Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चैत्यवन्दनानि प्रवर ज्ञानरमोदय धारकम्, जगद्नी हित दुःखविदारकम् । www.kobatirth.org शुचि गुणैर्जगदुज्ज्वल कारकम्, हृदयमाथक नत सुरासुर राज समाजकम्, वितथ कार्य विकाश विनाशकम् ॥२॥ सकल सद्गत भाव विनाशकम् । नमत मन्मथमाथकम्, नाथमनाथ ४ सनाथकम् ॥३॥ [ वसन्ततिलका वृत्तम् ] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री नाभिराज कुलनन्दन कल्पवृक्षः, सम्प्राप्त सर्व सुर पूज्य तमत्व पक्षः । उल्लासयन् रविरिवाङ्गि सराज खण्डः, दिश्यात्सशर्म वृषभो भवतामखण्डम् ॥ १॥ त्रैलोक्यलोक चल नेत्र चकोर चन्द्रम्, वैराग्य रङ्ग रस भङ्ग भयास्ततन्द्रम् | संसार सिन्धु तरणाय सुयानपात्रम्, देवं नमामि वृषभं प्रपवित्र गात्रम् ॥२॥ येन प्रदर्शित मशेष कला कलापम्, दुर्बोध जात दुरितौघ कृताऽपलापम् । स्मृत्वाऽधुनाऽपि जनता निज कार्य जन्म, दुर्द्धर्षिणीति हरणोस्तु स नाभिजन्मा || ३ | For Private And Personal Use Only

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