Book Title: Visuddhimaggo Part 01
Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
Publisher: Bauddh Bharti

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Page 204
________________ ३. कम्मट्ठानग्गहणनिद्देस १५१ मानमिव कुसुमदामविचित्रवण्णचेलवितानसमलङ्कतं सुपञत्तसुचिमनोरमत्थरणमञ्चपीठं, तत्थ वासत्थाय निक्खित्तकुसुमवासगन्धसुगन्धं यं दस्सनमत्तेनेव पीतिपामोजं जनयति, एवरूपं सप्पायं। तस्स पन सेनासनस्स मग्गो पि सब्बपरिस्सयविमुत्तो सुचिसमतलो अलङ्कतपटियत्तो व वट्टति। सेनासनपरिक्खारो पेत्थ कीटमङ्कुणदीघजातिमूसिकानं निस्सयपरिच्छिन्दनत्थं नातिबहुको, एकमञ्चपीठमत्तमेव वट्टति। निवासनपारुपनं पिस्स चीनपट्टसोमारपट्टकोसेय्यकप्पासिकसुखुमखोमादीनं यं यं पणीतं, तेन तेन एकपटुं वा दुपट्टे वा सल्लहुकं समणसारुप्पेन सुरत्तं सुद्धवण्णं वट्टति। पत्तो उदकबुब्बुळमिव सुसण्ठानो मणि विय सुमट्ठो निम्मलो, समणसारुप्पेन सुपरिसुद्धवण्णो अयोमयो वट्टति। भिक्खाचारमग्गो परिस्सयविमुत्तो समो मनापो नातिदूरनाच्चासन्नगामो वट्टति। भिक्खाचारगामो पि यत्थ मनुस्सा "इदानि अय्यो आगमिस्सती" ति सित्तसम्मट्टे पदेसे आसनं पपेत्वा पच्चुग्गन्त्वा पत्तं आदाय घरं पवेसेत्वा पञत्तासने निसीदापेत्वा सकच्चं सहत्था परिविसन्ति, तादिसो वट्टति। परिवेसका पनस्स ये होन्ति अभिरूपा पासादिका सुन्हाता सुविलित्ता धूपवासकुसुमगन्धसुरभिनो नानाविरागसुचिमनुज्ञवत्थाभरणपटिमण्टिता सक्कच्चकारिनो, तादिसा सप्पाया। यागुभत्तखजकं पिवण्णगन्धरससम्पन्नं ओजवन्तं मनोरमं सब्बाकारपणीतं यावदत्थं वट्टति । इरियापथो सुसज्जित, जो अनेक प्रकार की चित्रकारी से सुशोभित हो, जिसकी सतह सब तरफ बराबर, चिकनी और मुलायम हो, जो ब्रह्मविमान की तरह फूलों की झालरों और रंग-बिरंगे कपड़ों के चंदोवे से सुसज्जित हो, जहाँ रहने के लिये चौकी-चारपाई ऐसी हो जिस पर साफ-सुन्दर बिछावन अच्छी तरह से बिछाया गया हो, जोकि वहाँ बिखेरे गये फूलों की गन्ध से सुगन्धित हो, जिसे देखते ही प्रीति और प्रमोद उत्पन्न हो जाय । (ख) उसके शयनाशासन का मार्ग भी सभी प्रकार के उपद्रवों से रहित, साफ-सुथरा, समतल, अलङ्कत ही होना चाहिये । शयनासन में साज-सज्जा बहुत-अधिक न हों, एक ही चौकीचारपाई हो, जिससे कि कीड़े, खटमल, साँप, चूहे आदि का उपद्रव न हो सके। (ग) उसके पहनने ओढ़ने के वस्त्र भी चीन देश के कपड़े, सोमार देश के कपड़े, सिल्क, महीन सूती कपड़े, क्षौम (एक प्रकार का रेशमी कपड़ा) आदि जो भी उत्तम कपड़े हैं; उनसे बने हुए इकहरे या दुहरे, हल्के एवं श्रमणोचित, अच्छी तरह से रँगे हए और परिशद्ध वर्ण के होने चाहिये। (घ) पात्र जल के बुलबुले के समान सुगढ़ (सब तरफ से बराबर गोल), मणि के समान चमकीली कलई से युक्त, स्वच्छ, श्रमणोचित, परिशुद्ध वर्ण के लोहे का बना हुआ होना चाहिये। (ङ) भिक्षाटन का मार्ग भी उपद्रवों से रहित, समतल, सुन्दर, न ग्राम से बहुत दूर और न बहुत पास होना चाहिये। (च) जहाँ वह भिक्षाटन के लिये जाय, वह ग्राम भी ऐसा होना चाहिये जहाँ के लोग 'अब आर्य आते होंगे -ऐसा सोचकर पानी छिड़कर, झाडू लगाकर साफ किये स्थान पर आसन बिछाकर, आगे बढ़कर पात्र लेकर घर में प्रवेश करायें और बिछाये गये आसन पर बैठा कर आदर के साथ अपने हाथ से परोसें। (छ) जो परोसने वाले हों वे सुन्दर, मन प्रसन्न कर देने वाले, अच्छी तरह से खान किये हुए, (चन्दन आदि का) लेप लगाये हुए, धूप, सुगन्धित पुष्प आदि के प्रयोग से अलंकृत हो और आदर

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