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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युगादिवन्दना [ पत्रचामर वृत्तम् ] पुरोग कान्ति केतनं, सुशान्ति सद्वने घनम्, सुपुण्य शाखि जीवनं, समस्त जीव पावनम् । कुपक्ष कक्ष पावनं, कुरोष वल्लि कुम्भिनम्, जिनौष कल्प नन्दनं, ननामिनाभिनन्दनम् ||१|| अनन्त सत्तरस्विनं, युगादिमं तपस्विनम् , पुरोग भद्र केतनं, कुराग दन्ति केतनम् । सुमुक्ति रत्न केतनं, प्रमोद सौध केतनम्, जिनौघ कल्प नन्दनं, नमामि नोभिनन्दनम् ।।२।। तमः कयौ जलेन्धनं, स्मरद्रुमे नगादनम्, समग्र सग्विनाशनं, भवज्वरे रसायनम् । गतामयं सनातनं, सुखालयं सुदर्शनम्, जिनौष कल्प नन्दनं, नमामि नाभिनन्दनम् ॥३॥ [स्रग्धरावृत्तम्] श्रीमन्नाभे क्षितीन्द्रा, दधिगतजननः, सद्विनीता नगर्याम् , मातुः स्वप्नानुसाराद्, वृषभइति परान्बर्थ नामा प्रधामा । योऽभूत्तीर्थ कराऽऽद्य, त्रिभुवन जनता, बोधि बीज प्रदाता, सोऽयं पायादपायाद निशमिह विभुनः प्रयन्नाति हर्ता ॥१॥ * विजय यतीन्द्र सूरि प्रणीतम् For Private And Personal Use Only
SR No.008691
Book TitleYugadi Vandana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages149
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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