Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनानि १ ॥ तनूमतां योऽघाविधूसरस्वती तनत्तनूरत्नचकासरस्वती । न तत्र कर्तयपि मत्सरस्वतीर्थिकेरमीशस्य न मा सरस्वतीः ॥११॥ तनोति यः कश्चिदपासरस्वतीपूर्वस्थवर्णाननुतः सरस्वतीन् । त्वच्छासने सस्ववियुक्सरस्वतीर्वधू भुनक्तयेष सुहा सरस्वती ॥१२॥ यशस्ततिस्ते जगतीं सरस्वती पुनाति नेतः सुखदा सरस्वती । विधुं धरां चाभिसु वा सरस्वती कर्तुं च याकृतप्रतिमा सरस्वतीः ॥१३॥ त्वं तीर्थप व्यत्ययतः सरस्वती बपुस्मृता सैरनिश सरस्वती । ततोऽपि च त्वं वरदा सरस्वती बलाकभूमौ समवास सरस्वतीः ॥१४॥ योऽनङ्गसौख्येन परासरस्वतीनृपत्ययुग रसपदमुक्सरस्वतीम् । बध्नाति किं तर्हि परां सरस्वती ह्रियाऽन्ययिते विरमेत्सरस्वतीः ॥१५॥ कर्मापराह्वाधरका सरस्वती रणक्रियापूर्वतवा सरस्वती । तया बिना त्वां भुवि चेत्सरस्वती लिकादियोनौ बहुशो सरस्वतीः ।।१६।। स एव शस्यः परिवत्सरस्वती तपस्तपोऽन्यैर्यममत्सरस्वती । भव्याघहारेऽथ वधूसरस्वती नकादिपूज्य श्रितकेसरस्वतीः ॥१७॥ क्रष्टुं नरैः किं हरिके सरस्वतीप्सते यथांसे हयके सरस्वती। हन्तुं परेषामिव ते सरस्वती शाच्यस्य भान्यैर्न तथा सरस्वती ॥१८॥ सरस्वतीरव्रतशब्दपूर्वसरस्वतो मूलविधं विमुच्य । सरस्वतीक्ष्णं क्रमयामलं ते सरस्वती तं कलयन् श्रियाभूः ॥१९॥ सरस्वतीदानवती द्विषत्कसरस्वतीवं त्वद्वते सृजेद्यः । सरस्वती सङ्गमनं जिनाने सरस्वती हेष न केवलाप्त्या ।।२०।। सरस्वतीयप्रतिलोगसंवत सरस्वतोकारितविश्वलोक । सरस्वती नाथ विहाय नन्दी सरस्वतीभ्यत्तय पूजकोऽङ्गी ॥२१॥ For Private And Personal Use Only

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