सयं ॥ ६ ॥ उवस्सए य गेलण्णे उवहीं संघ पाहुणे । सेहवण उसे, अण्णा मंडणे गणे ॥ ७ ॥ अगप्पज्झ अगणी आऊ, बी (ती) यारे पुत्तसंगमे संलेहगे वोसिरणे, बोसट्टाणे ठिते तहिं ॥ ८॥ अरिहो अणरिहो यात्रि, परियही एवमाहिओ अरुणा पचित्तिणी तासिं, अजोगा उ इमा भवे ॥ ९ ॥ वासग्गामविहारेसु. वीयारादेक दीहिया अजुनोवहि अणाउत्ता, अपच्चदाय काहिता ॥ १४०॥२१००॥ पडिणीयथमुहसीला, गिहिवेयावच्चकारिता संसत्तठवियभत्ता य. बाउसी अप्पणहिता ॥ १॥ अणायतणगबेसा ये छष्णं गाणं पल्लोइया जा यऽण्ण एवमादी य. अज्जा सा णाणुक हिता ॥ १४१ ॥२॥ आहारे उबहिंमि य गतएँ सयणासणे सरीरे य भासाएं चा उसाणं जा जहि आरोवणा भणिया ॥ ३॥ वासावासं वसति तु एक्किया तह यामण्गामं । दुइज्जती वियारं विहार भिक्लादि एका य ॥ ४ ॥ दीहं करेइ गोयर दोचमुकस्सगाणि मग्गंती चित्तलियादिनियंत्रण अजुत्तउवही भवति एसा ॥ ५ ॥ इरियभासेसणादाणनिक्खेवे निसिरणे अणाउत्ता । अणपृच्छाए गच्छद्र जन्थिच्छाए य सदा ॥ ६ ॥ गेहे गिहस्थाण गंतॄण कहा कहेति काहीया तरुणादी अहिवडते अणुजाणति जा उसा पडिणी ॥ ७ ॥ थदा जच्चाइमयाइएहिं सुहसील दुहसीलति । सिक्षणगंधणमादिसु वेयावचं गिहीण करें ॥ ८ ॥ उक्करसवत्थपत्तादिएहि समभाव संसना । अवावि मित्थेसुं पाउरणादीसु अविभत्ती ॥ ९॥ भतं वा पाणं वा निक्खिवती बाउसा उ जा धुवति। अभिक्खं तु हत्थपादे क+खतरगुज्झमादीणि ॥ २११० ॥ सण्णिहिसनिचए चैत्र कृणइ जा अप्पणी अणट्टाए । अयं वाचि अण्डा संचयं जा य करणं तु ॥ १ ॥ जंतादिसाल तह वट्टको एमेव सोल ठाणाणि जा गच्छड एते अणायतणगचेसिता सा उ ॥ २ ॥ गुज्झंगाणि पलोए अप्पणी अवाचि जा उ पुरिसाणं । उक्कांसगमाहारं एसनि उहि च उक्कोसं ॥ ३ ॥ गच्छति सविलासगती सयणिज्ज सतूलियं सविच्वोर्य उच्चड सरीरं सिणाणमादी व जा कुणति ॥ ४ ॥ भमुहुक्खेवादीहिं सविकारं भासती य सविलासं । एमादि अरिहा तू पच्छन्तं वादि सट्टा ॥ ५ ॥ तन्थ पुर्ण नाव इणमो पच्छितं भण्णई समासेणं दंतगधरेंवगाणं अगीतमादीण दोपि ॥ ६ ॥ अबहुसुते अगीयत्थे णिसिरेज गणं तु अहब धारेजा । तद्देवसितं तस्स उ मासा चन्नारि भारियया ॥ ७ ॥ सत्तरनं तयो हाइ, ततो छेदी पधावती छेदेण छिन्नपरिनाए ततो मूलं ततो दुगं ॥ ८॥ एकैकं सत्त दिने दाउ तयेऽतिच्छिए ततो छेदो जत्तो तो आरद्धो पणगादिकडो व जहि केइ ॥९॥ तुडाचे य ठाणा तवलेदाणं वर्ह(वं)ति दोपि। पणगादिपणगवढी दोहवि छम्मास निट्टणा ॥ २१२० ॥ किं कारणं न कप्पति गणहरो" अबस्ता अगीयत्थो । भण्णइ सो पच्छित्तं जयणं च ण जाणए काउं ॥ १ ॥ दितो णट्टेणं अजाणमाणेण जाणएणं च । कायवो इत्थ इणमो परूवणा तस्सिमा होइ ॥ २ ॥ गेयम्मि अहिणवम्मि य सरसंचाराण कुहरणासुं च कुणइ विवचासं खलु जह णट्टमसिक्खितो णट्टो ॥ ३ ॥ तह कुणति विवचासं अग्गीनो सबकरणजोगेसु । सुत्तत्थमजाणंतो नाणे नह दंसण चरिते ॥ ४॥ जह नद्गीयवाइयवजाणओ जुजए समं तालं । सुत्तं तु विजाणतो नह कुणती सम्मकरणं तु ॥ ५ ॥ किं पुण सो नवि जाणइ जं कुणती सबहिं विवचासं ? । भण्णइ सुणसू इणमो जं कुणती सो विवश्वासं ॥ ६ ॥ ठाणणितीय तुटण पेणपष्फोडणे नहा सयणे । भासा मुहग्गहणे जे अण्णे परूचिया ठाणा ॥ ७॥ उवदिसिउं णचि जाणइ सामायारिं तु ठाणमादीयं । अजावि जा अगीता ण जाणए साचि तह चैव ॥ ८॥ अप्पच्छंदिओ लुद्धों, परिभूओ य पत्थिओ । हलोहमोहसण्णो अज्ञावग्गो दुरणको ॥ १४२ ॥ ९॥ पाएणमप्पलंदा महस्वदाणेण लोभित अकिच्चं । कुति छगलियाविव परिभूताओ य सङ्घस्स ॥ २१३० ॥ मंसादिपेसियाविव संजतिवग्गों हु पत्थणिजो उ भिजाइदिट्टी बहु बहुमोहसणाओ ॥ १ ॥ मज्जायविष्पहूणे मजायाए य संपउनम्मि पडिसेहोऽणुष्णा ऊ मगधर विलोमता चउरो ॥ २ ॥ जम्हा उ दुपरियटो अजाबग्गी उ तेण पडिसेहो। परियटणे अजाणं मजायाविष्पहृणस्स ॥ ३॥ मज्जायसंपत्ती अज्जापरियहओ अणुष्णाओ। परियदृए अजोगे उबट्टिए चउगुरु सोही ॥ ४ ॥ मग्गधरो आयरिओ सो पुण सिढिलेइ जो उ मज्जायं । तस्सुवदे कीरइ मज्जायाए दढो होइ ॥ ५ ॥ उवदेससार पडिसारणा य तेण पर निष्णि मास लहू छंदे अट्टमा अप्पच्छेदं विवजए ॥ ६ ॥ दिता य इमेसि पढमा मासलहूगाव दिजति । गणपट्टण अवराहे सूरि कमेणं ॥ ७ ॥ आयरणे उवदेसो अकम्पपडिसेवणे य उवदेसो विकहादिपमाएस य मा वह एस उवदेसो ॥ ८ ॥ णिहाइपमादाइसु सई तु खलियरस सारणा होइ। गण कहिय ते पमाया मा सीदसु नेसु जाणतो ॥ ९ ॥ तदिवस बीए या सीदंतो बुच्चए पुणो तइयं । अण्णं वेल ण सज्क्षं भिक्खण्णादीहिं संसनं ॥ २१४०॥ फुडरले अचियन्तं गोणी उदितो व मा हु पेडिज सज्झ अओ ण भन्नइ पसन्नचित्ते ननो सारे ॥ १ ॥ भणति दिष्णु देसी तुच्भं वितियं च सारितऽम्हेहिं । एगवराहो ते सढो त्रितियं पुण ते गवि सहामो ॥ २ ॥ ताहे पुणोऽवराहे कयम्मि पच्छित्त देति मासलई भण्णइ य सुणेहेत्थं दितो तेणएणं तु ॥ ३ ॥ गोणादिहरणगहिओ मुकी य पुणो सोढ संगहिओ । उडोहडछगणहा न मुञ्चती जायमाणोऽवि ॥ ४ ॥ पुणरवि कताबराहे मासलहं चेव देति से सोही । भन्नति घट्टितं च(त)कथं दुइ तह तुमपि ॥ ५ ॥ पुणरवि अवरद्धम्मि मासो चिय तेसि दिजते दंडा । पाणो सो संपत्तो अइरुचियकुंकुमं तयं ॥ ६ ॥ तेण पर भिवणं कुलगणधेरादि तस्स कुवंति । अयमण्णोऽवी नियमो भण्णइ तू जस्सिमे दोसा || || अस्पण्लंदियई, गिलाणं दुपडिजग्गगं वामं गतिं गया. संवासोऽविण कम्पति ॥ १४३॥ ८॥ उम्मदेसणाए संतस्सय छायणाएँ मग्गस्स मग्गधरडवालंभे मासा चत्तारि भारियया ॥ ९॥ आयरियाणं छंदे ण वट्टती अप्पनंदिओ सो उ आहारादुकोस ल अत्तट्टि लुडो उ ॥ २१५० ॥ जो उ गिलाणी अपत्यं मग्गइ सो होइ (२७६) ११०४ पञ्चकल्पभाष्यं
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मुनि दीपरत्नसागर
कलय