Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ युगादिवन्दना mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ऋषभजिनेन्द्रस्तवनम् ( उपेन्द्रवज्रावृत्तम् ) सदा चिदानन्दनिदानमद्वयं जगत्त्रयीत्राणधुरीणपवयम् । सरस्वतीतुष्टिकृते सरस्वतीपदार्थ साथैः प्रथम जिन स्तुवे ॥१॥ सरस्वतीलब्धवरावगाह्ये सरस्वतीवेश! तव स्तवे स्वाम् । सरस्वतीमेष परस्तवैकसरस्वतीर्णामपि तारयाभि ॥२॥ सरस्वतीमेकलेकन्यकास्वः सरस्वतीसिन्धुमुखेषु मज्जन् । सरस्वतीष्वर्थयते न शुद्धिं सरस्वतीय स्तवने तवास्तान् ॥३॥ सरस्वतीमेत्य मनोरतीरं सरस्वतीत्यत्रिदशैः प्रभो ! यत् । सरस्वतीतेषु दिनेषु दोग्धृसरस्वतीभिः स्नपितोऽसिवाभिः ।।४।। सरस्वतीनाथनिरस्य पाद्मसरस्वतीमम्बुजवासलीलाम् । सरस्वतीरुग्भिरुपैत् पदे ते सरस्वतीतातिरदोऽर्चकायत् ॥५॥ सरस्वतीपतितरपि प्रदत्तसरस्वतीदुग्धसुधामुधात्वैः । सरस्वती सद्धवलैः कृताच सरस्वतीर्थोदभवगायतित्वाम् ॥६।। सरस्वती पत्रभरेर्हरं मत्सरस्वतीये परिपूज्य पूर्वम् । सरस्वती त्वत्कुमुदोपमेवा सरस्वतीवापुषि वादहेतोः ॥७॥ सरस्वती पूजयते मयि त्वं सरस्वतीत्थं तव कर्तृ ताढये । सरस्वतीर्थ करकर्मभाव सरस्वतीव प्रकृते तथाऽस्या ॥८॥ सरस्वती यन्नयनेन वीक्ष्य सरस्वतोस्त्वय्यापिदुष्टकलुप्ताः । सरस्वती न क्षुधितस्य सरस्वतीतिश्च पिपासितस्य ॥९॥ सर्वत्र सर्वज्ञपुरः सरस्वतीस्तवाङ्गभाग्मध्यपदे सरस्वतीम् । भजेत नक्त दिनके सरस्वतीतयन्मुखात् श्रीधृतिभासरस्वतीम् ।।१०॥ १. मेखलकन्यका-नर्मदा नदी For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149