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चैत्यवन्दनानि
प्रवर
ज्ञानरमोदय
धारकम्, जगद्नी हित दुःखविदारकम् ।
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शुचि गुणैर्जगदुज्ज्वल कारकम्,
हृदयमाथक
नत सुरासुर राज समाजकम्,
वितथ कार्य विकाश विनाशकम् ॥२॥
सकल सद्गत भाव विनाशकम् ।
नमत
मन्मथमाथकम्,
नाथमनाथ
४
सनाथकम् ॥३॥
[ वसन्ततिलका वृत्तम् ]
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श्री नाभिराज कुलनन्दन कल्पवृक्षः,
सम्प्राप्त सर्व सुर पूज्य तमत्व पक्षः । उल्लासयन् रविरिवाङ्गि सराज खण्डः,
दिश्यात्सशर्म वृषभो भवतामखण्डम् ॥ १॥
त्रैलोक्यलोक चल नेत्र चकोर चन्द्रम्,
वैराग्य रङ्ग रस भङ्ग भयास्ततन्द्रम् | संसार सिन्धु तरणाय सुयानपात्रम्,
देवं नमामि वृषभं प्रपवित्र गात्रम् ॥२॥
येन प्रदर्शित मशेष कला कलापम्,
दुर्बोध जात दुरितौघ कृताऽपलापम् ।
स्मृत्वाऽधुनाऽपि जनता निज कार्य जन्म,
दुर्द्धर्षिणीति हरणोस्तु स नाभिजन्मा || ३ |
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