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सुन्नग्गामे दबग्गहणं जयणाए गीयत्था ॥ ३ ॥ तुवरे फले य पत्ते गोमहिसे सूयरा य हत्थी य आतवमणायवे चिय जयणाए जाणगे गहणं ॥ ४ ॥ पिप्पलगसूतियारिगणक्खचणतलियपुडगबज्झे य कतियकत्तरिसिक्कग संवग लाउए चैव ॥ ५ ॥ वाइयपेत्तियसिंभियगुलिगाणं अगदसत्यकोसे य। जं चऽण्णुवगहकरगं गिन्हह अद्धाणकप्पम्मि ॥ ६ ॥ सीहाणुगा य पुरतो वसभाणू मग्गतो समणिति पंथे तंपिय जंता घरैति जा अद्धपजनी ॥ ७ ॥ इंडियमि चद्दिट्टी समुदाणनिवारणं च निश्सिए। सारुचिसन्निभद्दग वसभा पुण दवलिंगेणं ॥ ८॥ उवकरणचरित्ताणं विलोवणा सरीरलोयऽणागाडे । धम्मकहनिमित्तेणं पुलागकण आगाढे ॥ ९ ॥ असिवादिकारणेहिं अद्वाणपवणं अणुष्णातं । उवकरणपुङ्गपडिलेहिएण सत्थेण गंतवं ॥ २०३ ॥ वचंताणं असहू कोई ण तरिज गंतु पादेहिं। अपरक्कमो हु ताहे तवियं तु इमे विमग्गेजा ॥१॥ एगपुरे य दुखरे दुपए अणुबंधे तह य अणुरंगा। अह भहएऽभिजायनि असती अणुसट्टिमादीहिं ॥ १३४॥ २ ॥ एगखुरा आसाती दुखुरा उट्टादि दुपय जड्डादी। अणुबंधी सकडादी अणुरंग पिसी उ (सिविय) बोद्धव्या ॥ ३ ॥ एतेसिं पुषुवट्ट खुरादि जाइत सिद्धपुत्तादी असतीय खुडतो वा लिंगविवेगेण कइति तु ॥ ४ ॥ आवासियम्मि सत्ये तस्सेव वर्गपि अपिणंति पुणो अह भणइ गता संता अप्पेजाहत्ति मम एयं ॥ ५ ॥ ताहे पच्छकडादी चारेती तेसि असइ उ खुड्डो लिंगविवेगं काउं चारेति जा गतद्वाणं ॥ ६ ॥ एवं दुम्बुरादी मुवि जयणा जा जत्थ सा उ कायया । सुत्तत्थजाणएणं अप्पात्रहुयं तु णायां ॥ ७ ॥ एतेसामन्नतरं अणगाढालंचणे णिसेविजा। तट्ठाणगावराहे संवट्टियमोऽवराहाणं ॥ ८॥ संवट्टियात्रराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा। आयारपकप्पे जं पमाण निम्माण चरिमम्मि ॥ ९ ॥ अदाणकप्पो एसो अहुणा अणुवासणाए कप्पं तु । वोच्छामि गुरुवएसा अणुग्गट्टा सुविहियाणं ॥ २०४६॥ अणुवासम्म उ कप्पे पण्णवग पडुच्च बहुविहा अत्था। अणुवासियाएं पगयं सुद्धा य नहा असुद्धा य ॥ १ ॥ अणुवासत्यो बहुहा उडुवासे वसण अहह्व असिवादी वुढादीवासो वा अहवा अणुवसणमणुवासो ॥ २ ॥ वसिउं पुणोवि वसती अणुवासिग वसहि सामइगी सभा। तीयहिगारो एत्थं सा हुजा सुद्धऽसुद्धा वा ॥ ३ ॥ पट्टीवंसादीहि वंसगकडणादिएहि तह चेव होइ असुद्धा वसही मूलगुणे उत्तरगुणे य ॥ ४ ॥ कालदुयातिरितं अविसुद्धासुं च तासु वसमाणो । पावति पायच्छितं मोत्तूर्ण कारणमिमेहिं ॥ ५ ॥ असिवे ओमोयरिए रायददुट्टे ए व आगा। गेलले उत्तिमट्टे चरित्त सज्जातिते असती ॥ ६ ॥ चाहिं सवत्थऽसिवं तत्थ सिवं तेण कालदुयगम्मि। पुण्णेवि ण णिमाच्छे अणु पच्छाभाव अणुवासी ॥ ७॥ आलंबणे विसुद्धे सुत्तदुयं परिहरे पयत्तेणं । आसज्ज उ परिभोगं भयणा पडिसेवसंकमणे ॥ १३५॥८॥ असिवादीहि बसंते सुद्धाए बसहीऍ बसे साहू सुद्धासतीए जतती विसोहिकोडीऍ पुर्व तु ॥ ९ ॥ भयणत्तिय जं भणितं पुत्रऽप्पतराऽत्थ जे उ जे दोसा । ते ते पृवं सेवे संकमणेऽवी इमा भयणा ॥। २०५० ॥ अप्पाबहुं तुलेतुं जत्थ गुणा तू भविज्ज बहुतरगा गच्छे गच्छंताण व तं चेव तहिं करेजा उ ॥ १ ॥ असिवादिणिट्टिए पुण अव ( पुत्र ) क्वेवेण संकमे तत्तो। सत्थं तु पडिच्छंतो जइ अच्छे तत्थ मुद्धो उ ॥ २ ॥
रविणं अणुवासिय जे उ अणुवसे कप्पं कालद्द्यावराहे संघट्टयमोक्राहाणं ॥ ३ ॥ संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेब मूलं वा आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥ ४ ॥ अणुवासियाए कप्पो एमेसो वणिओ समासेणं । ठिकप्पमो उ तत्तो वोच्च्छामि गुरूवएसेणं ॥ ५ ॥ गच्छाणुकंपयाए सुत्तत्थविसारए य आयरिए आगाढे पढमसंजत ओवग्गहिए पकप्पदुए ॥ ६ ॥ गच्छो जदि हीरेजा आयरियं वावि वायते कोई एरिसए आगाढे जस्स उ जा होइ लदी उ ॥ ७ ॥ सो तं न पमाएई पढमनियंठो पुलागलडीओ। गच्छोवग्गहहे कारण पकप्पद्विअऽणुण्णा ॥ ८ ॥ दुपएत्ति साहुसाडुणि तदट्टहेतुं तु एव मूलगुणे। भणिया सेवा एसा सीसो पुच्छइ उ अह इणमो ॥ ९५ ॥ जह कारणम्मि भणिया मूलगुणेसुं तु एव पडिसेवा। तह होज कारणम्मी पडिसेवा उत्तरगुणेचि १ ॥ २०६० ॥ गुरुयतरएस एवं मूलगुणेसुं तु जइ भवेऽणुण्णा । उत्तरगुणेसु तत्तो लहुयतरेसुं ततोऽणुष्णा ॥ १ ॥ ठितकप्पेसो भणिओ अडणा वोच्छामि अट्टितं कप्पं संखेवपिंडितत्थं जह भणियमणंतनाणीहिं ॥ २ ॥ वत्थे पादग्गणे उक्कोसजहण्णगम्मि अठिओ उ ठितमट्टिते विसेसो परुवितो संपकप्पम्मि ॥ ३ ॥ वत्थाणि य पायाणि य मज्झिमतित्थंकराण कप्प म्मि । बहुमोल्लाणिवि गिष्हइ अद्वियकप्पो समक्खाओ ॥ ४ ॥ मोगरुयपि वत्थं अट्टारसपणितरूवग जहणणं । एत्तो य सयसहस्सं उक्कसमोहं तु णायनं ॥ ५ ॥ ऊणगअट्ठारसगं वत्थं पुण साहूणो अणुष्णातं । एत्तो वइरित्तं पुण णाणुष्णातं भवे वत्थं ॥ ल०१४२ ॥ ६ ॥ जिणराणं कप्पं अहुणा बोच्छामि आणुपुडीए। जं जन्थ जहा निवयति समासतो तं तहा सुणसु ॥ ७ ॥ जिणथेराणं कप्पो जम्हा उ ठितम्मि अट्टिए चेव । ठितअट्टितकप्पाणं जम्हा अंतरगता एते ॥ ८॥ जो उ विसेसो एत्यं तं तु समासेण णवरि वक्खामि। जिणथेराणं कप्पे जिणकप्पे ता इमं वोच्छं ॥९॥ दुयसत्तए तियचउक्कगस्स अद्धद्धएगछेदेणं। अवि होऊन कालकरणं पुणरावत्ती णविय तेसिं ॥ १३६। २०७० ॥ पिंडेसणा उ सन उ हवंति पाणेसणा दुसत्तेए चड सेजवत्थपाए तिष्णेते चउकगा हाँति ॥ १ ॥ दोष्णादिमा उ सत्तसु अवणेउं सेस उवरिमा पंच अद्धद्ध हाँति छेदे दो दो अवणे चउक्केसु ॥ २ ॥ गेव्हंति उवरिमासु तत्थ अवि धेनु अण्णतरियाए । हेडला गेहति जवि करे कालकिरियं तु ॥ ३ ॥ अणभिग्गहेण णवि ता गेण्हेति विही उ एस जिणकप्पे अहुणा उ थेरकप्पे वोच्छामि विहिं समासेणं ॥ ४ ॥ गहणे चउब्विहम्मि बितिए गहणं तु परमजनेणं । जं पाणवीयरहितं हविज तरमाणए सोही ॥ . . १३७ ॥ ५ ॥ गहणं चउब्जिहंती वत्थं पायं च सेज्ज आहारो। एतेसिं असतीए गहणं पढमं तु बीयस्स ॥ ६ ॥ त्रितियं पातं भन्नति किं कारण तस्स गहण पढमं तु? । तेण विण बोडिपि गिहिभायण भोगो हाणी य ॥ ७॥ अहवा चउविहं तू असणादी तत्थ होज गहणं तु तत्थ उ चितियं पाणे तस्स उ गहणं पढमताए । ल० १४३ ॥ ८ ॥ असतीय फामुयस्ता तससहिए कंदवीयसहिए वा किं कारण? तेण विणा आसुं पाणक्खओ होजा ॥ ल० १४४ ॥ ९ ॥ तरमाणों गेण्हती सुद्धं, अतरो पेले तह संथ संथरंतो उ गेव्हंती, पावति सद्वाणपच्छितं ॥ २०८० ॥ सत्तदुए दसए वा अणेगठाणेण वा भवे गहणं एतो तिगातिरितं गच्छे गहणं तु भइयवं ॥ १ ॥ पिंडेसण पाणेसण सत्तदुगे तं तु होइ णायां दसगं एसणदोसा गट्ठा (हा ) णुग्गमे दोसा ॥ २ ॥ एतो तिगातिरितं उग्गम उप्पायणेसणाऽसुखं भजियंति कप्पतित्ती तस्सऽसतीए असुपि ॥ ३ ॥ एसो उ थेरकप्पो वोच्छं अणुपालणाए कप्पं तु । अणुपालेति सुविहिया गच्छं विहिणा उ जेणं तु ॥ ४ ॥ परियही परिवहंतओ य दुविहो पुणोवि एकेको उवसग्गखे तकालायसेण अजाण परिवही ॥ १३८॥ ५ ॥ परियहियश्यं खलु परियही चेव -११०३ पञ्चकल्पभाप्यं
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मुनि दीपरत्नसागर