Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चैत्यवन्दनानि
भाजं भाजं यदीयं, कम जलजयुगं, मुक्तिमन्तः क्रियन्तः, __ श्रद्धावन्तो महान्तः शिवसुखमतुलं, लब्धवन्तो जगत्याम् । यातारो यान्ति चाने, तन जन कृपया, शाश्वतं धर्म मेनम,
प्रायुश्वके दयालुः, सहि भवतु सदा, शर्मकृन्नाभिसूनुः ॥२॥ यत्सेवा भक्तिभाजां, जनति जुनिजुषां, कल्पवल्लीव नित्यम्,
मुक्ति मुक्ति प्रदत्ते, श्रियमपिपरमां, निश्चलातन्तनीति । मुक्ताहाराऽवभासं, त्रिभुवनमहितं यद्यशो वर्वृधीति, नाभेयं तं सुवन्दे, शिवपद जनक, श्री यतीन्द्रोऽति भक्त्या ॥३॥
[ अनुष्टुप वृत्तम् ] अनन्त सिद्ध सौधाय, परमाणन्द कारिणे ।
कल्याण वृक्ष कन्दाय, दुर्गति क्लेश दारिणे ॥१॥ पापानामपि शन्दाय, संसारावृर्ति-हराय च ।
नाभि नन्दन दीप्ताय, तस्मै तीर्थाय मे नमः ।।२।। कर्म शत्रु विजेतारम्, देवासुरैः सुसेवितम् ।
शत्रुञ्जयं महातीर्थ, प्रध्यायामि सुभक्तितः ॥३॥
कञ्चनशैल शिखा मुकुटं तं, नाभि तनूज मनुत्तम रूपम् । आदि जिनेशमहं सुरपूज्यम्, स्तौमि मुदा गुणरत्नवचोभिः ।।१।। यत्रपदार्पणतः शुभभाबो, ऽनन्तगुणः समुदेतिजनस्य । मुक्तिमनन्त जनाश्च यतोऽगुः, तं गिरिराज महं प्रणमामि ॥२॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 149