Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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स्तवनावि
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१
श्रीमरुदेवा
तनुजन्मानं
दारैः : सह हरिभिः कृतसेवं,
कारणगन्धमृतेऽपि जनानां, तारस्वररसजितपरपुष्टं,
पारङ्गत मिद्द जन्मपयोघे, धीरसमूहैः संस्तुतचरणं, कीर यश यशसा जित - चन्द्र, वासवहृदय कजा हिमपाद,
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मानवरत्नमुदारं रे । सेवकजनसुखाकारं रे ॥१॥ नानासुखदातारं रे ।
पुष्टशमाकूपारं रे ॥२॥
र्योधै-र्हितगुणधीरं रे । चरणमहीरुहकीरं रे ॥३॥ चन्द्राऽमलगुण- वासं रे । पादपमिवसच्छायं रे ||४||
सच्छांयाकब्बरपुर धराणी - धरणीघव मिव कामं रे । नांभितनुजमुद्दामं रे ||५||
कामं नमत सुलक्षणनाभि,
( शार्दूलविक्रीडितम् )
इत्थं तीर्थपतिः स्तुतः शतमखश्रेणीश्रितः श्रीनदी - जीमूतोद्भुभाग्यसेवधि - रधि क्षिप्तः समग्रैर्गुणैः । श्रीमन्नाभिनरेन्द्र वंशकमला- केतु- र्भवाम्भोनिधौसेतुः श्रीवृषभो ददातु विनयं, स्वीयं सदा वाञ्छितम् ॥६॥
आदिजिनं वन्दे गुणसदनं, : सदनन्ताऽमलबोधं रे । बोधकतागुणविस्तृतकीर्ति, कीर्तितपथमविरोधं रे, आदि . ॥१॥ रोधरहितविस्फुरदुपयोगं, योगं दधतमभंगं रे । भङ्गनयव्रजपेशलवाचं, वावंयमसुखसङ्ग रे, आदि. ॥२॥ सङ्गतपदशुचिवचनतरङ्ग े, रङ्ग जगति ददानं रे । दानसुरद्रुममज्जुलहृदयं, हृदयङ्गमगुणभानं रे, आदि. ||३||
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