Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्तवनानि www.kobatirth.org ४ [ अनुष्टुपवृत्तम् ] " , आदिदेवेषु या भक्ति - रादिदेवेषु या नतिः । आदिदेवेषु या पूजा, सा सा मुक्ति प्रदायिका ||१|| आदिदेवेषु यदुद्ध्यानं, आदिदेवस्य पूजनम् । आदिदेवस्य यन् मन्त्रं तत्तन्मुक्तिप्रदायकम् ||२|| आदिदेवः सदा ध्येय, आदिदेवस्य निश्चयः । आदिदेवो हि भगवान् स स मुक्तिप्रदायकः ||३|| आदिदेवो महान्देवो, जैनर्षीणां परागतिः । आदिदेवः सदा नित्यो, भवेत् मुक्तिफलप्रदः || ४ || आदिदेवस्तु को देवो, जैनर्षे ! संशयो मम । भक्तत्वं विद्धि वृषभ - देवं जन्तोः परं पदम् ||५|| पठन्ति य इदं स्तोत्र - मादिदेवादिनामकम् । आदिदेव प्रसादेन, सद्गतिं यान्ति मानवाः || ६ || जीवन्मुक्तस्य जैन - रादि-देव गतिर्मम | जीवात्मनां मुक्तिदाता सर्वेषा - मीप्सितप्रदः ॥७॥ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृपया प्रकटीकृताऽखिल - व्यवहारोत्तमधर्मसत्पथम् । प्रथमं जिननायकं मुदा, विनयेन स्तुतिकर्मतां नये ॥१॥ जटाभ्यां श्रीमेरोः श्रुतत्वां मे श्रुती धन्ये, दृष्टत्वां चक्षुषी स्तुवे । कराभ्यां चचितत्वाभ्यां कृतार्थोऽस्मि जिनेश्वर ! ॥२॥ अभितः कृपाणधारा - प्रतिफलनवरात्रिरूपितत्वाभ्याम् । त्वद् भक्या धरणेन्द्रो नमिविनमिभ्याम् अदाद् बिद्याः ||३|| तवांसयोः । शोभितस्वर्णवर्णत्वाभ्यां पार्श्वयोर्नील वनाली भ्यामिवाऽभवत् ||४|| For Private And Personal Use Only ४१

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