Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 6
________________ hraininand भूमिका S महर्षि पतंजलि हमारे देश के मूर्धन्य योग-प्रणेता हैं । वे योग को जीवन का अनुशासन कहते हैं। जिसे जीवन में समग्रता से जीने की कला आ गई, वह योग में निष्णात हो गया। पतंजलि जीवन से इतने जुड़े हैं कि व्यक्ति जीवन से पार देखने की क्षमता को उपलब्ध हो जाता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि पतंजलि आध्यात्मिक संस्कृति के सूत्रधार हैं, मृत्यु के पार अमृत की ओर ले जाने वाले कलाकार हैं। __ पूज्य श्री चन्द्रप्रभ जी ने महर्षि के शास्त्र में से कुछ ख़ास मोतियों को चुनकर हमारे सामने उनके अर्थ,रहस्य और गूढ़ताओं को सहज, सरल, सुबोध शैली में उद्घाटित किया है। पूज्यश्री स्वयं भी जीवन में सहजता और निर्मलता के संवाहक हैं। उनके ये प्रवचन न केवल 'योग-का-प्रवेशद्वार' बन गए हैं, अपितु योग को सरलता से आत्मसात करने की जादुई कुंजी भी बन चुके हैं। मानवजाति के लिए स्वस्थ, ऊर्जावान और आध्यात्मिक चेतना का मालिक बनने के लिए यह ग्रन्थ मील के पत्थर का काम करेगा। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं - 'योग का उद्देश्य व्यक्ति के मन को समाप्त करना नहीं है अपितु चित्त का परिमार्जन करना है।' जब चित्त का परिमार्जन हो जाएगा तो व्यक्ति क्लेशकारी वृत्तियों से मुक्त हो जाएगा। जहाँ क्लेश नहीं होगा वहाँ स्वभाव में भी अवश्य परिवर्तन होगा। तब योग का पहला परिणाम निकलेगा स्वभाव-परिवर्तन। आज व्यक्ति क्रोध, चिंता, तनाव आदि से घिरा हुआ है और ध्यान-योगद्वारा इन अवसादों से निश्चय ही मुक्त हुआ जा सकता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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