Book Title: Yugadi Vandana
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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[ वसन्ततिलकावृत्तम् ]
श्रीसूरिहर्षविनयप्रभुता प्रतिष्ठा,
श्रीसूरिहर्ष विनयस्मरणीयरूपः । श्रीसूरिहर्षविनयऽध्वनि रत्नराशौ, श्रीसूरिहर्षविनयः प्र पूज्याः सहर्षविनयस्तुतपादपद्माः,
तीर्थस्य हर्षविनयश्रियम् आदधानाः । सर्वत्र हर्षविनयस्वनसन्निधाना,
यच्छन्तु हर्षविनयप्रसृतं जिनास्ते ||२॥ सूरीशहर्षविनय द्विपदर्पयायी,
सूरीशहर्षविनय स्थितिकेसरश्रीः । सूरीशहर्षविनयप्रियकक्षशाली,
श्रीः आगमो हरिः इवोत्तम धर्महंसः ||३|| श्रीधर्महंसललने नलिनीसधर्म
श्रीधर्महंसनमना कमला श्रुतेशा ।
पद्मा श्रियेऽस्तु भविनां गुरुधर्मह स,
: प्रथमः श्रियेऽर्हन् ॥ १ ॥
श्रीधर्महंस सुमहा विजया जयाम्बा ||४||
* पंडित श्रीधर्महंसप्रणीता.
* श्रीबप्पभट्टिसूरिप्रणीता
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३
[ वसन्ततिलकावृत्तम् ]
नम्रन्द्रमौलिगलितोत्तमपारिजात
मालातिक्रम ! भवन्तम् अपारिजात ! ! नाभेय ! नौमि भुवनत्रिकपापवर्ग
दायिन् ! जिनास्तमद नादिकपापवर्ग ! ॥१॥
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युगादिवा

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