Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 131
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवना नि १२३ त्रैलोक्ये लोकालोकप्रकटसरसतापुष्टिसृष्टिप्रकृष्टा ___ दिव्यश्रीः सत्यजात्यामृतरसलहरी पोपतापोपशान्तौ । मुक्तिस्त्रीसन्धिदूतीहितनिखिलसुखाकर्षणस्वर्गिरत्नम् देयादानन्दसम्पत्पदमुदिततमं सा सपर्या जिनानाम् ।।१७।। यस्तनोत्युदितसम्पदे मुदा सर्वसार्वचरणार्चमम्बुजैः । तन्तनीति सततं ततां श्रियम् , स्वात्मनीह स नरो भवे भवे ।।१८।। यः श्रीसार्वसपर्ययेति तु तयाऽऽत्मानं पुनात्यार्हता-. नन्ताहेहितसम्पदर्पणतया पूर्वारत्नाभया । सेवन्ते तमुदारहर्षविनयश्रीसूरितं सर्वदा नन्दस्पन्दमहोदयाः समुदिताः श्रीधर्महंसश्रियः ।।१९।। ॥ इति श्रींतीर्थराजाधिराजपूजातिशयस्तोत्रम् ॥ For Private And Personal Use Only

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